1. Jab wo iss duniya ke shor aur khamoshi se..

जब वो इस दुनिया के शोर और ख़मोशी से क़त'अ-तअल्लुक़ होकर इंग्लिश में गुस्सा करती है,
मैं तो डर जाता हूँ लेकिन कमरे की दीवारें हँसने लगती हैं

वो इक ऐसी आग है जिसे सिर्फ़ दहकने से मतलब है,
वो इक ऐसा फूल है जिसपर अपनी ख़ुशबू बोझ बनी है,
वो इक ऐसा ख़्वाब है जिसको देखने वाला ख़ुद मुश्किल में पड़ सकता है,
उसको छूने की ख़्वाइश तो ठीक है लेकिन
पानी कौन पकड़ सकता है

वो रंगों से वाकिफ़ है बल्कि हर इक रंग के शजरे तक से वाकिफ़ है,
उसको इल्म है किन ख़्वाबों से आंखें नीली पढ़ सकती हैं,
हमने जिनको नफ़रत से मंसूब किया
वो उन पीले फूलों की इज़्ज़त करती है

कभी-कभी वो अपने हाथ मे पेंसिल लेकर
ऐसी सतरें खींचती है
सब कुछ सीधा हो जाता है

वो चाहे तो हर इक चीज़ को उसके अस्ल में ला सकती है,
सिर्फ़ उसीके हाथों से सारी दुनिया तरतीब में आ सकती है,
हर पत्थर उस पाँव से टकराने की ख़्वाइश में जिंदा है लेकिन ये तो इसी अधूरेपन का जहाँ है,
हर पिंजरे में ऐसे क़ैदी कब होते हैं
हर कपड़े की किस्मत में वो जिस्म कहाँ है

मेरी बे-मक़सद बातों से तंग भी आ जाती है तो महसूस नहीं होने देती
लेकिन अपने होने से उकता जाती है,
उसको वक़्त की पाबंदी से क्या मतलब है
वो तो बंद घड़ी भी हाथ मे बांध के कॉलेज आ जाती है
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2. Mujhe bahut hai ke main bhi shamil hoo - Tehzeeb Hafi ..

मुझे बहुत है के मैं भी शामिल हूँ तेरी जुल्फों की ज़ाइरीनों में,
जो अमावस की काली रातों का रिज़्क़ बनने से बच गए,
मुझे कसम है उदास रातों में डसने वाले यतीम साँपों की ज़हर-आलूद ज़िंदगी की,
तेरे छुए जिस्म बिस्तर-ए-मर्ग पर पड़े हैं,
तेरे लबों की ख़फ़ीफ़ जुंबिश से ज़लज़लों ने ज़मीं का ज़ेवर उतार फेंका,
तेरी दरख्शाँ हथेलियों पर बदलते मौसम के जायकों से पता चला है के इस त'अल्लुक़ की सर जमीं पर खीजा बहुत देर तक रहेगी,
मैं जानता हूँ के मैंने ममनू शाहों से हो के ऐसे बहुत से बाबों की सैर की है जहाँ से तू रोकती बहुत थी,
ये हाथ जिनको तेरे बदन की चमक ने बरसो निढ़ाल रक्खा,
हराम है के इन्होंने शाखों से फूल तोड़े हो,
या किसी भी पेड़ के लचकदार बाजुओं से किसी भी मौसम का फ़ल उतारा हो,
और अगर ऐसा हो भी जाता तो फिर भी तेरी शरिष्त में इंतकाम कब है,
अभी मोहब्बत की सुबह रोशन है शाम कब है,
ये दिल के शीशे पर पड़ने वाली मलाल की धूल साफ़ कर दे,
मैं तुझ से छुप कर अगर किसी से मिला तो मुझे मुआफ़ कर दे,
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3. Zehan par zoor dene se bhi yaad ata nahi k kia dekhtey thy..

