romantic-ghazals

tiri hi shakl ke but hain kai taraashe hue..

tiri hi shakl ke but hain kai taraashe hue
na pooch kaa'ba-e-dil mein bhi kya tamaashe hue

hamaari laash ko maidan-e-ishq mein pehchaan
bujhi hui si hain aankhen to dil kharaashe hue

b-waqt-e-wasl koi baat bhi na ki ham ne
zabaan thi sookhi hui hont irtia'ashe hue

vo kaise baat ko tolenge aur boleinge
jo pal mein tole hue aur pal mein maashe hue

mazaak chhod bata ye ki mujh se kya parda
tire nuqoosh hain saare mere talashe hue

main tere shehar se nikla tha ain us lamha
tire nikaah pe taqseem jab bataashe hue 
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तिरी ही शक्ल के बुत हैं कई तराशे हुए
न पूछ का'बा-ए-दिल में भी क्या तमाशे हुए

हमारी लाश को मैदान-ए-इश्क़ में पहचान
बुझी हुई सी हैं आँखें तो दिल ख़राशे हुए

ब-वक़्त-ए-वस्ल कोई बात भी न की हम ने
ज़बाँ थी सूखी हुई होंट इर्तिआ'शे हुए

वो कैसे बात को तोलेंगे और बोलेंगे
जो पल में तोले हुए और पल में माशे हुए

मज़ाक़ छोड़ बता ये कि मुझ से क्या पर्दा
तिरे नुक़ूश हैं सारे मिरे तलाशे हुए

मैं तेरे शहर से निकला था ऐन उस लम्हा
तिरे निकाह पे तक़्सीम जब बताशे हुए
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Ye jo mujh par nikhar hai sain..

ye jo mujh par nikhar hai sain
aap hi ki bahar hai sain

aap chahen to jaan bhi le len
aap ko iḳhtiyar hai sain

tum milate ho bichhde logon ko
ek mera bhi yaar hai sain

kisi khunTi se bandh diije use
dil baḌa be-mahar hai sain

'ishq men laghzishon pe kiije muāf
sain ye pahli baar hai sain

kul mila kar hai jo bhi kuchh mera
aap se musta'ar hai sain

ek kashti bana hi diije mujhe
koi dariya ke paar hai sain

roz aansu kama ke laata huun
gham mira rozgar hai sain

vusat-e-rizq ki dua diije
dard Ka karobar hai sain

ḳhar-zaron se ho ke aaya huun
pairahan tar-tar hai sain

kabhi aa kar to dekhiye ki ye dil
kaisa ujḌa dayar hai sain
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यह जो मुझ पर निखार है साईं
आप ही की बहार है साईं

आप चाहें तो जान भी ले लें
आप को इख़्तियार है साईं

तुम मिलाते हो बिछड़े लोगों को
एक मेरा भी यार है साईं

किसी खूंटी से बाँध दीजिए उसे
दिल बड़ा बे-महार है साईं

'इश्क़ में ल़ग्ज़िशों पे कीजिए माफ़
साईं ये पहली बार है साईं

कुल मिला कर है जो भी कुछ मेरा
आप से मुस्तआ'र है साईं

एक कश्ती बना ही दीजिए मुझे
कोई दरिया के पार है साईं

रोज़ आँसू कमा के लाता हूँ
ग़म मेरा रोज़गार है साईं

वुसअत-ए-रिज़्क़ की दुआ दीजिए
दर्द का कारोबार है साईं

खार-ज़ारों से हो के आया हूँ
पहनावा तार-तार है साईं

कभी आ कर तो देखिए कि ये दिल
कैसा उजड़ा दयार है साईं

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ik lafz-e-mohabbat ka adna ye fasana hai..

ik lafz-e-mohabbat ka adna ye fasana hai
simTe to dil-e-ashiq phaile to zamana hai

ye kis ka tasavvur hai ye kis ka fasana hai
jo ashk hai ankhon men tasbih ka daana hai

dil sang-e-malamat ka har-chand nishana hai
dil phir bhi mira dil hai dil hi to zamana hai

ham ishq ke maron ka itna hi fasana hai
rone ko nahin koi hansne ko zamana hai

vo aur vafa-dushman manenge na maana hai
sab dil ki shararat hai ankhon ka bahana hai

shair huun main shair huun mera hi zamana hai
fitrat mira aina qudrat mira shana hai

jo un pe guzarti hai kis ne use jaana hai
apni hi musibat hai apna hi fasana hai

kya husn ne samjha hai kya ishq ne jaana hai
ham ḳhak-nashinon ki Thokar men zamana hai

aghaz-e-mohabbat hai aana hai na jaana hai
ashkon ki hukumat hai aahon ka zamana hai

ankhon men nami si hai chup chup se vo baiThe hain
nazuk si nigahon men nazuk sa fasana hai

ham dard-ba-dil nalan vo dast-ba-dil hairan
ai ishq to kya zalim tera hi zamana hai

ya vo the ḳhafa ham se ya ham hain ḳhafa un se
kal un ka zamana tha aaj apna zamana hai

ai ishq-e-junun-pesha haan ishq-e-junun-pesha
aaj ek sitamgar ko hans hans ke rulana hai

thoḌi si ijazat bhi ai bazm-gah-e-hasti
aa nikle hain dam-bhar ko rona hai rulana hai

ye ishq nahin asan itna hi samajh liije
ik aag ka dariya hai aur Duub ke jaana hai

ḳhud husn-o-shabab un ka kya kam hai raqib apna
jab dekhiye ab vo hain aina hai shana hai

tasvir ke do ruḳh hain jaan aur gham-e-janan
ik naqsh chhupana hai ik naqsh dikhana hai

ye husn-o-jamal un ka ye ishq-o-shabab apna
jiine ki tamanna hai marne ka zamana hai

mujh ko isi dhun men hai har lahza basar karna
ab aae vo ab aae lazim unhen aana hai

ḳhuddari-o-mahrumi mahrumi-o-ḳhuddari
ab dil ko ḳhuda rakkhe ab dil ka zamana hai

ashkon ke tabassum men aahon ke tarannum men
maasum mohabbat ka maasum fasana hai

aansu to bahut se hain ankhon men 'jigar' lekin
bandh jaae so moti hai rah jaae so daana hai
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इक शब्द-ए-मोहब्बत का अदना ये फसाना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है

ये किस का तसव्वुर है, ये किस का फसाना है
जो अश्क है आँखों में, तसबीह का दाना है

दिल संग-ए-मलामत का हरचंद निशाना है
दिल फिर भी मेरा दिल है, दिल ही तो ज़माना है

हम इश्क़ के मारे का इतना ही फसाना है
रोने को नहीं कोई, हंसने को ज़माना है

वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न मानना है
सब दिल की शरारत है, आँखों का बहाना है

शायर हूँ मैं, शायर हूँ, मेरा ही ज़माना है
फितरत मेरा आईना, क़ुदरत मेरा शाना है

जो उन पे गुज़रती है, किस ने उसे जाना है
अपनी ही मुसीबत है, अपना ही फसाना है

क्या हुस्न ने समझा है, क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है

आ़ग़ाज़-ए-मोहब्बत है, आना है न जाना है
आँखों की हुकूमत है, आहों का ज़माना है

आँखों में नमी सी है, चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में, नाज़ुक सा फसाना है

हम दर्द-बर-दिल नालाँ, वो दस्त-बर-दिल हैराँ
ए इश्क़ तो क्या ज़ालिम, तेरा ही ज़माना है

या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उनका ज़माना था, आज अपना ज़माना है

ए इश्क़-ए-जनून-पेशा, हाँ इश्क़-ए-जनून-पेशा
आज एक सितमगर को हंसी हंसी के रुलाना है

थोड़ी सी इजाज़त भी ए बज़्म-गाह-ए-हस्ती
आ निकले हैं दम भर को रोना है, रुलाना है

ये इश्क़ नहीं आसान, इतना ही समझ लीजिए
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है

ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उनका, क्या कम है रक़ीब अपना
जब देखिए अब वो हैं, आईना है शाना है

तस्वीर के दो रुख हैं, जान और ग़म-ए-जानाँ
एक नक़्श छुपाना है, एक नक़्श दिखाना है

ये हुस्न-ओ-जमाल उनका, ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है, मरने का ज़माना है

मुझ को इसी धुन में है, हर लम्हा बसर करना
अब आए वो, अब आए, लाज़िम उन्हें आना है

ख़ुद्दारी-ओ-मह्रूमी, मह्रूमी-ओ-ख़ुद्दारी
अब दिल को ख़ुदा रखे, अब दिल का ज़माना है

आँखों के तबस्सुम में, आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत का मासूम फसाना है

आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बाँध जाए सो मोती है, रह जाए सो दाना है
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Tire ishq ki intiha chahta huun..

tire ishq ki intiha chahta huun
miri sadgi dekh kya chahta huun

sitam ho ki ho vada-e-be-hijabi
koi baat sabr-azma chahta huun

ye jannat mubarak rahe zahidon ko
ki main aap ka samna chahta huun

zara sa to dil huun magar shoḳh itna
vahi lan-tarani suna chahta huun

koi dam ka mehman huun ai ahl-e-mahfil
charagh-e-sahar huun bujha chahta huun

bhari bazm men raaz ki baat kah di
baḌa be-adab huun saza chahta huun
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तेरे इश्क की इंतिहा चाहता हूँ
मेरी साधगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

ज़रासा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना
वही लंत-तरानी सुना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमान हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी महफ़िल में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

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Aap ka etibar kaun kare..

aap ka etibar kaun kare
roz ka intizar kaun kare

zikr-e-mehr-o-vafa to ham karte
par tumhen sharmsar kaun kare

ho jo us chashm-e-mast se be-ḳhud
phir use hoshiyar kaun kare

tum to ho jaan ik zamane ki
jaan tum par nisar kaun kare

afat-e-rozgar jab tum ho
shikva-e-rozgar kaun kare

apni tasbih rahne de Zahid
daana daana shumar kaun kare

hijr men zahr kha ke mar jaun
maut Ka intizar kaun kare

aankh hai turk zulf hai sayyad
dekhen dil ka shikar kaun kare

Vada karte nahin ye kahte hain
tujh ko ummīd-var kaun kare

'dagh ki shakl dekh kar bole
aisi surat ko pyaar kaun kare
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आप का एतिबार कौन करे
रोज़ का इंतज़ार कौन करे

ज़िक्र-ए-महरो-वफ़ा तो हम करते
पर तुम्हें शर्मसार कौन करे

हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद
फिर उसे होशियार कौन करे

तुम तो हो जान एक ज़माने की
जान तुम पर निसार कौन करे

आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो
शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे

अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद
दाना दाना शुमार कौन करे

हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊं
मौत का इंतज़ार कौन करे

आँख है तुर्क ज़ुल्फ है सैय्याद
देखें दिल का शिकार कौन करे

वादा करते नहीं ये कहते हैं
तुझ को उम्मीद-वार कौन करे

'दाग' की शक्ल देख कर बोले
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे

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Jab se usne kheecha hai khidki ka parda ek taraf..

जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़
उसका कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़

मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बाँटा है
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़

एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता रफ़्ता एक तरफ़

यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन
तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़

उसकी आँखों ने मुझसे मेरी ख़ुद्दारी छीनी वरना
पाँव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़

मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने सहरा एक तरफ़ रक्खा और दरिया एक तरफ़
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Barso purana dost Mila jaise gair ho..

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो
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us ke nazdik gham-e-tark-e-wafa kuch bhi nahin..

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं
मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं

अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं

चार दिन रह गए मेले में मगर अब के भी
उस ने आने के लिए ख़त में लिखा कुछ भी नहीं

कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाँध
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं

मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बने
तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं

ऐ 'शुमार' आँखें इसी तरह बिछाए रखना
जाने किस वक़्त वो आ जाए पता कुछ भी नहीं

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us ke nazdik gham-e-tark-e-vafa kuchh bhi nahin
mutma.in aisa hai vo jaise hua kuchh bhi nahin

ab to hathon se lakiren bhi miTi jaati hain
us ko kho kar to mire paas raha kuchh bhi nahin

chaar din rah ga.e mele men magar ab ke bhi
us ne aane ke liye ḳhat men likha kuchh bhi nahin

kal bichhaḌna hai to phir ahd-e-vafa soch ke bandh
abhi aghaz-e-mohabbat hai gaya kuchh bhi nahin

main to is vaste chup huun ki tamasha na bane
tu samajhta hai mujhe tujh se gila kuchh bhi nahin

ai ‘shumar’ ankhen isi tarah bichha.e rakhna
jaane kis vaqt vo aa jaa.e pata kuchh bhi nahin
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tum apna ranj-o-ghum apni pareshaani mujhe de do..

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो

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tum apanaa ra.nj-o-Gam, apani pareshaan mujhe de do 
tumhe.n gham kii qasam, is dil kI virAni mujhe de do

ye maanaa mai.n kisii qaabil nahii.n huu.N in nigaaho.n me.n
buraa kyaa hai agar, ye dukh ye hairaani mujhe de do

mai.n dekhuu.n to sahii, duniyaa tumhe.n kaise sataati hai 
koi din ke liye, apni nigahabaani mujhe de do

vo dil jo maine maa.ngaa thaa magar gairo.n ne paayaa
ba.Dk shai hai agar, usaki pashemaani mujhe de do
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phone to dur waha khat bhi nahi pahuchenge..

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे

ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर
आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे

मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा
और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे

हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे

तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने
ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे

सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा
हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे
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jab raat ki tanhaai dil ban ke dhadkati hai..

jab raat ki tanhaai dil ban ke dhadkati hai
yaadon ke dareechon mein chilman si sarkati hai

loban mein chingaari jaise koi rakh jaaye
yun yaad tiri shab bhar seene mein sulagti hai

yun pyaar nahin chhupta palkon ke jhukaane se
aankhon ke lifaafon mein tahreer chamakti hai

khush-rang parindon ke laut aane ke din aaye
bichhde hue milte hain jab barf pighalti hai

shohrat ki bulandi bhi pal bhar ka tamasha hai
jis daal pe baithe ho vo toot bhi sakti hai 
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जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है
यादों के दरीचों में चिलमन सी सरकती है

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है

यूँ प्यार नहीं छुपता पलकों के झुकाने से
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है

ख़ुश-रंग परिंदों के लौट आने के दिन आए
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
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khushboo ki tarah aaya vo tez hawaon mein..

khushboo ki tarah aaya vo tez hawaon mein
maanga tha jise ham ne din raat duaon mein

tum chat pe nahin aaye main ghar se nahin nikla
ye chaand bahut bhatka saawan ki ghataon mein

is shehar mein ik ladki bilkul hai ghazal jaisi
bijli si ghataon mein khushboo si adaaon mein

mausam ka ishaara hai khush rahne do bacchon ko
maasoom mohabbat hai phoolon ki khataaon mein

ham chaand sitaaron ki raahon ke musaafir hain
ham raat chamakte hain tareek khalaon mein

bhagwaan hi bhejenge chaawal se bhari thaali
mazloom parindon ki maasoom sabhaaon mein

daada bade bhole the sab se yahi kahte the
kuchh zahar bhi hota hai angrezee davaaon mein 
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ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में

तुम छत पे नहीं आए मैं घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में

इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
बिजली सी घटाओं में ख़ुशबू सी अदाओं में

मौसम का इशारा है ख़ुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों की ख़ताओं में

हम चाँद सितारों की राहों के मुसाफ़िर हैं
हम रात चमकते हैं तारीक ख़लाओं में

भगवान ही भेजेंगे चावल से भरी थाली
मज़लूम परिंदों की मासूम सभाओं में

दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में
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khuda ham ko aisi khudaai na de..

khuda ham ko aisi khudaai na de
ki apne siva kuchh dikhaai na de

khata-waar samjhegi duniya tujhe
ab itni ziyaada safaai na de

haso aaj itna ki is shor mein
sada siskiyon kii sunaai na de

ghulaami ko barkat samajhne lagen
asiroon ko aisi rihaai na de

khuda aise ehsaas ka naam hai
rahe saamne aur dikhaai na de 
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ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़ता-वार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
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she'r mere kahaan the kisi ke liye..

she'r mere kahaan the kisi ke liye
maine sab kuchh likha hai tumhaare liye

apne dukh sukh bahut khoobsurat rahe
ham jiye bhi to ik doosre ke liye

hum-safar ne mera saath chhodaa nahin
apne aansu diye raaste ke liye

is haveli mein ab koii rehta nahin
chaand nikla kise dekhne ke liye

zindagi aur main do alag to nahin
main ne sab phool kaate isi se liye

shehar mein ab mera koii dushman nahin
sab ko apna liya maine tere liye

zehan mein titliyan ud rahi hain bahut
koii dhaaga nahin baandhne ke liye

ek tasveer ghazalon mein aisi bani
agle pichhle zamaanon ke chehre liye 
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शे'र मेरे कहाँ थे किसी के लिए
मैंने सब कुछ लिखा है तुम्हारे लिए

अपने दुख सुख बहुत ख़ूबसूरत रहे
हम जिए भी तो इक दूसरे के लिए

हम-सफ़र ने मिरा साथ छोड़ा नहीं
अपने आँसू दिए रास्ते के लिए

इस हवेली में अब कोई रहता नहीं
चाँद निकला किसे देखने के लिए

ज़िंदगी और मैं दो अलग तो नहीं
मैं ने सब फूल काटे इसी से लिए

शहर में अब मिरा कोई दुश्मन नहीं
सब को अपना लिया मैंने तेरे लिए

ज़ेहन में तितलियाँ उड़ रही हैं बहुत
कोई धागा नहीं बाँधने के लिए

एक तस्वीर ग़ज़लों में ऐसी बनी
अगले पिछले ज़मानों के चेहरे लिए
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parakhnaa mat parkhne mein koi apna nahin rehta..

parakhnaa mat parkhne mein koi apna nahin rehta
kisi bhi aaine mein der tak chehra nahin rehta

bade logon se milne mein hamesha fasla rakhna
jahaan dariya samundar se mila dariya nahin rehta

hazaaron sher mere so gaye kaaghaz ki qabron mein
ajab maa hoon koi baccha mera zinda nahin rehta

mohabbat ek khushboo hai hamesha saath chalti hai
koi insaan tanhaai mein bhi tanhaa nahin rehta 
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परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता

हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता

मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है
कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
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dhundh raha hai farang aish-e-jahaan ka davaam..

dhundh raha hai farang aish-e-jahaan ka davaam
waa-e-tamannaa-e-khaam waa-e-tamannaa-e-khaam

peer-e-haram ne kaha sun ke meri rooyedaad
pukhta hai teri fugaan ab na ise dil mein thaam

tha areni go kaleem main areni go nahin
us ko taqaza rawa mujh pe taqaza haraam

garche hai ifshaa-e-raaz ahl-e-nazar ki fugaan
ho nahin saka kabhi sheva-e-rindaana aam

halkaa-e-suufi mein zikr be-nam o be-soz-o-saaz
main bhi raha tishna-kaam tu bhi raha tishna-kaam

ishq tiri intiha ishq meri intiha
tu bhi abhi na-tamaam main bhi abhi na-tamaam

aah ki khoya gaya tujh se faqiri ka raaz
warna hai maal-e-faqeer saltanat-e-room-o-shaam 
--------------------------------------------------
ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम
वा-ए-तमन्ना-ए-ख़ाम वा-ए-तमन्ना-ए-ख़ाम

पीर-ए-हरम ने कहा सुन के मेरी रूएदाद
पुख़्ता है तेरी फ़ुग़ाँ अब न इसे दिल में थाम

था अरेनी गो कलीम मैं अरेनी गो नहीं
उस को तक़ाज़ा रवा मुझ पे तक़ाज़ा हराम

गरचे है इफ़शा-ए-राज़ अहल-ए-नज़र की फ़ुग़ाँ
हो नहीं सकता कभी शेवा-ए-रिंदाना आम

हल्क़ा-ए-सूफ़ी में ज़िक्र बे-नम ओ बे-सोज़-ओ-साज़
मैं भी रहा तिश्ना-काम तू भी रहा तिश्ना-काम

इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम

आह कि खोया गया तुझ से फ़क़ीरी का राज़
वर्ना है माल-ए-फ़क़ीर सल्तनत-ए-रूम-ओ-शाम
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ejaz hai kisi ka ya gardish-e-zamaana..

ejaz hai kisi ka ya gardish-e-zamaana
toota hai asia mein sehr-e-firangiyaana

taameer-e-aashiyaa se main ne ye raaz paaya
ahl-e-nava ke haq mein bijli hai aashiyana

ye bandagi khudaai vo bandagi gadaai
ya banda-e-khuda ban ya banda-e-zamaana

ghaafil na ho khudi se kar apni paasbaani
shaayad kisi haram ka tu bhi hai aastaana

ai la ilaah ke waaris baaki nahin hai tujh mein
guftaar-e-dilbaraana kirdaar-e-qaahiraana

teri nigaah se dil seenon mein kaanpate the
khoya gaya hai tera jazb-e-qalandaaraana

raaz-e-haram se shaayad iqbaal ba-khabar hai
hain is ki guftugoo ke andaaz mehraamaana 
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एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना
टूटा है एशिया में सेहर-ए-फ़िरंगियाना

तामीर-ए-आशियाँ से मैं ने ये राज़ पाया
अह्ल-ए-नवा के हक़ में बिजली है आशियाना

ये बंदगी ख़ुदाई वो बंदगी गदाई
या बंदा-ए-ख़ुदा बन या बंदा-ए-ज़माना

ग़ाफ़िल न हो ख़ुदी से कर अपनी पासबानी
शायद किसी हरम का तू भी है आस्ताना

ऐ ला इलाह के वारिस बाक़ी नहीं है तुझ में
गुफ़्तार-ए-दिलबराना किरदार-ए-क़ाहिराना

तेरी निगाह से दिल सीनों में काँपते थे
खोया गया है तेरा जज़्ब-ए-क़लंदराना

राज़-ए-हरम से शायद 'इक़बाल' बा-ख़बर है
हैं इस की गुफ़्तुगू के अंदाज़ महरमाना
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na takht-o-taaj mein ne lashkar-o-sipaah mein hai..

na takht-o-taaj mein ne lashkar-o-sipaah mein hai
jo baat mard-e-qalander ki baargaah mein hai

sanam-kada hai jahaan aur mard-e-haq hai khaleel
ye nukta vo hai ki poshida laa-ilah mein hai

wahi jahaan hai tira jis ko tu kare paida
ye sang-o-khisht nahin jo tiri nigaah mein hai

mah o sitaara se aage maqaam hai jis ka
vo musht-e-khaak abhi aawaargaan-e-raah mein hai

khabar mili hai khudaayan-e-bahr-o-bar se mujhe
farang rahguzar-e-sail-e-be-panaah mein hai

talash us ki fazaaon mein kar naseeb apna
jahaan-e-tazaa meri aah-e-subh-gaah mein hai

mere kadu ko ghaneemat samajh ki baada-e-naab
na madarse mein hai baaki na khaanqaah mein hai 
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न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है
जो बात मर्द-ए-क़लंदर की बारगाह में है

सनम-कदा है जहाँ और मर्द-ए-हक़ है ख़लील
ये नुक्ता वो है कि पोशीदा ला-इलाह में है

वही जहाँ है तिरा जिस को तू करे पैदा
ये संग-ओ-ख़िश्त नहीं जो तिरी निगाह में है

मह ओ सितारा से आगे मक़ाम है जिस का
वो मुश्त-ए-ख़ाक अभी आवारगान-ए-राह में है

ख़बर मिली है ख़ुदायान-ए-बहर-ओ-बर से मुझे
फ़रंग रहगुज़र-ए-सैल-ए-बे-पनाह में है

तलाश उस की फ़ज़ाओं में कर नसीब अपना
जहान-ए-ताज़ा मिरी आह-ए-सुब्ह-गाह में है

मिरे कदू को ग़नीमत समझ कि बादा-ए-नाब
न मदरसे में है बाक़ी न ख़ानक़ाह में है
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ki haq se farishton ne iqbaal ki gammaazi..

ki haq se farishton ne iqbaal ki gammaazi
gustaakh hai karta hai fitrat ki hina-bandi

khaaki hai magar is ke andaaz hain aflaaki
roomi hai na shaami hai kaashi na samarqandi

sikhlaai farishton ko aadam ki tadap us ne
aadam ko sikhaata hai aadaab-e-khudaavandi 
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की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
गुस्ताख़ है करता है फ़ितरत की हिना-बंदी

ख़ाकी है मगर इस के अंदाज़ हैं अफ़्लाकी
रूमी है न शामी है काशी न समरक़ंदी

सिखलाई फ़रिश्तों को आदम की तड़प उस ने
आदम को सिखाता है आदाब-ए-ख़ुदावंदी
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apni jaulaan-gaah zer-e-aasmaan samjha tha main..

apni jaulaan-gaah zer-e-aasmaan samjha tha main
aab o gil ke khel ko apna jahaan samjha tha main

be-hijaabi se tiri toota nigaahon ka tilism
ik rida-e-neel-goon ko aasmaan samjha tha main

kaarwaan thak kar fazaa ke pech-o-kham mein rah gaya
mehr o maah o mushtari ko hum-inaan samjha tha main

ishq ki ik jast ne tay kar diya qissa tamaam
is zameen o aasmaan ko be-karaan samjha tha main

kah gaeein raaz-e-mohabbat parda-daari-ha-e-shauq
thi fugaan vo bhi jise zabt-e-fughaan samjha tha main

thi kisi darmaanda rah-rau ki sada-e-dardnaak
jis ko aawaaz-e-raheel-e-kaarvaan samjha tha main 
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अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
आब ओ गिल के खेल को अपना जहाँ समझा था मैं

बे-हिजाबी से तिरी टूटा निगाहों का तिलिस्म
इक रिदा-ए-नील-गूँ को आसमाँ समझा था मैं

कारवाँ थक कर फ़ज़ा के पेच-ओ-ख़म में रह गया
मेहर ओ माह ओ मुश्तरी को हम-इनाँ समझा था मैं

इश्क़ की इक जस्त ने तय कर दिया क़िस्सा तमाम
इस ज़मीन ओ आसमाँ को बे-कराँ समझा था मैं

कह गईं राज़-ए-मोहब्बत पर्दा-दारी-हा-ए-शौक़
थी फ़ुग़ाँ वो भी जिसे ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ समझा था मैं

थी किसी दरमाँदा रह-रौ की सदा-ए-दर्दनाक
जिस को आवाज़-ए-रहील-ए-कारवाँ समझा था मैं
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kushaada dast-e-karam jab vo be-niyaaz kare..

kushaada dast-e-karam jab vo be-niyaaz kare
niyaaz-mand na kyun aajizi pe naaz kare

bitha ke arsh pe rakha hai tu ne ai wa'iz
khuda vo kya hai jo bandon se ehtiraaz kare

meri nigaah mein vo rind hi nahin saaqi
jo hoshiyaari o masti mein imtiyaaz kare

mudaam gosh-b-dil rah ye saaz hai aisa
jo ho shikasta to paida nawa-e-raaz kare

koi ye pooche ki wa'iz ka kya bigadta hai
jo be-amal pe bhi rahmat vo be-niyaaz kare

sukhun mein soz ilaahi kahaan se aata hai
ye cheez vo hai ki patthar ko bhi gudaaz kare

tameez-e-laala-o-gul se hai naala-e-bulbul
jahaan mein vaa na koi chashm-e-imtiyaaz kare

ghuroor-e-zohad ne sikhla diya hai wa'iz ko
ki bandagaan-e-khuda par zabaan daraaz kare

hawa ho aisi ki hindostaan se ai iqbaal
uda ke mujh ko ghubaar-e-rah-e-hijaaz kare 
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कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे

बिठा के अर्श पे रक्खा है तू ने ऐ वाइ'ज़
ख़ुदा वो क्या है जो बंदों से एहतिराज़ करे

मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी
जो होशियारी ओ मस्ती में इम्तियाज़ करे

मुदाम गोश-ब-दिल रह ये साज़ है ऐसा
जो हो शिकस्ता तो पैदा नवा-ए-राज़ करे

कोई ये पूछे कि वाइ'ज़ का क्या बिगड़ता है
जो बे-अमल पे भी रहमत वो बे-नियाज़ करे

सुख़न में सोज़ इलाही कहाँ से आता है
ये चीज़ वो है कि पत्थर को भी गुदाज़ करे

तमीज़-ए-लाला-ओ-गुल से है नाला-ए-बुलबुल
जहाँ में वा न कोई चश्म-ए-इम्तियाज़ करे

ग़ुरूर-ए-ज़ोहद ने सिखला दिया है वाइ'ज़ को
कि बंदगान-ए-ख़ुदा पर ज़बाँ दराज़ करे

हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'
उड़ा के मुझ को ग़ुबार-ए-रह-ए-हिजाज़ करे
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mata-e-be-baha hai dard-o-soz-e-aarzoomandi..

mata-e-be-baha hai dard-o-soz-e-aarzoomandi
maqaam-e-bandagi de kar na luun shaan-e-khudaavandi

tire azaad bandon ki na ye duniya na vo duniya
yahan marne ki paabandi wahan jeene ki paabandi

hijaab ikseer hai aawaara-e-koo-e-mohabbat ko
meri aatish ko bhadrkaati hai teri der-paivandi

guzar-auqaat kar leta hai ye koh o biyaabaan mein
ki shaheen ke liye zillat hai kaar-e-aashiyaan-bandi

ye faizaan-e-nazar tha ya ki khushhaali ki karaamat thi
sikhaaye kis ne ismaail ko aadaab-e-farzandi

ziyaarat-gaah-e-ahl-e-azm-o-himmat hai lahd meri
ki khaak-e-raah ko main ne bataaya raaz-e-alvandi

meri mashshaatgi ki kya zaroorat husn-e-ma'ni ko
ki fitrat khud-b-khud karti hai laale ki hina-bandi 
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मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मक़ाम-ए-बंदगी दे कर न लूँ शान-ए-ख़ुदावंदी

तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी

हिजाब इक्सीर है आवारा-ए-कू-ए-मोहब्बत को
मिरी आतिश को भड़काती है तेरी देर-पैवंदी

गुज़र-औक़ात कर लेता है ये कोह ओ बयाबाँ में
कि शाहीं के लिए ज़िल्लत है कार-ए-आशियाँ-बंदी

ये फ़ैज़ान-ए-नज़र था या कि मकतब की करामत थी
सिखाए किस ने इस्माईल को आदाब-ए-फ़रज़ंदी

ज़ियारत-गाह-ए-अहल-ए-अज़्म-ओ-हिम्मत है लहद मेरी
कि ख़ाक-ए-राह को मैं ने बताया राज़-ए-अलवंदी

मिरी मश्शातगी की क्या ज़रूरत हुस्न-ए-मअ'नी को
कि फ़ितरत ख़ुद-ब-ख़ुद करती है लाले की हिना-बंदी
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ya rab ye jahaan-e-guzraan khoob hai lekin..

ya rab ye jahaan-e-guzraan khoob hai lekin
kyun khwaar hain mardaan-e-safa-kesh o hunar-mand

go is ki khudaai mein mahaajan ka bhi hai haath
duniya to samjhti hai farangi ko khuda-wand

tu barg-e-gaya hai na wahi ahl-e-khirad raa
o kisht-e-gul-o-laala b-bakhshad b-khare chand

haazir hain kaleesa mein kebab o may-e-gulgoo'n
masjid mein dhara kya hai b-juz mau'izaa o pand

ahkaam tire haq hain magar apne mufassir
taawil se quraan ko bana sakte hain paazand

firdaus jo tera hai kisi ne nahin dekha
afrang ka har qaryaa hai firdaus ki maanind

muddat se hai aawaara-e-aflaak mera fikr
kar de ise ab chaand ke ghaaron mein nazar-band

fitrat ne mujhe bakshe hain jauhar malaakooti
khaaki hoon magar khaak se rakhta nahin paivand

darvesh-e-khuda-mast na sharqi hai na garbi
ghar mera na dilli na safaahaan na samarkand

kehta hoon wahi baat samajhta hoon jise haq
ne aabla-e-masjid hoon na tahzeeb ka farzand

apne bhi khafa mujh se hain begaane bhi na-khush
main zahar-e-halaahal ko kabhi kah na saka qand

mushkil hai ik banda-e-haq-been-o-haq-andesh
khaashaak ke tode ko kahe koh-e-damaavand

hoon aatish-e-namrood ke sholoon mein bhi khaamosh
main banda-e-momin hoon nahin daana-e-aspand

pur-soz nazar-baaz o niko-been o kam aarzoo
azaad o girftaar o tahee keesa o khursand

har haal mein mera dil-e-be-qaid hai khurram
kya chheenega gunche se koi zauq-e-shakar-khand

chup rah na saka hazrat-e-yazdaan mein bhi iqbaal
karta koi is banda-e-gustaakh ka munh band 
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या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद

गो इस की ख़ुदाई में महाजन का भी है हाथ
दुनिया तो समझती है फ़रंगी को ख़ुदावंद

तू बर्ग-ए-गया है न वही अहल-ए-ख़िरद रा
ओ किश्त-ए-गुल-ओ-लाला ब-बख़शद ब-ख़रे चंद

हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद

अहकाम तिरे हक़ हैं मगर अपने मुफ़स्सिर
तावील से क़ुरआँ को बना सकते हैं पाज़ंद

फ़िरदौस जो तेरा है किसी ने नहीं देखा
अफ़रंग का हर क़र्या है फ़िरदौस की मानिंद

मुद्दत से है आवारा-ए-अफ़्लाक मिरा फ़िक्र
कर दे इसे अब चाँद के ग़ारों में नज़र-बंद

फ़ितरत ने मुझे बख़्शे हैं जौहर मलाकूती
ख़ाकी हूँ मगर ख़ाक से रखता नहीं पैवंद

दरवेश-ए-ख़ुदा-मस्त न शर्क़ी है न ग़र्बी
घर मेरा न दिल्ली न सफ़ाहाँ न समरक़ंद

कहता हूँ वही बात समझता हूँ जिसे हक़
ने आबला-ए-मस्जिद हूँ न तहज़ीब का फ़रज़ंद

अपने भी ख़फ़ा मुझ से हैं बेगाने भी ना-ख़ुश
मैं ज़हर-ए-हलाहल को कभी कह न सका क़ंद

मुश्किल है इक बंदा-ए-हक़-बीन-ओ-हक़-अंदेश
ख़ाशाक के तोदे को कहे कोह-ए-दमावंद

हूँ आतिश-ए-नमरूद के शो'लों में भी ख़ामोश
मैं बंदा-ए-मोमिन हूँ नहीं दाना-ए-असपंद

पुर-सोज़ नज़र-बाज़ ओ निको-बीन ओ कम आरज़ू
आज़ाद ओ गिरफ़्तार ओ तही कीसा ओ ख़ुरसंद

हर हाल में मेरा दिल-ए-बे-क़ैद है ख़ुर्रम
क्या छीनेगा ग़ुंचे से कोई ज़ौक़-ए-शकर-ख़ंद

चुप रह न सका हज़रत-ए-यज़्दाँ में भी 'इक़बाल'
करता कोई इस बंदा-ए-गुस्ताख़ का मुँह बंद
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ye payaam de gai hai mujhe baad-e-subh-gaahi..

ye payaam de gai hai mujhe baad-e-subh-gaahi
ki khudi ke aarifon ka hai maqaam paadshaahi

tiri zindagi isee se tiri aabroo isee se
jo rahi khudi to shaahi na rahi to roo-siyaahi

na diya nishaan-e-manzil mujhe ai hakeem tu ne
mujhe kya gila ho tujh se tu na rah-nasheen na raahi

mere halka-e-sukhan mein abhi zer-e-tarbiyat hain
vo gada ki jaante hain rah-o-rasm-e-kaj-kulaahi

ye muaamle hain naazuk jo tiri raza ho tu kar
ki mujhe to khush na aaya ye tariq-e-khaanqaahi

tu huma ka hai shikaari abhi ibtida hai teri
nahin maslahat se khaali ye jahaan-e-murg-o-maahi

tu arab ho ya ajam ho tira la ilaah illa
lughat-e-ghareeb jab tak tira dil na de gawaahi
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ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही
कि ख़ुदी के आरिफ़ों का है मक़ाम पादशाही

तिरी ज़िंदगी इसी से तिरी आबरू इसी से
जो रही ख़ुदी तो शाही न रही तो रू-सियाही

न दिया निशान-ए-मंज़िल मुझे ऐ हकीम तू ने
मुझे क्या गिला हो तुझ से तू न रह-नशीं न राही

मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में अभी ज़ेर-ए-तर्बियत हैं
वो गदा कि जानते हैं रह-ओ-रस्म-ए-कज-कुलाही

ये मुआमले हैं नाज़ुक जो तिरी रज़ा हो तू कर
कि मुझे तो ख़ुश न आया ये तरिक़-ए-ख़ानक़ाही

तू हुमा का है शिकारी अभी इब्तिदा है तेरी
नहीं मस्लहत से ख़ाली ये जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही

तू अरब हो या अजम हो तिरा ला इलाह इल्ला
लुग़त-ए-ग़रीब जब तक तिरा दिल न दे गवाही
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ik danish-e-nooraani ik danish-e-burhaani..

ik danish-e-nooraani ik danish-e-burhaani
hai danish-e-burhaani hairat ki faraavani

is paikar-e-khaaki mein ik shay hai so vo teri
mere liye mushkil hai is shay ki nigahbaani

ab kya jo fugaan meri pahunchee hai sitaaron tak
tu ne hi sikhaai thi mujh ko ye ghazal-khwaani

ho naqsh agar baatil takraar se kya haasil
kya tujh ko khush aati hai aadam ki ye arzaani

mujh ko to sikha di hai afrang ne zindeeqi
is daur ke mulla hain kyun nang-e-muslmaani

taqdeer shikan quwwat baaki hai abhi is mein
naadaan jise kahte hain taqdeer ka zindaani

tere bhi sanam-khaane mere bhi sanam-khaane
dono ke sanam khaaki dono ke sanam faani 
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इक दानिश-ए-नूरानी इक दानिश-ए-बुरहानी
है दानिश-ए-बुरहानी हैरत की फ़रावानी

इस पैकर-ए-ख़ाकी में इक शय है सो वो तेरी
मेरे लिए मुश्किल है इस शय की निगहबानी

अब क्या जो फ़ुग़ाँ मेरी पहुँची है सितारों तक
तू ने ही सिखाई थी मुझ को ये ग़ज़ल-ख़्वानी

हो नक़्श अगर बातिल तकरार से क्या हासिल
क्या तुझ को ख़ुश आती है आदम की ये अर्ज़ानी

मुझ को तो सिखा दी है अफ़रंग ने ज़िंदीक़ी
इस दौर के मुल्ला हैं क्यूँ नंग-ए-मुसलमानी

तक़दीर शिकन क़ुव्वत बाक़ी है अभी इस में
नादाँ जिसे कहते हैं तक़दीर का ज़िंदानी

तेरे भी सनम-ख़ाने मेरे भी सनम-ख़ाने
दोनों के सनम ख़ाकी दोनों के सनम फ़ानी
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tujhe yaad kya nahin hai mere dil ka vo zamaana..

tujhe yaad kya nahin hai mere dil ka vo zamaana
vo adab-gah-e-mohabbat vo nigaah ka taaziyaana

ye butaan-e-asr-e-haazir ki bane hain madarse mein
na ada-e-kaafiraana na taraash-e-aazraana

nahin is khuli fazaa mein koi gosha-e-faraaghat
ye jahaan ajab jahaan hai na qafas na aashiyana

rag-e-taak muntazir hai tiri baarish-e-karam ki
ki ajam ke may-kadon mein na rahi may-e-mugaana

mere ham-safeer ise bhi asar-e-bahaar samjhe
unhen kya khabar ki kya hai ye nawa-e-aashiqana

mere khaak o khun se tu ne ye jahaan kiya hai paida
sila-e-shaahid kya hai tab-o-taab-e-jaavedaana

tiri banda-parvari se mere din guzar rahe hain
na gila hai doston ka na shikaayat-e-zamaana
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तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
वो अदब-गह-ए-मोहब्बत वो निगह का ताज़ियाना

ये बुतान-ए-अस्र-ए-हाज़िर कि बने हैं मदरसे में
न अदा-ए-काफ़िराना न तराश-ए-आज़राना

नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त
ये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स न आशियाना

रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की
कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना

मिरे हम-सफ़ीर इसे भी असर-ए-बहार समझे
उन्हें क्या ख़बर कि क्या है ये नवा-ए-आशिक़ाना

मिरे ख़ाक ओ ख़ूँ से तू ने ये जहाँ किया है पैदा
सिला-ए-शाहिद क्या है तब-ओ-ताब-ए-जावेदाना

तिरी बंदा-परवरी से मिरे दिन गुज़र रहे हैं
न गिला है दोस्तों का न शिकायत-ए-ज़माना
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khudi ho ilm se mohkam to ghairat-e-jibreel..

khudi ho ilm se mohkam to ghairat-e-jibreel
agar ho ishq se mohkam to soor-e-israfeel

azaab-e-danish-e-haazir se ba-khabar hoon main
ki main is aag mein daala gaya hoon misl-e-khaleel

fareb-khurda-e-manzil hai kaarwaan warna
ziyaada rahat-e-manzil se hai nashaat-e-raheel

nazar nahin to mere halka-e-sukhan mein na baith
ki nukta-ha-e-khudi hain misaal-e-tegh-e-aseel

mujhe vo dars-e-farang aaj yaad aate hain
kahaan huzoor ki lazzat kahaan hijaab-e-daleel

andheri shab hai juda apne qafile se hai tu
tire liye hai mera shola-e-nava qindeel

gareeb o saada o rangeen hai dastaan-e-haram
nihaayat is ki husain ibtida hai ismaail 
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ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील

अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील

फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-मंज़िल है कारवाँ वर्ना
ज़ियादा राहत-ए-मंज़िल से है नशात-ए-रहील

नज़र नहीं तो मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में न बैठ
कि नुक्ता-हा-ए-ख़ुदी हैं मिसाल-ए-तेग़-ए-असील

मुझे वो दर्स-ए-फ़रंग आज याद आते हैं
कहाँ हुज़ूर की लज़्ज़त कहाँ हिजाब-ए-दलील

अँधेरी शब है जुदा अपने क़ाफ़िले से है तू
तिरे लिए है मिरा शोला-ए-नवा क़िंदील

ग़रीब ओ सादा ओ रंगीं है दस्तान-ए-हरम
निहायत इस की हुसैन इब्तिदा है इस्माईल
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na aate hamein is mein takraar kya thi..

na aate hamein is mein takraar kya thi
magar wa'da karte hue aar kya thi

tumhaare payaami ne sab raaz khola
khata is mein bande ki sarkaar kya thi

bhari bazm mein apne aashiq ko taada
tiri aankh masti mein hushyaar kya thi

taammul to tha un ko aane mein qaasid
magar ye bata tarz-e-inkaar kya thi

khinche khud-bakhud jaanib-e-toor moosa
kashish teri ai shauq-e-deedaar. kya thi

kahi zikr rehta hai iqbaal tera
fusoon tha koi teri guftaar kya thi 
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न आते हमें इस में तकरार क्या थी
मगर वा'दा करते हुए आर क्या थी

तुम्हारे पयामी ने सब राज़ खोला
ख़ता इस में बंदे की सरकार क्या थी

भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा
तिरी आँख मस्ती में हुश्यार क्या थी

तअम्मुल तो था उन को आने में क़ासिद
मगर ये बता तर्ज़-ए-इंकार क्या थी

खिंचे ख़ुद-बख़ुद जानिब-ए-तूर मूसा
कशिश तेरी ऐ शौक़-ए-दीदार क्या थी

कहीं ज़िक्र रहता है 'इक़बाल' तेरा
फ़ुसूँ था कोई तेरी गुफ़्तार क्या थी
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digar-goon hai jahaan taaron ki gardish tez hai saaqi..

digar-goon hai jahaan taaron ki gardish tez hai saaqi
dil-e-har-zarra mein ghaaga-e-rusta-khez hai saaqi

mata-e-deen-o-daanish loot gai allah-waalon ki
ye kis kaafir-ada ka ghaza-e-khoon-rez hai saaqi

wahi deerina beemaari wahi na-mohkami dil ki
ilaaj is ka wahi aab-e-nashaat-angez hai saaqi

haram ke dil mein soz-e-aarzoo paida nahin hota
ki paidaai tiri ab tak hijaab-aamez hai saaqi

na utha phir koi roomi ajam ke laala-zaaro se
wahi aab-o-gil-e-eran wahi tabrez hai saaqi

nahin hai na-umeed iqbaal apni kisht-e-veeraan se
zara nam ho to ye mitti bahut zarkhez hai saaqi

faqeer-e-raah ko bakshe gaye asraar-e-sultaani
baha meri nava ki daulat-e-parvez hai saaqi
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दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी

मता-ए-दीन-ओ-दानिश लुट गई अल्लाह-वालों की
ये किस काफ़िर-अदा का ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ है साक़ी

वही देरीना बीमारी वही ना-मोहकमी दिल की
इलाज इस का वही आब-ए-नशात-अंगेज़ है साक़ी

हरम के दिल में सोज़-ए-आरज़ू पैदा नहीं होता
कि पैदाई तिरी अब तक हिजाब-आमेज़ है साक़ी

न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से
वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी

नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी

फ़क़ीर-ए-राह को बख़्शे गए असरार-ए-सुल्तानी
बहा मेरी नवा की दौलत-ए-परवेज़ है साक़ी
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asar kare na kare sun to le meri fariyaad..

asar kare na kare sun to le meri fariyaad
nahin hai daad ka taalib ye banda-e-aazaad

ye musht-e-khaak ye sarsar ye wusa'at-e-aflaak
karam hai ya ki sitam teri lazzat-e-eijaad

thehar saka na hawa-e-chaman mein khema-e-gul
yahi hai fasl-e-bahaari yahi hai baad-e-muraad

qusoor-waar ghareeb-ud-dayaar hoon lekin
tira kharaabaa farishte na kar sake aabaad

meri jafa-talbi ko duaaein deta hai
vo dasht-e-saada vo tera jahaan-e-be-buniyaad

khatr-pasand tabeeyat ko saazgaar nahin
vo gulsitaan ki jahaan ghaat mein na ho sayyaad

maqaam-e-shauq tire qudsiyon ke bas ka nahin
unhin ka kaam hai ye jin ke hausale hain ziyaad 
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असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद
नहीं है दाद का तालिब ये बंदा-ए-आज़ाद

ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअ'त-ए-अफ़्लाक
करम है या कि सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद

ठहर सका न हवा-ए-चमन में ख़ेमा-ए-गुल
यही है फ़स्ल-ए-बहारी यही है बाद-ए-मुराद

क़ुसूर-वार ग़रीब-उद-दयार हूँ लेकिन
तिरा ख़राबा फ़रिश्ते न कर सके आबाद

मिरी जफ़ा-तलबी को दुआएँ देता है
वो दश्त-ए-सादा वो तेरा जहान-ए-बे-बुनियाद

ख़तर-पसंद तबीअत को साज़गार नहीं
वो गुल्सिताँ कि जहाँ घात में न हो सय्याद

मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं
उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद
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aahan mein dhalti jaayegi ikkeesveen sadi..

aahan mein dhalti jaayegi ikkeesveen sadi
phir bhi ghazal sunaayegi ikkeesveen sadi

baghdaad dilli maasko london ke darmiyaan
baarood bhi bichaayegi ikkeesveen sadi

jal kar jo raakh ho gaeein dangoon mein is baras
un jhuggiyoon mein aayegi ikkeesveen sadi

tahzeeb ke libaas utar jaayenge janab
dollar mein yun nachaayegi ikkeesveen sadi

le ja ke aasmaan pe taaron ke aas-paas
america ko giraayegi ikkeesveen sadi

ik yaatra zaroor ho ninnayaanve ke paas
rath par sawaar aayegi ikkeesveen sadi

phir se khuda banaayega koi naya jahaan
duniya ko yun mitaayegi ikkeesveen sadi

computers se ghazlein likhenge basheer-badr
ghalib ko bhool jaayegi ikkeesveen sadi 
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आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी
फिर भी ग़ज़ल सुनाएगी इक्कीसवीं सदी

बग़दाद दिल्ली मास्को लंदन के दरमियाँ
बारूद भी बिछाएगी इक्कीसवीं सदी

जल कर जो राख हो गईं दंगों में इस बरस
उन झुग्गियों में आएगी इक्कीसवीं सदी

तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
डॉलर में यूँ नचाएगी इक्कीसवीं सदी

ले जा के आसमान पे तारों के आस-पास
अमरीका को गिराएगी इक्कीसवीं सदी

इक यात्रा ज़रूर हो निन्नयानवे के पास
रथ पर सवार आएगी इक्कीसवीं सदी

फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ
दुनिया को यूँ मिटाएगी इक्कीसवीं सदी

कम्पयूटरों से ग़ज़लें लिखेंगे 'बशीर-बद्र'
'ग़ालिब' को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी
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Us dar ka darbaan bana de ya Allah..

Us dar ka darbaan bana de ya Allah
Mujhko bhi sultan bana de ya Allah

In aankhon se tere naam ki baarish ho
Patthar hoon, insaan bana de ya Allah

Sehma dil, tooti kashti, chadhta darya
Har mushkil aasaan bana de ya Allah

Main jab chaahun, jhaank ke tujhko dekh sakoon
Dil ko roshandaan bana de ya Allah

Mera bachcha saada kaaghaz jaisa hai
Ek harf-e-imaan bana de ya Allah

Chaand-sitare jhuk kar kadmon ko choomen
Aisa Hindostan bana de ya Allah
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उस दर का दरबान बना दे या अल्लाह
मुझको भी सुल्तान बना दे या अल्लाह

इन आँखों से तेरे नाम की बारिश हो
पत्थर हूँ, इन्सान बना दे या अल्लाह

सहमा दिल, टूटी कश्ती, चढ़ता दरया
हर मुश्किल आसान बना दे या अल्लाह

मैं जब चाहूँ झाँक के तुझको देख सकूँ
दिल को रोशनदान बना दे या अल्लाह

मेरा बच्चा सादा काग़ज़ जैसा है
इक हर्फ़े ईमान बना दे या अल्लाह

चाँद-सितारे झुक कर क़दमों को चूमें
ऐसा हिन्दोस्तान बना दे या अल्लाह
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Meri aankhon mein tere pyaar ka aansoo aaye..

Meri aankhon mein tere pyaar ka aansoo aaye
Koi khushboo main lagaoon, teri khushboo aaye

Waqt-e-rukhsat kahin taare, kahin jugnu aaye
Haar pehnane mujhe phool se baazu aaye

Maine din-raat Khuda se yeh dua maangi thi
Koi aahat na ho dar par mere jab tu aaye

In dino aap ka aalam bhi ajab aalam hai
Teer khaya hua jaise koi aahoo aaye

Uski baatein ki gul-o-lala pe shabnam barse
Sab ko apnane ka us shokh ko jaadu aaye

Usne chhoo kar mujhe patthar se phir insaan kiya
Muddaton baad meri aankhon mein aansoo aaye
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मेरी आंखों में तिरे प्यार का आंसू आए
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊंतिरी ख़ुशबू आए

वक़्त-ए-रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए

इन दिनों आप का आलम भी अजब आलम है
तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए

उस की बातें कि गुल-ओ-लाला पे शबनम बरसे
सब को अपनाने का उस शोख़ को जादू आए

उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मिरी आंखों में आंसू आए
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Abhi is taraf na nigah kar, main ghazal ki palkein sanvaar loon..

Abhi is taraf na nigah kar, main ghazal ki palkein sanvaar loon
Mera lafz-lafz ho aaina, tujhe aaine mein utaar loon

Main tamaam din ka thaka hua, tu tamaam shab ka jaga hua
Zara thehar ja isi mod par, tere saath shaam guzaar loon

Agar aasmaan ki numaishon mein mujhe bhi izn-e-qayam ho
To main motiyon ki dukaan se teri baaliyan, tere haar loon

Kahin aur baant de shohratein, kahin aur bakhsh de izzatein
Mere paas hai mera aaina, main kabhi na gard-o-ghubaar loon

Kai ajnabi teri raah mein, mere paas se yun guzhar gaye
Jinhein dekh kar yeh tadap hui, tera naam le ke pukar loon
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अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूं
मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आइने में उतार लूं

मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूं

अगर आसमां की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो
तो मैं मोतियों की दुकान से तिरी बालियां तिरे हार लूं

कहीं और बांट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूं

कई अजनबी तिरी राह में मिरे पास से यूं गुज़र गए
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई तिरा नाम ले के पुकार लूं
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Kahaan aansuon ki yeh saugaat hogi..

Kahaan aansuon ki yeh saugaat hogi
Naye log honge, nai baat hogi

Main har haal mein muskurata rahunga
Tumhari mohabbat agar saath hogi

Chiragon ko aankhon mein mehfooz rakhna
Badi door tak raat hi raat hogi

Pareshan ho tum bhi, pareshan hoon main bhi
Chalo mai-kade mein, wahin baat hogi

Chiragon ki lau se, sitaron ki zau tak
Tumhein main milunga, jahan raat hogi

Jahan waadiyon mein naye phool aaye
Hamari tumhari mulaqaat hogi

Sadaon ko alfaaz milne na payen
Na baadal ghirenge, na barsaat hogi

Musafir hain hum bhi, musafir ho tum bhi
Kisi mod par phir mulaqaat hogi
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कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
नए लोग होंगे नई बात होगी

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी

चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

परेशां हो तुम भी परेशां हूँ मैं भी
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी

चराग़ों की लौ से सितारों की ज़ौ तक
तुम्हें मैं मिलूँगा जहाँ रात होगी

जहाँ वादियों में नए फूल आए
हमारी तुम्हारी मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फ़ाज़ मिलने न पाएँ
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
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Na ji bhar ke dekha, na kuch baat ki..

Na ji bhar ke dekha, na kuch baat ki
Badi aarzoo thi mulaqaat ki

Ujaalon ki pariyan nahaane lagin
Nadi gun-gunayi khayalaat ki

Main chup tha to chalti hawa ruk gayi
Zubaan sab samajhte hain jazbaat ki

Muqaddar meri chashm-e-pur-aab ka
Barasti hui raat barsaat ki

Kai saal se kuch khabar hi nahin
Kahaan din guzara, kahaan raat ki
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न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की

मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुर-आब का
बरसती हुई रात बरसात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
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dua karo ki ye pauda sada haraa hi lage..

dua karo ki ye pauda sada haraa hi lage
udaasiyon mein bhi chehra khila khila hi lage

vo saadgi na kare kuchh bhi to ada hi lage
vo bhol-pan hai ki bebaki bhi haya hi lage

ye zaafraani pulovar usi ka hissa hai
koi jo doosra pahne to doosra hi lage

nahin hai mere muqaddar mein raushni na sahi
ye khidki kholo zara subh ki hawa hi lage

ajeeb shakhs hai naaraz ho ke hansta hai
main chahta hoon khafa ho to vo khafa hi lage

haseen to aur hain lekin koi kahaan tujh sa
jo dil jalaae bahut phir bhi dilruba hi lage

hazaaron bhes mein firte hain raam aur raheem
koi zaroori nahin hai bhala bhala hi lage 
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दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे

वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा ही लगे
वो भोल-पन है कि बेबाकी भी हया ही लगे

ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे

नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे

अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे

हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे

हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे
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Sau khuloos baaton mein, sab karam khayalon mein..

Sau khuloos baaton mein, sab karam khayalon mein
Bas zara wafaa kam hai tere shehar waalon mein

Pehli baar nazron ne chaand bolte dekha
Hum jawaab kya dete, kho gaye sawaalon mein

Raat teri yaadon ne dil ko is tarah chheda
Jaise koi chutki le narm-narm gaalon mein

Yoon kisi ki aankhon mein subah tak abhi the hum
Jis tarah rahe shabnam phool ke pyaalon mein

Meri aankh ke taare ab na dekh paoge
Raat ke musaafir the, kho gaye ujaalon mein

Jaise aadhi shab ke baad chaand neend mein chaunke
Woh gulaab ki jumbish un siyaah baalon mein
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सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में

पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गए सवालों में

रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में

यूँ किसी की आँखों में सुब्ह तक अभी थे हम
जिस तरह रहे शबनम फूल के प्यालों में

मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में

जैसे आधी शब के बा'द चाँद नींद में चौंके
वो गुलाब की जुम्बिश उन सियाह बालों में

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Kahin chaand raahon mein kho gaya, kahin chaandni bhi bhatak gayi..

Kahin chaand raahon mein kho gaya, kahin chaandni bhi bhatak gayi
Main chiraagh, wo bhi bujha hua, meri raat kaise chamak gayi

Meri daastan ka urooj tha, teri narm palkon ki chhaon mein
Mere saath tha tujhe jagna, teri aankh kaise jhapak gayi

Bhalla hum mile bhi to kya mile, wahi dooriyan wahi faasle
Na kabhi humare qadam badhe, na kabhi tumhari jhijhak gayi

Tere haath se mere honth tak, wahi intezaar ki pyaas hai
Mere naam ki jo sharaab thi, kahin raste mein chalak gayi

Tujhe bhool jaane ki koshishen kabhi kaamyaab na ho sakin
Teri yaad shaakh-e-gulaab hai, jo hawa chali to lachak gayi
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कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई 
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई 

मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में 
मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई 

भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले 
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई 

तिरे हाथ से मेरे होंट तक वही इंतिज़ार की प्यास है 
मिरे नाम की जो शराब थी कहीं रास्ते में छलक गई 

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं 
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
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apne andaaz ka akela tha..

apne andaaz ka akela tha
is liye main bada akela tha

pyaar to janam ka akela tha
kya mera tajurba akela tha

saath tera na kuchh badal paaya
mera hi raasta akela tha

bakhshish-e-be-hisaab ke aage
mera dast-e-dua akela tha

teri samjhauta-baaz duniya mein
kaun mere siva akela tha

jo bhi milta gale laga leta
kis qadar aaina akela tha 
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अपने अंदाज़ का अकेला था
इस लिए मैं बड़ा अकेला था

प्यार तो जन्म का अकेला था
क्या मिरा तजरबा अकेला था

साथ तेरा न कुछ बदल पाया
मेरा ही रास्ता अकेला था

बख़्शिश-ए-बे-हिसाब के आगे
मेरा दस्त-ए-दुआ' अकेला था

तेरी समझौते-बाज़ दुनिया में
कौन मेरे सिवा अकेला था

जो भी मिलता गले लगा लेता
किस क़दर आइना अकेला था
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kitna dushwaar tha duniya ye hunar aana bhi..

kitna dushwaar tha duniya ye hunar aana bhi
tujh se hi fasla rakhna tujhe apnaana bhi

kaisi aadaab-e-numaish ne lagaaiin shartein
phool hona hi nahin phool nazar aana bhi

dil ki bigdi hui aadat se ye ummeed na thi
bhool jaayega ye ik din tira yaad aana bhi

jaane kab shehar ke rishton ka badal jaaye mizaaj
itna aasaan to nahin laut ke ghar aana bhi

aise rishte ka bharam rakhna koi khel nahin
tera hona bhi nahin aur tira kahlaana bhi

khud ko pehchaan ke dekhe to zara ye dariya
bhool jaayega samundar ki taraf jaana bhi

jaanne waalon ki is bheed se kya hoga waseem
is mein ye dekhiye koi mujhe pahchaana bhi 
-----------------------------------------
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
तुझ से ही फ़ासला रखना तुझे अपनाना भी

कैसी आदाब-ए-नुमाइश ने लगाईं शर्तें
फूल होना ही नहीं फूल नज़र आना भी

दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी
भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी

जाने कब शहर के रिश्तों का बदल जाए मिज़ाज
इतना आसाँ तो नहीं लौट के घर आना भी

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी

ख़ुद को पहचान के देखे तो ज़रा ये दरिया
भूल जाएगा समुंदर की तरफ़ जाना भी

जानने वालों की इस भीड़ से क्या होगा 'वसीम'
इस में ये देखिए कोई मुझे पहचाना भी
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ye hai to sab ke liye ho ye zid hamaari hai..

ye hai to sab ke liye ho ye zid hamaari hai
is ek baat pe duniya se jang jaari hai

udaan waalo uraano pe waqt bhari hai
paron ki ab ke nahin hauslon ki baari hai

main qatra ho ke bhi toofaan se jang leta hoon
mujhe bachaana samundar ki zimmedaari hai

isee se jalte hain sehra-e-aarzoo mein charaagh
ye tishnagi to mujhe zindagi se pyaari hai

koi bataaye ye us ke ghuroor-e-beja ko
vo jang main ne ladi hi nahin jo haari hai

har ek saans pe pahra hai be-yaqeeni ka
ye zindagi to nahin maut ki sawaari hai

dua karo ki salaamat rahe meri himmat
ye ik charaagh kai aandhiyon pe bhari hai 
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ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
इस एक बात पे दुनिया से जंग जारी है

उड़ान वालो उड़ानों पे वक़्त भारी है
परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है

मैं क़तरा हो के भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ
मुझे बचाना समुंदर की ज़िम्मेदारी है

इसी से जलते हैं सहरा-ए-आरज़ू में चराग़
ये तिश्नगी तो मुझे ज़िंदगी से प्यारी है

कोई बताए ये उस के ग़ुरूर-ए-बेजा को
वो जंग मैं ने लड़ी ही नहीं जो हारी है

हर एक साँस पे पहरा है बे-यक़ीनी का
ये ज़िंदगी तो नहीं मौत की सवारी है

दुआ करो कि सलामत रहे मिरी हिम्मत
ये इक चराग़ कई आँधियों पे भारी है
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shaam tak subh ki nazaron se utar jaate hain..

shaam tak subh ki nazaron se utar jaate hain
itne samjhauton pe jeete hain ki mar jaate hain

phir wahi talkhi-e-haalat muqaddar thehri
nashshe kaise bhi hon kuchh din mein utar jaate hain

ik judaai ka vo lamha ki jo marta hi nahin
log kahte the ki sab waqt guzar jaate hain

ghar ki girti hui deewarein hi mujh se achhi
raasta chalte hue log thehar jaate hain

ham to be-naam iraadon ke musaafir hain waseem
kuchh pata ho to bataayein ki kidhar jaate hain 
---------------------------------------------
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं

फिर वही तल्ख़ी-ए-हालात मुक़द्दर ठहरी
नश्शे कैसे भी हों कुछ दिन में उतर जाते हैं

इक जुदाई का वो लम्हा कि जो मरता ही नहीं
लोग कहते थे कि सब वक़्त गुज़र जाते हैं

घर की गिरती हुई दीवारें ही मुझ से अच्छी
रास्ता चलते हुए लोग ठहर जाते हैं

हम तो बे-नाम इरादों के मुसाफ़िर हैं 'वसीम'
कुछ पता हो तो बताएँ कि किधर जाते हैं
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door se hi bas dariya dariya lagta hai..

door se hi bas dariya dariya lagta hai
doob ke dekho kitna pyaasa lagta hai

tanhaa ho to ghabraaya sa lagta hai
bheed mein us ko dekh ke achha lagta hai

aaj ye hai kal aur yahan hoga koi
socho to sab khel-tamasha lagta hai

main hi na maanoon mere bikharna mein warna
duniya bhar ko haath tumhaara lagta hai

zehan se kaaghaz par tasveer utarte hi
ek musavvir kitna akela lagta hai

pyaar ke is nashsha ko koi kya samjhe
thokar mein jab saara zamaana lagta hai

bheed mein rah kar apna bhi kab rah paata
chaand akela hai to sab ka lagta hai

shaakh pe baithi bholi-bhaali ik chidiya
kya jaane us par bhi nishaana lagta hai 
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दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
डूब के देखो कितना प्यासा लगता है

तन्हा हो तो घबराया सा लगता है
भीड़ में उस को देख के अच्छा लगता है

आज ये है कल और यहाँ होगा कोई
सोचो तो सब खेल-तमाशा लगता है

मैं ही न मानूँ मेरे बिखरने में वर्ना
दुनिया भर को हाथ तुम्हारा लगता है

ज़ेहन से काग़ज़ पर तस्वीर उतरते ही
एक मुसव्विर कितना अकेला लगता है

प्यार के इस नश्शा को कोई क्या समझे
ठोकर में जब सारा ज़माना लगता है

भीड़ में रह कर अपना भी कब रह पाता
चाँद अकेला है तो सब का लगता है

शाख़ पे बैठी भोली-भाली इक चिड़िया
क्या जाने उस पर भी निशाना लगता है
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mere gham ko jo apna bataate rahe..

mere gham ko jo apna bataate rahe
waqt padne pe haathon se jaate rahe

baarishen aayein aur faisla kar gaeein
log tooti chaten aazmaate rahe

aankhen manzar hui kaan naghma hue
ghar ke andaaz hi ghar se jaate rahe

shaam aayi to bichhde hue hum-safar
aansuon se in aankhon mein aate rahe

nanhe bacchon ne choo bhi liya chaand ko
boodhe baba kahaani sunaate rahe

door tak haath mein koi patthar na tha
phir bhi ham jaane kyun sar bachaate rahe

shaayri zahar thi kya karein ai waseem
log peete rahe ham pilaate rahe
---------------------------------
 मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे
वक़्त पड़ने पे हाथों से जाते रहे

बारिशें आईं और फ़ैसला कर गईं
लोग टूटी छतें आज़माते रहे

आँखें मंज़र हुईं कान नग़्मा हुए
घर के अंदाज़ ही घर से जाते रहे

शाम आई तो बिछड़े हुए हम-सफ़र
आँसुओं से इन आँखों में आते रहे

नन्हे बच्चों ने छू भी लिया चाँद को
बूढ़े बाबा कहानी सुनाते रहे

दूर तक हाथ में कोई पत्थर न था
फिर भी हम जाने क्यूँ सर बचाते रहे

शाइरी ज़हर थी क्या करें ऐ 'वसीम'
लोग पीते रहे हम पिलाते रहे
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mujhe to qatra hi hona bahut sataata hai..

mujhe to qatra hi hona bahut sataata hai
isee liye to samundar pe rehm aata hai

vo is tarah bhi meri ahmiyat ghataata hai
ki mujh se milne mein shartein bahut lagata hai

bichhadte waqt kisi aankh mein jo aata hai
tamaam umr vo aansu bahut rulaata hai

kahaan pahunch gai duniya use pata hi nahin
jo ab bhi maazi ke qisse sunaaye jaata hai

uthaaye jaayen jahaan haath aise jalse mein
wahi bura jo koi mas'ala uthaata hai

na koi ohda na degree na naam ki takhti
main rah raha hoon yahan mera ghar bataata hai

samajh raha ho kahi khud ko meri kamzori
to us se kah do mujhe bhoolna bhi aata hai 
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मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है
इसी लिए तो समुंदर पे रहम आता है

वो इस तरह भी मिरी अहमियत घटाता है
कि मुझ से मिलने में शर्तें बहुत लगाता है

बिछड़ते वक़्त किसी आँख में जो आता है
तमाम उम्र वो आँसू बहुत रुलाता है

कहाँ पहुँच गई दुनिया उसे पता ही नहीं
जो अब भी माज़ी के क़िस्से सुनाए जाता है

उठाए जाएँ जहाँ हाथ ऐसे जलसे में
वही बुरा जो कोई मसअला उठाता है

न कोई ओहदा न डिग्री न नाम की तख़्ती
मैं रह रहा हूँ यहाँ मेरा घर बताता है

समझ रहा हो कहीं ख़ुद को मेरी कमज़ोरी
तो उस से कह दो मुझे भूलना भी आता है
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kuchh itna khauf ka maara hua bhi pyaar na ho..

kuchh itna khauf ka maara hua bhi pyaar na ho
vo e'tibaar dilaae aur e'tibaar na ho

hawa khilaaf ho maujon pe ikhtiyaar na ho
ye kaisi zid hai ki dariya kisi se paar na ho

main gaav laut raha hoon bahut dinon ke baad
khuda kare ki use mera intizaar na ho

zara si baat pe ghut ghut ke subh kar dena
meri tarah bhi koi mera gham-gusaar na ho

dukhi samaaj mein aansu bhare zamaane mein
use ye kaun bataaye ki ashk-baar na ho

gunaahgaaron pe ungli uthaaye dete ho
waseem aaj kahi tum bhi sangsaar na ho 
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कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो
वो ए'तिबार दिलाए और ए'तिबार न हो

हवा ख़िलाफ़ हो मौजों पे इख़्तियार न हो
ये कैसी ज़िद है कि दरिया किसी से पार न हो

मैं गाँव लौट रहा हूँ बहुत दिनों के बाद
ख़ुदा करे कि उसे मेरा इंतिज़ार न हो

ज़रा सी बात पे घुट घुट के सुब्ह कर देना
मिरी तरह भी कोई मेरा ग़म-गुसार न हो

दुखी समाज में आँसू भरे ज़माने में
उसे ये कौन बताए कि अश्क-बार न हो

गुनाहगारों पे उँगली उठाए देते हो
'वसीम' आज कहीं तुम भी संगसार न हो
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chalo ham hi pehal kar den ki ham se bad-gumaan kyun ho..

chalo ham hi pehal kar den ki ham se bad-gumaan kyun ho
koi rishta zara si zid ki khaatir raayegaan kyun ho

main zinda hoon to is zinda-zameeri ki badaulat hi
jo bole tere lehje mein bhala meri zabaan kyun ho

sawaal aakhir ye ik din dekhna ham hi uthaayenge
na samjhe jo zameen ke gham vo apna aasmaan kyun ho

hamaari guftugoo ki aur bhi gaddaari bahut si hain
kisi ka dil dukhaane hi ko phir apni zabaan kyun ho

bikhar kar rah gaya hamsaayagi ka khwaab hi warna
diye is ghar mein raushan hon to us ghar mein dhuaan kyun ho

mohabbat aasmaan ko jab zameen karne ki zid thehri
to phir buzdil usoolon ki sharaafat darmiyaan kyun ho

ummeedein saari duniya se waseem aur khud mein aise gham
kisi pe kuchh na zaahir ho to koi meherbaan kyun ho
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 चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
कोई रिश्ता ज़रा सी ज़िद की ख़ातिर राएगाँ क्यूँ हो

मैं ज़िंदा हूँ तो इस ज़िंदा-ज़मीरी की बदौलत ही
जो बोले तेरे लहजे में भला मेरी ज़बाँ क्यूँ हो

सवाल आख़िर ये इक दिन देखना हम ही उठाएँगे
न समझे जो ज़मीं के ग़म वो अपना आसमाँ क्यूँ हो

हमारी गुफ़्तुगू की और भी सम्तें बहुत सी हैं
किसी का दिल दुखाने ही को फिर अपनी ज़बाँ क्यूँ हो

बिखर कर रह गया हमसायगी का ख़्वाब ही वर्ना
दिए इस घर में रौशन हों तो उस घर में धुआँ क्यूँ हो

मोहब्बत आसमाँ को जब ज़मीं करने की ज़िद ठहरी
तो फिर बुज़दिल उसूलों की शराफ़त दरमियाँ क्यूँ हो

उम्मीदें सारी दुनिया से 'वसीम' और ख़ुद में ऐसे ग़म
किसी पे कुछ न ज़ाहिर हो तो कोई मेहरबाँ क्यूँ हो
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main ye nahin kehta ki mera sar na milega..

main ye nahin kehta ki mera sar na milega
lekin meri aankhon mein tujhe dar na milega

sar par to bithaane ko hai taiyyaar zamaana
lekin tire rahne ko yahan ghar na milega

jaati hai chali jaaye ye may-khaane ki raunaq
kam-zarfon ke haathon mein to saaghar na milega

duniya ki talab hai to qanaat hi na karna
qatre hi se khush ho to samundar na milega
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मैं ये नहीं कहता कि मिरा सर न मिलेगा
लेकिन मिरी आँखों में तुझे डर न मिलेगा

सर पर तो बिठाने को है तय्यार ज़माना
लेकिन तिरे रहने को यहाँ घर न मिलेगा

जाती है चली जाए ये मय-ख़ाने की रौनक़
कम-ज़र्फ़ों के हाथों में तो साग़र न मिलेगा

दुनिया की तलब है तो क़नाअत ही न करना
क़तरे ही से ख़ुश हो तो समुंदर न मिलेगा
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vo mujh ko kya bataana chahta hai..

vo mujh ko kya bataana chahta hai
jo duniya se chhupaana chahta hai

mujhe dekho ki main us ko hi chaahoon
jise saara zamaana chahta hai

qalam karna kahaan hai us ka mansha
vo mera sar jhukaana chahta hai

shikaayat ka dhuaan aankhon se dil tak
ta'alluq toot jaana chahta hai

taqaza waqt ka kuchh bhi ho ye dil
wahi qissa puraana chahta hai 
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वो मुझ को क्या बताना चाहता है
जो दुनिया से छुपाना चाहता है

मुझे देखो कि मैं उस को ही चाहूँ
जिसे सारा ज़माना चाहता है

क़लम करना कहाँ है उस का मंशा
वो मेरा सर झुकाना चाहता है

शिकायत का धुआँ आँखों से दिल तक
तअ'ल्लुक़ टूट जाना चाहता है

तक़ाज़ा वक़्त का कुछ भी हो ये दिल
वही क़िस्सा पुराना चाहता है
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nahin ki apna zamaana bhi to nahin aaya..

nahin ki apna zamaana bhi to nahin aaya
hamein kisi se nibhaana bhi to nahin aaya

jala ke rakh liya haathon ke saath daaman tak
tumhein charaagh bujhaana bhi to nahin aaya

naye makaan banaaye to faaslon ki tarah
hamein ye shehar basaana bhi to nahin aaya

vo poochta tha meri aankh bheegne ka sabab
mujhe bahaana banaana bhi to nahin aaya

waseem dekhna mud mud ke vo usi ki taraf
kisi ko chhod ke jaana bhi to nahin aaya 
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नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया
हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया

जला के रख लिया हाथों के साथ दामन तक
तुम्हें चराग़ बुझाना भी तो नहीं आया

नए मकान बनाए तो फ़ासलों की तरह
हमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया

वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया

'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया
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ham apne aap ko ik mas'ala bana na sake..

ham apne aap ko ik mas'ala bana na sake
isee liye to kisi ki nazar mein aa na sake

ham aansuon ki tarah vaaste nibha na sake
rahe jin aankhon mein un mein hi ghar bana na sake

phir aandhiyon ne sikhaaya wahan safar ka hunar
jahaan charaagh hamein raasta dikha na sake

jo pesh pesh the basti bachaane waalon mein
lagi jab aag to apna bhi ghar bacha na sake

mere khuda kisi aisi jagah use rakhna
jahaan koi mere baare mein kuchh bata na sake

tamaam umr ki koshish ka bas yahi haasil
kisi ko apne mutaabiq koi bana na sake

tasalliyon pe bahut din jiya nahin jaata
kuchh aisa ho ke tira e'tibaar aa na sake 
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हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
इसी लिए तो किसी की नज़र में आ न सके

हम आँसुओं की तरह वास्ते निभा न सके
रहे जिन आँखों में उन में ही घर बना न सके

फिर आँधियों ने सिखाया वहाँ सफ़र का हुनर
जहाँ चराग़ हमें रास्ता दिखा न सके

जो पेश पेश थे बस्ती बचाने वालों में
लगी जब आग तो अपना भी घर बचा न सके

मिरे ख़ुदा किसी ऐसी जगह उसे रखना
जहाँ कोई मिरे बारे में कुछ बता न सके

तमाम उम्र की कोशिश का बस यही हासिल
किसी को अपने मुताबिक़ कोई बना न सके

तसल्लियों पे बहुत दिन जिया नहीं जाता
कुछ ऐसा हो के तिरा ए'तिबार आ न सके
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kya bataaun kaisa khud ko dar-b-dar main ne kiya..

kya bataaun kaisa khud ko dar-b-dar main ne kiya
umr-bhar kis kis ke hisse ka safar main ne kiya

tu to nafrat bhi na kar paayega is shiddat ke saath
jis bala ka pyaar tujh se be-khabar main ne kiya

kaise bacchon ko bataaun raaston ke pech-o-kham
zindagi-bhar to kitaabon ka safar main ne kiya

kis ko furqat thi ki batlaata tujhe itni si baat
khud se kya bartaav tujh se chhoot kar main ne kiya

chand jazbaati se rishton ke bachaane ko waseem
kaisa kaisa jabr apne aap par main ne kiya 
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क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया

तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इस शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझ से बे-ख़बर मैं ने किया

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेच-ओ-ख़म
ज़िंदगी-भर तो किताबों का सफ़र मैं ने किया

किस को फ़ुर्सत थी कि बतलाता तुझे इतनी सी बात
ख़ुद से क्या बरताव तुझ से छूट कर मैं ने किया

चंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को 'वसीम'
कैसा कैसा जब्र अपने आप पर मैं ने किया
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tahreer se warna meri kya ho nahin saka..

tahreer se warna meri kya ho nahin saka
ik tu hai jo lafzon mein ada ho nahin saka

aankhon mein khayaalaat mein saanson mein basa hai
chahe bhi to mujh se vo juda ho nahin saka

jeena hai to ye jabr bhi sahna hi padega
qatra hoon samundar se khafa ho nahin saka

gumraah kiye honge kai phool se jazbe
aise to koi raah-numa ho nahin saka

qad mera badhaane ka use kaam mila hai
jo apne hi pairo'n pe khada ho nahin saka

ai pyaar tire hisse mein aaya tiri qismat
vo dard jo chehron se ada ho nahin saka
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तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता
इक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता

आँखों में ख़यालात में साँसों में बसा है
चाहे भी तो मुझ से वो जुदा हो नहीं सकता

जीना है तो ये जब्र भी सहना ही पड़ेगा
क़तरा हूँ समुंदर से ख़फ़ा हो नहीं सकता

गुमराह किए होंगे कई फूल से जज़्बे
ऐसे तो कोई राह-नुमा हो नहीं सकता

क़द मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला है
जो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता

ऐ प्यार तिरे हिस्से में आया तिरी क़िस्मत
वो दर्द जो चेहरों से अदा हो नहीं सकता
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udaasiyon mein bhi raaste nikaal leta hai..

udaasiyon mein bhi raaste nikaal leta hai
ajeeb dil hai girun to sanbhaal leta hai

ye kaisa shakhs hai kitni hi achhi baat kaho
koi buraai ka pahluu nikaal leta hai

dhale to hoti hai kuchh aur ehtiyaat ki umr
ki bahte bahte ye dariya uchaal leta hai

bade-badoon ki tarah-daariyaan nahin chaltiin
urooj teri khabar jab zawaal leta hai

jab us ke jaam mein ik boond tak nahin hoti
vo meri pyaas ko phir bhi sanbhaal leta hai 
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उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है

ये कैसा शख़्स है कितनी ही अच्छी बात कहो
कोई बुराई का पहलू निकाल लेता है

ढले तो होती है कुछ और एहतियात की उम्र
कि बहते बहते ये दरिया उछाल लेता है

बड़े-बड़ों की तरह-दारियाँ नहीं चलतीं
उरूज तेरी ख़बर जब ज़वाल लेता है

जब उस के जाम में इक बूँद तक नहीं होती
वो मेरी प्यास को फिर भी सँभाल लेता है
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sabhi ka dhoop se bachne ko sar nahin hota..

sabhi ka dhoop se bachne ko sar nahin hota
har aadmi ke muqaddar mein ghar nahin hota

kabhi lahu se bhi taarikh likhni padti hai
har ek ma'arka baaton se sar nahin hota

main us ki aankh ka aansu na ban saka warna
mujhe bhi khaak mein milne ka dar nahin hota

mujhe talash karoge to phir na paoge
main ik sada hoon sadaaon ka ghar nahin hota

hamaari aankh ke aansu ki apni duniya hai
kisi faqeer ko shahon ka dar nahin hota

main us makaan mein rehta hoon aur zinda hoon
waseem jis mein hawa ka guzar nahin hota
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सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता

कभी लहू से भी तारीख़ लिखनी पड़ती है
हर एक मा'रका बातों से सर नहीं होता

मैं उस की आँख का आँसू न बन सका वर्ना
मुझे भी ख़ाक में मिलने का डर नहीं होता

मुझे तलाश करोगे तो फिर न पाओगे
मैं इक सदा हूँ सदाओं का घर नहीं होता

हमारी आँख के आँसू की अपनी दुनिया है
किसी फ़क़ीर को शाहों का डर नहीं होता

मैं उस मकान में रहता हूँ और ज़िंदा हूँ
'वसीम' जिस में हवा का गुज़र नहीं होता
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tumhaari raah mein mitti ke ghar nahin aate..

tumhaari raah mein mitti ke ghar nahin aate
isee liye to tumhein ham nazar nahin aate

mohabbaton ke dinon ki yahi kharaabi hai
ye rooth jaayen to phir laut kar nahin aate

jinhen saleeqa hai tehzeeb-e-gham samajhne ka
unhin ke rone mein aansu nazar nahin aate

khushi ki aankh mein aansu ki bhi jagah rakhna
bure zamaane kabhi pooch kar nahin aate

bisaat-e-ishq pe badhna kise nahin aata
ye aur baat ki bachne ke ghar nahin aate

waseem zehan banaate hain to wahi akhbaar
jo le ke ek bhi achhi khabar nahin aate
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 तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसी लिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते

मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते

जिन्हें सलीक़ा है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का
उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते

ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते

बिसात-ए-इश्क़ पे बढ़ना किसे नहीं आता
ये और बात कि बचने के घर नहीं आते

'वसीम' ज़ेहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
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tu samajhta hai ki rishton ki duhaai denge..

tu samajhta hai ki rishton ki duhaai denge
ham to vo hain tire chehre se dikhaai denge

ham ko mehsoos kiya jaaye hai khushboo ki tarah
ham koi shor nahin hain jo sunaai denge

faisla likkha hua rakha hai pehle se khilaaf
aap kya sahab adaalat mein safaai denge

pichhli saf mein hi sahi hai to isee mehfil mein
aap dekhenge to ham kyun na dikhaai denge
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तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे
हम तो वो हैं तिरे चेहरे से दिखाई देंगे