ज़ेहन पर ज़ोर देने से भी याद नहीं आता कि हम क्या देखते थे
सिर्फ़ इतना पता है कि हम आम लोगों से बिल्कुल जुदा देखते थे

तब हमें अपने पुरखों से विरसे में आई हुई बद्दुआ याद आई
जब कभी अपनी आँखों के आगे तुझे शहर जाता हुआ देखते थे

सच बताएँ तो तेरी मोहब्बत ने ख़ुद पर तवज्जो दिलाई हमारी
तू हमें चूमता था तो घर जा के हम देर तक आईना देखते थे

सारा दिन रेत के घर बनाते हुए और गिरते हुए बीत जाता
शाम होते ही हम दूरबीनों में अपनी छतों से ख़ुदा देखते थे

उस लड़ाई में दोनों तरफ़ कुछ सिपाही थे जो नींद में बोलते थे
जंग टलती नहीं थी सिरों से मगर ख़्वाब में फ़ाख्ता देखते थे

दोस्त किसको पता है कि वक़्त उसकी आँखों से फिर किस तरह पेश आया
हम इकट्ठे थे हँसते​ थे रोते थे इक दूसरे को बड़ा दखते थे

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Zehan par zoor dene se bhi yaad ata nahi k kia dekhtey thy
Sirf itna pata hai k hum aam logoon se bilkul juda dekhtey thy

Tab hamein apne purkhoon se virsey mein ayi hui baddua yaad ati
Jab kabhi apni aankhoon k agey tujhe seher jatey huey dekhtey thy

Sach batain t uteri muhabbat ne khud par tuwaju dilai hamari
Tu hamein choomta that tu ghar ja kr dair tk aaina dekhtey thy

Sara din rait k ghar banatey huey aor giratey huey beet jata
Sham hotey hi hum doorbinoon mein apni chatoon se khuda dekhtey thy

Dost kis ko pata hai k waqt us ki ankhoon se phir kis tarha paish aya
Hum ikhatey thy, hanstey thy, rotey thy, ik dosrey ko bara dekhtey thy

Us larai mein donoon taraf kuch sipahi thy jo neend mein boltey thy
jung talti nahi thi magar khuwab mein fakhta dekhtey thy
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4. Tere hontoon se behti hui yeh hansi - Tehzeeb Hafi..

Tere hontoon se behti hui yeh hansi
Do jahanoon pe nafiz na honey ka bais tere hath hain
Jin ko tu ne hamesha laboon pe rakha muskaratey huey
Tu nahi janti neend ki goliaan kyun banai gain

Log kyun raat ko uth k rotey hain sotey nahi
Tu ne ab tak koi shab jagtey bhi ghuzari tu woh bar b night thi
Tujh ko kaise bataoon k teri sada k taqub mein main kaisey
Daryioon sehraoon aor jungloon sey ghuzarta hua aik aisi jagha ja gira tha

Jahan pair ka sokhna aik aam si baat thi
Jahan in chiraghoon ko jalney ki ujrat nahi mil rhi thi
Jahan larkioon k badan sirf khusb bananey kaam atey thy
Mujh ko maloom that tera aisey jahan aisi dunya se koi taluq nahi

Tu nahi janti kitni anhkein tujhe dekhtey dekhtey bujh gain
Kitney kurtey tere hath se istri ho k jalney ki khuwais liye khonthi sey latkey rhe
Kitney lab tere mathey ko tarsey
Kitni sharaein is shouq se phat gain hain k tu un k seeney pe paoon dharey

Main tujhe dhontey dhontey thak gya hoon
Ab mujhe teri mojodghi chahiye
Apney satan mein sehmey huey surkh peroon ko ab mere haathoon pe takh
Main ne chakna hai in ka namak
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5. Subahein roshan thi aur garmiyon ki..