हम को महसूस किया जाए है ख़ुश्बू की तरह
हम कोई शोर नहीं हैं जो सुनाई देंगे

फ़ैसला लिक्खा हुआ रक्खा है पहले से ख़िलाफ़
आप क्या साहब अदालत में सफ़ाई देंगे

पिछली सफ़ में ही सही है तो इसी महफ़िल में
आप देखेंगे तो हम क्यूँ न दिखाई देंगे
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kahaan savaab kahaan kya azaab hota hai..

kahaan savaab kahaan kya azaab hota hai
mohabbaton mein kab itna hisaab hota hai

bichhad ke mujh se tum apni kashish na kho dena
udaas rahne se chehra kharab hota hai

use pata hi nahin hai ki pyaar ki baazi
jo haar jaaye wahi kaamyaab hota hai

jab us ke paas ganwaane ko kuchh nahin hota
to koi aaj ka izzat-maab hota hai

jise main likhta hoon aise ki khud hi padh paanv
kitaab-e-zeest mein aisa bhi baab hota hai

bahut bharosa na kar lena apni aankhon par
dikhaai deta hai jo kuchh vo khwaab hota hai 
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कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है
मोहब्बतों में कब इतना हिसाब होता है

बिछड़ के मुझ से तुम अपनी कशिश न खो देना
उदास रहने से चेहरा ख़राब होता है

उसे पता ही नहीं है कि प्यार की बाज़ी
जो हार जाए वही कामयाब होता है

जब उस के पास गँवाने को कुछ नहीं होता
तो कोई आज का इज़्ज़त-मआब होता है

जिसे मैं लिखता हूँ ऐसे कि ख़ुद ही पढ़ पाँव
किताब-ए-ज़ीस्त में ऐसा भी बाब होता है

बहुत भरोसा न कर लेना अपनी आँखों पर
दिखाई देता है जो कुछ वो ख़्वाब होता है
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haveliyon mein meri tarbiyat nahin hoti..

haveliyon mein meri tarbiyat nahin hoti
to aaj sar pe tapkane ko chat nahin hoti

hamaare ghar ka pata poochne se kya haasil
udaasiyon ki koi shehriyat nahin hoti

charaagh ghar ka ho mehfil ka ho ki mandir ka
hawa ke paas koi maslahat nahin hoti

hamein jo khud mein simatne ka fan nahin aata
to aaj aisi tiri saltanat nahin hoti

waseem shehar mein sacchaaiyon ke lab hote
to aaj khabron mein sab khairiyat nahin hoti 
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हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती
तो आज सर पे टपकने को छत नहीं होती

हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती

चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का
हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती

हमें जो ख़ुद में सिमटने का फ़न नहीं आता
तो आज ऐसी तिरी सल्तनत नहीं होती

'वसीम' शहर में सच्चाइयों के लब होते
तो आज ख़बरों में सब ख़ैरियत नहीं होती
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zindagi tujh pe ab ilzaam koi kya rakhe..

zindagi tujh pe ab ilzaam koi kya rakhe
apna ehsaas hi aisa hai jo tanhaa rakhe

kin shikaston ke shab-o-roz se guzra hoga
vo musavvir jo har ik naqsh adhoora rakhe

khushk mitti hi ne jab paanv jamaane na diye
bahte dariya se phir ummeed koi kya rakhe

aa gham-e-dost usi mod pe ho jaaun juda
jo mujhe mera hi rahne de na tera rakhe

aarzooon ke bahut khwaab to dekho ho waseem
jaane kis haal mein be-dard zamaana rakhe 
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ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे
अपना एहसास ही ऐसा है जो तन्हा रक्खे

किन शिकस्तों के शब-ओ-रोज़ से गुज़रा होगा
वो मुसव्विर जो हर इक नक़्श अधूरा रक्खे

ख़ुश्क मिट्टी ही ने जब पाँव जमाने न दिए
बहते दरिया से फिर उम्मीद कोई क्या रक्खे

आ ग़म-ए-दोस्त उसी मोड़ पे हो जाऊँ जुदा
जो मुझे मेरा ही रहने दे न तेरा रक्खे

आरज़ूओं के बहुत ख़्वाब तो देखो हो 'वसीम'
जाने किस हाल में बे-दर्द ज़माना रक्खे
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dua karo ki koi pyaas nazr-e-jaam na ho..

dua karo ki koi pyaas nazr-e-jaam na ho
vo zindagi hi nahin hai jo na-tamaam na ho

jo mujh mein tujh mein chala aa raha hai sadiyon se
kahi hayaat usi faasle ka naam na ho

koi charaagh na aansu na aarzoo-e-seher
khuda kare ki kisi ghar mein aisi shaam na ho

ajeeb shart lagaaee hai ehtiyaaton ne
ki tera zikr karoon aur tera naam na ho

saba-mizaaj ki tezi bhi ek ne'mat hai
agar charaagh bujhaana hi ek kaam na ho

waseem kitni hi subhen lahu lahu guzriin
ik aisi subh bhi aaye ki jis ki shaam na ho
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दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
वो ज़िंदगी ही नहीं है जो ना-तमाम न हो

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से
कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो

कोई चराग़ न आँसू न आरज़ू-ए-सहर
ख़ुदा करे कि किसी घर में ऐसी शाम न हो

अजीब शर्त लगाई है एहतियातों ने
कि तेरा ज़िक्र करूँ और तेरा नाम न हो

सबा-मिज़ाज की तेज़ी भी एक ने'मत है
अगर चराग़ बुझाना ही एक काम न हो

'वसीम' कितनी ही सुब्हें लहू लहू गुज़रीं
इक ऐसी सुब्ह भी आए कि जिस की शाम न हो
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meri wafaon ka nashsha utaarne waala..

meri wafaon ka nashsha utaarne waala
kahaan gaya mujhe hans hans ke haarne waala

hamaari jaan gai jaaye dekhna ye hai
kahi nazar mein na aa jaaye maarnay waala

bas ek pyaar ki baazi hai be-gharz baazi
na koi jeetne waala na koi haarne waala

bhare makaan ka bhi apna nasha hai kya jaane
sharaab-khaane mein raatein guzaarne waala

main us ka din bhi zamaane mein baant kar rakh doon
vo meri raaton ko chhup kar guzaarne waala

waseem ham bhi bikharna ka hausla karte
hamein bhi hota jo koi sanwaarne waala
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मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला
कहाँ गया मुझे हँस हँस के हारने वाला

हमारी जान गई जाए देखना ये है
कहीं नज़र में न आ जाए मारने वाला

बस एक प्यार की बाज़ी है बे-ग़रज़ बाज़ी
न कोई जीतने वाला न कोई हारने वाला

भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने
शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला

मैं उस का दिन भी ज़माने में बाँट कर रख दूँ
वो मेरी रातों को छुप कर गुज़ारने वाला

'वसीम' हम भी बिखरने का हौसला करते
हमें भी होता जो कोई सँवारने वाला

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kahaan qatre ki gham-khwari kare hai..

kahaan qatre ki gham-khwari kare hai
samundar hai adaakaari kare hai

koi maane na maane us ki marzi
magar vo hukm to jaari kare hai

nahin lamha bhi jis ki dastaras mein
wahi sadiyon ki tayyaari kare hai

bade aadarsh hain baaton mein lekin
vo saare kaam baazaari kare hai

hamaari baat bhi aaye to jaanen
vo baatein to bahut saari kare hai

yahi akhbaar ki surkhi banega
zara sa kaam chingaari kare hai

bulaava aayega chal denge ham bhi
safar ki kaun tayyaari kare hai 
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कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है
समुंदर है अदाकारी करे है

कोई माने न माने उस की मर्ज़ी
मगर वो हुक्म तो जारी करे है

नहीं लम्हा भी जिस की दस्तरस में
वही सदियों की तय्यारी करे है

बड़े आदर्श हैं बातों में लेकिन
वो सारे काम बाज़ारी करे है

हमारी बात भी आए तो जानें
वो बातें तो बहुत सारी करे है

यही अख़बार की सुर्ख़ी बनेगा
ज़रा सा काम चिंगारी करे है

बुलावा आएगा चल देंगे हम भी
सफ़र की कौन तय्यारी करे है
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nigaahon ke taqaze chain se marne nahin dete..

nigaahon ke taqaze chain se marne nahin dete
yahan manzar hi aise hain ki dil bharne nahin dete

ye log auron ke dukh jeene nikal aaye hain sadkon par
agar apna hi gham hota to yun dharne nahin dete

yahi qatre jo dam apna dikhaane par utar aate
samundar aisi man-maani tujhe karne nahin dete

qalam main to utha ke jaane kab ka rakh chuka hota
magar tum ho ke qissa mukhtasar karne nahin dete

humeen un se umeedein aasmaan choone ki karte hain
humeen bacchon ko apne faisley karne nahin dete
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निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते
यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते

ये लोग औरों के दुख जीने निकल आए हैं सड़कों पर
अगर अपना ही ग़म होता तो यूँ धरने नहीं देते

यही क़तरे जो दम अपना दिखाने पर उतर आते
समुंदर ऐसी मन-मानी तुझे करने नहीं देते

क़लम मैं तो उठा के जाने कब का रख चुका होता
मगर तुम हो के क़िस्सा मुख़्तसर करने नहीं देते

हमीं उन से उमीदें आसमाँ छूने की करते हैं
हमीं बच्चों को अपने फ़ैसले करने नहीं देते
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sirf tera naam le kar rah gaya..

sirf tera naam le kar rah gaya
aaj deewaana bahut kuchh kah gaya

kya meri taqdeer mein manzil nahin
fasla kyun muskuraa kar rah gaya

zindagi duniya mein aisa ashk thi
jo zara palkon pe thehra bah gaya

aur kya tha us ki pursish ka jawaab
apne hi aansu chhupa kar rah gaya

us se pooch ai kaamyaab-e-zindagi
jis ka afsaana adhoora rah gaya

haaye kya deewaangi thi ai waseem
jo na kehna chahiye tha kah gaya 
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सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया
आज दीवाना बहुत कुछ कह गया

क्या मिरी तक़दीर में मंज़िल नहीं
फ़ासला क्यूँ मुस्कुरा कर रह गया

ज़िंदगी दुनिया में ऐसा अश्क थी
जो ज़रा पलकों पे ठहरा बह गया

और क्या था उस की पुर्सिश का जवाब
अपने ही आँसू छुपा कर रह गया

उस से पूछ ऐ कामयाब-ए-ज़िंदगी
जिस का अफ़्साना अधूरा रह गया

हाए क्या दीवानगी थी ऐ 'वसीम'
जो न कहना चाहिए था कह गया
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rang be-rang hon khushboo ka bharosa jaaye..

rang be-rang hon khushboo ka bharosa jaaye
meri aankhon se jo duniya tujhe dekha jaaye

ham ne jis raah ko chhodaa phir use chhod diya
ab na jaayenge udhar chahe zamaana jaaye

main ne muddat se koi khwaab nahin dekha hai
haath rakh de meri aankhon pe ki neend aa jaaye

main gunaahon ka taraf-daar nahin hoon phir bhi
raat ko din ki nigaahon se na dekha jaaye

kuchh badi sochon mein ye sochen bhi shaamil hain waseem
kis bahaane se koi shehar jalaya jaaye 
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रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए
मेरी आँखों से जो दुनिया तुझे देखा जाए

हम ने जिस राह को छोड़ा फिर उसे छोड़ दिया
अब न जाएँगे उधर चाहे ज़माना जाए

मैं ने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है
हाथ रख दे मिरी आँखों पे कि नींद आ जाए

मैं गुनाहों का तरफ़-दार नहीं हूँ फिर भी
रात को दिन की निगाहों से न देखा जाए

कुछ बड़ी सोचों में ये सोचें भी शामिल हैं 'वसीम'
किस बहाने से कोई शहर जलाया जाए
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sab ne milaaye haath yahan teergi ke saath..

sab ne milaaye haath yahan teergi ke saath
kitna bada mazaak hua raushni ke saath

shartein lagaaee jaati nahin dosti ke saath
kijeye mujhe qubool meri har kami ke saath

tera khayal teri talab teri aarzoo
main umr bhar chala hoon kisi raushni ke saath

duniya mere khilaaf khadi kaise ho gai
meri to dushmani bhi nahin thi kisi ke saath

kis kaam ki rahi ye dikhaave ki zindagi
vaade kiye kisi se guzaari kisi ke saath

duniya ko bewafaai ka ilzaam kaun de
apni hi nibh saki na bahut din kisi ke saath

qatre vo kuchh bhi paaye ye mumkin nahin waseem
badhna jo chahte hain samundar-kashi ke saath 
---------------------------------------
सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे क़ुबूल मेरी हर कमी के साथ

तेरा ख़याल तेरी तलब तेरी आरज़ू
मैं उम्र भर चला हूँ किसी रौशनी के साथ

दुनिया मेरे ख़िलाफ़ खड़ी कैसे हो गई
मेरी तो दुश्मनी भी नहीं थी किसी के साथ

किस काम की रही ये दिखावे की ज़िंदगी
वादे किए किसी से गुज़ारी किसी के साथ

दुनिया को बेवफ़ाई का इल्ज़ाम कौन दे
अपनी ही निभ सकी न बहुत दिन किसी के साथ

क़तरे वो कुछ भी पाएँ ये मुमकिन नहीं 'वसीम'
बढ़ना जो चाहते हैं समंदर-कशी के साथ
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bhaagte saayo ke peeche ta-b-kai dauda karein..

bhaagte saayo ke peeche ta-b-kai dauda karein
zindagi tu hi bata kab tak tira peecha karein

roo-e-gul ho chehra-e-mahtaab ho ya husn-e-dost
har chamakti cheez ko kuchh door se dekha karein

be-niyaazi khud saraapa iltijaa ban jaayegi
aap apni dastaan mein husn to paida karein

dil ki tha khush-fahm aagaah-e-haqeeqat ho gaya
shukr bhejen ya tiri bedaad ka shikwa karein

mugbachon se mohtasib tak saikron darbaar hain
ek saaghar ke liye kis kis ko ham sajda karein

tishnagi had se badhi hai mashghala koi nahin
sheesha-o-saaghar na todhen baada-kash to kya karein

doosron par tabsira farmaane se pehle hafiz
apne daaman ki taraf bhi ik nazar dekha karein 
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भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें
ज़िंदगी तू ही बता कब तक तिरा पीछा करें

रू-ए-गुल हो चेहरा-ए-महताब हो या हुस्न-ए-दोस्त
हर चमकती चीज़ को कुछ दूर से देखा करें

बे-नियाज़ी ख़ुद सरापा इल्तिजा बन जाएगी
आप अपनी दास्ताँ में हुस्न तो पैदा करें

दिल कि था ख़ुश-फ़हम आगाह-ए-हक़ीक़त हो गया
शुक्र भेजें या तिरी बेदाद का शिकवा करें

मुग़्बचों से मोहतसिब तक सैकड़ों दरबार हैं
एक साग़र के लिए किस किस को हम सज्दा करें

तिश्नगी हद से बढ़ी है मश्ग़ला कोई नहीं
शीशा-ओ-साग़र न तोड़ें बादा-कश तो क्या करें

दूसरों पर तब्सिरा फ़रमाने से पहले 'हफ़ीज़'
अपने दामन की तरफ़ भी इक नज़र देखा करें
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jahaan dariya kahi apne kinaare chhod deta hai..

jahaan dariya kahi apne kinaare chhod deta hai
koi uthata hai aur toofaan ka rukh mod deta hai

mujhe be-dast-o-pa kar ke bhi khauf us ka nahin jaata
kahi bhi haadisa guzre vo mujh se jod deta hai

bichhad ke tujh se kuchh jaana agar to is qadar jaana
vo mitti hoonjise dariya kinaare chhod deta hai

mohabbat mein zara si bewafaai to zaroori hai
wahi achha bhi lagta hai jo vaade tod deta hai 
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जहां दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
कोई उठता है और तूफ़ान का रुख़ मोड़ देता है

मुझे बे-दस्त-ओ-पा कर के भी ख़ौफ़ उस का नहीं जाता
कहीं भी हादिसा गुज़रे वो मुझ से जोड़ देता है

बिछड़ के तुझ से कुछ जाना अगर तो इस क़दर जाना
वो मिट्टी हूंजिसे दरिया किनारे छोड़ देता है

मोहब्बत में ज़रा सी बेवफ़ाई तो ज़रूरी है
वही अच्छा भी लगता है जो वादे तोड़ देता है
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usoolon pe jahaan aanch aaye takraana zaroori hai..

usoolon pe jahaan aanch aaye takraana zaroori hai
jo zinda hon to phir zinda nazar aana zaroori hai

nayi umron ki khudmukhtaariyon ko kaun samjhaaye
kahaan se bach ke chalna hai kahaan jaana zaroori hai

thake haare parinde jab basere ke liye lautain
saleeqamand shaakhon ka lachak jaana zaroori hai

bahut bebaak aankhon mein t'alluq tik nahin paata
muhabbat mein kashish rakhne ko sharmaana zaroori hai

saleeqa hi nahin shaayad use mehsoos karne ka
jo kehta hai khuda hai to nazar aana zaroori hai

mere honthon pe apni pyaas rakh do aur phir socho
ki iske baad bhi duniya mein kuchh paana zaroori hai 
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उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
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meri nazar ke saleeke mein kya nahin aata..

meri nazar ke saleeke mein kya nahin aata
bas ik teri taraf hi dekhna nahin aata

akela chalna to mera naseeb tha ki mujhe
kisi ke saath safar baantna nahin aata

udhar to jaate hain raaste tamaam hone ko
idhar se ho ke koi raasta nahin aata

jagaana aata hai usko tamaam tareekon se
gharo pe dastaken dene khuda nahin aata

yahaan pe tum hi nahin aas paas aur bhi hain
par us tarah se tumhein sochna nahin aata

pade raho yoon hi sahme hue diyon ki tarah
agar hawaon ke par baandhna nahin aata 
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मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता
बस इक तेरी तरफ ही देखना नहीं आता

अकेले चलना तो मेरा नसीब था कि मुझे
किसी के साथ सफर बांटना नहीं आता

उधर तो जाते हैं रस्ते तमाम होने को
इधर से हो के कोई रास्ता नहीं आता

जगाना आता है उसको तमाम तरीकों से
घरों पे दस्तकें देने ख़ुदा नहीं आता

यहां पे तुम ही नहीं आस पास और भी हैं
पर उस तरह से तुम्हें सोचना नहीं आता

पड़े रहो यूं ही सहमे हुए दियों की तरह
अगर हवाओं के पर बांधना नहीं आता
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bhala ghamon se kahaan haar jaane waale the..

bhala ghamon se kahaan haar jaane waale the
ham aansuon kii tarah muskuraane waale the

humeen ne kar diya ailaan-e-gumrahi warna
hamaare peechhe bahut log aane waale the

unhen to khaak mein milna hi tha ki mere the
ye ashk kaun se unche gharaane waale the

unhen qareeb na hone diya kabhi main ne
jo dosti mein hadein bhool jaane waale the

main jin ko jaan ke pehchaan bhi nahin saktaa
kuchh aise log mera ghar jalane waale the

hamaara almeya ye tha ki hum-safar bhi hamein
wahi mile jo bahut yaad aane waale the

waseem kaisi taalluq kii raah thi jis mein
wahi mile jo bahut dil dukhaane waale the 
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भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे
हम आँसुओं की तरह मुस्कुराने वाले थे

हमीं ने कर दिया ऐलान-ए-गुमरही वर्ना
हमारे पीछे बहुत लोग आने वाले थे

उन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे
ये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे

उन्हें क़रीब न होने दिया कभी मैं ने
जो दोस्ती में हदें भूल जाने वाले थे

मैं जिन को जान के पहचान भी नहीं सकता
कुछ ऐसे लोग मिरा घर जलाने वाले थे

हमारा अलमिया ये था कि हम-सफ़र भी हमें
वही मिले जो बहुत याद आने वाले थे

'वसीम' कैसी तअल्लुक़ की राह थी जिस में
वही मिले जो बहुत दिल दुखाने वाले थे
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vo mere ghar nahin aata main us ke ghar nahin jaata..

vo mere ghar nahin aata main us ke ghar nahin jaata
magar in ehtiyaaton se ta'alluq mar nahin jaata

bure achhe hon jaise bhi hon sab rishte yahin ke hain
kisi ko saath duniya se koi le kar nahin jaata

gharo ki tarbiyat kya aa gai tv ke haathon mein
koi baccha ab apne baap ke oopar nahin jaata

khule the shehar mein sau dar magar ik had ke andar hi
kahaan jaata agar main laut ke phir ghar nahin jaata

mohabbat ke ye aansu hain unhen aankhon mein rahne do
shareefon ke gharo ka mas'ala baahar nahin jaata

waseem us se kaho duniya bahut mahdood hai meri
kisi dar ka jo ho jaaye vo phir dar dar nahin jaata 
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वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअ'ल्लुक़ मर नहीं जाता

बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनिया से कोई ले कर नहीं जाता

घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता

खुले थे शहर में सौ दर मगर इक हद के अंदर ही
कहाँ जाता अगर मैं लौट के फिर घर नहीं जाता

मोहब्बत के ये आँसू हैं उन्हें आँखों में रहने दो
शरीफ़ों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता

'वसीम' उस से कहो दुनिया बहुत महदूद है मेरी
किसी दर का जो हो जाए वो फिर दर दर नहीं जाता
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beete hue din khud ko jab dohraate hain..

beete hue din khud ko jab dohraate hain
ek se jaane ham kitne ho jaate hain

ham bhi dil ki baat kahaan kah paate hain
aap bhi kuchh kahte kahte rah jaate hain

khushboo apne raaste khud tay karti hai
phool to daali ke ho kar rah jaate hain

roz naya ik qissa kehne waale log
kahte kahte khud qissa ho jaate hain

kaun bachaayega phir todne waalon se
phool agar shaakhon se dhokha khaate hain 
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बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं
एक से जाने हम कितने हो जाते हैं

हम भी दिल की बात कहाँ कह पाते हैं
आप भी कुछ कहते कहते रह जाते हैं

ख़ुश्बू अपने रस्ते ख़ुद तय करती है
फूल तो डाली के हो कर रह जाते हैं

रोज़ नया इक क़िस्सा कहने वाले लोग
कहते कहते ख़ुद क़िस्सा हो जाते हैं

कौन बचाएगा फिर तोड़ने वालों से
फूल अगर शाख़ों से धोखा खाते हैं
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hamaara azm-e-safar kab kidhar ka ho jaaye..

hamaara azm-e-safar kab kidhar ka ho jaaye
ye vo nahin jo kisi raahguzaar ka ho jaaye

usi ko jeene ka haq hai jo is zamaane mein
idhar ka lagta rahe aur udhar ka ho jaaye

khuli hawaon mein udna to us ki fitrat hai
parinda kyun kisi shaakh-e-shajar ka ho jaaye

main laakh chaahoon magar ho to ye nahin saka
ki tera chehra meri hi nazar ka ho jaaye

mera na hone se kya farq us ko padna hai
pata chale jo kisi kam-nazar ka ho jaaye

waseem subh ki tanhaai-e-safar socho
mushaaira to chalo raat bhar ka ho jaaye 
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हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए
ये वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाए

उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए

खुली हवाओं में उड़ना तो उस की फ़ितरत है
परिंदा क्यूं किसी शाख़-ए-शजर का हो जाए

मैं लाख चाहूं मगर हो तो ये नहीं सकता
कि तेरा चेहरा मिरी ही नज़र का हो जाए

मिरा न होने से क्या फ़र्क़ उस को पड़ना है
पता चले जो किसी कम-नज़र का हो जाए

'वसीम' सुब्ह की तन्हाई-ए-सफ़र सोचो
मुशाएरा तो चलो रात भर का हो जाए
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haadson ki zad pe hain to muskurana chhod den..

haadson ki zad pe hain to muskurana chhod den
zalzalon ke khauf se kya ghar banaana chhod den

tum ne mere ghar na aane ki qasam khaai to hai
aansuon se bhi kaho aankhon mein aana chhod den

pyaar ke dushman kabhi to pyaar se kah ke to dekh
ek tera dar hi kya ham to zamaana chhod den

ghonsle veeraan hain ab vo parinde hi kahaan
ik basere ke liye jo aab-o-daana chhod den 
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हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें

तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें

प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें

घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ
इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें
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use samajhne ka koi to raasta nikle..

use samajhne ka koi to raasta nikle
main chahta bhi yahi tha vo bewafa nikle

kitaab-e-maazi ke aoraq ult ke dekh zara
na jaane kaun sa safha muda hua nikle

main tujh se milta to tafseel mein nahin jaata
meri taraf se tire dil mein jaane kya nikle

jo dekhne mein bahut hi qareeb lagta hai
usi ke baare mein socho to fasla nikle

tamaam shehar ki aankhon mein surkh sholay hain
waseem ghar se ab aise mein koi kya nikle 
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उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले
मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रा
न जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले

मैं तुझ से मिलता तो तफ़्सील में नहीं जाता
मिरी तरफ़ से तिरे दिल में जाने क्या निकले

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले

तमाम शहर की आँखों में सुर्ख़ शो'ले हैं
'वसीम' घर से अब ऐसे में कोई क्या निकले
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dukh apna agar ham ko bataana nahin aata..

dukh apna agar ham ko bataana nahin aata
tum ko bhi to andaaza lagana nahin aata

pahuncha hai buzurgon ke bayaanon se jo ham tak
kya baat hui kyun vo zamaana nahin aata

main bhi use khone ka hunar seekh na paaya
us ko bhi mujhe chhod ke jaana nahin aata

is chhote zamaane ke bade kaise banoge
logon ko jab aapas mein ladna nahin aata

dhundhe hai to palkon pe chamakne ke bahaane
aansu ko meri aankh mein aana nahin aata

taarikh ki aankhon mein dhuaan ho gaye khud hi
tum ko to koi ghar bhi jalana nahin aata 
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दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

पहुँचा है बुज़ुर्गों के बयानों से जो हम तक
क्या बात हुई क्यूँ वो ज़माना नहीं आता

मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया
उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता

इस छोटे ज़माने के बड़े कैसे बनोगे
लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता

ढूँढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने
आँसू को मिरी आँख में आना नहीं आता

तारीख़ की आँखों में धुआँ हो गए ख़ुद ही
तुम को तो कोई घर भी जलाना नहीं आता
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aate aate mera naam sa rah gaya..

aate aate mera naam sa rah gaya
us ke honton pe kuchh kaanpata rah gaya

raat mujrim thi daaman bacha le gai
din gawaahon. ki saf mein khada rah gaya

vo mere saamne hi gaya aur main
raaste ki tarah dekhta rah gaya

jhooth waale kahi se kahi badh gaye
aur main tha ki sach bolta rah gaya

aandhiyon ke iraade to achhe na the
ye diya kaise jalta hua rah gaya

us ko kaandhon pe le ja rahe hain waseem
aur vo jeene ka haq maangata rah gaya 
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आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया

रात मुजरिम थी दामन बचा ले गई
दिन गवाहों की सफ़ में खड़ा रह गया

वो मिरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

उस को काँधों पे ले जा रहे हैं 'वसीम'
और वो जीने का हक़ माँगता रह गया
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chala hai silsila kaisa ye raaton ko manaane ka..

chala hai silsila kaisa ye raaton ko manaane ka
tumhein haq de diya kisne diyon ke dil dukhaane ka

iraada chhodiye apni hadon se door jaane ka
zamaana hai zamaane ki nigaahon mein na aane ka

kahaan ki dosti kin doston ki baat karte ho
miyaan dushman nahin milta koi ab to thikaane ka

nigaahon mein koi bhi doosra chehra nahin aaya
bharosa hi kuchh aisa tha tumhaare laut aane ka

ye main hi tha bacha ke khud ko le aaya kinaare tak
samandar ne bahut mauqa diya tha doob jaane ka 
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चला है सिलसिला कैसा ये रातों को मनाने का
तुम्हें हक़ दे दिया किसने दियों के दिल दुखाने का

इरादा छोड़िए अपनी हदों से दूर जाने का
ज़माना है ज़माने की निगाहों में न आने का

कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का

निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का

ये मैं ही था बचा के ख़ुद को ले आया किनारे तक
समन्दर ने बहुत मौक़ा दिया था डूब जाने का
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kaun-si baat kahaan kaise kahi jaati hai..

kaun-si baat kahaan kaise kahi jaati hai
ye saleeqa ho to har baat sooni jaati hai

jaisa chaaha tha tujhe dekh na paaye duniya
dil mein bas ek ye hasrat hi rahi jaati hai

ek bigdi hui aulaad bhala kya jaane
kaise maa-baap ke honthon se hasi jaati hai

karz ka bojh uthaaye hue chalne ka azaab
jaise sar par koi deewaar giri jaati hai

apni pehchaan mita dena ho jaise sab kuchh
jo nadi hai vo samandar se mili jaati hai

poochna hai to ghazal waalon se poocho jaakar
kaise har baat saleeqe se kahi jaati hai 
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कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है
ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है

जैसा चाहा था तुझे, देख न पाये दुनिया
दिल में बस एक ये हसरत ही रही जाती है

एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने
कैसे माँ-बाप के होंठों से हँसी जाती है

कर्ज़ का बोझ उठाये हुए चलने का अज़ाब
जैसे सर पर कोई दीवार गिरी जाती है

अपनी पहचान मिटा देना हो जैसे सब कुछ
जो नदी है वो समंदर से मिली जाती है

पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर
कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है
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Bhatakta phir raha hoon justuju bin..

Bhatakta phir raha hoon justuju bin
Saraapa aarzoo hoon aarzoo bin.

Koi is sheher ko taraaz kar de
Hui hai meri wahshat ha-o-hoo bin.

Ye sab mojiz-numayi ki hawas hai
Rafugar aaye hain taar-e-rafoo bin.

Maash-e-bedilaan poochho na yaaro
Numoo paate rahe rizq-e-numoo bin.

Guzar ai shauq ab khalwat ki raaten
Guzaarish bin gila bin guftagu bin.
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भटकता फिर रहा हूँ जुस्तुजू बिन
सरापा आरज़ू हूँ आरज़ू बिन

कोई इस शहर को ताराज कर दे
हुई है मेरी वहशत हा-ओ-हू बिन

ये सब मोजिज़-नुमाई की हवस है
रफ़ूगर आए हैं तार-ए-रफ़ू बिन

मआश-ए-बे-दिलाँ पूछो न यारो
नुमू पाते रहे रिज़्क़-ए-नुमू बिन

गुज़ार ऐ शौक़ अब ख़ल्वत की रातें
गुज़ारिश बिन गिला बिन गुफ़्तुगू बिन

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Na pooch us ki jo apne andar chhupa..

Na pooch us ki jo apne andar chhupa
Ghanimat ki main apne baahar chhupa.

Mujhe yahaan kisi pe bharosa nahi
Main apni nigahon se chhup kar chhupa.

Pahunch mukhbiron ki sukhun tak kahaan
So main apne honton pe aksar chhupa.

Meri sun na rakh apne pehlu mein dil
Ise tu kisi aur ke ghar chhupa.

Yahaan tere andar nahi meri khair
Meri jaan mujhe mere andar chhupa.

Khayalon ki aamad mein ye kharazaar
Hai teeron ki yalgaar tu sar chhupa.
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न पूछ उस की जो अपने अंदर छुपा
ग़नीमत कि मैं अपने बाहर छुपा

मुझे याँ किसी पे भरोसा नहीं
मैं अपनी निगाहों से छुप कर छुपा

पहुँच मुख़बिरों की सुख़न तक कहाँ
सो मैं अपने होंटों पे अक्सर छुपा

मिरी सुन न रख अपने पहलू में दिल
इसे तू किसी और के घर छुपा

यहाँ तेरे अंदर नहीं मेरी ख़ैर
मिरी जाँ मुझे मेरे अंदर छुपा

ख़यालों की आमद में ये ख़ारज़ार
है तीरों की यलग़ार तू सर छुपा

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Kaisa dil aur is ke kya gham ji..

Kaisa dil aur is ke kya gham ji
Yoonhi baatein banaate hain hum ji.

Kya bhala aasteen aur daaman
Kab se palken bhi ab nahi nam ji.

Us se ab koi baat kya karna
Khud se bhi baat keeje kam-kam ji.

Dil jo dil kya tha ek mehfil tha
Ab hai darham ji aur barham ji.

Baat be-taur ho gayi shayad
Zakhm bhi ab nahi hai marham ji.

Haar duniya se maan le shayad
Dil hamare mein ab nahi dam ji.

Hai ye hasrat ke zabh ho jaun
Hai shikan us shikam ki zaalim ji.

Kaise aakhir na rang khelen hum
Dil lahoo ho raha hai jaanam ji.

Hai kharaba Hussainiya apna
Roz majlis hai aur maatam ji.

Waqt dam bhar ka khel hai is mein
Besh-az-besh hai kam-az-kam ji.

Hai azal se abad talak ka hisaab
Aur bas ek pal hai paiham ji.

Be-shikan ho gayi hain woh zulfein
Us gali mein nahi rahe kham ji.

Dasht-e-dil ka ghazal hi na raha
Ab bhala kis se keejiye ram ji.
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कैसा दिल और इस के क्या ग़म जी
यूँही बातें बनाते हैं हम जी

क्या भला आस्तीन और दामन
कब से पलकें भी अब नहीं नम जी

उस से अब कोई बात क्या करना
ख़ुद से भी बात कीजे कम-कम जी

दिल जो दिल क्या था एक महफ़िल था
अब है दरहम जी और बरहम जी

बात बे-तौर हो गई शायद
ज़ख़्म भी अब नहीं है मरहम जी

हार दुनिया से मान ले शायद
दिल हमारे में अब नहीं दम जी

है ये हसरत के ज़ब्ह हो जाऊँ
है शिकन उस शिकम कि ज़ालिम जी

कैसे आख़िर न रंग खेलें हम
दिल लहू हो रहा है जानम जी

है ख़राबा हुसैनिया अपना
रोज़ मज्लिस है और मातम जी

वक़्त दम भर का खेल है इस में
बेश-अज़-बेश है कम-अज़-कम जी

है अज़ल से अबद तलक का हिसाब
और बस एक पल है पैहम जी

बे-शिकन हो गई हैं वो ज़ुल्फ़ें
उस गली में नहीं रहे ख़म जी

दश्त-ए-दिल का ग़ज़ाल ही न रहा
अब भला किस से कीजिए रम जी
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Main na thahroon na jaan tu thahra..

Main na thahroon na jaan tu thahra
Kaun lamhon ke roob-roo thahra.

Na guzarnay pe zindagi guzri
Na thaharnay pe chaar-soo thahra.

Hai meri bazm-e-be-dili bhi ajeeb
Dil pe rakhun jahan subu thahra.

Main yahaan muddaton mein aaya hoon
Ek hungama koo-ba-koo thahra.

Mahfil-e-rukhsat-e-hamesha hai
Aao ik hashra-e-hao-hoo thahra.

Ik tawaajjo ajab hai samton mein
Ke na boloon to guftagu thahra.

Kaza-ada thi bahut umeed magar
Hum bhi 'Joun' ek heela-ju thahra.

Ek chaak-e-barhengi hai wujud
Pairhan ho to be-rafu thahra.

Main jo hoon kya nahi hoon main khud bhi
Khud se baat aaj do-badoo thahra.

Bagh-e-jaan se mila na koi samar
'Joun' hum to namoo namoo thahra.
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मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे
कौन लम्हों के रू-ब-रू ठहरे

न गुज़रने पे ज़िंदगी गुज़री
न ठहरने पे चार-सू ठहरे

है मिरी बज़्म-ए-बे-दिली भी अजीब
दिल पे रक्खूँ जहाँ सुबू ठहरे

मैं यहाँ मुद्दतों में आया हूँ
एक हंगामा कू-ब-कू ठहरे

महफ़िल-ए-रुख़्सत-ए-हमेशा है
आओ इक हश्र-ए-हा-ओ-हू ठहरे

इक तवज्जोह अजब है सम्तों में
कि न बोलूँ तो गुफ़्तुगू ठहरे

कज-अदा थी बहुत उमीद मगर
हम भी 'जौन' एक हीला-जू ठहरे

एक चाक-ए-बरहंगी है वजूद
पैरहन हो तो बे-रफ़ू ठहरे

मैं जो हूँ क्या नहीं हूँ मैं ख़ुद भी
ख़ुद से बात आज दू-बदू ठहरे

बाग़-ए-जाँ से मिला न कोई समर
'जौन' हम तो नुमू नुमू ठहरे
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Dil se hai bahut gurez-pa tu..

Dil se hai bahut gurez-pa tu
Tu kaun hai aur hai bhi kya tu.

Kyun mujh mein gawa raha hai khud ko
Mujh aise yahaan hazaar-ha tu.

Hai teri judai aur main hoon
Milte hi kahin bichad gaya tu.

Poochhe jo tujhe koi zara bhi
Jab main na rahoon to dekhna tu.

Ik saans hi bas liya hai main ne
Tu saans na tha so kya hua tu.

Hai kaun jo tera dhyaan rakhe
Bahar mere bas kahin na ja to.
----------------------------------
दिल से है बहुत गुरेज़-पा तू
तू कौन है और है भी क्या तू

क्यूँ मुझ में गँवा रहा है ख़ुद को
मुझ ऐसे यहाँ हज़ार-हा तू

है तेरी जुदाई और मैं हूँ
मिलते ही कहीं बिछड़ गया तू

पूछे जो तुझे कोई ज़रा भी
जब मैं न रहूँ तो देखना तू

इक साँस ही बस लिया है मैं ने
तू साँस न था सो क्या हुआ तू

है कौन जो तेरा ध्यान रखे
बाहर मिरे बस कहीं न जा तो

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Woh khayal-e-muhal kis ka tha..

Woh khayal-e-muhal kis ka tha
Aina be-misaal kis ka tha.

Safar apne aap se tha main
Hijr kis ka wisaal kis ka tha.

Main to khud mein kahin na tha mojood
Mere lab par sawaal kis ka tha.

Thi meri zaat ik khayal-ashob
Jaane main hum-khayal kis ka tha.

Jab ke main har-nafas tha be-ahwal
Woh jo tha mera haal kis ka tha.

Dopehar baad-e-tund koocha-e-yaar
Woh gubaar-e-malaal kis ka tha.
-----------------------------------
वो ख़याल-ए-मुहाल किस का था
आइना बे-मिसाल किस का था

सफ़री अपने आप से था मैं
हिज्र किस का विसाल किस का था

मैं तो ख़ुद में कहीं न था मौजूद
मेरे लब पर सवाल किस का था

थी मिरी ज़ात इक ख़याल-आशोब
जाने मैं हम-ख़याल किस का था

जब कि मैं हर-नफ़स था बे-अहवाल
वो जो था मेरा हाल किस का था

दोपहर बाद-ए-तुंद कूचा-ए-यार
वो ग़ुबार-ए-मलाल किस का था

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Shaam tak meri bekali hai sharab..

Shaam tak meri bekali hai sharab
Shaam ko meri sarkhushi hai sharab.

Jahil-e-waiz ka is ko raas aaye
Sahibo meri aagahi hai sharab.

Rang-ras hai meri ragon mein ravaan
Bakhuda meri zindagi hai sharab.

Naaz hai apni dilbari pe mujhe
Mera dil meri dilbari hai sharab.

Hai ghanimat jo hosh mein nahi main
Shaikh tujh ko bacha rahi hai sharab.

Hiss jo hoti to jaane kya karta
Mufitiyon meri behisi hai sharab.
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शाम तक मेरी बेकली है शराब
शाम को मेरी सरख़ुशी है शराब

जहल-ए-वाइ'ज़ का इस को रास आए
साहिबो मेरी आगही है शराब

रंग-रस है मेरी रगों में रवाँ
ब-ख़ुदा मेरी ज़िंदगी है शराब

नाज़ है अपनी दिलबरी पे मुझे
मेरा दिल मेरी दिलबरी है शराब

है ग़नीमत जो होश में नहीं मैं
शैख़ तुझ को बचा रही है शराब

हिस जो होती तो जाने क्या करता
मुफ़्तियों मेरी बे-हिसी है शराब

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Kya kahen tum se boud-o-baash apni..

Kya kahen tum se boud-o-baash apni
Kaam hi kya wahi talaash apni

Koi dam aisi zindagi bhi karein
Apna seena ho aur kharash apni

Apne hi tisha-e-nadamat se
Zaat hai ab to paash paash apni

Hai labon par nafas-zani ki dukaan
Yawa-goi hai bas maash apni

Teri soorat pe hoon nisaara ab
Aur soorat koi taraash apni

Jism o jaan ko to bech hi daala
Ab mujhe bechni hai laash apni
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क्या कहें तुम से बूद-ओ-बाश अपनी
काम ही क्या वही तलाश अपनी

कोई दम ऐसी ज़िंदगी भी करें
अपना सीना हो और ख़राश अपनी

अपने ही तेशा-ए-नदामत से
ज़ात है अब तो पाश पाश अपनी

है लबों पर नफ़स-ज़नी की दुकाँ
यावा-गोई है बस मआश अपनी

तेरी सूरत पे हूँ निसार प अब
और सूरत कोई तराश अपनी

जिस्म ओ जाँ को तो बेच ही डाला
अब मुझे बेचनी है लाश अपनी

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Gham hai be-maazra kai din se..

Gham hai be-maazra kai din se
Ji nahi lag raha kai din se

Be-shameem-o-malaal-o-hairaan hai
Khema-gaah-e-sabaa kai din se

Dil-mohalle ki us gali mein bhala
Kyun nahi gul macha kai din se

Woh jo khushboo hai us ke qaasid ko
Main nahi mil saka kai din se

Us se bhi aur apne aap se bhi
Hum hain be-waasta kai din se
-------------------------------
ग़म है बे-माजरा कई दिन से
जी नहीं लग रहा कई दिन से

बे-शमीम-ओ-मलाल-ओ-हैराँ है
ख़ेमा-गाह-ए-सबा कई दिन से

दिल-मोहल्ले की उस गली में भला
क्यूँ नहीं गुल मचा कई दिन से

वो जो ख़ुश्बू है उस के क़ासिद को
मैं नहीं मिल सका कई दिन से

उस से भी और अपने आप से भी
हम हैं बे-वासता कई दिन से

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Na koi hijr na koi wisal hai shaayad..

Na koi hijr na koi wisal hai shaayad
Bas ek haalat-e-be-maah-o-saal hai shaayad

Hua hai dair-o-haram mein jo mutakif woh yaqeen
Takaan-e-kashmakash-e-ihtimaal hai shaayad

Khayaal-o-wahm se bartar hai us ki zaat so woh
Nihayat-e-hawas-e-khadd-o-khaal hai shaayad

Main sat-h-e-harf pe tujh ko utaar laaya hoon
Tira zawaal hi mera kamaal hai shaayad

Main ek lamha-e-maujood se idhar na udhar
So jo bhi mere liye hai muhaal hai shaayad

Woh inhimak har ik kaam mein ki khatam na ho
To koi baat hui hai malaal hai shaayad

Gumaan hua hai ye amboh se jawaabon ke
Sawaal khud hi jawab-e-sawaal hai shaaya
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न कोई हिज्र न कोई विसाल है शायद
बस एक हालत-ए-बे-माह-ओ-साल है शायद

हुआ है दैर-ओ-हरम में जो मोतकिफ़ वो यक़ीन
तकान-ए-कश्मकश-ए-एहतिमाल है शायद

ख़याल-ओ-वहम से बरतर है उस की ज़ात सो वो
निहायत-ए-हवस-ए-ख़द्द-ओ-ख़ाल है शायद

मैं सत्ह-ए-हर्फ़ पे तुझ को उतार लाया हूँ
तिरा ज़वाल ही मेरा कमाल है शायद

मैं एक लम्हा-ए-मौजूद से इधर न उधर
सो जो भी मेरे लिए है मुहाल है शायद

वो इंहिमाक हर इक काम में कि ख़त्म न हो
तो कोई बात हुई है मलाल है शायद

गुमाँ हुआ है ये अम्बोह से जवाबों के
सवाल ख़ुद ही जवाब-ए-सवाल है शायद

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Ek gumaan ka haal hai aur faqat gumaan mein hai..

Ek gumaan ka haal hai aur faqat gumaan mein hai
Kis ne azaab-e-jaan saha kaun azaab-e-jaan mein hai

Lamhah-ba-lamhah dam-ba-dam aan-ba-aan ram-ba-ram
Main bhi guzishtagaan mein hoon tu bhi guzishtagaan mein hai

Aadam-o-zaat-e-kibriya karb mein hain juda-juda
Kya kahoon un ka maazra jo bhi hai imtihaan mein hai

Shaakh se udh gaya parindah hai dil-e-shaam-e-dard-mand
Sahan mein hai malaal sa huzn sa aasmaan mein hai

Khud mein bhi be-amaan hoon main tujh mein bhi be-amaan hoon main
Kaun sahega us ka gham woh jo meri amaan mein hai

Kaisa hisaab kya hisaab haalat-e-haal hai azaab
Zakhm nafas nafas mein hai zehr zama zama mein hai

Us ka firaaq bhi ziyan us ka wisal bhi ziyan
Ek ajeeb kashmakash halqa-e-be-dilaan mein hai

Bood-o-nabood ka hisaab main nahi jaanta magar
Saare wujood ki nahi mere adam ki haan mein hai
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एक गुमाँ का हाल है और फ़क़त गुमाँ में है
किस ने अज़ाब-ए-जाँ सहा कौन अज़ाब-ए-जाँ में है

लम्हा-ब-लम्हा दम-ब-दम आन-ब-आन रम-ब-रम
मैं भी गुज़िश्तगाँ में हूँ तू भी गुज़िश्तगाँ में है

आदम-ओ-ज़ात-ए-किब्रिया कर्ब में हैं जुदा जुदा
क्या कहूँ उन का माजरा जो भी है इम्तिहाँ में है

शाख़ से उड़ गया परिंद है दिल-ए-शाम-ए-दर्द-मंद
सहन में है मलाल सा हुज़्न सा आसमाँ में है

ख़ुद में भी बे-अमाँ हूँ मैं तुझ में भी बे-अमाँ हूँ मैं
कौन सहेगा उस का ग़म वो जो मिरी अमाँ में है

कैसा हिसाब क्या हिसाब हालत-ए-हाल है अज़ाब
ज़ख़्म नफ़स नफ़स में है ज़हर ज़माँ ज़माँ में है

उस का फ़िराक़ भी ज़ियाँ उस का विसाल भी ज़ियाँ
एक अजीब कश्मकश हल्क़ा-ए-बे-दिलाँ में है

बूद-ओ-नबूद का हिसाब मैं नहीं जानता मगर
सारे वजूद की नहीं मेरे अदम की हाँ में है

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Ik zakhm bhi yaaran-e-bismil nahi aane ka..

Ik zakhm bhi yaaran-e-bismil nahi aane ka
Maqtal mein pade rahiye qaatil nahi aane ka

Ab kooch karo yaaro sahra se ki sunte hain
Sahra mein ab ainda mehmal nahi aane ka

Wa'iz ko kharaabe mein ik dawat-e-haq dee thi
Main jaan raha tha woh jaahil nahi aane ka

Buniyaad-e-jahan pehle jo thi wohi ab bhi hai
Yoon hashr to yaaran-e-yak-dil nahi aane ka

But hai ki Khuda hai woh maana hai na maanunga
Us shokh se jab tak main khud mil nahi aane ka

Gar dil ki yeh mehfil hai kharcha bhi ho phir dil ka
Bahar se to samaan-e-mehfil nahi aane ka

Woh naaf pyale se sarmast kare warna
Ho ke main kabhi us ka qail nahi aane ka
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इक ज़ख़्म भी यारान-ए-बिस्मिल नहीं आने का
मक़्तल में पड़े रहिए क़ातिल नहीं आने का

अब कूच करो यारो सहरा से कि सुनते हैं
सहरा में अब आइंदा महमिल नहीं आने का

वाइ'ज़ को ख़राबे में इक दावत-ए-हक़ दी थी
मैं जान रहा था वो जाहिल नहीं आने का

बुनियाद-ए-जहाँ पहले जो थी वही अब भी है
यूँ हश्र तो यारान-ए-यक-दिल नहीं आने का

बुत है कि ख़ुदा है वो माना है न मानूँगा
उस शोख़ से जब तक मैं ख़ुद मिल नहीं आने का

गर दिल की ये महफ़िल है ख़र्चा भी हो फिर दिल का
बाहर से तो सामान-ए-महफ़िल नहीं आने का

वो नाफ़ प्याले से सरमस्त करे वर्ना
हो के मैं कभी उस का क़ाइल नहीं आने का

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Kya ho gaya hai gesoo-e-khamdar ko tire..

Kya ho gaya hai gesoo-e-khamdar ko tire
Azad kar rahe hain giraftar ko tire

Ab tu hai muddaton se shab-o-roz roob-roo
Kitne hi din guzar gaye didaar ko tire

Kal raat chobdar samet aa ke le gaya
Ik gol tarah-daar-e-sar-e-daar ko tire

Ab itni kund ho gayi dhaar ai yaqeen tire
Ab rokta nahi hai koi waar ko tire

Ab rishta-e-mareez-o-masiha hua hai khwaar
Sab pesha-war samajhte hain beemaar ko tire

Bahar nikal ke aa dar-o-deewar-e-zaat se
Le jaayegi hawa dar-o-deewar ko tire

Ai rang us mein sood hai tera ziyan nahi
Khushboo uda ke le gayi zangaar ko tire
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क्या हो गया है गेसू-ए-ख़मदार को तिरे
आज़ाद कर रहे हैं गिरफ़्तार को तिरे

अब तू है मुद्दतों से शब-ओ-रोज़ रू-ब-रू
कितने ही दिन गुज़र गए दीदार को तिरे

कल रात चोबदार समेत आ के ले गया
इक ग़ोल तरह-दार-ए-सर-ए-दार को तिरे

अब इतनी कुंद हो गई धार ऐ यक़ीं तिरी
अब रोकता नहीं है कोई वार को तिरे

अब रिश्ता-ए-मरीज़-ओ-मसीहा हुआ है ख़्वार
सब पेशा-वर समझते हैं बीमार को तिरे

बाहर निकल के आ दर-ओ-दीवार-ए-ज़ात से
ले जाएगी हवा दर-ओ-दीवार को तिरे

ऐ रंग उस में सूद है तेरा ज़ियाँ नहीं
ख़ुशबू उड़ा के ले गई ज़ंगार को तिरे

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Dhoop uthata hoon ki ab sar pe koi baar nahi..

Dhoop uthata hoon ki ab sar pe koi baar nahi
Beech deewar hai aur saaya-e-deewar nahi

Shahr ki gasht mein hain subah se saare Mansoor
Ab to Mansoor wahi hai jo sar-e-daar nahi

Mat suno mujh se jo aazaar uthane honge
Ab ke aazaar ye phaila hai ki aazaar nahi

Sochta hoon ki bhala umr ka hasal kya tha
Umr-bhar saans liye aur koi ambar nahi

Jin dukaanon ne lagaaye the nighah mein bazaar
Un dukaanon ka ye rona hai ki bazaar nahi

Ab woh haalat hai ki thak kar main Khuda ho jaoon
Koi dil-daar nahi koi dil-azaar nahi

Mujh se tum kaam na lo kaam mein laao mujh ko
Koi to shahr mein aisa hai ki be-kaar nahi

Yaad-e-aashob ka aalam to woh aalam hai ki ab
Yaad maston ko tiri yaad bhi darkaar nahi

Waqt ko sood pe de aur na rakh koi hisaab
Ab bhala kaisa ziyan koi khareedar nahi
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धूप उठाता हूँ कि अब सर पे कोई बार नहीं
बीच दीवार है और साया-ए-दीवार नहीं

शहर की गश्त में हैं सुब्ह से सारे मंसूर
अब तो मंसूर वही है जो सर-ए-दार नहीं

मत सुनो मुझ से जो आज़ार उठाने होंगे
अब के आज़ार ये फैला है कि आज़ार नहीं

सोचता हूँ कि भला उम्र का हासिल क्या था
उम्र-भर साँस लिए और कोई अम्बार नहीं

जिन दुकानों ने लगाए थे निगह में बाज़ार
उन दुकानों का ये रोना है कि बाज़ार नहीं

अब वो हालत है कि थक कर मैं ख़ुदा हो जाऊँ
कोई दिलदार नहीं कोई दिल-आज़ार नहीं

मुझ से तुम काम न लो काम में लाओ मुझ को
कोई तो शहर में ऐसा है कि बे-कार नहीं

याद-ए-आशोब का आलम तो वो आलम है कि अब
याद मस्तों को तिरी याद भी दरकार नहीं

वक़्त को सूद पे दे और न रख कोई हिसाब
अब भला कैसा ज़ियाँ कोई ख़रीदार नहीं

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Jo guzar dushman hai us ka rahguzar rakhha hai naam..

Jo guzar dushman hai us ka rahguzar rakhha hai naam
Zaat se apni na hilne ka safar rakhha hai naam

Pad gaya hai ik bhawar us ko samajh baithe hain ghar
Lahar uthi hai lahar ka deewar-o-dar rakhha hai naam

Naam jis ka bhi nikal jaye usi par hai madar
Us ka hona ya na hona kya, magar rakhha hai naam

Hum yahaan khud aaye hain laaya nahi koi humein
Aur Khuda ka hum ne apne naam par rakhha hai naam

Chaak-e-chaaki dekh kar pairahan-e-pahnai ki
Main ne apne har nafs ka bakhiya-gar rakhha hai naam

Mera seena koi chalni bhi agar kar de to kya
Main ne to ab apne seene ka sipar rakhha hai naam

Din hue par tu kahin hona kisi bhi shakl mein
Jaag kar khwabon ne tera raat bhar rakhha hai naam
------------------------------------------------------
जो गुज़र दुश्मन है उस का रहगुज़र रक्खा है नाम
ज़ात से अपनी न हिलने का सफ़र रक्खा है नाम

पड़ गया है इक भँवर उस को समझ बैठे हैं घर
लहर उठी है लहर का दीवार-ओ-दर रक्खा है नाम

नाम जिस का भी निकल जाए उसी पर है मदार
उस का होना या न होना क्या, मगर रक्खा है नाम

हम यहाँ ख़ुद आए हैं लाया नहीं कोई हमें
और ख़ुदा का हम ने अपने नाम पर रक्खा है नाम

चाक-ए-चाकी देख कर पैराहन-ए-पहनाई की
मैं ने अपने हर नफ़्स का बख़िया-गर रक्खा है नाम

मेरा सीना कोई छलनी भी अगर कर दे तो क्या
मैं ने तो अब अपने सीने का सिपर रक्खा है नाम

दिन हुए पर तू कहीं होना किसी भी शक्ल में
जाग कर ख़्वाबों ने तेरा रात भर रक्खा है नाम

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Shikwa avval to be-hisaab kiya..

Shikwa avval to be-hisaab kiya
Aur phir band hi ye baab kiya

Jaante the badi awam jise
Hum ne us se bhi ijtinaab kiya

Thi kisi shakhs ki talash mujhe
Main ne khud ko hi intikhaab kiya

Ik taraf main hoon ik taraf tum ho
Jaane kis ne kise kharaab kiya

Aakhir ab kis ki baat maanun main
Jo mila us ne la-jawab kiya

Yoon samajh tujh ko muztarib pa kar
Main ne izhaar-e-iztiraab kiya
--------------------------------
शिकवा अव्वल तो बे-हिसाब किया
और फिर बंद ही ये बाब किया

जानते थे बदी अवाम जिसे
हम ने उस से भी इज्तिनाब किया

थी किसी शख़्स की तलाश मुझे
मैं ने ख़ुद को ही इंतिख़ाब किया

इक तरफ़ मैं हूँ इक तरफ़ तुम हो
जाने किस ने किसे ख़राब किया

आख़िर अब किस की बात मानूँ मैं
जो मिला उस ने ला-जवाब किया

यूँ समझ तुझ को मुज़्तरिब पा कर
मैं ने इज़हार-ए-इज़्तिराब किया

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Na to dil ka na jaan ka daftar hai..

Na to dil ka na jaan ka daftar hai
Zindagi ik ziyan ka daftar hai

Padh raha hoon main kaaghazaat-e-wujud
Aur nahi aur haan ka daftar hai

Koi soche to sooz-e-karb-e-jaan
Saara daftar gumaan ka daftar hai

Hum mein se koi to kare israr
Ke zameen aasman ka daftar hai

Hijr taa-til-e-jism-o-jaan hai miyaan
Wasl jism aur jaan ka daftar hai

Woh jo daftar hai aasmani-tar
Woh miyaan ji yahaan ka daftar hai

Hai jo bood-o-nabood ka daftar
Aakhirash yeh kahaan ka daftar hai

Jo haqeeqat hai dam-b-dam ki yaad
Woh to ik daastaan ka daftar hai

Ho raha hai guzishtagaa ka hisaab
Aur aaindagaan ka daftar hai
--------------------------------
न तो दिल का न जाँ का दफ़्तर है
ज़िंदगी इक ज़ियाँ का दफ़्तर है

पढ़ रहा हूँ मैं काग़ज़ात-ए-वजूद
और नहीं और हाँ का दफ़्तर है

कोई सोचे तो सोज़-ए-कर्ब-ए-जाँ
सारा दफ़्तर गुमाँ का दफ़्तर है

हम में से कोई तो करे इसरार
कि ज़मीं आसमाँ का दफ़्तर है

हिज्र ता'तील-ए-जिस्म-ओ-जाँ है मियाँ
वस्ल जिस्म और जाँ का दफ़्तर है

वो जो दफ़्तर है आसमानी-तर
वो मियाँ जी यहाँ का दफ़्तर है

है जो बूद-ओ-नबूद का दफ़्तर
आख़िरश ये कहाँ का दफ़्तर है

जो हक़ीक़त है दम-ब-दम की याद
वो तो इक दास्ताँ का दफ़्तर है

हो रहा है गुज़िश्तगाँ का हिसाब
और आइंदगाँ का दफ़्तर है

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Shamshir meri, meri sipar kis ke paas hai..

Shamshir meri, meri sipar kis ke paas hai
Do mera khud par mera sar kis ke paas hai

Darpesh ek kaam hai himmat ka saathiyo
Kasna hai mujh ko meri kamar kis ke paas hai

Taari ho mujh pe kaun si haalat mujhe batao
Mera hisaab-e-naf-o-zarar kis ke paas hai

Ai Ahl-e-shahr main to dua-go-e-shahr hoon
Lab par mere dua hai asar kis ke paas hai

Daad-o-sitad ke shahr mein hone ko aayi shaam
Khwaahish hai mere paas khabar kis ke paas hai

Pur-haal hoon, p surat-e-ahaal kuch nahi
Hairat hai mere paas nazar kis ke paas hai

Ik aftaab hai meri jeb-e-nigah mein
Pehenai-e-numood-e-seher kis ke paas hai

Qissa kishore ka nahi koshak ka hai ki hai
Darwaza sab ke paas hai ghar kis ke paas hai

Mehmaan-e-qasr hain humein kuch ramz chahiyein
Yeh pooch ke batao khandar kis ke paas hai

Uthla sa naaf-pyaala hamari nahi talash
Ai ladkiyo! Batao bhawar kis ke paas hai

Naakhun badhe hue hain mere mujh se kar hazar
Yeh ja ke dekh nail-cutter kis ke paas hai
-------------------------------------------
शमशीर मेरी, मेरी सिपर किस के पास है
दो मेरा ख़ूद पर मिरा सर किस के पास है

दरपेश एक काम है हिम्मत का साथियो
कसना है मुझ को मेरी कमर किस के पास है

तारी हो मुझ पे कौन सी हालत मुझे बताओ
मेरा हिसाब-ए-नफ़-ओ-ज़रर किस के पास है

ऐ अहल-ए-शहर मैं तो दुआ-गो-ए-शहर हूँ
लब पर मिरे दुआ है असर किस के पास है

दाद-ओ-सितद के शहर में होने को आई शाम
ख़्वाहिश है मेरे पास ख़बर किस के पास है

पुर-हाल हूँ प सूरत-ए-अहवाल कुछ नहीं
हैरत है मेरे पास नज़र किस के पास है

इक आफ़्ताब है मिरी जेब-ए-निगाह में
पहनाई-ए-नुमूद-ए-सहर किस के पास है

क़िस्सा किशोर का नहीं कोशक का है कि है
दरवाज़ा सब के पास है घर किस के पास है

मेहमान-ए-क़स्र हैं हमें कुछ रम्ज़ चाहिएँ
ये पूछ के बताओ खंडर किस के पास है

उथला सा नाफ़-प्याला हमारी नहीं तलाश
ऐ लड़कियो! बताओ भँवर किस के पास है

नाख़ुन बढ़े हुए हैं मिरे मुझ से कर हज़र
ये जा के देख नेल-कटर किस के पास है

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Dil jo ik jaay thi duniya hui aabaad us mein..

Dil jo ik jaay thi duniya hui aabaad us mein
Pehle sunte hain ki rehti thi koi yaad us mein

Woh jo tha apna gumaan aaj bohot yaad aaya
Thi ajab rahat-e-aazaadi-e-ijad us mein

Ek hi to woh muhim thi jise sar karna tha
Mujhe hasil na kisi ki hui imdaad us mein

Ek khushboo mein rahi mujh ko talash-e-khud-o-khaal
Rang faslein meri yaaro huiin barbaad us mein

Bagh-e-jaan se tu kabhi raat gaye guzra hai
Kehte hain raat mein khelen hain pari-zaad us mein

Dil-mohalle mein ajab ek qafas tha yaaro
Said ko chhod ke rehne laga sayyad us mein
-------------------------------------------
दिल जो इक जाए थी दुनिया हुई आबाद उस में
पहले सुनते हैं कि रहती थी कोई याद उस में

वो जो था अपना गुमान आज बहुत याद आया
थी अजब राहत-ए-आज़ादी-ए-ईजाद उस में

एक ही तो वो मुहिम थी जिसे सर करना था
मुझे हासिल न किसी की हुई इमदाद उस में

एक ख़ुश्बू में रही मुझ को तलाश-ए-ख़द-ओ-ख़ाल
रंग फ़सलें मिरी यारो हुईं बरबाद उस में

बाग़-ए-जाँ से तू कभी रात गए गुज़रा है
कहते हैं रात में खेलें हैं परी-ज़ाद उस में

दिल-मोहल्ले में अजब एक क़फ़स था यारो
सैद को छोड़ के रहने लगा सय्याद उस में

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Khud se rishtay rahe kahan un ke..

Khud se rishtay rahe kahan un ke
Gham to jaane the raayegan un ke

Mast un ko gumaan mein rehne de
Khaana-barbaad hain gumaan un ke

Yaar sukh neend ho naseeb un ko
Dukh yeh hai dukh hain be-amaan un ke

Kitni sar-sabz thi zameen un ki
Kitne neele the aasman un ke

Nauha-khwani hai kya zaroor unhein
Un ke naghme hain nauha-khwan un ke
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ख़ुद से रिश्ते रहे कहाँ उन के
ग़म तो जाने थे राएगाँ उन के

मस्त उन को गुमाँ में रहने दे
ख़ाना-बर्बाद हैं गुमाँ उन के

यार सुख नींद हो नसीब उन को
दुख ये है दुख हैं बे-अमाँ उन के

कितनी सरसब्ज़ थी ज़मीं उन की
कितने नीले थे आसमाँ उन के

नौहा-ख़्वानी है क्या ज़रूर उन्हें
उन के नग़्मे हैं नौहा-ख़्वाँ उन के

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Tiflaan-e-koocha-gard ke patthar bhi kuch nahi..

Tiflaan-e-koocha-gard ke patthar bhi kuch nahi
Sauda bhi ek wahm hai aur sar bhi kuch nahi

Main aur khud ko tujh se chhupaunga ya'ni main
Le dekh le miyaan mere andar bhi kuch nahi

Bas ik gubaar-e-wahm hai ik koocha-gard ka
Deewar-e-bood kuch nahi aur dar bhi kuch nahi

Yeh shahar-daar-o-muhtasib-o-maulvi hi kya
Peer-e-mughan-o-rind-o-qalandar bhi kuch nahi

Shaikh-e-haram-luqma ki parwa hai kyun tumhein
Masjid bhi uski kuch nahi mimbar bhi kuch nahi

Maqdoor apna kuch bhi nahi is dayar mein
Shayad woh zabr hai ke muqaddar bhi kuch nahi

Jaane main tere naaf-piyaale pe hoon fida
Yeh aur baat hai tera paikar bhi kuch nahi

Yeh shab ka raqs-o-rang to kya sun meri kuhn
Subh-e-shitaab-kosh ko daftar bhi kuch nahi

Bas ik gubaar Toor-e-gumaan ka hai teh-ba-teh
Ya'ni nazar bhi kuch nahi manzar bhi kuch nahi

Hai ab to ek jaal sukoon-e-hameshgi
Parwaz ka to zikr hi kya par bhi kuch nahi

Kitna daraawna hai yeh shahar-e-nabood-o-bood
Aisa daraawna ki yahaan dar bhi kuch nahi

Pehlu mein hai jo mere kahin aur hai woh shakhs
Ya'ni wafa-e-ahad ka bistar bhi kuch nahi

Nisbat mein un ki jo hai aziyyat woh hai magar
Shehrag bhi koi shay nahi aur sar bhi kuch nahi

Yaaran tumhein jo mujh se gila hai to kis liye
Mujh ko to aitiraaz Khuda par bhi kuch nahi

Guzregi 'Jau'n' shahar mein rishton ke kis tarah
Dil mein bhi kuch nahi hai zubaan par bhi kuch nahi
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तिफ़्लान-ए-कूचा-गर्द के पत्थर भी कुछ नहीं
सौदा भी एक वहम है और सर भी कुछ नहीं

मैं और ख़ुद को तुझ से छुपाऊँगा या'नी मैं
ले देख ले मियाँ मिरे अंदर भी कुछ नहीं

बस इक गुबार-ए-वहम है इक कूचा-गर्द का
दीवार-ए-बूद कुछ नहीं और दर भी कुछ नहीं

ये शहर-दार-ओ-मुहतसिब-ओ-मौलवी ही क्या
पीर-ए-मुग़ान-ओ-रिन्द-ओ-क़लंदर भी कुछ नहीं

शैख़-ए-हराम-लुक़्मा की पर्वा है क्यूँ तुम्हें
मस्जिद भी उस की कुछ नहीं मिम्बर भी कुछ नहीं

मक़्दूर अपना कुछ भी नहीं इस दयार में
शायद वो जब्र है कि मुक़द्दर भी कुछ नहीं

जानी मैं तेरे नाफ़-पियाले पे हूँ फ़िदा
ये और बात है तिरा पैकर भी कुछ नहीं

ये शब का रक़्स-ओ-रंग तो क्या सुन मिरी कुहन
सुब्ह-ए-शिताब-कोश को दफ़्तर भी कुछ नहीं

बस इक ग़ुबार तूर-ए-गुमाँ का है तह-ब-तह
या'नी नज़र भी कुछ नहीं मंज़र भी कुछ नहीं

है अब तो एक जाल सुकून-ए-हमेशगी
पर्वाज़ का तो ज़िक्र ही क्या पर भी कुछ नहीं

कितना डरावना है ये शहर-ए-नबूद-ओ-बूद
ऐसा डरावना कि यहाँ डर भी कुछ नहीं

पहलू में है जो मेरे कहीं और है वो शख़्स
या'नी वफ़ा-ए-अहद का बिस्तर भी कुछ नहीं

निस्बत में उन की जो है अज़िय्यत वो है मगर
शह-रग भी कोई शय नहीं और सर भी कुछ नहीं

याराँ तुम्हें जो मुझ से गिला है तो किस लिए
मुझ को तो ए'तिराज़ ख़ुदा पर भी कुछ नहीं

गुज़रेगी 'जौन' शहर में रिश्तों के किस तरह
दिल में भी कुछ नहीं है ज़बाँ पर भी कुछ नहीं

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Dil ka dayar-e-khwaab mein door talak guzar raha..

Dil ka dayar-e-khwaab mein door talak guzar raha
Paanv nahi the darmiyaan aaj bada safar raha

Ho na saka humein kabhi apna khayal tak naseeb
Naqsh kisi khayal ka lau-e-khayal par raha

Naqsh-garon se chahiye naqsh o nigaar ka hisaab
Rang ki baat mat karo rang bahut bikhar raha

Jaane gumaan ki woh gali aisi jagah hai kaun si
Dekh rahe ho tum ki main phir wahin ja ke mar raha

Dil mere dil mujhe bhi tum apne khawaas mein rakho
Yaaran tumhare baab mein main hi na motabar raha

Shahar-e-firaq-e-yaar se aayi hai ik khabar mujhe
Koocha-e-yaad-e-yaar se koi nahi ubhar raha
-------------------------------------------------
दिल का दयार-ए-ख़्वाब में दूर तलक गुज़र रहा
पाँव नहीं थे दरमियाँ आज बड़ा सफ़र रहा

हो न सका हमें कभी अपना ख़याल तक नसीब
नक़्श किसी ख़याल का लौह-ए-ख़याल पर रहा

नक़्श-गरों से चाहिए नक़्श ओ निगार का हिसाब
रंग की बात मत करो रंग बहुत बिखर रहा

जाने गुमाँ की वो गली ऐसी जगह है कौन सी
देख रहे हो तुम कि मैं फिर वहीं जा के मर रहा

दिल मिरे दिल मुझे भी तुम अपने ख़वास में रखो
याराँ तुम्हारे बाब में मैं ही न मो'तबर रहा

शहर-ए-फ़िराक़-ए-यार से आई है इक ख़बर मुझे
कूचा-ए-याद-ए-यार से कोई नहीं उभर रहा

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Maskan-e-maah-o-saal chhod gaya..

Maskan-e-maah-o-saal chhod gaya
Dil ko us ka khayal chhod gaya

Tazah-dam jism-o-jaan the furqat mein
Wasl us ka nidhaal chhod gaya

Ahd-e-maazi jo tha ajab pur-haal
Ek veeraan haal chhod gaya

Jhala-baari ke marhalon ka safar
Qafile payemal chhod gaya

Dil ko ab ye bhi yaad ho ke na ho
Kaun tha kya malaal chhod gaya

Main bhi ab khud se hoon jawab-talab
Woh mujhe be-sawaal chhod gaya
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मस्कन-ए-माह-ओ-साल छोड़ गया
दिल को उस का ख़याल छोड़ गया

ताज़ा-दम जिस्म-ओ-जाँ थे फ़ुर्क़त में
वस्ल उस का निढाल छोड़ गया

अहद-ए-माज़ी जो था अजब पुर-हाल
एक वीरान हाल छोड़ गया

झाला-बारी के मरहलों का सफ़र
क़ाफ़िले पाएमाल छोड़ गया

दिल को अब ये भी याद हो कि न हो
कौन था क्या मलाल छोड़ गया

मैं भी अब ख़ुद से हूँ जवाब-तलब
वो मुझे बे-सवाल छोड़ गया

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Shahar-ba-shahar kar safar zad-e-safar liye bagair..

Shahar-ba-shahar kar safar zad-e-safar liye bagair
Koi asar kiye bagair koi asar liye bagair

Koh-o-kamar mein hum-safir kuch nahi ab bujhz hawa
Dekhiyo paltiyo na aaj shahar se par liye bagair

Waqt ke ma'rake mein thiin mujh ko riayatain hawas
Main sar-e-ma'raka gaya apni sipar liye bagair

Kuch bhi ho qatl-gaah mein husn-e-badan ka hai zarr
Hum na kahin se aayein ge dosh pe sar liye bagair

Karya-e-geri mein mera gerya hunar-warana hai
Yaan se kahin taloonga main daad-e-hunar liye bagair

Us ke bhi kuch gile hain dil unka hisaab tum rakho
Deed ne us mein ki basar us ki khabar liye bagair

Us ka sukhun bhi ja se hai aur wo ye ke 'Jau' tum
Shohra-e-shahar ho to kya shahar mein ghar liye bagair
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शहर-ब-शहर कर सफ़र ज़ाद-ए-सफ़र लिए बग़ैर
कोई असर किए बग़ैर कोई असर लिए बग़ैर

कोह-ओ-कमर में हम-सफ़ीर कुछ नहीं अब ब-जुज़ हवा
देखियो पलटियो न आज शहर से पर लिए बग़ैर

वक़्त के मा'रके में थीं मुझ को रिआयतें हवस
मैं सर-ए-मा'रका गया अपनी सिपर लिए बग़ैर

कुछ भी हो क़त्ल-गाह में हुस्न-ए-बदन का है ज़रर
हम न कहीं से आएँगे दोश पे सर लिए बग़ैर

करया-ए-गिरया में मिरा गिर्या हुनर-वराना है
याँ से कहीं टलूँगा मैं दाद-ए-हुनर लिए बग़ैर

उस के भी कुछ गिले हैं दिल उन का हिसाब तुम रखो
दीद ने उस में की बसर उस की ख़बर लिए बग़ैर

उस का सुख़न भी जा से है और वो ये कि 'जौन' तुम
शोहरा-ए-शहर हो तो क्या शहर में घर लिए बग़ैर

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Ranj hai haalate-safar haal-e-qayaam, ranj hai..

Ranj hai haalate-safar haal-e-qayaam, ranj hai
Subah-ba-subah ranj hai shaam-ba-shaam ranj hai

Us ki shameem-e-zulf ka kaise ho shukriya ada
Jab ke shameem ranj hai, jab ke masham ranj hai

Said to kya ke said-kaar khud bhi nahi ye jaanta
Daana bhi ranj hai yahani ke daam ranj hai

Maani-e-Jaavedaan-e-jaan kuch bhi nahi magar ziyaan
Saare kaleem hain zabaan, saara kalaam ranj hai

Baba Alif meri numood ranj hai aap ke ba-qoul
Kya mera naam bhi hai ranj, haan tera naam ranj hai

Kasa gadaagari ka hai naaf-pyaala yaar ka
Bhookh hai wo badan tamaam, wasl tamaam ranj hai

Jeet ke koi aaye tab haar ke koi aaye tab
Johar-e-teg sharm hai aur niyam ranj hai

Dil ne padha sabak tamaam, bood to hai qalq tamaam
Haan mera naam ranj hai, haan tera naam ranj hai

Paik-e-qaza hai dam-ba-dam 'Jaun' qadam-qadam shumaar
Laghzish-e-gaam ranj hai husn-e-khiraam ranj hai

Baba Alif ne shab kaha nasha-ba-nasha kar gile
Jura-ba-jura ranj hai jaam-ba-jaam ranj hai

Aaan pe ho madaar kya bood ke rozgaar ka
Dam hama-dam hai doon ye dam wahm-e-dawaam ranj hai

Razm hai khoon ka hazar koi bahaaye ya bahe
Rustam o Zaal hain malaal yahani ke saam ranj hai
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रंज है हालत-ए-सफ़र हाल-ए-क़याम रंज है
सुब्ह-ब-सुब्ह रंज है शाम-ब-शाम रंज है

उस की शमीम-ए-ज़ुल्फ़ का कैसे हो शुक्रिया अदा
जब कि शमीम रंज है जब कि मशाम रंज है

सैद तो क्या कि सैद-कार ख़ुद भी नहीं ये जानता
दाना भी रंज है यहाँ या'नी कि दाम रंज है

मानी-ए-जावेदान-ए-जाँ कुछ भी नहीं मगर ज़ियाँ
सारे कलीम हैं ज़ुबूँ सारा कलाम रंज है

बाबा अलिफ़ मिरी नुमूद रंज है आप के ब-क़ौल
क्या मिरा नाम भी है रंज हाँ तिरा नाम रंज है

कासा गदागरी का है नाफ़-पियाला यार का
भूक है वो बदन तमाम वस्ल तमाम रंज है

जीत के कोई आए तब हार के कोई आए तब
जौहर-ए-तेग़ शर्म है और नियाम रंज है

दिल ने पढ़ा सबक़ तमाम बूद तो है क़लक़ तमाम
हाँ मिरा नाम रंज है हाँ तिरा नाम रंज है

पैक-ए-क़ज़ा है दम-ब-दम 'जौन' क़दम क़दम शुमार
लग़्ज़िश-ए-गाम रंज है हुस्न-ए-ख़िराम रंज है

बाबा अलिफ़ ने शब कहा नश्शा-ब-नश्शा कर गिले
जुरआ-ब-जुरआ रंज है जाम-ब-जाम रंज है

आन पे हो मदार क्या बूद के रोज़गार का
दम हमा-दम है दूँ ये दम वहम-ए-दवाम रंज है

रज़्म है ख़ून का हज़र कोई बहाए या बहे
रुस्तम ओ ज़ाल हैं मलाल या'नी कि साम रंज है

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Ye jo suna ek din wo haveli yak-sar be-asaar giri..

Ye jo suna ek din wo haveli yak-sar be-asaar giri
Hum jab bhi saaye mein baithe, dil par ek deewar giri

Joonhi mud kar dekha maine, beech uthi thi ek deewar
Bas yun samjho mere upar bijli si ek baar giri

Dhaar pe baad rakhi jaye aur hum us ke ghaayal thahrein
Maine dekha aur nazron se un palkon ki dhaar giri

Girne wali un taameeron mein bhi ek saliqa tha
Tum eenton ki poochh rahe ho, mitti tak hamvaar giri

Bedari ke bistar par main un ke khwaab sajata hoon
Neend bhi jin ki taat ke upar khwaabon se nadaar giri

Khoob hi thi wo qaum-e-shahidaan, ya’ni sab be-zakhm-o-kharaash
Main bhi us saf mein tha shaamil, wo saf jo be-waar giri

Har lamha ghamsaan ka ran hai, kaun apne ausaan mein hai
Kaun hai ye? Achha to main hoon, laash to haan ek yaar giri
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ये जो सुना इक दिन वो हवेली यकसर बे-आसार गिरी
हम जब भी साए में बैठे दिल पर इक दीवार गिरी

जूँही मुड़ कर देखा मैं ने बीच उठी थी इक दीवार
बस यूँ समझो मेरे ऊपर बिजली सी इक बार गिरी

धार पे बाड़ रखी जाए और हम उस के घायल ठहरें
मैं ने देखा और नज़रों से उन पलकों की धार गिरी

गिरने वाली उन तामीरों में भी एक सलीक़ा था
तुम ईंटों की पूछ रहे हो मिट्टी तक हमवार गिरी

बेदारी के बिस्तर पर मैं उन के ख़्वाब सजाता हूँ
नींद भी जिन की टाट के ऊपर ख़्वाबों से नादार गिरी

ख़ूब ही थी वो क़ौम-ए-शहीदाँ या'नी सब बे-ज़ख़म-ओ-ख़राश
मैं भी उस सफ़ में था शामिल वो सफ़ जो बे-वार गिरी

हर लम्हा घमसान का रन है कौन अपने औसान में है
कौन है ये? अच्छा तो मैं हूँ लाश तो हाँ इक यार गिरी

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Koo-e-jaanaan mein aur kya maango..

Koo-e-jaanaan mein aur kya maango
Haalat-e-haal yak sadaa maango

Har-nafas tum yaqeen-e-mune’im se
Rizq apne gumaan ka maango

Hai agar wo bahut hi dil nazdeek
Us se doori ka silsila maango

Dar-e-matlab hai kya talab-angez
Kuch nahi waan, so kuch bhi jaa maango

Gosha-geer-e-ghubaar-e-zaat hoon main
Mujh mein ho kar mira pataa maango

Munkiraan-e-Khuda-e-bakhshinda
Us se to aur ek Khuda maango

Us shikam-raqs-gar ke saail ho
Naaf-pyaale ki tum ataa maango

Laakh janjaal maangne mein hain
Kuch na maango, faqat duaa maango
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कू-ए-जानाँ में और क्या माँगो
हालत-ए-हाल यक सदा माँगो

हर-नफ़स तुम यक़ीन-ए-मुनइम से
रिज़्क़ अपने गुमान का माँगो

है अगर वो बहुत ही दिल नज़दीक
उस से दूरी का सिलसिला माँगो

दर-ए-मतलब है क्या तलब-अंगेज़
कुछ नहीं वाँ सो कुछ भी जा माँगो

गोशा-गीर-ए-ग़ुबार-ए-ज़ात हूँ में
मुझ में हो कर मिरा पता माँगो

मुनकिरान-ए-ख़ुदा-ए-बख़शिंदा
उस से तो और इक ख़ुदा माँगो

उस शिकम-रक़्स-गर के साइल हो
नाफ़-प्याले की तुम अता माँगो

लाख जंजाल माँगने में हैं
कुछ न माँगो फ़क़त दुआ माँगो

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Zikr-e-gul ho, khaar ki baatein karein..

Zikr-e-gul ho, khaar ki baatein karein
Lazzat-o-aazaar ki baatein karein

Hai masham-e-shauq mehroom-e-shameem
Zulf-e-ambar-baar ki baatein karein

Door tak khaali hai sehra-e-nazar
Aahoo-e-Tataar ki baatein karein

Aaj kuch naa-saaz hai tab-e-khirad
Nargis-e-beemaar ki baatein karein

Yusuf-e-Kana'an ka ho kuch tazkira
Misr ke baazaar ki baatein karein

Aao ai khufta-naseebo muflis-o
Daulat-e-bedaar ki baatein karein

'Jaun' aao kaarvaan-dar-kaarvaan
Manzil-e-dushwaar ki baatein karein
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ज़िक्र-ए-गुल हो ख़ार की बातें करें
लज़्ज़त-ओ-आज़ार की बातें करें

है मशाम-ए-शौक़ महरूम-ए-शमीम
ज़ुल्फ़-ए-अम्बर-बार की बातें करें

दूर तक ख़ाली है सहरा-ए-नज़र
आहू-ए-तातार की बातें करें

आज कुछ ना-साज़ है तब-ए-ख़िरद
नर्गिस-ए-बीमार की बातें करें

यूसुफ़-ए-कनआँ' का हो कुछ तज़्किरा
मिस्र के बाज़ार की बातें करें

आओ ऐ ख़ुफ़्ता-नसीबो मुफ़लिसो
दौलत-ए-बेदार की बातें करें

'जौन' आओ कारवाँ-दर-कारवाँ
मंज़िल-ए-दुश्वार की बातें करें

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Haaye jaanana ki mehmaan-daariyan..