सुब्हें रौशन थी और गर्मियों की थका देने वाले दिनों में
सारी दुनिया से आज़ाद हम मछलियों की तरह मैली नहरों में गोते लगाते
अपने चेहरों से कीचड़ लगाकर डराते थे एक दूसरे को
किनारों पर बैठे हुए हमने जो अहद एक दूसरे से लिये थे
उसके धुँधले से नक्शे आज भी मेरे दिल पर कहीं नक्श है
ख़ुदा रोज़ सूरज को तैयार करके हमारी तरफ़ भेजता था
और हम साया-ए-कुफ़्र में इक दूजे के चेहरे की ताबिंदगी की दुआ माँगते थे
उस का चेहरा कभी मेरी आँखों से ओझल नहीं हो सका
उसका चेहरा अगर मेरी आँखों से हटता तो मैं काएनातों में फैले हुए उन मज़ाहिर की तफ़्हीम नज़्मों में करता
कि जिस पर बज़िद है ये बीमार
जिन को खुद अपनी तमन्नाओं की आत्माओं ने इतना डराया
कि इनको हवस के क़फ़स में मोहब्बत की किरनों ने छूने की कोशिश भी की तो ये उस से परे हो गए
इनके बस में नहीं कि ये महसूस करते एक मोहब्बत भरे हाथ का लम्स
जिनसे इंकार कर कर के इनके बदन खुरदुरे हो गए
एक दिन जो ख़ुदा और मोहब्बत की एक क़िस्त को अगले दिन पर नहीं टाल सकते
ख़ुदा और मोहब्बत पर राए-ज़नी करते थकते नहीं
और इस पर भी ये चाहते हैं कि मैं इनकी मर्ज़ी की नज़्में कहूँ
जिन में इन की तशफ़्फी का सामान हो, आदमी पढ़ के हैरान हो
जिस को ये इल्म कहते है, उस इल्म की बात हो
फ़लसफ़ा, दीन, तारीख़, साइंस, समाज, अक़ीदा, ज़बान-ए-म‌आशी, मुसावात,
इंसान के रंग-ओ-आदात-ओ-अतवार ईजाद, तक़लीद, अम्न, इंतिशार, लेनिन की अज़मत के किस्से
फ़ितरी बलाओं से और देवताओं से जंग, सुल्ह-नामा लिए तेज़ रफ़्तार घोड़ों पर सहमे सिपाही
नज़िया-ए-समावात में कान में क्या कहा और उसकी जुराबों के फीतों की डिबिया
कीमिया के खज़ानों का मुँह खोलने वाला बाबुल कौन था, जिस ने पारे को पत्थर में ढाला
और हर्शल की आँखे जो बस आसमानों पर रहती,
क्या वो इंग्लैंड का मोहसिन नहीं
समंदर की तस्ख़ीर और अटलांटिक पे आबादियाँ, मछलियाँ कश्तियों जैसी क्यों है
और राफेल के हाथ पर मट्टी कैसे लगी, क्या ये नीत्शे का मतलब भी निश्ते की तरह नहीं तो नहीं है
ये सवाल और ये सारी बातें मेरे किस काम की
पिछले दस साल से उसकी आवाज़ तक मैं नहीं सुन सका
और ये पूछते है कि हेगेल के नज़दीक तारीख़ क्या है
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6. mariyam-mai aaino se gurez krte hue..