Haaye jaanana ki mehmaan-daariyan
Aur mujh dil ki badan aazaariyan

Dha gayi dil ko teri dehleez par
Teri qattaala sureeni bhaariyan

Uf shikan-haa-e-shikam jaanam teri
Kya kataaren hain kataaren kaariyan

Haaye teri chaatiyon ka tan-tanaav
Phir teri majbooriyan naachaariyan

Tishna-lab hai kab se dil sa sheer-khwaar
Tere doodhon se hain chashme jaariyan

Dukh ghuroor-e-hashr ke jaana hai kaun
Kis ne samjhi hashr ki dushwaariyan

Apne darbaan ko sambhaale rakhiye
Hain hawas ki apni izzat-daariyan

Hain sidhaari kaun se shehron taraf
Ladkiyaan wo dil gali ki saariyan

Khwaab jo taabeer ke bas ke na the
Doston ne un pe jaanen waariyan

Khalwat-e-mizraab-e-saaz-o-naaz mein
Chaahiye hum ko teri siskariyan

Lafz-o-ma'ani ka baham kyun hai sukhun
Kis zamaane mein thin in mein yaariyan

Shauq ka ek daav be-shauqi bhi hai
Hum hain us ke husn ke inkaariyan

Mujh se bad-tauri na kar o shehr-e-yaar
Mere jooton ke hain talve khaarriyan

Kha gayin us zaalimo-mazloom ko
Meri mazloomi-numa ayyaariyan

Ye haraami hain ghareebon ke raqeeb
Hain mulaazim sab ke sab sarkariyan

Wo jo hain jeete unhone be-tarah
Jeetne par himmatein hain haariyan

Tum se jo kuch bhi na keh paayein miyaan
Aakhirash karti wo kya be-chaariyan
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हाए जानाना की मेहमाँ-दारियाँ
और मुझ दिल की बदन आज़ारियाँ

ढा गईं दिल को तिरी दहलीज़ पर
तेरी क़त्ताला सुरीनी भारियाँ

उफ़ शिकन-हा-ए-शिकम जानम तिरी
क्या कटारें हैं कटारें कारियाँ

हाए तेरी छातियों का तन-तनाव
फिर तेरी मजबूरियाँ नाचारीयाँ

तिश्ना-लब है कब से दिल सा शीर-ख़्वार
तेरे दूधों से हैं चश्मे जारीयाँ

दुख ग़ुरूर-ए-हश्र के जाना है कौन
किस ने समझी हश्र की दुश्वारियाँ

अपने दरबाँ को सँभाले रखिए
हैं हवस की अपनी इज़्ज़त-दारियाँ

हैं सिधारी कौन से शहरों तरफ़
लड़कियाँ वो दिल गली की सारियाँ

ख़्वाब जो ता'बीर के बस के न थे
दोस्तों ने उन पे जानें वारियाँ

ख़ल्वत-ए-मिज़राब-ए-साज़-ओ-नाज़ में
चाहिए हम को तेरी सिस्कारियाँ

लफ़्ज़-ओ-म'आनी का बहम क्यूँ है सुख़न
किस ज़माने में थीं इन में यारियाँ

शौक़ का इक दाव बे-शौक़ी भी है
हम हैं उस के हुस्न के इनकारियाँ

मुझ से बद-तौरी न कर ओ शहर-ए-यार
मेरे जूतों के है तलवे ख़ारियाँ

खा गईं उस ज़ालिम-ओ-मज़लूम को
मेरी मज़लूमी-नुमा अय्यारियाँ

ये हरामी हैं ग़रीबों के रक़ीब
हैं मुलाज़िम सब के सब सरकारियाँ

वो जो हैं जीते उन्होंने बे-तरह
जीतने पर हिम्मतें हैं हारियाँ

तुम से जो कुछ भी न कह पाएँ मियाँ
आख़िरश करती वो क्या बे-चारियाँ

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Hawas mein to na the phir bhi kya na kar aaye..

Hawas mein to na the phir bhi kya na kar aaye
Ki daar par gaye hum aur phir utar aaye

Ajeeb haal ke majnoon the jo ba-ishwa-o-naaz
Ba-soo-e-baad ye mahmil mein baith kar aaye

Kabhi gaye the miyaan jo khabar ke sehra ki
Wo aaye bhi to bagoolon ke saath ghar aaye

Koi junoon nahi saudaaiyaan-e-sehra ko
Ki jo azaab bhi aaye wo shehr par aaye

Batao daam guru chahiye tumhein ab kya
Parindgaan-e-hawa khaak par utar aaye

Ajab khuloos se rukhsat kiya gaya hum ko
Khayaal-e-khaam ka taawaan tha so bhar aaye
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हवास में तो न थे फिर भी क्या न कर आए
कि दार पर गए हम और फिर उतर आए

अजीब हाल के मजनूँ थे जो ब-इश्वा-ओ-नाज़
ब-सू-ए-बाद ये महमिल में बैठ कर आए

कभी गए थे मियाँ जो ख़बर के सहरा की
वो आए भी तो बगूलों के साथ घर आए

कोई जुनूँ नहीं सौदाइयान-ए-सहरा को
कि जो अज़ाब भी आए वो शहर पर आए

बताओ दाम गुरु चाहिए तुम्हें अब क्या
परिंदगान-ए-हवा ख़ाक पर उतर आए

अजब ख़ुलूस से रुख़्सत किया गया हम को
ख़याल-ए-ख़ाम का तावान था सो भर आए

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Khwaab ki haalaaton ke saath teri hikayaton mein hain..

Khwaab ki haalaaton ke saath teri hikayaton mein hain
Hum bhi dayaar-e-ahl-e-dil teri riwayaton mein hain

Wo jo the rishta-haa-e-jaan, toot sake bhala kahaan
Jaan wo rishta-haa-e-jaan ab bhi shikayaton mein hain

Ek ghubaar hai ki hai daayra-waar pur-fishaan
Qaafila-haa-e-kahkashaan tang hain vahshaton mein hain

Waqt ki darmiyaaniyaan kar gayin jaan-kani ko jaan
Wo jo adawatein ki thin, aaj mohabbatton mein hain

Partav-e-rang hai ki hai deed mein jaan-nasheen-e-rang
Rang kahaan hain roonuma, rang to nikhhaton mein hain

Hai ye wujood ki numood apni nafas-nafas gurez
Waqt ki saari bastiyan apni hazeematton mein hain

Gard ka saara khaanumaan hai sar-e-dasht-e-be-amaan
Shehr hain wo jo har tarah gard ki khidmatton mein hain

Wo dil-o-jaan sooratein jaise kabhi na thin kahin
Hum unhi sooraton ke hain, hum unhi sooraton mein hain

Main na sununga maajra maaraka-haa-e-shauq ka
Khoon gaye hain raayegaan, rang nadamatton mein hain
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ख़्वाब की हालातों के साथ तेरी हिकायतों में हैं
हम भी दयार-ए-अहल-ए-दिल तेरी रिवायतों में हैं

वो जो थे रिश्ता-हा-ए-जाँ टूट सके भला कहाँ
जान वो रिश्ता-हा-ए-जाँ अब भी शिकायतों में हैं

एक ग़ुबार है कि है दायरा-वार पुर-फ़िशाँ
क़ाफ़िला-हा-ए-कहकशाँ तंग हैं वहशतों में हैं

वक़्त की दरमियानियाँ कर गईं जाँ-कनी को जाँ
वो जो अदावतें कि थीं आज मोहब्बतों में हैं

परतव-ए-रंग है कि है दीद में जाँ-नशीन-ए-रंग
रंग कहाँ हैं रूनुमा रंग तो निकहतों में हैं

है ये वजूद की नुमूद अपनी नफ़स नफ़स गुरेज़
वक़्त की सारी बस्तियाँ अपनी हज़ीमतों में हैं

गर्द का सारा ख़ानुमाँ है सर-ए-दश्त-ए-बे-अमाँ
शहर हैं वो जो हर तरह गर्द की ख़िदमतों में हैं

वो दिल ओ जान सूरतें जैसे कभी न थीं कहीं
हम उन्हीं सूरतों के हैं हम उन्हीं सूरतों में हैं

मैं न सुनूँगा माजरा मा'रका-हा-ए-शौक़ का
ख़ून गए हैं राएगाँ रंग नदामतों में हैं

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Shaam thi aur barg-o-gul shal the magar saba bhi thi..

Shaam thi aur barg-o-gul shal the magar saba bhi thi
Ek ajeeb sukoon tha, ek ajab sada bhi thi

Ek malaal ka sa haal mahv tha apne haal mein
Raqs-o-nawa the be-taraf, mehfil-e-shab bapa bhi thi

Saamia-e-sada-e-jaan be-sarokaar tha ki tha
Ek gumaan ki daastaan bar-lab neem-waa bhi thi

Kya mah-o-saal maajra, ek palak thi jo miyaan
Baat ki ibtida bhi thi, baat ki intiha bhi thi

Ek surood-e-raushni neema-e-shab ka khwaab tha
Ek khamosh teeragi, saaneha-aashna bhi thi

Dil tira pesha-e-gila-e-kaam kharaab kar gaya
Warna to ek ranj ki haalat-e-be-gila bhi thi

Dil ke muaamle jo the un mein se ek ye bhi hai
Ek havas thi dil mein jo dil se gureza-paa bhi thi

Baal-o-par-e-khayal ko ab nahin samt-o-soo naseeb
Pehle thi ek ajab faza aur jo pur-faza bhi thi

Khushk hai chashma-saar-e-jaan, zard hai sabza-zar-e-dil
Ab to ye sochiye ke yahan pehle kabhi hawa bhi thi
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शाम थी और बर्ग-ओ-गुल शल थे मगर सबा भी थी
एक अजीब सुकूत था एक अजब सदा भी थी

एक मलाल का सा हाल महव था अपने हाल में
रक़्स-ओ-नवा थे बे-तरफ़ महफ़िल-ए-शब बपा भी थी

सामेआ-ए-सदा-ए-जाँ बे-सरोकार था कि था
एक गुमाँ की दास्ताँ बर-लब नीम-वा भी थी

क्या मह-ओ-साल माजरा एक पलक थी जो मियाँ
बात की इब्तिदा भी थी बात की इंतिहा भी थी

एक सुरूद-ए-रौशनी नीमा-ए-शब का ख़्वाब था
एक ख़मोश तीरगी सानेहा-आश्ना भी थी

दिल तिरा पेशा-ए-गिला-ए-काम ख़राब कर गया
वर्ना तो एक रंज की हालत-ए-बे-गिला भी थी

दिल के मुआ'मले जो थे उन में से एक ये भी है
इक हवस थी दिल में जो दिल से गुरेज़-पा भी थी

बाल-ओ-पर-ए-ख़याल को अब नहीं सम्त-ओ-सू नसीब
पहले थी इक अजब फ़ज़ा और जो पुर-फ़ज़ा भी थी

ख़ुश्क है चश्मा-सार-ए-जाँ ज़र्द है सब्ज़ा-ज़ार-ए-दिल
अब तो ये सोचिए कि याँ पहले कभी हवा भी थी

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Kya hue aashufta-kaaraan kya hue..

Kya hue aashufta-kaaraan kya hue
Yaad-e-yaaraan, yaar-e-yaaraan kya hue

Ab to apnon mein se koi bhi nahin
Wo pareshan rozgaraan kya hue

So raha hai shaam hi se shehr-e-dil
Shehr ke shab-zinda-daraan kya hue

Us ki chashm-e-neem-waa se poochhiyo
Wo tire mizgaan-shumaraan kya hue

Ai bahaar-e-intezar-e-fasl-e-gul
Wo garebaan-taar-taaraan kya hue

Kya hue soorat-nigaraan khwaab ke
Khwaab ke soorat-nigaraan kya hue

Yaad us ki ho gayi hai be-amaan
Yaad ke be-yaadgaraan kya hue
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क्या हुए आशुफ़्ता-काराँ क्या हुए
याद-ए-याराँ यार-ए-याराँ क्या हुए

अब तो अपनों में से कोई भी नहीं
वो परेशाँ रोज़गाराँ क्या हुए

सो रहा है शाम ही से शहर-ए-दिल
शहर के शब-ज़िंदा-दाराँ क्या हुए

उस की चश्म-ए-नीम-वा से पूछियो
वो तिरे मिज़्गाँ-शुमाराँ क्या हुए

ऐ बहार-ए-इंतिज़ार-ए-फ़स्ल-ए-गुल
वो गरेबाँ-तार-ताराँ क्या हुए

क्या हुए सूरत-निगाराँ ख़्वाब के
ख़्वाब के सूरत-निगाराँ क्या हुए

याद उस की हो गई है बे-अमाँ
याद के बे-यादगाराँ क्या हुए

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Furqat mein waslat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein..

Furqat mein waslat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein
Aashob-e-wahdat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Rooh-e-kul se sab roohon par wasl ki hasrat taari hai
Ek sar-e-hikmat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Be-ahwaali ki haalat hai shayad ya shayad ki nahin
Par ahwaliyyat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Mukhtari ke lab silwana jabr ajab-tar thehra hai
Haijaan-e-ghairat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Baba Alif irshaad-kunaa hain pesh-e-adam ke baare mein
Hairat be-hairat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Ma’ani hain lafzon se barham qahr-e-khamoshi aalam hai
Ek ajab hujjat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Maujoodi se inkaari hai apni zid mein naaz-e-wujood
Haalat si haalat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein
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फ़ुर्क़त में वसलत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
आशोब-ए-वहदत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

रूह-ए-कुल से सब रूहों पर वस्ल की हसरत तारी है
इक सर-ए-हिकमत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

बे-अहवाली की हालत है शायद या शायद कि नहीं
पर अहवालिय्यत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

मुख़्तारी के लब सिलवाना जब्र अजब-तर ठहरा है
हैजान-ए-ग़ैरत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

बाबा अलिफ़ इरशाद-कुनाँ हैं पेश-ए-अदम के बारे में
हैरत बे-हैरत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

मा'नी हैं लफ़्ज़ों से बरहम क़हर-ए-ख़मोशी आलम है
एक अजब हुज्जत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

मौजूदी से इंकारी है अपनी ज़िद में नाज़-ए-वजूद
हालत सी हालत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

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Saari duniya ke gham hamaare hain..

Saari duniya ke gham hamaare hain
Aur sitam ye ke hum tumhaare hain

Dil-e-barbaad ye khayal rahe
Us ne gesu nahi sanvaare hain

Un rafeeqon se sharm aati hai
Jo mera saath de ke haare hain

Aur to hum ne kya kiya ab tak
Ye kiya hai ke din guzaare hain

Us gali se jo ho ke aaye hon
Ab to wo raah-rau bhi pyaare hain

'Jaun' hum zindagi ki raahon mein
Apni tanha-ravi ke maare hain
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सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं

दिल-ए-बर्बाद ये ख़याल रहे
उस ने गेसू नहीं सँवारे हैं

उन रफ़ीक़ों से शर्म आती है
जो मिरा साथ दे के हारे हैं

और तो हम ने क्या किया अब तक
ये किया है कि दिन गुज़ारे हैं

उस गली से जो हो के आए हों
अब तो वो राह-रौ भी प्यारे हैं

'जौन' हम ज़िंदगी की राहों में
अपनी तन्हा-रवी के मारे हैं

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ada-e-ishq hoon poori ana ke saath hoon main..

ada-e-ishq hoon poori ana ke saath hoon main
khud apne saath hoon ya'ni khuda ke saath hoon main

mujavaraan-e-hawas tang hain ki yun kaise
baghair sharm-o-haya bhi haya ke saath hoon main

safar shuruat to hone de apne saath mera
tu khud kahega ye kaisi bala ke saath hoon main

main choo gaya to tira rang kaat daaloonga
so apne aap se tujh ko bacha ke saath hoon main

durood-bar-dil-e-wahshi salaam-bar-tap-e-ishq
khud apni hamd khud apni sana ke saath hoon main

yahi to farq hai mere aur un ke hal ke beech
shikaayaten hain unhen aur raza ke saath hoon main

main awwaleen ki izzat mein aakhireen ka noor
vo intiha hoon ki har ibtida ke saath hoon main

dikhaai doon bhi to kaise sunaai doon bhi to kyun
wara-e-naqsh-o-nawa hoon fana ke saath hoon main

b-hukm-e-yaar love kabz karne aati hai
bujha rahi hai bujaaye hawa ke saath hoon main

ye saabireen-e-mohabbat ye kaashifeen-e-junoon
inhi ke sang inheen auliya ke saath hoon main

kisi ke saath nahin hoon magar jamaal-e-ilaaha
tiri qism tire har mubtala ke saath hoon main

zamaane bhar ko pata hai main kis tariq pe hoon
sabhi ko ilm hai kis dil-ruba ke saath hoon main

munaafiqeen-e-tasavvuf ki maut hoon main ali
har ik aseel har ik be-riya ke saath hoon main 
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अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ या'नी ख़ुदा के साथ हूँ मैं

मुजावरान-ए-हवस तंग हैं कि यूँ कैसे
बग़ैर शर्म-ओ-हया भी हया के साथ हूँ मैं

सफ़र शुरूअ' तो होने दे अपने साथ मिरा
तू ख़ुद कहेगा ये कैसी बला के साथ हूँ मैं

मैं छू गया तो तिरा रंग काट डालूँगा
सो अपने आप से तुझ को बचा के साथ हूँ मैं

दुरूद-बर-दिल-ए-वहशी सलाम-बर-तप-ए-इश्क़
ख़ुद अपनी हम्द ख़ुद अपनी सना के साथ हूँ मैं

यही तो फ़र्क़ है मेरे और उन के हल के बीच
शिकायतें हैं उन्हें और रज़ा के साथ हूँ मैं

मैं अव्वलीन की इज़्ज़त में आख़िरीन का नूर
वो इंतिहा हूँ कि हर इब्तिदा के साथ हूँ मैं

दिखाई दूँ भी तो कैसे सुनाई दूँ भी तो क्यूँ
वरा-ए-नक़्श-ओ-नवा हूँ फ़ना के साथ हूँ मैं

ब-हुक्म-ए-यार लवें क़ब्ज़ करने आती है
बुझा रही है? बुझाए हवा के साथ हूँ मैं

ये साबिरीन-ए-मोहब्बत ये काशिफ़ीन-ए-जुनूँ
इन्ही के संग इन्हीं औलिया के साथ हूँ मैं

किसी के साथ नहीं हूँ मगर जमाल-ए-इलाहा
तिरी क़िस्म तिरे हर मुब्तला के साथ हूँ मैं

ज़माने भर को पता है मैं किस तरीक़ पे हूँ
सभी को इल्म है किस दिल-रुबा के साथ हूँ मैं

मुनाफ़िक़ीन-ए-तसव्वुफ़ की मौत हूँ मैं 'अली'
हर इक असील हर इक बे-रिया के साथ हूँ मैं
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khayal mein bhi use be-rida nahin kiya hai..

khayal mein bhi use be-rida nahin kiya hai
ye zulm mujhse nahin ho saka nahin kiya hai

main ek shakhs ko eimaan jaanta hoon to kya
khuda ke naam par logon ne kya nahin kiya hai

isiliye to main roya nahin bichhadte samay
tujhe ravana kiya hai juda nahin kiya hai

ye bad-tameez agar tujhse dar rahe hain to phir
tujhe bigaad kar maine bura nahin kiya hai 
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ख़याल में भी उसे बे-रिदा नहीं किया है
ये ज़ुल्म मुझसे नहीं हो सका नहीं किया है

मैं एक शख़्स को ईमान जानता हूँ तो क्या
ख़ुदा के नाम पर लोगों ने क्या नहीं किया है

इसीलिए तो मैं रोया नहीं बिछड़ते समय
तुझे रवाना किया है जुदा नहीं किया है

ये बद-तमीज़ अगर तुझसे डर रहे हैं तो फिर
तुझे बिगाड़ कर मैंने बुरा नहीं किया है
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Pyaar mein jism ko yak-sar na mita jaane de..

Pyaar mein jism ko yak-sar na mita jaane de
Qurbat-e-lams ko gaali na bana jaane de

Tu jo har roz naye husn pe mar jaata hai
Tu batayega mujhe 'Ishq hai kya'? Jaane de

Chai peete hain kahin baith ke dono bhai
Ja chuki hai na toh bas chhod chal aa jaane de
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प्यार में जिस्म को यकसर न मिटा जाने दे
कुर्बत-ए-लम्स को गाली ना बना जाने दे 

तू जो हर रोज़ नए हुस्न पे मर जाता है 
तू बताएगा मुझे 'इश्क़ है क्या'? जाने दे 

चाय पीते हैं कहीं बैठ के दोनों भाई 
जा चुकी है ना तो बस छोड़ चल आ जाने दे 

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haalat jo hamaari hai tumhaari to nahin hai..

haalat jo hamaari hai tumhaari to nahin hai
aisa hai to phir ye koi yaari to nahin hai

tahqeer na kar ye meri udhadi hui gudadi
jaisi bhi hai apni hai udhaari to nahin hai

tanha hi sahi lad to rahi hai vo akeli
bas thak ke giri hai abhi haari to nahin hai

ye tu jo mohabbat mein sila maang raha hai
ai shakhs tu andar se bhikaari to nahin hai

jitni bhi kama li ho bana li ho ye duniya
duniya hai to phir dost tumhaari to nahin hai 
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हालत जो हमारी है तुम्हारी तो नहीं है
ऐसा है तो फिर ये कोई यारी तो नहीं है

तहक़ीर ना कर ये मेरी उधड़ी हुई गुदड़ी
जैसी भी है अपनी है उधारी तो नहीं है

तनहा ही सही लड़ तो रही है वो अकेली
बस थक के गिरी है अभी हारी तो नहीं है

ये तू जो मोहब्बत में सिला मांग रहा है
ऐ शख्स तू अंदर से भिखारी तो नहीं है

जितनी भी कमा ली हो बना ली हो ये दुनिया
दुनिया है तो फिर दोस्त तुम्हारी तो नहीं है
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nekiya aur bhalaaiya maula..

nekiya aur bhalaaiya maula
sab ke sab khudnumaaiya maula

apni koi dukaandaari nahin
apni kaisi kamaaiyaan maula

subhanallah ek sharaarat bhara sawaal karoon
auratein kyun banaaiya maula 
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नेकिया और भलाईया मौला
सब के सब खुदनुमाईया मौला

अपनी कोई दुकानदारी नहीं
अपनी कैसी कमाईयाँ मौला,

सुभानल्लाह एक शरारत भरा सवाल करूं
औरतें क्यों बनाईया मौला
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khuda banda tane tanhaa gaya hai..

khuda banda tane tanhaa gaya hai
sue dariya mera pyaasa gaya hai

ajal se lekar ab tak auraton ko
siwaye jism kya samjha gaya hai

khuda ki shayari hoti hai aurat
jise pairo'n tale raunda gaya hai

tumhein dil ke chale jaane pe kya gam
tumhaara kaun sa apna gaya hai
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खुदा बंदा तने तन्हा गया है
सुए दरिया मेरा प्यासा गया है्

अजल से लेकर अब तक औरतों को
सिवाय जिस्म क्या समझा गया है।

खुदा की शायरी होती है औरत
जिसे पैरों तले रौंदा गया है

तुम्हें दिल के चले जाने पे क्या गम
तुम्हारा कौन सा अपना गया है
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chadar ki izzat karta hoon aur parde ko maanta hoon..

chadar ki izzat karta hoon aur parde ko maanta hoon
har parda parda nahin hota itna main bhi jaanta hoon

saare mard ek jaise hain tumne kaise kah daala
main bhi to ek mard hoon tumko khud se behtar maanta hoon

maine usse pyaar kiya hai milkiiyat ka daava nahin
vo jiske bhi saath hai main usko bhi apna maanta hoon

chadar ki izzat karta hoon aur parde ko maanta hoon
har parda parda nahin hota itna main bhi jaanta hoon 
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चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं
हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं

सारे मर्द एक जैसे हैं तुमने कैसे कह डाला
मैं भी तो एक मर्द हूं तुमको खुद से बेहतर मानता हूं

मैंने उससे प्यार किया है मिल्कियत का दावा नहीं
वो जिसके भी साथ है मैं उसको भी अपना मानता हूं

चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं
हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं
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main sochta hoon na jaane kahaan se aa gaye hain..

main sochta hoon na jaane kahaan se aa gaye hain
hamaare beech zamaane kahaan se aa gaye hain

main shehar waala sahi tu to gaav-zaadi hai
tujhe bahaane banaane kahaan se aa gaye hain

mere watan tere chehre ko noche waale
ye kaun hain ye gharaane kahaan se aa gaye hain 
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मैं सोचता हूँ न जाने कहाँ से आ गए हैं
हमारे बीच ज़माने कहाँ से आ गए हैं

मैं शहर वाला सही, तू तो गाँव-ज़ादी है
तुझे बहाने बनाने कहाँ से आ गए हैं

मेरे वतन तेरे चेहरे को नोचने वाले
ये कौन हैं ये घराने कहाँ से आ गए हैं
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gul-e-shabaab mahakta hai aur bulaata hai..

gul-e-shabaab mahakta hai aur bulaata hai
meri ghazal koi pashto mein gungunata hai

ajeeb taur hai uske mijaaz-e-shaahi ka
lade kisi se bhi aankhen mujhe dikhaata hai

tum uska haath jhatak kar ye kyun nahin kahtiin
tu jaanwar hai jo aurat pe haath uthaata hai
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गुल-ए-शबाब महकता है और बुलाता है
मेरी ग़ज़ल कोई पश्तो में गुनगुनाता है

अजीब तौर है उसके मिजाज-ए-शाही का
लड़े किसी से भी, आंखें मुझे दिखाता है

तुम उसका हाथ झटक कर ये क्यों नहीं कहतीं
तू जानवर है जो औरत पे हाथ उठाता है
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jo ism-o-jism ko baaham nibhaane waala nahi..

jo ism-o-jism ko baaham nibhaane waala nahi
main aise ishq par eimaan laane waala nahin

main paanv dhoke piyuun yaar banke jo aaye
munaafiqon ko to main munh lagaane waala nahin

bas itna jaan le ai pur-kashish ke dil tujhse
bahl to saka hai par tujh pe aane waala nahin

tujhe kisi ne galat kah diya mere baare
nahin miyaan main dilon ko dukhaane waala nahin

sun ai kaabila-e-kufi-dilaan mukarrar sun
ali kabhi bhi hajeemat uthaane waala nahin 
---------------------------------------------
जो इस्म-ओ-जिस्म को बाहम निभाने वाला नही
मैं ऐसे इश्क़ पर ईमान लाने वाला नहीं

मैं पांव धोके पियूं, यार बनके जो आए
मुनाफ़िक़ों को तो मैं मुंह लगाने वाला नहीं

बस इतना जान ले ऐ पुर-कशिश के दिल तुझसे
बहल तो सकता है पर तुझ पे आने वाला नहीं

तुझे किसी ने गलत कह दिया मेरे बारे
नहीं मियां मैं दिलों को दुखाने वाला नहीं

सुन ऐ काबिला-ए-कुफी-दिलाँ मुकर्रर सुन
अली कभी भी हजीमत उठाने वाला नहीं
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chamakte din bahut chaalaak hai shab jaanti hai..

chamakte din bahut chaalaak hai shab jaanti hai
use pehle nahin maaloom tha ab jaanti hai

ye rishtedaar usko isliye jhuthla rahe hain
vo rishta maangne waalon ka matlab jaanti hai

jo dukh usne sahe hain uski beti to na dekhe
vo maa hai aur maa hone ka mansab jaanti hai

ye agli rau mein baithi mujhse sarvat sunne waali
main uske vaaste aaya hoon ye sab jaanti hain 
---------------------------------------------
चमकते दिन बहुत चालाक है शब जानती है
उसे पहले नहीं मालूम था अब जानती है

ये रिश्तेदार उसको इसलिए झुठला रहे हैं
वो रिश्ता मांगने वालों का मतलब जानती है

जो दुख उसने सहे हैं उसकी बेटी तो ना देखे
वो मां है और मां होने का मनसब जानती है

ये अगली रौ में बैठी मुझसे सर्वत सुनने वाली
मैं उसके वास्ते आया हूं ये सब‌ जानती हैं
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yaar to uske saalgirah par kya kya tohfe laaye hain..

yaar to uske saalgirah par kya kya tohfe laaye hain
aur idhar hamne uski tasveer ko sher sunaayein hain

aap se badhkar kaun samajh saka hai rang aur khushboo ko
aapse koi bahs nahin hai aap uske hamsaayein hai

kisi bahaane se uski naarazi khatm to karne thi
uske pasandeeda shayar ke sher use bhejavai hain 
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यार तो उसके सालगिराह पर क्या क्या तोहफें लाए हैं
और इधर हमने उसकी तस्वीर को शेर सुनाएं हैं

आप से बढ़कर कौन समझ सकता है रंग और खुशबू को
आपसे कोई बहस नहीं है आप उसके हमसाएं है

किसी बहाने से उसकी नाराजी खत्म तो करनी थी
उसके पसंदीदा शायर के शेर उसे भिजवाए हैं
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baat muqaddar ki hai saari waqt ka likkha maarta hai..

baat muqaddar ki hai saari waqt ka likkha maarta hai
kuchh sajdon mein mar jaate hain kuchh ko sajda maarta hai

sirf ham hi hain jo tujh par poore ke poore marte hain
varna kisi ko teri aankhen kisi ko lahza maarta hai

dilwaale ek dooje ki imdaad ko khud mar jaate hain
duniyadaar ko jab bhi maare duniyaavaala maarta hai

shehar mein ek naye kaatil ke husn-e-sukhan ke balve hain
usse bach ke rahna sher suna ke banda maarta hai 
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बात मुकद्दर की है सारी वक्त का लिक्खा मारता है
कुछ सजदों में मर जाते हैं कुछ को सजदा मारता है

सिर्फ हम ही हैं जो तुझ पर पूरे के पूरे मरते हैं
वरना किसी को तेरी आंखें, किसी को लहज़ा मारता है

दिलवाले एक दूजे की इमदाद को खुद मर जाते हैं
दुनियादार को जब भी मारे दुनियावाला मारता है

शहर में एक नए कातिल के हुस्न-ए-सुखन के बलवे हैं
उससे बच के रहना शेर सुना के बंदा मारता है
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man jis ka maula hota hai..

man jis ka maula hota hai
vo bilkul mujh sa hota hai

tum mujhko apna kahte ho
kah lene se kya hota hai

achhi ladki zid nahin karte
dekho ishq bura hota hai

aankhen hans kar pooch rahi hain
neend aane se kya hota hai

mitti ki izzat hoti hai
paani ka charcha hota hai

marne mein koi bahs na karna
mar jaana achha hota hai 
-------------------------
मन जिस का मौला होता है
वो बिल्कुल मुझ सा होता है

तुम मुझको अपना कहते हो
कह लेने से क्या होता है

अच्छी लड़की ज़िद नहीं करते
देखो इश्क़ बुरा होता है

आँखें हंस कर पूछ रही हैं
नींद आने से क्या होता है

मिट्टी की इज़्ज़त होती है
पानी का चर्चा होता है

मरने में कोई बहस ना करना
मर जाना अच्छा होता है
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apne yaaron se bahut door nahin hota tha..

apne yaaron se bahut door nahin hota tha
yaar tu un dinon mashhoor nahin hota tha

mujhko lagta hai tujhe dil ki dua lag gai hai
tere chehre par to ye noor nahin hota tha

koi to dukh hai jo waapas nahin deta
varna main ghar se kabhi door nahin hota tha 
-----------------------------------------
अपने यारों से बहुत दूर नहीं होता था
यार तू उन दिनों मशहूर नहीं होता था

मुझको लगता है तुझे दिल की दुआ लग गई है
तेरे चेहरे पर तो ये नूर नहीं होता था

कोई तो दुःख है जो वापस नहीं देता
वरना मैं घर से कभी दूर नहीं होता था

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ham yun hi nahin shah ke azaadaar hue hain..

ham yun hi nahin shah ke azaadaar hue hain
nasli hain to asli ke parastaar hue hain

tohmat to laga dete ho bekaari ki hampar
poocho to sahi kislie bekar hue hain

sab aake mujhe kahte hain murshid koi chaara
jis jis ko dar ae yaar se inkaar hue hain

ye vo hain jinhen maine sukhun karna sikhaaya
ye lehje mere saamne talwaar hue hain

milne to akela hi use jaana hai zaryoon
ye dost magar kislie taiyaar hue hain 
------------------------------------------
हम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं
नस्ली हैं तो अस्ली के परस़्तार हुए हैं

तोहमत तो लगा देते हो बेकारी की हमपर
पूछो तो सही किसलिए बेकार हुए हैं

सब आके मुझे कहते हैं मुर्शिद कोई चारा
जिस जिस को दर ए यार से इन्कार हुए हैं

ये वो हैं जिन्हें मैंने सुख़न करना सिखाया
ये लहजे मेरे सामने तलवार हुए हैं

मिलने तो अकेले ही उसे जाना है "ज़रयून"
ये दोस्त मगर किसलिए तैयार हुए हैं?
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mujhe to sab tamasha lag raha hai..

mujhe to sab tamasha lag raha hai
khuda se pooch use kya lag raha hai

vaba ke din guzarte ja rahe hain
madeena aur saccha lag raha hai

azziziyat se take jaata hoon khudko
tumhein ye ghar mein rahna lag raha hai

khud apne saath rahna pad gaya tha
aur ab dushman bhi achha lag raha hai
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मुझे तो सब तमाशा लग रहा है
खुदा से पूछ उसे क्या लग रहा है

वबा के दिन गुज़रते जा रहे हैं
मदीना और सच्चा लग रहा है

अज़्जी़यत से तके जाता हूँ खुदको
तुम्हें ये घर में रहना लग रहा है

खुद अपने साथ रहना पड़ गया था
और अब दुश्मन भी अच्छा लग रहा है
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vo hi kartaba teri yaad ka vo hi nai nava ae khayal hai..

vo hi kartaba teri yaad ka vo hi nai nava ae khayal hai
vo hi main jo tha tere hijr mein vo hi mashhad ae khaddo khaal hai

teri neend kiske liye udri mera khwaab kisne bujha diya
ise sun kar rookh nahin pherna tere maatami ka sawaal hai

ye mazaq to nahin ho raha main khushi se to nahin ro raha
koi film to nahin chal rahi meri jaan ye mera haal hai

kisi saiyada ke charan padhoon koi kaazmi jo dua kare
koi ho jo gham ki haya kare mera karbalaai malaal hai

vo charaagh ae shehar ae vifaq hai mere saath jiska firaq hai
bhale door paar se hi sahi mera raabta to bahaal hai

vo khushi se itni nihaal thi ki ali main soch kar dar gaya
main use bata hi nahin saka ki ye meri aakhiri call hai 
-----------------------------------------------------
वो ही कर्तबा तेरी याद का, वो ही नै नवा ए खयाल है
वो ही मैं जो था तेरे हिज्र में, वो ही मशहद ए खद्दो खाल है

तेरी नींद किसके लिए उड़ी, मेरा ख्वाब किसने बुझा दिया
इसे सुन कर रूख़ नहीं फेरना, तेरे मातमी का सवाल है

ये मजाक़ तो नहीं हो रहा, मैं खुशी से तो नहीं रो रहा
कोई फिल्म तो नहीं चल रही, मेरी जान ये मेरा हाल है

किसी सैय्यदा के चरण पडूं, कोई काज़मी जो दुआ करे
कोई हो जो ग़म की हया करे, मेरा कर्बलाई मलाल है

वो चराग़ ए शहर ए विफाक़ है, मेरे साथ जिसका फिराक़ है
भले दूर पार से ही सही, मेरा राब़्ता तो बहाल है

वो खुशी से इतनी निहाल थी कि "अली" मैं सोच कर डर गया
मैं उसे बता ही नहीं सका कि ये मेरी आखिरी कॉल है
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bujhi aankhon mein kirnen bhar rahi ho kaun ho tum..

bujhi aankhon mein kirnen bhar rahi ho kaun ho tum
meri neendon ko roshan kar rahi ho kaun ho tum

mujh aise ghar mein to shaitaan bhi aata nahin hai
tum itne din mere andar rahi ho kaun ho tum

main jiski yaad mein roya hua hoon vo kahaan hai
mera tawaan tum kyun bhar rahi ho kaun ho tum

bhare majme se kamre tak tumheen laai ho mujhko
ab is tanhaai se khud dar rahi ho kaun ho tum 
---------------------------------------------------
बुझी आंखों में किरणें भर रही हो, कौन हो तुम?
मेरी नींदों को रोशन कर रही हो, कौन हो तुम?

मुझ ऐसे घर में तो शैतान भी आता नहीं है,
तुम इतने दिन मेरे अंदर रही हो, कौन हो तुम?

मैं जिसकी याद में 'रोया' हुआ हूँ वो कहाँ है?
मेरा तावान तुम क्यों भर रही हो, कौन हो तुम?

भरे मजमे से कमरे तक तुम्हीं लाई हो मुझको,
अब इस तन्हाई से खुद डर रही हो, कौन हो तुम?
Read more

zane haseen thi aur phool chun kar laati thi..

zane haseen thi aur phool chun kar laati thi
main sher kehta tha vo dastaan sunaati thi

arab lahu tha ragon mein badan sunhara tha
vo muskuraati nahin thi die jalaati thi

ali se door raho log usse kahte the
vo mera sach hai bahut cheekh kar bataati thi

ali ye log tumhein jaante nahin hain abhi
gale lagaakar mera hausla badhaati thi

ye phool dekh rahe ho ye uska lahja tha
ye jheel dekh rahe ho yahan vo aati thi

main uske baad kabhi theek se nahin jaaga
vo mujhko khwaab nahin neend se jagati thi

use kisi se mohabbat thi aur vo main nahin tha
ye baat mujhse ziyaada use roolaati thi

main kuchh bata nahin saka vo meri kya thi ali
ki usko dekhkar bas apni yaad aati thi 
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ज़ने हसीन थी और फूल चुन कर लाती थी
मैं शेर कहता था, वो दास्ताँ सुनाती थी

अरब लहू था रगों में, बदन सुनहरा था
वो मुस्कुराती नहीं थी, दीए जलाती थी

"अली से दूर रहो", लोग उससे कहते थे
"वो मेरा सच है", बहुत चीख कर बताती थी

"अली ये लोग तुम्हें जानते नहीं हैं अभी"
गले लगाकर मेरा हौसला बढ़ाती थी

ये फूल देख रहे हो, ये उसका लहजा था
ये झील देख रहे हो, यहाँ वो आती थी

मैं उसके बाद कभी ठीक से नहीं जागा
वो मुझको ख्वाब नहीं नींद से जगाती थी

उसे किसी से मोहब्बत थी और वो मैं नहीं था
ये बात मुझसे ज़्यादा उसे रूलाती थी

मैं कुछ बता नहीं सकता वो मेरी क्या थी "अली"
कि उसको देखकर बस अपनी याद आती थी
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haalat ae hijr mein hoon yaar meri samt na dekh..

haalat ae hijr mein hoon yaar meri samt na dekh
tu na ho jaaye girftaar meri samt na dekh

aasteen mein jo chhupe saanp hain unko to nikaal
apne nuksaan par har baar meri samt na dekh

tujhko jis baat ka khadsha hai vo ho sakti hai
aise nashshe mein lagaataar meri samt na dekh

ya koi baat suna ya mujhe seene se laga
is tarah baithkar bekar meri samt na dekh

tera yaaron se nahin jeb se yaaraana hai
ai mohabbat ke dukandaar meri samt na dekh
-----------------------------------------------
हालत ए हिज्र में हूँ यार मेरी सम्त न देख
तू न हो जाए गिरफ्तार, मेरी सम्त न देख

आस्तीन में जो छूपे सांप हैं उनको तो निकाल
अपने नुकसान पर हर बार मेरी सम्त न देख

तुझको जिस बात का 'ख़द्शा' है वो हो सकती है
ऐसे नश्शे में लगातार मेरी सम्त न देख

या कोई बात सुना या मुझे सीने से लगा
इस तरह बैठकर बेकार मेरी सम्त न देख

तेरा यारों से नहीं जेब से याराना है
ऐ मोहब्बत के दुकाँदार मेरी सम्त न देख
Read more

shaahsaazi mein riayaat bhi nahin karte ho..

shaahsaazi mein riayaat bhi nahin karte ho
saamne aakar hukoomat bhi nahin karke ho

wall par chikhte rahte ho ki mazloom hain ham
aur system se bagaavat bhi nahin karte ho

tumse kya baat karoon kaun kahaan qatl hua
tum to is zulm par hairat bhi nahin karte ho

ab mere haal par kyun tumko pareshaani hai
ab to tum mujhse mohabbat bhi nahin karte ho

pyaar karne ki sanad kaise tumhein jaari karoon
tum abhi theek se nafrat bhi nahin karte ho 
-------------------------------------
शाहसाज़ी में रियायत भी नहीं करते हो
सामने आकर हुकूमत भी नहीं करके हो

वॉल पर चीखते रहते हो कि मज़लूम हैं हम
और सिस्टम से बगावत भी नहीं करते हो

तुमसे क्या बात करूँ कौन कहाँ क़त्ल हुआ
तुम तो इस ज़ु़ल्म पर हैरत भी नहीं करते हो

अब मेरे हाल पर क्यूँ तुमको परेशानी है
अब तो तुम मुझसे मोहब्बत भी नहीं करते हो

प्यार करने की सनद कैसे तुम्हें जारी करूँ
तुम अभी ठीक से नफ़रत भी नहीं करते हो
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darne ke liye hai na naseehat ke liye hai..

darne ke liye hai na naseehat ke liye hai
jis umr mein tum ho vo mohabbat ke liye hai

ye dil jo abhi pichhle janaaze nahin bhoola
taiyaar ab ik aur museebat ke liye hai

kya hai jo mujhe hukm nahin maanne aate
deewaana to hota hi bagaavat ke liye hai

paaysis hai agar vo to pareshaan na hona
ye burj bana hi kisi hairat ke liye hai

ye pyaar tujhe isliye shobha nahin deta
tu jhooth hai aur jhooth siyaasat ke liye hai 
--------------------------------------------
डरने के लिए है न नसीहत के लिए है
जिस उम्र में तुम हो वो मोहब्बत के लिए है

ये दिल जो अभी पिछले जनाज़े नहीं भूला
तैयार अब इक और मुसीबत के लिए है

क्या है जो मुझे हुक्म नहीं मानने आते
दीवाना तो होता ही बगावत के लिए है

पाइसिस है अगर वो तो परेशान न होना
ये बुर्ज बना ही किसी हैरत के लिए है

ये प्यार तुझे इसलिए शोभा नहीं देता
तू झूठ है और झूठ सियासत के लिए है
Read more

saaz taiyaar kar raha hoon main..

saaz taiyaar kar raha hoon main
aur khabardaar kar raha hoon main

tumko shaayad bura lage lekin
dekh ke pyaar kar raha hoon main

haan nahin chahiye ye taaj aur takht
saaf inkaar kar raha hoon main

koi jaakar use bata to de
jiska kirdaar kar raha hoon main

aaj se khud ko teri haalat se
dastbardaar kar raha hoon main

do jahaan mujhko mil rahe hain magar
tujh par israar kar raha hoon main 
------------------------
साज़ तैयार कर रहा हूँ मैं
और खबरदार कर रहा हूँ मैं

तुमको शायद बुरा लगे, लेकिन
देख के प्यार कर रहा हूँ मैं

हाँ! नहीं चाहिए ये ताज और तख़्त
साफ़ इन्कार कर रहा हूँ मैं

कोई जाकर उसे बता तो दे
जिसका किरदार कर रहा हूँ मैं

आज से, खुद को तेरी हालत से
दस्तबरदार कर रहा हूँ मैं

दो जहाँ मुझको मिल रहे हैं, मगर
तुझ पर इसरार कर रहा हूँ मैं
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jaagna aur jaga ke so jaana..

jaagna aur jaga ke so jaana
raat ko din bana ke so jaana

text karna tamaam raat usko
ungliyon ko daba ke so jaana

aaj phir der se ghar aaya hoon
aaj phir munh bana ke so jaana 
----------------------------
जागना और जगा के सो जाना
रात को दिन बना के सो जाना

टैक्स्ट करना तमाम रात उसको
उंगलियों को दबा के सो जाना

आज फिर देर से घर आया हूं
आज फिर मुंह बना के सो जाना
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khayal mein bhi use berida nahin kiya hai..

khayal mein bhi use berida nahin kiya hai
ye julm mujhse nahin ho saka nahin kiya hai

main ek shakhs ko eimaan jaanta hoon to kya
khuda ke naam pe logon ne kya nahin kiya hai

isiliye to main roya nahin bichhadte samay
tujhe ravana kiya hai juda nahin kiya hai

yah badtameez agar tujh se dar rahe hain to phir
tujhe bigaad ke maine bura nahin kiya hai 
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खयाल में भी उसे बेरिदा नहीं किया है
ये जुल्म मुझसे नहीं हो सका, नहीं किया है

मैं एक शख्स को ईमान जानता हूं तो क्या
खुदा के नाम पे लोगों ने क्या नहीं किया है

इसीलिए तो मैं रोया नहीं बिछड़ते समय
तुझे रवाना किया है जुदा नहीं किया है

यह बदतमीज अगर तुझ से डर रहे हैं तो फिर
तुझे बिगाड़ के मैंने बुरा नहीं किया है
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sab kar lena lamhe jaaya mat karna..

sab kar lena lamhe jaaya mat karna
galat jagah par jazbe jaaya mat karna

ishq to niyat ki sacchaai dekhta hai
dil na dukhe to sajde jaaya mat karna

saada hoon aur brands pasand nahin mujh ko
mujh par apne paise jaaya mat karna

rozi-roti desh mein bhi mil sakti hai
door bhej ke rishte jaaya mat karna 
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सब कर लेना लम्हें जाया मत करना
गलत जगह पर जज्बे जाया मत करना

इश्क़ तो नियत की सच्चाई देखता है
दिल ना दुखे तो सजदे जाया मत करना

सादा हूं और ब्रैंड्स पसंद नहीं मुझ को
मुझ पर अपने पैसे जाया मत करना

रोजी-रोटी देश में भी मिल सकती है
दूर भेज के रिश्ते जाया मत करना
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are kya seekh sakogen bhala hijrat se hamaari..

are kya seekh sakogen bhala hijrat se hamaari
tum log maza lete ho haalat se hamaari

ham kaun hain ye baat tumhein likh ke bataayein
andaaza nahin hota shabaahat se hamaari

besudh nahin raayega ho jaana hamaara
kuchh phool khile hain to mushkatat se hamaari 
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अरे क्या सीख सकोगें भला हिजरत से हमारी
तुम लोग मजा लेते हो हालत से हमारी

हम कौन हैं ये बात तुम्हें लिख के बताएं
अंदाजा नहीं होता शबाहत से हमारी

बेसुध नहीं राएगा हो जाना हमारा
कुछ फूल खिले हैं तो मुशक्तत से हमारी
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is tarah se na aajmao mujhe..

is tarah se na aajmao mujhe
uski tasveer mat dikhaao mujhe

ain mumkin hai main palat aaun
uski aawaaz mein bulao mujhe

maine bola tha yaad mat aana
jhooth bola tha yaad aao mujhe
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इस तरह से ना आजमाओ मुझे
उसकी तस्वीर मत दिखाओ मुझे

ऐन मुमकिन है मैं पलट आऊं
उसकी आवाज में बुलाओ मुझे

मैंने बोला था याद मत आना
झूठ बोला था, याद आओ मुझे
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pyaar mein jism ko yaksar na mita jaane de..

pyaar mein jism ko yaksar na mita jaane de
qurbat-e-lams ko gaali na bana jaane de

tu jo har roz naye husn pe mar jaata hai
tu bataaega mujhe ishq hai kya jaane de

chaai peete hain kahi baith ke dono bhaai
ja chuki hai na to bas chhod chal aa jaane de 
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प्यार में जिस्म को यकसर न मिटा जाने दे
कुर्बत-ए-लम्स को गाली ना बना जाने दे

तू जो हर रोज़ नए हुस्न पे मर जाता है
तू बताएगा मुझे 'इश्क़ है क्या'? जाने दे

चाय पीते हैं कहीं बैठ के दोनों भाई
जा चुकी है ना तो बस छोड़ चल आ जाने दे
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toor-e-seena hai sar karoge miyaan..

toor-e-seena hai sar karoge miyaan
apne andar safar karoge miyaan

tum hamein roz yaad karte ho
phir to tum umr bhar karoge miyaan

vo jo ik lafz mar gaya hai
usko kiski khabar karoge miyaan

aur dil-e-darvesh ek madeena hai
tum madine mein sair karoge miyaan 
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तूर-ए-सीना है सर करोगे मियां
अपने अंदर सफर करोगे मियां

तुम हमें रोज याद करते हो
फिर तो तुम उम्र भर करोगे मियां

वो जो इक लफ्ज़ मर गया है
उसको किसकी खबर करोगे मियां

और दिल-ए-दरवेश एक मदीना है
तुम मदीने में सैर करोगे मियां
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aaj bhi tingi ki qismat mein..

aaj bhi tingi ki qismat mein
sam-e-qaatil hai salsabeel nahin

sab khuda ke wakeel hain lekin
aadmi ka koi wakeel nahin

hai kushaada azal se roo-e-zameen
haram-o dair be-faseel nahin

zindagi apne rog se hai tabaah
aur darmaan ki kuchh sabeel nahin

tum bahut jaazib-o-jameel sahi
zindagi jaazib-o-jameel nahin

na karo bahs haar jaayogi
husn itni badi daleel nahin 
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आज भी तिनगी की क़िस्मत में
सम-ए-क़ातिल है सलसबील नहीं

सब ख़ुदा के वकील हैं लेकिन
आदमी का कोई वकील नहीं

है कुशादा अज़ल से रू-ए-ज़मीं
हरम-ओ- दैर बे-फ़सील नहीं

जिंदगी अपने रोग से है तबाह
और दरमाँ की कुछ सबील नहीं

तुम बहुत जाज़िब-ओ-जमील सही
ज़िंदगी जाज़िब-ओ-जमील नहीं

न करो बहस हार जाओगी
हुस्न इतनी बड़ी दलील नहीं
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nazar andaaz hai ghaayal pade hai..

nazar andaaz hai ghaayal pade hai
kai dariya kai jungle pade hai

nazar uthi hai uski meri jaanib
kai peshaaniyon par bal pade hai

main uska khat baha ke aaraha hu
mere baazu abhi tak shal pade hai

use kehna ke kal terrace par aaye
use kehna ke baadal chal pade hai 
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नज़र अंदाज है घायल पड़े है
कई दरिया कई जंगल पड़े है

नजर उठी है उसकी मेरी जानिब
कई पेशानियों पर बल पड़े है

मैं उसका ख़त बहा के आरहा हु
मेरे बाजू अभी तक शल पड़े है

उसे कहना के कल टेरिस पर आये
उसे कहना के बादल चल पड़े है
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ho jise yaar se tasdeeq nahin kar saka..

ho jise yaar se tasdeeq nahin kar saka
vo kisi sher ki tazheek nahin kar saka

pur-kashish dost mere hijr ki majboori samajh
main tujhe door se nazdeek nahin kar saka

mujh pe tanqeed se rahte hain ujaale jinmein
un dukano ko main tareek nahin kar saka

kaun se gham se nikalna hai kise rakhna hai
mas’ala ye hai main tafreek nahin kar saka

ped ko gaaliyaan bakne ke ilaava zaryoon
kya karein vo ke jo takhleeq nahin kar saka

sher to khair main tanhaai mein kah looga ali
apni haalat to main khud theek nahin kar saka

hijr se gujre bina ishq bataane waala
bahs kar saka hai tehqeeq nahin kar saka 
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हो जिसे यार से तस्दीक़ नहीं कर सकता
वो किसी शेर की तज़हीक नहीं कर सकता

पुर-कशिश दोस्त मेरे हिज्र की मजबूरी समझ
मैं तुझे दूर से नज़दीक नहीं कर सकता

मुझ पे तनकीद से रहते हैं उजाले जिनमें
उन दुकानों को मैं तारीक नहीं कर सकता

कौन से ग़म से निकलना है किसे रखना है
मस‌अला ये है मैं तफरीक नहीं कर सकता

पेड़ को गालियां बकने के इलावा ज़रयून
क्या करें वो के जो तख़लीक़ नहीं कर सकता

शेर तो खैर मैं तन्हाई में कह लूगा अली
अपनी हालत तो मैं खुद ठीक नहीं कर सकता

हिज्र से गुजरे बिना इश्क बताने वाला
बहस कर सकता है तहकीक नहीं कर सकता

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aasaan to ye kaar-e-wafa hota nahin hai..

aasaan to ye kaar-e-wafa hota nahin hai
kehne ko to kahte hain kiya hota nahin hai

awwal to main naraaz nahin hota hoon lekin
ho jaaun to phir mujh sa bura hota nahin hai

gusse mein to vo maa ki tarha hota hai bilkul
lagta hai khafa sach mein khafa hota nahin hai

tum mere liye jang karoge are chhodo
tumse to miyaan milne bhi aa hota nahin hai

ham apni mohabbat mein samajh le to samajh le
vaise kisi bande mein khuda hota nahin hai

kahte hain khuda vo hai ki jo kah de to sab ho
vaise mere kehne se bhi kya hota nahin hai

eimaan hai ya chaand ko laana hai zameen par
kahte ho ki le aata hoon la hota nahin hai

mujh par jo ali khaas karam hai to mere dost
har dil bhi to mujh jaisa siya hota nahin hai 
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आसान तो ये कार-ए-वफ़ा होता नहीं है
कहने को तो कहते हैं किया होता नहीं है

अव्वल तो मैं नाराज नहीं होता हूं लेकिन
हो जाऊं तो फिर मुझ सा बुरा होता नहीं है

गुस्से में तो वो मां की तरहा होता है बिल्कुल
लगता है खफा सच में खफा होता नहीं है

तुम मेरे लिए जंग करोगे अरे छोड़ो
तुमसे तो मियां मिलने भी आ होता नहीं है

हम अपनी मोहब्बत में समझ ले तो समझ ले
वैसे किसी बंदे में खुदा होता नहीं है

कहते हैं खुदा वो है की जो कह दे तो सब हो
वैसे मेरे कहने से भी क्या होता नहीं है

ईमान है या चांद को लाना है ज़मीं पर
कहते हो कि ले आता हूं ला होता नहीं है

मुझ पर जो अली खास करम है तो मेरे दोस्त
हर दिल भी तो मुझ जैसा सिया होता नहीं है
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lehje mein khanak baat mein dam hai to karam hai..

lehje mein khanak baat mein dam hai to karam hai
gardan dar-e-haider pe jo kham hai to karam hai

mat soch ki is ghar pe karam hai to alam hai
darasl tere ghar pe alam hai to karam hai

bistar pe kamar theek nahin lagti to khush ho
khuraak bhi ai yaar jo kam hai to karam hai

be-nisbat-o-be-ishq kahaan milti hai izzat
mujh pe mere maula ka karam hai to karam hai

munkir ki jalan hi mein to mumin ka maza hai
gar taana-o-tashnee-o-sitam hai to karam hai

ab jab ke koi haal bhi kyun pooche kisi ka
ik aankh mere vaaste nam hai to karam hai

ab jab ke koi aankh nahin rukti kisi par
jo koi jahaan jiska sanam hai to karam hai

midhat ka maza bhi ho taghazzul ki ada bhi
kuchh aisa sukhun tujhko bahm hai to karam hai

akhtar se ghazal-sazon ke hote hue zaryoon
thoda sa agar tera bharam hai to karam hai
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लहजे में खनक बात में दम है तो करम है
गर्दन दर-ए-हैदर पे जो ख़म है तो करम है

मत सोच कि इस घर पे करम है तो अलम है
दरअस्ल तेरे घर पे अलम है तो करम है

बिस्तर पे कमर ठीक नहीं लगती तो ख़ुश हो
ख़ुराक भी ऐ यार जो कम है तो करम है

बे-निस्बत-ओ-बे-इश्क कहाँ मिलती है इज़्ज़त
मुझ पे मेरे मौला का करम है तो करम है

मुंकिर की जलन ही में तो मोमिन का मज़ा है
गर ताना-ओ-तश्नी-ओ-सितम है तो करम है

अब जब के कोई हाल भी क्यूँ पूछे किसी का
इक आँख मेरे वास्ते नम है तो करम है

अब जब के कोई आँख नहीं रुकती किसी पर
जो कोई जहाँ जिसका सनम है तो करम है

मिदहत का मज़ा भी हो तग़ज़्ज़ुल की अदा भी
कुछ ऐसा सुख़न तुझको बहम है तो करम है

अख़्तर से ग़ज़ल-साज़ों के होते हुए 'ज़रयून'
थोड़ा सा अगर तेरा भरम है तो करम है
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us mohalle ke sab gharo ki khair..

us mohalle ke sab gharo ki khair
aur gharo mein jale diyon ki khair

maa main qurbaan tere gusse par
baba jaani ki jhidkiyon ki khair

tere ham-khwaab doston ke nisaar
teri ham-naam ladkiyon ki khair

jo tere khaddo khaal par honge
tere betau ki betiyon ki khair

jinka sardaar o peshwa mein hoon
tere haatho pooche huoon ki khair

tooti-footi likhaai ke sadke
pehli pehli mohabbaton ki khair

dushmanon ke liye dua yaani
teri jaanib ke doston ki khair

facebook se jo door baithe hain
un fakeeron ki baithkon ki khair

car mein baagh khil gaya jaise
gulbadan teri khushbuon ki khair

vo jo seenon pe das ke hansati hai
un havasnaak naginon ki khair 
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उस मोहल्ले के सब घरों की खैर
और घरों में जले दियों की खैर

मां मैं कुर्बान तेरे गुस्से पर
बाबा जानी की झिड़कियों की खैर

तेरे हम-ख्वाब दोस्तों के निसार
तेरी हम-नाम लड़कियों की खैर

जो तेरे खद्दो खाल पर होंगे
तेरे बेटौ की बेटियों की खैर

जिनका सरदार ओ पेशवा में हूं
तेरे हाथो पूछे हुओं की खैर

टूटी-फूटी लिखाई के सदके
पहली पहली मोहब्बतों की खैर

दुश्मनों के लिए दुआ यानी
तेरी जानिब के दोस्तों की खैर

फेसबुक से जो दूर बैठे हैं
उन फकीरों की बैठकों की खैर

कार में बाग़ खिल गया जैसे
गुलबदन तेरी खुशबुओं की खैर

वो जो सीनों पे डस के हंसती है
उन हवसनाक नागिनों की खैर
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chhukar dar-e-shifa ko shifa ho gaya hoon main..

chhukar dar-e-shifa ko shifa ho gaya hoon main
is arsa-e-waba mein dua ho gaya hoon main

ik be-nisha ke ghar ka pata ho gaya hoon main
har la dava ke gham ki dava ho gaya hoon main

main tha jo apni aap rukaavat tha sahiba
achha hua ki khud se juda ho gaya hoon main

tune udhar judaai ka socha hi tha idhar
baithe-bithaye tujh se rihaa ho gaya hoon main

tumko khabar nahin hai ki kya ban gaye ho tum
mujh ko to sab pata hai ki kya ho gaya hoon main

main hoon to log kyun mujhe kahte hain ki vo ho tum
gar tum nahin to kis mein fana ho gaya hoon main 
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छूकर दर-ए-शिफा को शिफा हो गया हूं मैं
इस अरसा-ए-वबा में दुआ हो गया हूं मैं

इक बे-निशा के घर का पता हो गया हूं मैं
हर ला दवा के ग़म की दवा हो गया हूं मैं

मैं था जो अपनी आप रुकावट था साहिबा
अच्छा हुआ कि ख़ुद से जुदा हो गया हूं मैं

तूने उधर जुदाई का सोचा ही था इधर
बैठे-बिठाए तुझ से रिहा हो गया हूं मैं

तुमको खबर नहीं है कि क्या बन गए हो तुम
मुझ को तो सब पता है कि क्या हो गया हूं मैं

मैं हूं तो लोग क्यूं मुझे कहते हैं कि वो हो तुम
गर तुम नहीं तो किस में फना हो गया हूं मैं
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nazarandaaz ho jaane ka zahar apni nason mein bhar raha hai kaun jaane..

nazarandaaz ho jaane ka zahar apni nason mein bhar raha hai kaun jaane
bahot sar-sabz ghazalon nazmon waala apne andar mar raha hai kaun jaane

akela shakhs ko apne kareebi mausamon mein kis tarah ke zakhm aaye
vo aakhir kislie maan-baap ki kabron pe jaate dar raha hai kaun jaane

ye jiske fez se apne paraaye jholiyaan bharte hue thakte nahin hai
ye chashma tere aane se bahot pehle talak patthar raha hai kaun jaane

jo pichhle tees barso se mohabbat shayari aur yaad se roothe hue the
tera shayar vo hi bacche vo hi boodhe ikatthe kar raha hai kaun jaane 
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नजरअंदाज हो जाने का ज़हर अपनी नसों में भर रहा है कौन जाने
बहोत सर-सब्ज़ ग़ज़लों नज़्मों वाला अपने अंदर मर रहा है कौन जाने

अकेले शख़्स को अपने करीबी मौसमों में किस तरह के ज़ख्म आए
वो आख़िर किसलिए मां-बाप की कब्रों पे जाते डर रहा है कौन जाने

ये जिसके फे़ज़ से अपने पराएं झोलियां भरते हुए थकते नहीं है
ये चश्मा तेरे आने से बहोत पहले तलक पत्थर रहा है कौन जाने

जो पिछले तीस बरसो से मोहब्बत, शायरी और याद से रूठे हुए थे
तेरा शायर वो ही बच्चे वो ही बूढ़े इकट्ठे कर रहा है कौन जाने
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tanj karna hai mujh par ajee kijie..

tanj karna hai mujh par ajee kijie
kar rahe hain sabhi aap bhi kijie

baat bhi kijie dekh bhi leejie
dekh bhi leejie baat bhi kijie

aap kyun kar rahe hain mere vaaste
aap apne liye shayari kijie

khandaani munaafiq hai aap isliye
doston ki jade khokhli kijie

aap is ke siva kar bhi sakte hain kya
yaani jo kar rahe hain wahi kijie

main kahaan rokta hoon sitam se bhala
kijie kijie jaan jee kijie

aa gaye aap ke aastaane par ham
ab buri kijie ya bhali kijie

leejie chhodta hoon main kaar-e-sukhan
meri jaanib se bhi aap hi kijie

vo ali ho mohabbat ho ya ishq ho
in se miliye yahaan zindagi kijie

kya hasad bhi koi kaam karne ka hai
aashiqi kijie dilbari kijie 
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तंज करना है मुझ पर अजी कीजिए
कर रहे हैं सभी आप भी कीजिए

बात भी कीजिए देख भी लीजिए
देख भी लीजिए बात भी कीजिए

आप क्यूं कर रहे हैं मेरे वास्ते
आप अपने लिए शायरी कीजिए

खानदानी मुनाफ़िक़ है आप इसलिए
दोस्तों की जड़े खोखली कीजिए

आप इस के सिवा कर भी सकते हैं क्या
यानी जो कर रहे हैं वही कीजिए

मैं कहां रोकता हूं सितम से भला
कीजिए कीजिए जान जी कीजिए

आ गए आप के आस्ताने पर हम
अब बुरी कीजिए या भली कीजिए

लीजिए छोड़ता हूं मैं कार-ए-सुखन
मेरी जानिब से भी आप ही कीजिए

वो अली हो मोहब्बत हो या इश्क हो
इन से मिलिए यहां जिंदगी कीजिए

क्या हसद भी कोई काम करने का है
आशिक़ी कीजिए दिलबरी कीजिए
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charaagahein nai aabaad hogi..

charaagahein nai aabaad hogi
magar jo bastiyaan barbaad hogi

khuda mitti ko phir se hukm dega
kai shaklein nai ijaad hogi

abhi mumkin nahin lekin ye hoga
kitaaben sahib-e-aulaad hogi

main un aankhon ko padhkar sochta hoon
ye nazmein kis tarah se yaad hogi

ye pariyaan phir nahin aayegi milne
ye ghazlein phir nahin irshaad hogi

main darta hoon ali un aadaton se
ke jo mujhko tumhaare baad hogi 
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चरागाहें न‌ई आबाद होगी
मगर जो बस्तियां बर्बाद होगी

खुदा मिट्टी को फिर से हुक्म देगा
कई शक्लें न‌ई ईजाद होगी

अभी मुमकिन नहीं लेकिन ये होगा
किताबें साहिब-ए-औलाद होगी

मैं उन आंखों को पढ़कर सोचता हूं
ये नज्में किस तरह से याद होगी

ये परियां फिर नहीं आएगी मिलने
ये ग़ज़लें फिर नहीं इरशाद होगी

मैं डरता हूं अली उन आदतों से
के जो मुझको तुम्हारे बाद होगी
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chupchaap kyun firo ho koi baat to karo..

chupchaap kyun firo ho koi baat to karo
hal bhi nikaalte hain mulaqaat to karo

khaali hawa mein udna fakeeri nahin miyaan
dil jod ke dikhaao karaamaat to karo

kheton ko kha gai hai ye shehrili bastiyaan
sahab ilaaj-e-ranj-e-muzaafat to karo 
---------------------------------------
चुपचाप क्यों फिरो हो कोई बात तो करो
हल भी निकालते हैं मुलाकात तो करो

ख़ाली हवा में उड़ना फकीरी नहीं मियां
दिल जोड़ के दिखाओ करामात तो करो

खेतों को खा गई है ये शहरिली बस्तियां
साहब इलाज-ए-रंज-ए-मुज़ाफ़ात तो करो
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mere dil mein ye tere siva kaun hai..

mere dil mein ye tere siva kaun hai
tu nahin hai to teri jagah kaun hai

ham mohabbat mein haare hue log hain
aur mohabbat mein jeeta hua kaun hai

mere pahluu se uth ke gaya kaun hai
tu nahin hai to teri jagah kaun hai

tune jaate hue ye bataaya nahin
main tera kaun hoon tu mera kaun hai 
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मेरे दिल में ये तेरे सिवा कौन है?
तू नहीं है तो तेरी जगह कौन है?

हम मोहब्बत में हारे हुए लोग हैं
और मोहब्बत में जीता हुआ कौन है?

मेरे पहलू से उठ के गया कौन है?
तू नहीं है तो तेरी जगह कौन है?

तूने जाते हुए ये बताया नहीं
मैं तेरा कौन हूँ तू मेरा कौन है
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zakhamo ne mujh mein darwaaze khole hain..

zakhamo ne mujh mein darwaaze khole hain
maine waqt se pehle taanke khole hain

baahar aane ki bhi sakat nahin ham mein
tune kis mausam mein pinjare khole hain

kaun hamaari pyaas pe daaka daal gaya
kis ne maskejo ke tasme khole hain

yoon to mujhko kitne khat mosul hue
ek do aise the jo dil se khole hain

ye mera pehla ramjaan tha uske bagair
mat poocho kis munh se rozay khole hain

varna dhoop ka parvat kis se katata tha
usne chhatri khol ke raaste khole hain 
-----------------------------------------
जख्मों ने मुझ में दरवाजे खोले हैं
मैंने वक्त से पहले टांके खोलें हैं

बाहर आने की भी सकत नहीं हम में
तूने किस मौसम में पिंजरे खोले हैं

कौन हमारी प्यास पे डाका डाल गया
किस ने मस्कीजो के तसमे खोले हैं

यूं तो मुझको कितने खत मोसुल हुए
एक दो ऐसे थे जो दिल से खोलें हैं

ये मेरा पहला रमजान था उसके बगैर
मत पूछो किस मुंह से रोज़े खोलें हैं

वरना धूप का पर्वत किस से कटता था
उसने छतरी खोल के रास्ते खोले हैं
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maheenon baad daftar aa rahe hain..

maheenon baad daftar aa rahe hain
ham ek sadme se baahar aa rahe hain

teri baahon se dil ukta gaya hain
ab is jhoole mein chakkar aa rahe hain

kahaan soya hai chaukidaar mera
ye kaise log andar aa rahe hain

samandar kar chuka tasleem hamko
khajaane khud hi oopar aa rahe hain

yahi ek din bacha tha dekhne ko
use bas mein bitha kar aa rahe hain
------------------------------------
महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं
हम एक सदमे से बाहर आ रहे हैं

तेरी बाहों से दिल उकता गया हैं
अब इस झूले में चक्कर आ रहे हैं

कहां सोया है चौकीदार मेरा
ये कैसे लोग अंदर आ रहे हैं

समंदर कर चुका तस्लीम हमको
खजाने ख़ुद ही ऊपर आ रहे हैं

यही एक दिन बचा था देखने को
उसे बस में बिठा कर आ रहे हैं
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ghalat nikle sab andaaze hamaare..

ghalat nikle sab andaaze hamaare
ki din aaye nahi achhe hamaare

safar se baaz rahne ko kaha hain
kisi ne khol ke tasmee hamaare

har ik mausam bahut andar tak aaya
khule rahte the darwaaze hamaare

us abr-e-mehrban se kya shikaayat
agar bartan nahin bharte hamaare 
-----------------------------------
ग़लत निकले सब अंदाज़े हमारे
कि दिन आये नही अच्छे हमारे

सफ़र से बाज़ रहने को कहा हैं
किसी ने खोल के तस्मे हमारे

हर इक मौसम बहुत अंदर तक आया
खुले रहते थे दरवाज़े हमारे

उस अब्र-ए-मेहरबाँ से क्या शिकायत
अगर बर्तन नहीं भरते हमारे
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haan ye sach hai ki mohabbat nahin ki..

haan ye sach hai ki mohabbat nahin ki
dost bas meri tabiyat nahin ki

isliye gaanv main sailaab aaya
hamne daryaao ki izzat nahin ki

jism tak usne mujhe saunp diya
dil ne is par bhi kanaayat nahin ki

mere ejaz mein rakhi gai thi
maine jis bazm mein shirkat nahin ki

yaad bhi yaad se rakha usko
bhool jaane mein bhi gafalat nahin ki

usko dekha tha ajab haalat mein
phir kabhi uski hifaazat nahin ki

ham agar fatah hue hai to kya
ishq ne kis pe hukoomat nahin ki 
-------------------------------------
हां ये सच है कि मोहब्बत नहीं की
दोस्त बस मेरी तबीयत नहीं की

इसलिए गांव मैं सैलाब आया
हमने दरियाओ की इज्जत नहीं की

जिस्म तक उसने मुझे सौंप दिया
दिल ने इस पर भी कनायत नहीं की

मेरे एजाज़ में रखी गई थी
मैने जिस बज़्म में शिरकत नहीं की

याद भी याद से रखा उसको
भूल जाने में भी गफलत नहीं की

उसको देखा था अजब हालत में
फिर कभी उसकी हिफाज़त नहीं की

हम अगर फतह हुए है तो क्या
इश्क ने किस पे हकूमत नहीं की
Read more

kab paani girne se khushboo footi hai..

kab paani girne se khushboo footi hai
mitti ko bhi ilm hai baarish jhoothi hai

ek rishte ko laaparwaahi le doobi
ek rassi dheeli padne par tooti hai

haath milaane par bhi us pe khula nahin
ye ungli par zakham hai ya angoothi hai

uska hansna naa-mumkin tha yun samjho
seement ki deewaar se kopale footi hai

hamne in par sher nahin likkhe haafi
hamne in pedon ki izzat looti hai

yun lagta hai deen-o-duniya chhoot gaye
mujh se tere shehar ki bas kya chhooti hai 
-----------------------------------------------
कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है
मिट्टी को भी इल्म है बारिश झूठी है

एक रिश्ते को लापरवाही ले डूबी
एक रस्सी ढीली पड़ने पर टूटी है

हाथ मिलाने पर भी उस पे खुला नहीं
ये उँगली पर ज़ख़्म है या अँगूठी है

उसका हँसना ना-मुमकिन था यूँ समझो
सीमेंट की दीवार से कोपल फूटी है

हमने इन पर शेर नहीं लिक्खे हाफ़ी
हमने इन पेड़ों की इज़्ज़त लूटी है

यूँ लगता है दीन-ओ-दुनिया छूट गए
मुझ से तेरे शहर की बस क्या छूटी है
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ye shayari ye mere seene mein dabii hui aag..

ye shayari ye mere seene mein dabii hui aag
bhadak uthegi kabhi meri jama ki hui aag

main choo raha hoon tera jism khwaab ke andar
bujha raha hoon main tasveer mein lagi hui aag

khijaan mein door rakho maachiso ko jungle se
dikhaai deti nahin ped mein chhupi hui aag

main kaatta hoon abhi tak wahi kate hue lafz
main taapta hoon abhi tak wahi bujhi hui aag

yahi diya tujhe pehli nazar mein bhaaya tha
khareed laaya main teri pasand ki hui aag

ek umr se jal bujh raha hoon inke sabab
tera bacha hua paani teri bachi hui aag
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ये शायरी ये मेरे सीने में दबी हुई आग
भड़क उठेगी कभी मेरी जमा की हुई आग

मैं छू रहा हूं तेरा जिस्म ख्वाब के अंदर
बुझा रहा हूं मैं तस्वीर में लगी हुई आग

खिजां में दूर रखो माचिसो को जंगल से
दिखाई देती नहीं पेड़ में छुपी हुई आग

मैं काटता हूं अभी तक वही कटे हुए लफ्ज़
मैं तापता हूं अभी तक वही बुझी हुई आग

यही दिया तुझे पहली नजर में भाया था
खरीद लाया मैं तेरी पसंद की हुई आग

एक उम्र से जल बूझ रहा हूं इनके सबब
तेरा बचा हुआ पानी तेरी बची हुई आग
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meri aankh se tera gam chhalk to nahin gaya..

meri aankh se tera gam chhalk to nahin gaya
tujhe dhoondh kar kahi main bhatk to nahin gaya

yah jo itne pyaar se dekhta hai tu aajkal
mere dost tu kahi mujhse thak to nahin gaya

teri baddua ka asar hua bhi to faayda
mere maand padne se tu chamak to nahin gaya

bada purfareb hai shahdo shir ka zaayka
magar in labon se tera namak to nahin gaya

tere jism se meri guftagoo rahi raat bhar
kahi main nashe mein zyaada bak to nahin gaya 
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मेरी आंख से तेरा गम छलक तो नहीं गया
तुझे ढूंढ कर कहीं मैं भटक तो नहीं गया

यह जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
मेरे दोस्त तू कहीं मुझसे थक तो नहीं गया

तेरी बद्दुआ का असर हुआ भी तो फायदा
मेरे मांद पड़ने से तू चमक तो नहीं गया

बड़ा पुरफरेब है शहदो शिर का ज़ायका
मगर इन लबों से तेरा नमक तो नहीं गया

तेरे जिस्म से मेरी गुफ्तगू रही रात भर
कहीं मैं नशे में ज्यादा बक तो नहीं गया
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yah soch kar mera sehra mein jee nahin lagta..

yah soch kar mera sehra mein jee nahin lagta
main shaamile safe aawaargi nahin lagta

kabhi-kabhi vo khuda ban ke saath chalta hai
kabhi-kabhi to vo insaan bhi nahin lagta

yakeen kyun nahin aata tujhe mere dil par
ye fal kahaan se tujhe mausami nahin lagta

main chahta hoon vo meri jabeen pe bausa de
magar jali hui roti ko ghee nahin lagta

tere khyaal se aage bhi ek duniya hai
tera khyaal mujhe sarsari nahin lagta

main uske paas kisi kaam se nahin aata
use ye kaam koi kaam hi nahin lagta 
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यह सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
मैं शामिले सफे आवारगी नहीं लगता

कभी-कभी वो ख़ुदा बन के साथ चलता है
कभी-कभी तो वो इंसान भी नहीं लगता

यकीन क्यों नहीं आता तुझे मेरे दिल पर
ये फल कहां से तुझे मौसमी नहीं लगता

मैं चाहता हूं वो मेरी जबीं पे बौसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नहीं लगता

तेरे ख्याल से आगे भी एक दुनिया है
तेरा ख्याल मुझे सरसरी नहीं लगता

मैं उसके पास किसी काम से नहीं आता
उसे ये काम कोई काम ही नहीं लगता
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paayal kabhi pahne kabhi kangan use kehna..

paayal kabhi pahne kabhi kangan use kehna
le aaye muhabbat mein nayaapan use kehna

maykash kabhi aankhon ke bharose nahin rahte
shabnam kabhi bharti nahin bartan use kehna

ghar-baar bhula deti hai dariya ki muhabbat
kashti mein guzaar aaya hoon jeevan use kehna

ik shab se ziyaada nahin duniya ki maseri
ik shab se ziyaada nahin dulhan use kehna

rah rah ke dahak uthati hai ye aatish-e-vahshat
deewane hai seharaaon ka eendhan use kehna
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पायल कभी पहने कभी कंगन उसे कहना
ले आए मुहब्बत में नयापन उसे कहना

मयकश कभी आँखों के भरोसे नहीं रहते
शबनम कभी भरती नहीं बर्तन उसे कहना

घर-बार भुला देती है दरिया की मुहब्बत
कश्ती में गुज़ार आया हूँ जीवन उसे कहना

इक शब से ज़ियादा नहीं दुनिया की मसेरी
इक शब से ज़ियादा नहीं दुल्हन उसे कहना

रह रह के दहक उठती है ये आतिश-ए-वहशत
दीवाने है सहराओं का ईंधन उसे कहना
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mujh se milta hai par jism ki sarhad paar nahin karta..

mujh se milta hai par jism ki sarhad paar nahin karta
iska matlab tu bhi mujhse saccha pyaar nahin karta

dushman achha ho to jang mein dil ko thaaras rahti hai
dushman achha ho to vo peeche se vaar nahin karta

roz tujhe toote dil kam qeemat par lena padte hain
isse achha tha tu ishq ka kaarobaar nahin karta 
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मुझ से मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नहीं करता
इसका मतलब तू भी मुझसे सच्चा प्यार नहीं करता

दुश्मन अच्छा हो तो जंग में दिल को ठारस रहती है
दुश्मन अच्छा हो तो वो पीछे से वार नहीं करता

रोज तुझे टूटे दिल कम क़ीमत पर लेना पड़ते हैं
इससे अच्छा था तू इश्क़ का कारोबार नहीं करता
 
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shaitaan ke dil par chalta hoon seenon mein safar karta hoon..

shaitaan ke dil par chalta hoon seenon mein safar karta hoon
us aankh ka kya bachta hai mai jis aankh mein ghar karta hoon

jo mujh mein utre hain unko meri lehron ka andaaza hai
daryaao mein uthata baithta hoon sailaab basar karta hoon

meri tanhaai ka bojh tumhaari binaai le doobega
mujhe itna qareeb se mat dekho aankhon par asar karta hoon 
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शैतान के दिल पर चलता हूं सीनों में सफर करता हूं
उस आंख का क्या बचता है मै जिस आंख में घर करता हूं

जो मुझ में उतरे हैं उनको मेरी लहरों का अंदाजा है
दरियाओ में उठता बैठता हूं सैलाब बसर करता हूं

मेरी तन्हाई का बोझ तुम्हारी बिनाई ले डूबेगा
मुझे इतना करीब से मत देखो आंखों पर असर करता हूं
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aaine aankh mein chubhte the bistar se badan katraata tha..

aaine aankh mein chubhte the bistar se badan katraata tha
ek yaad basar karti thi mujhe mai saans nahin le paata tha

ek shakhs ke haath mein tha sab kuchh mera khilna bhi murjhaana bhi
rota tha to raat ujad jaati hansata tha to din ban jaata tha

mai rab se raabte mein rehta mumkin hai ki us se raabta ho
mujhe haath uthaana padte the tab jaakar vo phone uthaata tha

mujhe aaj bhi yaad hai bachpan mein kabhi us par nazar agar padti
mere baste se phool barsate the meri takhti pe dil ban jaata tha

ham ek zindaan mein jinda the ham ek janjeer mein badhe hue
ek doosre ko dekh kar ham kabhi hansate the to rona aata tha

vo jism nazarandaaz nahin ho paata tha in aankhon se
mujrim thehrata tha apna kehne ko to ghar thehrata tha 
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आईने आंख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता था
एक याद बसर करती थी मुझे मै सांस नहीं ले पाता था

एक शख्स के हाथ में था सब कुछ मेरा खिलना भी मुरझाना भी
रोता था तो रात उजड़ जाती हंसता था तो दिन बन जाता था

मै रब से राब्ते में रहता मुमकिन है की उस से राब्ता हो
मुझे हाथ उठाना पड़ते थे तब जाकर वो फोन उठाता था

मुझे आज भी याद है बचपन में कभी उस पर नजर अगर पड़ती
मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पे दिल बन जाता था

हम एक ज़िंदान में जिंदा थे हम एक जंजीर में बढ़े हुए
एक दूसरे को देख कर हम कभी हंसते थे तो रोना आता था

वो जिस्म नजरअंदाज नहीं हो पाता था इन आंखों से
मुजरिम ठहराता था अपना कहने को तो घर ठहराता था
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nahin aata kisi par dil hamaara..

nahin aata kisi par dil hamaara
wahi kashti wahi saahil hamaara

tere dar par karenge naukri ham
teri galiyaan hain mustaqbil hamaara

kabhi milta tha koi hotelon mein
kabhi bharta tha koi bill hamaara 
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नहीं आता किसी पर दिल हमारा
वही कश्ती वही साहिल हमारा

तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम
तेरी गलियाँ हैं मुस्तक़बिल हमारा

कभी मिलता था कोई होटलों में
कभी भरता था कोई बिल हमारा
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tujhe bhi apne saath rakhta aur use bhi apna deewaana bana leta..

tujhe bhi apne saath rakhta aur use bhi apna deewaana bana leta
agar main chahta to dil mein koi chor darwaaza bana leta

main apne khwaab poore kar ke khush hoon par ye pachtawa nahi jaata
ke mustaqbil banaane se to achha tha tujhe apna bana leta

akela aadmi hoon aur achaanak aaye ho jo kuchh tha haazir hai
agar tum aane se pehle bata dete to kuchh achha bana leta 
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तुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाज़ा बना लेता

मैं अपने ख्वाब पूरे कर के खुश हूँ पर ये पछतावा नही जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था तुझे अपना बना लेता

अकेला आदमी हूँ और अचानक आये हो, जो कुछ था हाजिर है
अगर तुम आने से पहले बता देते तो कुछ अच्छा बना लेता
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ye kis tarah ka taalluq hai aapka mere saath..

ye kis tarah ka taalluq hai aapka mere saath
mujhe hi chhod ke jaane ka mashwara mere saath

yahi kahi hamein raston ne baddua di thi
magar main bhul gaya aur kaun tha mere saath

vo jhaankta nahin khidki se din nikalta hai
tujhe yakeen nahin aa raha to aa mere saath 
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ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेरे साथ
मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ

यही कहीं हमें रस्तों ने बद्दुआ दी थी
मगर मैं भुल गया और कौन था मेरे साथ

वो झांकता नहीं खिड़की से दिन निकलता है
तुझे यकीन नहीं आ रहा तो आ मेरे साथ
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jo tere saath rahte hue sogwaar ho..

jo tere saath rahte hue sogwaar ho
laanat ho aise shakhs pe aur beshumaar ho

ab itni der bhi na laga ye ho na kahi
tu aa chuka ho aur tera intezar ho

mai phool hoon to phir tere baalo mein kyun nahi hoon
tu teer hai to mere kaleje ke paar ho

ek aasteen chadhaane ki aadat ko chhod kar
haafi tum aadmi to bahut shaandaar ho

kab tak kisi se koi mohabbat se pesh aaein
usko mere ravayye par dukh hai to yaar ho 
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जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो

अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो

मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो

एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो

कब तक किसी से कोई मोहब्बत से पेश आएं
उसको मेरे रवय्ये पर दुख है तो यार हो
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ek aur shakhs chhodkar chala gaya to kya hua..

ek aur shakhs chhodkar chala gaya to kya hua
hamaare saath kaun sa ye pehli martaba hua

azl se in hateliyon mein hijr ki lakeer thi
tumhaara dukh to jaise mere haath mein bada hua

mere khilaaf dushmanon ki saf mein hai vo aur main
bahut bura lagunga us par teer kheenchta hua 
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एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ।

अज़ल से इन हथेलियों में हिज्र की लकीर थी
तुम्हारा दुःख तो जैसे मेरे हाथ में बड़ा हुआ

मेरे खिलाफ दुश्मनों की सफ़ में है वो और मैं
बहुत बुरा लगूँगा उस पर तीर खींचता हुआ
 
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jaane waale se raabta rah jaaye..

jaane waale se raabta rah jaaye
ghar ki deewaar par diya rah jaaye

ik nazar jo bhi dekh le tujh ko
vo tire khwaab dekhta rah jaaye

itni girhen lagi hain is dil par
koi khole to kholta rah jaaye

koi kamre mein aag taapta ho
koi baarish mein bheegta rah jaaye

neend aisi ki raat kam pad jaaye
khwaab aisa ki munh khula rah jaaye

jheel saif-ul-mulook par jaaun
aur kamre mein camera rah jaaye 
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जाने वाले से राब्ता रह जाए
घर की दीवार पर दिया रह जाए

इक नज़र जो भी देख ले तुझ को
वो तिरे ख़्वाब देखता रह जाए

इतनी गिर्हें लगी हैं इस दिल पर
कोई खोले तो खोलता रह जाए

कोई कमरे में आग तापता हो
कोई बारिश में भीगता रह जाए

नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए
ख़्वाब ऐसा कि मुँह खुला रह जाए

झील सैफ़-उल-मुलूक पर जाऊँ
और कमरे में कैमरा रह जाए
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jab kisi ek ko rihaa kiya jaaye..

jab kisi ek ko rihaa kiya jaaye
sab asiroon se mashwara kiya jaaye

rah liya jaaye apne hone par
apne marne pe hausla kiya jaaye

ishq karne mein kya buraai hai
haan kiya jaaye baarha kiya jaaye

mera ik yaar sindh ke us paar
na-khudaon se raabta kiya jaaye

meri naqlein utaarne laga hai
aaine ka batao kya kiya jaaye

khaamoshi se lada hua ik ped
is se chal kar mukaalima kiya jaaye 
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जब किसी एक को रिहा किया जाए
सब असीरों से मशवरा किया जाए

रह लिया जाए अपने होने पर
अपने मरने पे हौसला किया जाए

इश्क़ करने में क्या बुराई है
हाँ किया जाए बारहा किया जाए

मेरा इक यार सिंध के उस पार
ना-ख़ुदाओं से राब्ता किया जाए

मेरी नक़लें उतारने लगा है
आईने का बताओ क्या किया जाए

ख़ामुशी से लदा हुआ इक पेड़
इस से चल कर मुकालिमा किया जाए
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cheekhte hain dar-o-deewar nahin hota main..

cheekhte hain dar-o-deewar nahin hota main
aankh khulne pe bhi bedaar nahin hota main

khwaab karna ho safar karna ho ya rona ho
mujh mein khoobi hai bezaar nahin hota mein

ab bhala apne liye banna sanwarna kaisa
khud se milna ho to taiyyaar nahin hota main

kaun aayega bhala meri ayaadat ke liye
bas isee khauf se beemaar nahin hota main

manzil-e-ishq pe nikla to kaha raaste ne
har kisi ke liye hamvaar nahin hota main

teri tasveer se taskin nahin hoti mujhe
teri awaaz se sarshaar nahin hota main

log kahte hain main baarish ki tarah hoon haafi
akshar auqaat lagaataar nahin hota main 
-------------------------------------------
चीख़ते हैं दर-ओ-दीवार नहीं होता मैं
आँख खुलने पे भी बेदार नहीं होता मैं

ख़्वाब करना हो सफ़र करना हो या रोना हो
मुझ में ख़ूबी है बेज़ार नहीं होता में

अब भला अपने लिए बनना सँवरना कैसा
ख़ुद से मिलना हो तो तय्यार नहीं होता मैं

कौन आएगा भला मेरी अयादत के लिए
बस इसी ख़ौफ़ से बीमार नहीं होता मैं

मंज़िल-ए-इश्क़ पे निकला तो कहा रस्ते ने
हर किसी के लिए हमवार नहीं होता मैं

तेरी तस्वीर से तस्कीन नहीं होती मुझे
तेरी आवाज़ से सरशार नहीं होता मैं

लोग कहते हैं मैं बारिश की तरह हूँ 'हाफ़ी'
अक्सर औक़ात लगातार नहीं होता मैं
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vaise main ne duniya mein kya dekha hai..

vaise main ne duniya mein kya dekha hai
tum kahte ho to phir achha dekha hai

main us ko apni vehshat tohfe mein doon
haath uthaaye jis ne sehra dekha hai

bin dekhe us ki tasveer bana loonga
aaj to main ne us ko itna dekha hai

ek nazar mein manzar kab khulte hain dost
tu ne dekha bhi hai to kya dekha hai

ishq mein banda mar bhi saka hai main ne
dil ki dastaavez mein likha dekha hai

main to aankhen dekh ke hi batla doonga
tum mein se kis kis ne dariya dekha hai

aage seedhe haath pe ek taraai hai
main ne pehle bhi ye rasta dekha hai

tum ko to is baagh ka naam pata hoga
tum ne to is shehar ka naqsha dekha hai 
-----------------------------------------
वैसे मैं ने दुनिया में क्या देखा है
तुम कहते हो तो फिर अच्छा देखा है

मैं उस को अपनी वहशत तोहफ़े में दूँ
हाथ उठाए जिस ने सहरा देखा है

बिन देखे उस की तस्वीर बना लूँगा
आज तो मैं ने उस को इतना देखा है

एक नज़र में मंज़र कब खुलते हैं दोस्त
तू ने देखा भी है तो क्या देखा है

इश्क़ में बंदा मर भी सकता है मैं ने
दिल की दस्तावेज़ में लिखा देखा है

मैं तो आँखें देख के ही बतला दूँगा
तुम में से किस किस ने दरिया देखा है

आगे सीधे हाथ पे एक तराई है
मैं ने पहले भी ये रस्ता देखा है

तुम को तो इस बाग़ का नाम पता होगा
तुम ने तो इस शहर का नक़्शा देखा है
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shor karunga aur na kuchh bhi boloonunga..

shor karunga aur na kuchh bhi boloonunga
khaamoshi se apna rona ro loonga

saari umr isee khwaahish mein guzri hai
dastak hogi aur darwaaza khooloonunga

tanhaai mein khud se baatein karne hain
mere munh mein jo aayega boloonunga

raat bahut hai tum chaaho to so jaao
mera kya hai main din mein bhi so loonga

tum ko dil ki baat bataani hai lekin
aankhen band karo to mutthi khooloonunga 
--------------------------------------------
शोर करूँगा और न कुछ भी बोलूँगा
ख़ामोशी से अपना रोना रो लूँगा

सारी उम्र इसी ख़्वाहिश में गुज़री है
दस्तक होगी और दरवाज़ा खोलूँगा

तन्हाई में ख़ुद से बातें करनी हैं
मेरे मुँह में जो आएगा बोलूँगा

रात बहुत है तुम चाहो तो सो जाओ
मेरा क्या है मैं दिन में भी सो लूँगा

तुम को दिल की बात बतानी है लेकिन
आँखें बंद करो तो मुट्ठी खोलूँगा
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ashk zaayein ho rahe the dekh kar rota na tha..

ashk zaayein ho rahe the dekh kar rota na tha
jis jagah banta tha rona main udhar rota na tha

sirf teri chup ne mere gaal geelay kar diye
main to vo hoon jo kisi ki maut par rota na tha

mujh pe kitne saanhe guzre par in aankhon ko kya
mera dukh ye hai ki mera hum-safar rota na tha

main ne us ke vasl mein bhi hijr kaata hai kahi
vo mere kaandhe pe rakh leta tha sar rota na tha

pyaar to pehle bhi us se tha magar itna nahin
tab main us ko choo to leta tha magar rota na tha

giryaa-o-zaari ko bhi ik khaas mausam chahiye
meri aankhen dekh lo main waqt par rota na tha 
------------------------------------------------
अश्क ज़ाएअ' हो रहे थे देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था

सिर्फ़ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिए
मैं तो वो हूँ जो किसी की मौत पर रोता न था

मुझ पे कितने सानहे गुज़रे पर इन आँखों को क्या
मेरा दुख ये है कि मेरा हम-सफ़र रोता न था

मैं ने उस के वस्ल में भी हिज्र काटा है कहीं
वो मिरे काँधे पे रख लेता था सर रोता न था

प्यार तो पहले भी उस से था मगर इतना नहीं
तब मैं उस को छू तो लेता था मगर रोता न था

गिर्या-ओ-ज़ारी को भी इक ख़ास मौसम चाहिए
मेरी आँखें देख लो मैं वक़्त पर रोता न था
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ab majeed usse ye rishta nahin rakha jaata..

ab majeed usse ye rishta nahin rakha jaata
jis se ik shakhs ka pardaa nahin rakha jaata

ek to bas mein nahin tujh se muhabbat na karu
aur phir haath bhi halka nahin rakha jaata

padhne jaata hoon to tasmee nahin baande jaate
ghar palatta hoon to basta nahin rakha jaata

dar-o-deewar pe jungle ka gumaan hota hai
mujh se ab ghar mein parinda nahin rakha jaata 
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अब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाता
जिस से इक शख़्स का परदा नहीं रखा जाता

एक तो बस में नहीं तुझ से मुहब्बत न करू
और फिर हाथ भी हल्का नहीं रखा जाता

पढ़ने जाता हूं तो तस्मे नहीं बांदे जाते
घर पलटता हूं तो बस्ता नहीं रखा जाता

दर-ओ-दीवार पे जंगल का गुमां होता है
मुझ से अब घर में परिंदा नहीं रखा जाता
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ye maine kab kaha ki mere haq mein faisla kare..

ye maine kab kaha ki mere haq mein faisla kare
agar vo mujh se khush nahin hai to mujhe juda kare

main uske saath jis tarah guzaarta hoon zindagi
use to chahiye ki mera shukriya ada kare

meri dua hai aur ik tarah se baddua bhi hai
khuda tumhein tumhaare jaisi betiyaan ata kare

bana chuka hoon main mohabbaton ke dard ki dava
agar kisi ko chahiye to mujhse raabta kare
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ये मैंने कब कहा कि मेरे हक़ में फ़ैसला करे
अगर वो मुझ से ख़ुश नहीं है तो मुझे जुदा करे

मैं उसके साथ जिस तरह गुज़ारता हूँ ज़िंदगी
उसे तो चाहिए कि मेरा शुक्रिया अदा करे

मेरी दुआ है और इक तरह से बद्दुआ भी है
ख़ुदा तुम्हें तुम्हारे जैसी बेटियाँ अता करे

बना चुका हूँ मैं मोहब्बतों के दर्द की दवा
अगर किसी को चाहिए तो मुझसे राब्ता करे
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kya ghalatfahmi mein rah jaane ka sadma kuchh nahi..

kya ghalatfahmi mein rah jaane ka sadma kuchh nahi
vo mujhe samjha to saka tha ki aisa kuchh nahi

ishq se bach kar bhi banda kuchh nahi hota magar
ye bhi sach hai ishq mein bande ka bachta kuchh nahi

jaane kaise raaz seene mein liye baitha hai vo
zahr kha leta hai par munh se ugalta kuchh nahi

shukr hai ki usne mujhse kah diya ki kuchh to hai
main usse kehne hi waala tha ki achha kuchh nahi 
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क्या ग़लतफ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नही
वो मुझे समझा तो सकता था कि ऐसा कुछ नही

इश्क़ से बच कर भी बंदा कुछ नही होता मग़र
ये भी सच है इश्क़ में बंदे का बचता कुछ नही

जाने कैसे राज़ सीने में लिए बैठा है वो
ज़ह्र खा लेता है पर मुँह से उगलता कुछ नही

शुक्र है कि उसने मुझसे कह दिया कि कुछ तो है
मैं उससे कहने ही वाला था कि अच्छा कुछ नही
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mujhse mat poocho ki mujhko aur kya kya yaad hai..

mujhse mat poocho ki mujhko aur kya kya yaad hai
vo mere nazdeek aaya tha bas itna yaad hai

yun to dashte-dil mein kitnon ne qadam rakhe magar
bhool jaane par bhi ek naqsh-e-kaf-e-paa yaad hai

us badan ki ghaatiyan tak naqsh hain dil par mere
kohsaaron se samandar tak ko dariya yaad hai

mujhse vo kaafir musalmaan to na ho paaya kabhi
lekin usko vo tarjume ke saath kalmaa yaad hai
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मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या क्या याद है
वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है

यूँ तो दश्ते-दिल में कितनों ने क़दम रक्खे मग़र
भूल जाने पर भी एक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा याद है

उस बदन की घाटियाँ तक नक़्श हैं दिल पर मेरे
कोहसारों से समंदर तक को दरिया याद है

मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो न हो पाया कभी
लेकिन उसको वो तरजुमे के साथ कलमा याद है
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maine jo kuchh bhi socha hua hai main vo waqt aane pe kar jaaunga..

maine jo kuchh bhi socha hua hai main vo waqt aane pe kar jaaunga
tum mujhe zahar lagte ho aur main kisi din tumhein pee ke mar jaaunga

tu to beenaai hai meri tere alaava mujhe kuchh bhi dikhta nahin
maine tujhko agar tere ghar pe utaara to main kaise ghar jaaunga

chahta hoon tumhein aur bahut chahta hoon tumhein khud bhi maaloom hai
haan agar mujhse poocha kisi ne to main seedha munh par mukar jaaunga

tere dil se tere shehar se tere ghar se teri aankh se tere dar se
teri galiyon se tere watan se nikala hua hoon kidhar jaaunga 
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मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है, मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा

तू तो बीनाई है मेरी तेरे अलावा मुझे कुछ भी दिखता नहीं
मैंने तुझको अगर तेरे घर पे उतारा तो मैं कैसे घर जाऊँगा

चाहता हूँ तुम्हें और बहुत चाहता हूँ, तुम्हें ख़ुद भी मालूम है
हाँ अगर मुझसे पूछा किसी ने तो मैं सीधा मुँह पर मुकर जाऊँगा

तेरे दिल से तेरे शहर से तेरे घर से तेरी आँख से तेरे दर से
तेरी गलियों से तेरे वतन से निकाला हुआ हूँ किधर जाऊँगा
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mujhko darwaaze par hi rok liya jaata hai..

mujhko darwaaze par hi rok liya jaata hai
mere aane se bhala aap ka kya jaata hai

tum agar jaane lage ho to palat kar mat dekho
maut likhkar to kalam tod diya jaata hai

tujhko batlaata magar sharm bahut aati hai
teri tasveer se jo kaam liya jaata hai 
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मुझको दरवाजे पर ही रोक लिया जाता है
मेरे आने से भला आप का क्या जाता है

तुम अगर जाने लगे हो तो पलट कर मत देखो
मौत लिखकर तो कलम तोड़ दिया जाता है

तुझको बतलाता मगर शर्म बहुत आती है
तेरी तस्वीर से जो काम लिया जाता है
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usi jagah par jahaan kai raaste milenge..

usi jagah par jahaan kai raaste milenge
palat ke aaye to sabse pehle tujhe milenge

agar kabhi tere naam par jang ho gai to
ham aise buzdil bhi pehli saf mein khade milenge

tujhe ye sadken mere tavassut se jaanti hain
tujhe hamesha ye sab ishaare khule milenge 
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उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे

अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे

तुझे ये सड़कें मेरे तवस्सुत से जानती हैं
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे
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dil mohabbat mein mubtala ho jaaye..

dil mohabbat mein mubtala ho jaaye
jo abhi tak na ho saka ho jaaye

tujh mein ye aib hai ki khoobi hai
jo tujhe dekh le tira ho jaaye

khud ko aisi jagah chhupaaya hai
koi dhundhe to laapata ho jaaye

main tujhe chhod kar chala jaaun
saaya deewaar se juda ho jaaye

bas vo itna kahe mujhe tum se
aur phir call munkata ho jaaye

dil bhi kaisa darakht hai haafi
jo tiri yaad se haraa ho jaaye
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दिल मोहब्बत में मुब्तला हो जाए
जो अभी तक न हो सका हो जाए

तुझ में ये ऐब है कि ख़ूबी है
जो तुझे देख ले तिरा हो जाए

ख़ुद को ऐसी जगह छुपाया है
कोई ढूँढे तो लापता हो जाए

मैं तुझे छोड़ कर चला जाऊँ
साया दीवार से जुदा हो जाए

बस वो इतना कहे मुझे तुम से
और फिर कॉल मुंक़ता' हो जाए

दिल भी कैसा दरख़्त है 'हाफ़ी'
जो तिरी याद से हरा हो जाए
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uthi nigaah to apne hi roo-b-roo ham the..

uthi nigaah to apne hi roo-b-roo ham the
zameen aaina-khaana thi chaar-soo ham the

dinon ke ba'ad achaanak tumhaara dhyaan aaya
khuda ka shukr ki us waqt ba-wazoo ham the

vo aaina to nahin tha par aaine sa tha
vo ham nahin the magar yaar hoo-b-hoo ham the

zameen pe ladte hue aasmaan ke narghe mein
kabhi kabhi koi dushman kabhu kabhu ham the

hamaara zikr bhi ab jurm ho gaya hai wahan
dinon ki baat hai mehfil ki aabroo ham the

khayal tha ki ye pathraav rok den chal kar
jo hosh aaya to dekha lahu lahu ham the
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उठी निगाह तो अपने ही रू-ब-रू हम थे
ज़मीन आईना-ख़ाना थी चार-सू हम थे

दिनों के बा'द अचानक तुम्हारा ध्यान आया
ख़ुदा का शुक्र कि उस वक़्त बा-वज़ू हम थे

वो आईना तो नहीं था पर आईने सा था
वो हम नहीं थे मगर यार हू-ब-हू हम थे

ज़मीं पे लड़ते हुए आसमाँ के नर्ग़े में
कभी कभी कोई दुश्मन कभू कभू हम थे

हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ
दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे

ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
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kaali raaton ko bhi rangeen kaha hai main ne..

kaali raaton ko bhi rangeen kaha hai main ne
teri har baat pe aameen kaha hai main ne

teri dastaar pe tanqeed ki himmat to nahin
apni paa-posh ko qaaleen kaha hai main ne

maslahat kahiye use ya ki siyaasat kahiye
cheel kawwon ko bhi shaheen kaha hai main ne

zaa'iqe baarha aankhon mein maza dete hain
baaz chehron ko bhi namkeen kaha hai main ne

tu ne fan ki nahin shajre ki himayat ki hai
tere ezaaz ko tauheen kaha hai main ne
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काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने
तेरी हर बात पे आमीन कहा है मैं ने

तेरी दस्तार पे तन्क़ीद की हिम्मत तो नहीं
अपनी पा-पोश को क़ालीन कहा है मैं ने

मस्लहत कहिए उसे या कि सियासत कहिए
चील कव्वों को भी शाहीन कहा है मैं ने

ज़ाइक़े बारहा आँखों में मज़ा देते हैं
बाज़ चेहरों को भी नमकीन कहा है मैं ने

तू ने फ़न की नहीं शजरे की हिमायत की है
तेरे एज़ाज़ को तौहीन कहा है मैं ने
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mere ashkon ne kai aankhon mein jal-thal kar diya..

mere ashkon ne kai aankhon mein jal-thal kar diya
ek paagal ne bahut logon ko paagal kar diya

apni palkon par saja kar mere aansu aap ne
raaste ki dhool ko aankhon ka kaajal kar diya

main ne dil de kar use ki thi wafa ki ibtida
us ne dhoka de ke ye qissa mukammal kar diya

ye hawaaein kab nigaahen fer len kis ko khabar
shohraton ka takht jab toota to paidal kar diya

devataaon aur khudaaon ki lagaaee aag ne
dekhte hi dekhte basti ko jungle kar diya

zakham ki soorat nazar aate hain chehron ke nuqoosh
ham ne aainon ko tahzeebon ka maqtal kar diya

shehar mein charcha hai aakhir aisi ladki kaun hai
jis ne achhe-khaase ik sha'ir ko paagal kar diya 
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मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया
एक पागल ने बहुत लोगों को पागल कर दिया

अपनी पलकों पर सजा कर मेरे आँसू आप ने
रास्ते की धूल को आँखों का काजल कर दिया

मैं ने दिल दे कर उसे की थी वफ़ा की इब्तिदा
उस ने धोका दे के ये क़िस्सा मुकम्मल कर दिया

ये हवाएँ कब निगाहें फेर लें किस को ख़बर
शोहरतों का तख़्त जब टूटा तो पैदल कर दिया

देवताओं और ख़ुदाओं की लगाई आग ने
देखते ही देखते बस्ती को जंगल कर दिया

ज़ख़्म की सूरत नज़र आते हैं चेहरों के नुक़ूश
हम ने आईनों को तहज़ीबों का मक़्तल कर दिया

शहर में चर्चा है आख़िर ऐसी लड़की कौन है
जिस ने अच्छे-ख़ासे इक शाइ'र को पागल कर दिया
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zindagi ko zakham ki lazzat se mat mahroom kar..

zindagi ko zakham ki lazzat se mat mahroom kar
raaste ke pattharon se khairiyat ma'aloom kar

toot kar bikhri hui talwaar ke tukde samet
aur apne haar jaane ka sabab ma'aloom kar

jaagti aankhon ke khwaabon ko ghazal ka naam de
raat bhar ki karvaton ka zaa'ika manzoom kar

shaam tak laut aaunga haathon ka khaali-pan liye
aaj phir nikla hoon main ghar se hatheli choom kar

mat sikha lehje ko apni barchiyon ke paintare
zinda rahna hai to lehje ko zara ma'soom kar 
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ज़िंदगी को ज़ख़्म की लज़्ज़त से मत महरूम कर
रास्ते के पत्थरों से ख़ैरियत मा'लूम कर

टूट कर बिखरी हुई तलवार के टुकड़े समेट
और अपने हार जाने का सबब मा'लूम कर

जागती आँखों के ख़्वाबों को ग़ज़ल का नाम दे
रात भर की करवटों का ज़ाइक़ा मंज़ूम कर

शाम तक लौट आऊँगा हाथों का ख़ाली-पन लिए
आज फिर निकला हूँ मैं घर से हथेली चूम कर

मत सिखा लहजे को अपनी बर्छियों के पैंतरे
ज़िंदा रहना है तो लहजे को ज़रा मा'सूम कर
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shehar kya dekhen ki har manzar mein jaale pad gaye..

shehar kya dekhen ki har manzar mein jaale pad gaye
aisi garmi hai ki peele phool kaale pad gaye

main andheron se bacha laaya tha apne-aap ko
mera dukh ye hai mere peeche ujaale pad gaye

jin zameenon ke qibaale hain mere purkhon ke naam
un zameenon par mere jeene ke laale pad gaye

taq mein baitha hua boodha kabootar ro diya
jis mein dera tha usi masjid mein taale pad gaye

koi waaris ho to aaye aur aa kar dekh le
zill-e-subhaani ki unchi chat mein jaale pad gaye 
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शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए

मैं अँधेरों से बचा लाया था अपने-आप को
मेरा दुख ये है मिरे पीछे उजाले पड़ गए

जिन ज़मीनों के क़बाले हैं मिरे पुरखों के नाम
उन ज़मीनों पर मिरे जीने के लाले पड़ गए

ताक़ में बैठा हुआ बूढ़ा कबूतर रो दिया
जिस में डेरा था उसी मस्जिद में ताले पड़ गए

कोई वारिस हो तो आए और आ कर देख ले
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी की ऊँची छत में जाले पड़ गए
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bair duniya se qabeele se ladai lete..

bair duniya se qabeele se ladai lete
ek sach ke liye kis kis se buraai lete

aable apne hi angaaron ke taaza hain abhi
log kyun aag hatheli pe paraai lete

barf ki tarah december ka safar hota hai
ham use saath na lete to razaai lete

kitna maanoos sa hamdardon ka ye dard raha
ishq kuchh rog nahin tha jo davaai lete

chaand raaton mein hamein dasta hai din mein suraj
sharm aati hai andheron se kamaai lete

tum ne jo tod diye khwaab ham un ke badle
koi qeemat kabhi lete to khudaai lete 
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बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते
एक सच के लिए किस किस से बुराई लेते

आबले अपने ही अँगारों के ताज़ा हैं अभी
लोग क्यूँ आग हथेली पे पराई लेते

बर्फ़ की तरह दिसम्बर का सफ़र होता है
हम उसे साथ न लेते तो रज़ाई लेते

कितना मानूस सा हमदर्दों का ये दर्द रहा
इश्क़ कुछ रोग नहीं था जो दवाई लेते

चाँद रातों में हमें डसता है दिन में सूरज
शर्म आती है अँधेरों से कमाई लेते

तुम ने जो तोड़ दिए ख़्वाब हम उन के बदले
कोई क़ीमत कभी लेते तो ख़ुदाई लेते
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sirf sach aur jhooth ki mizaan mein rakhe rahe..

sirf sach aur jhooth ki mizaan mein rakhe rahe
ham bahadur the magar maidaan mein rakhe rahe

jugnuon ne phir andheron se ladai jeet li
chaand suraj ghar ke raushan-daan mein rakhe rahe

dheere dheere saari kirnen khud-kushi karne lagin
ham sahifa the magar juzdaan mein rakhe rahe

band kamre khol kar sacchaaiyaan rahne lagin
khwaab kacchi dhoop the daalaan mein rakhe rahe

sirf itna fasla hai zindagi se maut ka
shaakh se tode gaye gul-daan mein rakhe rahe

zindagi bhar apni goongi dhadkano ke saath saath
ham bhi ghar ke qeemti samaan mein rakhe rahe 
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सिर्फ़ सच और झूट की मीज़ान में रक्खे रहे
हम बहादुर थे मगर मैदान में रक्खे रहे

जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत ली
चाँद सूरज घर के रौशन-दान में रक्खे रहे

धीरे धीरे सारी किरनें ख़ुद-कुशी करने लगीं
हम सहीफ़ा थे मगर जुज़्दान में रक्खे रहे

बंद कमरे खोल कर सच्चाइयाँ रहने लगीं
ख़्वाब कच्ची धूप थे दालान में रक्खे रहे

सिर्फ़ इतना फ़ासला है ज़िंदगी से मौत का
शाख़ से तोड़े गए गुल-दान में रक्खे रहे

ज़िंदगी भर अपनी गूँगी धड़कनों के साथ साथ
हम भी घर के क़ीमती सामान में रक्खे रहे
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jo mansabon ke pujaari pahan ke aate hain..

jo mansabon ke pujaari pahan ke aate hain
kulaah tauq se bhari pahan ke aate hain

ameer-e-shahr tiri tarah qeemti poshaak
meri gali mein bhikaari pahan ke aate hain

yahi aqeeq the shahon ke taaj ki zeenat
jo ungliyon mein madari pahan ke aate hain

hamaare jism ke daaghoon pe tabsira karne
qameesen log hamaari pahan ke aate hain

ibaadaton ka tahaffuz bhi un ke zimme hai
jo masjidoon mein safari pahan ke aate hain 
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जो मंसबों के पुजारी पहन के आते हैं
कुलाह तौक़ से भारी पहन के आते हैं

अमीर-ए-शहर तिरी तरह क़ीमती पोशाक
मिरी गली में भिकारी पहन के आते हैं

यही अक़ीक़ थे शाहों के ताज की ज़ीनत
जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं

हमारे जिस्म के दाग़ों पे तब्सिरा करने
क़मीसें लोग हमारी पहन के आते हैं

इबादतों का तहफ़्फ़ुज़ भी उन के ज़िम्मे है
जो मस्जिदों में सफ़ारी पहन के आते हैं
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shajar hain ab samar-aasaar mere..

shajar hain ab samar-aasaar mere
chale aate hain daavedaar mere

muhaajir hain na ab ansaar mere
mukhalif hain bahut is baar mere

yahan ik boond ka muhtaaj hoon main
samundar hain samundar paar mere

abhi murdon mein roohen phoonk daalen
agar chahein to ye beemaar mere

hawaaein odh kar soya tha dushman
gaye bekar saare vaar mere

main aa kar dushmanon mein bas gaya hoon
yahan hamdard hain do-chaar mere

hasi mein taal dena tha mujhe bhi
khata kyun ho gaye sarkaar mere

tasavvur mein na jaane kaun aaya
mahak utthe dar-o-deewar mere

tumhaara naam duniya jaanti hai
bahut rusva hain ab ashaar mere

bhanwar mein ruk gai hai naav meri
kinaare rah gaye is paar mere

main khud apni hifazat kar raha hoon
abhi soye hain pahre-daar mere 
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शजर हैं अब समर-आसार मेरे
चले आते हैं दावेदार मेरे

मुहाजिर हैं न अब अंसार मेरे
मुख़ालिफ़ हैं बहुत इस बार मेरे

यहाँ इक बूँद का मुहताज हूँ मैं
समुंदर हैं समुंदर पार मेरे

अभी मुर्दों में रूहें फूँक डालें
अगर चाहें तो ये बीमार मेरे

हवाएँ ओढ़ कर सोया था दुश्मन
गए बेकार सारे वार मेरे

मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे

हँसी में टाल देना था मुझे भी
ख़ता क्यूँ हो गए सरकार मेरे

तसव्वुर में न जाने कौन आया
महक उट्ठे दर-ओ-दीवार मेरे

तुम्हारा नाम दुनिया जानती है
बहुत रुस्वा हैं अब अशआर मेरे

भँवर में रुक गई है नाव मेरी
किनारे रह गए इस पार मेरे

मैं ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त कर रहा हूँ
अभी सोए हैं पहरे-दार मेरे
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jab kabhi phoolon ne khushboo ki tijaarat ki hai..

jab kabhi phoolon ne khushboo ki tijaarat ki hai
patti patti ne hawaon se shikaayat ki hai

yun laga jaise koi itr fazaa mein ghul jaaye
jab kisi bacche ne quraan ki tilaavat ki hai

jaa-namaazon ki tarah noor mein ujlaai sehar
raat bhar jaise farishton ne ibadat ki hai

sar uthaaye theen bahut surkh hawa mein phir bhi
ham ne palkon ke charaagon ki hifazat ki hai

mujhe toofaan-e-haawadis se daraane waalo
haadson ne to mere haath pe bai't ki hai

aaj ik daana-e-gandum ke bhi haqdaar nahin
ham ne sadiyon inheen kheton pe hukoomat ki hai

ye zaroori tha ki ham dekhte qilon ke jalaal
umr bhar ham ne mazaaron ki ziyaarat ki hai
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जब कभी फूलों ने ख़ुश्बू की तिजारत की है
पत्ती पत्ती ने हवाओं से शिकायत की है

यूँ लगा जैसे कोई इत्र फ़ज़ा में घुल जाए
जब किसी बच्चे ने क़ुरआँ की तिलावत की है

जा-नमाज़ों की तरह नूर में उज्लाई सहर
रात भर जैसे फ़रिश्तों ने इबादत की है

सर उठाए थीं बहुत सुर्ख़ हवा में फिर भी
हम ने पलकों के चराग़ों की हिफ़ाज़त की है

मुझे तूफ़ान-ए-हवादिस से डराने वालो
हादसों ने तो मिरे हाथ पे बैअ'त की है

आज इक दाना-ए-गंदुम के भी हक़दार नहीं
हम ने सदियों इन्हीं खेतों पे हुकूमत की है

ये ज़रूरी था कि हम देखते क़िलओं' के जलाल
उम्र भर हम ने मज़ारों की ज़ियारत की है
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All time most famous ghazals of Wasi shah..

1- Falak pe chand ke haale bhi sog karte hain
Jo tu nahi to ujale bhi sog karte hain

Tumhare haath ki choodi bhi bain karti hai
Hamare hont ke taale bhi sog karte hain

Nagar nagar mein woh bikhre hain zulm ke manzar
Hamari rooh ke chale bhi sog karte hain

Use kaho ke sitam mein woh kuch kami kar de
Ke zulm todne wale bhi sog karte hain

Tum apne dukh pe akele nahi ho afsorda
Tumhare chahne wale bhi sog karte hain


2- Maan le ab bhi meri jaan-e-ada dard na chun
Kaam aati nahi phir koi dua dard na chun

Aur kuch der mein mujh ko chale jana hoga
Aur kuch der mujhe khwab dikha dard na chun

Ek bhi dard na kam hoga kai sadiyon mein
Ab bhi kehta hoon tujhe waqt bacha dard na chun

Woh jo likha hai kisi taur nahi tal sakta
Aa mere dil mein koi deep jala dard na chun

Main tere lams se mehroom na rah jaun kahin
Aakhri baar mujhe khud se laga dard na chun

Ab to ye reshmi poren bhi chhidi jaati hain
Khud ko ab bakhsh bhi de zulm na dha dard na chun

Ye nahi honge to khaya nahi ho jaunga main
Mere zakhmon se koi geet bana dard na chun

Kuch na dega ye masail se ulajhte rehna
Chhod sab kuch meri baanhon mein sama dard na chun


3- Qalam ho teg ho tesha ki dhaal mat cheeno
Kabhi kisi se kisi ka kamaal mat cheeno

Khushi isi mein agar hai to har khushi le lo
Ye dukh ye dard ye huzn-o-malaal mat cheeno

Isi khalish ke sabab phir mujhe ubharna hai
Khuda ke wastay ahad-e-zawal mat cheeno

Main chhod sakta nahi saath istiqamat ka
Meri azaan se josh-e-bilal mat cheeno

Abhi kitaab na cheeno tum in ke haathon se
Hamare bachon ka husn-o-jamaal mat cheeno

Hamari aankh mein yaadon ke zakhm rehne do
Hamare haath se phoolon ki daal mat cheeno

Abhi bujhao na candle na cake kato abhi
Kuch aur der mera pichhla saal mat cheeno


4- Meri wafa ne khilaye the jo gulaab saare jhulas gaye hain
Tumhari aankhon mein jis kadar the woh khwab saare jhulas gaye hain

Meri zameen ko kisi naye haadise ka hai intezaar shayad
Gunaah phalne lage hain ajr-o-sawab saare jhulas gaye hain

Jo tum gaye to meri nazar pe haqeeqaton ke azaab utre
Ye sochta hoon ke kya karunga saraab saare jhulas gaye hain

Ye mojza sirf ek shab ki masafaton ke sabab hua hai
Tumhare aur mere darmiyan ke hijaab saare jhulas gaye hain

Use batana ke us ki yaadon ke saare safhe jala chuka hoon
Kitaab-e-dil mein raqam the jitne woh baab saare jhulas gaye hain

Nazar uthaoon main jis taraf bhi muheeb saaye hain zulmaton ke
Ye kya ke mere naseeb ke mahtaab saare jhulas gaye hain

Tumhari nazron ki ye tapish hai ke mere lafzon pe aabale hain
Sawaal saare jhulas gaye hain jawaab saare jhulas gaye hain

Ye aag khamoshiyon ki kaisi tumhari aankhon mein tairti hai
Tumhare honton pe darj the jo nisab saare jhulas gaye hain


5-Gham ki is sil ko kabhi bhi na samajh paayegi
Tu mere dil ko kabhi bhi na samajh paayegi

Mujh ko tasleem teri saari zeehanat lekin
Mujh se jahil ko kabhi bhi na samajh paayegi

Pooch le mujh se haqeeqat tu warna apne
Aankh ke til ko kabhi bhi na samajh paayegi

Bin mohabbat ke tu hansti hui in aankhon ki
Bheegi jhilmil ko kabhi bhi na samajh paayegi

Zindagi khud bhi tujhe marna padega warna
Mere qatil ko kabhi bhi na samajh paayegi
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1- फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं
जो तू नहीं तो उजाले भी सोग करते हैं

तुम्हारे हाथ की चूड़ी भी बैन करती है
हमारे होंट के ताले भी सोग करते हैं

नगर नगर में वो बिखरे हैं ज़ुल्म के मंज़र
हमारी रूह के छाले भी सोग करते हैं

उसे कहो कि सितम में वो कुछ कमी कर दे
कि ज़ुल्म तोड़ने वाले भी सोग करते हैं

तुम अपने दुख पे अकेले नहीं हो अफ़्सुर्दा
तुम्हारे चाहने वाले भी सोग करते हैं


2- मान ले अब भी मिरी जान-ए-अदा दर्द न चुन
काम आती नहीं फिर कोई दुआ दर्द न चुन

और कुछ देर में मुझ को चले जाना होगा
और कुछ देर मुझे ख़्वाब दिखा दर्द न चुन

एक भी दर्द न कम होगा कई सदियों में
अब भी कहता हूँ तुझे वक़्त बचा दर्द न चुन

वो जो लिक्खा है किसी तौर नहीं टल सकता
आ मिरे दिल में कोई दीप जला दर्द न चुन

मैं तिरे लम्स से महरूम न रह जाऊँ कहीं
आख़िरी बार मुझे ख़ुद से लगा दर्द न चुन

अब तो ये रेशमी पोरें भी छिदी जाती हैं
ख़ुद को अब बख़्श भी दे ज़ुल्म न ढह दर्द न चुन

ये नहीं होंगे तो खाए नहीं हो जाऊँगा मैं
मेरे ज़ख़्मों से कोई गीत बना दर्द न चुन

कुछ न देगा ये मसाइल से उलझते रहना
छोड़ सब कुछ मिरी बाँहों में समा दर्द न चुन


3- क़लम हो तेग़ हो तेशा कि ढाल मत छीनो
कभी किसी से किसी का कमाल मत छीनो

ख़ुशी इसी में अगर है तो हर ख़ुशी ले लो
ये दुख ये दर्द ये हुज़्न-ओ-मलाल मत छीनो

इसी ख़लिश के सबब फिर मुझे उभरना है
ख़ुदा के वास्ते अहद-ए-ज़वाल मत छीनो

मैं छोड़ सकता नहीं साथ इस्तक़ामत का
मिरी अज़ान से जोश-ए-बिलाल मत छीनो

अभी किताब न छीनो तुम इन के हाथों से
हमारे बच्चों का हुस्न-ओ-जमाल मत छीनो

हमारी आँख में यादों के ज़ख़्म रहने दो
हमारे हाथ से फूलों की डाल मत छीनो

अभी बुझाओ न कैंडल न केक काटो अभी
कुछ और देर मिरा पिछ्ला साल मत छीनो


4- मरी वफ़ा ने खिलाए थे जो गुलाब सारे झुलस गए हैं
तुम्हारी आँखों में जिस क़दर थे वो ख़्वाब सारे झुलस गए हैं

मरी ज़मीं को किसी नए हादसे का है इंतिज़ार शायद
गुनाह फलने लगे हैं अज्र ओ सवाब सारे झुलस गए हैं

जो तुम गए तो मिरी नज़र पे हक़ीक़तों के अज़ाब उतरे
ये सोचता हूँ कि क्या करूँगा सराब सारे झुलस गए हैं

ये मो'जिज़ा सिर्फ़ एक शब की मसाफ़तों के सबब हुआ है
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ के हिजाब सारे झुलस गए हैं

उसे बताना कि उस की यादों के सारे सफ़्हे जला चुका हूँ
किताब-ए-दिल में रक़म थे जितने वो बाब सारे झुलस गए हैं

नज़र उठाऊँ मैं जिस तरफ़ भी मुहीब साए हैं ज़ुल्मतों के
ये क्या कि मेरे नसीब के माहताब सारे झुलस गए हैं

तुम्हारी नज़रों की ये तपिश है कि मेरे लफ़्ज़ों पे आबले हैं
सवाल सारे झुलस गए हैं जवाब सारे झुलस गए हैं

ये आग ख़ामोशियों की कैसी तुम्हारी आँखों में तैरती है
तुम्हारे होंटों पे दर्ज थे जो निसाब सारे झुलस गए हैं


5- ग़म की इस सिल को कभी भी न समझ पाएगी
तू मिरे दिल को कभी भी न समझ पाएगी

मुझ को तस्लीम तिरी सारी ज़ेहानत लेकिन
मुझ से जाहिल को कभी भी न समझ पाएगी

पूछ ले मुझ से हक़ीक़त तू वगर्ना अपने
आँख के तिल को कभी भी न समझ पाएगी

बिन मोहब्बत के तू हँसती हुई इन आँखों की
भीगी झिलमिल को कभी भी न समझ पाएगी

ज़िंदगी ख़ुद भी तुझे मरना पड़ेगा वर्ना
मेरे क़ातिल को कभी भी न समझ पाएगी

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All time most famous ghazals of aAli zaryoun..

1- Ada-e-ishq hoon poori ana ke saath hoon main
Khud apne saath hoon yaani khuda ke saath hoon main

Mujawaraan-e-hawas tang hain ke yun kaise
Bagair sharm-o-haya bhi haya ke saath hoon main

Safar shuru' to hone de apne saath mera
Tu khud kahega ye kaisi bala ke saath hoon main

Main choo gaya to tera rang kaat daalunga
So apne aap se tujh ko bacha ke saath hoon main

Durood-bar-dil-e-wahshi salaam-bar-tap-e-ishq
Khud apni hamd khud apni sana ke saath hoon main

Yahi to farq hai mere aur un ke hal ke beech
Shikayatein hain unhein aur raza ke saath hoon main

Main awwaleen ki izzat mein aakhrin ka noor
Woh intiha hoon ke har ibtida ke saath hoon main

Dikhai doon bhi to kaise sunai doon bhi to kyun
Wara-e-naqsh-o-nawa hoon fana ke saath hoon main

Ba-hukm-e-yaar lewen qabz karne aati hai
Bujha rahi hai? Bujhaye hawa ke saath hoon main

Ye saabireen-e-mohabbat ye kaashifeen-e-junoon
Inhi ke sang inhi auliya ke saath hoon main

Kisi ke saath nahi hoon magar jamaal-e-ilaha
Tiri qism tire har mubtala ke saath hoon main

Zamane bhar ko pata hai main kis tareeq pe hoon
Sabhi ko ilm hai kis dil-ruba ke saath hoon main

Munafiqeen-e-tasawwuf ki maut hoon main 'Ali'
Har ek aseel har ek be-riya ke saath hoon main


2- Khwab ka khwab haqeeqat ki haqeeqat samjhein
Ye samajhna hai to phir pehle tareeqat samjhein

Main jawaban bhi jinhein gaali nahi deta woh log
Meri jaanib se ise khaas mohabbat samjhein

Main to mar kar bhi na bechunga kabhi yaar ka naam
Aap taajir hain numaish ko ibaadat samjhein

Main kisi beech ke raste se nahi pahucha yahan
Hasidon se ye guzaarish hai riyaazat samjhein

Mera be-saakhta-pan un ke liye khatra hai
Saakhta log mujhe kyun na museebat samjhein

Facebook waqt agar de to ye pyaare bachche
Apne khaamosh buzurgon ki shikayat samjhein

Pesh karta hoon main khud apni giraftari 'Ali'
Un se kehna ke mujhe zer-e-hiraasat samjhein


3- Tere aage sar-kashi dikhlaunga?
Tu to jo keh de wahi ban jaunga

Ai zaboori phool ai neele gulaab
Mat khafa ho main dobara aaunga

Saat sadiyan saat raatein saat din
Ek paheli hai kise samjhaunga

Yaar ho jaaye sahi tujh se mujhe
Tere qabze se tujhe chhudvaunga

Tum bahut maasoom ladki ho tumhein
Nazm bhejunga dua pahnwaunga

Koi dariya hai na jungle aur na baagh
Main yahan bilkul nahi reh paunga

Yaad karvaunga tujhe tere zakhm
Teri saari ne'matein ginvaunga

Chhodna us ke liye mushkil na ho
Mujh se mat kehna main ye kar jaunga

Main 'Ali'-Zaryoon hoon kaafi hai ye
Main Zafar-Iqbal kyun ban jaunga


4- Janaab-e-Shaikh ki harza-sarai jaari hai
Udhar se zulm idhar se duhayi jaari hai

Bichhad gaya hoon magar yaad karta rehta hoon
Kitaab chhod chuka hoon padhai jaari hai

Tire alawa kahin aur bhi mulavvis hoon
Tiri wafa se meri bewafai jaari hai

Woh kyun kahenge ke dono mein amn ho jaaye
Hamari jung se jin ki kamai jaari hai

Ajeeb khabt-e-Maseehai hai ke hairat hai
Mareez mar bhi chuka hai dawaai jaari hai


5- Sukoot-e-shaam ka hissa tu mat bana mujh ko
Main rang hoon so kisi mauj mein mila mujh ko

Main in dino tiri aankhon ke ikhtiyaar mein hoon
Jamaal-e-sabz kisi tajrabe mein la mujh ko

Main boodhe jism ki zillat utha nahi sakta
Kisi qadeem tajalli se kar naya mujh ko

Main apne hone ki takmeel chahta hoon sakhi
So ab badan ki hiraasat se kar riha mujh ko

Mujhe chiraagh ki hairat bhi ho chuki ma'loom
Ab is se aage koi rasta bata mujh ko

Us ism-e-khaas ki tarkeeb se bana hoon main
Mohabbat ke talaffuz se kar naya mujh ko

Daroon-e-seena jise dil samajh raha tha 'Ali'
Woh neeli aag hai ye ab pata chala mujh ko
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1- अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ या'नी ख़ुदा के साथ हूँ मैं

मुजावरान-ए-हवस तंग हैं कि यूँ कैसे
बग़ैर शर्म-ओ-हया भी हया के साथ हूँ मैं

सफ़र शुरूअ' तो होने दे अपने साथ मिरा
तू ख़ुद कहेगा ये कैसी बला के साथ हूँ मैं

मैं छू गया तो तिरा रंग काट डालूँगा
सो अपने आप से तुझ को बचा के साथ हूँ मैं

दुरूद-बर-दिल-ए-वहशी सलाम-बर-तप-ए-इश्क़
ख़ुद अपनी हम्द ख़ुद अपनी सना के साथ हूँ मैं

यही तो फ़र्क़ है मेरे और उन के हल के बीच
शिकायतें हैं उन्हें और रज़ा के साथ हूँ मैं

मैं अव्वलीन की इज़्ज़त में आख़िरीन का नूर
वो इंतिहा हूँ कि हर इब्तिदा के साथ हूँ मैं

दिखाई दूँ भी तो कैसे सुनाई दूँ भी तो क्यूँ
वरा-ए-नक़्श-ओ-नवा हूँ फ़ना के साथ हूँ मैं

ब-हुक्म-ए-यार लवें क़ब्ज़ करने आती है
बुझा रही है? बुझाए हवा के साथ हूँ मैं

ये साबिरीन-ए-मोहब्बत ये काशिफ़ीन-ए-जुनूँ
इन्ही के संग इन्हीं औलिया के साथ हूँ मैं

किसी के साथ नहीं हूँ मगर जमाल-ए-इलाहा
तिरी क़िस्म तिरे हर मुब्तला के साथ हूँ मैं

ज़माने भर को पता है मैं किस तरीक़ पे हूँ
सभी को इल्म है किस दिल-रुबा के साथ हूँ मैं

मुनाफ़िक़ीन-ए-तसव्वुफ़ की मौत हूँ मैं 'अली'
हर इक असील हर इक बे-रिया के साथ हूँ मैं


2- ख़्वाब का ख़्वाब हक़ीक़त की हक़ीक़त समझें
ये समझना है तो फिर पहले तरीक़त समझें

मैं जवाबन भी जिन्हें गाली नहीं देता वो लोग
मेरी जानिब से इसे ख़ास मोहब्बत समझें

मैं तो मर कर भी न बेचूँगा कभी यार का नाम
आप ताजिर हैं नुमाइश को इबादत समझें

मैं किसी बीच के रस्ते से नहीं पहुँचा यहाँ
हासिदों से ये गुज़ारिश है रियाज़त समझें

मेरा बे-साख़्ता-पन उन के लिए ख़तरा है
साख़्ता लोग मुझे क्यूँ न मुसीबत समझें

फेसबुक वक़्त अगर दे तो ये प्यारे बच्चे
अपने ख़ामोश बुज़ुर्गों की शिकायत समझें

पेश करता हूँ मैं ख़ुद अपनी गिरफ़्तारी 'अली'
उन से कहना कि मुझे ज़ेर-ए-हिरासत समझें 


3- तेरे आगे सर-कशी दिखलाउँगा?
तू तो जो कह दे वही बन जाऊँगा

ऐ ज़बूरी फूल ऐ नीले गुलाब
मत ख़फ़ा हो मैं दोबारा आऊँगा

सात सदियाँ सात रातें सात दिन
इक पहेली है किसे समझाऊँगा

यार हो जाए सही तुझ से मुझे
तेरे क़ब्ज़े से तुझे छुड़वाऊंगा

तुम बहुत मा'सूम लड़की हो तुम्हें
नज़्म भेजूँगा दुआ पहनाऊँगा

कोई दरिया है न जंगल और न बाग़
मैं यहाँ बिल्कुल नहीं रह पाऊँगा

याद करवाउँगा तुझ को तेरे ज़ख़्म
तेरी सारी ने'मतें गिनवाउँगा

छोड़ना उस के लिए मुश्किल न हो
मुझ से मत कहना मैं ये कर जाऊँगा

मैं 'अली'-ज़र्यून हूँ काफ़ी है ये
मैं ज़फ़र-इक़बाल क्यूँ बन जाऊँगा


4- जनाब-ए-शैख़ की हर्ज़ा-सराई जारी है
उधर से ज़ुल्म इधर से दुहाई जारी है

बिछड़ गया हूँ मगर याद करता रहता हूँ
किताब छोड़ चुका हूँ पढ़ाई जारी है

तिरे अलावा कहीं और भी मुलव्विस हूँ
तिरी वफ़ा से मिरी बेवफ़ाई जारी है

वो क्यूँ कहेंगे कि दोनों में अम्न हो जाए
हमारी जंग से जिन की कमाई जारी है

अजीब ख़ब्त-ए-मसीहाई है कि हैरत है
मरीज़ मर भी चुका है दवाई जारी है


5- सुकूत-ए-शाम का हिस्सा तू मत बना मुझ को
मैं रंग हूँ सो किसी मौज में मिला मुझ को

मैं इन दिनों तिरी आँखों के इख़्तियार में हूँ
जमाल-ए-सब्ज़ किसी तज्रबे में ला मुझ को

मैं बूढे जिस्म की ज़िल्लत उठा नहीं सकता
किसी क़दीम तजल्ली से कर नया मुझ को

मैं अपने होने की तकमील चाहता हूँ सखी
सो अब बदन की हिरासत से कर रिहा मुझ को

मुझे चराग़ की हैरत भी हो चुकी मा'लूम
अब इस से आगे कोई रास्ता बता मुझ को

उस इस्म-ए-ख़ास की तरकीब से बना हूँ मैं
मोहब्बतों के तलफ़्फ़ुज़ से कर नया मुझ को

दरून-ए-सीना जिसे दिल समझ रहा था 'अली'
वो नीली आग है ये अब पता चला मुझ को

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All time most famous ghazals of Rehman Faris..

1- Baithe hain chain se kahin jaana to hai nahi
Hum be-gharon ka koi thikaana to hai nahi

Tum bhi ho beete waqt ke maanind hoo-ba-hoo
Tum ne bhi yaad aana hai aana to hai nahi

Ahad-e-wafa se kis liye khaayif ho meri jaan
Kar lo ke tum ne ahad nibhaana to hai nahi

Woh jo humein azeez hai kaisa hai kaun hai
Kyun poochhte ho hum ne bataana to hai nahi

Duniya hum ahl-e-ishq pe kyun phenkhti hai jaal
Hum ne tire fareb mein aana to hai nahi

Woh ishq to karega magar dekh bhaal ke
'Faris' woh tere jaisa deewana to hai nahi


2- Sadaayen dete hue aur khaak udaate hue
Main apne aap se guzra hoon tujh tak aate hue

Phir us ke baad zamaane ne mujh ko raund diya
Main gir pada tha kisi aur ko uthaate hue

Kahani khatam hui aur aisi khatam hui
Ke log rone lage taaliyan bajaate hue

Phir us ke baad ata ho gayi mujhe taaseer
Main ro pada tha kisi ko ghazal sunaate hue

Kharidna hai to dil ko kharid le fauran
Khilone toot bhi jaate hain aazmaate hue

Tumhara gham bhi kisi tifl-e-sheer-khaar sa hai
Ke oongh jaata hoon main khud use sulaate hue

Agar mile bhi to milta hai raah mein 'Faris'
Kahin se aate hue ya kahin ko jaate hue


3- Khaak udti hai raat-bhar mujh mein
Kaun phirta hai dar-ba-dar mujh mein

Mujh ko khud mein jagah nahi milti
Tu hai maujood is qadar mujh mein

Mausam-e-girya ek guzaarish hai
Gham ke pakne talak thahar mujh mein

Be-ghari ab mera muqaddar hai
Ishq ne kar liya hai ghar mujh mein

Aap ka dhyan khoon ke maanind
Daudta hai idhar-udhar mujh mein

Honsla ho to baat ban jaaye
Honsla hi nahi magar mujh mein


4- Main kaar-aamad hoon ya be-kaar hoon main
Magar ai yaar tera yaar hoon main

Jo dekha hai kisi ko mat bataana
Ilaaqe bhar mein izzat-daar hoon main

Khud apni zaat ke sarmaaye mein bhi
Sifar feesad ka hisse-daar hoon main

Aur ab kyun bain karte aa gaye ho
Kaha tha na bahut beemaar hoon main

Meri to saari duniya bas tumhi ho
Ghalat kya hai jo duniya-daar hoon main

Kahani mein jo hota hi nahi hai
Kahani ka wahi kirdaar hoon main

Ye tay karta hai dastak dene wala
Kahan dar hoon kahan deewaar hoon main

Koi samjhaaye mere dushmanon ko
Zara si dosti ki maar hoon main

Mujhe patthar samajh kar pesh mat aa
Zara sa reham kar jaan-daar hoon main

Bas itna soch kar kije koi hukm
Bada munh-zor khidmat-gaar hoon main

Koi shak hai to be-shak aazma le
Tera hone ka daave-daar hoon main

Agar har haal mein khush rehna fun hai
To phir sab se bada funkaar hoon main

Zamana to mujhe kehta hai 'Faris'
Magar 'Faris' ka parda-daar hoon main

Unhein khilna sikhata hoon main 'Faris'
Gulabon ka suhulat-kaar hoon main


5- Sar-ba-sar yaar ki marzi pe fida ho jaana
Kya ghab kaam hai raazi-ba-raza ho jaana

Band aankho woh chale aayein to wa ho jaana
Aur yun foot ke rona ke fana ho jaana

Ishq mein kaam nahi zor-zabarasti ka
Jab bhi tum chaho juda hona juda ho jaana

Teri jaanib hai ba-tadreej taraqqi meri
Mere hone ki hai meraaj tera ho jaana

Tere aane ki bashaarat ke siwa kuch bhi nahi
Baagh mein sookhe darakhton ka hara ho jaana

Ek nishani hai kisi shehar ki barbaadi ki
Narwa baat ka yak-lakht rawa ho jaana

Tang aa jaun mohabbat se to gahe gahe
Achha lagta hai mujhe tera khafa ho jaana

Si diye jaayein mere hont to ai jaan-e-ghazal
Aisa karna meri aankhon se ada ho jaana

Be-niaazi bhi wahi aur ta’alluq bhi wahi
Tumhein aata hai mohabbat mein khuda ho jaana

Azdaha ban ke rag-o-pai ko jakad leta hai
Itna aasaan nahi gham se riha ho jaana

Achhe achhon pe bure din hain lihaaza 'Faris'
Achha hone se to achha hai bura ho jaana
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1- बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं

तुम भी हो बीते वक़्त के मानिंद हू-ब-हू
तुम ने भी याद आना है आना तो है नहीं

अहद-ए-वफ़ा से किस लिए ख़ाइफ़ हो मेरी जान
कर लो कि तुम ने अहद निभाना तो है नहीं

वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं

दुनिया हम अहल-ए-इश्क़ पे क्यूँ फेंकती है जाल
हम ने तिरे फ़रेब में आना तो है नहीं

वो इश्क़ तो करेगा मगर देख भाल के
'फ़ारिस' वो तेरे जैसा दिवाना तो है नहीं


2- सदाएँ देते हुए और ख़ाक उड़ाते हुए
मैं अपने आप से गुज़रा हूँ तुझ तक आते हुए

फिर उस के बा'द ज़माने ने मुझ को रौंद दिया
मैं गिर पड़ा था किसी और को उठाते हुए

कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए

फिर उस के बा'द अता हो गई मुझे तासीर
मैं रो पड़ा था किसी को ग़ज़ल सुनाते हुए

ख़रीदना है तो दिल को ख़रीद ले फ़ौरन
खिलौने टूट भी जाते हैं आज़माते हुए

तुम्हारा ग़म भी किसी तिफ़्ल-ए-शीर-ख़ार सा है
कि ऊँघ जाता हूँ मैं ख़ुद उसे सुलाते हुए

अगर मिले भी तो मिलता है राह में 'फ़ारिस'
कहीं से आते हुए या कहीं को जाते हुए


3- ख़ाक उड़ती है रात-भर मुझ में
कौन फिरता है दर-ब-दर मुझ में

मुझ को ख़ुद में जगह नहीं मिलती
तू है मौजूद इस क़दर मुझ में

मौसम-ए-गिर्या एक गुज़ारिश है
ग़म के पकने तलक ठहर मुझ में

बे-घरी अब मिरा मुक़द्दर है
इश्क़ ने कर लिया है घर मुझ में

आप का ध्यान ख़ून के मानिंद
दौड़ता है इधर-उधर मुझ में

हौसला हो तो बात बन जाए
हौसला ही नहीं मगर मुझ में


4- मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं
मगर ऐ यार तेरा यार हूँ मैं

जो देखा है किसी को मत बताना
इलाक़े भर में इज़्ज़त-दार हूँ मैं

ख़ुद अपनी ज़ात के सरमाए में भी
सिफ़र फ़ीसद का हिस्से-दार हूँ मैं

और अब क्यूँ बैन करते आ गए हों
कहा था ना बहुत बीमार हूँ मैं

मिरी तो सारी दुनिया बस तुम्ही हो
ग़लत क्या है जो दुनिया-दार हूँ मैं

कहानी में जो होता ही नहीं है
कहानी का वही किरदार हूँ मैं

ये तय करता है दस्तक देने वाला
कहाँ दर हूँ कहाँ दीवार हूँ मैं

कोई समझाए मेरे दुश्मनों को
ज़रा सी दोस्ती की मार हूँ मैं

मुझे पत्थर समझ कर पेश मत आ
ज़रा सा रहम कर जाँ-दार हूँ मैं

बस इतना सोच कर कीजे कोई हुक्म
बड़ा मुँह-ज़ोर ख़िदमत-गार हूँ मैं

कोई शक है तो बे-शक आज़मा ले
तिरा होने का दा'वे-दार हूँ मैं

अगर हर हाल में ख़ुश रहना फ़न है
तो फिर सब से बड़ा फ़नकार हूँ मैं

ज़माना तो मुझे कहता है 'फ़ारिस'
मगर 'फ़ारिस' का पर्दा-दार हूँ मैं

उन्हें खिलना सिखाता हूँ मैं 'फ़ारिस'
गुलाबों का सुहूलत-कार हूँ मैं


5- सर-ब-सर यार की मर्ज़ी पे फ़िदा हो जाना
क्या ग़ज़ब काम है राज़ी-ब-रज़ा हो जाना

बंद आँखो वो चले आएँ तो वा हो जाना
और यूँ फूट के रोना कि फ़ना हो जाना

इश्क़ में काम नहीं ज़ोर-ज़बरदस्ती का
जब भी तुम चाहो जुदा होना जुदा हो जाना

तेरी जानिब है ब-तदरीज तरक़्क़ी मेरी
मेरे होने की है मेराज तिरा हो जाना

तेरे आने की बशारत के सिवा कुछ भी नहीं
बाग़ में सूखे दरख़्तों का हरा हो जाना

इक निशानी है किसी शहर की बर्बादी की
नारवा बात का यक-लख़्त रवा हो जाना

तंग आ जाऊँ मोहब्बत से तो गाहे गाहे
अच्छा लगता है मुझे तेरा ख़फ़ा हो जाना

सी दिए जाएँ मिरे होंट तो ऐ जान-ए-ग़ज़ल
ऐसा करना मिरी आँखों से अदा हो जाना

बे-नियाज़ी भी वही और तअ'ल्लुक़ भी वही
तुम्हें आता है मोहब्बत में ख़ुदा हो जाना

अज़दहा बन के रग-ओ-पै को जकड़ लेता है
इतना आसान नहीं ग़म से रिहा हो जाना

अच्छे अच्छों पे बुरे दिन हैं लिहाज़ा 'फ़ारिस'
अच्छे होने से तो अच्छा है बुरा हो जाना

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All time most famous ghazals of Javed Akhtar..

1- Ba-zahir kya hai jo hasil nahi hai
Magar ye to meri manzil nahi hai

Ye toda ret ka hai beech dariya
Ye beh jayega ye saahil nahi hai

Bohat aasan hai pehchaan us ki
Agar dukhta nahi to dil nahi hai

Musafir woh ajab hai karwan mein
Ke jo humraah hai shaamil nahi hai

Bas ek maqtul hi maqtul kab hai
Bas ek qatil hi to qatil nahi hai

Kabhi to raat ko tum raat keh do
Ye kaam itna bhi ab mushkil nahi hai


2- Sookhi tahni tanha chidiya pheeka chand
Aankhon ke sehra mein ek nami ka chand

Us maathe ko choome kitne din beetay
Jis maathe ki khatir tha ek tika chand

Pehle tu lagti thi kitni begana
Kitna mubham hota hai pehli ka chand

Kam ho kaise in khushiyon se tera gham
Lehron mein kab bahta hai naddi ka chand

Aao ab hum is ke bhi tukde kar lein
Dhaka, Rawalpindi aur Dilli ka chand


3- Ye mujh se poochhte hain charagar kyun
Ke tu zinda to hai ab tak magar kyun

Jo rasta chhod ke main ja raha hoon
Ussi raste pe jaati hai nazar kyun

Thakan se choor paas aaya tha us ke
Gira sote mein mujh par ye shajar kyun

Sunayenge kabhi fursat mein tum ko
Ke hum barson rahe hain dar-ba-dar kyun

Yahan bhi sab hain begana hi mujh se
Kahoon main kya ke yaad aaya hai ghar kyun

Main khush rehta agar samjha na hota
Ye duniya hai to main hoon deeda-var kyun


4- Pyaas ki kaise laaye taab koi
Nahi dariya to ho saraab koi

Zakhm-e-dil mein jahan mehakta hai
Isi kyari mein tha gulaab koi

Raat bajti thi door shehnaai
Roya pee kar bohot sharaab koi

Dil ko ghere hain rozgar ke gham
Raddi mein kho gayi kitaab koi

Kaun sa zakhm kis ne bakshe hai
Is ka rakkhe kahan hisaab koi

Phir main sunne laga hoon is dil ki
Aane wala hai phir azaab koi

Shab ki dehleez par shafaq hai lahu
Phir hua qatl aaftaab koi


5- Na khushi de to kuch dilasa de
Dost jaise ho mujh ko behla de

Aagahi se mili hai tanhaai
Aa meri jaan mujh ko dhoka de

Ab to takmeel ki bhi shart nahi
Zindagi ab to ek tamanna de

Aye safar itna rayegan to na ja
Na ho manzil kahin to pahucha de

Tark karna hai gar ta’alluq to
Khud na ja tu kisi se kehla de
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1- ब-ज़ाहिर क्या है जो हासिल नहीं है
मगर ये तो मिरी मंज़िल नहीं है

ये तूदा रेत का है बीच दरिया
ये बह जाएगा ये साहिल नहीं है

बहुत आसान है पहचान उस की
अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है

मुसाफ़िर वो अजब है कारवाँ में
कि जो हमराह है शामिल नहीं है

बस इक मक़्तूल ही मक़्तूल कब है
बस इक क़ातिल ही तो क़ातिल नहीं है

कभी तो रात को तुम रात कह दो
ये काम इतना भी अब मुश्किल नहीं है


2- सूखी टहनी तन्हा चिड़िया फीका चाँद
आँखों के सहरा में एक नमी का चाँद

उस माथे को चूमे कितने दिन बीते
जिस माथे की ख़ातिर था इक टीका चाँद

पहले तू लगती थी कितनी बेगाना
कितना मुबहम होता है पहली का चाँद

कम हो कैसे इन ख़ुशियों से तेरा ग़म
लहरों में कब बहता है नद्दी का चाँद

आओ अब हम इस के भी टुकड़े कर लें
ढाका रावलपिंडी और दिल्ली का चाँद


3- ये मुझ से पूछते हैं चारागर क्यूँ
कि तू ज़िंदा तो है अब तक मगर क्यूँ

जो रस्ता छोड़ के मैं जा रहा हूँ
उसी रस्ते पे जाती है नज़र क्यूँ

थकन से चूर पास आया था उस के
गिरा सोते में मुझ पर ये शजर क्यूँ

सुनाएँगे कभी फ़ुर्सत में तुम को
कि हम बरसों रहे हैं दर-ब-दर क्यूँ

यहाँ भी सब हैं बेगाना ही मुझ से
कहूँ मैं क्या कि याद आया है घर क्यूँ

मैं ख़ुश रहता अगर समझा न होता
ये दुनिया है तो मैं हूँ दीदा-वर क्यूँ


4- प्यास की कैसे लाए ताब कोई
नहीं दरिया तो हो सराब कोई

ज़ख़्म-ए-दिल में जहाँ महकता है
इसी क्यारी में था गुलाब कोई

रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पी कर बहुत शराब कोई

दिल को घेरे हैं रोज़गार के ग़म
रद्दी में खो गई किताब कोई

कौन सा ज़ख़्म किस ने बख़्शा है
इस का रक्खे कहाँ हिसाब कोई

फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई

शब की दहलीज़ पर शफ़क़ है लहू
फिर हुआ क़त्ल आफ़्ताब कोई


5- न ख़ुशी दे तो कुछ दिलासा दे
दोस्त जैसे हो मुझ को बहला दे

आगही से मिली है तन्हाई
आ मिरी जान मुझ को धोका दे

अब तो तकमील की भी शर्त नहीं
ज़िंदगी अब तो इक तमन्ना दे

ऐ सफ़र इतना राएगाँ तो न जा
न हो मंज़िल कहीं तो पहुँचा दे

तर्क करना है गर तअ'ल्लुक़ तो
ख़ुद न जा तू किसी से कहला दे

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All time most famous ghazals of Waseem BARELVI..

1- Chaand ka khwaab ujalo ki nazar lagta hai
Tu jidhar ho ke guzar jaaye, khabar lagta hai

Us ki yaadon ne uga rakkhe hain sooraj itne
Shaam ka waqt bhi aaye to sahar lagta hai

Ek manzar pe thaharne nahi deti fitrat
Umr bhar aankh ki kismat mein safar lagta hai

Main nazar bhar ke tere jism ko jab dekhta hoon
Pehli baarish mein nahaaya sa shajar lagta hai

Be-sahara tha bahut pyaar koi poochhta kya
Tu ne kaanpade pe jagah di hai to sar lagta hai

Teri qurbat ke ye lamhe usay raas aayein kya
Subah hone ka jise shaam se dar lagta hai


2- Main is umeed pe dooba ke tu bacha lega
Ab is ke baad mira imtihan kya lega

Ye ek mela hai waada kisi se kya lega
Dhelega din to har ik apna rasta lega

Main bujh gaya to hamesha ko bujh hi jaaunga
Koi chiraagh nahi hoon ke phir jala lega

Kaleja chahiye dushman se dushmani ke liye
Jo be-amal hai wo badla kisi se kya lega

Main us ka ho nahi sakta bata na dena use
Lakeeren haath ki apni wo sab jala lega

Hazaar tod ke aa jao us se rishta 'Waseem'
Main jaanta hoon wo jab chahega bula lega


3- Mohabbat na-samajh hoti hai samjhana zaroori hai
Jo dil mein hai use aankhon se kehna zaroori hai

Usoolon par jahan aanch aaye takraana zaroori hai
Jo zinda ho to phir zinda nazar aana zaroori hai

Nayi umron ki khud-mukhtariyon ko kaun samjhaaye
Kahan se bach ke chalna hai kahan jaana zaroori hai

Thake-haare parinde jab basere ke liye lautain
Saleekah-mand shaakhon ka lachak jaana zaroori hai

Bahut bebaak aankhon mein ta’alluq tik nahi paata
Mohabbat mein kashish rakhne ko sharmaana zaroori hai

Saleekah hi nahi shayad use mehsoos karne ka
Jo kehta hai Khuda hai to nazar aana zaroori hai

Mere honthon pe apni pyaas rakh do aur phir socho
Ke is ke baad bhi duniya mein kuch paana zaroori hai


4- Apne har har lafz ka khud aaina ho jaaunga
Us ko chhota keh ke main kaise bada ho jaaunga

Tum giraane mein lage the tum ne socha hi nahi
Main gira to mas’ala ban kar khada ho jaaunga

Mujh ko chalne do akela hai abhi mera safar
Rasta roka gaya to kaafila ho jaaunga

Saari duniya ki nazar mein hai mera ahd-e-wafa
Ik tere kehne se kya main bewafa ho jaaunga


5- Apne chehre se jo zahir hai chhupayein kaise
Teri marzi ke mutabiq nazar aayein kaise

Ghar sajane ka tasavvur to bahut ba’d ka hai
Pehle ye tay ho ke is ghar ko bachayein kaise

Laakh talwaron ki badhi aati hon gardan ki taraf
Sar jhukana nahi aata to jhukayein kaise

Qahqaha aankh ka bartav badal deta hai
Hansne wale tujhe aansu nazar aayein kaise

Phool se rang juda hona koi khel nahi
Apni mitti ko kahin chhod ke jaayein kaise

Koi apni hi nazar se to humein dekhega
Ek qatre ko samundar nazar aayein kaise

Jis ne danista kiya ho nazar-andaz 'Waseem'
Us ko kuch yaad dilayein to dilayein kaise
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1- चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है
तू जिधर हो के गुज़र जाए ख़बर लगता है

उस की यादों ने उगा रक्खे हैं सूरज इतने
शाम का वक़्त भी आए तो सहर लगता है

एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फ़ितरत
उम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है

मैं नज़र भर के तिरे जिस्म को जब देखता हूँ
पहली बारिश में नहाया सा शजर लगता है

बे-सहारा था बहुत प्यार कोई पूछता क्या
तू ने काँधे पे जगह दी है तो सर लगता है

तेरी क़ुर्बत के ये लम्हे उसे रास आएँ क्या
सुब्ह होने का जिसे शाम से डर लगता है


2- मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इस के बा'द मिरा इम्तिहान क्या लेगा

ये एक मेला है वा'दा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर इक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ कि फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उस का हो नहीं सकता बता न देना उसे
लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता 'वसीम'
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा


3- मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है
जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है

उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है
जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मिरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है


4- अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा


5- अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे

घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत ब'अद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे

लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ़
सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएँ कैसे

क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आएँ कैसे

फूल से रंग जुदा होना कोई खेल नहीं
अपनी मिट्टी को कहीं छोड़ के जाएँ कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुंदर नज़र आएँ कैसे

जिस ने दानिस्ता किया हो नज़र-अंदाज़ 'वसीम'
उस को कुछ याद दिलाएँ तो दिलाएँ कैसे

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All time most famous ghazals of MUNAWWAR RANA..

1- Kisi ko ghar mila hisse mein ya koi dukaan aayi
Main ghar mein sab se chhota tha, mire hisse mein maa aayi

Yahan se jaane wala laut kar koi nahi aaya
Main rota reh gaya lekin na wapas ja ke maa aayi

Adhoore raste se lautna accha nahi hota
Bulaane ke liye duniya bhi aayi to kahan aayi

Kisi ko gaon se pardes le jaayegi phir shayad
Udaati rail-gaadi dher saara phir dhuaan aayi

Mire bachon mein saari aadatein maujood hain meri
To phir in bad-naseebon ko na kyun Urdu zabaan aayi

Qafas mein mausamon ka koi andaaza nahi hota
Khuda jaane bahaar aayi chaman mein ya khizaan aayi

Gharonde to gharonde hain chatanein toot jaati hain
Udaane ke liye aandhi agar naam-o-nishaan aayi

Kabhi ai khush-naseebi mere ghar ka rukh bhi kar leti
Idhar pohonchi udhar pohonchi yahan aayi wahan aayi


2- Bhula paana bahut mushkil hai sab kuch yaad rehta hai
Mohabbat karne wala is liye barbaad rehta hai

Agar sone ke pinjre mein bhi rehta hai to qaidi hai
Parinda to wahi hota hai jo azaad rehta hai

Chaman mein ghoomne firne ke kuch adaab hote hain
Udhar hargiz nahi jaana udhar sayyaad rehta hai

Lipat jaati hai saare raaston ki yaad bachpan mein
Jidhar se bhi guzarta hoon, main rasta yaad rehta hai

Humein bhi apne achhe din abhi tak yaad hain 'Rana'
Har ek insaan ko apna zamaana yaad rehta hai


3- Badshahon ko sikhaya hai qalandar hona
Aap aasaan samajhte hain munawwar hona

Ek aansoo bhi hukumat ke liye khatra hai
Tum ne dekha nahi aankhon ka samundar hona

Sirf bachon ki mohabbat ne qadam rok liye
Warna aasaan tha mere liye be-ghar hona

Hum ko ma’loom hai shohrat ki bulandi, hum ne
Qabr ki mitti ka dekha hai barabar hona

Is ko qismat ki kharabi hi kaha jaayega
Aap ka sheher mein aana, mira baahar hona

Sochta hoon to kahani ki tarah lagta hai
Raste se mira takna, tira chhat par hona

Mujh ko qismat hi pohonchne nahi deti, warna
Ek e’zaaz hai us dar ka gadagar hona

Sirf tareekh batane ke liye zinda hoon
Ab mira ghar mein bhi hona hai calendar hona


4- Khafa hona zara si baat par talwar ho jaana
Magar phir khud-ba-khud wo aap ka gulnaar ho jaana

Kisi din meri ruswayi ka ye kaaran na ban jaaye
Tumhara sheher se jaana, mira bimaar ho jaana

Wo apna jism saara saunp dena meri aankhon ko
Miri padhne ki koshish aap ka akhbaar ho jaana

Kabhi jab aandhiyan chalti hain hum ko yaad aata hai
Hawa ka tez chalna, aap ka deewar ho jaana

Bahut dushwaar hai mere liye us ka tasavvur bhi
Bahut aasaan hai us ke liye dushwaar ho jaana

Kisi ki yaad aati hai to ye bhi yaad aata hai
Kahin chalne ki zid karna, mira tayyaar ho jaana

Kahani ka ye hissa ab bhi koi khwab lagta hai
Tira sar par bitha lena, mira dastaar ho jaana

Mohabbat ek na ek din ye hunar tum ko sikha degi
Baghawat par utarna aur khud-mukhtaar ho jaana

Nazar neechi kiye us ka guzarna paas se mere
Zara si der rukna, phir sabaa-raftaar ho jaana


5- Kabhi khushi se khushi ki taraf nahi dekha
Tumhare baad kisi ki taraf nahi dekha

Ye soch kar ki tira intezaar laazim hai
Tamaam-umr ghadi ki taraf nahi dekha

Yahan to jo bhi hai aab-e-rawaan ka aashiq hai
Kisi ne khushk nadi ki taraf nahi dekha

Wo jis ke waaste pardes ja raha hoon main
Bichhadte waqt usi ki taraf nahi dekha

Na rok le humein rota hua koi chehra
Chale to mud ke gali ki taraf nahi dekha

Bichhadte waqt bahut mutma’in the hum dono
Kisi ne mud ke kisi ki taraf nahi dekha

Rawish buzurgon ki shaamil hai meri ghutti mein
Zarooratan bhi sakhi ki taraf nahi dekha

1- किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई

यहाँ से जाने वाला लौट कर कोई नहीं आया
मैं रोता रह गया लेकिन न वापस जा के माँ आई

अधूरे रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता
बुलाने के लिए दुनिया भी आई तो कहाँ आई

किसी को गाँव से परदेस ले जाएगी फिर शायद
उड़ाती रेल-गाड़ी ढेर सारा फिर धुआँ आई

मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई

क़फ़स में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता
ख़ुदा जाने बहार आई चमन में या ख़िज़ाँ आई

घरौंदे तो घरौंदे हैं चटानें टूट जाती हैं
उड़ाने के लिए आँधी अगर नाम-ओ-निशाँ आई

कभी ऐ ख़ुश-नसीबी मेरे घर का रुख़ भी कर लेती
इधर पहुँची उधर पहुँची यहाँ आई वहाँ आई


2- भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है

अगर सोने के पिंजड़े में भी रहता है तो क़ैदी है
परिंदा तो वही होता है जो आज़ाद रहता है

चमन में घूमने फिरने के कुछ आदाब होते हैं
उधर हरगिज़ नहीं जाना उधर सय्याद रहता है

लिपट जाती है सारे रास्तों की याद बचपन में
जिधर से भी गुज़रता हूँ मैं रस्ता याद रहता है

हमें भी अपने अच्छे दिन अभी तक याद हैं 'राना'
हर इक इंसान को अपना ज़माना याद रहता है


3- बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना
आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना

सिर्फ़ बच्चों की मोहब्बत ने क़दम रोक लिए
वर्ना आसान था मेरे लिए बे-घर होना

हम को मा'लूम है शोहरत की बुलंदी हम ने
क़ब्र की मिट्टी का देखा है बराबर होना

इस को क़िस्मत की ख़राबी ही कहा जाएगा
आप का शहर में आना मिरा बाहर होना

सोचता हूँ तो कहानी की तरह लगता है
रास्ते से मिरा तकना तिरा छत पर होना

मुझ को क़िस्मत ही पहुँचने नहीं देती वर्ना
एक ए'ज़ाज़ है उस दर का गदागर होना

सिर्फ़ तारीख़ बताने के लिए ज़िंदा हूँ
अब मिरा घर में भी होना है कैलेंडर होना


4- ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
मगर फिर ख़ुद-ब-ख़ुद वो आप का गुलनार हो जाना

किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए
तुम्हारा शहर से जाना मिरा बीमार हो जाना

वो अपना जिस्म सारा सौंप देना मेरी आँखों को
मिरी पढ़ने की कोशिश आप का अख़बार हो जाना

कभी जब आँधियाँ चलती हैं हम को याद आता है
हवा का तेज़ चलना आप का दीवार हो जाना

बहुत दुश्वार है मेरे लिए उस का तसव्वुर भी
बहुत आसान है उस के लिए दुश्वार हो जाना

किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
कहीं चलने की ज़िद करना मिरा तय्यार हो जाना

कहानी का ये हिस्सा अब भी कोई ख़्वाब लगता है
तिरा सर पर बिठा लेना मिरा दस्तार हो जाना

मोहब्बत इक न इक दिन ये हुनर तुम को सिखा देगी
बग़ावत पर उतरना और ख़ुद-मुख़्तार हो जाना

नज़र नीची किए उस का गुज़रना पास से मेरे
ज़रा सी देर रुकना फिर सबा-रफ़्तार हो जाना


5- कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बा'द किसी की तरफ़ नहीं देखा

ये सोच कर कि तिरा इंतिज़ार लाज़िम है
तमाम-उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा

यहाँ तो जो भी है आब-ए-रवाँ का आशिक़ है
किसी ने ख़ुश्क नदी की तरफ़ नहीं देखा

वो जिस के वास्ते परदेस जा रहा हूँ मैं
बिछड़ते वक़्त उसी की तरफ़ नहीं देखा

न रोक ले हमें रोता हुआ कोई चेहरा
चले तो मुड़ के गली की तरफ़ नहीं देखा

बिछड़ते वक़्त बहुत मुतमइन थे हम दोनों
किसी ने मुड़ के किसी की तरफ़ नहीं देखा

रविश बुज़ुर्गों की शामिल है मेरी घुट्टी में
ज़रूरतन भी सखी की तरफ़ नहीं देखा

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All time most famous ghazals of fehmida riyaz..