मैं आईनों से गुरेज़ करते हुए
पहाड़ों की कोख में साँस लेने वाली उदास झीलों में अपने चेहरे का अक्स देखूँ तो सोचता हूँ
कि मुझ में ऐसा भी क्या है मरियम
तुम्हारी बे-साख़्ता मोहब्बत ज़मीं पे फैले हुए समंदर की वुसअतों से भी मावरा है
मोहब्बतों के समंदरों में बस एक बहिरा-ए-हिज्र है जो बुरा है मरियम
ख़ला-नवर्दों को जो सितारे मुआवज़े में मिले थे
वो उनकी रौशनी में ये सोचते हैं
कि वक़्त ही तो ख़ुदा है मरियम
और इस तअल्लुक़ की गठरियों में
रुकी हुई सआतों से हटकर
मेरे लिए और क्या है मरियम
अभी बहुत वक़्त है कि हम वक़्त दे ज़रा इक दूसरे को
मगर हम इक साथ रहकर भी ख़ुश न रह सके तो मुआफ़ करना
कि मैंने बचपन ही दुख की दहलीज़ पर गुज़ारा
मैं उन चराग़ों का दुख हूँ जिनकी लवे शब-ए-इंतज़ार में बुझ गई
मगर उनसे उठने वाला धुआँ ज़मान-ओ-मकाँ में फैला हुआ है अब तक
मैं कोहसारों और उनके जिस्मों से बहने वाली उन आबशारों का दुख हूँ जिनको
ज़मीं के चेहरों पर रेंगते रेंगते ज़माने गुज़र गए हैं
जो लोग दिल से उतर गए हैं
किताबें आँखों पे रख के सोए थे मर गए हैं
मैं उनका दुख हूँ
जो जिस्म ख़ुद-लज़्जती से उकता के आईनों की तसल्लिओं में पले बढ़े हैं
मैं उनका दुख हूँ
मैं घर से भागे हुओ का दुख हूँ
मैं रात जागे हुओ का दुख हूँ
मैं साहिलों से बँधी हुई कश्तियों का दुख हूँ
मैं लापता लड़कियों का दुख हूँ
खुली हुए खिड़कियों का दुख हूँ
मिटी हुई तख़्तियों का दुख हूँ
थके हुए बादलों का दुख हूँ
जले हुए जंगलों का दुख हूँ
जो खुल कर बरसी नहीं है, मैं उस घटा का दुख हूँ
ज़मीं का दुख हूँ
ख़ुदा का दुख हूँ
बला का दुख हूँ
जो शाख सावन में फूटती है वो शाख तुम हो
जो पींग बारिश के बाद बन बन के टूटती है वो पींग तुम हो
तुम्हारे होठों से सआतों ने समाअतों का सबक़ लिया है
तुम्हारी ही शाख-ए-संदली से समंदरों ने नमक लिया है
तुम्हारा मेरा मुआमला ही जुदा है मरियम
तुम्हें तो सब कुछ पता है मरियम
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7. Safed shirt thi tum seedhiyon pe baithe the..

सफ़ेद शर्ट थी तुम सीढ़ियों पे बैठे थे
मैं जब क्लास से निकली थी मुस्कुराते हुए
हमारी पहली मुलाक़ात याद है ना तुम्हें?
इशारे करते थे तुम मुझको आते जाते हुए

तमाम रात को आँखे न भूलती थीं मुझे
कि जिनमें मेरे लिए इज़्ज़त और वक़ार दिखे
मुझे ये दुनिया बयाबान थी मगर इक दिन
तुम एक बार दिखे और बेशुमार दिखे

मुझे ये डर था कि तुम भी कहीं वो ही तो नहीं
जो जिस्म पर ही तमन्ना के दाग़ छोड़ते हैं
ख़ुदा का शुक्र कि तुम उनसे मुख़्तलिफ़ निकले
जो फूल तोड़ के ग़ुस्से में बाग़ छोड़ते हैं

ज़ियादा वक़्त न गुज़रा था इस तअल्लुक़ को
कि उसके बाद वो लम्हा करीं करीं आया
छुआ था तुमने मुझे और मुझे मोहब्बत पर
यक़ीन आया था लेकिन कभी नहीं आया

फिर उसके बाद मेरा नक्शा-ए-सुकूत गया
मैं कश्मकश में थी तुम मेरे कौन लगते हो
मैं अमृता तुम्हें सोचूँ तो मेरे साहिर हो
मैं फ़ारिहा तुम्हें देखूँ तो जॉन लगते हो

हम एक साथ रहे और हमें पता न चला
तअल्लुक़ात की हद बंदियाँ भी होती हैं
मोहब्बतों के सफ़र में जो रास्ते हैं वहीं
हवस की सिम्त में पगडंडियाँ भी होती हैं

तुम्हारे वास्ते जो मेरे दिल में है 'हाफ़ी'
तुम्हें ये काश मैं सब कुछ कभी बता पाती
और अब मज़ीद न मिलने की कोई वजह नहीं
बस अपनी माँ से मैं आँखें नहीं मिला पाती
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8. Mere jakham nahin bharte yaaron..