1- Jo mujh mein chhupa mera gala ghont raha hai
Ya wo koi Iblis hai ya mera Khuda hai

Jab sar mein nahi ishq to chehre pe chamak hai
Ye nakhl khizan aayi to shaadab hua hai

Kya mera ziyan hai jo muqabil tire aa jaaun
Ye umr to ma'loom ki tu mujh se bada hai

Main banda-o-nachaar ki sairab na ho paun
Ai zahir-o-maujood mira jism dua hai

Haan us ke ta'aqqub se mire dil mein hai inkaar
Wo shaks kisi ko na milega na mila hai

Kyun noor-e-abad dil mein guzar kar nahi paata
Seene ki siyahi se naya harf likha hai


2- Muddatt se ye aalam hai dil ka, hasta bhi nahi rota bhi nahi
Maazi bhi kabhi dil mein na chubha, ainda ka socha bhi nahi

Wo mere honth pe likha hai jo harf mukammal ho na saka
Wo meri aankh mein basta hai jo khwab kabhi dekha bhi nahi

Chalte chalte kuch tham jaana, phir bojhal qadmon se chalna
Ye kaisi kasak si baaqi hai jab paon mein wo kaanta bhi nahi

Dhundhlayi hui shaamon mein koi parchai si phirti rehti hai
Main aahat sunti hoon jis ki, wo waham nahi saya bhi nahi

Tazeen-e-lab-o-gesu kaisi pindaar ka sheesha toot gaya
Thi jis ke liye sab aaraish, us ne to humein dekha bhi nahi


3- Kabhi dhanak si utarti thi un nigahon mein
Wo shokh rang bhi dheeme pade hawaon mein

Main tez-gaam chali ja rahi thi us ki samt
Kashish ajeeb thi us dasht ki sadaon mein

Wo ek sada jo fareb-e-sada se bhi kam hai
Na doob jaaye kahin tund-rau hawaon mein

Sukoot-e-shaam hai aur main hoon gosh-bar-aawaz
Ki ek wa'ade ka afsoon sa hai fazaon mein

Miri tarah yunhi gum-karda-rah chhodegi
Tum apni baah na dena hawa ki baahon mein

Nukush paon ke likhte hain manzil-e-na-yaft
Mira safar to hai tahreer meri rahon mein


4- Ab so jao
Aur apne haath ko mere haath mein rehne do

Tum chaand se maathay wale ho
Aur achhi kismat rakhte ho

Bachche ki sau bholi soorat
Ab tak zid karne ki aadat

Kuch khoyi khoyi si baatein
Kuch seene mein chubhti yaadein

Ab inhein bhula do, so jao
Aur apne haath ko mere haath mein rehne do

So jao, tum Shehzade ho
Aur kitne dhero pyare ho

Achha to koi aur bhi thi
Achha phir baat kahan nikli

Kuch aur bhi yaadein bachpan ki
Kuch apne ghar ke aangan ki

Sab batla do phir so jao
Aur apne haath ko mere haath mein rehne do

Ye thandi saans hawaon ki
Ye jhil-mil karti khamoshi

Ye dhalti raat sitaron ki
Beete na kabhi, tum so jao

Aur apne haath ko mere haath mein rehne do


5- Baitha hai mere samne wo
Jaane kisi soch mein pada hai

Achhi aankhein mili hain us ko
Wahshat karna bhi aa gaya hai

Bich jaaun main us ke raste mein
Phir bhi kya is se faayda hai

Hum dono hi ye to jaante hain
Wo mere liye nahi bana hai

Mere liye us ke haath kaafi
Us ke liye saara falsafa hai

Meri nazron se hai pareshaan
Khud apni kashish se hi khafa hai

Sab baat samajh raha hai lekin
Gum-sum sa mujh ko dekhta hai

Jaise mele mein koi bachcha
Apni maa se bichhad gaya hai

Us ke seene mein chhup ke rooon
Mera dil to ye chahta hai

Kaisa khush-rang phool hai wo
Jo us ke labon pe khil raha hai

Ya Rab wo mujhe kabhi na bhoole
Meri tujh se yahi dua hai
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1- जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है
या वो कोई इबलीस है या मेरा ख़ुदा है

जब सर में नहीं इश्क़ तो चेहरे पे चमक है
ये नख़्ल ख़िज़ाँ आई तो शादाब हुआ है

क्या मेरा ज़ियाँ है जो मुक़ाबिल तिरे आ जाऊँ
ये अम्र तो मा'लूम कि तू मुझ से बड़ा है

मैं बंदा-ओ-नाचार कि सैराब न हो पाऊँ
ऐ ज़ाहिर-ओ-मौजूद मिरा जिस्म दुआ है

हाँ उस के तआ'क़ुब से मिरे दिल में है इंकार
वो शख़्स किसी को न मिलेगा न मिला है

क्यूँ नूर-ए-अबद दिल में गुज़र कर नहीं पाता
सीने की सियाही से नया हर्फ़ लिखा है


2- मुद्दत से ये आलम है दिल का हँसता भी नहीं रोता भी नहीं
माज़ी भी कभी दिल में न चुभा आइंदा का सोचा भी नहीं

वो मेरे होंट पे लिक्खा है जो हर्फ़ मुकम्मल हो न सका
वो मेरी आँख में बस्ता है जो ख़्वाब कभी देखा भी नहीं

चलते चलते कुछ थम जाना फिर बोझल क़दमों से चलना
ये कैसी कसक सी बाक़ी है जब पाँव में वो काँटा भी नहीं

धुँदलाई हुई शामों में कोई परछाईं सी फिरती रहती है
मैं आहट सुनती हूँ जिस की वो वहम नहीं साया भी नहीं

तज़ईन-ए-लब-ओ-गेसू कैसी पिंदार का शीशा टूट गया
थी जिस के लिए सब आराइश उस ने तो हमें देखा भी नहीं


3- कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में
वो शोख़ रंग भी धीमे पड़े हवाओं में

मैं तेज़-गाम चली जा रही थी उस की सम्त
कशिश अजीब थी उस दश्त की सदाओं में

वो इक सदा जो फ़रेब-ए-सदा से भी कम है
न डूब जाए कहीं तुंद-रौ हवाओं में

सुकूत-ए-शाम है और मैं हूँ गोश-बर-आवाज़
कि एक वा'दे का अफ़्सूँ सा है फ़ज़ाओं में

मिरी तरह यूँही गुम-कर्दा-राह छोड़ेगी
तुम अपनी बाँह न देना हवा की बाँहों में

नुक़ूश पाँव के लिखते हैं मंज़िल-ए-ना-याफ़्त
मिरा सफ़र तो है तहरीर मेरी राहों में


4- अब सो जाओ
और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो

तुम चाँद से माथे वाले हो
और अच्छी क़िस्मत रखते हो

बच्चे की सौ भोली सूरत
अब तक ज़िद करने की आदत

कुछ खोई खोई सी बातें
कुछ सीने में चुभती यादें

अब इन्हें भुला दो सो जाओ
और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो

सो जाओ तुम शहज़ादे हो
और कितने ढेरों प्यारे हो

अच्छा तो कोई और भी थी
अच्छा फिर बात कहाँ निकली

कुछ और भी यादें बचपन की
कुछ अपने घर के आँगन की

सब बतला दो फिर सो जाओ
और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो

ये ठंडी साँस हवाओं की
ये झिलमिल करती ख़ामोशी

ये ढलती रात सितारों की
बीते न कभी तुम सो जाओ

और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो


5- बैठा है मेरे सामने वो 
जाने किसी सोच में पड़ा है 
अच्छी आँखें मिली हैं उस को 
वहशत करना भी आ गया है 
बिछ जाऊँ मैं उस के रास्ते में 
फिर भी क्या इस से फ़ाएदा है 
हम दोनों ही ये तो जानते हैं 
वो मेरे लिए नहीं बना है 
मेरे लिए उस के हाथ काफ़ी 
उस के लिए सारा फ़ल्सफ़ा है 
मेरी नज़रों से है परेशाँ 
ख़ुद अपनी कशिश से ही ख़फ़ा है 
सब बात समझ रहा है लेकिन 
गुम-सुम सा मुझ को देखता है 
जैसे मेले में कोई बच्चा 
अपनी माँ से बिछड़ गया है 
उस के सीने में छुप के रोऊँ 
मेरा दिल तो ये चाहता है 
कैसा ख़ुश-रंग फूल है वो 
जो उस के लबों पे खिल रहा है 
या रब वो मुझे कभी न भूले 
मेरी तुझ से यही दुआ है।
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All time most famous ghazals of Munir Niyazi..

1- Bechain bohot phirna ghabraye hue rehna
Ek aag si jazbon ki dehkaaye hue rehna

Chhalkaaye hue chalna khushboo lab-e-laaleen ki
Ek baagh sa saath apne mehakaaye hue rehna

Us husn ka shewa hai jab ishq nazar aaye
Parde mein chale jaana sharmaaye hue rehna

Ek shaam si kar rakhna kajal ke karishme se
Ek chaand sa aankhon mein chamkaaye hue rehna

Aadat hi bana li hai tum ne to 'Munir' apni
Jis shehar mein bhi rehna uktaaye hue rehna


2- Khayaal jis ka tha mujhe khayaal mein mila mujhe
Sawaal ka jawab bhi sawaal mein mila mujhe

Gaya to is tarah gaya ki muddaton nahi mila
Mila jo phir to yun ki wo malaal mein mila mujhe

Tamaam ilm zeest ka guzishtgaan se hi hua
Amal guzishta daur ka misaal mein mila mujhe

Nihaal sabz rang mein jamaal jis ka hai 'Munir'
Kisi qadeem khwaab ke muhaal mein mila mujhe


3- Gham ki baarish ne bhi tere naqsh ko dhoya nahi
Tu ne mujh ko kho diya main ne tujhe khoya nahi

Neend ka halka gulaabi sa khumaar aankhon mein tha
Yun laga jaise wo shab ko der tak soya nahi

Har taraf deewar-o-dar aur un mein aankhon ke hujoom
Keh sake jo dil ki haalat wo lab-e-goya nahi

Juram aadam ne kiya aur nasl-e-aadam ko saza
Kaatta hoon zindagi bhar main ne jo boya nahi

Jaanta hoon ek aise shaks ko main bhi 'Munir'
Gham se patthar ho gaya lekin kabhi roya nahi


4- Zinda rahen to kya hai jo mar jaayein hum to kya
Duniya se khamoshi se guzar jaayein hum to kya

Hasti hi apni kya hai zamaane ke saamne
Ek khwaab hain jahaan mein bikhar jaayein hum to kya

Ab kaun muntazir hai hamaare liye wahan
Shaam aa gayi hai laut ke ghar jaayein hum to kya

Dil ki khalish to saath rahegi tamaam umr
Dariya-e-gham ke paar utar jaayein hum to kya


5- Be-khayali mein yunhi bas ek iraada kar liya
Apne dil ke shauq ko had se ziyaada kar liya

Jaante the dono hum us ko nibha sakte nahi
Us ne waada kar liya main ne bhi waada kar liya

Ghair se nafrat jo paa li kharch khud par ho gayi
Jitne hum the hum ne khud ko us se aadha kar liya

Shaam ke rangon mein rakh kar saaf paani ka gilaas
Aab-e-saada ko hareef-e-rang-e-baada kar liya

Hijraton ka khauf tha ya pur-kashish kohna maqam
Kya tha jis ko hum ne khud deewar-e-jaada kar liya

Ek aisa shaks banta ja raha hoon main 'Munir'
Jis ne khud par band husn o jaam o baada kar liya
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1- बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
इक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना

छलकाए हुए चलना ख़ुशबू लब-ए-लालीं की
इक बाग़ सा साथ अपने महकाए हुए रहना

उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए
पर्दे में चले जाना शरमाए हुए रहना

इक शाम सी कर रखना काजल के करिश्मे से
इक चाँद सा आँखों में चमकाए हुए रहना

आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना


2- ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे

गया तो इस तरह गया कि मुद्दतों नहीं मिला
मिला जो फिर तो यूँ कि वो मलाल में मिला मुझे

तमाम इल्म ज़ीस्त का गुज़िश्तगाँ से ही हुआ
अमल गुज़िश्ता दौर का मिसाल में मिला मुझे

निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे


3- ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं

नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं

हर तरफ़ दीवार-ओ-दर और उन में आँखों के हुजूम
कह सके जो दिल की हालत वो लब-ए-गोया नहीं

जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा
काटता हूँ ज़िंदगी भर मैं ने जो बोया नहीं

जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी 'मुनीर'
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं


4- ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
दुनिया से ख़ामुशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या

हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
इक ख़्वाब हैं जहाँ में बिखर जाएँ हम तो क्या

अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या

दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र
दरिया-ए-ग़म के पार उतर जाएँ हम तो क्या


5- बे-ख़याली में यूँही बस इक इरादा कर लिया
अपने दिल के शौक़ को हद से ज़ियादा कर लिया

जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं
उस ने वा'दा कर लिया मैं ने भी वा'दा कर लिया

ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया

शाम के रंगों में रख कर साफ़ पानी का गिलास
आब-ए-सादा को हरीफ़-ए-रंग-ए-बादा कर लिया

हिजरतों का ख़ौफ़ था या पुर-कशिश कोहना मक़ाम
क्या था जिस को हम ने ख़ुद दीवार-ए-जादा कर लिया

एक ऐसा शख़्स बनता जा रहा हूँ मैं 'मुनीर'
जिस ने ख़ुद पर बंद हुस्न ओ जाम ओ बादा कर लिया

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All time most famous ghazals of Rahat Indori..

1- Roz taaron ko numaish mein khalal padta hai
Chaand paagal hai andhere mein nikal padta hai

Ek deewana musaafir hai meri aankhon mein
Waqt-be-waqt thahar jaata hai chal padta hai

Apni taabeer ke chakkar mein mera jagta khwaab
Roz sooraj ki tarah ghar se nikal padta hai

Roz patthar ki himayat mein ghazal likhte hain
Roz sheesho se koi kaam nikal padta hai

Uski yaad aayi hai saanson zara aahista chalo
Dhadkano se bhi ibaadat mein khalal padta hai


2- Sirf khanjar hi nahi aankhon mein paani chahiye
Ai Khuda dushman bhi mujh ko khaandani chahiye

Shehar ki saari Alif-Lailayein boodhi ho chuki
Shahzaade ko koi taaza kahani chahiye

Maine ai sooraj tujhe pooja nahi samjha to hai
Mere hisse mein bhi thodi dhoop aani chahiye

Meri keemat kaun de sakta hai is bazaar mein
Tum Zulaikha ho tumhe keemat lagani chahiye

Zindagi hai ek safar aur zindagi ki raah mein
Zindagi bhi aaye to thokar lagani chahiye

Maine apni khushk aankhon se lahoo chhalka diya
Ek samundar keh raha tha mujh ko paani chahiye


3- Log har mod pe ruk ruk ke sambhalte kyun hain
Itna darte hain to phir ghar se nikalte kyun hain

May-kada zarf ke mea'ar ka paimana hai
Khaali sheesho ki tarah log uchhalte kyun hain

Mod hota hai jawani ka sambhalne ke liye
Aur sab log yahin aa ke phislte kyun hain

Neend se mera ta’alluq hi nahi barson se
Khwaab aa aa ke meri chhat pe tahalte kyun hain

Main na jugnoo hoon diya hoon na koi taara hoon
Roshni wale mere naam se jalte kyun hain


4- Ghar se ye soch ke nikla hoon ke mar jaana hai
Ab koi raah dikha de ke kidhar jaana hai

Jism se saath nibhaane ki mat umeed rakho
Is musaafir ko to raste mein thahar jaana hai

Maut lamhe ki sada, zindagi umron ki pukar
Main yahi soch ke zinda hoon ke mar jaana hai

Nasha aisa tha ke may-khaane ko duniya samjha
Hosh aaya to khayal aaya ke ghar jaana hai

Mere jazbe ki badi qadr hai logon mein magar
Mere jazbe ko mere saath hi mar jaana hai


5- Aankh mein paani rakho honton pe chingaari rakho
Zinda rehna hai to tarkeeben bohot saari rakho

Raah ke patthar se badh kar kuch nahi hain manzilen
Raste awaaz dete hain safar jaari rakho

Ek hi naddee ke hain ye do kinare dosto
Dostana zindagi se maut se yaari rakho

Aate jaate pal ye kehte hain humare kaan mein
Kooch ka ailaan hone ko hai tayyaari rakho

Ye zaroori hai ke aankhon ka bharam qaaim rahe
Neend rakho ya na rakho khwaab meyaari rakho

Ye hawaayein ud na jaayein le ke kaagaz ka badan
Dosto mujh par koi patthar zara bhaari rakho

Le to aaye shayari bazaar mein 'Rahat' miyaan
Kya zaroori hai ke lehze ko bhi baazari rakho
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1- रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है


2- सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझ को ख़ानदानी चाहिए

शहर की सारी अलिफ़-लैलाएँ बूढ़ी हो चुकीं
शाहज़ादे को कोई ताज़ा कहानी चाहिए

मैं ने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए

मेरी क़ीमत कौन दे सकता है इस बाज़ार में
तुम ज़ुलेख़ा हो तुम्हें क़ीमत लगानी चाहिए

ज़िंदगी है इक सफ़र और ज़िंदगी की राह में
ज़िंदगी भी आए तो ठोकर लगानी चाहिए

मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए


3- लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं

मय-कदा ज़र्फ़ के मेआ'र का पैमाना है
ख़ाली शीशों की तरह लोग उछलते क्यूँ हैं

मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं

नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मिरी छत पे टहलते क्यूँ हैं

मैं न जुगनू हूँ दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मिरे नाम से जलते क्यूँ हैं


4- घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है

जिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो
इस मुसाफ़िर को तो रस्ते में ठहर जाना है

मौत लम्हे की सदा ज़िंदगी उम्रों की पुकार
मैं यही सोच के ज़िंदा हूँ कि मर जाना है

नश्शा ऐसा था कि मय-ख़ाने को दुनिया समझा
होश आया तो ख़याल आया कि घर जाना है

मिरे जज़्बे की बड़ी क़द्र है लोगों में मगर
मेरे जज़्बे को मिरे साथ ही मर जाना है


5- आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो

एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

ले तो आए शाइरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो

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All time most famous ghazals of nasir kazmi..

1- Wo saahiloon pe gaane waale kya hue
Wo kashtiyan jalaane waale kya hue

Wo subah aate-aate reh gayi kahan
Jo qaafile the aane waale kya hue

Main jin ki raah dekhta hoon raat bhar
Wo roshni dikhane waale kya hue

Ye kaun log hain mere idhar-udhar
Wo dosti nibhaane waale kya hue

Imaaratein to jal ke raakh ho gayin
Imaaratein banaane waale kya hue

Ye aap-hum to bojh hain zameen ke
Zameen ka bojh uthaane waale kya hue


2- Apni dhun mein rehta hoon, main bhi tere jaisa hoon
O pichhli rut ke saathi, ab ke baras main tanha hoon

Teri gali mein saara din, dukh ke kankar chunta hoon
Mujh se aankh milaye kaun, main tera aaina hoon

Mera diya jalaaye kaun, main tera khaali kamra hoon
Tu jeevan ki bhari gali, main jungle ka rasta hoon

Apni lehar hai apna rog, dariya hoon aur pyaasa hoon
Aati rut mujhe roye gi, jaati rut ka jhonka hoon


3- Husn ko dil mein chhupa kar dekho
Dhyan ki shama jala kar dekho

Kya khabar koi dafeena mil jaye
Koi deewar gira kar dekho

Faakhta chup hai badi der se kyun
Saro ki shaakh hila kar dekho

Nahar kyun so gayi chalte-chalte
Koi patthar hi gira kar dekho

Dil mein betaab hain kya-kya manzar
Kabhi is shehar mein aa kar dekho

In andheron mein kiran hai koi
Shabzadoon aankh utha kar dekho


4- Kaun is raah se guzarta hai
Dil yoon hi intezaar karta hai

Dekh kar bhi na dekhne waale
Dil tujhe dekh-dekh darta hai

Shehar-e-gul mein kati hai saari raat
Dekhiye din kahan guzarta hai

Dhyan ki seedhiyon pe pichhle pehar
Koi chupke se paanv dharta hai

Dil to mera udaas hai "Nasir"
Shehar kyun saayan-saayan karta hai

5- Ye bhi kya shaam-e-mulaqaat aayi
Lab pe mushkil se teri baat aayi

Subah se chup hain tere hijr naseeb
Haaye kya hoga agar raat aayi

Bastiyaan chhod ke barse baadal
Kis qayamat ki ye barsaat aayi

Koi jab mil ke hua tha rukhsat
Dil-e-betaab wahi raat aayi

Saaya-e-zulf-e-butaan mein "Nasir"
Ek se ek nayi raat aayi
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1- वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए
वो कश्तियाँ जलाने वाले क्या हुए

वो सुबह आते-आते रह गई कहाँ
जो क़ाफ़िले थे आने वाले क्या हुए

मैं जिन की राह देखता हूँ रात भर
वो रौशनी दिखाने वाले क्या हुए

ये कौन लोग हैं मेरे इधर-उधर
वो दोस्ती निभाने वाले क्या हुए

इमारतें तो जल के राख हो गईं
इमारतें बनाने वाले क्या हुए

ये आप-हम तो बोझ हैं ज़मीन के
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए


2- अपनी धुन में रहता हूँ, मैं भी तेरे जैसा हूँ 
ओ पिछली रुत के साथी, अब के बरस मैं तन्हा हूँ 

तेरी गली में सारा दिन, दुख के कंकर चुनता हूँ 
मुझ से आँख मिलाये कौन, मैं तेरा आईना हूँ

मेरा दिया जलाये कौन, मैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ
तू जीवन की भरी गली, मैं जंगल का रस्ता हूँ

अपनी लहर है अपना रोग, दरिया हूँ और प्यासा हूँ 
आती रुत मुझे रोयेगी, जाती रुत का झोंका हूँ


3-  हुस्न को दिल में छुपा कर देखो
ध्यान की शमा जला कर देखो

क्या खबर कोई दफीना मिल जाये
कोई दीवार गिरा कर देखो

फाख्ता चुप है बड़ी देर से क्यूँ
सरो की शाख हिला कर देखो

नहर क्यूँ सो गई चलते-चलते
कोई पत्थर ही गिरा कर देखो

दिल में बेताब हैं क्या-क्या मंज़र
कभी इस शहर में आ कर देखो

इन अंधेरों में किरन है कोई
शबज़दों आंख उठाकर देखो


4- कौन इस राह से गुज़रता है
दिल यूँ ही इंतज़ार करता है

देख कर भी न देखने वाले
दिल तुझे देख-देख डरता है

शहर-ए-गुल में कटी है सारी रात
देखिये दिन कहाँ गुज़रता है

ध्यान की सीढ़ियों पे पिछले पहर
कोई चुपके से पाँव धरता है

दिल तो मेरा उदास है "नासिर"
शहर क्यों सायँ-सायँ करता है


5- ये भी क्या शाम-ए-मुलाक़ात आई
लब पे मुश्किल से तेरी बात आई 

सुबह से चुप हैं तेरे हिज्र नसीब
हाय क्या होगा अगर रात आई 

बस्तियाँ छोड़ के बरसे बादल
किस क़यामत की ये बरसात आई 

कोई जब मिल के हुआ था रुख़सत
दिल-ए-बेताब वही रात आई

साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ में 'नासिर' 
एक से एक नई रात आई
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All time most famous ghazals of ABBAS TABISH..

1- Paani aankh mein bhar kar laya jaa sakta hai
Ab bhi jalta shahar bachaya jaa sakta hai

Ek mohabbat aur wo bhi nakaam mohabbat
Lekin is se kaam chalaya jaa sakta hai

Dil par paani peene aati hain ummeedein
Is chashme mein zehar milaya jaa sakta hai

Mujh gumnaam se poochhte hain Farhad o Majnu
Ishq mein kitna naam kamaya jaa sakta hai

Ye mahtaab ye raat ki peshaani ka ghaav
Aisa zakhm to dil par khaya jaa sakta hai

Fata-purana khwaab hai mera phir bhi 'Tabish'
Is mein apna-aap chupaya jaa sakta hai


2- Jo bhi min-jumla-e-ashjaar nahi ho sakta
Kuch bhi ho jaaye mera yaar nahi ho sakta

Ek mohabbat to kai baar bhi ho sakti hai
Ek hi shakhs kai baar nahi ho sakta

Jis se poochhein tire baare mein yahi kehta hai
Khoobsurat hai wafadaar nahi ho sakta


3- Di hai vahshat to ye vahshat hi musalsal ho jaaye
Raqs karte hue atraaf mein jungle ho jaaye

Ai mere dasht-mizaajo ye meri aankhein hain
In se roomal bhi chhoo jaaye to baadal ho jaaye

Chalta rehne do miyaan silsila dildari ka
Aashiqui deen nahi hai ki mukammal ho jaaye

Haalat-e-hijr mein jo raqs nahi kar sakta
Us ke haq mein yahi behtar hai ki paagal ho jaaye

Mera dil bhi kisi aaseb-zada ghar ki tarah
Khud-ba-khud khulne lage khud hi muqaffal ho jaaye

Doobti naav mein sab cheekh rahe hain 'Tabish'
Aur mujhe fikr ghazal meri mukammal ho jaaye


4- Hansne nahi deta kabhi rone nahi deta
Ye dil to koi kaam bhi hone nahi deta

Tum maang rahe ho mere dil se meri khwaahish
Bachcha to kabhi apne khilaune nahi deta

Main aap uthata hoon shab-o-roz ki zillat
Ye bojh kisi aur ko dhone nahi deta

Wo kaun hai us se to main waaqif bhi nahi hoon
Jo mujh ko kisi aur ka hone nahi deta


5- Tere liye sab chhod ke tera na raha main
Duniya bhi gayi ishq mein tujh se bhi gaya main

Ek soch mein gum hoon teri deewaar se lag kar
Manzil pe pahunch kar bhi thikane na laga main

Warna koi kab gaaliyan deta hai kisi ko
Ye us ka karam hai ki tujhe yaad raha main

Main tez hawa mein bhi bagule ki tarah tha
Aaya tha mujhe taish magar jhoom utha main

Is darja mujhe khokhla kar rakha tha gham ne
Lagta tha gaya ab ke gaya ab ke gaya main

Ye dekh mera haath mere khoon se tar hai
Khush ho ke tera madd-e-muqabil na raha main

Ek dhoke mein duniya ne meri raai talab ki
Kehte the ki patthar hoon magar bol pada main

Ab taish mein aate hi pakad leta hoon paanv
Is ishq se pehle kabhi aisa to na tha main
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1- पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है
अब भी जलता शहर बचाया जा सकता है

एक मोहब्बत और वो भी नाकाम मोहब्बत
लेकिन इस से काम चलाया जा सकता है

दिल पर पानी पीने आती हैं उम्मीदें
इस चश्मे में ज़हर मिलाया जा सकता है

मुझ गुमनाम से पूछते हैं फ़रहाद ओ मजनूँ
इश्क़ में कितना नाम कमाया जा सकता है

ये महताब ये रात की पेशानी का घाव
ऐसा ज़ख़्म तो दिल पर खाया जा सकता है

फटा-पुराना ख़्वाब है मेरा फिर भी 'ताबिश'
इस में अपना-आप छुपाया जा सकता है


2- जो भी मिन-जुम्ला-ए-अश्जार नहीं हो सकता
कुछ भी हो जाए मिरा यार नहीं हो सकता

इक मोहब्बत तो कई बार भी हो सकती है
एक ही शख़्स कई बार नहीं हो सकता

जिस से पूछें तिरे बारे में यही कहता है
ख़ूबसूरत है वफ़ादार नहीं हो सकता


3- दी है वहशत तो ये वहशत ही मुसलसल हो जाए
रक़्स करते हुए अतराफ़ में जंगल हो जाए

ऐ मिरे दश्त-मिज़ाजो ये मिरी आँखें हैं
इन से रूमाल भी छू जाए तो बादल हो जाए

चलता रहने दो मियाँ सिलसिला दिलदारी का
आशिक़ी दीन नहीं है कि मुकम्मल हो जाए

हालत-ए-हिज्र में जो रक़्स नहीं कर सकता
उस के हक़ में यही बेहतर है कि पागल हो जाए

मेरा दिल भी किसी आसेब-ज़दा घर की तरह
ख़ुद-ब-ख़ुद खुलने लगे ख़ुद ही मुक़फ़्फ़ल हो जाए

डूबती नाव में सब चीख़ रहे हैं 'ताबिश'
और मुझे फ़िक्र ग़ज़ल मेरी मुकम्मल हो जाए


4- हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता
ये दिल तो कोई काम भी होने नहीं देता

तुम माँग रहे हो मिरे दिल से मिरी ख़्वाहिश
बच्चा तो कभी अपने खिलौने नहीं देता

मैं आप उठाता हूँ शब-ओ-रोज़ की ज़िल्लत
ये बोझ किसी और को ढोने नहीं देता

वो कौन है उस से तो मैं वाक़िफ़ भी नहीं हूँ
जो मुझ को किसी और का होने नहीं देता


5- तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं
दुनिया भी गई इश्क़ में तुझ से भी गया मैं

इक सोच में गुम हूँ तिरी दीवार से लग कर
मंज़िल पे पहुँच कर भी ठिकाने न लगा मैं

वर्ना कोई कब गालियाँ देता है किसी को
ये उस का करम है कि तुझे याद रहा मैं

मैं तेज़ हवा में भी बगूले की तरह था
आया था मुझे तैश मगर झूम उठा मैं

इस दर्जा मुझे खोखला कर रक्खा था ग़म ने
लगता था गया अब के गया अब के गया मैं

ये देख मिरा हाथ मिरे ख़ून से तर है
ख़ुश हो कि तिरा मद्द-ए-मुक़ाबिल न रहा मैं

इक धोके में दुनिया ने मिरी राय तलब की
कहते थे कि पत्थर हूँ मगर बोल पड़ा मैं

अब तैश में आते ही पकड़ लेता हूँ पाँव
इस इश्क़ से पहले कभी ऐसा तो न था मैं

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All time most famous ghazals of daagh dehlvi,..

1- Tumhare khat mein naya ek salaam kis ka tha
Na tha raqeeb to aakhir wo naam kis ka tha

Wo qatl kar ke mujhe har kisi se puchte hain
Ye kaam kis ne kiya hai ye kaam kis ka tha

Wafa karenge nibahenge baat maanenge
Tumhe bhi yaad hai kuch ye kalaam kis ka tha

Raha na dil mein wo bedard aur dard raha
Muqeem kaun hua hai maqam kis ka tha

Na poochh-ghachh thi kisi ki wahan na aav-bhagat
Tumhari bazm mein kal ehtimaam kis ka tha

Tamaam bazm jise sun ke reh gayi mushtaq
Kaho wo tazkira-e-na-tamaam kis ka tha

Hamare khat ke to purze kiye padha bhi nahi
Suna jo tune ba-dil wo payaam kis ka tha

Uthayi kyun na qayamat adoo ke kuche mein
Lihaaz aap ko waqt-e-khiraam kis ka tha

Guzar gaya wo zamana kahun to kis se kahun
Khayaal dil ko mere subh o shaam kis ka tha

Humein to hazrat-e-wa'iz ki zid ne pilwayi
Yahan iraada-e-sharb-e-mudaam kis ka tha

Agarche dekhne wale tire hazaron the
Tabah-haal bohot zer-e-baam kis ka tha

Wo kaun tha ke tumhe jis ne bewafa jaana
Khayaal-e-khaam ye sauda-e-khaam kis ka tha

Inhi sifaat se hota hai aadmi mashhoor
Jo lutf-e-aam wo karte ye naam kis ka tha

Har ek se kehte hain kya 'Daagh' bewafa nikla
Ye poochhe un se koi wo ghulaam kis ka tha


2- Aap ka aitbaar kaun kare
Roz ka intezaar kaun kare

Zikr-e-mehr-o-wafa to hum karte
Par tumhe sharmasaar kaun kare

Ho jo us chashm-e-mast se be-khud
Phir use hoshiyar kaun kare

Tum to ho jaan ek zamane ki
Jaan tum par nisaar kaun kare

Aafat-e-rozgaar jab tum ho
Shikwa-e-rozgaar kaun kare

Apni tasbeeh rehne de zahid
Daana daana shumaar kaun kare

Hijr mein zeher kha ke mar jaun
Maut ka intezaar kaun kare

Aankh hai turk zulfon hai sayyaad
Dekhein dil ka shikaar kaun kare

Wa'da karte nahi ye kehte hain
Tujh ko umeed-waar kaun kare

'Daagh' ki shakl dekh kar bole
Aisi surat ko pyaar kaun kare


3- Uzr aane mein bhi hai aur bulaate bhi nahi
Bais-e-tark-e-mulaqat bataate bhi nahi

Muntazir hain dam-e-ruqhsat ki ye mar jaye to jaayein
Phir ye ehsaan ki hum chhod ke jaate bhi nahi

Sar uthao to sahi aankh milaao to sahi
Nasha-e-may bhi nahi neend ke maate bhi nahi

Kya kaha phir to kaho hum nahi sunte teri
Nahi sunte to hum aison ko sunaate bhi nahi

Khoob parda hai ke chilman se lage baithe hain
Saaf chhupte bhi nahi saamne aate bhi nahi

Mujh se laagar teri aankhon mein khatakte to rahe
Tujh se naazuk meri nazron mein samaate bhi nahi

Dekhte hi mujhe mehfil mein ye irshaad hua
Kaun baitha hai use log uthaate bhi nahi

Ho chuka qat' ta'alluq to jafaaein kyun hon
Jin ko matlab nahi rehta wo sataate bhi nahi

Zist se tang ho ai 'Daagh' to jeete kyun ho
Jaan pyaari bhi nahi jaan se jaate bhi nahi


4- Ghazab kiya tire wa'de pe aitbaar kiya
Tamaam raat qayamat ka intezaar kiya

Kisi tarah jo na us but ne aitbaar kiya
Meri wafa ne mujhe khoob sharmasaar kiya

Hansa hansa ke shab-e-wasl ashk-baar kiya
Tasalliyan mujhe de de ke be-qaraar kiya

Ye kis ne jalwa hamare sar-e-mazaar kiya
Ke dil se shor utha haaye be-qaraar kiya

Suna hai teg ko qaatil ne aab-daar kiya
Agar ye sach hai to be-shubah hum pe waar kiya

Na aaye raah pe wo izzat be-shumaar kiya
Shab-e-wisaal bhi main ne to intezaar kiya

Tujhe to wa'da-e-deedaar hum se karna tha
Ye kya kiya ki jahan ko umeed-waar kiya


5- Ajab apna haal hota jo wisaal-e-yaar hota
Kabhi jaan sadqe hoti kabhi dil nisaar hota

Koi fitna taa-qayamat na phir ashkaar hota
Tire dil pe kaash zaalim mujhe ikhtiyaar hota

Jo tumhari tarah tum se koi jhoote wa'de karta
Tumhi munsifi se keh do tumhe aitbaar hota

Gam-e-ishq mein maza tha jo use samajh ke khaate
Ye wo zeher hai ke aakhir may-e-khush-gawaar hota

Ye maza tha dil-lagi ka ke barabar aag lagti
Na tujhe qaraar hota na mujhe qaraar hota
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1- तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था

वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था

वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था

न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था

तमाम बज़्म जिसे सुन के रह गई मुश्ताक़
कहो वो तज़्किरा-ए-ना-तमाम किस का था

हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किए पढ़ा भी नहीं
सुना जो तू ने ब-दिल वो पयाम किस का था

उठाई क्यूँ न क़यामत अदू के कूचे में
लिहाज़ आप को वक़्त-ए-ख़िराम किस का था

गुज़र गया वो ज़माना कहूँ तो किस से कहूँ
ख़याल दिल को मिरे सुब्ह ओ शाम किस का था

हमें तो हज़रत-ए-वाइज़ की ज़िद ने पिलवाई
यहाँ इरादा-ए-शर्ब-ए-मुदाम किस का था

अगरचे देखने वाले तिरे हज़ारों थे
तबाह-हाल बहुत ज़ेर-ए-बाम किस का था

वो कौन था कि तुम्हें जिस ने बेवफ़ा जाना
ख़याल-ए-ख़ाम ये सौदा-ए-ख़ाम किस का था

इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आम वो करते ये नाम किस का था

हर इक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला
ये पूछे उन से कोई वो ग़ुलाम किस का था


2- आप का ए'तिबार कौन करे
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे

ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तो हम करते
पर तुम्हें शर्मसार कौन करे

हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद
फिर उसे होशियार कौन करे

तुम तो हो जान इक ज़माने की
जान तुम पर निसार कौन करे

आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो
शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे

अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद
दाना दाना शुमार कौन करे

हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊँ
मौत का इंतिज़ार कौन करे

आँख है तुर्क ज़ुल्फ़ है सय्याद
देखें दिल का शिकार कौन करे

वा'दा करते नहीं ये कहते हैं
तुझ को उम्मीद-वार कौन करे

'दाग़' की शक्ल देख कर बोले
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे


3- उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं

मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ
फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं

सर उठाओ तो सही आँख मिलाओ तो सही
नश्शा-ए-मय भी नहीं नींद के माते भी नहीं

क्या कहा फिर तो कहो हम नहीं सुनते तेरी
नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

मुझ से लाग़र तिरी आँखों में खटकते तो रहे
तुझ से नाज़ुक मिरी नज़रों में समाते भी नहीं

देखते ही मुझे महफ़िल में ये इरशाद हुआ
कौन बैठा है उसे लोग उठाते भी नहीं

हो चुका क़त्अ तअ'ल्लुक़ तो जफ़ाएँ क्यूँ हों
जिन को मतलब नहीं रहता वो सताते भी नहीं

ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं


4- ग़ज़ब किया तिरे वा'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया

किसी तरह जो न उस बुत ने ए'तिबार किया
मिरी वफ़ा ने मुझे ख़ूब शर्मसार किया

हँसा हँसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया
तसल्लियाँ मुझे दे दे के बे-क़रार किया

ये किस ने जल्वा हमारे सर-ए-मज़ार किया
कि दिल से शोर उठा हाए बे-क़रार किया

सुना है तेग़ को क़ातिल ने आब-दार किया
अगर ये सच है तो बे-शुब्ह हम पे वार किया

न आए राह पे वो इज्ज़ बे-शुमार किया
शब-ए-विसाल भी मैं ने तो इंतिज़ार किया

तुझे तो वादा-ए-दीदार हम से करना था
ये क्या किया कि जहाँ को उमीद-वार किया

ये दिल को ताब कहाँ है कि हो मआल-अंदेश
उन्हों ने वा'दा किया इस ने ए'तिबार किया

कहाँ का सब्र कि दम पर है बन गई ज़ालिम
ब तंग आए तो हाल-ए-दिल आश्कार किया

तड़प फिर ऐ दिल-ए-नादाँ कि ग़ैर कहते हैं
अख़ीर कुछ न बनी सब्र इख़्तियार किया

मिले जो यार की शोख़ी से उस की बेचैनी
तमाम रात दिल-ए-मुज़्तरिब को प्यार किया

भुला भुला के जताया है उन को राज़-ए-निहाँ
छुपा छुपा के मोहब्बत को आश्कार किया

न उस के दिल से मिटाया कि साफ़ हो जाता
सबा ने ख़ाक परेशाँ मिरा ग़ुबार किया

हम ऐसे महव-ए-नज़ारा न थे जो होश आता
मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होश्यार किया

हमारे सीने में जो रह गई थी आतिश-ए-हिज्र
शब-ए-विसाल भी उस को न हम-कनार किया

रक़ीब ओ शेवा-ए-उल्फ़त ख़ुदा की क़ुदरत है
वो और इश्क़ भला तुम ने ए'तिबार किया

ज़बान-ए-ख़ार से निकली सदा-ए-बिस्मिल्लाह
जुनूँ को जब सर-ए-शोरीदा पर सवार किया

तिरी निगह के तसव्वुर में हम ने ऐ क़ातिल
लगा लगा के गले से छुरी को प्यार किया

ग़ज़ब थी कसरत-ए-महफ़िल कि मैं ने धोके में
हज़ार बार रक़ीबों को हम-कनार किया

हुआ है कोई मगर उस का चाहने वाला
कि आसमाँ ने तिरा शेवा इख़्तियार किया

न पूछ दिल की हक़ीक़त मगर ये कहते हैं
वो बे-क़रार रहे जिस ने बे-क़रार किया

जब उन को तर्ज़-ए-सितम आ गए तो होश आया
बुरा हो दिल का बुरे वक़्त होश्यार किया

फ़साना-ए-शब-ए-ग़म उन को इक कहानी थी
कुछ ए'तिबार किया कुछ न ए'तिबार किया

असीरी दिल-ए-आशुफ़्ता रंग ला के रही
तमाम तुर्रा-ए-तर्रार तार तार किया

कुछ आ गई दावर-ए-महशर से है उम्मीद मुझे
कुछ आप ने मिरे कहने का ए'तिबार किया

किसी के इश्क़-ए-निहाँ में ये बद-गुमानी थी
कि डरते डरते ख़ुदा पर भी आश्कार किया

फ़लक से तौर क़यामत के बन न पड़ते थे
अख़ीर अब तुझे आशोब-ए-रोज़गार किया

वो बात कर जो कभी आसमाँ से हो न सके
सितम किया तो बड़ा तू ने इफ़्तिख़ार किया

बनेगा मेहर-ए-क़यामत भी एक ख़ाल-ए-सियाह
जो चेहरा 'दाग़'-ए-सियह-रू ने आश्कार किया


5- अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता

कोई फ़ित्ना ता-क़यामत न फिर आश्कार होता
तिरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता

जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता
तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता

ग़म-ए-इश्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खाते
ये वो ज़हर है कि आख़िर मय-ए-ख़ुश-गवार होता

ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता

न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता

तिरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ए'तिबार होता

ये वो दर्द-ए-दिल नहीं है कि हो चारासाज़ कोई
अगर एक बार मिटता तो हज़ार बार होता

गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी
मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता

मुझे मानते सब ऐसा कि अदू भी सज्दे करते
दर-ए-यार काबा बनता जो मिरा मज़ार होता

तुम्हें नाज़ हो न क्यूँकर कि लिया है 'दाग़' का दिल
ये रक़म न हाथ लगती न ये इफ़्तिख़ार होता

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All time most famous ghazals of Mir Taqi Mir..

1- Kya haqeeqat kahoon ke kya hai ishq
Haq-shanaason ke haan Khuda hai ishq

Dil laga ho to jee jahaan se utha
Maut ka naam pyaar ka hai ishq

Aur tadbeer ko nahi kuch dakh'l
Ishq ke dard ki dawa hai ishq

Kya dubaya moheet mein gham ke
Hum ne jaana tha aashna hai ishq

Ishq se jaa nahi koi khaali
Dil se le arsh tak bhara hai ishq

Kohkan kya pahaad kaatega
Parde mein zor-aazma hai ishq

Ishq hai ishq karne waalon ko
Kaisa kaisa wahm kiya hai ishq

Kaun maqsad ko ishq bin pahucha
Aarzoo ishq, mudda hai ishq

'Mīr' marna pade hai khuban par
Ishq mat kar ke bad bala hai ishq


2- Aavegi meri qabr se awaaz mere baad
Ubherenge ishq-e-dil se tere raaz mere baad

Jeena mera to tujh ko ghaneemat hai na-samajh
Kheenchega kaun phir ye tere naaz mere baad

Sham-e-mazaar aur ye soz-e-jigar mera
Har shab karenge zindagi na-saaz mere baad

Karta hoon main jo naale sar-anzaam bagh mein
Munh dekho phir karenge hum awaaz mere baad

Bin gul mua hi main to p tu ja ke lautiyo
Sehan-e-chaman mein ai par-e-parwaaz mere baad

Baitha hoon 'Mir' marne ko apne mein mustaid
Paida na honge mujh se bhi jaanbaaz mere baad


3- Ulti ho gayi sab tadbeeren kuch na dawa ne kaam kiya
Dekha is bimaari-e-dil ne aakhir kaam tamaam kiya

Ahd-e-jawani ro ro kaata, peeri mein leen aankhen moond
Ya’ni raat bahut the jaage, subah hui aaraam kiya

Harf nahi jaan-bakhshi mein uski khoobi apni kismat ki
Hum se jo pehle keh bheja, so marne ka paighaam kiya

Nahaq hum majbooron par ye tohmat hai mukhtaari ki
Chaahte hain so aap karein hain, hum ko abas badnaam kiya

Saare rind aubaash jahan ke tujh se sujood mein rehte hain
Baanke tedhe tirchhe teekhe sab ka tujh ko imaam kiya

Sarzad hum se be-adabi toh vahshat mein bhi kam hi hui
Koso uski ore gaye, par sajda har har gaam kiya

Kis ka Kaaba, kaisa Qibla, kaun Haram hai, kya ehram
Kuche ke uske baashindon ne sab ko yahin se salaam kiya

Shaikh jo hai masjid mein nanga, raat ko tha may-khaane mein
Jubba khirqah kurta topi, masti mein inaam kiya

Kaash ab burqa munh se utha de, warna phir kya haasil hai
Aankh munde par un ne go deedaar ko apne aam kiya

Yaan ke sapeed o siyah mein hum ko dakh’l jo hai so itna hai
Raat ko ro ro subah kiya ya din ko joon toon shaam kiya

Subah chaman mein usko kahin takleef-e-hawa le aayi thi
Rukh se gul ko mol liya, qamat se sarv ghulaam kiya

Sa’ad-e-seemeen dono uske haath mein la kar chhod diye
Bhoole uske qaul-o-qasam par, haaye khayaal-e-khaam kiya

Kaam hue hain saare zaa’e’ har saa’at ki samaajat se
Istighna ki chauguni un ne joon joon main ibraam kiya

Aise aahu-e-ram-khurdah ki vahshat khoni mushkil thi
Sehr kiya ejaz kiya jin logon ne tujh ko raam kiya

'Mir' ke deen-o-mazhab ko ab poochhte kya ho un ne to
Qashqa kheencha dair mein baitha kab ka tark-e-Islam kiya


4- Kya kahoon tum se main ke kya hai ishq
Jaan ka rog hai bala hai ishq

Ishq hi ishq hai jahan dekho
Saare aalam mein bhar raha hai ishq

Ishq hai tarz o taur ishq ke tain
Kahin banda kahin Khuda hai ishq

Ishq ma’ashooq, ishq aashiq hai
Ya’ni apna hi mubtala hai ishq

Gar parastish Khuda ki saabit ki
Kisu surat mein ho bhala hai ishq

Dilkash aisa kahan hai dushman-e-jaan
Muddai hai p mudda hai ishq

Hai humare bhi taur ka aashiq
Jis kisi ko kahin hua hai ishq

Koi khwahan nahi mohabbat ka
Tu kahe jins-e-na-rava hai ishq

'Mir'-ji zard hote jaate ho
Kya kahin tum ne bhi kiya hai ishq


5- Dekho to dil ki jaan se uthta hai
Ye dhuaan sa kahaan se uthta hai

Gaur kis diljale ki hai ye falak
Shola ek subah yahan se uthta hai

Khana-e-dil se zeenhaar na ja
Koi aise makaan se uthta hai

Naala sar kheenchta hai jab mera
Shor ek aasman se uthta hai

Ladti hai uski chashm-e-shokh jahan
Ek aashob wahan se uthta hai

Sudh le ghar ki bhi shola-e-aawaaz
Dood kuch aashiyan se uthta hai

Baithne kaun de hai phir usko
Jo tere aastaan se uthta hai

Yoon uthe aah us gali se hum
Jaise koi jahan se uthta hai

Ishq ek 'Mir' bhaari patthar hai
Kab ye tujh na-tawan se uthta hai
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1- क्या हक़ीक़त कहूं कि क्या है इश्क़
हक़-शनासों के हां ख़ुदा है इश्क़

दिल लगा हो तो जी जहाँ से उठा
मौत का नाम प्यार का है इश्क़

और तदबीर को नहीं कुछ दख़्ल
इश्क़ के दर्द की दवा है इश्क़

क्या डुबाया मुहीत में ग़म के
हम ने जाना था आश्ना है इश्क़

इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़

कोहकन क्या पहाड़ काटेगा
पर्दे में ज़ोर-आज़मा है इश्क़

इश्क़ है इश्क़ करने वालों को
कैसा कैसा बहम किया है इश्क़

कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुंचा
आरज़ू इश्क़ मुद्दआ है इश्क़

'मीर' मरना पड़े है ख़ूबां पर
इश्क़ मत कर कि बद बला है इश्क़


2- आवेगी मेरी क़ब्र से आवाज़ मेरे बा'द
उभरेंगे इश्क़-ए-दिल से तिरे राज़ मेरे बाद

जीना मिरा तो तुझ को ग़नीमत है ना-समझ
खींचेगा कौन फिर ये तिरे नाज़ मेरे बाद

शम-ए-मज़ार और ये सोज़-ए-जिगर मिरा
हर शब करेंगे ज़िंदगी ना-साज़ मेरे बाद

करता हूँ मैं जो नाले सर-अंजाम बाग़ में
मुँह देखो फिर करेंगे हम आवाज़ मेरे बाद

बिन गुल मुआ ही मैं तो प तू जा के लौटियो
सेहन-ए-चमन में ऐ पर-ए-पर्वाज़ मेरे बाद

बैठा हूँ 'मीर' मरने को अपने में मुस्तइद
पैदा न होंगे मुझ से भी जाँबाज़ मेरे बाद


3- उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया

हर्फ़ नहीं जाँ-बख़्शी में उस की ख़ूबी अपनी क़िस्मत की
हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया

नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया

सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया

सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया

किस का काबा कैसा क़िबला कौन हरम है क्या एहराम
कूचे के उस के बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया

शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया

काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल है
आँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया

याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना है
रात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया

सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी
रुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया

साअद-ए-सीमीं दोनों उस के हाथ में ला कर छोड़ दिए
भूले उस के क़ौल-ओ-क़सम पर हाए ख़याल-ए-ख़ाम किया

काम हुए हैं सारे ज़ाएअ' हर साअ'त की समाजत से
इस्तिग़्ना की चौगुनी उन ने जूँ जूँ मैं इबराम किया

ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया

'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया


4- क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़

इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो
सारे आलम में भर रहा है इश्क़

इश्क़ है तर्ज़ ओ तौर इश्क़ के तईं
कहीं बंदा कहीं ख़ुदा है इश्क़

इश्क़ मा'शूक़ इश्क़ आशिक़ है
या'नी अपना ही मुब्तला है इश्क़

गर परस्तिश ख़ुदा की साबित की
किसू सूरत में हो भला है इश्क़

दिलकश ऐसा कहाँ है दुश्मन-ए-जाँ
मुद्दई है प मुद्दआ है इश्क़

है हमारे भी तौर का आशिक़
जिस किसी को कहीं हुआ है इश्क़

कोई ख़्वाहाँ नहीं मोहब्बत का
तू कहे जिंस-ए-ना-रवा है इश्क़

'मीर'-जी ज़र्द होते जाते हो
क्या कहीं तुम ने भी किया है इश्क़


5- देख तो दिल कि जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है

गोर किस दिलजले की है ये फ़लक
शोला इक सुब्ह याँ से उठता है

ख़ाना-ए-दिल से ज़ीनहार न जा
कोई ऐसे मकाँ से उठता है

नाला सर खींचता है जब मेरा
शोर इक आसमाँ से उठता है

लड़ती है उस की चश्म-ए-शोख़ जहाँ
एक आशोब वाँ से उठता है

सुध ले घर की भी शोला-ए-आवाज़
दूद कुछ आशियाँ से उठता है

बैठने कौन दे है फिर उस को
जो तिरे आस्ताँ से उठता है

यूँ उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है

इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है

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All time most famous ghazals of MOHSIN NAQVI..

1- Itni muddat baad mile ho
Kin sochon mein gum phirte ho

Itne khaif kyun rehte ho
Har aahat se dar jaate ho

Tez hawa ne mujh se poocha
Ret pe kya likhte rehte ho

Kaash koi hum se bhi pooche
Raat gae tak kyun jaage ho

Main dariya se bhi darta hoon
Tum dariya se bhi gehre ho

Kaun si baat hai tum mein aisi
Itne acche kyun lagte ho

Peeche mud kar kyun dekha tha
Patthar ban kar kya takte ho

Jao jeet ka jashn manao
Main jhootha hoon tum sacche ho

Apne shahar ke sab logon se
Meri khaatir kyun uljhe ho

Kehne ko rehte ho dil mein
Phir bhi kitne door khade ho

Raat humein kuch yaad nahi tha
Raat bahut hi yaad aaye ho

Hum se na poochho hijr ke qisse
Apni kaho ab tum kaise ho

'Mohsin' tum badnaam bahut ho
Jaise ho phir bhi acche ho


2- Ujde hue logon se gurezan na hua kar
Halaat ki qabron ke ye katbe bhi padha kar

Kya jaane kyun tez hawa soch mein gum hai
Khwabeeda parindon ko darakhton se uda kar

Us shaks ke tum se bhi marasim hain to honge
Woh jhoot na bolega mere samne aa kar

Har waqt ka hansna tujhe barbaad na kar de
Tanhai ke lamhon mein kabhi ro bhi liya kar

Woh aaj bhi sadiyon ki masafat pe khada hai
Dhoonda tha jise waqt ki deewar gira kar

Ae dil tujhe dushman ki bhi pehchaan kahan hai
Tu halqa-e-yaraan mein bhi mohtat raha kar

Is shab ke muqaddar mein sehar hi nahi 'Mohsin'
Dekha hai kai baar charagon ko bujha kar


3- Zikr-e-shab-e-firaq se wahshat use bhi thi
Meri tarah kisi se mohabbat use bhi thi

Mujhko bhi shauq tha naye chehron ki deed ka
Rasta badal ke chalne ki aadat use bhi thi

Us raat der tak woh raha mahv-e-guftugu
Masroof main bhi kam tha faragat use bhi thi

Mujhse bichhad ke shahar mein ghul-mil gaya woh shaks
Haalaanki shahar-bhar se adawat use bhi thi

Woh mujhse badh ke zabt ka aadi tha jee gaya
Warna har ek saans qayaamat use bhi thi

Sunta tha woh bhi sab se purani kahaniyan
Shaayad rafaqaton ki zarurat use bhi thi

Tanha hua safar mein toh mujh pe khula ye bhed
Saaye se pyaar dhoop se nafrat use bhi thi

'Mohsin' main usse keh na saka yun bhi haal-e-dil
Darpesh ek taaza museebat use bhi thi


4- Ye dil ye paagal dil mera kyun bujh gaya awargi
Is dasht mein ek shahar tha woh kya hua awargi

Kal shab mujhe be-shakl ki awaaz ne chauka diya
Main ne kaha tu kaun hai, usne kaha awargi

Logon bhala is shahar mein kaise jiyenge hum jahan
Ho jurm tanha sochna, lekin saza awargi

Ye dard ki tanhaiyan ye dasht ka veeraan safar
Hum log toh ukta gaye apni suna awargi

Ek ajnabi jhonke ne jab poocha mere gham ka sabab
Sehra ki bheegi ret par maine likha awargi

Us samt vahshi khwahishon ki zad mein paiman-e-wafa
Us samt lehron ki dhamak, kaccha ghada awargi

Kal raat tanha chaand ko dekha tha maine khwab mein
'Mohsin' mujhe raas aayegi shaayad sada awargi


5- Main dil pe zabt karunga tujhe bhula doonga
Marunga khud bhi tujhe bhi kadi saza doonga

Ye teeragi mere ghar ka hi kyun muqaddar ho
Main tere shahar ke saare diye bujha doonga

Hawa ka haath bataunga har tabahi mein
Hare shajar se parinde main khud uda doonga

Wafa karunga kisi sogwar chehre se
Purani qabr pe katba naya saja doonga

Isi khayal mein guzri hai shaam-e-dard aksar
Ki dard had se badhega toh muskura doonga

Tu aasmaan ki surat hai gar padega kabhi
Zameen hoon main bhi magar tujhe aasra doonga

Badha rahi hain mere dukh nishaniyan teri
Main tere khat teri tasveer tak jala doonga

Bahut dinon se mera dil udaas hai 'Mohsin'
Is aaine ko koi aks ab naya doonga
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1- इतनी मुद्दत बा'द मिले हो
किन सोचों में गुम फिरते हो

इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो

काश कोई हम से भी पूछे
रात गए तक क्यूँ जागे हो

में दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था
पत्थर बन कर क्या तकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ
में झूटा हूँ तुम सच्चे हो

अपने शहर के सब लोगों से
मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो

कहने को रहते हो दिल में
फिर भी कितने दूर खड़े हो

रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आए हो

हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो फिर भी अच्छे हो


2- उजड़े हुए लोगों से गुरेज़ाँ न हुआ कर
हालात की क़ब्रों के ये कतबे भी पढ़ा कर

क्या जानिए क्यूँ तेज़ हवा सोच में गुम है
ख़्वाबीदा परिंदों को दरख़्तों से उड़ा कर

उस शख़्स के तुम से भी मरासिम हैं तो होंगे
वो झूट न बोलेगा मिरे सामने आ कर

हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर

वो आज भी सदियों की मसाफ़त पे खड़ा है
ढूँडा था जिसे वक़्त की दीवार गिरा कर

ऐ दिल तुझे दुश्मन की भी पहचान कहाँ है
तू हल्क़ा-ए-याराँ में भी मोहतात रहा कर

इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं 'मोहसिन'
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर


3- ज़िक्र-ए-शब-ए-फ़िराक़ से वहशत उसे भी थी
मेरी तरह किसी से मोहब्बत उसे भी थी

मुझ को भी शौक़ था नए चेहरों की दीद का
रस्ता बदल के चलने की आदत उसे भी थी

उस रात देर तक वो रहा महव-ए-गुफ़्तुगू
मसरूफ़ मैं भी कम था फ़राग़त उसे भी थी

मुझ से बिछड़ के शहर में घुल-मिल गया वो शख़्स
हालाँकि शहर-भर से अदावत उसे भी थी

वो मुझ से बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया
वर्ना हर एक साँस क़यामत उसे भी थी

सुनता था वो भी सब से पुरानी कहानियाँ
शायद रफ़ाक़तों की ज़रूरत उसे भी थी

तन्हा हुआ सफ़र में तो मुझ पे खुला ये भेद
साए से प्यार धूप से नफ़रत उसे भी थी

'मोहसिन' मैं उस से कह न सका यूँ भी हाल दिल
दरपेश एक ताज़ा मुसीबत उसे भी थी


4- ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी

कल शब मुझे बे-शक्ल की आवाज़ ने चौंका दिया
मैं ने कहा तू कौन है उस ने कहा आवारगी

लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ
हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी

ये दर्द की तन्हाइयाँ ये दश्त का वीराँ सफ़र
हम लोग तो उक्ता गए अपनी सुना आवारगी

इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मिरे ग़म का सबब
सहरा की भीगी रेत पर मैं ने लिखा आवारगी

उस सम्त वहशी ख़्वाहिशों की ज़द में पैमान-ए-वफ़ा
उस सम्त लहरों की धमक कच्चा घड़ा आवारगी

कल रात तन्हा चाँद को देखा था मैं ने ख़्वाब में
'मोहसिन' मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी


5- मैं दिल पे जब्र करूँगा तुझे भुला दूँगा
मरूँगा ख़ुद भी तुझे भी कड़ी सज़ा दूँगा

ये तीरगी मिरे घर का ही क्यूँ मुक़द्दर हो
मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूँगा

हवा का हाथ बटाऊँगा हर तबाही में
हरे शजर से परिंदे मैं ख़ुद उड़ा दूँगा

वफ़ा करूँगा किसी सोगवार चेहरे से
पुरानी क़ब्र पे कतबा नया सजा दूँगा

इसी ख़याल में गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूँगा

तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी
ज़मीं हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूँगा

बढ़ा रही हैं मिरे दुख निशानियाँ तेरी
मैं तेरे ख़त तिरी तस्वीर तक जला दूँगा

बहुत दिनों से मिरा दिल उदास है 'मोहसिन'
इस आइने को कोई अक्स अब नया दूँगा

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All time most famous ghazals of Jaun Alia..

1- Bahut dil ko kushada kar liya kya
Zamane bhar se waada kar liya kya

To kya sachmuch judaai mujhse kar li
To khud apne ko aadha kar liya kya

Hunarmandi se apni dil ka safha
Meri jaan tumne saada kar liya kya

Jo yaksar jaan hai uske badan se
Kaho kuch istifaada kar liya kya

Bahut katra rahe ho mughbachon se
Gunah-e-tark-e-bada kar liya kya

Yahan ke log kab ke ja chuke hain
Safar zaada-ba-zaada kar liya kya

Uthaya ek qadam tu ne na us tak
Bahut apne ko manda kar liya kya

Tum apni kaj-kulahi haar baithin
Badan ko be-libada kar liya kya

Bahut nazdeek aati ja rahi ho
Bichhadne ka iraada kar liya kya


2- Gaah gaah bas ab yahi ho kya
Tum se mil kar bahut khushi ho kya

Mil rahi ho bade tapaak ke saath
Mujhko yaksar bhula chuki ho kya

Yaad hain ab bhi apne khwab tumhe
Mujhse mil kar udaas bhi ho kya

Bas mujhe yunhi ek khayaal aaya
Sochti ho to sochti ho kya

Ab meri koi zindagi hi nahi
Ab bhi tum meri zindagi ho kya

Kya kaha ishq-e-javedani hai!
Aakhri baar mil rahi ho kya

Haan faza yahan ki soyi soyi si hai
To bahut tez roshni ho kya

Mere sab tanz be-asar hi rahe
Tum bahut door ja chuki ho kya

Dil mein ab soz-e-intezar nahi
Sham-e-ummid bujh gayi ho kya

Is samundar pe tishna-kaam hoon main
Baan tum ab bhi beh rahi ho kya


3- Be-qarari si be-qarari hai
Wasl hai aur firaq taari hai

Jo guzaari na ja saki humse
Humne woh zindagi guzaari hai

Nigahen kya hui ki logon par
Apna saaya bhi ab toh bhaari hai

Bin tumhare kabhi nahi aayi
Kya meri neend bhi tumhari hai

Aap mein kaise aaun main tujh bin
Saans jo chal rahi hai aari hai

Usse kahiye ki dil ki galiyon mein
Raat din teri intezaari hai

Hijr ho ya wisal ho kuch ho
Hum hain aur uski yaadgaari hai

Ek mehak samt-e-dil se aayi thi
Main yeh samjha teri sawaari hai

Haadson ka hisaab hai apna
Warna har aan sab ki baari hai

Khush rahe tu ki zindagi apni
Umr bhar ki umeed-waari hai


4- Haalat-e-haal ke sabab haalat-e-haal hi gayi
Shauq mein kuch nahi gaya, shauq ki zindagi gayi

Tera firaq jaan-e-jaan aish tha kya mere liye
Ya’ni tere firaq mein khoob sharaab pi gayi

Tere wisal ke liye apne kamaal ke liye
Haalat-e-dil ki thi kharaab aur kharaab ki gayi

Uski umeed-e-naaz ka humse yeh maan tha ki aap
Umr guzaar dijiye, umr guzaar di gayi

Ek hi haadsa toh hai aur woh yeh ki aaj tak
Baat nahi kahi gayi, baat nahi suni gayi

Baad bhi tere jaan-e-jaan dil mein raha ajab sama
Yaad rahi teri yahaan phir teri yaad bhi gayi

Uske badan ko di numood humne sukhan mein aur phir
Uske badan ke waaste ek qaba bhi si gayi

Meena-ba-meena, may-ba-may, jaam-ba-jaam, jam-ba-jam
Naaf-piyale ki tere yaad ajab sahi gayi

Kehni hai mujhko ek baat aapse ya’ni aapse
Aap ke shahar-e-wisal mein lizzat-e-hijr bhi gayi

Sehn-e-khayal-e-yaar mein ki na basar shab-e-firaq
Jab se woh chandna gaya, jab se woh chandni gayi


5- Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge
Jaane kaise log woh honge jo usko bhaate honge

Shaam hue khush-baash yahan ke mere paas aa jaate hain
Mere bujhne ka nazara karne aa jaate honge

Woh jo na aane wala hai na usse mujhko matlab tha
Aane waalon se kya matlab aate hain aate honge

Uski yaad ki baad-e-saba mein aur toh kya hota hoga
Yunhi mere baal hain bikhre aur bikhar jaate honge

Yaaro kuch toh zikr karo tum uski qayamat baahon ka
Woh jo simat te honge unmein woh toh mar jaate honge

Mera saans ukhadte hi sab bain karenge roenge
Ya’ni mere baad bhi ya’ni saans liye jaate honge
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1- बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या 
ज़माने भर से वा'दा कर लिया क्या 

तो क्या सचमुच जुदाई मुझसे कर ली 
तो ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या 

हुनरमंदी से अपनी दिल का सफ़्हा 
मेरी जाँ तुम ने सादा कर लिया क्या 
जो यकसर जान है उस के बदन से 
कहो कुछ इस्तिफ़ादा कर लिया क्या 

बहुत कतरा रहे हो मुग़्बचों से 
गुनाह-ए-तर्क-ए-बादा कर लिया क्या 

यहाँ के लोग कब के जा चुके हैं 
सफ़र जादा-ब-जादा कर लिया क्या 
उठाया इक क़दम तू ने न उस तक 
बहुत अपने को माँदा कर लिया क्या 

तुम अपनी कज-कुलाही हार बैठीं 
बदन को बे-लिबादा कर लिया क्या 

बहुत नज़दीक आती जा रही हो 
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या


2- गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुम से मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या

याद हैं अब भी अपने ख़्वाब तुम्हें
मुझ से मिल कर उदास भी हो क्या

बस मुझे यूँही इक ख़याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या

अब मिरी कोई ज़िंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या

क्या कहा इश्क़ जावेदानी है!
आख़िरी बार मिल रही हो क्या

हाँ फ़ज़ा याँ की सोई सोई सी है
तो बहुत तेज़ रौशनी हो क्या

मेरे सब तंज़ बे-असर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या

दिल में अब सोज़-ए-इंतिज़ार नहीं
शम-ए-उम्मीद बुझ गई हो क्या

इस समुंदर पे तिश्ना-काम हूँ मैं
बान तुम अब भी बह रही हो क्या


3- बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
वस्ल है और फ़िराक़ तारी है

जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है

निघरे क्या हुए कि लोगों पर
अपना साया भी अब तो भारी है

बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है

आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन
साँस जो चल रही है आरी है

उस से कहियो कि दिल की गलियों में
रात दिन तेरी इंतिज़ारी है

हिज्र हो या विसाल हो कुछ हो
हम हैं और उस की यादगारी है

इक महक सम्त-ए-दिल से आई थी
मैं ये समझा तिरी सवारी है

हादसों का हिसाब है अपना
वर्ना हर आन सब की बारी है

ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनी
उम्र भर की उमीद-वारी है



4- हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई

तेरा फ़िराक़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिए
या'नी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई

तेरे विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल कि थी ख़राब और ख़राब की गई

उस की उमीद-ए-नाज़ का हम से ये मान था कि आप
उम्र गुज़ार दीजिए उम्र गुज़ार दी गई

एक ही हादसा तो है और वो ये कि आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई

बा'द भी तेरे जान-ए-जाँ दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तिरी यहाँ फिर तिरी याद भी गई

उस के बदन को दी नुमूद हम ने सुख़न में और फिर
उस के बदन के वास्ते एक क़बा भी सी गई

मीना-ब-मीना मय-ब-मय जाम-ब-जाम जम-ब-जम
नाफ़-पियाले की तिरे याद अजब सही गई

कहनी है मुझ को एक बात आप से या'नी आप से
आप के शहर-ए-वस्ल में लज़्ज़त-ए-हिज्र भी गई

सेहन-ए-ख़याल-ए-यार में की न बसर शब-ए-फ़िराक़
जब से वो चाँदना गया जब से वो चाँदनी गई


5- कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे

शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे

वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे

उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे

मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे

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All Time Most Famous Ghazals Of Mirza Ghalib..

1- Aah ko chahiye ek umr asar hote tak
Kaun jeeta hai tiri zulf ke sar hote tak

Daam-e-har-mauj mein hai halqa-e-sad-kaam-e-nahang
Dekhein kya guzarta hai qatre pe guhar hote tak

Aashiqui sabr-talab aur tamanna betaab
Dil ka kya rang karoon khoon-e-jigar hote tak

Taa-qayamat shab-e-furqat mein guzar jaayegi umr
Saat din hum pe bhi bhaari hain sahar hote tak

Hum ne maana ke taghaful na karoge lekin
Khaak ho jaayenge hum tum ko khabar hote tak

Partav-e-khur se hai shabnam ko fana ki ta'leem
Main bhi hoon ek inayat ki nazar hote tak

Yak nazar besh nahi fursat-e-hasti gafil
Garmi-e-bazm hai ek raqs-e-sharar hote tak

Gham-e-hasti ka 'Asad' kis se ho juz marg ilaaj
Sham'a har rang mein jalti hai sahar hote tak

2- Dil-e-nadaan tujhe hua kya hai
Aakhir is dard ki dawa kya hai

Hum hain mushtaaq aur wo be-zaar
Ya ilahi yeh maajra kya hai

Main bhi munh mein zabaan rakhta hoon
Kaash poochho ke mudda'a kya hai

Jab ke tujh bin nahi koi maujood
Phir yeh hangama aye Khuda kya hai

Yeh pari-chehra log kaise hain
Ghamza o ishwa o ada kya hai

Shikan-e-zulf-e-ambrein kyun hai
Nigah-e-chashm-e-surma sa kya hai

Sabza o gul kahan se aaye hain
Abr kya cheez hai, hawa kya hai

Hum ko un se wafaa ki hai umeed
Jo nahi jaante wafaa kya hai

Haan bhala kar taira bhala hoga
Aur darvesh ki sada kya hai

Jaan tum par nisaar karta hoon
Main nahi jaanta dua kya hai

Maine maana ke kuch nahi 'Ghalib'
Muft haath aaye to bura kya hai

3- Hai bas ke har ek un ke ishaare mein nishaan aur
Karte hain mohabbat to guzarta hai gumaan aur

Ya-rab wo na samjhe hain na samjhenge meri baat
De aur dil un ko jo na de mujh ko zabaan aur

Abroo se hai kya us nigah-e-naaz ko paivand
Hai teer muqarrar magar is ki hai kamaan aur

Tum shahr mein ho to humein kya gham jab uthenge
Le aayenge bazaar se ja kar dil o jaan aur

Har chand subuk-dast hue but-shikni mein
Hum hain to abhi raah mein hai sang-e-giran aur

Hai khoon-e-jigar josh mein dil khol ke rota
Hote jo kayi deeda-e-khoonaba-fishan aur

Marta hoon is awaaz pe har chand sar udh jaaye
Jallad ko lekin wo kahe jaayein ke haan aur

Logon ko hai khursheed-e-jahan-taab ka dhoka
Har roz dikhata hoon main ek daagh-e-nihan aur

Leta na agar dil tumhein deta koi dam chain
Karta jo na marta koi din aah-o-fughan aur

4- Rahiye ab aisi jagah chal kar jahan koi na ho
Hum-sukhan koi na ho aur hum-zabaan koi na ho

Be-dar-o-deewar sa ek ghar banaya chahiye
Koi hum-saaya na ho aur paasban koi na ho

Padhiye gar beemaar to koi na ho teemar-dar
Aur agar mar jaaiye to nauha-khwan koi na ho

5- Nukta-cheen hai gham-e-dil us ko sunaaye na bane
Kya bane baat jahan baat banaaye na bane

Main bulaata to hoon us ko magar aye jazba-e-dil
Us pe ban jaaye kuch aisi ke bin aaye na bane

Khel samjha hai kahin chhod na de bhool na jaaye
Kaash yun bhi ho ke bin mere sataaye na bane

Ghair phirta hai liye yun tire khat ko ke agar
Koi poochhe ke yeh kya hai to chhupaaye na bane

Is nazakat ka bura ho wo bhale hain to kya
Haath aavein to unhein haath lagaaye na bane

Keh sake kaun ke yeh jalwagari kis ki hai
Parda chhoda hai wo us ne ke uthaaye na bane

Maut ki raah na dekhoon ke bin aaye na rahe
Tum ko chaahun ke na aao to bulaaye na bane

Bojh wo sar se gira hai ke uthaaye na uthe
Kaam wo aan pada hai ke banaaye na bane

Ishq par zor nahi hai yeh wo aatish 'Ghalib'
Ke lagaaye na lage aur bujhaaye na bane
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1- आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक

ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक

परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक


2- दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है

मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दआ' क्या है

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है

ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं
ग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है

शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूँ है
निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है

सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

हाँ भला कर तिरा भला होगा
और दरवेश की सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है

मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है


3- है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और
करते हैं मोहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और

या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात
दे और दिल उन को जो न दे मुझ को ज़बाँ और

अबरू से है क्या उस निगह-ए-नाज़ को पैवंद
है तीर मुक़र्रर मगर इस की है कमाँ और

तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
ले आएँगे बाज़ार से जा कर दिल ओ जाँ और

हर चंद सुबुक-दस्त हुए बुत-शिकनी में
हम हैं तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ और

है ख़ून-ए-जिगर जोश में दिल खोल के रोता
होते जो कई दीदा-ए-ख़ूँनाबा-फ़िशाँ और

मरता हूँ इस आवाज़ पे हर चंद सर उड़ जाए
जल्लाद को लेकिन वो कहे जाएँ कि हाँ और

लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब का धोका
हर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और

लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन
करता जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ और

पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले
रुकती है मिरी तब्अ' तो होती है रवाँ और

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और


4- रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो

बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए
कोई हम-साया न हो और पासबाँ कोई न हो

पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो


5- नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने

मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने

खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए
काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने

ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाए न बने

इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने

कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने

मौत की राह न देखूँ कि बिन आए न रहे
तुम को चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने

बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने


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All Time Most Famous Ghazals Of Bashir badr..

1- Sar se paa tak wo gulaabon ka shajar lagta hai
Ba-wazu ho ke bhi chhoote hue dar lagta hai

Main tire saath sitaaron se guzar sakta hoon
Kitna aasaan mohabbat ka safar lagta hai

Mujh mein rehta hai koi dushman-e-jani mera
Khud se tanhai mein milte hue dar lagta hai

But bhi rakhe hain, namazen bhi ada hoti hain
Dil mera dil nahi, Allah ka ghar lagta hai


2- Zindagi tune mujhe qabr se kam di hai zameen
Paav failaun to deewaar mein sar lagta hai

Log toot jaate hain ek ghar banane mein
Tum taras nahi khaate bastiyan jalane mein

Aur jaam tootenge is sharaab-khane mein
Mausamon ke aane mein, mausamon ke jaane mein

Har dhadakte pathar ko log dil samajhte hain
Umrein beet jaati hain dil ko dil banane mein

Fakhta ki majboori yeh bhi keh nahi sakti
Kaun saanp rakhta hai us ke aashiyane mein

Doosri koi ladki zindagi mein aayegi
Kitni der lagti hai usko bhool jaane mein


3- Mohabbaton mein dikhave ki dosti na mila
Agar gale nahi milta to haath bhi na mila

Gharon pe naam the, naamon ke saath ohde the
Bahut talaash kiya koi aadmi na mila

Tamaam rishton ko main ghar pe chhod aaya tha
Phir uske baad mujhe koi ajnabi na mila

Khuda ki itni badi kainaat mein maine
Bas ek shaks ko maanga, mujhe wahi na mila

Bahut ajeeb hai yeh qurbaton ki doori bhi
Woh mere saath raha aur mujhe kabhi na mila


4- Aankhon mein raha, dil mein utar kar nahi dekha
Kashti ke musafir ne samundar nahi dekha

Be-waqt agar jaaunga sab chonk padenge
Ek umr hui din mein kabhi ghar nahi dekha

Jis din se chala hoon, meri manzil pe nazar hai
Aankhon ne kabhi meel ka pathar nahi dekha

Yeh phool mujhe koi virasat mein mile hain
Tum ne mera kaanton bhara bistar nahi dekha

Yaaron ki mohabbat ka yaqeen kar liya maine
Phoolon mein chhupaya hua khanjar nahi dekha

Mahboob ka ghar ho ki buzurgon ki zameenein
Jo chhod diya, phir usse mud kar nahi dekha

Khat aisa likha hai ki nageene se jade hain
Wo haath ke jisne koi zewar nahi dekha

Pathar mujhe kehta hai mera chahne wala
Main mom hoon, usne mujhe chho kar nahi dekha


5- Hamara dil savere ka sunahara jaam ho jaaye
Charagon ki tarah aankhein jalein jab shaam ho jaaye

Kabhi to aasman se chaand utare, jaam ho jaaye
Tumhare naam ki ek khoobsurat shaam ho jaaye

Ajab haalaat the, yun dil ka sauda ho gaya aakhir
Mohabbat ki haveli jis tarah neelam ho jaaye

Samundar ke safar mein is tarah awaaz de hum ko
Hawayein tez hon aur kashtiyon mein shaam ho jaaye

Mujhe maloom hai uska thikana phir kahan hoga
Parinda aasman chhoone mein jab nakaam ho jaaye

Ujale apni yaadon ke hamare saath rehne do
Na jaane kis gali mein zindagi ki shaam ho jaaye
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1- सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है

मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है

मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है

बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है


2- ज़िंदगी तूने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में

और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन सांप रखता है उस के आशियाने में

दूसरी कोई लड़की ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है उस को भूल जाने में


3- मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
बस एक शख़्स को मांगा मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला


4- आंखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा 
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा 

बे-वक़्त अगर जाऊंगा सब चौंक पड़ेंगे 
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा 

जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है 
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा 
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं 
तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा 

यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैंने 
फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा 

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें 
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं 
वो हाथ कि जिसने कोई ज़ेवर नहीं देखा 

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला 
मैं मोम हूं उसने मुझे छूकर नहीं देखा 


5- हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए

समुंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दे हम को
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

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All Time Most Famous Ghazals Of Zia mazkoor..

1- Bol padte hain hum jo aage se
Pyaar badhta hai is ravayye se

Main wahi hoon, yaqeen karo mera
Main jo lagta nahi hoon chehre se

Hum ko neeche utaar lenge log
Ishq latka rahega pankhe se

Saara kuchh lag raha hai be-tarteeb
Ek shay aage peeche hone se

Waise bhi kaun si zameenein thi
Main bahut khush hoon aaq-name se

Yeh mohabbat wo ghaat hai jis par
Daagh lagte hain kapde dhone se

2- Waqt hi kam tha faisle ke liye
Warna main aata mashware ke liye

Tum ko acche lage to tum rakh lo
Phool tode the bechne ke liye

Ghanton khaamosh rehna padta hai
Aap ke saath bolne ke liye

Saikdon kundiyaan laga raha hoon
Chand baton ko kholne ke liye

Ek deewaar baagh se pehle
Ik dupatta khule gale ke liye

Tark apni falaah kar di hai
Aur kya ho mu’aashare ke liye

Log aayat padh ke sote hain
Aap ke khwaab dekhne ke liye

Ab main raste mein let jaun kya
Jaane walon ko rokne ke liye

3- Main is sheher ka chaand hoon aur yeh jaanta hoon
Kaun si ladki kis khidki mein baithi hai

Jab tu shaam ko ghar jaaye to padh lena
Tere bistar par ik chitti chhodi hai

Us ki khaatir ghar se baahar thehra hoon
Warna ilm hai chaabi gate pe rakhi hai

4- Phone to door wahan khat bhi nahi pahucheinge
Ab ke yeh log tumhein aisi jagah bhejeinge

Zindagi dekh chuke tujh ko bade parde par
Aaj ke baad koi film nahi dekheinge

Mas'ala yeh hai main dushman ke qareen pahucheinga
Aur kabootar meri talwar pe aa baithenge

Hum ko ek baar kinaaron se nikal jaane do
Phir to sailaab ke paani ki tarah phailenge

Tu wo dariya hai agar jaldi nahi ki tu ne
Khud samundar tujhe milne ke liye aayenge

Segha-e-raaz mein rakkhenge nahi ishq tera
Hum tire naam se khushboo ki dukaan kholenge

5- Isi nadamat se us ke kandhe jhuke hue hain
Ki hum chhadi ka sahaara lekar khade hue hain

Yahan se jaane ki jaldi kis ko hai, tum batao
Ki suitcaseon mein kapde kis ne rakhe hue hain

Kara to loonga ilaaka khaali main lad-jhagad kar
Magar jo us ne dilon pe qabze kiye hue hain

Woh khud parindon ka daana lene gaya hua hai
Aur us ke bete shikaar karne gaye hue hain

Tumhare dil mein khuli dukaanon se lag raha hai
Yeh ghar yahan par bahut purane bane hue hain

Main kaise bawar karaun jaa kar yeh roshni ko
Ki in charagon pe mere paise lage hue hain

Tumhari duniya mein kitna mushkil hai bach ke chalna
Qadam qadam par to aastane bane hue hain

Tum in ko chaho to chhod sakte ho raste mein
Yeh log waise bhi zindagi se kate hue hain
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1- बोल पड़ते हैं हम जो आगे से
प्यार बढ़ता है इस रवय्ये से

मैं वही हूँ यक़ीं करो मेरा
मैं जो लगता नहीं हूँ चेहरे से

हम को नीचे उतार लेंगे लोग
इश्क़ लटका रहेगा पंखे से

सारा कुछ लग रहा है बे-तरतीब
एक शय आगे पीछे होने से

वैसे भी कौन सी ज़मीनें थीं
मैं बहुत ख़ुश हूँ आक़-नामे से

ये मोहब्बत वो घाट है जिस पर
दाग़ लगते हैं कपड़े धोने से


2- वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए
वर्ना मैं आता मशवरे के लिए

तुम को अच्छे लगे तो तुम रख लो
फूल तोड़े थे बेचने के लिए

घंटों ख़ामोश रहना पड़ता है
आप के साथ बोलने के लिए

सैकड़ों कुंडियाँ लगा रहा हूँ
चंद बटनों को खोलने के लिए

एक दीवार बाग़ से पहले
इक दुपट्टा खुले गले के लिए

तर्क अपनी फ़लाह कर दी है
और क्या हो मुआ'शरे के लिए

लोग आयात पढ़ के सोते हैं
आप के ख़्वाब देखने के लिए

अब मैं रस्ते में लेट जाऊँ क्या
जाने वालों को रोकने के लिए


3- मैं इस शहर का चाँद हूँ और ये जानता हूँ 
कौन सी लड़की किस खिड़की में बैठी है 

जब तू शाम को घर जाए तो पढ़ लेना 
तेरे बिस्तर पर इक चिट्ठी छोड़ी है 

उस की ख़ातिर घर से बाहर ठहरा हूँ 
वर्ना इल्म है चाबी गेट पे रक्खी है 


4- फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे

ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर
आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे

मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा
और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे

हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे

तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने
ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे

सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा
हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे


5- इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं
कि हम छड़ी का सहारा ले कर खड़े हुए हैं

यहाँ से जाने की जल्दी किस को है तुम बताओ
कि सूटकेसों में कपड़े किस ने रखे हुए हैं

करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं

वो ख़ुद परिंदों का दाना लेने गया हुआ है
और उस के बेटे शिकार करने गए हुए हैं

तुम्हारे दिल में खुली दुकानों से लग रहा है
ये घर यहाँ पर बहुत पुराने बने हुए हैं

मैं कैसे बावर कराऊँ जा कर ये रौशनी को
कि इन चराग़ों पे मेरे पैसे लगे हुए हैं

तुम्हारी दुनिया में कितना मुश्किल है बच के चलना
क़दम क़दम पर तो आस्ताने बने हुए हैं

तुम इन को चाहो तो छोड़ सकते हो रास्ते में
ये लोग वैसे भी ज़िंदगी से कटे हुए हैं

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All Time Most Famous Ghazals Of Umair najmi..

1- Khel dono ka chale, teen ka daana na pade
Seedhiyan aati rahen, saanp ka khaana na pade

Dekhe me’maar, parinde bhi rahen, ghar bhi bane
Naqsha aisa ho koi ped giraana na pade

Mere honton pe kisi lams ki khwahish hai shadeed
Aisa kuchh kar mujhe cigarette ko jalana na pade

Is ta’alluq se nikalne ka koi raasta de
Is pahaadi pe bhi baarood lagana na pade

Nam ki tarseel se aankhon ki haraarat kam ho
Sard-khaanon mein koi khwaab puraana na pade

Rabt ki khair hai bas teri ana bach jaaye
Is tarah jaa ki tujhe laut ke aana na pade

Hijr aisa ho ki chehre pe nazar aa jaaye
Zakhm aisa ho ki dikh jaaye, dikhana na pade


2- Bichhad gaye to yeh dil ‘umr bhar lagega nahi
Lagega lagne laga hai magar lagega nahi

Nahi lagega use dekh kar, magar khush hai
Main khush nahi hoon magar dekh kar, lagega nahi

Hamare dil ko abhi mustaqil pata na bana
Humein pata hai tera dil udhar lagega nahi

Junoon ka hazm zyada, tumhara zarf hai kam
Zara sa gamla hai, is mein shajar lagega nahi

Ek aisa zakhm-numa dil qareeb se guzra
Dil usko dekh ke cheekha, thahar lagega nahi

Junoon se kund kiya hai, so uske husn ka keel
Mere siwa kisi deewar par lagega nahi

Bahut tawajjo ta’alluq bigaad deti hai
Zyada darne lagenge to dar lagega nahi


3- Main barash chhod chuka, aakhiri tasveer ke baad
Mujh se kuchh ban nahi paaya, teri tasveer ke baad

Mushtarak dost bhi chhoote hain tujhe chhodne par
Ya’ni deewaar hatani padi tasveer ke baad

Yaar tasveer mein tanha hoon, magar log mile
Kayi tasveer se pehle, kayi tasveer ke baad

Doosra ishq mayassar hai, magar karta nahi
Kaun dekhega purani nai tasveer ke baad

Bhejh deta hoon, magar pehle bata doon tujhe
Mujh se milta nahi koi meri tasveer ke baad

Khushk deewaar mein seelan ka sabab kya hoga
Ek adad zang lagi keel thi tasveer ke baad


4- Har ek hazaar mein bas paanch saat hain hum log
Nisaab-e-ishq pe wajib zakaat hain hum log

Dabav mein bhi jama’at kabhi nahi badli
Shuru’a din se mohabbat ke saath hain hum log

Jo seekhni ho zabaan-e-sukoot, bismillah
Khamoshiyon ki mukammal lugaat hain hum log

Kahaniyon ke woh kirdaar jo likhe na gaye
Khabar se hazf-shuda waaqia’at hain hum log

Yeh intezaar humein dekh kar banaya gaya
Zuhoor-e-hijr se pehle ki baat hain hum log

Kisi ko rasta de dein, kisi ko paani na dein
Kahin pe Neel, kahin par Furaat hain hum log

Humein jala ke koi shab guzaar sakta hai
Sadak pe bikhre hue kaagzaat hain hum log


5- Tum is kharabe mein chaar chhe din tahal gayi ho
So ain-mumkin hai dil ki haalat badal gayi ho

Tamaam din is dua mein kat’ta hai kuchh dino se
Main jaaun kamre mein to udaasi nikal gayi ho

Kisi ke aane pe aise halchal hui hai mujh mein
Khamosh jungle mein jaise bandook chal gayi ho

Yeh na ho gar main hiloon to girne lage burada
Dukhon ki deemak badan ki lakdi nigal gayi ho

Yeh chhote chhote kayi hawadis jo ho rahe hain
Kisi ke sar se badi museebat na tal gayi ho

Hamara malba hamare qadamoon mein aa gira hai
Plate mein jaise mom-batti pighal gayi ho
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1- खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े
सीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना न पड़े

देख मे'मार परिंदे भी रहें घर भी बने
नक़्शा ऐसा हो कोई पेड़ गिराना न पड़े

मेरे होंटों पे किसी लम्स की ख़्वाहिश है शदीद
ऐसा कुछ कर मुझे सिगरेट को जलाना न पड़े

इस तअल्लुक़ से निकलने का कोई रास्ता दे
इस पहाड़ी पे भी बारूद लगाना न पड़े

नम की तर्सील से आँखों की हरारत कम हो
सर्द-ख़ानों में कोई ख़्वाब पुराना न पड़े

रब्त की ख़ैर है बस तेरी अना बच जाए
इस तरह जा कि तुझे लौट के आना न पड़े

हिज्र ऐसा हो कि चेहरे पे नज़र आ जाए
ज़ख़्म ऐसा हो कि दिख जाए दिखाना न पड़े


2- बिछड़ गए तो ये दिल 'उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं

नहीं लगेगा उसे देख कर मगर ख़ुश है
मैं ख़ुश नहीं हूँ मगर देख कर लगेगा नहीं

हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना
हमें पता है तिरा दिल उधर लगेगा नहीं

जुनूँ का हज्म ज़ियादा तुम्हारा ज़र्फ़ है कम
ज़रा सा गमला है इस में शजर लगेगा नहीं

इक ऐसा ज़ख़्म-नुमा दिल क़रीब से गुज़रा
दिल उस को देख के चीख़ा ठहर लगेगा नहीं

जुनूँ से कुंद किया है सो उस के हुस्न का कील
मिरे सिवा किसी दीवार पर लगेगा नहीं

बहुत तवज्जोह त'अल्लुक़ बिगाड़ देती है
ज़ियादा डरने लगेंगे तो डर लगेगा नहीं


3- मैं बरश छोड़ चुका आख़िरी तस्वीर के बा'द
मुझ से कुछ बन नहीं पाया तिरी तस्वीर के बा'द

मुश्तरक दोस्त भी छूटे हैं तुझे छोड़ने पर
या'नी दीवार हटानी पड़ी तस्वीर के बा'द

यार तस्वीर में तन्हा हूँ मगर लोग मिले
कई तस्वीर से पहले कई तस्वीर के बा'द

दूसरा इश्क़ मयस्सर है मगर करता नहीं
कौन देखेगा पुरानी नई तस्वीर के बा'द

भेज देता हूँ मगर पहले बता दूँ तुझ को
मुझ से मिलता नहीं कोई मिरी तस्वीर के बा'द

ख़ुश्क दीवार में सीलन का सबब क्या होगा
एक अदद ज़ंग लगी कील थी तस्वीर के बा'द


4- हर इक हज़ार में बस पाँच सात हैं हम लोग
निसाब-ए-इश्क़ पे वाजिब ज़कात हैं हम लोग

दबाओ में भी जमाअत कभी नहीं बदली
शुरूअ' दिन से मोहब्बत के साथ हैं हम लोग

जो सीखनी हो ज़बान-ए-सुकूत बिस्मिल्लाह
ख़मोशियों की मुकम्मल लुग़ात हैं हम लोग

कहानियों के वो किरदार जो लिखे न गए
ख़बर से हज़्फ़-शुदा वाक़िआ'त हैं हम लोग

ये इंतिज़ार हमें देख कर बनाया गया
ज़ुहूर-ए-हिज्र से पहले की बात हैं हम लोग

किसी को रास्ता दे दें किसी को पानी न दें
कहीं पे नील कहीं पर फ़ुरात हैं हम लोग

हमें जला के कोई शब गुज़ार सकता है
सड़क पे बिखरे हुए काग़ज़ात हैं हम लोग


5- तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो
सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो

तमाम दिन इस दुआ में कटता है कुछ दिनों से
मैं जाऊँ कमरे में तो उदासी निकल गई हो

किसी के आने पे ऐसे हलचल हुई है मुझ में
ख़मोश जंगल में जैसे बंदूक़ चल गई हो

ये न हो गर मैं हिलूँ तो गिरने लगे बुरादा
दुखों की दीमक बदन की लकड़ी निगल गई हो

ये छोटे छोटे कई हवादिस जो हो रहे हैं
किसी के सर से बड़ी मुसीबत न टल गई हो

हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है
प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई हो

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All Time Most Famous Ghazals Of Parveen Sakir..

1- Kuchh to hawa bhi sard thi, kuchh tha tera khayal bhi
Dil ko khushi ke saath-saath hota raha malaal bhi

Baat woh aadhi raat ki, raat woh poore chaand ki
Chaand bhi ain chait ka, us pe tera jamaal bhi

Sab se nazar bacha ke woh mujh ko kuchh aise dekhta
Ek dafa to ruk gayi gardish-e-maah-o-saal bhi

Dil to chamak sakega kya, phir bhi tarash ke dekh lein
Sheesha-giraan-e-shahar ke haath ka yeh kamaal bhi

Usko na paa sake the jab, dil ka ajeeb haal tha
Ab jo palat ke dekhiye, baat thi kuchh muhaal bhi

Meri talab tha ek shaks, woh jo nahi mila to phir
Haath dua se yun gira, bhool gaya sawaal bhi

Uski sukhan-taraaziyan mere liye bhi dhaal thin
Uski hansi mein chhup gaya apne ghamon ka haal bhi

Gaah qareeb-e-shah-rag, gaah ba'eed-e-wahm-o-khwaab
Uski rafaqaton mein raat hijr bhi tha visaal bhi

Uske hi baazuon mein aur usko hi sochte rahe
Jism ki khwahishon pe the rooh ke aur jaal bhi

Shaam ki na-samajh hawa poochh rahi hai ek pata
Mauj-e-hawa-e-koo-e-yaar, kuchh to mera khayal bhi


2- Koo-ba-koo phail gayi baat shanasaai ki
Usne khushboo ki tarah meri pazeerai ki

Kaise kah doon ke mujhe chhod diya hai usne
Baat to sach hai magar baat hai ruswai ki

Woh kahin bhi gaya, lauta to mere paas aaya
Bas yahi baat hai achhi mere harjaai ki

Tera pehlu, tere dil ki tarah aabaad rahe
Tujh pe guzre na qayamat shab-e-tanhai ki

Usne jalti hui peshani pe jab haath rakha
Rooh tak aa gayi taseer-e-masihai ki

Ab bhi barsaat ki raaton mein badan tootta hai
Jaag uthti hain ajab khwahishen angdaai ki


3- Woh to khushboo hai hawaon mein bikhar jaayega
Mas'ala phool ka hai, phool kidhar jaayega

Hum to samjhe the ke ek zakhm hai bhar jaayega
Kya khabar thi ke rag-e-jaan mein utar jaayega

Woh hawaon ki tarah khaana-ba-jaan phirta hai
Ek jhonka hai jo aayega, guzar jaayega

Woh jab aayega to phir uski rifaqat ke liye
Mausam-e-gul mere aangan mein thahar jaayega

Aakhirash woh bhi kahin ret pe baithi hogi
Tera yeh pyaar bhi dariya hai, utar jaayega

Mujh ko tehzeeb ke barzakh ka banaya waaris
Jur'm yeh bhi mere ajdaad ke sar jaayega


4- Chalne ka hausla nahi, rukna muhaal kar diya
Ishq ke is safar ne to mujh ko nidhaal kar diya

Ae meri gul-zameen, tujhe chaah thi ek kitaab ki
Ahl-e-kitaab ne magar kya tera haal kar diya

Milte hue dilon ke beech aur tha faisla koi
Usne magar bichhadte waqt aur sawaal kar diya

Ab ke hawa ke saath hai daaman-e-yaar muntazir
Banu-e-shab ke haath mein rakhna sambhaal kar diya

Mumkina faislon mein ek hijr ka faisla bhi tha
Humne to ek baat ki, usne kamaal kar diya

Mere labon pe mohar thi, par mere sheesha-roo ne to
Shahar ke shahar ko mera waaqif-e-haal kar diya

Chehra o naam ek saath, aaj na yaad aa sake
Waqt ne kis shabeeh ko khwaab o khayal kar diya

Muddaton ba'ad usne aaj mujh se koi gila kiya
Mansab-e-dilbari pe kya mujh ko bahaal kar diya


5- Kamaal-e-zabt ko khud bhi to aazmaungi
Main apne haath se uski dulhan sajaungi

Supurd kar ke use chaandni ke haathon mein
Main apne ghar ke andheron ko laut aaungi

Badan ke karb ko woh bhi samajh na paayega
Main dil mein roungi, aankhon mein muskaraungi

Woh kya gaya ke rifaqat ke saare lutf gaye
Main kis se rooth sakungi, kise manaungi

Ab uska fun to kisi aur se hua mansoob
Main kis ki nazm akele mein gungunaungi

Woh ek rishta-e-benam bhi nahi lekin
Main ab bhi uske ishaaron pe sar jhukaungi

Bichha diya tha gulaabon ke saath apna wujood
Woh so ke uthe to khwaabon ki raakh uthaungi

Sama'aton mein ghane jangalon ki saansein hain
Main ab kabhi teri awaaz sun na paungi

Jawaz dhoondh raha tha nai mohabbat ka
Woh keh raha tha ke main usko bhool jaungi
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1- कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी

बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी

सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखता
एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी

दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लें
शीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी

उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था
अब जो पलट के देखिए बात थी कुछ मुहाल भी

मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर
हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी

उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं
उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी

गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी

उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी

शाम की ना-समझ हवा पूछ रही है इक पता
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी


2- कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की

तेरा पहलू तिरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की

उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की

अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की


3- वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा

वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है
एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा

वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए
मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा

आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा

मुझ को तहज़ीब के बर्ज़ख़ का बनाया वारिस
जुर्म ये भी मिरे अज्दाद के सर जाएगा


4- चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया

ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की
अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया

अब के हवा के साथ है दामन-ए-यार मुंतज़िर
बानू-ए-शब के हाथ में रखना सँभाल कर दिया

मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया

चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया

मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया


5- कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी

सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी

बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा
मैं दिल में रोऊँगी आँखों में मुस्कुराऊँगी

वो क्या गया कि रिफ़ाक़त के सारे लुत्फ़ गए
मैं किस से रूठ सकूँगी किसे मनाऊँगी

अब उस का फ़न तो किसी और से हुआ मंसूब
मैं किस की नज़्म अकेले में गुनगुनाऊँगी

वो एक रिश्ता-ए-बेनाम भी नहीं लेकिन
मैं अब भी उस के इशारों पे सर झुकाऊँगी

बिछा दिया था गुलाबों के साथ अपना वजूद
वो सो के उट्ठे तो ख़्वाबों की राख उठाऊँगी

समाअ'तों में घने जंगलों की साँसें हैं
मैं अब कभी तिरी आवाज़ सुन न पाऊँगी

जवाज़ ढूँड रहा था नई मोहब्बत का
वो कह रहा था कि मैं उस को भूल जाऊँगी

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All Time Most Famous Ghazals Of Sahir lukhianvi..

1- Yeh zulf agar khul ke bikhar jaye to achha
Is raat ki taqdeer sanwar jaye to achha

Jis tarah se thodi si tire saath kati hai
Baaki bhi usi tarah guzar jaye to achha

Duniya ki nigahon mein bhala kya hai bura kya
Yeh bojh agar dil se utar jaye to achha

Waise to tumhi ne mujhe barbaad kiya hai
Ilzaam kisi aur ke sar jaye to achha


2- Chehre pe khushi chha jaati hai, aankhon mein suroor aa jaata hai
Jab tum mujhe apna kehte ho, apne pe ghuroor aa jaata hai

Tum husn ki khud ek duniya ho, shayad yeh tumhe maaloom nahi
Mahfil mein tumhare aane se har cheez pe noor aa jaata hai

Hum paas se tumko kya dekhein, tum jab bhi muqabil hote ho
Betaab nigahon ke aage parda sa zaroor aa jaata hai

Jab tum se mohabbat ki hum ne, tab ja ke kahin yeh raaz khula
Marne ka saleeqa aate hi jeene ka shuoor aa jaata hai


3- Har tarah ke jazbaat ka elaan hain aankhen
Shabnam kabhi shola, kabhi toofan hain aankhen

Aankhon se badi koi tarazoo nahi hoti
Tulta hai bashar jis mein, woh meezan hain aankhen

Aankhen hi milaati hain zamaane mein dilon ko
Anjaan hain hum tum agar anjaan hain aankhen

Lab kuch bhi kahe, is se haqeeqat nahi khulti
Insaan ke sach jhooth ki pehchaan hain aankhen

Aankhen na jhukiin teri kisi gair ke aage
Duniya mein badi cheez meri jaan! hain aankhen


4- Tum apna ranj-o-gham, apni pareshani mujhe de do
Tumhe gham ki qasam, is dil ki veerani mujhe de do

Yeh maana main kisi qabil nahi hoon in nigahon mein
Bura kya hai agar yeh dukh, yeh hairani mujhe de do

Main dekhoon to sahi duniya tumhe kaise satati hai
Koi din ke liye apni nigahbani mujhe de do

Woh dil jo maine maanga tha magar gairon ne paaya hai
Badi shay hai agar uski pashemani mujhe de do


5- Kabhi khud pe, kabhi haalaat pe rona aaya
Baat nikli to har ek baat pe rona aaya

Hum to samjhe the ki hum bhool gaye hain unko
Kya hua aaj yeh kis baat pe rona aaya

Kis liye jeete hain hum, kis ke liye jeete hain
Baarha aise sawaalaat pe rona aaya

Kaun rota hai kisi aur ki khaatir ai dost
Sab ko apni hi kisi baat pe rona aaya
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1- ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा
इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा

जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है
बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा

दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या
ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा

वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया है
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा


2- चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे ग़ुरूर आ जाता है

तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है

हम पास से तुम को क्या देखें तुम जब भी मुक़ाबिल होते हो
बेताब निगाहों के आगे पर्दा सा ज़रूर आ जाता है

जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊ'र आ जाता है


3- हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें
शबनम कभी शो'ला कभी तूफ़ान हैं आँखें

आँखों से बड़ी कोई तराज़ू नहीं होती
तुलता है बशर जिस में वो मीज़ान हैं आँखें

आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को
अंजान हैं हम तुम अगर अंजान हैं आँखें

लब कुछ भी कहें इस से हक़ीक़त नहीं खुलती
इंसान के सच झूट की पहचान हैं आँखें

आँखें न झुकीं तेरी किसी ग़ैर के आगे
दुनिया में बड़ी चीज़ मिरी जान! हैं आँखें


4- तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो


5- कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया




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All Time Most Famous Ghazals Of Faiz ahmed faiz..

1- Nasib aazmane ke din aa rahe hain
Qareeb un ke aane ke din aa rahe hain

Jo dil se kaha hai, jo dil se suna hai
Sab unko sunane ke din aa rahe hain

Abhi se dil o jaan sar-e-raah rakh do
Ki lutne lutane ke din aa rahe hain

Tapakne lagi un nigahon se masti
Nigahen churane ke din aa rahe hain

Saba phir humein poochhti phir rahi hai
Chaman ko sajane ke din aa rahe hain

Chalo 'Faiz' phir se kahin dil lagayein
Suna hai thikane ke din aa rahe hain


2- Yeh dhoop kinara shaam dhale
Milte hain dono waqt jahan

Jo raat na din, jo aaj na kal
Pal bhar ko amar, pal bhar mein dhuan

Is dhoop kinare pal-do-pal
Honthon ki lapak

Baahon ki chanak
Yeh mel hamara jhooth na sach

Kyun raar karo, kyun dosh dharo
Kis kaaran jhoothi baat karo

Jab teri samundar aankhon mein
Is shaam ka suraj doobega

Sukh soyenge ghar dar waale
Aur rahi apni raah lega


3- Gulon mein rang bhare, baad-e-nau-bahaar chale
Chale bhi aao ki gulshan ka karobaar chale

Qafas udaas hai yaaro, saba se kuchh to kaho
Kahin to bahr-e-khuda aaj zikr-e-yaar chale

Kabhi to subah tire kunj-e-lab se ho aaghaz
Kabhi to shab sar-e-kaakul se mushk-baar chale

Bada hai dard ka rishta yeh dil gareeb sahi
Tumhare naam pe aayenge gham-gusaar chale

Jo hum pe guzri so guzri, magar shab-e-hijraan
Hamare ashq tire aqibat sanwaar chale

Huzoor-e-yaar hui daftar-e-junoon ki talab
Girah mein le ke gareban ka taar-taar chale

Maqaam 'Faiz' koi raah mein jacha hi nahi
Jo koo-e-yaar se nikle to soo-e-daar chale


4- Sab qatl ho ke tere muqabil se aaye hain
Hum log surkh-rooh hain ki manzil se aaye hain

Sham-e-nazar, khayal ke anjum, jigar ke daagh
Jitne charaag hain, teri mehfil se aaye hain

Uth kar to aa gaye hain teri bazm se magar
Kuchh dil hi jaanta hai ki kis dil se aaye hain

Har ek qadam ajal tha, har ek gaam zindagi
Hum ghoom phir ke koocha-e-qaatil se aaye hain

Baad-e-khizan ka shukr karo 'Faiz' jis ke haath
Naam-e-kisi bahaar-e-shimail se aaye hain


5- Dasht-e-tanhai mein ai jaan-e-jahaan larzan hain
Teri awaaz ke saaye, tere honton ke saraab

Dasht-e-tanhai mein doori ke khas-o-khaak tale
Khil rahe hain tire pehlu ke saman aur gulaab

Uth rahi hai kahin qurbat se teri saans ki aanch
Apni khushboo mein sulagti hui madhyam madhyam

Door ufuq paar chamakti hui qatra qatra
Gir rahi hai teri dildaar nazar ki shabnam

Is qadar pyar se ai jaan-e-jahaan rakha hai
Dil ke rukhsar pe is waqt teri yaad ne haath

Yun guman hota hai garche hai abhi subah-e-firaaq
Dhal gaya hijr ka din, aa bhi gayi wasl ki raat
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1- नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं

जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं

अभी से दिल ओ जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं

टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं

सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं

चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगाएँ
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं


2- ये धूप किनारा शाम ढले
मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ

जो रात न दिन जो आज न कल
पल-भर को अमर पल भर में धुआँ

इस धूप किनारे पल-दो-पल
होंटों की लपक

बाँहों की छनक
ये मेल हमारा झूट न सच

क्यूँ रार करो क्यूँ दोश धरो
किस कारन झूटी बात करो

जब तेरी समुंदर आँखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा

सुख सोएँगे घर दर वाले
और राही अपनी रह लेगा


3- गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब
गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले

मक़ाम 'फ़ैज़' कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले


4- सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं

शम-ए-नज़र ख़याल के अंजुम जिगर के दाग़
जितने चराग़ हैं तिरी महफ़िल से आए हैं

उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं

हर इक क़दम अजल था हर इक गाम ज़िंदगी
हम घूम फिर के कूचा-ए-क़ातिल से आए हैं

बाद-ए-ख़िज़ाँ का शुक्र करो 'फ़ैज़' जिस के हाथ
नामे किसी बहार-ए-शिमाइल से आए हैं


5- दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब

दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब

उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम

दूर उफ़ुक़ पार चमकती हुई क़तरा क़तरा
गिर रही है तिरी दिलदार नज़र की शबनम

इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात

यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात

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All time most famous ghazals of ahmed faraz..

1- Ab ke hum bichhde to shayad kabhi khwabon mein milen
Jis tarah sukhe hue phool kitaabon mein milen

Dhoondh ujhde hue logon mein wafa ke moti
Yeh khazane tujhe mumkin hai kharaabon mein milen

Gham-e-duniya bhi gham-e-yaar mein shamil kar lo
Nasha badhta hai sharabein jo sharabon mein milen

Tu khuda hai na mera ishq farishton jaisa
Dono insaan hain to kyun itne hijabon mein milen

Aaj hum daar pe kheenche gaye jin baaton par
Kya ajab kal woh zamane ko nisaabon mein milen

Ab na woh main, na woh tu hai, na woh maazi hai 'Faraz'
Jaise do saaye tamanna ke saraabon mein milen


2- Aisa hai ki sab khwab musalsal nahin hote
Jo aaj to hote hain magar kal nahin hote

Andar ki fazaon ke karishme bhi ajab hain
Meh toot ke barse bhi to baadal nahin hote

Kuch mushkilein aisi hain ki aasaan nahin hoti
Kuch aise muamme hain kabhi hal nahin hote

Shaistegi-e-gham ke sabab aankhon ke sehra
Namak to ho jaate hain jal-thal nahin hote

Kaise hi talatum hon magar qulzum-e-jaan mein
Kuch yaad-jazire hain ki ojhal nahin hote

Ushshaaq ke maanind kai ahl-e-hawas bhi
Paagal to nazar aate hain paagal nahin hote

Sab khwahishein poori hon 'Faraz', aisa nahin hai
Jaise kai ash’aar mukammal nahin hote


3- Chal nikalti hain gham-e-yaar se baatein kya kya
Humne bhi keen dar-o-deewar se baatein kya kya

Baat ban aayi hai phir se ki mere baare mein
Usne poochhi mere ghamkhaar se baatein kya kya

Log lab-basta agar hon to nikal aati hain
Chup ke pareaaya-e-izhaar se baatein kya kya

Kisi saudai ka qissa, kisi harjai ki baat
Log le aate hain bazaar se baatein kya kya

Humne bhi dast-shanaasi ke bahaane ki hain
Haath mein haath liye pyaar se baatein kya kya

Kis ko bikna tha magar khush hain ki is heele se
Ho gayin apne kharidaar se baatein kya kya

Hum hain khaamosh ki majboor-e-mohabbat the 'Faraz'
Warna mansub hain sarkaar se baatein kya kya


4- Is se pehle ki bewafa ho jaayein
Kyoon na ae dost hum juda ho jaayein

Tu bhi heere se ban gaya patthar
Hum bhi kal jaane kya se kya ho jaayein

Tu ki yakta tha be-shumaar hua
Hum bhi tootein to ja-ba-ja ho jaayein

Hum bhi majbooriyon ka uzr karein
Phir kahin aur mubtala ho jaayein

Hum agar manzilen na ban paaye
Manzilon tak ka rasta ho jaayein

Der se soch mein hain parwane
Raakh ho jaayein ya hawa ho jaayein

Ishq bhi khel hai naseebon ka
Khaak ho jaayein keemiya ho jaayein

Ab ke gar tu mile to hum tujh se
Aise liptein, teri qaba ho jaayein

Bandagi humne chhod di hai 'Faraz'
Kya karein log jab khuda ho jaayein


5- Karoon na yaad magar kis tarah bhulaoon use
Ghazal bahaana karoon aur gungunaoon use

Woh khaar khaar hai shaakh-e-gulaab ki maanind
Main zakhm zakhm hoon phir bhi gale lagaoon use

Yeh log tazkire karte hain apne logon ke
Main kaise baat karoon ab kahaan se laoon use

Magar woh zood-faraamosh zood-ranj bhi hai
Ki rooth jaaye agar yaad kuch dilaoon use

Wahi jo daulat-e-dil hai, wahi jo raahat-e-jaan
Tumhari baat pe ae naaseho gawaaoon use

Jo humsafar sar-e-manzil bichhad raha hai 'Faraz'
Ajab nahin hai agar yaad bhi na aaon use
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1- अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें

आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों प
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिले

अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो साए तमन्ना के सराबों में मिलें


2- ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते

अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं
मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते

कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं
कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते

शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब आँखों के सहरा
नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते

कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में
कुछ याद-जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते

उश्शाक़ के मानिंद कई अहल-ए-हवस भी
पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते

सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते

3- चल निकलती हैं ग़म-ए-यार से बातें क्या क्या
चल निकलती हैं ग़म-ए-यार से बातें क्या क्या
हम ने भी कीं दर-ओ-दीवार से बातें क्या क्या

बात बन आई है फिर से कि मेरे बारे में
उस ने पूछीं मेरे ग़म-ख़्वार से बातें क्या क्या

लोग लब-बस्ता अगर हों तो निकल आती हैं
चुप के पैराया-ए-इज़हार से बातें क्या क्या

किसी सौदाई का क़िस्सा किसी हरजाई की बात
लोग ले आते हैं बाज़ार से बातें क्या क्या

हम ने भी दस्त-शनासी के बहाने की हैं
हाथ में हाथ लिए प्यार से बातें क्या क्या

किस को बिकना था मगर ख़ुश हैं कि इस हीले से
हो गईं अपने ख़रीदार से बातें क्या क्या

हम हैं ख़ामोश कि मजबूर-ए-मोहब्बत थे 'फ़राज़'
वर्ना मंसूब हैं सरकार से बातें क्या क्या

4- इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

तू कि यकता था बे-शुमार हुआ
हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ

हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ

हम अगर मंज़िलें न बन पाए
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ

देर से सोच में हैं परवाने
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ

इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ

अब के गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

5- करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे

वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे

ये लोग तज़्किरे करते हैं अपने लोगों के
मैं कैसे बात करूँ अब कहाँ से लाऊँ उसे

मगर वो ज़ूद-फ़रामोश ज़ूद-रंज भी है
कि रूठ जाए अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे

वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ
तुम्हारी बात पे ऐ नासेहो गँवाऊँ उसे

जो हम-सफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है 'फ़राज़'
अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे
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All time most famous ghazals of Tehzeeb haafi..

1- parai aag pe roti nahin banaunga
main bhiig jaunga chhatri nahin banaunga

agar ḳhuda ne banane ka ikhtiyar diya
alam banaunga barchhi nahin banaunga

fareb de ke tirā jism jiit luuñ lekin
main ped kaat ke kashti nahin banaunga

gali se koi bhi guzre to chaunk uthta huun
nae makan men khidki nahin banaunga

main dushmanon se agar jang jiit bhi jaun
to un ki aurten qaidi nahin banaunga

tumhen pata to chale be-zaban chiiz ka dukh
main ab charagh ki lau hi nahin banaunga

main ek film banaunga apne 'sarvat' par
aur is men rail ki patri nahin banaunga


2- ye ek baat samajhne men raat ho gai hai
main us se jiit gaya huun ki maat ho gai hai

main ab ke saal parindon ka din manaunga
miri qarib ke jangal se baat ho gai hai

bichhad ke tujh se na khush rah sakunga socha tha
tirī judai hi vaj h-e-nashat ho gai hai

badan men ek taraf din tulua main ne kiya
badan ke dusre hisse men raat ho gai hai

main jangalon ki taraf chal pada huun chhod ke ghar
ye kya ki ghar ki udasi bhi saath ho gai hai

rahega yaad madine se vapsi ka safar
main nazm likhne laga tha ki naat ho gai hai


3- bata ai abr musavat kyuun nahin karta
hamare gaanv men barsat kyuun nahin karta

mahaz-e-ishq se kab kaun bach ke nikla hai
tu bach gaya hai to khairat kyuun nahin karta

vo jis ki chhanv men pachchis saal guzre hain
vo ped mujh se koi baat kyuun nahin karta

main jis ke saath kai din guzar aaya huun
vo mere saath basar raat kyuun nahin karta

mujhe tu jaan se badh kar aziiz ho gaya hai
to mere saath koi haath kyuun nahin karta


4- bichhad kar us ka dil lag bhi gaya to kya lagega
vo thak jaega aur mere gale se aa lagega

main mushkil men tumhare kaam aauun ya na aauun
mujhe avaz de lena tumhen achchha lagega

main jis koshish se us ko bhuul jaane men laga huun
ziyada bhi agar lag jaae to hafta lagega

mire hāthon se lag kar phuul mitti ho rahe hain
miri ankhon se dariya dekhna sahra lagega

mira dushman suna hai kal se bhuka lad raha hai
ye pahla tiir us ko nashte men ja lagega

ka.ī din us ke bhi sahraon men guzre hain 'hāfī'
so is nisbat se aina hamara kya lagega


5- tera chup rahna mire zehn men kya baith gaya
itni avazen tujhe diin ki gala baith gaya

yuun nahin hai ki faqat main hi use chahta huun
jo bhi us ped ki chhanv men gaya baith gaya

itna mitha tha vo ghusse bhara lahja mat puchh
us ne jis jis ko bhi jaane ka kaha baith gaya

apna ladna bhi mohabbat hai tumhen ilm nahin
chiḳhti tum rahi aur mera gala baith gaya

us ki marzi vo jise paas bitha le apne
is pe kya ladna fulan meri jagah baith gaya

baat dariyaon ki suraj ki na teri hai yahan
do qadam jo bhi mire saath chala baith gaya

bazm-e-janan men nashisten nahin hotin maḳkhsus
jo bhi ik baar jahan baith gaya baith gaya
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1- पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊंगा
मैं भीग जाऊंगा, छतरी नहीं बनाऊंगा।

अगर खुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया
आलम बनाऊंगा, बरछी नहीं बनाऊंगा।

फ़रेब देकर तेरा जिस्म जीत लूं लेकिन
मैं पेड़ काटकर कश्ती नहीं बनाऊंगा।

गली से कोई भी गुज़रे तो चौक उठता हूं
नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊंगा।

मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊं
तो उनकी औरतें क़ैदी नहीं बनाऊंगा।

तुम्हें पता तो चले बेज़ुबान चीज़ का दुख
मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊंगा।

मैं एक फ़िल्म बनाऊंगा अपने 'सरवत' पर
और इसमें रेल की पटरी नहीं बनाऊंगा।


2- ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उससे जीत गया हूं कि मात हो गई है।

मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊंगा
मेरे क़रीब के जंगल से बात हो गई है।

बिछड़ के तुझसे न खुश रह सकूंगा सोचा था
तेरी जुदाई ही वजह-ए-नशात हो गई है।

बदन में एक तरफ़ दिन तुलूआ मैंने किया
बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है।

मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूं छोड़ के घर
ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है।

रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र
मैं नज़्म लिखने लगा था कि नात हो गई है।


3- बता ऐ अब्र मुसावत क्यों नहीं करता
हमारे गांव में बरसात क्यों नहीं करता।

महज़-ए-इश्क से कब कौन बच के निकला है
तू बच गया है तो ख़ैरात क्यों नहीं करता।

वो जिसकी छांव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझसे कोई बात क्यों नहीं करता।

मैं जिसके साथ कई दिन गुज़र आया हूं
वो मेरे साथ बसर रात क्यों नहीं करता।

मुझे तू जान से बढ़कर अज़ीज़ हो गया है
तो मेरे साथ कोई हाथ क्यों नहीं करता।


4- बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जाएगा और मेरे गले से आ लगेगा।

मैं मुश्किल में तुम्हारे काम आऊं या न आऊं
मुझे आवाज़ दे लेना तुम्हें अच्छा लगेगा।

मैं जिस कोशिश से उसको भूल जाने में लगा हूं
ज़्यादा भी अगर लग जाए तो हफ़्ता लगेगा।

मेरे हाथों से लगकर फूल मिट्टी हो रहे हैं
मेरी आँखों से दरिया देखना सहरा लगेगा।

मेरा दुश्मन सुना है कल से भूखा लड़ रहा है
ये पहला तीर उसको नाश्ते में जा लगेगा।

कई दिन उसके भी सहराओं में गुज़रे हैं 'हाफी'
सो इस निस्बत से आईना हमारा क्या लगेगा।


5- तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया।

यूं नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूं
जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया।

इतना मीठा था वो गुस्से भरा लहजा मत पूछ
उसने जिस-जिस को भी जाने का कहा बैठ गया।

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया।

उसकी मर्ज़ी, वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना, फलां मेरी जगह बैठ गया।

बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहां
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया।

बज़्म-ए-जानां में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी एक बार जहां बैठ गया, बैठ गया।

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Top 20 most famous Shayari of Tehzeeb Hafi..

1- ye filmo'n mein hi sabko pyaar mil jaata hai aakhir mein
magar sachmuch mein is duniya mein aisa kuchh nahin hota
chalo maana ki mera dil mere mehboob ka ghar hai
par uske peechhe uske ghar mein kya-kya kuchh nahin hota

2- gale to lagana hai us se kaho abhi lag jaaye
yahi na ho mera us ke baghair jee lag jaaye
main aa raha hoon tere paas ye na ho ki kahi
tera mazaak ho aur meri zindagi lag jaaye

3- bharam rakha hai tere hijr ka varna kya hota hai
main rone pe aa jaaun to jharna kya hota hai
mera chhodo main nain thakta mera kaam yahi hai
lekin tumne itne pyaar ka karna kya hota hai

4- ab us jaanib se is kasrat se tohfe aa rahe hain
ki ghar mein ham nayi almaariyaan banwa rahe hain

5- tapte seharaaon mein sab ke sar pe aanchal ho gaya
usne zulfen khol deen aur mas'ala hal ho gaya

6- mujhe azaad kar do ek din sab sach bata kar
tumhaare aur uske darmiyaan kya chal raha hai

7- kya galat-fahmi mein rah jaane ka sadma kuchh nahin
vo mujhe samjha to saka tha ki aisa kuchh nahin
ishq se bach kar bhi banda kuchh nahin hota magar
ye bhi sach hai ishq mein bande ka bachta kuchh nahin

8- mere naam se kya matlab hai tumhein mit jaayega ya rah jaata hai
jab tum ne hi saath nahin rahna phir peeche kya rah jaata hai
mere paas aane tak aur kisi ki yaad use kha jaati hai
vo mujh tak kam hi pahunchta hai kisi aur jagah rah jaata hai

9- us ladki se bas ab itna rishta hai
mil jaaye to baat wagaira karti hai
baarish mere rab ki aisi nemat hai
rone mein aasaani paida karti hai

10- main us se ye to nahin kah raha juda na kare
magar vo kar nahin saka to phir kaha na kare
vo jaise chhod gaya tha mujhe use bhi kabhi
khuda kare ki koi chhod de khuda na kare

11- ab in jale hue jismoon pe khud hi saaya karo
tumhein kaha tha bata kar qareeb aaya karo
main uske baad mahinon udaas rehta hoon
mazaak mein bhi mujhe haath mat lagaaya karo

12- zehan se yaadon ke lashkar ja chuke
vo meri mehfil se uth kar ja chuke
mera dil bhi jaise pakistan hai
sab hukoomat karke baahar ja chuke

13-  batlaata magar sharm bahut aati hai
teri tasveer se jo kaam liya jaata hai

14- maine jo kuchh bhi socha hua hai main vo waqt aane pe kar jaaunga
tum mujhe zahar lagte ho aur main kisi din tumhein pee ke mar jaaunga

15- ye dukkh alag hai ki usse main door ho raha hoon
ye gham juda hai vo khud mujhe door kar raha hai
tere bichhurne par likh raha hoon main taza ghazlen
ye tera gham hai jo mujhko mashhoor kar raha hai

16- mere aansu nahi tham rahe ki vo mujhse juda ho gaya
aur tum kah rahe ho ki chhodo ab aisa bhi kya ho gaya
may-kadon mein meri lainein padhte firte hain log
maine jo kuchh bhi pee kar kaha falsafa ho gaya

17- ab zaroori to nahi hai ki vo sab kuchh kah de
dil me jo kuchh bhi ho aankhon se nazar aata hai
main usse sirf ye kehta hoon ki ghar jaana hai
aur vo maarnay marne pe utar aata hai

18- isiliye to sabse zyaada bhaati ho
kitne sacche dil se jhoothi qasmen khaati ho

19- jaise tumne waqt ko haath mein roka ho
sach to ye hai tum aankhon ka dhokha ho

20- kaun tumhaare paas se uth kar ghar jaata hai
tum jisko choo leti ho vo mar jaata hai
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1- ये फ़िल्मों में ही सबको प्यार मिल जाता है आख़िर में
मगर सचमुच में इस दुनिया में ऐसा कुछ नहीं होता
चलो माना कि मेरा दिल मेरे महबूब का घर है
पर उसके पीछे उसके घर में क्या-क्या कुछ नहीं होता

2- गले तो लगना है उस से कहो अभी लग जाए
यही न हो मेरा उस के बग़ैर जी लग जाए
मैं आ रहा हूँ तेरे पास ये न हो कि कहीं
तेरा मज़ाक़ हो और मेरी ज़िंदगी लग जाए

3- भरम रखा है तेरे हिज्र का वरना क्या होता है
मैं रोने पे आ जाऊँ तो झरना क्या होता है
मेरा छोड़ो मैं नइँ थकता मेरा काम यही है
लेकिन तुमने इतने प्यार का करना क्या होता है

4- अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफ़े आ रहे हैं
कि घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं

5- तपते सहराओं में सब के सर पे आँचल हो गया
उसने ज़ुल्फ़ें खोल दीं और मसअला हल हो गया

6- मुझे आज़ाद कर दो एक दिन सब सच बता कर
तुम्हारे और उसके दरमियाँ क्या चल रहा है

7- क्या ग़लत-फ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नहीं
वो मुझे समझा तो सकता था कि ऐसा कुछ नहीं
इश्क़ से बच कर भी बंदा कुछ नहीं होता मगर
ये भी सच है इश्क़ में बंदे का बचता कुछ नहीं

8- मेरे नाम से क्या मतलब है तुम्हें मिट जाएगा या रह जाता है
जब तुम ने ही साथ नहीं रहना फिर पीछे क्या रह जाता है
मेरे पास आने तक और किसी की याद उसे खा जाती है
वो मुझ तक कम ही पहुँचता है किसी और जगह रह जाता है

9- उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है
मिल जाए तो बात वगैरा करती है
बारिश मेरे रब की ऐसी नेमत है
रोने में आसानी पैदा करती है

10- मैं उस से ये तो नहीं कह रहा जुदा न करे
मगर वो कर नहीं सकता तो फिर कहा न करे
वो जैसे छोड़ गया था मुझे उसे भी कभी
ख़ुदा करे कि कोई छोड़ दे ख़ुदा न करे

11- अब इन जले हुए जिस्मों पे ख़ुद ही साया करो
तुम्हें कहा था बता कर क़रीब आया करो
मैं उसके बाद महिनों उदास रहता हूँ
मज़ाक में भी मुझे हाथ मत लगाया करो

12- ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके
वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके
मेरा दिल भी जैसे पाकिस्तान है
सब हुकूमत करके बाहर जा चुके

13- तुझको बतलाता मगर शर्म बहुत आती है
तेरी तस्वीर से जो काम लिया जाता है

14- मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है, मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा

15- ये दुक्ख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ
ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें
ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है

16- मेरे आँसू नही थम रहे कि वो मुझसे जुदा हो गया
और तुम कह रहे हो कि छोड़ो अब ऐसा भी क्या हो गया
मय-कदों में मेरी लाइनें पढ़ते फिरते हैं लोग
मैंने जो कुछ भी पी कर कहा फ़लसफ़ा हो गया

17- अब ज़रूरी तो नही है कि वो सब कुछ कह दे
दिल मे जो कुछ भी हो आँखों से नज़र आता है
मैं उससे सिर्फ ये कहता हूं कि घर जाना है
और वो मारने मरने पे उतर आता है

18- इसीलिए तो सबसे ज़्यादा भाती हो
कितने सच्चे दिल से झूठी क़समें खाती हो

19- जैसे तुमने वक़्त को हाथ में रोका हो
सच तो ये है तुम आँखों का धोख़ा हो

20- कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है
तुम जिसको छू लेती हो वो मर जाता है

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khwaabon ko aankhon se minha karti hai..

khwaabon ko aankhon se minha karti hai
neend hamesha mujhse dhokha karti hai

us ladki se bas ab itna rishta hai
mil jaaye to baat wagaira karti hai

aawaazon ka habs agar badh jaata hai
khaamoshi mujh mein darwaaza karti hai

baarish mere rab ki aisi niyamat hai
rone mein aasaani paida karti hai

sach poocho to haafi ye tanhaai bhi
jeene ka samaan muhayya karti hai 
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ख़्वाबों को आँखों से मिन्हा करती है
नींद हमेशा मुझसे धोखा करती है

उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है
मिल जाए तो बात वगैरा करती है

आवाजों का हब्स अगर बढ़ जाता है
ख़ामोशी मुझ में दरवाज़ा करती है

बारिश मेरे रब की ऐसी नियमत है
रोने में आसानी पैदा करती है

सच पूछो तो हाफ़ी ये तन्हाई भी
जीने का सामान मुहय्या करती है
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kitni raatein kaat chuka hoon par vo vasl ka din..

kitni raatein kaat chuka hoon par vo vasl ka din
is dariya se pehle kitne jungle aate hain

hamein to neend bhi aati hai to aadhi aati hai
vo kaise hain jinko khwaab mukammal aate hain

is raaste par ped bhi aate hain usne poocha
jal kar khushboo dene waale sandal aate hain

kaun hai jo is dil mein khaamoshi se utarega
dekho is awaaz pe kitne paagal aate hain

ik se bharr kar ek sawaari asp-o-feel bhi hai
jaane kyun ham teri zaanib paidal aate hain 
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कितनी रातें काट चुका हूँ पर वो वस्ल का दिन
इस दरिया से पहले कितने जंगल आते हैं

हमें तो नींद भी आती है तो आधी आती है
वो कैसे हैं जिनको ख़्वाब मुकम्मल आते हैं

इस रस्ते पर पेड़ भी आते हैं उसने पूछा
जल कर ख़ुशबू देने वाले संदल आते हैं

कौन है जो इस दिल में ख़ामोशी से उतरेगा
देखो इस आवाज़ पे कितने पागल आते हैं

इक से भड़ कर एक सवारी अस्प-औ-फील भी है
जाने क्यों हम तेरी ज़ानिब पैदल आते हैं
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aankh ki khidkiyaan khuli hongi..

aankh ki khidkiyaan khuli hongi
dil mein jab choriyaan hui hongi

ya kahi aaine gire honge
ya kahi ladkiyaan hasi hongi

ya kahi din nikal raha hoga
ya kahi bastiyaan jali hongi

ya kahi haath hathkadi mein qaid
ya kahi choodiyaan padi hongi

ya kahi khaamoshi ki taqreebaat
ya kahi ghantiyaan bajee hongi

laut aayenge shehar se bhaai
haath mein raakhiyaan bandhi hongi

un dinon koi mar gaya hoga
jin dinon shaadiyaan hui hongi
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आँख की खिड़कियाँ खुली होंगी
दिल में जब चोरीयाँ हुई होंगी

या कहीं आइने गिरे होंगे
या कहीं लड़कियाँ हँसी होंगी

या कहीं दिन निकल रहा होगा
या कहीं बस्तियाँ जली होंगी

या कहीं हाथ हथकड़ी में क़ैद
या कहीं चूड़ियाँ पड़ी होंगी

या कहीं ख़ामशी की तक़रीबात
या कहीं घंटियाँ बजी होंगी

लौट आयेंगे शहर से भाई
हाथ में राखियाँ बँधी होंगी

उन दिनों कोई मर गया होगा
जिन दिनों शादियाँ हुई होंगी
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tera chehra tere hont aur palkein dekhen..

tera chehra tere hont aur palkein dekhen
dil pe aankhen rakhe teri saansen dekhen

mere maalik aap to aisa kar sakte hain
saath chale ham aur duniya ki aankhen dekhen

saal hone ko aaya hai vo kab lautega
aao khet ki sair ko nikle kunjen dekhen

ham tere honthon ko larjish kab bhoolen hain
paani mein patthar fenken aur lahren dekhen 
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तेरा चेहरा तेरे होंठ और पलकें देखें
दिल पे आँखें रक्खे तेरी साँसें देखें

मेरे मालिक आप तो ऐसा कर सकते हैं
साथ चले हम और दुनिया की आँखें देखें

साल होने को आया है वो कब लौटेगा
आओ खेत की सैर को निकले कुंजें देखें

हम तेरे होंठों को लरजिश कब भूलें हैं
पानी में पत्थर फेंकें और लहरें देखें
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teri taraf mera khayal kya gaya..

teri taraf mera khayal kya gaya
ke phir main tujhko sochta chala gaya

ye shehar ban raha tha mere saamne
ye geet mere saamne likha gaya

ye vasl saari umr par muheet hai
ye hijr ek raat mein samaa gaya

mujhe kisi ki aas thi na pyaas thi
ye phool mujhko bhool kar diya gaya

bichhad ke saans khenchna muhaal tha
main zindagi se haath khenchta gaya

main ek roz dast kya gaya ke phir
vo baagh mere haath se chala gaya 
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तेरी तरफ़ मेरा ख़याल क्या गया
के फिर मैं तुझको सोचता चला गया

ये शहर बन रहा था मेरे सामने
ये गीत मेरे सामने लिखा गया

ये वस्ल सारी उम्र पर मुहीत है
ये हिज्र एक रात में समा गया

मुझे किसी की आस थी न प्यास थी
ये फूल मुझको भूल कर दिया गया

बिछड़ के साँस खेंचना मुहाल था
मैं ज़िंदगी से हाथ खेंचता गया

मैं एक रोज दस्त क्या गया के फिर
वो बाग़ मेरे हाथ से चला गया
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aaj jin jheelon ka bas kaaghaz mein naksha rah gaya..

aaj jin jheelon ka bas kaaghaz mein naksha rah gaya
ek muddat tak main un aankhon se bahta rah gaya

main use na-qaabil-e-bardasht samjha tha magar
vo mere dil mein raha aur achha khaasa rah gaya

vo jo aadhe the tujhe milkar muqammal ho gaye
jo muqammal tha vo tere gham mein aadha rah gaya 
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आज जिन झीलों का बस काग़ज़ में नक्शा रह गया
एक मुद्दत तक मैं उन आँखों से बहता रह गया

मैं उसे ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त समझा था मगर
वो मेरे दिल में रहा और अच्छा ख़ासा रह गया

वो जो आधे थे तुझे मिलकर मुक़म्मल हो गए
जो मुक़म्मल था वो तेरे ग़म में आधा रह गया
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nahin tha apna magar phir bhi apna apna laga..

nahin tha apna magar phir bhi apna apna laga
kisi se mil ke bahut der baad achha laga

tumhein laga tha main mar jaaunga tumhaare baghair
batao phir tumhein mera mazaak kaisa laga

tijoriyon pe nazar aur log rakhte hain
main aasmaan chura loonga jab bhi mauqa laga

dikhaati hai bhari almaariyaan bade dil se
bataati hai ki mohabbat mein kiska kitna laga 
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नहीं था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगा
किसी से मिल के बहुत देर बाद अच्छा लगा

तुम्हें लगा था मैं मर जाऊँगा तुम्हारे बग़ैर
बताओ फिर तुम्हें मेरा मज़ाक कैसा लगा

तिजोरियों पे नज़र और लोग रखते हैं
मैं आसमान चुरा लूँगा जब भी मौक़ा लगा

दिखाती है भरी अलमारियाँ बड़े दिल से
बताती है कि मोहब्बत में किसका कितना लगा
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ham tumhaare gham se baahar aa gaye..

ham tumhaare gham se baahar aa gaye
hijr se bachne ke mantr aa gaye

maine tumko andar aane ka kaha
tum to mere dil ke andar aa gaye

ek hi aurat ko duniya maan kar
itna ghooma hoon ki chakkar aa gaye

imtihaan-e-ishq mushkil tha magar
nakl kar ke achhe number aa gaye

tere kuchh aashiq to gangaram hain
aur jo baaki the nishtar aa gaye 
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हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए
हिज्र से बचने के मंतर आ गए

मैंने तुमको अंदर आने का कहा
तुम तो मेरे दिल के अंदर आ गए

एक ही औरत को दुनिया मान कर
इतना घूमा हूँ कि चक्कर आ गए

इम्तिहान-ए-इश्क़ मुश्किल था मगर
नक्ल कर के अच्छे नंबर आ गए

तेरे कुछ आशिक़ तो गंगाराम हैं
और जो बाक़ी थे निश्तर आ गए
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ye ishq vo hai jisne bahr-o-bar kharab kar diya..

ye ishq vo hai jisne bahr-o-bar kharab kar diya
hamein to usne jaise khaas kar kharab kar diya

main dil pe haath rakh ke tujhko shehar bhej doon magar
tujhe bhi un hawaon ne agar kharab kar diya

kisi ne naam likh ke aur kisi ne peeng daal ke
mohabbaton ki aad mein shajar kharab kar diya

tumhein hi dekhne mein mahav hai vo kaam chhodkar
tumhaari car ne to kaarigar kharab kar diya

main qafile ke saath hoon magar mujhe ye khauf hai
agar kisi ne mera hamsafar kharab kar diya

teri nazar ke maqde tamaam shab khule rahe
teri sharaab ne mera jigar kharab kar diya 
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ये इश्क़ वो है जिसने बहर-ओ-बर ख़राब कर दिया
हमें तो उसने जैसे ख़ास कर ख़राब कर दिया

मैं दिल पे हाथ रख के तुझको शहर भेज दूँ मगर
तुझे भी उन हवाओं ने अगर ख़राब कर दिया

किसी ने नाम लिख के और किसी ने पींग डाल के
मोहब्बतों की आड़ में शजर ख़राब कर दिया

तुम्हें ही देखने में महव है वो काम छोड़कर
तुम्हारी कार ने तो कारीगर ख़राब कर दिया

मैं क़ाफ़िले के साथ हूँ मगर मुझे ये खौफ़ है
अगर किसी ने मेरा हमसफ़र ख़राब कर दिया

तेरी नज़र के मैक़दे तमाम शब खुले रहे
तेरी शराब ने मेरा जिगर ख़राब कर दिया
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musalsal vaar karne par bhi zarra bhar nahin toota..

musalsal vaar karne par bhi zarra bhar nahin toota
main patthar ho gaya phir bhi tera khanjar nahin toota

mujhe barbaad karne tak hi uske aastaan toote
mera dil tootne ke baad uska ghar nahin toota

ham uska gham bhala qismat pe kaise taal sakte hain
hamaare haath mein toota hai vo girkar nahin toota

saroon par aasmaan aankhon se aaine nazar se dil
bahut kuchh toot saka tha bahut kuchh par nahin toota

tilism-e-yaar mein jab bhi kami aayi nami aayi
un aankhon mein jinhen lagta tha farmaish nahin toota

tere bheje hue teshon ki dhaarein tez thi haafi
magar insey ye koh-e-gham ziyaada tar nahin toota 
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मुसलसल वार करने पर भी ज़र्रा भर नहीं टूटा
मैं पत्थर हो गया फिर भी तेरा ख़ंजर नहीं टूटा

मुझे बर्बाद करने तक ही उसके आस्ताँ टूटे
मेरा दिल टूटने के बाद उसका घर नहीं टूटा

हम उसका ग़म भला क़िस्मत पे कैसे टाल सकते हैं
हमारे हाथ में टूटा है वो गिरकर नहीं टूटा

सरों पर आसमाँ आँखों से आईने नज़र से दिल
बहुत कुछ टूट सकता था बहुत कुछ पर नहीं टूटा

तिलिस्म-ए-यार में जब भी कमी आई नमी आई
उन आँखों में जिन्हें लगता था जादूगर नहीं टूटा

तेरे भेजे हुए तेशों की धारें तेज़ थी 'हाफ़ी'
मगर इनसे ये कोह-ए-ग़म ज़ियादा तर नहीं टूटा
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taraash kar mere baazu udaan chhod gaya..

taraash kar mere baazu udaan chhod gaya
hawa ke paas barhana kamaan chhod gaya

rafaqaton ka meri us ko dhyaan kitna tha
zameen le li magar aasmaan chhod gaya

ajeeb shakhs tha baarish ka rang dekh ke bhi
khule dariche pe ik phool-daana chhod gaya

jo baadlon se bhi mujh ko chhupaaye rakhta tha
badhi hai dhoop to be-saayebaan chhod gaya

nikal gaya kahi an-dekhe paaniyon ki taraf
zameen ke naam khula baadbaan chhod gaya

uqaab ko thi garz faakhta pakadne se
jo gir gai to yoonhi neem-jaan chhod gaya

na jaane kaun sa aaseb dil mein basta hai
ki jo bhi thehra vo aakhir makaan chhod gaya

aqab mein gahra samundar hai saamne jungle
kis intiha pe mera mehrbaan chhod gaya 
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तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया
हवा के पास बरहना कमान छोड़ गया

रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया

अजीब शख़्स था बारिश का रंग देख के भी
खुले दरीचे पे इक फूल-दान छोड़ गया

जो बादलों से भी मुझ को छुपाए रखता था
बढ़ी है धूप तो बे-साएबान छोड़ गया

निकल गया कहीं अन-देखे पानियों की तरफ़
ज़मीं के नाम खुला बादबान छोड़ गया

उक़ाब को थी ग़रज़ फ़ाख़्ता पकड़ने से
जो गिर गई तो यूँही नीम-जान छोड़ गया

न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है
कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया

अक़ब में गहरा समुंदर है सामने जंगल
किस इंतिहा पे मिरा मेहरबान छोड़ गया

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kya kare meri masihaai bhi karne waala..

kya kare meri masihaai bhi karne waala
zakham hi ye mujhe lagta nahin bharne waala

zindagi se kisi samjhaute ke baa-wasf ab tak
yaad aata hai koi maarnay marne waala

us ko bhi ham tire kooche mein guzaar aaye hain
zindagi mein vo jo lamha tha sanwarne waala

us ka andaaz-e-sukhan sab se juda tha shaayad
baat lagti hui lahja vo mukarne waala

shaam hone ko hai aur aankh mein ik khwaab nahin
koi is ghar mein nahin raushni karne waala

dastaras mein hain anaasir ke iraade kis ke
so bikhar ke hi raha koi bikharna waala

isee ummeed pe har shaam bujaaye hain charaagh
ek taara hai sar-e-baam ubharne waala 
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क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला

ज़िंदगी से किसी समझौते के बा-वस्फ़ अब तक
याद आता है कोई मारने मरने वाला

उस को भी हम तिरे कूचे में गुज़ार आए हैं
ज़िंदगी में वो जो लम्हा था सँवरने वाला

उस का अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा था शायद
बात लगती हुई लहजा वो मुकरने वाला

शाम होने को है और आँख में इक ख़्वाब नहीं
कोई इस घर में नहीं रौशनी करने वाला

दस्तरस में हैं अनासिर के इरादे किस के
सो बिखर के ही रहा कोई बिखरने वाला

इसी उम्मीद पे हर शाम बुझाए हैं चराग़
एक तारा है सर-ए-बाम उभरने वाला

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waqt-e-rukhsat aa gaya dil phir bhi ghabraaya nahin..

waqt-e-rukhsat aa gaya dil phir bhi ghabraaya nahin
us ko ham kya khoyenge jis ko kabhi paaya nahin

zindagi jitni bhi hai ab mustaqil sehra mein hai
aur is sehra mein tera door tak saaya nahin

meri qismat mein faqat dard-e-tah-e-saagar hi hai
awwal-e-shab jaam meri samt vo laaya nahin

teri aankhon ka bhi kuchh halka gulaabi rang tha
zehan ne mere bhi ab ke dil ko samjhaaya nahin

kaan bhi khaali hain mere aur dono haath bhi
ab ke fasl-e-gul ne mujh ko phool pahnaaya nahin 
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वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं
उस को हम क्या खोएँगे जिस को कभी पाया नहीं

ज़िंदगी जितनी भी है अब मुस्तक़िल सहरा में है
और इस सहरा में तेरा दूर तक साया नहीं

मेरी क़िस्मत में फ़क़त दुर्द-ए-तह-ए-साग़र ही है
अव्वल-ए-शब जाम मेरी सम्त वो लाया नहीं

तेरी आँखों का भी कुछ हल्का गुलाबी रंग था
ज़ेहन ने मेरे भी अब के दिल को समझाया नहीं

कान भी ख़ाली हैं मेरे और दोनों हाथ भी
अब के फ़स्ल-ए-गुल ने मुझ को फूल पहनाया नहीं
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charaagh-e-raah bujha kya ki rehnuma bhi gaya..

charaagh-e-raah bujha kya ki rehnuma bhi gaya
hawa ke saath musaafir ka naqsh-e-paa bhi gaya

main phool chuntee rahi aur mujhe khabar na hui
vo shakhs aa ke mere shehar se chala bhi gaya

bahut aziz sahi us ko meri dildaari
magar ye hai ki kabhi dil mera dukha bhi gaya

ab un dareechon pe gehre dabeez parde hain
vo taank-jhaank ka ma'soom silsila bhi gaya

sab aaye meri ayaadat ko vo bhi aaya tha
jo sab gaye to mera dard-aashna bhi gaya

ye gurbaten meri aankhon mein kaisi utri hain
ki khwaab bhi mere ruksat hain ratjaga bhi gaya 
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चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
हवा के साथ मुसाफ़िर का नक़्श-ए-पा भी गया

मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया

बहुत अज़ीज़ सही उस को मेरी दिलदारी
मगर ये है कि कभी दिल मिरा दुखा भी गया

अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
वो ताँक-झाँक का मा'सूम सिलसिला भी गया

सब आए मेरी अयादत को वो भी आया था
जो सब गए तो मिरा दर्द-आश्ना भी गया

ये ग़ुर्बतें मिरी आँखों में कैसी उतरी हैं
कि ख़्वाब भी मिरे रुख़्सत हैं रतजगा भी गया
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baja ki aankh mein neendon ke silsile bhi nahin..

baja ki aankh mein neendon ke silsile bhi nahin
shikast-e-khwaab ke ab mujh mein hausale bhi nahin

nahin nahin ye khabar dushmanon ne di hogi
vo aaye aa ke chale bhi gaye mile bhi nahin

ye kaun log andheron ki baat karte hain
abhi to chaand tiri yaad ke dhale bhi nahin

abhi se mere rafoogar ke haath thakne lage
abhi to chaak mere zakham ke sile bhi nahin

khafa agarche hamesha hue magar ab ke
vo barhmi hai ki ham se unhen gile bhi nahin 
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बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं
शिकस्त-ए-ख़्वाब के अब मुझ में हौसले भी नहीं

नहीं नहीं ये ख़बर दुश्मनों ने दी होगी
वो आए आ के चले भी गए मिले भी नहीं

ये कौन लोग अँधेरों की बात करते हैं
अभी तो चाँद तिरी याद के ढले भी नहीं

अभी से मेरे रफ़ूगर के हाथ थकने लगे
अभी तो चाक मिरे ज़ख़्म के सिले भी नहीं

ख़फ़ा अगरचे हमेशा हुए मगर अब के
वो बरहमी है कि हम से उन्हें गिले भी नहीं
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ek suraj tha ki taaron ke gharaane se utha..

ek suraj tha ki taaron ke gharaane se utha
aankh hairaan hai kya shakhs zamaane se utha

kis se poochoon tire aqaa ka pata ai rahvaar
ye alam vo hai na ab tak kisi shaane se utha

halka-e-khwab ko hi gird-e-guloo kas daala
dasht-e-qaatil ka bhi ehsaan na deewane se utha

phir koi aks shua'on se na banne paaya
kaisa mahtaab mere aaina-khaane se utha

kya likha tha sar-e-mahzar jise pahchaante hi
paas baitha hua har dost bahaane se utha 
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एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा

किस से पूछूँ तिरे आक़ा का पता ऐ रहवार
ये अलम वो है न अब तक किसी शाने से उठा

हल्क़ा-ए-ख़्वाब को ही गिर्द-ए-गुलू कस डाला
दस्त-ए-क़ातिल का भी एहसाँ न दिवाने से उठा

फिर कोई अक्स शुआ'ओं से न बनने पाया
कैसा महताब मिरे आइना-ख़ाने से उठा

क्या लिखा था सर-ए-महज़र जिसे पहचानते ही
पास बैठा हुआ हर दोस्त बहाने से उठा
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wahi parind ki kal goshaageer aisa tha..

wahi parind ki kal goshaageer aisa tha
palak jhapakte hawa mein lakeer aisa tha

use to dost ke haathon ki soojhboojh bhi thi
khata na hota kisi taur teer aisa tha

payaam dene ka mausam na hamnava paakar
palat gaya dabey paanv safeer aisa tha

kisi bhi shaakh ke peeche panaah leti main
mujhe vo tod hi leta shareer aisa tha

hasi ke rang bahut mehrbaan the lekin
udaasiyon se hi nibhti khameer aisa tha

tera kamaal ki paon mein bediyaan daalen
ghazal-e-shauq kahaan ka aseer aisa tha 
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वही परिंद कि कल गोशागीर ऐसा था
पलक झपकते हवा में लकीर, ऐसा था

उसे तो दोस्त के हाथों की सूझबूझ भी थी
ख़ता न होता किसी तौर, तीर ऐसा था

पयाम देने का मौसम, न हमनवा पाकर
पलट गया दबे पाँव, सफ़ीर ऐसा था

किसी भी शाख़ के पीछे पनाह लेती मैं
मुझे वो तोड़ ही लेता, शरीर ऐसा था

हँसी के रंग बहुत मेहरबान थे लेकिन
उदासियों से ही निभती, ख़मीर ऐसा था

तेरा कमाल कि पाओं में बेड़ियाँ डालें
ग़ज़ाल-ए-शौक़ कहाँ का असीर ऐसा था
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aankhon ke liye jashn ka paighaam to aaya..

aankhon ke liye jashn ka paighaam to aaya
taakheer se hi chaand lab-e-baam to aaya

us baagh mein ik phool khila mere liye bhi
khushboo kii kahaani mein mera naam to aaya

patjhad ka zamaana tha to ye bakht hamaara
sair-e-chaman-e-dil ko vo gulfaam to aaya

ud jaayega phir apni hawaon mein to kya gham
vo taa'ir-e-khush-rang tah-e-daam to aaya

har chand ki kam arsa-e-zebai mein thehra
har chehra-e-gul baagh ke kuchh kaam to aaya

shab se bhi guzar jaayenge gar teri raza ho
duraan-e-safar marhala-e-shaam to aaya 
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आँखों के लिए जश्न का पैग़ाम तो आया
ताख़ीर से ही चाँद लब-ए-बाम तो आया

उस बाग़ में इक फूल खिला मेरे लिए भी
ख़ुशबू की कहानी में मेरा नाम तो आया

पतझड़ का ज़माना था तो ये बख़्त हमारा
सैर-ए-चमन-ए-दिल को वो गुलफ़ाम तो आया

उड़ जाएगा फिर अपनी हवाओं में तो क्या ग़म
वो ताइर-ए-ख़ुश-रंग तह-ए-दाम तो आया

हर चंद कि कम अरसा-ए-ज़ेबाई में ठहरा
हर चेहरा-ए-गुल बाग़ के कुछ काम तो आया

शब से भी गुज़र जाएँगे गर तेरी रज़ा हो
दौरान-ए-सफ़र मरहला-ए-शाम तो आया
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malaal hai magar itna malaal thodi hai..

malaal hai magar itna malaal thodi hai
ye aankh rone kii shiddat se laal thodi hai

bas apne vaaste hi fikr-mand hain sab log
yahan kisi ko kisi ka khayal thodi hai

paron ko kaat diya hai udaan se pehle
ye khauf-e-hijr hai shauq-e-visaal thodi hai

maza to tab hai ki tum haar ke bhi hanste raho
hamesha jeet hi jaana kamaal thodi hai

lagaani padtii hai dubki ubharne se pehle
ghuroob hone ka matlab zawaal thodi hai 
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मलाल है मगर इतना मलाल थोड़ी है
ये आँख रोने की शिद्दत से लाल थोड़ी है

बस अपने वास्ते ही फ़िक्र-मंद हैं सब लोग
यहाँ किसी को किसी का ख़याल थोड़ी है

परों को काट दिया है उड़ान से पहले
ये ख़ौफ़-ए-हिज्र है शौक़-ए-विसाल थोड़ी है

मज़ा तो तब है कि तुम हार के भी हँसते रहो
हमेशा जीत ही जाना कमाल थोड़ी है

लगानी पड़ती है डुबकी उभरने से पहले
ग़ुरूब होने का मतलब ज़वाल थोड़ी है
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milti hai zindagi mein mohabbat kabhi kabhi..

milti hai zindagi mein mohabbat kabhi kabhi
hoti hai dilbaron ki inaayat kabhi kabhi

sharma ke munh na fer nazar ke sawaal par
laati hai aise mod pe qismat kabhi kabhi

khulte nahin hain roz dariche bahaar ke
aati hai jaan-e-man ye qayamat kabhi kabhi

tanhaa na kat sakenge jawaani ke raaste
pesh aayegi kisi ki zaroorat kabhi kabhi

phir kho na jaayen ham kahi duniya ki bheed mein
milti hai paas aane ki mohlat kabhi kabhi 
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मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
होती है दिलबरों की इनायत कभी कभी

शर्मा के मुँह न फेर नज़र के सवाल पर
लाती है ऐसे मोड़ पे क़िस्मत कभी कभी

खुलते नहीं हैं रोज़ दरीचे बहार के
आती है जान-ए-मन ये क़यामत कभी कभी

तन्हा न कट सकेंगे जवानी के रास्ते
पेश आएगी किसी की ज़रूरत कभी कभी

फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
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dekha hai zindagi ko kuchh itna qareeb se..

dekha hai zindagi ko kuchh itna qareeb se
chehre tamaam lagne lage hain ajeeb se

kehne ko dil ki baat jinhen dhoondte the ham
mehfil mein aa gaye hain vo apne naseeb se

neelaam ho raha tha kisi naazneen ka pyaar
qeemat nahin chukaai gai ik gareeb se

teri wafa ki laash pe la main hi daal doon
resham ka ye kafan jo mila hai raqeeb se 
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देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से

कहने को दिल की बात जिन्हें ढूँडते थे हम
महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से

नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार
क़ीमत नहीं चुकाई गई इक ग़रीब से

तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल दूँ
रेशम का ये कफ़न जो मिला है रक़ीब से
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bharka rahe hain aag lab-e-nagmaagar se ham..

bharka rahe hain aag lab-e-nagmaagar se ham
khaamosh kya rahenge zamaane ke dar se ham

kuchh aur badh gaye jo andhere to kya hua
mayus to nahin hain tuloo-e-sehr se ham

le de ke apne paas faqat ik nazar to hai
kyun dekhen zindagi ko kisi ki nazar se ham

maana ki is zameen ko na gulzaar kar sake
kuchh khaar kam to kar gaye guzre jidhar se ham 
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भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागर से हम
ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम

कुछ और बढ़ गए जो अँधेरे तो क्या हुआ
मायूस तो नहीं हैं तुलू-ए-सहर से हम

ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम

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mohabbat tark ki main ne garebaan si liya main ne..

mohabbat tark ki main ne garebaan si liya main ne
zamaane ab to khush ho zahar ye bhi pee liya main ne

abhi zinda hoon lekin sochta rehta hoon khilwat mein
ki ab tak kis tamannaa ke sahaare jee liya main ne

unhen apna nahin saka magar itna bhi kya kam hai
ki kuchh muddat haseen khwaabon mein kho kar jee liya main ne

bas ab to daaman-e-dil chhod do bekar umeedo
bahut dukh sah liye main ne bahut din jee liya main ne 
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मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैं ने

अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने

उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है
कि कुछ मुद्दत हसीं ख़्वाबों में खो कर जी लिया मैं ने

बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने

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tiri duniya mein jeene se to behtar hai ki mar jaayen..

tiri duniya mein jeene se to behtar hai ki mar jaayen
wahi aansu wahi aahen wahi gham hai jidhar jaayen

koi to aisa ghar hota jahaan se pyaar mil jaata
wahi begaane chehre hain jahaan jaayen jidhar jaayen

are o aasmaan waale bata is mein bura kya hai
khushi ke chaar jhonke gar idhar se bhi guzar jaayen 
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तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
वही आँसू वही आहें वही ग़म है जिधर जाएँ

कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ

अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ

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bhule se mohabbat kar baitha naadaan tha bechaara dil hi to hai..

bhule se mohabbat kar baitha naadaan tha bechaara dil hi to hai
har dil se khata ho jaati hai bigdo na khudaara dil hi to hai

is tarah nigaahen mat fero aisa na ho dhadkan ruk jaaye
seene mein koi patthar to nahin ehsaas ka maara dil hi to hai

jazbaat bhi hindu hote hain chaahat bhi musalmaan hoti hai
duniya ka ishaara tha lekin samjha na ishaara dil hi to hai

bedaad-garon ki thokar se sab khwaab suhaane choor hue
ab dil ka sahaara gham hi to hai ab gham ka sahaara dil hi to hai 
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भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
हर दिल से ख़ता हो जाती है, बिगड़ो न ख़ुदारा, दिल ही तो है

इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए
सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है

जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा, दिल ही तो है

बेदाद-गरों की ठोकर से सब ख़्वाब सुहाने चूर हुए
अब दिल का सहारा ग़म ही तो है अब ग़म का सहारा दिल ही तो है

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ab aayein ya na aayein idhar poochte chalo..

ab aayein ya na aayein idhar poochte chalo
kya chahti hai un ki nazar poochte chalo

ham se agar hai tark-e-taalluq to kya hua
yaaro koi to un ki khabar poochte chalo

jo khud ko kah rahe hain ki manzil-shanaas hain
un ko bhi kya khabar hai magar poochte chalo

kis manzil-e-muraad ki jaanib ravaan hain ham
ai rah-ravaan-e-khaak-basar poochte chalo 
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अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
क्या चाहती है उन की नज़र पूछते चलो

हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
यारो कोई तो उन की ख़बर पूछते चलो

जो ख़ुद को कह रहे हैं कि मंज़िल-शनास हैं
उन को भी क्या ख़बर है मगर पूछते चलो

किस मंज़िल-ए-मुराद की जानिब रवाँ हैं हम
ऐ रह-रवान-ए-ख़ाक-बसर पूछते चलो

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havas-naseeb nazar ko kahi qaraar nahin..

havas-naseeb nazar ko kahi qaraar nahin
main muntazir hoon magar tera intizaar nahin

humeen se rang-e-gulistaan humeen se rang-e-bahaar
humeen ko nazm-e-gulistaan pe ikhtiyaar nahin

abhi na chhed mohabbat ke geet ai mutarib
abhi hayaat ka maahol khush-gawaar nahin

tumhaare ahad-e-wafaa ko main ahad kya samjhoon
mujhe khud apni mohabbat pe e'tibaar nahin

na jaane kitne gile is mein muztarib hain nadeem
vo ek dil jo kisi ka gila-guzaar nahin

gurez ka nahin qaail hayaat se lekin
jo sach kahoon ki mujhe maut naagawaar nahin

ye kis maqaam pe pahuncha diya zamaane ne
ki ab hayaat pe tera bhi ikhtiyaar nahin 
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हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं
मैं मुंतज़िर हूँ मगर तेरा इंतिज़ार नहीं

हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं

अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं

तुम्हारे अहद-ए-वफ़ा को मैं अहद क्या समझूँ
मुझे ख़ुद अपनी मोहब्बत पे ए'तिबार नहीं

न जाने कितने गिले इस में मुज़्तरिब हैं नदीम
वो एक दिल जो किसी का गिला-गुज़ार नहीं

गुरेज़ का नहीं क़ाइल हयात से लेकिन
जो सच कहूँ कि मुझे मौत नागवार नहीं

ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं

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meri taqdeer mein jalna hai to jal jaaunga..

meri taqdeer mein jalna hai to jal jaaunga
tera vaada to nahin hoon jo badal jaaunga

soz bhar do mere sapne mein gham-e-ulfat ka
main koi mom nahin hoon jo pighal jaaunga

dard kehta hai ye ghabra ke shab-e-furqat mein
aah ban kar tire pahluu se nikal jaaunga

mujh ko samjhaao na saahir main ik din khud hi
thokren kha ke mohabbat mein sambhal jaaunga 
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मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा
तेरा वादा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा

सोज़ भर दो मिरे सपने में ग़म-ए-उल्फ़त का
मैं कोई मोम नहीं हूँ जो पिघल जाऊँगा

दर्द कहता है ये घबरा के शब-ए-फ़ुर्क़त में
आह बन कर तिरे पहलू से निकल जाऊँगा

मुझ को समझाओ न 'साहिर' मैं इक दिन ख़ुद ही
ठोकरें खा के मोहब्बत में सँभल जाऊँगा
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itni haseen itni jawaan raat kya karein..

itni haseen itni jawaan raat kya karein
jaage hain kuchh ajeeb se jazbaat kya karein

pedon ke baazuon mein mehkati hai chaandni
bechain ho rahe hain khayaalaat kya karein

saanson mein ghul rahi hai kisi saans ki mahak
daaman ko choo raha hai koi haath kya karein

shaayad tumhaare aane se ye bhed khul sake
hairaan hain ki aaj nayi baat kya karein 
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इतनी हसीन इतनी जवाँ रात क्या करें
जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात क्या करें

पेड़ों के बाज़ुओं में महकती है चाँदनी
बेचैन हो रहे हैं ख़यालात क्या करें

साँसों में घुल रही है किसी साँस की महक
दामन को छू रहा है कोई हात क्या करें

शायद तुम्हारे आने से ये भेद खुल सके
हैरान हैं कि आज नई बात क्या करें
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jurm-e-ulfat pe hamein log saza dete hain..

jurm-e-ulfat pe hamein log saza dete hain
kaise naadaan hain sholon ko hawa dete hain

ham se deewane kahi tark-e-wafa karte hain
jaan jaaye ki rahe baat nibha dete hain

aap daulat ke taraazu mein dilon ko taulein
ham mohabbat se mohabbat ka sila dete hain

takht kya cheez hai aur laal-o-jawaahar kya hain
ishq waale to khudaai bhi luta dete hain

ham ne dil de bhi diya ahad-e-wafaa le bhi liya
aap ab shauq se de len jo saza dete hain 
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जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
कैसे नादान हैं शोलों को हवा देते हैं

हम से दीवाने कहीं तर्क-ए-वफ़ा करते हैं
जान जाए कि रहे बात निभा देते हैं

आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं

तख़्त क्या चीज़ है और लाल-ओ-जवाहर क्या हैं
इश्क़ वाले तो ख़ुदाई भी लुटा देते हैं

हम ने दिल दे भी दिया अहद-ए-वफ़ा ले भी लिया
आप अब शौक़ से दे लें जो सज़ा देते हैं
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sansaar ki har shay ka itna hi fasana hai..

sansaar ki har shay ka itna hi fasana hai
ik dhund se aana hai ik dhund mein jaana hai

ye raah kahaan se hai ye raah kahaan tak hai
ye raaz koi raahi samjha hai na jaana hai

ik pal ki palak par hai thehri hui ye duniya
ik pal ke jhapakne tak har khel suhaana hai

kya jaane koi kis par kis mod par kya beete
is raah mein ai raahi har mod bahaana hai

ham log khilauna hain ik aise khilaadi ka
jis ko abhi sadiyon tak ye khel rachaana hai 
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संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुँद से आना है इक धुँद में जाना है

ये राह कहाँ से है ये राह कहाँ तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है

इक पल की पलक पर है ठहरी हुई ये दुनिया
इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है

क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पर क्या बीते
इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है

हम लोग खिलौना हैं इक ऐसे खिलाड़ी का
जिस को अभी सदियों तक ये खेल रचाना है

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sadiyon se insaan ye sunta aaya hai..

sadiyon se insaan ye sunta aaya hai
dukh ki dhoop ke aage sukh ka saaya hai

ham ko in sasti khushiyon ka lobh na do
ham ne soch samajh kar gham apnaaya hai

jhooth to qaateel thehra is ka kya rona
sach ne bhi insaan ka khun bahaaya hai

paidaish ke din se maut ki zad mein hain
is maqtal mein kaun hamein le aaya hai

awwal awwal jis dil ne barbaad kiya
aakhir aakhir vo dil hi kaam aaya hai

itne din ehsaan kiya deewaanon par
jitne din logon ne saath nibhaaya hai 
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सदियों से इंसान ये सुनता आया है
दुख की धूप के आगे सुख का साया है

हम को इन सस्ती ख़ुशियों का लोभ न दो
हम ने सोच समझ कर ग़म अपनाया है

झूट तो क़ातिल ठहरा इस का क्या रोना
सच ने भी इंसाँ का ख़ूँ बहाया है

पैदाइश के दिन से मौत की ज़द में हैं
इस मक़्तल में कौन हमें ले आया है

अव्वल अव्वल जिस दिल ने बर्बाद किया
आख़िर आख़िर वो दिल ही काम आया है

इतने दिन एहसान किया दीवानों पर
जितने दिन लोगों ने साथ निभाया है

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saza ka haal sunaayein jazaa ki baat karein..