मेरे जख्म नहीं भरते यारों
मेरे नाखून बढ़ते जाते हैं
मैं तन्हा पेड़ हूं जंगल का
मेरे पत्ते झड़ते जाते हैं

मैं कौन हूं, क्या हूं, कब की हूं
एक तेरी कब हूं, सबकी हूं
मैं कोयल हूं शहराओ की
मुझे ताब नहीं है छांव की
एक दलदल है तेरे वादों की
मेरे पैर उखड़ते जाते हैं
मेरे जख्म नहीं भरते यारो
मेरे नाखून बढ़ते जाते हैं

मैं किस बच्चे की गुड़िया थी
मैं किस पिंजरे की चिड़िया थी
मेरे खेलने वाले कहां गए
मुझे चूमने वाले कहां गए
मेरे झुमके गिरवी मत रखना
मेरे कंगन तोड़ ना देना
मैं बंजर होती जाती हूं
कहीं दरिया मोड़ ना देना
कभी मिलना इस पर सोचेंगे
हम क्या मंजिल पर पहुंचेंगे
रास्तों में ही लड़ते जाते हैं
मेरे जख्म नहीं भरते यारों
मेरे नाखून बढ़ते जाते हैं

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Mere zakham nahi bharty yaaro
Mere nakhun bhadty jaty hein
Main Tanha pear hon jangal ka
Mere patty jharty jaty hein 

Main kon hoon kia hon kab ki hoon
Ek teri kab hoon sab ki hoon 
Main  koyal hon sahraoun ki
Mujhe taab nai hai chaunw ki
Ek daldal hai tere waado ki
Mere pair ukhadte jate hein
Mere zakham nahi bharty yaaro
Mere nakhun bhadty jaty hein

Main kis penjare ki chiriya thi
Main kis bacchy ki guria thi
Mere khelne wale Kahan gae
Mujhe chumne wale kahan gae 
Mere jhoomkey girwee mat rakhna
Mere kangan tor na deena
main banjar hoti jati hon
Kahi dariya mod na dena
Kabhi milna is par sochyenge
Ham kia manzil par pohnchenge
Raste men hi larty jaty hein
Mere zakham nahi bharty yaaro
Mere nakhun bhadty jaty hein
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9. tere saath guzre dinon ki koi aik dhundli si tasveer-Bebasi..

तेरे साथ गुज़रे दिनों की
कोई एक धुँदली सी तस्वीर
जब भी कभी सामने आएगी
तो हमें एक दुआ थामने आएगी,
बुढ़ापे की गहराइयों में उतरते हुए
तेरी बे-लौस बाँहों के घेरे नहीं भूल पाएँगे हम
हमको तेरे तवस्सुत से हँसते हुए जो मिले थे
वो चेहरे नहीं भूल पाएँगे हम
तेरे पहलू में लेटे हुओं का अजब क़र्ब है
जो रात भर अपनी वीरान आँखों से तुझे तकते थे
और तेरे शादाब शानों पे सिर रख के
मरने की ख़्वाहिश में जीते रहे

पर तेरे लम्स का कोई इशारा मयस्सर नहीं था
मगर इस जहाँ का कोई एक हिस्सा
उन्हें तेरे बिस्तर से बेहतर नहीं था
पर मोहब्बत को इस सब से कोई इलाका नहीं था
एक दुख तो हम बहरहाल हम अपने सीनों में ले के मरेंगे
कि हमने मोहब्बत के दावे किए
तेरे माथे पर सिंदूर टाँका नहीं

इससे क्या फ़र्क पड़ता है दूर हैं तुझसे या पास हैं
हमको कोई आदमी तो नहीं, हम तो एहसास हैं
जो रहे तो हमेशा रहेंगे
और गए तो मुड़ कर वापिस नहीं आएँगे

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Tere saath guzre dinon ki koi aik dhundli si tasveer
Jab bhi kabhi samne aaye.gi
Tou hamein aik duaa thamne aaye.gi
Burhape ki gehraiyon mein utarte howay
Teri be laos bahon ki ghere nahi bhol payenge hum
Hum ko tere tawassul se hanste hoye jo mile thay
Woh chehre nahi bhol payengey hum
Tere pehlo mein laite howon ka ajab karb hai
Jo tujhe raat bhar apni weran aankhon se takte thay
Aur tere shadaab shanon par sar rakh ke 
Marne ki khwahish mein jeete rahe

Har tere lams ka un ko koi ishara muyassar nahi tha
Magar iss jahan ka koi ik hissa unhen tere bistar se behtar nahi tha
Par mohabbat ko iss sab se koi alaqa nahi
Aik dukh to bahar hal hum apne seenon mein le kar marengey
Keh hum ne mohabbat ke daway kiye magar
Tere mathe mein sindoor tanka nahi

Iss se kya farq parta hai
Hum door hain tujhe se ya paas hain
Hum koi aadmi tou nahi
Hum tou ehsas hain
Jo rahe tou hamesha rahengey
Aur gaye tou kabhi morr ke wapas nahi aayengey  
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10. Hum milenge kaheen-Tehzeeb Hafi..

'हम मिलेंगे कहीं'

हम मिलेंगे कहीं
अजनबी शहर की ख़्वाब होती हुई शाहराओं पे और शाहराओं पे फैली हुई धूप में
एक दिन हम कहीं साथ होगे वक़्त की आँधियों से अटी साहतों पर से मिट्टी हटाते हुये
एक ही जैसे आँसू बहाते हुये

हम मिलेंगे घने जंगलो की हरी घास पर और किसी शाख़-ए-नाज़ुक पर पड़ते हुये बोझ की दास्तानों मे खो जायेंगे
हम सनोबर के पेड़ों की नोकीले पत्तों से सदियों से सोये हुये देवताओं की आँखें चभो जायेंगे

हम मिलेंगे कहीं बर्फ़ के बाजुओं मे घिरे पर्वतों पर
बाँझ क़ब्रो मे लेटे हुये कोह पेमाओं की याद में नज़्म कहते हुये
जो पहाड़ों की औलाद थें, और उन्हें वक़्त आने पर माँ बाप ने अपनी आग़ोश में ले लिया
हम मिलेंगे कही शाह सुलेमान के उर्स मे हौज़ की सीढियों पर वज़ू करने वालो के शफ़्फ़ाफ़ चेहरों के आगे
संगेमरमर से आरस्ता फ़र्श पर पैर रखते हुये
आह भरते हुये और दरख़्तों को मन्नत के धागो से आज़ाद करते हुये हम मिलेंगे

हम मिलेंगे कहीं नारमेंडी के साहिल पे आते हुये अपने गुम गश्तरश्तो की ख़ाक-ए-सफ़र से अटी वर्दियों के निशाँ देख कर
मराकिस से पलटे हुये एक जर्नेल की आख़िरी बात पर मुस्कुराते हुये
इक जहाँ जंग की चोट खाते हुये हम मिलेंगे

हम मिलेंगे कहीं रूस की दास्ताओं की झूठी कहानी पे आँखो मे हैरत सजाये हुये, शाम लेबनान बेरूत की नरगिसी चश्मूरों की आमद के नोहू पे हँसते हुये, ख़ूनी कज़ियो से मफ़लूह जलबानियाँ के पहाड़ी इलाक़ों मे मेहमान बन कर मिलेंगे