saza ka haal sunaayein jazaa ki baat karein
khuda mila ho jinhen vo khuda ki baat karein

unhen pata bhi chale aur vo khafa bhi na hon
is ehtiyaat se kya muddaa ki baat karein

hamaare ahad ki tahzeeb mein qaba hi nahin
agar qaba ho to band-e-qaba ki baat karein

har ek daur ka mazhab naya khuda laaya
karein to ham bhi magar kis khuda ki baat karein

wafa-shiaar kai hain koi haseen bhi to ho
chalo phir aaj usi bewafa ki baat karein 
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सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें

उन्हें पता भी चले और वो ख़फ़ा भी न हों
इस एहतियात से क्या मुद्दआ की बात करें

हमारे अहद की तहज़ीब में क़बा ही नहीं
अगर क़बा हो तो बंद-ए-क़बा की बात करें

हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया
करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें

वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें
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fan jo nadaar tak nahin pahuncha..

fan jo nadaar tak nahin pahuncha
abhi meyaar tak nahin pahuncha

us ne bar-waqt be-rukhi barti
shauq aazaar tak nahin pahuncha

aks-e-may ho ki jalwa-e-gul ho
rang-e-rukhsaar tak nahin pahuncha

harf-e-inkaar sar buland raha
zoof-e-iqraar tak nahin pahuncha

hukm-e-sarkaar kii pahunch mat pooch
ahl-e-sarkaar tak nahin pahuncha

adl-gaahen to door kii shay hain
qatl akhbaar tak nahin pahuncha

inqilaabaat-e-dahr kii buniyaad
haq jo haqdaar tak nahin pahuncha

vo maseeha-nafs nahin jis ka
silsila-daar tak nahin pahuncha 
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फ़न जो नादार तक नहीं पहुँचा
अभी मेयार तक नहीं पहुँचा

उस ने बर-वक़्त बे-रुख़ी बरती
शौक़ आज़ार तक नहीं पहुँचा

अक्स-ए-मय हो कि जल्वा-ए-गुल हो
रंग-ए-रुख़्सार तक नहीं पहुँचा

हर्फ़-ए-इंकार सर बुलंद रहा
ज़ोफ़-ए-इक़रार तक नहीं पहुँचा

हुक्म-ए-सरकार की पहुँच मत पूछ
अहल-ए-सरकार तक नहीं पहुँचा

अद्ल-गाहें तो दूर की शय हैं
क़त्ल अख़बार तक नहीं पहुँचा

इन्क़िलाबात-ए-दहर की बुनियाद
हक़ जो हक़दार तक नहीं पहुँचा

वो मसीहा-नफ़स नहीं जिस का
सिलसिला-दार तक नहीं पहुँचा
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ponch kar ashk apni aankhon se muskuraao to koii baat bane..

ponch kar ashk apni aankhon se muskuraao to koii baat bane
sar jhukaane se kuchh nahin hota sar uthao to koii baat bane

zindagi bheek mein nahin milti zindagi badh ke cheeni jaati hai
apna haq sang-dil zamaane se cheen paao to koii baat bane

rang aur nasl zaat aur mazhab jo bhi hai aadmi se kamtar hai
is haqeeqat ko tum bhi meri tarah maan jaao to koii baat bane

nafratoin ke jahaan mein ham ko pyaar kii bastiyaan basaani hain
door rahna koii kamaal nahin paas aao to koii baat bane 
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पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने
सर झुकाने से कुछ नहीं होता सर उठाओ तो कोई बात बने

ज़िन्दगी भीक में नहीं मिलती ज़िन्दगी बढ़ के छीनी जाती है
अपना हक़ संग-दिल ज़माने से छीन पाओ तो कोई बात बने

रंग और नस्ल ज़ात और मज़हब जो भी है आदमी से कमतर है
इस हक़ीक़त को तुम भी मेरी तरह मान जाओ तो कोई बात बने

नफ़रतों के जहान में हम को प्यार की बस्तियाँ बसानी हैं
दूर रहना कोई कमाल नहीं पास आओ तो कोई बात बने
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Murshid please aaj mujhe waqt deejie..

murshid
murshid please aaj mujhe waqt deejie
murshid main aaj aap ko dukhde sunaaunga
murshid hamaare saath bada zulm ho gaya
murshid hamaare desh mein ik jang chhid gayi
murshid sabhi shareef sharaafat se mar gaye
murshid hamaare zehan girftaar ho gaye
murshid hamaari soch bhi baazaari ho gayi
murshid hamaari fauj kya ladti hareef se
murshid use to ham se hi furqat nahin mili
murshid bahut se maar ke ham khud bhi mar gaye
murshid hamein zirh nahin talwaar di gayi
murshid hamaari zaat pe bohtan chad gaye
murshid hamaari zaat palandon mein dab gayi
murshid hamaare vaaste bas ek shakhs tha
murshid vo ek shakhs bhi taqdeer le udri
murshid khuda ki zaat pe andha yaqeen tha
afsos ab yaqeen bhi andha nahin raha
murshid mohabbaton ke nataaij kahaan gaye
murshid meri to zindagi barbaad ho gayi
murshid hamaare gaav ke bacchon ne bhi kaha
murshid koon aakhi aa ke sada haal dekh wajan
murshid hamaara koi nahin ek aap hain
ye main bhi jaanta hoon ke achha nahin hua
murshid main jal raha hoon hawaaein na deejie
murshid azala keejiye duaaein na deejie
murshid khamosh rah ke pareshaan na keejiye
murshid main rona rote hue andha ho gaya
aur aap hain ke aap ko ehsaas tak nahin
hah sabr kijeye sabr ka fal meetha hota hai
murshid main bhonkdai haan jo kai she vi nahin bachi
murshid wahaan yazidiyat aage nikal gayi
aur paarsa namaaz ke peeche pade rahe
murshid kisi ke haath mein sab kuchh to hai magar
murshid kisi ke haath mein kuchh bhi nahin raha
murshid main lad nahin saka par cheekhta raha
khaamosh rah ke zulm ka haami nahin bana
murshid jo mere yaar bhala chhodein rahne den
achhe the jaise bhi the khuda un ko khush rakhen
murshid hamaari raunakein doori nigal gayi
murshid hamaari dosti subhaat kha gaye
murshid ai photo pichhle maheene chhikaya ham
hoon mekun dekh lagda ai jo ai photo meda ai
ye kis ne khel khel mein sab kuchh ult diya
murshid ye kya ke mar ke hamein zindagi mile
murshid hamaare virse mein kuchh bhi nahin so ham
bemausmi wafaat ka dukh chhod jaayenge
murshid kisi ki zaat se koi gila nahin
apna naseeb apni kharaabi se mar gaya
murshid vo jis ke haath mein har ek cheez hai
shaayad hamaare saath wahi haath kar gaya
murshid duaaein chhod tera pol khul gaya
tu bhi meri tarah hai tere bas mein kuchh nahin
insaan mera dard samajh sakte hi nahin
main apne saare zakhm khuda ko dikhaaunga
ai rabbe kaaynaat idhar dekh main fakeer
jo teri sarparasti mein barbaad ho gaya
parvardigaar bol kahaan jaayen tere log
tujh tak pahunchne ko bhi wasila zaroori hai
parvardigaar aave ka aawa bigad gaya
ye kisko tere deen ke theke diye gaye
har shakhs apne baap ke firke mein band hai
parvardigaar tere sahife nahin khule
kuchh aur bhej tere guzishta sahifon se
maqsad hi hal hue hain masaail nahin hue
jo ho gaya so ho gaya ab mukhtiyaari cheen
parvardigaar apne khaleefe ko rassi daal
jo tere paas waqt se pehle pahunch gaye
parvardigaar unke masaail ka hal nikaal
parvardigaar sirf bana dena kaafi nain
takhleeq karke de to phir dekhbhaal kar
ham log teri kun ka bharam rakhne aaye hain
parvardigaar yaar hamaara khayal kar
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मुर्शिद
मुर्शिद प्लीज़ आज मुझे वक़्त दीजिये
मुर्शिद मैं आज आप को दुखड़े सुनाऊँगा
मुर्शिद हमारे साथ बड़ा ज़ुल्म हो गया
मुर्शिद हमारे देश में इक जंग छिड़ गयी
मुर्शिद सभी शरीफ़ शराफ़त से मर गए
मुर्शिद हमारे ज़ेहन गिरफ़्तार हो गए
मुर्शिद हमारी सोच भी बाज़ारी हो गयी
मुर्शिद हमारी फौज क्या लड़ती हरीफ़ से
मुर्शिद उसे तो हम से ही फ़ुर्सत नहीं मिली
मुर्शिद बहुत से मार के हम ख़ुद भी मर गए
मुर्शिद हमें ज़िरह नहीं तलवार दी गयी
मुर्शिद हमारी ज़ात पे बोहतान चढ़ गए
मुर्शिद हमारी ज़ात पलांदों में दब गयी
मुर्शिद हमारे वास्ते बस एक शख़्स था
मुर्शिद वो एक शख़्स भी तक़दीर ले उड़ी
मुर्शिद ख़ुदा की ज़ात पे अंधा यक़ीन था
अफ़्सोस अब यक़ीन भी अंधा नहीं रहा
मुर्शिद मुहब्बतों के नताइज कहाँ गए
मुर्शिद मेरी तो ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी
मुर्शिद हमारे गाँव के बच्चों ने भी कहा
मुर्शिद कूँ आखि आ के सदा हाल देख वजं
मुर्शिद हमारा कोई नहीं एक आप हैं
ये मैं भी जानता हूँ के अच्छा नहीं हुआ
मुर्शिद मैं जल रहा हूँ हवाएँ न दीजिये
मुर्शिद अज़ाला कीजिये दुआएँ न दीजिये
मुर्शिद ख़मोश रह के परेशाँ न कीजिये
मुर्शिद मैं रोना रोते हुए अंधा हो गया
और आप हैं के आप को एहसास तक नहीं
हह! सब्र कीजे सब्र का फ़ल मीठा होता है
मुर्शिद मैं भौंकदै हाँ जो कई शे वि नहीं बची
मुर्शिद वहां यज़ीदियत आगे निकल गयी
और पारसा नमाज़ के पीछे पड़े रहे
मुर्शिद किसी के हाथ में सब कुछ तो है मगर
मुर्शिद किसी के हाथ में कुछ भी नहीं रहा
मुर्शिद मैं लड़ नहीं सका पर चीख़ता रहा
ख़ामोश रह के ज़ुल्म का हामी नहीं बना
मुर्शिद जो मेरे यार भला छोड़ें रहने दें
अच्छे थे जैसे भी थे ख़ुदा उन को ख़ुश रखें
मुर्शिद हमारी रौनकें दूरी निगल गयी
मुर्शिद हमारी दोस्ती सुब्हात खा गए
मुर्शिद ऐ फोटो पिछले महीने छिकाया हम
हूँ मेकुं देख लगदा ऐ जो ऐ फोटो मेदा ऐ
ये किस ने खेल खेल में सब कुछ उलट दिया
मुर्शिद ये क्या के मर के हमें ज़िन्दगी मिले
मुर्शिद हमारे विरसे में कुछ भी नहीं सो हम
बेमौसमी वफ़ात का दुख छोड़ जाएंगे
मुर्शिद किसी की ज़ात से कोई गिला नहीं
अपना नसीब अपनी ख़राबी से मर गया
मुर्शिद वो जिस के हाथ में हर एक चीज़ है
शायद हमारे साथ वही हाथ कर गया
मुर्शिद दुआएँ छोड़ तेरा पोल खुल गया
तू भी मेरी तरह है तेरे बस में कुछ नहीं
इंसान मेरा दर्द समझ सकते ही नहीं
मैं अपने सारे ज़ख्म ख़ुदा को दिखाऊँगा
ऐ रब्बे कायनात! इधर देख मैं फ़कीर
जो तेरी सरपरस्ती में बर्बाद हो गया
परवरदिगार बोल कहाँ जाएँ तेरे लोग
तुझ तक पहुँचने को भी वसीला ज़रूरी है
परवरदिगार आवे का आवा बिगड़ गया
ये किसको तेरे दीन के ठेके दिए गये
हर शख़्स अपने बाप के फिरके में बंद है
परवरदिगार तेरे सहीफे नहीं खुले
कुछ और भेज तेरे गुज़िश्ता सहीफों से
मक़सद ही हल हुए हैं मसाइल नहीं हुए
जो हो गया सो हो गया, अब मुख़्तियारी छीन
परवरदिगार अपने ख़लीफे को रस्सी डाल
जो तेरे पास वक़्त से पहले पहुँच गये
परवरदिगार उनके मसाइल का हल निकाल
परवरदिगार सिर्फ़ बना देना काफ़ी नइँ
तख़्लीक करके दे तो फिर देखभाल कर
हम लोग तेरी कुन का भरम रखने आए हैं
परवरदिगार यार! हमारा ख़याल कर
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Jo bhi izzat ke dar se dar jaaye..

jo bhi izzat ke dar se dar jaaye
mat kare ishq apne ghar jaaye

baat aa jaaye jab duao par
isse behtar hai banda mar jaaye

thodi si aur der saamne rah
meri aankhon ka pet bhar jaaye

al muhaimin ke ghar bhi khatre hai
jaaye bhi to koi kidhar jaaye

haan aqeeda agar na kaid rakhe
phir to insaan kuchh bhi kar jaaye

bebaasi ki ye aakhiri had hai
meri aulaad aap par jaaye

uske chehre par aaj udaasi thi
haay afkaar alvee mar jaaye
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जो भी इज़्ज़त के डर से डर जाए
मत करे इश्क़ अपने घर जाए

बात आ जाये जब दुआओं पर
इससे बेहतर है बंदा मर जाए

थोड़ी सी और देर सामने रह
मेरी आँखों का पेट भर जाए

अल-मुहैमिन के घर भी खतरे हैं
जाए भी तो कोई किधर जाए

हाँ अकीदा अगर न क़ैद रखे
फिर तो इंसान कुछ भी कर जाए

बेबसी की ये आख़िरी हद है
मेरी औलाद आप पर जाए

उसके चेहरे पर आज उदासी थी
हाए 'अफ़्कार अल्वी' मर जाए
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Chaarpaai pe aa utaari hai..

chaarpaai pe aa utaari hai
zindagi jinda laash bhari hai

aap dukh de rahe hai ro raha hun
aur ye filhaal jaari hai

rona likha gaya rote hai
zimmedaari to zimmedaari hai

meri marji jahaan bhi sarf karu
zindagi meri hai tumhaari hai

dushmani ke hazaaro darje hai
aakhiri darja rishtaadaari hai
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चारपाई पे आ उतारी है
जिंदगी जिंदा लाश भारी है

आप दुख दे रहे है रो रहा हुँ
और ये फिलहाल जारी है

रोना लिखा गया रोते है
जिम्मेदारी तो जिम्मेदारी है

मेरी मर्जी जहाँ भी सर्फ़ करु
जिंदगी मेरी है, तुम्हारी है

दुश्मनी के हजारो दर्जे है
आखिरी दर्जा रिशतादारी है
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Is se pehle ki tujhe aur sahaara na mile..

is se pehle ki tujhe aur sahaara na mile
main tire saath hoon jab tak mere jaisa na mile

kam se kam badle me jannat use de di jaaye
jis mohabbat ke girftaar ko sehraa na mile

log kahte hai ke ham log bure aadmi hai
log bhi aise jinhone hame dekha na mile

bas yahi kah ke use maine khuda ko saunpa
ittefaakan kahi mil jaaye to rota na mile

baddua hai ke wahan aaye jahaan baithe the
aur afkaar wahan aapko baitha na mile 
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इस से पहले कि तुझे और सहारा न मिले
मैं तिरे साथ हूँ जब तक मिरे जैसा न मिले

कम से कम बदले मे जन्नत उसे दे दी जाये
जिस मोहब्बत के गिरफ्तार को सेहरा ना मिले

लोग कहते है के हम लोग बुरे आदमी है
लोग भी ऐसे जिन्होने हमे देखा ना मिले

बस यही कह के उसे मैने खुदा को सौंपा
इत्तेफाकन कही मिल जाये तो रोता ना मिले

बद्दुआ है के वहाँ आये जहाँ बैठते थे
और ‘अफ्कार’ वहाँ आपको बैठा ना मिले

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kaun kehta hai faqat khauf-e-azal deta hai..

kaun kehta hai faqat khauf-e-azal deta hai
zulm to zulm hai eimaan badal deta hai

bebaasi mazhabi insaan bana deti hai
maan lete hain khuda sabr ka fal deta hai

vo bakheel aaj bhi daata hai bhale waqt na de
main use yaad bhi kar luun to ghazal deta hai

uski koshish hai ki vo apni kashish baqi rakhe
mere jazbaat machalte hain to chal deta hai

khaali bartan hi khanakta hai tabhi aadmi bhi
ghaas mat daalo to auqaat ugal deta hai

ham ko mehnat pe hi milna hai agar khuld mein chain
ye to ghar baithe-bithaaye hamein thal deta hai

zehan mein aur koi dukh nahin rehta afkaar
jitne bal bande ko vo zulf ka bal deta hai 
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कौन कहता है फ़क़त ख़ौफ़-ए-अज़ल देता है
ज़ुल्म तो ज़ुल्म है, ईमान बदल देता है

बेबसी मज़हबी इंसान बना देती है
मान लेते हैं ख़ुदा सब्र का फल देता है

वो बख़ील आज भी दाता है, भले वक़्त न दे
मैं उसे याद भी कर लूँ तो ग़ज़ल देता है

उसकी कोशिश है कि वो अपनी कशिश बाक़ी रखे
मेरे जज़्बात मचलते हैं तो चल देता है

खाली बर्तन ही खनकता है, तभी आदमी भी
घास मत डालो तो औक़ात उगल देता है

हम को मेहनत पे ही मिलना है अगर ख़ुल्द में चैन
ये तो घर बैठे-बिठाये हमें थल देता है

ज़ेहन में और कोई दुख नहीं रहता 'अफ़कार'
जितने बल बंदे को वो ज़ुल्फ़ का बल देता है
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hijr mein khud ko tasalli di kaha kuchh bhi nahin..

hijr mein khud ko tasalli di kaha kuchh bhi nahin
dil magar hansne laga aaya bada kuchh bhi nahin

ham agar sabr mein rahte hain to kya kuchh bhi nahin
jaane waalo kabhi aa dekho bacha kuchh bhi nahin

be-dili yun hi ki rab koi maseeha bheje
ham maseeha se bhi kah denge o ja kuchh bhi nahin

dekhe bin ishq hua dekhe bina door huye
itna kuchh ho bhi gaya aur hua kuchh bhi nahin

saste aabid na banen lat ko ibadat na kahein
aashiqi lazzat-o-zillat ke siva kuchh bhi nahin

main tere baad musallii pe bahut rota raha
aur kaha yaar khuda khair bhala kuchh bhi nahin

ishq mardaana tabiyat nahin rakhta afkaar
varna ye husn-o-jamaal aur ada kuchh bhi nahin
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हिज्र में ख़ुद को तसल्ली दी, कहा कुछ भी नहीं
दिल मगर हँसने लगा, आया बड़ा कुछ भी नहीं

हम अगर सब्र में रहते हैं तो क्या कुछ भी नहीं
जाने वालो! कभी आ देखो, बचा कुछ भी नहीं

बे-दिली यूँ ही कि रब कोई मसीहा भेजे
हम मसीहा से भी कह देंगे, ओ जा! कुछ भी नहीं

देखे बिन इश्क़ हुआ, देखे बिना दूर हुये
इतना कुछ हो भी गया और हुआ कुछ भी नहीं

सस्ते आबिद न बनें, लत को इबादत न कहें
आशिक़ी लज़्ज़त-ओ-ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं

मैं तेरे बाद मुसल्ली पे बहुत रोता रहा
और कहा, यार ख़ुदा! ख़ैर भला कुछ भी नहीं

इश्क़ मरदाना तबियत नहीं रखता 'अफ़कार'!
वरना ये हुस्न-ओ-जमाल और अदा कुछ भी नहीं
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subh hone lagi hai..

subh hone lagi hai
magar apne bistar men vo be-ḳhabar ab bhi be-sudh padi hai

use kya ḳhabar hai
ki do laakh salon se chalti hui

andromeda ke kuchh surajon ki shuaen
zamin par pahnch kar hamari shuaon men shamil hui hain

to is subh ka chehra raushan hua hai
ye do laakh salon Ka lamba safar

jis men ham sapiens
jangalon ke andheron men badhte hue

apne cousinon ki qismat ke rab ban gae
un se itna lade

un ki napaidgi ka sabab ban gae
itne salon men ham

ghaar se jhonpdi jhonpdi se qabilon ki surat bate
aur qabilon se shahron men Dhalne lage hain

ye do laakh salon se nikli hui raushni apne suraj men aa kar mili hai
to duniya Ki ain us jagah par jahan is ka ghar hai

vahan
subh banne lagi hai

zamin par kisi din ki pahli ghadi hai
zamin ghuum kar apne baaba ki janib mudi hai

magar apne bistar men vo be-ḳhabar ab bhi be-sudh padi hai
-------------------------------------------------------------
सुबह होने लगी है
मगर अपने बिस्तर में वो बे-खबर अब भी बे-सुध पड़ी है

उसे क्या ख़बर है
कि दो लाख सालों से चलती हुई

एंड्रोमेडा के कुछ सूरजों की शुआएं
ज़मीन पर पहुँच कर हमारी शुआओं में शामिल हुई हैं

तो इस सुबह का चेहरा रोशन हुआ है
ये दो लाख सालों का लंबा सफ़र

जिसमें हम सैपियंस
जंगलों के अंधेरों में बढ़ते हुए

अपने क़ुसीनों की क़िस्मत के रब बन गए
उनसे इतना लड़े

उनकी नापैदगी का सबब बन गए
इतने सालों में हम

घार से झोपड़ी, झोपड़ी से क़बीलों की सूरत बदलते
और क़बीलों से शहरों में ढलने लगे हैं

ये दो लाख सालों से निकली हुई रोशनी अपने सूरज में आ कर मिली है
तो दुनिया की आयन उस जगह पर जहाँ इसका घर है

वहाँ
सुबह बनने लगी है

ज़मीन पर किसी दिन की पहली घड़ी है
ज़मीन घूम कर अपने बाबाओं की तरफ़ मुड़ी है

मगर अपने बिस्तर में वो बे-खबर अब भी बे-सुध पड़ी है
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raat jaagi to kahin sahn men sukhe patte..

raat jaagi to kahin sahn men sukhe patte
charmurae ki koi aaya koi aaya hai

aur ham shauq ke maare hue daude aae
go ki malum hai tu hai na tira saaya hai

ham ki dekhen kabhi dalan kabhi sukha chaman
us pe dhimi si tamanna ki pukare jaaen

phir se ik baar tiri ḳhvab si ankhen dekhen
phir tire hijr ke hathon hi bhale maare jaaen

ham tujhe apni sadaon men basane vaale
itna chiḳhen ki tire vahm lipat kar roen

par tire vahm bhi teri hi tarah qatil hain
so vahi dard hai janan kaho kaise soen

bas isi karb ke pahlu men guzare hain pahar
bas yunhi gham kabhi kaafi kabhi thode aae

phir achanak kisi lamhe men jo chatḳhe patte
ham vahi shauq ke maare hue daude aae
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रात जागी तो कहीं आँगन में सूखे पत्ते
चरमराहट की कोई आया, कोई आया है

और हम शौक़ के मारे हुए दौड़े आए
गो कि मालूम है तू है ना तेरा साया है

हम की देखें कभी डालान, कभी सूखा चमन
उस पे धीमी सी तमन्ना की पुकारे जाएं

फिर से एक बार तिरी ख़्वाब सी आँखें देखें
फिर तिरे हिज्र के हाथों ही भले मारे जाएं

हम तुझे अपनी सदाओं में बसाने वाले
इतना चीखें कि तेरा वहम लिपट कर रोएं

पर तिरे वहम भी तिरी ही तरह क़ातिल हैं
सो वही दर्द है, जानां कहो कैसे सोएं

बस इसी कर्ब के पहलू में गुज़ारे हैं पहर
बस यूँ ही ग़म कभी काफी, कभी थोड़े आए

फिर अचानक किसी लम्हे में जो चटकते पत्ते
हम वही शौक़ के मारे हुए दौड़े आए

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main ik devta-e-ana..

main ik devta-e-ana
nargisiyyat ka maara hua

aur azal se takabbur men Duuba hua
kaafi ḳhud-sar huun

ziddi huun maghrur huun
mere charon taraf meri andhi ana Ki vo divar hai

jis men aane Ki aur mujh se milne ki ghulne ki koi ijazat kisi ko nahin hai
tumhen bhi nahin hai

use bhi nahin hai
mujhe bhi nahin hai

main apni ana ki divaron men tum se alag ho rahun
mujh pe sajta bhi hai ye

main shair huun jo ki faulun faulun se bahr-e-ramal tak
har ik naghmagi ka mukammal ḳhuda huun

main lafzon ka aaqa
taḳhayyul ka ḳhaliq

main saare zamane se yaksar juda huun
mujhe zeb deta hai main apni divar men is tarah se muqayyad rahun

yunhi sayyad rahun
mujh pe sajta hai ye

par jo kal shab tire shabnami se tabassum men lipti hui

ik nazar be-niyazi se mujh par padi
teri pahli nazar se miri jan-e-jan

meri divar men ik gadha par pad gaya
aur ye hī nahīñ mujh pe vo hī nazar

jab dobara dobara dobara padi
meri divar men zalzale aa gae

aur raḳhne shagafon men Dhalne lage
mere andar talatum vo atish-fishan

vo bagule vo tufan vo mahshar bapa tha
ki main vo ki jis ke tahammul ki hikmat ki

fahm-o-latafat ki tamsil shayad kahin bhi nahin thi
sulagne laga

apni hiddat se ḳhud hi pighalne laga
tujh se kahna tha ye ki miri jan-e-jan

har sitare ki apni kashish hogi lekin
ḳhalaon men murda sitaron Ki qismat

vo hawking ki theory ke kaale gadhe
vo vahi vo ki jin men hai itni kashish ki makan to makan

vo zaman ko bhi apne lapete men le len
vo hawking ki theory ke kaale gadhon ki gravity bhi

ter ankhon Ki gahri kashish ke muqabil men kuchh bhi nahin
aur ye to faqat ek divar thi

is ko girna hi tha
teri nazron se haari hai bikhri padi hai

ki divar ka reza-reza tiri ik nazar se miri jaan
ujda pada hai

main jo devta-e-ana nargisiyyat ka maara hua vo jo ḳhud-sar tha
ziddi tha maghrur tha

jo faulun faulun se bahr-e-ramal tak har ik naghmagi ka mukammal ḳhuda tha
tiri ik nazar se anaon ke arsh-e-muaalla se sidha tire paanv men aa ke

bikhra pada hai
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मैं एक देवता-ए-अना
नरगिसियत का मारा हुआ

और अज़ल से तकब्बुर में डूबा हुआ
काफी खुदसर हूँ

ज़िद्दी हूँ, मग़रूर हूँ
मेरे चारों तरफ़ मेरी अंधी अना की वो दीवार है

जिसमें आने की और मुझसे मिलने की, घुलने की कोई इजाज़त किसी को नहीं है
तुम्हें भी नहीं है

उससे भी नहीं है
मुझे भी नहीं है

मैं अपनी अना की दीवारों में तुमसे अलग हो रहा हूँ
मुझ पे सजता भी है ये

मैं शायर हूँ जो कि फूलों-फूलों से बहरे-रेमल तक
हर एक नगमगी का मुकम्मल ख़ुदा हूँ

मैं शब्दों का आका
तकललुल का ख़ालिक़

मैं सारे ज़माने से यकसर जुदा हूँ
मुझे ज़े़ब देता है मैं अपनी दीवार में इस तरह से मुक़य्यद रहूँ

यूँही सैयद रहूँ
मुझ पे सजता है ये

पर जो कल रात तिरे शबनमी से तबस्सुम में लिपटी हुई

एक नज़र बे-नियाज़ी से मुझ पर पड़ी
तेरी पहली नज़र से मेरी जान-ए-जाँ

मेरी दीवार में एक गढ़ा पर पड़ी
और ये ही नहीं है मुझ पे वो ही नज़र

जब दोबारा दोबारा दोबारा पड़ी
मेरी दीवार में ज़लज़ले आ गए

और रहने शगाफ़ों में ढलने लगे
मेरे अंदर हलचल वो आतिश-फिशां

वो बग़ूले, वो तूफ़ान, वो महशर बपा था
कि मैं वो था जिसके तहम्मुल की हिकमत की

फहम-ओ-लाताफ़त की तम्सील शायद कहीं भी नहीं थी
सुलगने लगा

अपनी हिद्दत से खुद ही पिघलने लगा
तुझसे कहना था ये कि मेरी जान-ए-जाँ

हर सितारे की अपनी खींच होगी लेकिन
ख़लाओं में मुरदा सितारों की क़िस्मत

वो हॉकिंग की थ्योरी के काले गढ़े
वो वही वो कि जिनमें है इतनी खींच कि मकाँ तो मकाँ

वो ज़माँ को भी अपने लपेटे में ले ले
वो हॉकिंग की थ्योरी के काले गढ़ों की ग्रैविटी भी

तेरी आँखों की गहरी खींच के मुक़ाबिल में कुछ भी नहीं
और ये तो फ़कत एक दीवार थी

इसको गिरना ही था
तेरी नज़रों से हारि है बिखरी पड़ी है

कि दीवार का रेजा-रेजा तिरी एक नज़र से मेरी जान
उजड़ा पड़ा है

मैं जो देवता-ए-अना, नरगिसियत का मारा हुआ, वो जो खुदसर था
ज़िद्दी था, मग़रूर था

जो फूलों-फूलों से बहरे-रेमल तक हर एक नगमगी का मुकम्मल ख़ुदा था
तिरी एक नज़र से अनाओं के अर्शे-मुअल्ला से सीधा तिरे पाँव में आ के

बिखरा पड़ा है

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jahan men iztirab hai..

jahan men iztirab hai
nahin nahin
jahan hi iztirab hai

hazar-ha kavakib-o-nujum-ha-e-kahkashan se
atomon ki kokh tak

madar-dar-madar har vajud be-qarar hai
ye mehr-o-mah o mushtari se har electron tak

ye jhuum jhuum ghumne men jis tarah ka raqs hai
mujhe samajh men aa gaya

jahan tera aks hai
vo aks jo jagah jagah qadam qadam rythm pe hai

jahan ain sur men hai jahan ain sum pe hai
jahan tarannumon ki list men se intiḳhab hai

jo tujh hasin dimagh ke hasin la-shuur men bana ho
aisa ḳhvab hai

jahan iztirab hai
mujhe samajh men aa gaya hai ye jahan

ḳhala makan zaman ke chand taar se bana hua sitar hai
use kaho kisi tarah sitar chhedti rahe

use kaho ki thodi der aur bolti rahe
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जहाँ में इज़्तिराब है
नहीं नहीं
जहाँ ही इज़्तिराब है

हज़ार-हां क़वाक़िब-ओ-नुजूम-हां-ए-कहकशां से
एटमों की कोख तक

मदार-दर-मदार हर वजूद बे-करार है
ये महर-ओ-मा-ओ-मुश्तरी से हर इलेक्ट्रॉन तक

ये झूम झूम घूमने में जिस तरह का रक़्स है
मुझे समझ में आ गया

जहाँ तेरा अक्स है
वो अक्स जो जगह जगह क़दम क़दम रिदम पे है

जहाँ आइं सुर में है जहाँ आइं सुम में है
जहाँ तरन्नुमों की लिस्ट में से इंतिख़ाब है

जो तुझ हसीं दिमाग़ के हसीं लाश-ऊर में बना हो
ऐसा ख़्वाब है

जहाँ इज़्तिराब है
मुझे समझ में आ गया है ये जहाँ

ख़ला मकान ज़माँ के चाँद तारों से बना हुआ सितार है
उसे कहो किसी तरह सितार छेड़ती रहे

उसे कहो कि थोड़ी देर और बोलती रहे

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main musavvir huun..

main musavvir huun
par tujh se nadim huun main

ki tire tujh se ḳhake banane Ki main
ab talak ye ikkavanvin koshish bhi puuri nahin kar saka huun

ye meri mohabbat ka gahra taassub bhi ho sakta hai
par ye afaqiyat kaenati mohabbat ka radd-e-amal hai

ki ḳhakon men main teri ankhon pe salon se atka hua huun
ajab ek uljhan hai

ankhen banaun ya rahne hi duun
tere ḳhake men main tere chehre ke azlat ko khinch kar

vo tira ik tabassum banane ki koshish ko puura agar kar bhi luun
par jo tujh men zamanon ki tahzib ki ik kahani buni hai

tire la-shuuri ravayyon men arbon baras ke hasin irtiqa ka
vo jo ik fasana

D n a ki bases men tartib pa kar
tujhe to banata hai vo ik fasana

vo ḳhakon men aḳhir ko kaise sunaun
ai vajh-e-suḳhan

jan-o-rang-e-ghazal
kaenati mohabbat ka radd-e-amal

ai udasi ke hone men vahid ḳhalal
tujh se nadim huun main

mere vahm-o-guman men qalam men mire aur qirtas men
tera hona musalsal nahin ho raha

meri bavanvin koshish men bhi ab talak
tera ḳhaka mukammal nahin ho raha
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मैं मुसव्विर हूँ
पर तुझ से नादिम हूँ मैं

कि तिरे तुझ से खाके बनाने की मैं
अब तक ये इकतालीसवीं कोशिश भी पूरी नहीं कर सका हूँ

ये मेरी मोहब्बत का गहरा तअस्सुब भी हो सकता है
पर ये आफ़ाकियत का इंतिहाई मोहब्बत का रद्द-ए-अमल है

कि खाकों में मैं तेरी आँखों पे सालों से अटका हुआ हूँ
अजब एक उलझन है

आँखें बनाऊँ या रहने ही दूँ
तेरे खाके में मैं तेरे चेहरे के अज़लात को खींच कर

वो तिरा इक तबस्सुम बनाने की कोशिश को पूरा अगर कर भी लूँ
पर जो तुझ में ज़माने की तहज़ीब की एक कहानी बनी है

तेरे लाश-ऊरी रिवायतों में अरबों बरस के हसीं इर्तिक़ा का
वो जो इक फ़साना

डी. एन. ए. की बेसिस में तरतीब पाकर
तुझे तो बनाता है वो इक फ़साना

वो खाकों में आखिर को कैसे सुनाऊँ
ऐ वजह-ए-सुख़न

जान-ओ-रंग-ए-ग़ज़ल
का.ए.नाती मोहब्बत का रद्द-ए-अमल

ऐ उदासी के होने में वाहीद ख़लल
तुझ से नादिम हूँ मैं

मेरे वहम-ओ-गुमान में क़लम में मेरे और क़िरतास में
तेरा होना मुसलसल नहीं हो रहा

मेरी बावनवीं कोशिश में भी अब तक
तेरा खाका मुकम्मल नहीं हो रहा

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us ki ḳhvahish ka Izhar..

us ki ḳhvahish ka Izhar
maasum had tak rivayat ki bandish men uljha hua tha

ki main us ke hathon pe mehndi lagaun
magar shaeri ek devi hai jis ki jalan ko

kabhi likhne valon ke hathon pe itna taras hi nahin aa saka hai
ki baghi dimaghon men bhi aam raston ki taqlid bharti

ya hathon ki jumbish ḳhirad ke tasallut se azad karti
mire haath bhi zehn men ghumte kuchh savalon ke sanche banane lage

us ke hathon pe mehndi se atom ke model banane lage
aur model bhi aise jo matruk the

jis men zarra bahut duur se ghumta jhumta daera daera
rafta rafta kisi markaze ki taraf gamzan

bas tasalsul se badhti hui ik kashish ke asar men rahe
ik yaqini fana ke safar men rahe

sal-ha-sal chizen badalti gaiin
vaqt ne dard ke jo bhi lyrics likhe un ko gaana pada

jaane kaise magar
us ko jaana pada

main ne vaise to ye umr bhar sochna hi nahin tha
magar shaeri ek devi jalan

nostalgic zamanon ki tasvir logic ke kuchh masale
pūchhne lag ga.e haiñ

bhala aisa jahil kahan par milega
ki jo kimiya padh ke bhi

ik taalluq men pahle to zarra bane
aur nibhate hue

dynamics ke vo hi matruk model chune
aur tasalsul se badhti hui ik kashish ke asar men rahe

ik yaqini fana ke safar men rahe
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उस की ख़्वाहिश का इज़हार
मासूम हद तक रिवायत की बंदिश में उलझा हुआ था

कि मैं उसके हाथों पे मेहंदी लगाूँ
मगर शायरी एक देवी है जिसकी जलन को

कभी लिखने वालों के हाथों पे इतना तरस ही नहीं आ सका है
कि बागी दिमागों में भी आम रास्तों की तकीलीद भरती

या हाथों की हलचल, ख़िरद के तसल्सुल से आज़ाद करती
मेरे हाथ भी ज़हन में घूमते कुछ सवालों के साँचे बनाने लगे

उस के हाथों पे मेहंदी से एटम के मॉडल बनाने लगे
और मॉडल भी ऐसे जो मत्रूक थे

जिसमें ज़र्रा बहुत दूर से घूमता झूमता दायरा दायरा
रफ्ता रफ्ता किसी केंद्र की तरफ ग़मज़न

बस तसल्सुल से बढ़ती हुई एक ख़ीशिश के असर में रहे
एक यक़ीनी फ़ना के सफ़र में रहे

सालों साल चीजें बदलती गईं
वक़्त ने दर्द के जो भी लिरिक्स लिखे उन को गाना पड़ा

जाने कैसे मगर
उस को जाना पड़ा

मैंने वैसे तो ये उम्र भर सोचना ही नहीं था
मगर शायरी एक देवी जलन

नॉस्टाल्जिक ज़मानों की तस्वीरे, लॉजिक के कुछ मसले
पूछने लग गए हैं

भला ऐसा जाहिल कहाँ पर मिलेगा
कि जो कीमिया पढ़ के भी

एक तअल्लुक़ में पहले तो ज़र्रा बने
और निभाते हुए

डायनेमिक्स के वो ही मत्रूक मॉडल चुने
और तसल्सुल से बढ़ती हुई एक ख़ीशिश के असर में रहे

एक यक़ीनी फ़ना के सफ़र में रहे

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Aisi shadeed roshni mein jal marunga main,..

Aisi shadeed roshni mein jal marunga main,
Itne haseen shakhs ko kaise sahunga main?

Mujhse mera wajood to sabit nahi hua,
Tu aankh bhar ke dekh le, hone lagunga main.

Main maykade se door hoon par daayre mein hoon,
Zinda raha to tere gale aa lagunga main.

Main wo ajeeb shakhs hoon ki chand roz tak,
Paagal na kar saka to use maar dunga main.
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ऐसी शदीद रोशनी में जल मरूंगा मैं,
इतने हसीन शख्स को कैसे सहूंगा मैं?

मुझसे मेरा वजूद तो साबित नहीं हुआ,
तू आँख भर के देख ले, होने लगूंगा मैं।

मैं मयकदे से दूर हूँ पर दायरे में हूँ,
जिंदा रहा तो तेरे गले आ लगूंगा मैं।

मैं वो अजीब शख्स हूँ कि चंद रोज़ तक,
पागल न कर सका तो उसे मार दूंगा मैं।

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ishq main ne likh daala qaumiyat ke khaane mein..

ishq main ne likh daala qaumiyat ke khaane mein
aur tera dil likha shehriyat ke khaane mein

mujh ko tajarbo ne hi baap ban ke paala hai
sochta hoon kya likhoon valdiyat ke khaane mein

mera saath deti hai mere saath rahti hai
main ne likha tanhaai zaujiyat ke khaane mein

doston se ja kar jab mashwara kiya to phir
main ne kuchh nahin likha haisiyat ke khaane mein

imtihaan mohabbat ka paas kar liya main ne
ab yahi main likhoonga ahliyat ke khaane mein

jab se aap mere hain fakhr se main likhta hoon
naam aap ka apni milkayat ke khaane mein 
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इश्क़ मैं ने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में
और तेरा दिल लिखा शहरियत के ख़ाने में

मुझ को तजरबों ने ही बाप बन के पाला है
सोचता हूँ क्या लिखूँ वलदियत के ख़ाने में

मेरा साथ देती है मेरे साथ रहती है
मैं ने लिखा तन्हाई ज़ाैजियत के ख़ाने में

दोस्तों से जा कर जब मशवरा किया तो फिर
मैं ने कुछ नहीं लिखा हैसियत के ख़ाने में

इम्तिहाँ मोहब्बत का पास कर लिया मैं ने
अब यही मैं लिखूँगा अहलियत के ख़ाने में

जब से आप मेरे हैं फ़ख़्र से मैं लिखता हूँ
नाम आप का अपनी मिलकियत के ख़ाने में

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bajaae koi shehnai mujhe achha nahin lagta..

bajaae koi shehnai mujhe achha nahin lagta
mohabbat ka tamaashaai mujhe achha nahin lagta

vo jab bichhde the ham to yaad hai garmi ki chhuttiyaan theen
tabhi se maah julaai mujhe achha nahin lagta

vo sharmaati hai itna ki hamesha us ki baaton ka
qareeban ek chauthaai mujhe achha nahin lagta

na-jaane itni kadvaahat kahaan se aa gai mujh mein
kare jo meri achchaai mujhe achha nahin lagta

mere dushman ko itni fauqiyat to hai bahr-soorat
ki tu hai us ki hum-saai mujhe achha nahin lagta

na itni daad do jis mein meri awaaz dab jaaye
kare jo yun paziraai mujhe achha nahin lagta

tiri khaatir nazar-andaaz karta hoon use warna
vo jo hai na tira bhaai mujhe achha nahin lagta 
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बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता
मोहब्बत का तमाशाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो जब बिछड़े थे हम तो याद है गर्मी की छुट्टीयाँ थीं
तभी से माह जुलाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो शरमाती है इतना कि हमेशा उस की बातों का
क़रीबन एक चौथाई मुझे अच्छा नहीं लगता

न-जाने इतनी कड़वाहट कहाँ से आ गई मुझ में
करे जो मेरी अच्छाई मुझे अच्छा नहीं लगता

मिरे दुश्मन को इतनी फ़ौक़ियत तो है बहर-सूरत
कि तू है उस की हम-साई मुझे अच्छा नहीं लगता

न इतनी दाद दो जिस में मिरी आवाज़ दब जाए
करे जो यूँ पज़ीराई मुझे अच्छा नहीं लगता

तिरी ख़ातिर नज़र-अंदाज़ करता हूँ उसे वर्ना
वो जो है ना तिरा भाई मुझे अच्छा नहीं लगता
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tujh ko apna ke bhi apna nahin hone dena..

tujh ko apna ke bhi apna nahin hone dena
zakhm-e-dil ko kabhi achha nahin hone dena

main to dushman ko bhi mushkil mein kumak bhejoonga
itni jaldi use paspa nahin hone dena

tu ne mera nahin hona hai to phir yaad rahe
main ne tujh ko bhi kisi ka nahin hone dena

tu ne kitnon ko nachaaya hai ishaaron pe magar
main ne ai ishq ye mujra nahin hone dena

us ne khaai hai qasam phir se mujhe bhoolne ki
main ne is baar bhi aisa nahin hone dena

zindagi mein to tujhe chhod hi deta lekin
phir ye socha tujhe bewa nahin hone dena

mazhab-e-ishq koi chhod mare to main ne
aise murtad ka janaaza nahin hone dena
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तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना
ज़ख़्म-ए-दिल को कभी अच्छा नहीं होने देना

मैं तो दुश्मन को भी मुश्किल में कुमक भेजूँगा
इतनी जल्दी उसे पसपा नहीं होने देना

तू ने मेरा नहीं होना है तो फिर याद रहे
मैं ने तुझ को भी किसी का नहीं होने देना

तू ने कितनों को नचाया है इशारों पे मगर
मैं ने ऐ इश्क़! ये मुजरा नहीं होने देना

उस ने खाई है क़सम फिर से मुझे भूलने की
मैं ने इस बार भी ऐसा नहीं होने देना

ज़िंदगी में तो तुझे छोड़ ही देता लेकिन
फिर ये सोचा तुझे बेवा नहीं होने देना

मज़हब-ए-इश्क़ कोई छोड़ मरे तो मैं ने
ऐसे मुर्तद का जनाज़ा नहीं होने देना

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agar ye kah do baghair mere nahin guzaara to main tumhaara..

agar ye kah do baghair mere nahin guzaara to main tumhaara
ya us pe mabni koi ta'assur koi ishaara to main tumhaara

ghuroor-parwar ana ka maalik kuchh is tarah ke hain naam mere
magar qasam se jo tum ne ik naam bhi pukaara to main tumhaara

tum apni sharton pe khel khelo main jaise chahe lagaaun baazi
agar main jeeta to tum ho mere agar main haara to main tumhaara

tumhaara aashiq tumhaara mukhlis tumhaara saathi tumhaara apna
raha na in mein se koi duniya mein jab tumhaara to main tumhaara

tumhaara hone ke faisley ko main apni qismat pe chhodta hoon
agar muqaddar ka koi toota kabhi sitaara to main tumhaara

ye kis pe ta'aweez kar rahe ho ye kis ko paane ke hain wazeefe
tamaam chhodo bas ek kar lo jo istikhara to main tumhaara 
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अगर ये कह दो बग़ैर मेरे नहीं गुज़ारा तो मैं तुम्हारा
या उस पे मब्नी कोई तअस्सुर कोई इशारा तो मैं तुम्हारा

ग़ुरूर-परवर अना का मालिक कुछ इस तरह के हैं नाम मेरे
मगर क़सम से जो तुम ने इक नाम भी पुकारा तो मैं तुम्हारा

तुम अपनी शर्तों पे खेल खेलो मैं जैसे चाहे लगाऊँ बाज़ी
अगर मैं जीता तो तुम हो मेरे अगर मैं हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा आशिक़ तुम्हारा मुख़्लिस तुम्हारा साथी तुम्हारा अपना
रहा न इन में से कोई दुनिया में जब तुम्हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा होने के फ़ैसले को मैं अपनी क़िस्मत पे छोड़ता हूँ
अगर मुक़द्दर का कोई टूटा कभी सितारा तो मैं तुम्हारा

ये किस पे ता'वीज़ कर रहे हो ये किस को पाने के हैं वज़ीफ़े
तमाम छोड़ो बस एक कर लो जो इस्तिख़ारा तो मैं तुम्हारा
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meri deewaangi khud saakhta nai..

meri deewaangi khud saakhta nai
main jaisa hoon main waisa chahta nai

sukoon chehre ka tere kah raha hai
ki ai dushman tu mujh ko jaanta nai

ye dil gustaakh hota ja raha hai
ki sunta hai meri par maanta nai

mujhe dar hai mohabbat mein agar vo
kahi kah de khuda-na-khaasta nai

agarche dil kahi par haar aaya
magar phir bhi main dil-bardashta nai

ameer is ishq ka mujh se na poocho
pata tum sab ko hai kis ko pata nai 
-------------------------------
मिरी दीवानगी ख़ुद साख़्ता नईं
मैं जैसा हूँ मैं वैसा चाहता नईं

सुकूँ चेहरे का तेरे कह रहा है
कि ऐ दुश्मन तू मुझ को जानता नईं

ये दिल गुस्ताख़ होता जा रहा है
कि सुनता है मिरी पर मानता नईं

मुझे डर है मोहब्बत में अगर वो
कहीं कह दे ख़ुदा-न-ख़ास्ता नईं

अगरचे दिल कहीं पर हार आया
मगर फिर भी मैं दिल-बर्दाश्ता नईं

'अमीर' इस इश्क़ का मुझ से न पूछो
पता तुम सब को है किस को पता नईं
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na ghaur se dekh mere dil ka kabaad aise..

na ghaur se dekh mere dil ka kabaad aise
ki main kabhi bhi nahin raha tha ujaad aise

bura ho tera jo band rakhe the main ne ghar ke
to khol aaya baghair pooche kiwaad aise

jo meri rooh-o-badan ke taanke udhed dale
to meri nazaron pe apni nazaron ko gaar aise

samajh na paaya ki tod deta ya saath rakhta
ki is ta'alluq mein aa gai thi daraad aise

ai ishq rah jaaun farfarahaa ke yun kar de be-bas
so meri gardan mein apne daanton ko gaar aise

to meri aadat se meri fitrat hi ho chala hai
abhi bhi kehta hoon mujh ko tu na bigaad aise

ye mere baazu hi jang ka faisla karenge
pakad le talwaar aur mujh ko pachaad aise

tumhaare gham ka pahaad toota to phir ye jaana
pahaadon par hi to tootte hain pahaad aise

hazaar minnat hazaar minnat hazaar mehnat
tujhe manaane ko kar raha hoon jugaad aise
------------------------------------
न ग़ौर से देख मेरे दिल का कबाड़ ऐसे
कि मैं कभी भी नहीं रहा था उजाड़ ऐसे

बुरा हो तेरा जो बंद रखे थे मैं ने घर के
तो खोल आया बग़ैर पूछे किवाड़ ऐसे

जो मेरी रूह-ओ-बदन के टाँके उधेड़ डाले
तो मेरी नज़रों पे अपनी नज़रों को गाड़ ऐसे

समझ न पाया कि तोड़ देता या साथ रखता
कि इस तअ'ल्लुक़ में आ गई थी दराड़ ऐसे

ऐ इश्क़ रह जाऊँ फड़फड़ा के यूँ कर दे बे-बस
सो मेरी गर्दन में अपने दाँतों को गाड़ ऐसे

तो मेरी आदत से मेरी फ़ितरत ही हो चला है
अभी भी कहता हूँ मुझ को तू न बिगाड़ ऐसे

ये मेरे बाज़ू ही जंग का फ़ैसला करेंगे
पकड़ ले तलवार और मुझ को पछाड़ ऐसे

तुम्हारे ग़म का पहाड़ टूटा तो फिर ये जाना
पहाड़ों पर ही तो टूटते हैं पहाड़ ऐसे

हज़ार मिन्नत हज़ार मिन्नत हज़ार मेहनत
तुझे मनाने को कर रहा हूँ जुगाड़ ऐसे
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tasveer teri yun hi rahe kaash jeb mein..

tasveer teri yun hi rahe kaash jeb mein
goya ki husn-e-vaadi-e-kailaash jeb mein

raaste mein mujh ko mil gaya yun hi gira-pada
main ne utha ke rakh liya aakaash jeb mein

pandrah minute se dhundh raha hai na jaane kya
dale hue hai haath ko qallaash jeb mein

aa ja ki yaar paan ke khokhe pe jam'a hain
cigarette chhupa ke haath mein aur taash jeb

sab tent aur kursiyon waale kama gaye
sha'ir ne thoons kar bhari shaabaash jeb mein

ab us gareeb chor ko bhejoge jail kyun
gurbat ki jis ne kaat li paadaash jeb mein

rakhta nahin hoon paas mein apni kabhi shanaakht
firta hai kaun le ke kabhi laash jeb mein 
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तस्वीर तेरी यूँ ही रहे काश जेब में
गोया कि हुस्न-ए-वादी-ए-कैलाश जेब में

रस्ते में मुझ को मिल गया यूँ ही गिरा-पड़ा
मैं ने उठा के रख लिया आकाश जेब में

पंद्रह मिनट से ढूँड रहा है न जाने क्या
डाले हुए है हाथ को क़ल्लाश जेब में

आ जा कि यार पान के खोखे पे जम्अ' हैं
सिगरेट छुपा के हाथ में और ताश जेब

सब टेंट और कुर्सियों वाले कमा गए
शाइ'र ने ठूँस कर भरी शाबाश जेब में

अब उस ग़रीब चोर को भेजोगे जेल क्यूँ
ग़ुर्बत की जिस ने काट ली पादाश जेब में

रखता नहीं हूँ पास में अपनी कभी शनाख़्त
फिरता है कौन ले के कभी लाश जेब में
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pyaar ki har ik rasm ki jo matrook thi main ne jaari ki..

pyaar ki har ik rasm ki jo matrook thi main ne jaari ki
ishq-labaada tan par pahna aur mohabbat taari ki

main ab shehr-e-ishq mein kuchh qaanoon banaane waala hoon
ab us us ki khair nahin hai jis jis ne gaddaari ki

pehle thodi bahut mohabbat ki ki kaisi hoti hai
par jab asli chehra dekha main ne to phir saari ki

jo bhi mud kar dekhega vo patthar ka ho jaayega
dekho dekho shehar mein aaye sannaata aur taarikee

ek janam mein main us ka tha ek janam mein vo mera
ham ne ki har baar mohabbat lekin baari baari ki

ham sa ho to saamne aaye aadil aur insaaf-pasand
dushman ko bhi khoon rulaaya yaaron se bhi yaari ki

aisa pyaar tha ham dono mein ki barson la-ilm rahe
us ne bhi kirdaar nibhaaya main ne bhi fankaari ki

baat to itni si hai waapas jaane ko main aaya tha
saans uthaai umr sameti chalne ki tayyaari ki 
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प्यार की हर इक रस्म कि जो मतरूक थी मैं ने जारी की
इश्क़-लबादा तन पर पहना और मोहब्बत तारी की

मैं अब शहर-ए-इश्क़ में कुछ क़ानून बनाने वाला हूँ
अब उस उस की ख़ैर नहीं है जिस जिस ने ग़द्दारी की

पहले थोड़ी बहुत मोहब्बत की कि कैसी होती है
पर जब असली चेहरा देखा मैं ने तो फिर सारी की

जो भी मुड़ कर देखेगा वो पत्थर का हो जाएगा
देखो देखो शहर में आए सन्नाटा और तारीकी

एक जन्म में मैं उस का था एक जन्म में वो मेरा
हम ने की हर बार मोहब्बत लेकिन बारी बारी की

हम सा हो तो सामने आए आदिल और इंसाफ़-पसंद
दुश्मन को भी ख़ून रुलाया यारों से भी यारी की

ऐसा प्यार था हम दोनों में कि बरसों ला-इल्म रहे
उस ने भी किरदार निभाया मैं ने भी फ़नकारी की

बात तो इतनी सी है वापस जाने को मैं आया था
साँस उठाई उम्र समेटी चलने की तय्यारी की
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husn tera ghuroor mera tha..

husn tera ghuroor mera tha
sach to ye hai qusoor mera tha

raat yun tere khwaab se guzra
ki badan choor choor mera tha

aaine mein jamaal tha tera
tere chehre pe noor mera tha

aankh ki har zabaan par kal tak
bolne mein uboor mera tha

us ki baaton mein naam mera na tha
zikr bainssootoor mera tha

ek hi waqt mein junoon-o-khirad
la-shu'ur-o-shu'ur mera tha 
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हुस्न तेरा ग़ुरूर मेरा था
सच तो ये है क़ुसूर मेरा था

रात यूँ तेरे ख़्वाब से गुज़रा
कि बदन चूर चूर मेरा था

आइने में जमाल था तेरा
तेरे चेहरे पे नूर मेरा था

आँख की हर ज़बान पर कल तक
बोलने में उबूर मेरा था

उस की बातों में नाम मेरा न था
ज़िक्र बैनस्सुतूर मेरा था

एक ही वक़्त में जुनून-ओ-ख़िरद
ला-शुऊ'र-ओ-शुऊ'र मेरा था

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ye mera aks jo thehra tiri nigaah mein hai..

ye mera aks jo thehra tiri nigaah mein hai
nahin hai pyaar to phir kya tiri salaah mein hai

nahin hai waqt ki jurat ki choo sake us ko
ye tera husn ki jab tak meri panaah mein hai

nazar jo tujh pe ruke to zara nahin sunti
kahaan savaab mein hai ye kahaan gunaah mein hai

zabaan sanbhaal ke ab naam le raqeeb us ka
jo tera pyaar tha vo ab mere nikaah mein hai 
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ये मेरा अक्स जो ठहरा तिरी निगाह में है
नहीं है प्यार तो फिर क्या तिरी सलाह में है

नहीं है वक़्त की जुरअत कि छू सके उस को
ये तेरा हुस्न कि जब तक मिरी पनाह में है

नज़र जो तुझ पे रुके तो ज़रा नहीं सुनती
कहाँ सवाब में है ये कहाँ गुनाह में है

ज़बाँ सँभाल के अब नाम ले रक़ीब उस का
जो तेरा प्यार था वो अब मिरे निकाह में है
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zaroor us ki nazar mujh pe hi gadi hui hai..

zaroor us ki nazar mujh pe hi gadi hui hai
main jim se aa raha hoon aasteen chadhi hui hai

mujhe zara sa bura kah diya to is se kya
vo itni baat pe maa baap se ladi hui hai

use zaroorat-e-parda zara ziyaada hai
ye vo bhi jaanti hai jab se vo badi hui hai

vo meri di hui nathuni pahan ke ghoomti hai
tabhi vo in dinon kuchh aur nak-chadhi hui hai

muaahidon mein lachak bhi zaroori hoti hai
par is ki sooi wahin ki wahin adi hui hai

vo taai baandhti hai aur kheench leti hai
ye kaise waqt use pyaar ki padi hui hai

khuda ke vaaste likhte raho ki us ne ameer
har ik ghazal tiri sau sau dafa padhi hui hai 
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ज़रूर उस की नज़र मुझ पे ही गड़ी हुई है
मैं जिम से आ रहा हूँ आस्तीं चढ़ी हुई है

मुझे ज़रा सा बुरा कह दिया तो इस से क्या
वो इतनी बात पे माँ बाप से लड़ी हुई है

उसे ज़रूरत-ए-पर्दा ज़रा ज़ियादा है
ये वो भी जानती है जब से वो बड़ी हुई है

वो मेरी दी हुई नथुनी पहन के घूमती है
तभी वो इन दिनों कुछ और नक-चढ़ी हुई है

मुआहिदों में लचक भी ज़रूरी होती है
पर इस की सूई वहीं की वहीं अड़ी हुई है

वो टाई बाँधती है और खींच लेती है
ये कैसे वक़्त उसे प्यार की पड़ी हुई है

ख़ुदा के वास्ते लिखते रहो कि उस ने 'अमीर'
हर इक ग़ज़ल तिरी सौ सौ दफ़ा पढ़ी हुई है
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vo bhi ab yaad karein kis ko manaane nikle..

vo bhi ab yaad karein kis ko manaane nikle
ham bhi yoonhi to na maane the siyaane nikle

main ne mehsoos kiya jab bhi ki ghar se nikla
aur bhi log kai kar ke bahaane nikle

aaj ki baat pe main hansta raha hansta raha
chot taaza jo lagi dard purane nikle

ek shatranj-numa zindagi ke khaanon mein
aise ham shah jo pyaaron ke nishaane nikle

tu ne jis shakhs ko maara tha samajh kar kaafir
us ki mutthi se to tasbeeh ke daane nikle

kaash ho aaj kuchh aisa vo mera maalik-e-dil
mere dil se hi mere dil ko churaane nikle

aap ka dard in aankhon se chhalakta kaise
mere aansu to piyaazon ke bahaane nikle

main samajhta tha tujhe ek zamaane ka magar
tere andar to kai aur zamaane nikle

laapata aaj talak qafile saare hain ameer
jo tire pyaar mein kho kar tujhe paane nikle 
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वो भी अब याद करें किस को मनाने निकले
हम भी यूँही तो न माने थे सियाने निकले

मैं ने महसूस किया जब भी कि घर से निकला
और भी लोग कई कर के बहाने निकले

आज की बात पे मैं हँसता रहा हँसता रहा
चोट ताज़ा जो लगी दर्द पुराने निकले

एक शतरंज-नुमा ज़िंदगी के ख़ानों में
ऐसे हम शाह जो प्यादों के निशाने निकले

तू ने जिस शख़्स को मारा था समझ कर काफ़िर
उस की मुट्ठी से तो तस्बीह के दाने निकले

काश हो आज कुछ ऐसा वो मिरा मालिक-ए-दिल
मेरे दिल से ही मिरे दिल को चुराने निकले

आप का दर्द इन आँखों से छलकता कैसे
मेरे आँसू तो पियाज़ों के बहाने निकले

मैं समझता था तुझे एक ज़माने का मगर
तेरे अंदर तो कई और ज़माने निकले

लापता आज तलक क़ाफ़िले सारे हैं 'अमीर'
जो तिरे प्यार में खो कर तुझे पाने निकले

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vo roothi roothi ye kah rahi thi qareeb aao mujhe manao..

vo roothi roothi ye kah rahi thi qareeb aao mujhe manao
ho mard to aage badh ke mujh ko gale lagao mujhe manao

main kal se naaraz hoon qasam se aur ek kone mein ja padi hoon
haan main galat hoon dikhaao phir bhi tumhi jhukao mujhe manao

tumhaare nakhrin se apni an-ban to badhti jaayegi sun rahe ho
tum ek sorry se khatm kar sakte ho tanaav mujhe manao

tumhein pata bhi hai kis sakhi se tumhaara paala pada hua hai
mua'af kar doongi tum ko fauran hi aao aao mujhe manao

mujhe yun apne se door kar ke na khush rahoge ghuroor kar ke
so mujh se kuchh faasle pe rakho ye rakh-rakhaav mujhe manao

mujhe batao ki meri naarazgi se tum ko hai farq koi
main kha rahi hoon na-jaane kab se hi pech-taav mujhe manao

mujhe pata hai mujhe manaane ko tum bhi bechain ho rahe ho
to kya zaroori hai tum bhi itne bharam dikhaao mujhe manao

mera iraada to pehle hi se hai maan jaane ka sach bataaun
tum apne bhar bhi tamaam harbon ko aazmao mujhe manao

bahut bure ho meri dikhaave ki neend ko bhi tum asl samjhe
kahi se seekho piyaar karna mujhe jagao mujhe manao

tum apne andaaz mein ki jaise chadha ke rakhte ho aasteinen
to main tumhaara radif waali ghazal sunaao mujhe manao

khilaf-e-ma'amool mood achha hai aaj mera main kah rahi hoon
ki phir kabhi mujh se karte rahna ye bhaav-taav mujhe manao

main parle darje ka hat-dharam tha ki phir bhi us ko manaa na paaya
so ab bhi kaanon mein goonjtaa hai mujhe manao mujhe manao 
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वो रूठी रूठी ये कह रही थी क़रीब आओ मुझे मनाओ
हो मर्द तो आगे बढ़ के मुझ को गले लगाओ मुझे मनाओ

मैं कल से नाराज़ हूँ क़सम से और एक कोने में जा पड़ी हूँ
हाँ मैं ग़लत हूँ दिखाओ फिर भी तुम्ही झुकाओ मुझे मनाओ

तुम्हारे नख़रों से अपनी अन-बन तो बढ़ती जाएगी सुन रहे हो
तुम एक सॉरी से ख़त्म कर सकते हो तनाव मुझे मनाओ

तुम्हें पता भी है किस सखी से तुम्हारा पाला पड़ा हुआ है
मुआ'फ़ कर दूँगी तुम को फ़ौरन ही आओ आओ मुझे मनाओ

मुझे यूँ अपने से दूर कर के न ख़ुश रहोगे ग़ुरूर कर के
सो मुझ से कुछ फ़ासले पे रक्खो ये रख-रखाव मुझे मनाओ

मुझे बताओ कि मेरी नाराज़गी से तुम को है फ़र्क़ कोई
मैं खा रही हूँ न-जाने कब से ही पेच-ताव मुझे मनाओ

मुझे पता है मुझे मनाने को तुम भी बेचैन हो रहे हो
तो क्या ज़रूरी है तुम भी इतने भरम दिखाओ मुझे मनाओ

मिरा इरादा तो पहले ही से है मान जाने का सच बताऊँ
तुम अपने भर भी तमाम हर्बों को आज़माओ मुझे मनाओ

बहुत बुरे हो मिरी दिखावे की नींद को भी तुम अस्ल समझे
कहीं से सीखो पियार करना मुझे जगाओ मुझे मनाओ

तुम अपने अंदाज़ में कि जैसे चढ़ा के रखते हो आस्तीनें
तो मैं ''तुम्हारा'' रदीफ़ वाली ग़ज़ल सुनाओ मुझे मनाओ

ख़िलाफ़-ए-मा'मूल मूड अच्छा है आज मेरा मैं कह रही हूँ
कि फिर कभी मुझ से करते रहना ये भाव-ताव मुझे मनाओ

मैं परले दर्जे का हट-धरम था कि फिर भी उस को मना न पाया
सो अब भी कानों में गूँजता है मुझे मनाओ मुझे मनाओ

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kya dukh hai samundar ko bata bhi nahin sakta..

kya dukh hai samundar ko bata bhi nahin sakta
aansu Ki tarah aankh tak aa bhi nahin sakta

tu chhoḌ rahā hai to ḳhata is men tiri kya
har shaḳhs mira saath nibha bhi nahin sakta

pyase rahe jaate hain zamane ke savalat
kis ke liye zinda huun bata bhi nahin sakta

ghar DhunD rahe hain mira raton ke pujari
main huun ki charaghon ko bujha bhi nahin sakta

vaise to ik aansu hi baha kar mujhe le jaae
aise koi tufan hila bhi nahin sakta
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क्या दुख है समंदर को बता भी नहीं सकता
आंसू की तरह आंख तक आ भी नहीं सकता

तू छोड़ रहा है तो ख़ता इसमें तेरी क्या
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

प्यासी रह जाते हैं ज़माने के सवालात
किस के लिए ज़िंदा हूं बता भी नहीं सकता

घर ढूंढ़ रहे हैं मेरे रातों के पुजारी
मैं हूं कि चरागों को बुझा भी नहीं सकता

वैसे तो एक आंसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

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dost ke naam khat..

dost ke naam khat
tumne haal poocha hai
haalat-e-mohabbat mein
haal ka bataana kya
dil sisak raha ho to
zakham ka chhupaana kya
tum jo pooch baithe ho
kuchh to ab bataana hai
baat ek bahaana hai
tumne haal poocha hai
ik diya jalata hoon
theek hai bataata hoon
roz uski yaadon mein
door tak chale jaana
jo bhi tha kaha usne
apne saath dohraana
saans jab ruke to phir
apni marti aankhon mein
uski shakl le aana
aur zindagi paana
roz aise hota hai
kuchh purane message hain
jinmein uski baatein hain
kuchh tabeel subhe hain
kuchh qadeem raatein hain
maine uski baaton mein
zindagi guzaari hai
zindagi mitaane ka
hausla nahin mujhmein
ek ek lafz uska
saans mein pirooya hai
rooh mein samoya hai
uske jitne message hai
roz khol leta hoon
usse kah nahin paata
khud se bol leta hoon
uske pej par ja kar
roz dekhta hoon main
aaj kitne logon ne
uski pairavi ki hai
aur sochta hoon main
ye naseeb waale hain
usko dekh sakte hain
usse baat karte hain
ye ijaazaton waale
mujhse kitne behtar hain
main to daagh tha koi
jo mita diya usne
gar mita diya usne
theek hi kiya usne
tumne haal poocha tha
lo bata diya maine
jo bhi kuchh bataaya hai
usko mat bata dena
padh ke ro paro to phir
in tamaam lafzon ko
bas gale laga lena
vo meri mohabbat hai
aur sada rahegi vo
jab nahin rahoonga to
ek din kahegi vo
tum ali faqat tum the
jisne mujhko chaaha tha
jisne mere maathe ko
choom kar bataaya tha
tum dua ka chehra ho
tum haya ka pahra ho
main to tab nahin hoonga
par meri sabhi nazmein
uski baat sun lenge
tum bhi muskuraa dena
phir bahut mohabbat se
usko sab bata dena
uske narm haathon mein
mera khat thama dena
lo ye khat tumhaara hai
aur uski jaanib se
vo jo bas tumhaara tha
aaj bhi tumhaara hai
-----------------------
"दोस्त के नाम ख़त"
तुमने हाल पूछा है
हालत-ए-मोहब्बत में
हाल का बताना क्या!
दिल सिसक रहा हो तो
ज़ख़्म का छुपाना क्या!
तुम जो पूछ बैठे हो
कुछ तो अब बताना है
बात एक बहाना है
तुमने हाल पूछा है
इक दिया जलाता हूँ
ठीक है बताता हूँ
रोज़ उसकी यादों में
दूर तक चले जाना
जो भी था कहा उसने
अपने साथ दोहराना
साँस जब रुके तो फिर
अपनी मरती आँखों में
उसकी शक्ल ले आना
और ज़िन्दगी पाना
रोज़ ऐसे होता है
कुछ पुराने मैसेज हैं
जिनमें उसकी बातें हैं
कुछ तबील सुबहे हैं
कुछ क़दीम रातें हैं
मैंने उसकी बातों में
ज़िन्दगी गुज़ारी है
ज़िन्दगी मिटाने का
हौसला नहीं मुझमें
एक एक लफ़्ज़ उसका
साँस में पिरोया है,
रूह में समोया है
उसके जितने मैसेज है
रोज़ खोल लेता हूँ
उससे कह नहीं पाता
ख़ुद से बोल लेता हूँ
उसके पेज पर जा कर
रोज़ देखता हूँ मैं
आज कितने लोगों ने
उसकी पैरवी की है
और सोचता हूँ मैं
ये नसीब वाले हैं
उसको देख सकते हैं
उससे बात करते हैं
ये इजाज़तों वाले
मुझसे कितने बेहतर हैं
मैं तो दाग़ था कोई
जो मिटा दिया उसने
गर मिटा दिया उसने
ठीक ही किया उसने,
तुमने हाल पूछा था
लो बता दिया मैंने
जो भी कुछ बताया है
उसको मत बता देना
पढ़ के रो पड़ो तो फिर
इन तमाम लफ़्ज़ों को
बस गले लगा लेना,
वो मेरी मोहब्बत है
और सदा रहेगी वो
जब नहीं रहूँगा तो
एक दिन कहेगी वो
तुम अली फ़क़त तुम थे
जिसने मुझको चाहा था
जिसने मेरे माथे को
चूम कर बताया था
तुम दुआ का चेहरा हो
तुम हया का पहरा हो
मैं तो तब नहीं हूँगा
पर मेरी सभी नज़्में
उसकी बात सुन लेंगी
तुम भी मुस्कुरा देना
फिर बहुत मोहब्बत से
उसको सब बता देना
उसके नर्म हाथों में
मेरा ख़त थमा देना
लो ये ख़त तुम्हारा है
और उसकी जानिब से
वो जो बस तुम्हारा था
आज भी तुम्हारा है
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shaahsaazi mein riayaat bhi nahi karte ho..

shaahsaazi mein riayaat bhi nahi karte ho
saamne aake hukoomat bhi nahi karte ho

tumse kya baat kare kaun kahaan qatl hua
tum to is zulm pe hairat bhi nahi karte ho

ab mere haal pe kyun tumko pareshaani hai
ab to tum mujhse muhabbat bhi nahi karte ho

pyaar karne ki sanad kaise tumhe jaari karoon
tum abhi theek se nafrat bhi nahi karte ho

mashvare hans ke diya karte the deewaanon ko
kya hua ab to naseehat bhi nahi karte ho
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शाहसाज़ी में रियायत भी नही करते हो
सामने आके हुकूमत भी नही करते हो

तुमसे क्या बात करे कौन कहाँ क़त्ल हुआ
तुम तो इस ज़ुल्म पे हैरत भी नही करते हो

अब मेरे हाल पे क्यों तुमको परेशानी है
अब तो तुम मुझसे मुहब्बत भी नही करते हो

प्यार करने की सनद कैसे तुम्हे जारी करूँ
तुम अभी ठीक से नफ़रत भी नही करते हो

मश्वरे हँस के दिया करते थे दीवानों को
क्या हुआ अब तो नसीहत भी नही करते हो
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tum jo kahte ho sunoonga jo pukaaroge mujhe..

tum jo kahte ho sunoonga jo pukaaroge mujhe
jaanta hoon ki tum hi gher ke maaroge mujhe

main bhi ik shakhs pe ik shart laga baitha tha
tum bhi ik roz isee khel mein haaroge mujhe

eed ke din ki tarah tumne mujhe zaaya kiya
main samajhta tha muhabbat se guzaaroge mujhe 
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तुम जो कहते हो सुनूँगा जो पुकारोगे मुझे
जानता हूँ कि तुम ही घेर के मारोगे मुझे

मैं भी इक शख़्स पे इक शर्त लगा बैठा था
तुम भी इक रोज़ इसी खेल में हारोगे मुझे

ईद के दिन की तरह तुमने मुझे ज़ाया किया
मैं समझता था मुहब्बत से गुज़ारोगे मुझे
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jis tarah waqt guzarne ke liye hota hai..

jis tarah waqt guzarne ke liye hota hai
aadmi shakl pe marne ke liye hota hai

teri aankhon se mulaqaat hui tab ye khula
doobne waala ubharne ke liye hota hai

ishq kyun peeche hata baat nibhaane se miyaan
husn to khair mukarne ke liye hota hai

aankh hoti hai kisi raah ko takne ke liye
dil kisi paanv pe dharne ke liye hota hai

dil ki dilli ka chunaav hi alag hai sahab
jab bhi hota hai ye harne ke liye hota hai

koi basti ho ujhadne ke liye basti hai
koi mazma ho bikharna ke liye hota hai 
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जिस तरह वक़्त गुज़रने के लिए होता है
आदमी शक्ल पे मरने के लिए होता है

तेरी आँखों से मुलाक़ात हुई तब ये खुला
डूबने वाला उभरने के लिए होता है

इश्क़ क्यूँ पीछे हटा बात निभाने से मियाँ
हुस्न तो ख़ैर मुकरने के लिए होता है

आँख होती है किसी राह को तकने के लिए
दिल किसी पाँव पे धरने के लिए होता है

दिल की दिल्ली का चुनाव ही अलग है साहब
जब भी होता है ये हरने के लिए होता है

कोई बस्ती हो उजड़ने के लिए बसती है
कोई मज़मा हो बिखरने के लिए होता है

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paagal kaise ho jaate hain..

paagal kaise ho jaate hain
dekho aise ho jaate hain

khwaabon ka dhanda karti ho
kitne paise ho jaate hain

duniya sa hona mushkil hai
tere jaise ho jaate hain

mere kaam khuda karta hai
tere vaise ho jaate hain
-----------------------------
पागल कैसे हो जाते हैं
देखो ऐसे हो जाते हैं

ख़्वाबों का धंधा करती हो
कितने पैसे हो जाते हैं

दुनिया सा होना मुश्किल है
तेरे जैसे हो जाते हैं

मेरे काम ख़ुदा करता है
तेरे वैसे हो जाते हैं
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Isee liye to mujhe sunke taish aaya hai..

isee liye to mujhe sunke taish aaya hai
tumhaara haal kisi aur ne bataaya hai

mujhe bata mera bhaai shaheed kaise hua
tu uske saath tha tu kaise bach ke aaya hai

abhi ye zakham kisi par nahin khula mera
abhi ye sher kisi ko nahin sunaaya hai 
-----------------------------
इसी लिए तो मुझे सुनके तैश आया है
तुम्हारा हाल किसी और ने बताया है

मुझे बता मेरा भाई शहीद कैसे हुआ
तू उसके साथ था तू कैसे बच के आया है

अभी ये ज़ख़्म किसी पर नहीं खुला मेरा
अभी ये शेर किसी को नहीं सुनाया है

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Naya zaayqa hai maza mukhtalif hai..

naya zaayqa hai maza mukhtalif hai
ghazal chakh ke dekh is dafa mukhtalif hai

suno tumne duniya firee hai parindon
ye tanhaai kya har jagah mukhtalif hai

sada kaam kaise karegi wahan par
gali to wahi hai gala mukhtalif hai

hamaari tumhaari saza ik nahin kyun
hamaari tumhaari khata mukhtalif hai

tum abtak munaafiq dilon mein rahi ho
mere dil kii aab-o-hawa mukhtalif hai

vo rote hue hans pada aur bola
khuda aadmi se bada mukhtalif hai
------------------------------
नया ज़ायक़ा है मज़ा मुख़्तलिफ़ है
ग़ज़ल चख के देख इस दफ़ा मुख़्तलिफ़ है

सुनो तुमने दुनिया फिरी है परिंदों
ये तन्हाई क्या हर जगह मुख़्तलिफ़ है

सदा काम कैसे करेगी वहाँ पर
गली तो वही है गला मुख़्तलिफ़ है

हमारी तुम्हारी सज़ा इक नहीं क्यों
हमारी तुम्हारी ख़ता मुख़्तलिफ़ है

तुम अबतक मुनाफ़िक़ दिलों में रही हो
मिरे दिल की आब-ओ-हवा मुख़्तलिफ़ है

वो रोते हुए हँस पड़ा और बोला
ख़ुदा आदमी से बड़ा मुख़्तलिफ़ है

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Barson puraana dost mila jaise gair ho..

barson puraana dost mila jaise gair ho
dekha ruka jhijhak ke kaha tum umair ho

milte hain mushkilon se yahan ham-khayaal log
tere tamaam chaahne waalon ki khair ho

kamre mein cigaretteon ka dhuaan aur teri mahak
jaise shadeed dhundh mein baagon ki sair ho

ham mutmain bahut hain agar khush nahin bhi hain
tum khush ho kya hua jo hamaare baghair ho

pairo'n mein uske sar ko dharen iltijaa karein
ik iltijaa ki jiska na sar ho na pair ho
-------------------------------------
बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो

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tum is kharaabe mein chaar chhe din tahal gai ho..

tum is kharaabe mein chaar chhe din tahal gai ho
so ain-mumkin hai dil ki haalat badal gai ho

tamaam din is dua mein katata hai kuchh dinon se
main jaaun kamre mein to udaasi nikal gai ho

kisi ke aane pe aise halchal hui hai mujh mein
khamosh jungle mein jaise bandooq chal gai ho

ye na ho gar main hiloon to girne lage burada
dukhon ki deemak badan ki lakdi nigal gai ho

ye chhote chhote kai hawadis jo ho rahe hain
kisi ke sar se badi museebat na tal gai ho

hamaara malba hamaare qadmon mein aa gira hai
plate mein jaise mom-batti pighal gai ho 
--------------------------------------
तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो
सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो

तमाम दिन इस दुआ में कटता है कुछ दिनों से
मैं जाऊँ कमरे में तो उदासी निकल गई हो

किसी के आने पे ऐसे हलचल हुई है मुझ में
ख़मोश जंगल में जैसे बंदूक़ चल गई हो

ये न हो गर मैं हिलूँ तो गिरने लगे बुरादा
दुखों की दीमक बदन की लकड़ी निगल गई हो

ये छोटे छोटे कई हवादिस जो हो रहे हैं
किसी के सर से बड़ी मुसीबत न टल गई हो

हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है
प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई हो

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mujhe pehle to lagta tha ki zaati mas'ala hai..

mujhe pehle to lagta tha ki zaati mas'ala hai
main phir samjha mohabbat kaayenaati mas'ala hai

parinde qaid hain tum chahchahaahat chahte ho
tumhein to achcha-khaasa nafsiyaati mas'ala hai

hamein thoda junoon darkaar hai thoda sukoon bhi
hamaari nasl mein ik jeeniyati mas'ala hai

badi mushkil hai bante silsiloon mein ye tavakkuf
hamaare raabton ki be-sabaati mas'ala hai

vo kahte hain ki jo hoga vo aage ja ke hoga
to ye duniya bhi koi tajrabaati mas'ala hai

hamaara vasl bhi tha ittifaqi mas'ala tha
hamaara hijr bhi hai haadsaati mas'ala hai 
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मुझे पहले तो लगता था कि ज़ाती मसअला है
मैं फिर समझा मोहब्बत काएनाती मसअला है

परिंदे क़ैद हैं तुम चहचहाहट चाहते हो
तुम्हें तो अच्छा-ख़ासा नफ़सियाती मसअला है

हमें थोड़ा जुनूँ दरकार है थोड़ा सुकूँ भी
हमारी नस्ल में इक जीनियाती मसअला है

बड़ी मुश्किल है बनते सिलसिलों में ये तवक़्क़ुफ़
हमारे राब्तों की बे-सबाती मसअला है

वो कहते हैं कि जो होगा वो आगे जा के होगा
तो ये दुनिया भी कोई तजरबाती मसअला है

हमारा वस्ल भी था इत्तिफ़ाक़ी मसअला था
हमारा हिज्र भी है हादसाती मसअला है
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ik din zabaan sukoot ki poori banaoonga..

ik din zabaan sukoot ki poori banaoonga
main guftugoo ko ghair-zaroori banaoonga

tasveer mein banaoonga dono ke haath aur
dono mein ek haath ki doori banaoonga

muddat samet jumla zawaabit hon tay-shuda
ya'ni ta'alluqaat uboori banaoonga

tujh ko khabar na hogi ki main aas-paas hoon
is baar haaziri ko huzoori banaoonga

rangon pe ikhtiyaar agar mil saka kabhi
teri siyaah putliyaan bhuri banaoonga

jaari hai apni zaat pe tahqeeq aaj-kal
main bhi khala pe ek theory banaoonga

main chaah kar vo shakl mukammal na kar saka
us ko bhi lag raha tha adhuri banaoonga
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इक दिन ज़बाँ सुकूत की पूरी बनाऊँगा
मैं गुफ़्तुगू को ग़ैर-ज़रूरी बनाऊँगा

तस्वीर में बनाऊँगा दोनों के हाथ और
दोनों में एक हाथ की दूरी बनाऊँगा

मुद्दत समेत जुमला ज़वाबित हों तय-शुदा
या'नी तअ'ल्लुक़ात उबूरी बनाऊँगा

तुझ को ख़बर न होगी कि मैं आस-पास हूँ
इस बार हाज़िरी को हुज़ूरी बनाऊँगा

रंगों पे इख़्तियार अगर मिल सका कभी
तेरी सियाह पुतलियाँ भूरी बनाऊँगा

जारी है अपनी ज़ात पे तहक़ीक़ आज-कल
मैं भी ख़ला पे एक थ्योरी बनाऊँगा

मैं चाह कर वो शक्ल मुकम्मल न कर सका
उस को भी लग रहा था अधूरी बनाऊँगा

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Meri bhanwon ke ain darmiyaan ban gaya..

meri bhanwon ke ain darmiyaan ban gaya
jabeen pe intizaar ka nishaan ban gaya

suna hua tha hijr mustaqil tanaav hai
wahi hua mera badan kamaan ban gaya

muheeb chup mein aahaton ka waahima hawa
main sar se paanv tak tamaam kaan ban gaya

hawa se raushni se raabta nahin raha
jidhar theen khidkiyaan udhar makaan ban gaya

shuruat din se ghar main sun raha tha is liye
sukoot meri maadri zabaan ban gaya

aur ek din khinchi hui lakeer mit gai
gumaan yaqeen bana yaqeen gumaan ban gaya

kai khafif gham mile malaal ban gaye
zara zara si katarno se thaan ban gaya

mere badon ne aadatan chuna tha ek dasht
vo bas gaya raheem yaar-khan ban gaya
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मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया
जबीं पे इंतिज़ार का निशान बन गया

सुना हुआ था हिज्र मुस्तक़िल तनाव है
वही हुआ मिरा बदन कमान बन गया

मुहीब चुप में आहटों का वाहिमा हवा
मैं सर से पाँव तक तमाम कान बन गया

हवा से रौशनी से राब्ता नहीं रहा
जिधर थीं खिड़कियाँ उधर मकान बन गया

शुरूअ' दिन से घर मैं सुन रहा था इस लिए
सुकूत मेरी मादरी ज़बान बन गया

और एक दिन खिंची हुई लकीर मिट गई
गुमाँ यक़ीं बना यक़ीं गुमान बन गया

कई ख़फ़ीफ़ ग़म मिले मलाल बन गए
ज़रा ज़रा सी कतरनों से थान बन गया

मिरे बड़ों ने आदतन चुना था एक दश्त
वो बस गया 'रहीम' यार-ख़ान बन गया

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Kaha jo maine galat kar rahi ho chun ke mujhe..

kaha jo maine galat kar rahi ho chun ke mujhe
achaanak usne kaha chup ye baat sun ke mujhe

koi junoon hawa mein uda de mera vujood
koi asa ho jo rooi ki tarah dhunke mujhe

kisi ne kah ke jab ik haan basaaya dil ka jahaan
qasam khuda ki samajh aaye maani kun ke mujhe

udhed de gar iraada nahin pahanne ka
ye kya ki ek taraf rakh diya hai bun ke mujhe

shajar se kaat liya hai to apni mez bana
agar nahin to phir aane de kaam ghun ke mujhe

kal ek rail ki chik chik se rukn yaad aaye
mafailun failaatun mafailun ke mujhe

tumhaare lautne tak kuchh bura na ho gaya ho
na saath chhodna mujh jaise bad-shugun ke mujhe

faqeer log samajh aayein ya na aayein umair
koi samajhta nahin hai siwaye un ke mujhe
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कहा जो मैंने ग़लत कर रही हो चुन के मुझे
अचानक उसने कहा चुप ये बात सुन के मुझे

कोई जुनून हवा में उड़ा दे मेरा वजूद
कोई असा हो जो रूई की तरह धुनके मुझे

किसी ने कह के जब इक हाँ बसाया दिल का जहाँ
क़सम ख़ुदा की समझ आए मआनी कुन के मुझे

उधेड़ दे गर इरादा नहीं पहनने का
ये क्या कि एक तरफ रख दिया है बुन के मुझे

शजर से काट लिया है तो अपनी मेज़ बना
अगर नहीं तो फिर आने दे काम घुन के मुझे

कल एक रेल की छिक छिक से रुक्न याद आए
मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन के मुझे

तुम्हारे लौटने तक कुछ बुरा न हो गया हो
न साथ छोड़ना मुझ जैसे बद-शगुन के मुझे

फ़क़ीर लोग समझ आएँ या न आएँ 'उमैर'
कोई समझता नहीं है सिवाय उन के मुझे

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Bas ik usi pe to poori tarah ayaan hoon main..

bas ik usi pe to poori tarah ayaan hoon main
vo kah raha hai mujhe raigaan to haan hoon main

jise dikhaai doon meri taraf ishaara kare
mujhe dikhaai nahin de raha kahaan hoon main

idhar-udhar se nami ka risaav rehta hai
sadak se neeche banaya gaya makaan hoon main

kisi ne poocha ki tum kaun ho to bhool gaya
abhi kisi ne bataaya to tha falan hoon main

main khud ko tujh se mitaaounga ehtiyaat ke saath
tu bas nishaan laga de jahaan jahaan hoon main

main kis se poochhun ye rasta durust hai ki galat
jahaan se koi guzarta nahin vahaan hoon main
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बस इक उसी पे तो पूरी तरह अयाँ हूँ मैं
वो कह रहा है मुझे राइगाँ, तो हाँ हूँ मैं।

जिसे दिखाऊँ, मेरी तरफ़ इशारा करे,
मुझे दिखाई नहीं दे रहा, कहाँ हूँ मैं।

इधर-उधर से नमी का रिसाव रहता है,
सड़क से नीचे बनाया गया मकान हूँ मैं।

किसी ने पूछा कि तुम कौन हो, तो भूल गया,
अभी किसी ने बताया तो था, फ़लाँ हूँ मैं।

मैं ख़ुद को तुझसे मिटाऊँगा एहतियात के साथ,
तू बस निशान लगा दे जहाँ-जहाँ हूँ मैं।

मैं किससे पूछूँ ये रास्ता दुरुस्त है कि ग़लत,
जहाँ से कोई गुज़रता नहीं, वहाँ हूँ मैं।

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vo munh lagata hai jab koi kaam hota hai..

vo munh lagata hai jab koi kaam hota hai
jo uska hota hai samjho ghulaam hota hai

kisi ka ho ke dobaara na aana meri taraf
mohabbaton mein halaala haraam hota hai

ise bhi ginte hain ham log ahl-e-khaana mein
hamaare yaa to shajar ka bhi naam hota hai

tujh aise shakhs ke hote hain khaas dost bahut
tujh aisa shakhs bahut jald aam hota hai

kabhi lagi hai tumhein koi shaam aakhiri shaam
hamaare saath ye har ek shaam hota hai 
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वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है

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Yaad tab karte ho karne ko na ho jab kuchh bhi..

yaad tab karte ho karne ko na ho jab kuchh bhi
aur kahte ho tumhein ishq hai matlab kuchh bhi

ab jo aa aa ke bataate ho vo shakhs aisa tha
jab mere saath tha vo kyun na kaha tab kuchh bhi

waqfe-waqfe se mujhe dekhne aate rahna
hijr ki shab hai so ho saka hai is shab kuchh bhi
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याद तब करते हो करने को न हो जब कुछ भी
और कहते हो तुम्हें इश्क़ है मतलब कुछ भी

अब जो आ आ के बताते हो वो शख़्स ऐसा था
जब मेरे साथ था वो क्यूँ न कहा तब कुछ भी

वक्फ़े-वक्फ़े से मुझे देखने आते रहना
हिज्र की शब है सो हो सकता है इस शब कुछ भी

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ye saath aath padosi kahaan se aaye mere..

ye saath aath padosi kahaan se aaye mere
tumhaare dil mein to koi na tha sivaae mere

kisi ne paas bithaaya bas aage yaad nahin
mujhe to dost wahan se utha ke laaye mere

ye soch kar na kiye apne dard uske supurd
vo laalchi hai asaase na bech khaaye mere

idhar kidhar tu naya hai yahan ki paagal hai
kisi ne kya tujhe qisse nahin sunaaye mere

vo aazmaaye mere dost ko zaroor magar
use kaho ki tarike na aazmaaye mere
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ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे
तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मेरे

किसी ने पास बिठाया बस आगे याद नहीं
मुझे तो दोस्त वहाँ से उठा के लाए मेरे

ये सोच कर न किए अपने दर्द उसके सुपुर्द
वो लालची है असासे न बेच खाए मेरे

इधर किधर तू नया है यहाँ कि पागल है
किसी ने क्या तुझे क़िस्से नहीं सुनाए मेरे

वो आज़माए मेरे दोस्त को ज़रूर मगर
उसे कहो कि तरीके न आज़माए मेरे

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mohabbat khud apne liye jism chuntee hai..

mohabbat khud apne liye jism chuntee hai
aur jaal bunati hai unke liye
jo ye aag apne seenon mein bharne ko taiyyaar hon
ghut ke jeene se bezaar hon
mohabbat kabhi ek se
ya kabhi ek sau ek logon se
hone ka ailaan ek saath karti hai
ismein kai umr jinki koi qadr nahin
mohabbat kisi bench par
ek mard aur aurat ne khaai hui ik adhuri qasam hai
mohabbat mein mar jaana marna nahin
mohabbat to khud devataaon ka punarjanam hai
mohabbat kisi rahebaan ki kalaaee se utri hui choodiyon ki khanak hai
mohabbat kisi ek murda sitaare ko khairaat mein milne waali chamak hai
mohabbat pe shak to khud apne hi hasti pe shak hai
mohabbat to mehboob ke qadd-o-kaamat se janmi hui vo alaamat hai
aur tez baarish mein sahme hue haathiyo par badi chhatriyon ki tarah hai
mohabbat sard mulkon mein waapas palatte hue apne zakhami paron se khalaon mein lahu ki lakeeren banaati hui
goonj hai moonj hai
aur dil ki zameenon ko sairaab karti hui
nahar hai qahar hai zehar hai
jo ragon mein utarkar badan ko udaasi ke us shehar mein maar-kar khair aabaad kahti hai
jo calvino ne bas zehan mein tasavvur kiya tha
jo masjid mein sipaaron ko seenon mein mahfooz karte hue
bacchiyon ko khuda se daraate hue maulvi ka makar hai mohabbat
kaleesaon mein roosi akhrot ki lakdiyon se bani kursiyon par buzurgon ki aankhon mein marne ka dar hai mohabbat
mohabbat zaheenon pe khulti hai isko kabhi kund zehnon se koi naaka nahin
mohabbat ko kya koi apna hai ya ghair hai
ismein aadmi sab kuchh lutaakar bhi kehta hai ki khair hai 
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मोहब्बत ख़ुद अपने लिए जिस्म चुनती है
और जाल बुनती है उनके लिए
जो ये आग अपने सीनों में भरने को तय्यार हों
घुट के जीने से बेज़ार हों
मोहब्बत कभी एक से
या कभी एक सौ एक लोगों से
होने का ऐलान एक साथ करती है
इसमें कई उम्र जिनकी कोई क़द्र नहीं
मोहब्बत किसी बेंच पर
एक मर्द और औरत ने खाई हुई इक अधूरी क़सम है
मोहब्बत में मर जाना मरना नहीं
मोहब्बत तो ख़ुद देवताओं का पुनर्जनम है
मोहब्बत किसी राहेबाँ की कलाई से उतरी हुई चूड़ियों की खनक है
मोहब्बत किसी एक मुर्दा सितारे को ख़ैरात में मिलने वाली चमक है
मोहब्बत पे शक तो ख़ुद अपने ही हस्ती पे शक है
मोहब्बत तो महबूब के क़द्द-ओ-कामत से जन्मी हुई वो अलामत है
और तेज़ बारिश में सहमे हुए हाथियों पर बड़ी छतरियों की तरह है
मोहब्बत सर्द मुल्कों में वापस पलटते हुए अपने ज़ख़्मी परों से ख़लाओं में लहू की लकीरें बनाती हुई
गूँज है, मूँज है
और दिल की ज़मीनों को सैराब करती हुई
नहर है, क़हर है, ज़हर है
जो रगों में उतरकर बदन को उदासी के उस शहर में मारकर ख़ैर आबाद कहती है
जो कैलोविनो ने बस ज़ेहन में तसव्वुर किया था
जो मस्जिद में सिपारों को सीनों में महफ़ूज़ करते हुए
बच्चियों को ख़ुदा से डराते हुए मौलवी का मकर है मोहब्बत
कलीसाओं में रूसी अखरोट की लकड़ियों से बनी कुर्सियों पर बुज़ुर्गों की आँखों में मरने का डर है मोहब्बत
मोहब्बत ज़हीनों पे खुलती है इसको कभी कुंद ज़ेहनों से कोई नाका नहीं
मोहब्बत को क्या कोई अपना है या ग़ैर है
इसमें आदमी सब कुछ लुटाकर भी कहता है कि ख़ैर है

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Tere saath guzre dino ki ..