हम मिलेंगे एक मुर्दा ज़माने की ख़ुश रंग तहज़ीब मे ज़स्ब होने के इमकान में
इक पुरानी इमारत के पहलू मे उजड़े हुये लाँन में
और अपने असीरों की राह देखते पाँच सदियों से वीरान ज़िंदान मे

हम मिलेंगे तमन्नाओं की छतरियों के तले, ख़्वाहिशों की हवाओं के बेबाक बोसो से छलनी बदन सौंपने के लिये रास्तों को
हम मिलेंगे ज़मीं से नमूदार होते हुये आठवें बर्रे आज़म में उड़ते हुये कालीन पर

हम मिलेंगे किसी बार में अपनी बकाया बची उम्र की पायमाली के जाम हाथ मे लेंगे और एक ही घूंट में हम ये सैयाल अंदर उतारेंगे
और होश आने तलक गीत गायेंगे बचपन के क़िस्से सुनाता हुआ गीत जो आज भी हमको अज़बर है बेड़ी बे बेड़ी तू ठिलदी तपईये पते पार क्या है पते पार क्या है-2?

हम मिलेंगे बाग़ में, गाँव में, धूप में, छाँव में, रेत मे, दश्त में, शहर में, मस्जिदों में, कलीसो में, मंदिर मे, मेहराब में, चर्च में, मूसलाधार बारिश में, बाज़ार में, ख़्वाब में, आग में, गहरे पानी में, गलियों में, जंगल में और आसमानों में
कोनो मकाँ से परे गैर आबद सैयाराए आरज़ू में सदियों से खाली पड़ी बेंच पर
जहाँ मौत भी हम से दस्तो गरेबाँ होगी, तो बस एक दो दिन की मेहमान होगी.
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11. Ek Saheli Ki Naseehat..

एक सहेली की नसीहत..

तुम अकेली नहीं हो सहेली
जिसे अपने वीरान घर को सजाना था
और एक शायर के लफ़्ज़ों को सच मानकर
उसकी पूजा में दिन काटने थे
तुमसे पहले भी ऐसा ही इक ख़्वाब,
झूटी तसल्ली में जाँ दे चुका है
तुम्हें भी वो एक दिन कहेगा कि वो,
तुमसे पहले किसी को ज़बाँ दे चुका है
वो तो शायर है और साफ़ ज़ाहिर है
शायर हवा की हथेली पे लिक्खी हुई वो पहेली है जिसने
अबद और अज़ल के दरीचों को उलझा दिया है
वो तो शायर है,
शायर तमन्ना के सहरा में रमन करने वाला हिरन है
शोबदा साज़ सुब्ह की पहली किरन है
अदबगाह-ए-उल्फ़त का मेमार है
वो तो शायर है
शायर को बस फ़िक्र-ए-लौह-ए-कलम है
उसे कोई दुख है किसी का ना ग़म है
वो तो शायर है
शायर को क्या ख़ौफ़ मरने से
शायर तो ख़ुद शहसवार-ए-अजल है
उसे किस तरह टाल सकता है कोई, के वो तो अटल है
मैं उसे जानती हूँ, वो समंदर की वो लहर है
जो किनारे से वापस पलटते हुए
मेरी खुरदुरी एड़ियों पर लगी रेत भी और मुझे भी बहा ले गया
वो मेरे जंगलों के दरख़्तों पे बैठी हुई शहद की मक्खियाँ भी उड़ा ले गया
उसने मेरे बदन को छुआ और मेरी हड्डियों से वो नज़्में कशीदी
जिन्हें पढ़ के मैं काँप उठती हूँ
और सोचती हूँ कि ये मस'अला दिलबरी का नहीं
ख़ुदा की क़सम खा के कहती हूँ
वो जो भी कहता रहे वो किसी का नहीं
सहेली तुम मेरी बात मानो
तुम उसे जानती ही नहीं
वो ख़ुदा-ए-सिपाह-ए-सुख़न है
और तुम एक पत्थर पे नाखुन से लिखी हुई
उसी की ही एक नज़्म हो.
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