नज़्म - बेबसी

तेरे साथ गुज़रे दिनों की
कोई एक धुँदली सी तस्वीर
जब भी कभी सामने आएगी
तो हमें एक दुआ थामने आएगी,
बुढ़ापे की गहराइयों में उतरते हुए
तेरी बे-लौस बाँहों के घेरे नहीं भूल पाएँगे हम
हमको तेरे तवस्सुत से हँसते हुए जो मिले थे
वो चेहरे नहीं भूल पाएँगे हम
तेरे पहलू में लेटे हुओं का अजब क़र्ब है
जो रात भर अपनी वीरान आँखों से तुझे तकते थे
और तेरे शादाब शानों पे सिर रख के
मरने की ख़्वाहिश में जीते रहे

पर तेरे लम्स का कोई इशारा मयस्सर नहीं था
मगर इस जहाँ का कोई एक हिस्सा
उन्हें तेरे बिस्तर से बेहतर नहीं था
पर मोहब्बत को इस सब से कोई इलाका नहीं था
एक दुख तो हम बहरहाल हम अपने सीनों में ले के मरेंगे
कि हमने मोहब्बत के दावे किए
तेरे माथे पर सिंदूर टाँका नहीं

इससे क्या फ़र्क पड़ता है दूर हैं तुझसे या पास हैं
हमको कोई आदमी तो नहीं, हम तो एहसास हैं
जो रहे तो हमेशा रहेंगे
और गए तो मुड़ कर वापिस नहीं आएँगे
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Nazm - Bebasi 

Tere saath guzre dino ki  
Koi ek dhundhli si tasveer,  
Jab bhi kabhi saamne aayegi,  
To humein ek dua thaamne aayegi.  

Budhape ki gehraiyon mein utarte hue,  
Teri be-laus baahon ke ghere nahi bhool payenge hum.  
Humko tere tawassut se hanste hue jo mile the,  
Woh chehre nahi bhool payenge hum.  

Tere pehlu mein lete huon ka ajab qarib hai,  
Jo raat bhar apni veeran aankhon se tujhe takte the,  
Aur tere shaadab shaano pe sir rakh ke,  
Marne ki khwahish mein jeete rahe.  

Par tere lams ka koi ishaara mayassar nahi tha,  
Magar is jahaan ka koi ek hissa,  
Unhe tere bistar se behtar nahi tha.  
Par mohabbat ko is sab se koi ilaaka nahi tha.  

Ek dukh to hum bahar-haal apne seenon mein leke marenge,  
Ki humne mohabbat ke daave kiye,  
Tere maathay par sindoor taanka nahi.  

Isse kya farq padta hai door hain tujhse ya paas hain,  
Hum koi aadmi to nahi, hum to ehsaas hain,  
Jo rahe to hamesha rahenge,  
Aur gaye to mud kar wapas nahi aayenge.  
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Ashk zaaya ho rahe the dekh kar rota na tha..

ashk zaaya ho rahe the dekh kar rota na tha
jis jagah banta tha rona main udhar rota na tha

sirf teri chup ne mere gaal geelay kar diye
main to vo hoon jo kisi ki maut par rota na tha

mujhpe kitne saanihe guzre par un aankhon ko kya
mera dukh ye hain ki mera hamsafar rota na tha

maine uske vasl mein bhi hijr kaata hai kahi
vo mere kaandhe pe rakh leta tha sar rota na tha

pyaar to pehle bhi usse tha magar itna nahin
tab main usko choo to leta tha magar rota na tha

giryaa-o-zaari ko bhi ik khaas mausam chahiye
meri aankhen dekh lo main waqt par rota na tha
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अश्क ज़ाया हो रहे थे देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था

सिर्फ़ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिए
मैं तो वो हूँ जो किसी की मौत पर रोता न था

मुझपे कितने सानिहे गुज़रे पर उन आँखों को क्या
मेरा दुख ये हैं कि मेरा हमसफ़र रोता न था

मैंने उसके वस्ल में भी हिज्र काटा है कहीं
वो मेरे काँधे पे रख लेता था सर रोता न था

प्यार तो पहले भी उससे था मगर इतना नहीं
तब मैं उसको छू तो लेता था मगर रोता न था

गिर्या-ओ-ज़ारी को भी इक ख़ास मौसम चाहिए
मेरी आँखें देख लो मैं वक़्त पर रोता न था
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Ye soch kar mera sehra mein jee nahin lagta..

ye soch kar mera sehra mein jee nahin lagta
main shaamil-e-saf-e-aawargi nahin lagta

kabhi kabhi to vo khuda ban ke saath chalta hai
kabhi kabhi to vo insaan bhi nahin lagta

yaqeen kyun nahin aata tujhe mere dil par
ye fal kaha se tujhe mausami nahin lagta

main chahta hoon vo meri jabeen pe bosa de
magar jali hui roti ko ghee nahin lagta

main uske paas kisi kaam se nahin aata
use ye kaam koi kaam hi nahin lagta
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ये सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
मैं शामिल-ए-सफ़-ए-आवारगी नहीं लगता

कभी कभी तो वो ख़ुदा बन के साथ चलता है
कभी कभी तो वो इंसान भी नहीं लगता

यक़ीन क्यूँ नहीं आता तुझे मेरे दिल पर
ये फल कहा से तुझे मौसमी नहीं लगता

मैं चाहता हूँ वो मेरी जबीं पे बोसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नहीं लगता

मैं उसके पास किसी काम से नहीं आता
उसे ये काम कोई काम ही नहीं लगता
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Gale to lagana hai usse kaho abhi lag jaaye..

gale to lagana hai usse kaho abhi lag jaaye
yahi na ho mera uske baghair jee lag jaaye

main aa raha hoon tere paas ye na ho ki kahi
tera mazaak ho aur meri zindagi lag jaaye

agar koi teri raftaar maapne nikle
dimaagh kya hai jahaanon ki raushni lag jaaye

tu haath utha nahin saka to mera haath pakad
tujhe dua nahin lagti to shayari lag jaaye

pata karunga andhere mein kis se milta hai
aur is amal mein mujhe chahe aag bhi lag jaaye

hamaare haath hi jalte rahenge cigarette se
kabhi tumhaare bhi kapdon pe istree lag jaaye

har ek baat ka matlab nikaalne waalon
tumhaare naam ke aage na matlabi lag jaaye

classroom ho ya hashr kaise mumkin hai
hamaare hote teri ghair-haaziri lag jaaye

main pichhle bees baras se teri girift mein hoon
ke itne der mein to koi aayi jee lag jaaye
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गले तो लगना है उससे कहो अभी लग जाए
यही न हो मेरा उसके बग़ैर जी लग जाए

मैं आ रहा हूँ तेरे पास ये न हो कि कहीं
तेरा मज़ाक़ हो और मेरी ज़िंदगी लग जाए

अगर कोई तेरी रफ़्तार मापने निकले
दिमाग़ क्या है जहानों की रौशनी लग जाए

तू हाथ उठा नहीं सकता तो मेरा हाथ पकड़
तुझे दुआ नहीं लगती तो शायरी लग जाए

पता करूँगा अँधेरे में किस से मिलता है
और इस अमल में मुझे चाहे आग भी लग जाए

हमारे हाथ ही जलते रहेंगे सिगरेट से?
कभी तुम्हारे भी कपड़ों पे इस्त्री लग जाए

हर एक बात का मतलब निकालने वालों
तुम्हारे नाम के आगे न मतलबी लग जाए

क्लासरूम हो या हश्र कैसे मुमकिन है
हमारे होते तेरी ग़ैर-हाज़िरी लग जाए

मैं पिछले बीस बरस से तेरी गिरफ़्त में हूँ
के इतने देर में तो कोई आई. जी. लग जाए
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mausamon ke taghayyur ko bhaanpa nahin chhatriyaan khol deen..

mausamon ke taghayyur ko bhaanpa nahin chhatriyaan khol deen
zakham bharne se pehle kisi ne meri pattiyaan khol deen

ham machheron se poocho samundar nahin hai ye ifreet hai
tum ne kya soch kar sahilon se bandhi kashtiyaan khol deen

us ne va'don ke parbat se latke huoon ko sahaara diya
us ki awaaz par koh-paimaaon ne rassiyaan khol deen

dasht-e-ghurbat mein main aur mera yaar-e-shab-zaad baaham mile
yaar ke paas jo kuchh bhi tha yaar ne gathriyaan khol deen

kuchh baras to tiri yaad ki rail dil se guzarti rahi
aur phir main ne thak haar ke ek din patriyaan khol deen

us ne seharaaon ki sair karte hue ik shajar ke tale
apni aankhon se aink utaari ki do hiraniyaan khol deen

aaj ham kar chuke ahad-e-tark-e-sukhan par raqam dastkhat
aaj ham ne naye sha'iron ke liye bhartiyaan khol deen
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मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं
ज़ख़्म भरने से पहले किसी ने मिरी पट्टियाँ खोल दीं

हम मछेरों से पूछो समुंदर नहीं है ये इफ़रीत है
तुम ने क्या सोच कर साहिलों से बँधी कश्तियाँ खोल दीं

उस ने वा'दों के पर्बत से लटके हुओं को सहारा दिया
उस की आवाज़ पर कोह-पैमाओं ने रस्सियाँ खोल दीं

दश्त-ए-ग़ुर्बत में मैं और मिरा यार-ए-शब-ज़ाद बाहम मिले
यार के पास जो कुछ भी था यार ने गठरियाँ खोल दीं

कुछ बरस तो तिरी याद की रेल दिल से गुज़रती रही
और फिर मैं ने थक हार के एक दिन पटरियाँ खोल दीं

उस ने सहराओं की सैर करते हुए इक शजर के तले
अपनी आँखों से ऐनक उतारी कि दो हिरनियाँ खोल दीं

आज हम कर चुके अहद-ए-तर्क-ए-सुख़न पर रक़म दस्तख़त
आज हम ने नए शाइ'रों के लिए भर्तियाँ खोल दीं
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Bhula diya tha jisko ek shaam yaad aa gaya..

bhula diya tha jisko ek shaam yaad aa gaya
ghazaal dekhkar vo khush-khiraam yaad aa gaya

khuda ka shukr hai ki saans tootne se peshtar
vo shakl yaad aa gai vo naam yaad aa gaya

vo jiski zulf aanchalon ki chaanv ko taras gai
shab-e-visaal usko ehtiraam yaad aa gaya

main aaj taapsi ki ek film dekhkar hata
to mujhko ik puraana intiqaam yaad aa gaya 
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भुला दिया था जिसको एक शाम याद आ गया
ग़ज़ाल देखकर वो ख़ुश-ख़िराम याद आ गया

ख़ुदा का शुक्र है कि साँस टूटने से पेशतर
वो शक्ल याद आ गई वो नाम याद आ गया

वो जिसकी ज़ुल्फ़ आँचलों की छाँव को तरस गई
शब-ए-विसाल उसको एहतिराम याद आ गया

मैं आज तापसी की एक फ़िल्म देखकर हटा
तो मुझको इक पुराना इंतिक़ाम याद आ गया

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Tujh se mil kar to ye lagta hai ki ai ajnabi dost..

tujh se mil kar to ye lagta hai ki ai ajnabi dost
tu meri pehli mohabbat thi meri aakhiri dost

log har baat ka afsaana bana dete hain
ye to duniya hai meri jaan kai dushman kai dost

tere qamat se bhi lipti hai amar-bel koi
meri chaahat ko bhi duniya ki nazar kha gai dost

yaad aayi hai to phir toot ke yaad aayi hai
koi guzri hui manzil koi bhooli hui dost

ab bhi aaye ho to ehsaan tumhaara lekin
vo qayamat jo guzarni thi guzar bhi gai dost

tere lehje ki thakan mein tira dil shaamil hai
aisa lagta hai judaai ki ghadi aa gai dost

baarish-e-sang ka mausam hai mere shehar mein to
tu ye sheeshe sa badan le ke kahaan aa gai dost

main use ahd-shikan kaise samajh luun jis ne
aakhiri khat mein ye likkha tha faqat aap ki dost
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तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त

लोग हर बात का अफ़्साना बना देते हैं
ये तो दुनिया है मिरी जाँ कई दुश्मन कई दोस्त

तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त

अब भी आए हो तो एहसान तुम्हारा लेकिन
वो क़यामत जो गुज़रनी थी गुज़र भी गई दोस्त

तेरे लहजे की थकन में तिरा दिल शामिल है
ऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त

बारिश-ए-संग का मौसम है मिरे शहर में तो
तू ये शीशे सा बदन ले के कहाँ आ गई दोस्त

मैं उसे अहद-शिकन कैसे समझ लूँ जिस ने
आख़िरी ख़त में ये लिक्खा था फ़क़त आप की दोस्त

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Saaqiya ek nazar jaam se pehle pehle..

saaqiya ek nazar jaam se pehle pehle
ham ko jaana hai kahi shaam se pehle pehle

nau-giraftaar-e-wafa saee-e-rihaaee hai abas
ham bhi uljhe the bahut daam se pehle pehle

khush ho ai dil ki mohabbat to nibha di tu ne
log ujad jaate hain anjaam se pehle pehle

ab tire zikr pe ham baat badal dete hain
kitni raghbat thi tire naam se pehle pehle

saamne umr padi hai shab-e-tanhaai ki
vo mujhe chhod gaya shaam se pehle pehle

kitna achha tha ki ham bhi jiya karte the faraaz
ghair-maaruf se gumnaam se pehle pehle
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साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले

नौ-गिरफ़्तार-ए-वफ़ा सई-ए-रिहाई है अबस
हम भी उलझे थे बहुत दाम से पहले पहले

ख़ुश हो ऐ दिल कि मोहब्बत तो निभा दी तू ने
लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले

अब तिरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तिरे नाम से पहले पहले

सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले

कितना अच्छा था कि हम भी जिया करते थे 'फ़राज़'
ग़ैर-मारूफ़ से गुमनाम से पहले पहले
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Juz tire koi bhi din raat na jaane mere..

juz tire koi bhi din raat na jaane mere
tu kahaan hai magar ai dost purane mere

tu bhi khushboo hai magar mera tajassus bekar
barg-e-aawara ki maanind thikaane mere

sham'a ki lau thi ki vo tu tha magar hijr ki raat
der tak rota raha koi sirhaane mere

khalk ki be-khabri hai ki meri ruswaai
log mujh ko hi sunaate hain fasaane mere

loot ke bhi khush hoon ki ashkon se bhara hai daaman
dekh ghaarat-gar-e-dil ye bhi khazaane mere

aaj ik aur baras beet gaya us ke baghair
jis ke hote hue hote the zamaane mere

kaash tu bhi meri awaaz kahi sunta ho
phir pukaara hai tujhe dil ki sada ne mere

kaash tu bhi kabhi aa jaaye masihaai ko
log aate hain bahut dil ko dukhaane mere

kaash auron ki tarah main bhi kabhi kah saka
baat sun li hai meri aaj khuda ne mere

tu hai kis haal mein ai zood-faramosh mere
mujh ko to cheen liya ahad-e-wafaa ne mere

chaaragar yun to bahut hain magar ai jaan-e-'faraz
juz tire aur koi zakham na jaane mere 
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जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे

तू भी ख़ुशबू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार
बर्ग-ए-आवारा की मानिंद ठिकाने मेरे

शम्अ की लौ थी कि वो तू था मगर हिज्र की रात
देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे

ख़ल्क़ की बे-ख़बरी है कि मिरी रुस्वाई
लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे

लुट के भी ख़ुश हूँ कि अश्कों से भरा है दामन
देख ग़ारत-गर-ए-दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे

आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे

काश तू भी मेरी आवाज़ कहीं सुनता हो
फिर पुकारा है तुझे दिल की सदा ने मेरे

काश तू भी कभी आ जाए मसीहाई को
लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे

काश औरों की तरह मैं भी कभी कह सकता
बात सुन ली है मिरी आज ख़ुदा ने मेरे

तू है किस हाल में ऐ ज़ूद-फ़रामोश मिरे
मुझ को तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे

चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-'फ़राज़'
जुज़ तिरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे
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Khaamosh ho kyun daad-e-jafa kyun nahin dete..

khaamosh ho kyun daad-e-jafa kyun nahin dete
bismil ho to qaateel ko dua kyun nahin dete

vehshat ka sabab rauzan-e-zindaan to nahin hai
mehr o mah o anjum ko bujha kyun nahin dete

ik ye bhi to andaaz-e-ilaaj-e-gham-e-jaan hai
ai chaaragaro dard badha kyun nahin dete

munsif ho agar tum to kab insaaf karoge
mujrim hain agar ham to saza kyun nahin dete

rehzan ho to haazir hai mata-e-dil-o-jaan bhi
rahbar ho to manzil ka pata kyun nahin dete

kya beet gai ab ke faraaz ahl-e-chaman par
yaaraan-e-qafas mujh ko sada kyun nahin dete 
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ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते

वहशत का सबब रौज़न-ए-ज़िंदाँ तो नहीं है
मेहर ओ मह ओ अंजुम को बुझा क्यूँ नहीं देते

इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है
ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते

मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

रहज़न हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ भी
रहबर हो तो मंज़िल का पता क्यूँ नहीं देते

क्या बीत गई अब के 'फ़राज़' अहल-ए-चमन पर
यारान-ए-क़फ़स मुझ को सदा क्यूँ नहीं देते
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Phir usi rahguzar par shaayad..

phir usi rahguzar par shaayad
ham kabhi mil saken magar shaayad

jin ke ham muntazir rahe un ko
mil gaye aur hum-safar shaayad

jaan-pahchaan se bhi kya hoga
phir bhi ai dost ghaur kar shaayad

ajnabbiyyat ki dhund chhat jaaye
chamak utthe tiri nazar shaayad

zindagi bhar lahu rulaayegi
yaad-e-yaaraan-e-be-khabar shaayad

jo bhi bichhde vo kab mile hain faraaz
phir bhi tu intizaar kar shaayad
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फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद

जिन के हम मुंतज़िर रहे उन को
मिल गए और हम-सफ़र शायद

जान-पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद

अज्नबिय्यत की धुँद छट जाए
चमक उठ्ठे तिरी नज़र शायद

ज़िंदगी भर लहू रुलाएगी
याद-ए-यारान-ए-बे-ख़बर शायद

जो भी बिछड़े वो कब मिले हैं 'फ़राज़'
फिर भी तू इंतिज़ार कर शायद
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Aise chup hain ki ye manzil bhi kaddi ho jaise..

aise chup hain ki ye manzil bhi kaddi ho jaise
tera milna bhi judaai ki ghadi ho jaise

apne hi saaye se har gaam larz jaata hoon
raaste mein koi deewaar khadi ho jaise

kitne naadaan hain tire bhoolne waale ki tujhe
yaad karne ke liye umr padi ho jaise

tere maathe ki shikan pehle bhi dekhi thi magar
ye girah ab ke mere dil mein padi ho jaise

manzilen door bhi hain manzilen nazdeek bhi hain
apne hi paanv mein zanjeer padi ho jaise

aaj dil khol ke roye hain to yun khush hain faraaz
chand lamhon ki ye raahat bhi badi ho jaise
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ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे

अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे

कितने नादाँ हैं तिरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे

तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर
ये गिरह अब के मिरे दिल में पड़ी हो जैसे

मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पाँव में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे

आज दिल खोल के रोए हैं तो यूँ ख़ुश हैं 'फ़राज़'
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे
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barson ke baad dekha ik shakhs dilruba sa..

barson ke baad dekha ik shakhs dilruba sa
ab zehan mein nahin hai par naam tha bhala sa

abroo khinche khinche se aankhen jhuki jhuki si
baatein ruki ruki si lahja thaka thaka sa

alfaaz the ki jugnoo awaaz ke safar mein
ban jaaye junglon mein jis tarah raasta sa

khwaabon mein khwaab uske yaadon mein yaad uski
neendon mein khul gaya ho jaise ki ratjaga sa

pehle bhi log aaye kitne hi zindagi mein
woh har tarah se lekin auron se tha juda sa

kuchh ye ki muddaton se ham bhi nahin the roye
kuchh zahar mein khula tha ahbaab ka dilaasa

phir yun hua ki saawan aankhon mein aa base the
phir yun hua ki jaise dil bhi tha aablaa sa

ab sach kahein to yaaron hamko khabar nahin thi
ban jaayega qayamat ik waqia zara sa

tevar the be-rukhi ke andaaz dosti ke
woh ajnabi tha lekin lagta tha aashnaa sa

ham dasht the ki dariya ham zahar the ki amrit
na-haq tha zoom hamko jab vo nahin tha pyaasa

hamne bhi usko dekha kal shaam ittefaqan
apna bhi haal hai ab logon faraaz ka sa
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बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़ेहन में नहीं है पर नाम था भला सा

अबरू खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा

अल्फ़ाज़ थे कि जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाए जंगलों में जिस तरह रास्ता सा

ख़्वाबों में ख़्वाब उसके यादों में याद उसकी
नींदों में खुल गया हो जैसे कि रतजगा सा

पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में
वह हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा

कुछ ये कि मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोए
कुछ ज़हर में खुला था अहबाब का दिलासा

फिर यूँ हुआ कि सावन आँखों में आ बसे थे
फिर यूँ हुआ कि जैसे दिल भी था आबला सा

अब सच कहें तो यारों हमको ख़बर नहीं थी
बन जाएगा क़यामत इक वाक़िआ ज़रा सा

तेवर थे बे-रुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के
वह अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा

हम दश्त थे कि दरिया हम ज़हर थे कि अमृत
ना-हक़ था ज़ोम हमको जब वो नहीं था प्यासा

हमने भी उसको देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न
अपना भी हाल है अब लोगों फ़राज़ का सा
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kis taraf ko chalti hai ab hawa nahin maaloom..

kis taraf ko chalti hai ab hawa nahin maaloom
haath utha liye sabne aur dua nahin maaloom

mausamon ke chehron se zardiyaan nahin jaati
phool kyun nahin lagte khush-numa nahin maaloom

rahbaro'n ke tevar bhi rahzano se lagte hain
kab kahaan pe loot jaaye qaafila nahin maaloom

sarv to gai rut mein qaamaten ganwa baithe
qumariyaan hui kaise be-sada nahin maaloom

aaj sabko daava hai apni apni chaahat ka
kaun kis se hota hai kal juda nahin maaloom

manzaron kii tabdeeli bas nazar mein rahti hai
ham bhi hote jaate hain kya se kya nahin maaloom

ham faraaz sheron se dil ke zakhm bharte hain
kya karein maseeha ko jab dava nahin maaloom
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किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम
हाथ उठा लिए सबने और दुआ नहीं मालूम

मौसमों के चेहरों से ज़र्दियाँ नहीं जाती
फूल क्यूँ नहीं लगते ख़ुश-नुमा नहीं मालूम

रहबरों के तेवर भी रहज़नों से लगते हैं
कब कहाँ पे लुट जाए क़ाफ़िला नहीं मालूम

सर्व तो गई रुत में क़ामतें गँवा बैठे
क़ुमरियाँ हुईं कैसे बे-सदा नहीं मालूम

आज सबको दावा है अपनी अपनी चाहत का
कौन किस से होता है कल जुदा नहीं मालूम

मंज़रों की तब्दीली बस नज़र में रहती है
हम भी होते जाते हैं क्या से क्या नहीं मालूम

हम 'फ़राज़' शेरों से दिल के ज़ख़्म भरते हैं
क्या करें मसीहा को जब दवा नहीं मालूम
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Darbaar mein ab satwat-e-shaahi ki alaamat..

darbaar mein ab satwat-e-shaahi ki alaamat
darbaan ka asa hai ki musannif ka qalam hai

aawaara hai phir koh-e-nida par jo basharat
tamheed-e-masarrat hai ki tool-e-shab-e-gham hai

jis dhajji ko galiyon mein liye firte hain tiflaan
ye mera garebaan hai ki lashkar ka alam hai

jis noor se hai shehar ki deewaar darkhshan
ye khun-e-shaheedaan hai ki zar-khaana-e-jam hai

halka kiye baithe raho ik sham'a ko yaaro
kuchh raushni baaki to hai har-chand ki kam hai
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दरबार में अब सतवत-ए-शाही की अलामत
दरबाँ का असा है कि मुसन्निफ़ का क़लम है

आवारा है फिर कोह-ए-निदा पर जो बशारत
तम्हीद-ए-मसर्रत है कि तूल-ए-शब-ए-ग़म है

जिस धज्जी को गलियों में लिए फिरते हैं तिफ़्लाँ
ये मेरा गरेबाँ है कि लश्कर का अलम है

जिस नूर से है शहर की दीवार दरख़्शाँ
ये ख़ून-ए-शहीदाँ है कि ज़र-ख़ाना-ए-जम है

हल्क़ा किए बैठे रहो इक शम्अ को यारो
कुछ रौशनी बाक़ी तो है हर-चंद कि कम है
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Go sab ko bahm saaghar o baada to nahin tha..

go sab ko bahm saaghar o baada to nahin tha
ye shehar udaas itna ziyaada to nahin tha

galiyon mein fira karte the do chaar deewane
har shakhs ka sad chaak labaada to nahin tha

manzil ko na pahchaane rah-e-ishq ka raahi
naadaan hi sahi aisa bhi saada to nahin tha

thak kar yoonhi pal bhar ke liye aankh lagi thi
so kar hi na utthen ye iraada to nahin tha

wa'iz se rah-o-rasm rahi rind se sohbat
farq in mein koi itna ziyaada to nahin tha
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गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था
ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था

गलियों में फिरा करते थे दो चार दिवाने
हर शख़्स का सद चाक लबादा तो नहीं था

मंज़िल को न पहचाने रह-ए-इश्क़ का राही
नादाँ ही सही ऐसा भी सादा तो नहीं था

थक कर यूँही पल भर के लिए आँख लगी थी
सो कर ही न उट्ठें ये इरादा तो नहीं था

वाइ'ज़ से रह-ओ-रस्म रही रिंद से सोहबत
फ़र्क़ इन में कोई इतना ज़ियादा तो नहीं था
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sabhi kuchh hai tera diya hua sabhi raahatein sabhi kulphatein..

sabhi kuchh hai tera diya hua sabhi raahatein sabhi kulphatein
kabhi sohbaten kabhi furqatein kabhi dooriyaan kabhi qurbaten

ye sukhun jo ham ne raqam kiye ye hain sab varq tiri yaad ke
koi lamha subh-e-visaal ka koi shaam-e-hijr ki muddatein

jo tumhaari maan len naaseha to rahega daaman-e-dil mein kya
na kisi adoo ki adaavaten na kisi sanam ki muravvatein

chalo aao tum ko dikhaayein ham jo bacha hai maqtal-e-shehr mein
ye mazaar ahl-e-safa ke hain ye hain ahl-e-sidq ki turbatein

meri jaan aaj ka gham na kar ki na jaane kaatib-e-waqt ne
kisi apne kal mein bhi bhool kar kahi likh rakhi hon masarratein 
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सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें
कभी सोहबतें कभी फ़ुर्क़तें कभी दूरियाँ कभी क़ुर्बतें

ये सुख़न जो हम ने रक़म किए ये हैं सब वरक़ तिरी याद के
कोई लम्हा सुब्ह-ए-विसाल का कोई शाम-ए-हिज्र की मुद्दतें

जो तुम्हारी मान लें नासेहा तो रहेगा दामन-ए-दिल में क्या
न किसी अदू की अदावतें न किसी सनम की मुरव्वतें

चलो आओ तुम को दिखाएँ हम जो बचा है मक़्तल-ए-शहर में
ये मज़ार अहल-ए-सफ़ा के हैं ये हैं अहल-ए-सिद्क़ की तुर्बतें

मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने
किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें
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aap kii yaad aati rahi raat bhar..

aap kii yaad aati rahi raat bhar
chaandni dil dukhaati rahi raat bhar

gaah jaltee hui gaah bujhti hui
sham-e-gham jhilmilaati rahi raat bhar

koii khushboo badalti rahi pairhan
koii tasveer gaati rahi raat bhar

phir saba saaya-e-shaakh-e-gul ke tale
koii qissa sunaati rahi raat bhar

jo na aaya use koii zanjeer-e-dar
har sada par bulaati rahi raat bhar

ek ummeed se dil bahalta raha
ik tamannaa sataati rahi raat bhar
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आप की याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर

कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर

फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर

जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात भर

एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर
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Ham jee rahe hain koi bahaana kiye baghair..

ham jee rahe hain koi bahaana kiye baghair
us ke baghair us ki tamannaa kiye baghair

ambaar us ka parda-e-hurmat bana miyaan
deewaar tak nahin giri parda kiye baghair

yaaraan vo jo hai mera maseeha-e-jaan-o-dil
be-had aziz hai mujhe achha kiye baghair

main bistar-e-khayaal pe leta hoon us ke paas
subh-e-azl se koi taqaza kiye baghair

us ka hai jo bhi kuchh hai mera aur main magar
vo mujh ko chahiye koi sauda kiye baghair

ye zindagi jo hai use maana bhi chahiye
wa'da hamein qubool hai ifa kiye baghair

ai qaatilon ke shehar bas itni hi arz hai
main hoon na qatl koi tamasha kiye baghair

murshid ke jhooth ki to saza be-hisaab hai
tum chhodio na shehar ko sehra kiye baghair

un aangaanon mein kitna sukoon o suroor tha
aaraish-e-nazar tiri parwa kiye baghair

yaaraan khusa ye roz o shab-e-dil ki ab hamein
sab kuchh hai khush-gawaar gawara kiye baghair

giryaa-kunaan ki fard mein apna nahin hai naam
ham giryaa-kun azal ke hain giryaa kiye baghair

aakhir hain kaun log jo bakshe hi jaayenge
taarikh ke haraam se tauba kiye baghair

vo sunni baccha kaun tha jis ki jafaa ne jaun
shiaa bana diya hamein shiaa kiye baghair

ab tum kabhi na aaoge ya'ni kabhi kabhi
ruksat karo mujhe koi wa'da kiye baghair
----------------------------------
हम जी रहे हैं कोई बहाना किए बग़ैर
उस के बग़ैर उस की तमन्ना किए बग़ैर

अम्बार उस का पर्दा-ए-हुरमत बना मियाँ
दीवार तक नहीं गिरी पर्दा किए बग़ैर

याराँ वो जो है मेरा मसीहा-ए-जान-ओ-दिल
बे-हद अज़ीज़ है मुझे अच्छा किए बग़ैर

मैं बिस्तर-ए-ख़याल पे लेटा हूँ उस के पास
सुब्ह-ए-अज़ल से कोई तक़ाज़ा किए बग़ैर

उस का है जो भी कुछ है मिरा और मैं मगर
वो मुझ को चाहिए कोई सौदा किए बग़ैर

ये ज़िंदगी जो है उसे मअना भी चाहिए
वा'दा हमें क़ुबूल है ईफ़ा किए बग़ैर

ऐ क़ातिलों के शहर बस इतनी ही अर्ज़ है
मैं हूँ न क़त्ल कोई तमाशा किए बग़ैर

मुर्शिद के झूट की तो सज़ा बे-हिसाब है
तुम छोड़ियो न शहर को सहरा किए बग़ैर

उन आँगनों में कितना सुकून ओ सुरूर था
आराइश-ए-नज़र तिरी पर्वा किए बग़ैर

याराँ ख़ुशा ये रोज़ ओ शब-ए-दिल कि अब हमें
सब कुछ है ख़ुश-गवार गवारा किए बग़ैर

गिर्या-कुनाँ की फ़र्द में अपना नहीं है नाम
हम गिर्या-कुन अज़ल के हैं गिर्या किए बग़ैर

आख़िर हैं कौन लोग जो बख़्शे ही जाएँगे
तारीख़ के हराम से तौबा किए बग़ैर

वो सुन्नी बच्चा कौन था जिस की जफ़ा ने 'जौन'
शीआ' बना दिया हमें शीआ' किए बग़ैर

अब तुम कभी न आओगे या'नी कभी कभी
रुख़्सत करो मुझे कोई वा'दा किए बग़ैर
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Be-dili kya yoonhi din guzar jaayenge..

be-dili kya yoonhi din guzar jaayenge
sirf zinda rahe ham to mar jaayenge

raqs hai rang par rang ham-raks hain
sab bichhad jaayenge sab bikhar jaayenge

ye kharabatiyaan-e-khird-baakhta
subah hote hi sab kaam par jaayenge

kitni dilkash ho tum kitna dil-joo hoon main
kya sitam hai ki ham log mar jaayenge

hai ghaneemat ki asraar-e-hasti se ham
be-khabar aaye hain be-khabar jaayenge 
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बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे

रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं
सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे

ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे

है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम
बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे
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Koii haalat nahin ye haalat hai..

koii haalat nahin ye haalat hai
ye to aashob-naak soorat hai

anjuman mein ye meri khaamoshi
burdabaari nahin hai vehshat hai

tujh se ye gaah-gaah ka shikwa
jab talak hai basaa ghaneemat hai

khwaahishein dil ka saath chhod gaeein
ye aziyyat badi aziyyat hai

log masroof jaante hain mujhe
yaa mera gham hi meri fursat hai

tanj pairaaya-e-tabasum mein
is takalluf kii kya zaroorat hai

ham ne dekha to ham ne ye dekha
jo nahin hai vo khoobsurat hai

vaar karne ko jaan-nisaar aayein
ye to eesaar hai inaayat hai

garm-joshi aur is qadar kya baat
kya tumhein mujh se kuchh shikaayat hai

ab nikal aao apne andar se
ghar mein samaan kii zaroorat hai

aaj ka din bhi aish se guzra
sar se pa tak badan salaamat hai
------------------------------------
 कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोब-नाक सूरत है

अंजुमन में ये मेरी ख़ामोशी
बुर्दबारी नहीं है वहशत है

तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा
जब तलक है बसा ग़नीमत है

ख़्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं
ये अज़िय्यत बड़ी अज़िय्यत है

लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
याँ मिरा ग़म ही मेरी फ़ुर्सत है

तंज़ पैराया-ए-तबस्सुम में
इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है

हम ने देखा तो हम ने ये देखा
जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है

वार करने को जाँ-निसार आएँ
ये तो ईसार है 'इनायत है

गर्म-जोशी और इस क़दर क्या बात
क्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत है

अब निकल आओ अपने अंदर से
घर में सामान की ज़रूरत है

आज का दिन भी 'ऐश से गुज़रा
सर से पा तक बदन सलामत है
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Iza-dahi ki daad jo paata raha hoon main..

Iza-dahi ki daad jo paata raha hoon main
Har naaz-aafreen ko sataata raha hoon main

Ae khush-khiraam paanv ke chaale to gin zara
Tujh ko kahan kahan na phiraata raha hoon main

Ek husn-e-be-misaal ki tamseel ke liye
Parchhaiyon pe rang giraata raha hoon main

Kya mil gaya zameer-e-hunar bech kar mujhe
Itna ki sirf kaam chalaata raha hoon main

Ruhon ke parda-posh gunaahon se be-khabar
Jismon ki nekiyaan hi ginata raha hoon main

Tujh ko khabar nahin ki tera karb dekh kar
Aksar tera mazaaq udaata raha hoon main

Shayad mujhe kisi se mohabbat nahin hui
Lekin yaqeen sab ko dilaata raha hoon main

Ek satr bhi kabhi na likhi main ne tere naam
Paagal tujhi ko yaad bhi aata raha hoon main

Jis din se e'timaad mein aaya tera shabaab
Us din se tujh pe zulm hi dhaata raha hoon main

Apna misaaliya mujhe ab tak na mil saka
Zarron ko aaftaab banaata raha hoon main

Bedaar kar ke tere badan ki khud-aagahi
Tere badan ki umr ghataata raha hoon main

Kal dopahar ajeeb si ek be-dili rahi
Bas teeliyan jala ke bujhaata raha hoon main
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ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं
हर नाज़-आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं

ऐ ख़ुश-ख़िराम पाँव के छाले तो गिन ज़रा
तुझ को कहाँ कहाँ न फिराता रहा हूँ मैं

इक हुस्न-ए-बे-मिसाल की तमसील के लिए
परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं

क्या मिल गया ज़मीर-ए-हुनर बेच कर मुझे
इतना कि सिर्फ़ काम चलाता रहा हूँ मैं

रूहों के पर्दा-पोश गुनाहों से बे-ख़बर
जिस्मों की नेकियाँ ही गिनाता रहा हूँ मैं

तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख कर
अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं

शायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हुई
लेकिन यक़ीन सब को दिलाता रहा हूँ मैं

इक सत्र भी कभी न लिखी मैं ने तेरे नाम
पागल तुझी को याद भी आता रहा हूँ मैं

जिस दिन से ए'तिमाद में आया तिरा शबाब
उस दिन से तुझ पे ज़ुल्म ही ढाता रहा हूँ मैं

अपना मिसालिया मुझे अब तक न मिल सका
ज़र्रों को आफ़्ताब बनाता रहा हूँ मैं

बेदार कर के तेरे बदन की ख़ुद-आगही
तेरे बदन की उम्र घटाता रहा हूँ मैं

कल दोपहर अजीब सी इक बे-दिली रही
बस तीलियाँ जला के बुझाता रहा हूँ मैं
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har ik hazar men bas panch saat hain ham log..

har ik hazar men bas panch saat hain ham log
nisab-e-ishq pe vājib zakat hain ham log

dabao men bhi jamaat kabhi nahin badli
shurua din se mohabbat ke saath hain ham log

jo sikhni ho zaban-e-sukut bismillah
ḳhamoshiyon kī mukammal luġhat hain ham log

kahaniyon ke vo kirdar jo likhe na gae
ḳhabar se hazf-shuda vaqiat hain ham log

ye intizar hamen dekh kar banaya gaya
zuhur-e-hijr se pahle ki baat hain ham log

kisi ko rasta de den kisi ko paani na den
kahin pe niil kahin par furat hain ham log

hamen jala ke koi shab guzar sakta hai
saḌak pe bikhre hue kaġhzat hain ham log
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हर एक हज़ार में बस पाँच-सात हैं हम लोग,
निसाब-ए-इश्क़ पे वाजिब ज़कात हैं हम लोग।

दबाव में भी जमात कभी नहीं बदली,
शुरुआत दिन से मोहब्बत के साथ हैं हम लोग।

जो सीखनी हो ज़बान-ए-सुकूत, बिस्मिल्लाह,
खामोशियों की मुकम्मल लुग़ात हैं हम लोग।

कहानियों के वो किरदार जो लिखे न गए,
ख़बर से हज़्फ़-शुदा वाक़ियात हैं हम लोग।

ये इंतज़ार हमें देखकर बनाया गया,
ज़ुहूर-ए-हिज्र से पहले की बात हैं हम लोग।

किसी को रास्ता दे दें, किसी को पानी न दें,
कहीं पे नील, कहीं पर फरात हैं हम लोग।

हमें जलाकर कोई रात गुज़ार सकता है,
सड़क पे बिखरे हुए काग़ज़ात हैं हम लोग।
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Kuchh safine hain jo gharqab ikaTThe honge..

kuchh safine hain jo gharqab ikaTThe honge
aankh men ḳhvab tah-e-ab ikaTThe honge

jin ke dil joḌte ye umr bita di main ne
jab marunga to ye ahbab ikaTThe honge

muntashir kar ke zamanon ko khangala jaae
tab kahin ja ke mire ḳhvab ikaTThe honge

ek hi ishq men donon ka junūn zam hoga
pyaas yaksan hai to sairab ikaTThe honge

mujh ko raftar chamak tujh ko ghaTani hogi
varna kaise zar-o-simab ikaTThe honge

us ki tah se kabhi daryaft kiya jaunga main
jis samundar men ye sailāb ikaTThe honge
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कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे,
आँख में ख़्वाब तह-ए-आब इकट्ठे होंगे।

जिनके दिल जोड़ते ये उम्र बिता दी मैंने,
जब मरूँगा तो ये अहबाब इकट्ठे होंगे।

मुन्तशिर करके ज़मानों को खंगाला जाए,
तब कहीं जा के मेरे ख़्वाब इकट्ठे होंगे।

एक ही इश्क़ में दोनों का जुनून ज़म होगा,
प्यास यकसां है तो सैराब इकट्ठे होंगे।

मुझको रफ़्तार, चमक तुझको घटानी होगी,
वरना कैसे ज़र-ओ-सिम्माब इकट्ठे होंगे।

उसकी तह से कभी दरयाफ़्त किया जाऊँगा मैं,
जिस समंदर में ये सैलाब इकट्ठे होंगे।
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Main ne jo raah li dushvar ziyada nikli..

main ne jo raah li dushvar ziyada nikli
mere andaze se har baar ziyada nikli

koi rauzan na jharoka na koi darvaza
meri taamir men divar ziyada nikli

ye miri maut ke asbāb men likkha hua hai
ḳhuun men ishq ki miqdar ziyada nikli

kitni jaldi diya ghar valon ko phal aur saaya
mujh se to peḌ ki raftar ziyada nikli
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मैंने जो राह ली, दुश्वार ज़्यादा निकली,
मेरे अंदाज़े से हर बार ज़्यादा निकली।

कोई रोशनदान, न झरोखा, न कोई दरवाज़ा,
मेरी तामीर में दीवार ज़्यादा निकली।

ये मेरी मौत के असबाब में लिखा हुआ है,
ख़ून में इश्क़ की मात्रा ज़्यादा निकली।

कितनी जल्दी दिया घरवालों को फल और साया,
मुझसे तो पेड़ की रफ़्तार ज़्यादा निकली।

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Phone to duur vahan khat bhi nahin pahunchenge..

phone to duur vahan khat bhi nahin pahunchenge
ab ke ye log tumhen aisi jagah bhejenge

zindagi dekh chuke tujh ko bade parde par
aaj ke baad koi film nahin dekhenge

masala ye hai main dushman ke qarin pahunchunga
aur kabutar miri talvar pe aa baiThenge

ham ko ik baar kinaron se nikal jaane do
phir to sailab ke paani kī tarah phailenge

tu vo dariya hai agar jaldi nahin ki tu ne
khud samundar tujhe milne ke liye aenge

seġha-e-raz men rakkhenge nahin ishq tira
ham tire naam se ḳhushb ki dukan kholenge
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फ़ोन तो दूर, वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे,
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे।

ज़िंदगी देख चुके तुझको बड़े पर्दे पर,
आज के बाद कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे।

मसला ये है, मैं दुश्मन के करीब पहुँचूंगा,
और कबूतर मेरी तलवार पे आ बैठेंगे।

हमको एक बार किनारों से निकल जाने दो,
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे।

तू वो दरिया है, अगर जल्दी नहीं की तूने,
ख़ुद समंदर तुझे मिलने के लिए आएंगे।

सिग़हा-ए-राज़ में रखेंगे नहीं इश्क़ तेरा,
हम तेरे नाम से ख़ुशबू की दुकान खोलेंगे।
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Mere kamre men ik aisi khiḌki hai..

mere kamre men ik aisi khiḌki hai
jo in ankhon ke khulne par khulti hai

aise tevar dushman hi ke hote hain
pata karo ye laḌki kis ki beTi hai

raat ko is jangal men rukna Thiik nahin
is se aage tum logon ki marzi hai

main is shahar ka chand huun aur ye janta huun
kaun si laḌki kis khiḌki men baiThi hai

jab tu shaam ko ghar jaae to paḌh lena
tere bistar par ik chiTThi chhoḌi hai

us ki ḳhatir ghar se bahar Thahra huun
varna ilm hai chabi gate pe rakkhi hai
-----------------------------------------
मेरे कमरे में एक ऐसी खिड़की है
जो इन आँखों के खुलने पर खुलती है।

ऐसे तेवर दुश्मन ही के होते हैं,
पता करो यह लड़की किस की बेटी है।

रात को इस जंगल में रुकना ठीक नहीं,
इससे आगे तुम लोगों की मर्ज़ी है।

मैं इस शहर का चाँद हूँ और यह जानता हूँ,
कौन सी लड़की किस खिड़की में बैठी है।

जब तू शाम को घर जाए तो पढ़ लेना,
तेरे बिस्तर पर एक चिट्ठी छोड़ी है।

उसकी ख़ातिर घर से बाहर ठहरा हूँ,
वरना इल्म है चाबी गेट पे रखी है।



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Aise us haath se gire ham log..

aise us haath se gire ham log
TuTte TuTte bache ham log

apna qissa suna raha hai koi
aur divar ke bane ham log

vasl ke bhed kholti miTTi
chadaren jhaḌte hue ham log

us kabutar ne apni marzi ki
siTiyan marte rahe ham log

puchhne par koi nahin bola
kaise darvaza kholte ham log

hafize ke liye dava khaai
aur bhi bhulne lage ham log

ain mumkin tha lauT aata vo
us ke pichhe nahin gae ham log
---------------------------------
ऐसे उस हाथ से गिरे हम लोग
टूटे टूटे बचे हम लोग

अपना क़िस्सा सुना रहा है कोई
और दीवार के बने हम लोग

वस्ल के भेद खोलती मिट्टी
चादरें झाड़ते हुए हम लोग

उस कबूतर ने अपनी मरज़ी की
सीटियां मारते रहे हम लोग

पूछने पर कोई नहीं बोला
कैसे दरवाज़ा खोलते हम लोग

हाफिज़े के लिए दवा खाई
और भी भूलने लगे हम लोग

ऐन मुमकिन था लौट आता वो
उस के पीछे नहीं गए हम लोग

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Vaqt hi kam tha faisle ke liye..

vaqt hi kam tha faisle ke liye
varna main aata mashvare ke liye

tum ko achchhe lage to tum rakh lo
phuul toḌe the bechne ke liye

ghanTon ḳhamosh rahna paḌta hai
aap ke saath bolne ke liye

saikaḌon kunDiyan laga raha huun
chand batnon ko kholne ke liye

ek divar baaġh se pahle
ik dupaTTa khule gale ke liye

tark apni falah kar di hai
aur kya ho muashare ke liye

log ayat paḌh ke sote hain
aap ke ḳhvab dekhne ke liye

ab main raste men leT jaun kya
jaane valon ko rokne ke liye
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वक्त ही कम था फैसले के लिए
वरना मैं आता मशवरे के लिए

तुम को अच्छे लगे तो तुम रख लो
फूल तोड़े थे बेचने के लिए

घंटों खामोश रहना पड़ता है
आप के साथ बोलने के लिए

सैकड़ों कुंडियाँ लगा रहा हूँ
चंद बातों को खोलने के लिए

एक दीवार बाग़ से पहले
एक दुपट्टा खुले गले के लिए

तर्क अपनी फला कर दी है
और क्या हो मुशहरे के लिए

लोग आयत पढ़ के सोते हैं
आप के ख़्वाब देखने के लिए

अब मैं रास्ते में लेट जाऊँ क्या
जाने वालों को रोकने के लिए
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tum ne bhi un se hi milna hota hai..

tum ne bhi un se hi milna hota hai
jin logon se mera jhagḌa hota hai

us ke gaanv Ki ek nishani ye bhi hai
har nalke ka paani miTha hota hai

main us shaḳhs se thoḌa aage chalta huun
jis ka main ne pichha karna hota hai

tum meri duniya men bilkul aise ho
taash men jaise hukum ka ikka hota hai

kitne sukhe peḌ bacha sakte hain ham
har jangal men lakkaḌhara hota hai
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तुम ने भी उन से ही मिलना होता है
जिन लोगों से मेरा झगड़ा होता है

उस के गाँव की एक निशानी ये भी है
हर नलके का पानी मीठा होता है

मैं उस शख्स से थोड़ा आगे चलता हूँ
जिस का मैंने पीछा करना होता है

तुम मेरी दुनिया में बिलकुल ऐसे हो
ताश में जैसे हुक़्म का इक्का होता है

कितने सूखे पेड़ बचा सकते हैं हम
हर जंगल में लकड़हारा होता है

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Bol padte hain ham jo aage se..

Bol padte hain ham jo aage se
pyaar baḌhta hai is ravayye se

main vahi huun yaqin karo mera
main jo lagta nahin huun chehre se

ham ko niche utaar lenge log
ishq laTka rahega pankhe se

saara kuchh lag raha hai be-tartib
ek shai aage pichhe hone se

vaise bhi kaun si zaminen thiin
main bahut ḳhush huun aq-name se

ye mohabbat vo ghaaT hai jis par
daaġh lagte hain kapḌe dhone se
---------------------------------
बोल पढ़ते हैं हम जो आगे से
प्यार बढ़ता है इस रवये से

मैं वही हूँ, यकीन करो मेरा
मैं जो लगता नहीं हूँ चेहरे से

हम को नीचे उतार लेंगे लोग
इश्क लटका रहेगा पंखे से

सारा कुछ लग रहा है बे-तरीब
एक शै आगे-पीछे होने से

वैसे भी कौन सी ज़मीनें थीं
मैं बहुत खुश हूँ आख़नामे से

ये मोहब्बत वो घाट है जिस पर
दाग लगते हैं कपड़े धोने से

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Miri bhanvon ke ain darmiyan ban gaya..

Miri bhanvon ke ain darmiyan ban gaya
jabin pe intizar ka nishan ban gaya

suna hua tha hijr mustaqil tanav hai
vahi hua mira badan kaman ban gaya

muhib chup men ahaTon ka vahima hava
main sar se paanv tak tamam kaan ban gaya

hava se raushni se rabta nahin raha
jidhar thiin khiḌkiyan udhar makan ban gaya

shurua din se ghar main sun raha tha is liye
sukut meri madari zaban ban gaya

aur ek din khinchi hui lakir miT gai
guman yaqin bana yaqin guman ban gaya

kai ḳhafif gham mile malal ban gae
zara zara si katranon se thaan ban gaya

mire baḌon ne adatan chuna tha ek dasht
vo bas gaya 'rahim' yar-ḳhan ban gaya
-----------------------------------------
मेरी भंवों के बीच दरमियान बन गया
जबीन पे इंतजार का निशान बन गया

सुना हुआ था हिज्र मुस्तक़िल तनाव है
वही हुआ मेरा बदन कमान बन गया

मुहीब चुप में आहटों का वहिमा हवा
मैं सर से पांव तक तमाम कान बन गया

हवा से रौशनी से राब्ता नहीं रहा
जिधर थीं खिड़कियां उधर मकान बन गया

शुरूआत दिन से घर में सुन रहा था इस लिए
सुकूत मेरी मादरी ज़बान बन गया

और एक दिन खींची हुई लकीर मिट गई
गुमान यकीन बना यकीन गुमान बन गया

कई हल्के ग़म मिले मलाल बन गए
जरा जरा सी क़तरे से थान बन गया

मेरे बड़े ने आदतन चुना था एक दष्ट
वो बस गया 'रहीम' यार-ख़ान बन गया

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Mujhe pahle to lagta tha ki zaati masala hai..

mujhe pahle to lagta tha ki zaati masala hai
main phir samjha mohabbat ka.enati masala hai

parinde qaid hain tum chahchahahaT chahte ho
tumhen to achchha-ḳhasa nafsiyati masala hai

hamen thoḌa junun darkar hai thoḌa sukun bhi
hamari nasl men ik jiniyati masala hai

baḌi mushkil hai bante silsilon men ye tavaqquf
hamare rabton ki be-sabati mas.ala hai

vo kahte hain ki jo hoga vo aage ja ke hoga
to ye duniya bhi koi tajrabati mas.ala hai

hamara vasl bhi tha ittifaqi mas.ala tha
hamara hijr bhi hai hadsati mas.ala hai
----------------------------------------
मैंने पहले तो लगता था कि ज़ाती मसला है
मैं फिर समझा मोहब्बत का एंती मसला है

परिंदे क़ैद हैं तुम चहचहाहट चाहते हो
तुम्हें तो अच्छा-ख़ासा नफ्सियाती मसला है

हमें थोड़ा जुनून दरकार है थोड़ा सुकून भी
हमारी नस्ल में एक जिनियाती मसला है

बड़ी मुश्किल है बनते सिलसिलों में ये तवक्कुफ़
हमारे रिश्तों की बे-सबाती मसला है

वो कहते हैं कि जो होगा वो आगे जा के होगा
तो ये दुनिया भी कोई तज्रबाती मसला है

हमारा वस्ल भी था इत्तिफ़ाक़ी मसला था
हमारा हिज्र भी है हास्ताती मसला है

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Main barash chhoḌ chuka aḳhiri tasvir ke baad..

main barash chhoḌ chuka aḳhiri tasvir ke baad
mujh se kuchh ban nahin paaya tiri tasvir ke baad

mushtarak dost bhi chhuTe hain tujhe chhoḌne par
ya.ani divar haTani paḌi tasvir ke ba.ad

yaar tasvir men tanha huun magar log mile
ka.i tasvir se pahle ka.i tasvir ke ba.ad

dusra ishq mayassar hai magar karta nahin
kaun dekhega purani nai tasvir ke baad

bhej deta huun magar pahle bata duun tujh ko
mujh se milta nahin koi miri tasvir ke ba.ad

ḳhushk divar men silan ka sabab kya hoga
ek adad zang lagi kiil thi tasvir ke baad
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मैं बरस छोड़ चुका आख़िरी तस्वीर के बाद
मुझ से कुछ बन नहीं पाया तेरी तस्वीर के बाद

मुश्तरक दोस्त भी छूटे हैं तुझे छोड़ने पर
यानी दीवार हटानी पड़ी तस्वीर के बाद

यार तस्वीर में तन्हा हूँ मगर लोग मिले
कई तस्वीर से पहले कई तस्वीर के बाद

दूसरा इश्क़ मयस्सर है मगर करता नहीं
कौन देखेगा पुरानी नई तस्वीर के बाद

भेज देता हूँ मगर पहले बता दूं तुझ को
मुझ से मिलता नहीं कोई मेरी तस्वीर के बाद

ख़ुश्क दीवार में सीलन का सबब क्या होगा
एक अदद ज़ंग लगी कील थी तस्वीर के बाद

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Daaen baazu men gaḌa tiir nahin khinch saka..

Daaen baazu men gaḌa tiir nahin khinch saka
is liye ḳhol se shamshir nahin khinch saka

shor itna tha ki avaz bhi Dabbe men rahi
bhiiḌ itni thi ki zanjir nahin khinch saka

har nazar se nazar-andaz-shuda manzar huun
vo madari huun jo rahgir nahin khinch saka

main ne mehnat se hatheli pe lakiren khinchin
vo jinhen katib-e-taqdir nahin khinch saka

main ne tasvir-kashi kar ke javan Ki aulad
un ke bachpan ki tasavir nahin khinch saka

mujh pe ik hijr musallat hai hamesha ke liye
aisa jin hai ki koi piir nahin khinch saka

tum pe Kya ḳhaak asar hoga mire sheron Ka
tum ko to mir-taqi-'mir' nahin khinch saka
--------------------------------------------
दाएं बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका
इसलिए खोल से शमशीर नहीं खींच सका

शोर इतना था कि आवाज़ भी दबे में रही
भीड़ इतनी थी कि ज़ंजीर नहीं खींच सका

हर नज़र से नज़र-अंदाज़-शुदा मंज़र हूँ
वो मदारी हूँ जो राहगीर नहीं खींच सका

मैंने मेहनत से हथेली पे लकीरें खींचीं
वो जिन्हें कातिब-ए-तक़दीर नहीं खींच सका

मैंने तस्वीर-कशी कर के जवां की औलाद
उनके बचपन की तस्वीर नहीं खींच सका

मुझ पे इक हिज्र मुसल्लत है हमेशा के लिए
ऐसा जिन है कि कोई पीर नहीं खींच सका

तुम पे क्या ख़ाक असर होगा मेरे शेरों का
तुम को तो मीर-तकी-'मीर' नहीं खींच सका
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Ik tira hijr daimi hai mujhe..

Ik tira hijr daimi hai mujhe
varna har chiiz aarzi hai mujhe

ek saaya mire taaqub men
ek avaz DhunDti hai mujhe

meri ankhon pe do muqaddas haath
ye andhera bhi raushni hai mujhe

main suḳhan men huun us jagah ki jahan
saañs lena bhi sha.iri hai mujhe

in parindon se bolna sikha
peḌ se ḳhamushi mili hai mujhe

main use kab ka bhul-bhal chuka
zindagi hai ki ro rahi hai mujhe

main ki kaghaz ki ek kashti huun
pahli barish hi aḳhiri hai mujhe
---------------------------------
इक तेरा हिज्र दायमी है मुझे,
वरना हर चीज़ आरज़ी है मुझे।

एक साया मेरे तआक़ुब में,
एक आवाज़ ढूंढती है मुझे।

मेरी आँखों पे दो मुक़द्दस हाथ,
ये अँधेरा भी रौशनी है मुझे।

मैं सुख़न में हूँ उस जगह की जहाँ,
साँस लेना भी शायरी है मुझे।

इन परिंदों से बोलना सीखा,
पेड़ से ख़ामोशी मिली है मुझे।

मैं उसे कब का भूल-भाल चुका,
ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे।

मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ,
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे।

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Jab us ki tasvir banaya karta tha..

jab us ki tasvir banaya karta tha
kamra rangon se bhar jaaya karta tha

ped mujhe hasrat se dekha karte the
main jangal men paani laaya karta tha

thak jaata tha badal saaya karte karte
aur phir main badal pe saaya karta tha

baiTha rahta tha sahil pe saara din
dariya mujh se jaan chhuḌaya karta thā

bint-e-sahra ruTha karti thi mujh se
main sahra se ret churaya karta tha
---------------------------------------
जब उसकी तस्वीर बनाया करता था,
कमरा रंगों से भर जाया करता था।

पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे,
मैं जंगल में पानी लाया करता था।

थक जाता था बादल साया करते-करते,
और फिर मैं बादल पर साया करता था।

बैठा रहता था साहिल पे सारा दिन,
दरिया मुझसे जान छुड़ाया करता था।

बिन्त-ए-सहरा रूठा करती थी मुझसे,
मैं सहरा से रेत चुराया करता था।

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Ik haveli huun us ka dar bhi huun..

ik haveli huun us ka dar bhi huun
ḳhud hi angan ḳhud hi shajar bhi huun

apni masti men bahta dariya huun
main kinara bhi huun bhanvar bhi huun

asman aur zamin ki vusat dekh
main idhar bhi huun aur udhar bhi huun

ḳhud hi main ḳhud ko likh raha huun ḳhat
aur main apna nama-bar bhi huun

dastan huun main ik tavil magar
tu jo sun le to muḳhtasar bhi huun

ek phaldar ped huun lekin
vaqt aane pe be-samar bhi huun
-----------------------------------
एक हवेली हूँ, उसका दर भी हूँ,
खुद ही आँगन, खुद ही शजर भी हूँ।

अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ,
मैं किनारा भी हूँ, भँवर भी हूँ।

आसमां और जमीन की वुसअत देख,
मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ।

खुद ही मैं खुद को लिख रहा हूँ ख़त,
और मैं अपना नामबर भी हूँ।

दास्तां हूँ मैं एक तवील मगर,
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ।

एक फलदार पेड़ हूँ लेकिन,
वक्त आने पर बेसमर भी हूँ।

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Ham ko mita sake ye zamane men dam nahin..

ham ko miTa sake ye zamane men dam nahin
ham se zamana ḳhud hai zamane se ham nahin

be-fa.eda alam nahin be-kar Gham nahin
taufiq de ḳhuda to ye nemat bhi kam nahin

meri zaban pe shikva-e-ahl-e-sitam nahin
mujh ko jaga diya yahi ehsan kam nahin

ya rab hujūm-e-dard ko de aur vusaten
daman to kya abhi miri ankhen bhi nam nahin

shikva to ek chhed hai lekin haqiqatan
tera sitam bhi teri inayat se kam nahin

ab ishq us maqam pe hai justuju-navard
saaya nahin jahan koi naqsh-e-qadam nahin

milta hai kyuun maza sitam-e-rozgar men
terā karam bhi ḳhud jo sharik-e-sitam nahin

marg-e-'jigar' pe kyuun tiri ankhen hain ashk-rez
ik saneha sahi magar itna aham nahin
----------------------------------------
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं 
हम से ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं

बे-फायदा आलम नहीं, बे-कार ग़म नहीं 
तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये नेमत भी कम नहीं

मेरी ज़बान पे शिकवा-ए-अहल-ए-सितम नहीं 
मुझ को जगा दिया यही एहसान कम नहीं

या रब हुजूम-ए-दर्द को दे और वुसअतें 
दामन तो क्या, अभी मेरी आँखें भी नम नहीं

शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन 
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं

अब इश्क़ उस मुकाम पे है, तलाश-नवर्द
 साया नहीं जहाँ कोई नक्श-ए-क़दम नहीं

मिलता है क्यों मज़ा सितम-ए-रोज़गार में
 तेरा करम भी ख़ुद जो शरीक-ए-सितम नहीं

मौत-ए-'जिगर' पे क्यों तेरी आँखें हैं अश्क-रेज़ 
एक साना है सही, मगर इतना अहम नहीं
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Majnun ne shahr chhoda to sahra bhi chhod de..

majnun ne shahr chhoda to sahra bhi chhod de
nazzare ki havas ho to laila bhi chhod de

vaaiz kamal-e-tark se milti hai yaan murad
duniya jo chhod di hai to uqba bhi chhod de

taqlid Ki ravish se to behtar hai ḳhud-kushi
rasta bhi DhunD ḳhizr ka sauda bhi chhod de

manind-e-ḳhama teri zaban par hai harf-e-ghair
begana shai pe nazish-e-beja bhi chhod de

lutf-e-kalam kya jo na ho dil men dard-e-ishq
bismil nahin hai tu to taḌapna bhi chhod de

shabnam ki tarah phulon pe ro aur chaman se chal
is baagh men qayam ka sauda bhi chhod de

hai ashiqi men rasm alag sab se baiThna
but-ḳhana bhi haram bhi kalisa bhi chhod de

sauda-gari nahin ye ibadat ḳhuda ki hai
ai be-ḳhabar jaza ki tamanna bhi chhoḌ de

achchha hai dil ke saath rahe pasban-e-aql
lekin kabhi kabhi ise tanha bhi chhod de

jiina vo kya jo ho nafas-e-ghair par madar
shohrat ki zindagi ka bharosa bhi chhod de

shoḳhi si hai saval-e-mukarrar men ai kalim
shart-e-raza ye hai ki taqaza bhi chhod de

vaaiz subut laae jo mai ke javaz men
'iqbal' ko ye zid hai ki piina bhi chhod de
----------------------------------------------
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे

वाजिज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है यहाँ मुहब्बत
दुनिया जो छोड़ दी है तो ऊब़ा भी छोड़ दे

तकलीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुदकुशी
रास्ता भी ढूँढ ख़िज़र का सौदा भी छोड़ दे

मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बां पर है हरफ़-ए-ग़ैर
बेगाना शै पे नाज़िश-ए-बेज़ा भी छोड़ दे

लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़
बिज़मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे

शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे

है आशिकी में रस्म अलग सब से बैठना
बुत-ख़ाना भी हरम भी चर्चा भी छोड़ दे

सौदागरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर सज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

जीना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार
शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे

शौक़ी सी है सवाल-ए-मुकर्रर में ऐ कलीम
शर्त-ए-रज़ा ये है कि तक़ाज़ा भी छोड़ दे

वाजिज़ सुबूत ला ऐ जो मय के जवाद में
'इक़बाल' को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे

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Bevafai karke niklun ya vafa kar jaunga..

bevafai karke niklun ya vafa kar jaunga
shahr ko har zaiqe se ashna kar jaunga

tu bhi DhunDega mujhe shauq-e-saza men ek din
main bhi koi ḳhub-surat si ḳhata kar jaunga

mujh se achchhai bhi na kar meri marzi ke ḳhilaf
varna mai bhi haath koi dusra kar jaunga

mujh men hain gahri udasi ke jarasim is qadar
main tujhe bhi is maraz men mubtala kar jaunga

shor hai is ghar ke angan men 'zafar' kuchh roz aur
gumbad-e-dil ko kisi din be-sada kar jaunga
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बेवफ़ाई करके निकलूँ या वफ़ा कर जाऊँगा
शहर को हर ज़ायके से आश्ना कर जाऊँगा

तू भी ढूँढेगा मुझे शौक़-ए-सज़ा में एक दिन
मैं भी कोई ख़ूबसूरत सी ख़ता कर जाऊँगा

मुझसे अच्छाई भी न कर मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वरना मैं भी हाथ कोई दूसरा कर जाऊँगा

मुझमें हैं गहरी उदासी के जर्सीम इस कदर
मैं तुझे भी इस मर्ज़ में मुब्तला कर जाऊँगा

शोर है इस घर के आँगन में 'ज़फ़र' कुछ रोज़ और
गुम्बद-ए-दिल को किसी दिन बे-सदा कर जाऊँगा

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Yaad use bhī ek adhūrā afsāna to hogā..

yaad use bhī ek adhūrā afsāna to hogā
kal raste meñ us ne ham ko pahchānā to hogā

Dar ham ko bhī lagtā hai raste ke sannāTe se
lekin ek safar par ai dil ab jaanā to hogā

kuchh bātoñ ke matlab haiñ aur kuchh matlab kī bāteñ
jo ye farq samajh legā vo dīvāna to hogā

dil kī bāteñ nahīñ hai to dilchasp hī kuchh bāteñ hoñ
zinda rahnā hai to dil ko bahlānā to hogā

jiit ke bhī vo sharminda hai haar ke bhī ham nāzāñ
kam se kam vo dil hī dil meñ ye maanā to hogā
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याद उसे भी एक अधूरा अफ़साना तो होगा
कल रास्ते में उसने हम को पहचाना तो होगा

डर हम को भी लगता है रास्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफर पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें
जो ये फ़र्क समझ लेगा वो दीवाना तो होगा

दिल की बातें नहीं हैं तो दिलचस्प ही कुछ बातें हों
जिंदा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा

जीत के भी वो शर्मिंदा है, हार के भी हम नाज़ां
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा
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Jo dikh raha usi ke andar jo an-dikha hai vo shairi hai..

jo dikh raha usi ke andar jo an-dikha hai vo shairi hai
jo kah saka tha vo kah chuka huun jo rah gaya hai vo shairi hai

ye shahr saara to raushni men khila paḌa hai so kya likhun main
vo duur jangal ki jhonpaḌi men jo ik diya hai vo shairi hai

dilon ke mabain guftugu men tamam baten izafaten hain
tumhari baton ka har tavaqquf jo bolta hai vo shairi hai

tamam dariya jo ek samundar men gir rahe hain to kya ajab hai
vo ek dariya jo raste men hi rah gaya hai vo shairi hai
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जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शायरी है
जो कह सका था वो कह चुका हूँ, जो रह गया है वो शायरी है

यह शहर सारा तो रौशनी में खिला पड़ा है, सो क्या लिखूँ मैं
वो दूर जंगल की झोंपड़ी में जो एक दिया है वो शायरी है

दिलों के माबैन गुफ़्तगू में तमाम बातें इज़ाफ़तें हैं
तुम्हारी बातों का हर ठहराव जो बोलता है वो शायरी है

तमाम दरिया जो एक समुंदर में गिर रहे हैं तो क्या अजब है
वो एक दरिया जो रास्ते में ही रह गया है वो शायरी है

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Jaan jaane ko hai aur raqs men parvana hai..

Jaan jaane ko hai aur raqs men parvana hai
kitna rangin mohabbat tira afsana hai

ye to dekha ki mire haath men paimana hai
ye na dekha ki gham-e-ishq ko samjhana hai

itna nazdik hue tark-e-taalluq ki qasam
jo kahānī hai miri aap ka afssna hai

ham nahin vo ki bhula den tire ehsan-o-karam
ik inayat tira ḳhvabon men chala aana hai

ek mahshar se nahin kam tira aana lekin
ik qayamat tira pahlu se chala jaana hai

ḳhum o miina mai o masti ye gulabi ankhen
kitna pur-kaif mire hijr ka afsana hai
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जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
कितना रंगीन मोहब्बत तिरा अफ़साना है

यह तो देखा कि मेरे हाथ में पैमाना है
यह न देखा कि ग़म-ए-इश्क़ को समझाना है

इतना क़रीब हुए तर्क-ए-तअल्लुक़ की क़सम
जो कहानी है मेरी, आप का अफ़साना है

हम नहीं वो कि भुला दें तेरे एहसान-ओ-करम
एक इनायत तिरा ख़्वाबों में चला आना है

एक महशर से नहीं कम तिरा आना लेकिन
एक क़यामत तिरा पहलू से चला जाना है

ख़ुम ओ मीना, मय ओ मस्ती, ये गुलाबी आँखें
कितना पुरकैफ़ मेरे हिज्र का अफ़साना है

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hal-e-gham un ko sunate jaiye..

hal-e-gham un ko sunate jaiye
shart ye hai muskurate jaiye

aap ko jaate na dekha jaega
shama ko pahle bujhate jaiye

shukriya lutf-e-musalsal ka magar
gaahe gaahe dil dukhate jaiye

dushmanon se pyaar hota jaega
doston ko azmate jaiye

raushni mahdud ho jin ki 'ḳhumar'
un charaġhon ko bujhate jaiye
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हाल-ए-ग़म उनको सुनाते जाइए
शर्त यह है मुस्कुराते जाइए

आप को जाते न देखा जाएगा
शमा को पहले बुझाते जाइए

शुक्रिया लुत्फ़-ए-मुसलसल का मगर
गाहे-गाहे दिल दुखाते जाइए

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए

रोशनी महदूद हो जिनकी 'ख़ुमार'
उन चराग़ों को बुझाते जाइए

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Ye pairahan jo miri ruuh ka utar na saka..

ye pairahan jo miri ruuh ka utar na saka
to nakh-ba-nakh kahin paivast resha-e-dil tha

mujhe maal-e-safar ka malal kyun-kar ho
ki jab safar hi mira faslon ka dhoka tha

main jab firaq kī raton men us ke saath rahi
vo phir visal ke lamhon men kyuun akela tha

vo vaste ki tira darmiyan bhi kyuun aae
Khuda ke saath mira jism kyuun na ho tanha

sarab huun main tiri pyaas kya bujhaungi
is ishtiyaq se tishna zaban qarib na la

sarab huun ki badan ki yahi shahadat hai
har ek uzv men bahta hai ret ka dariya

jo mere lab pe hai shayad vahi sadaqat hai
jo mere dil men hai us harf-e-raegan pe na ja

jise main toḌ chuki huun vo raushni ka tilism
shua-e-nur-e-azal ke siva kuchh aur na tha
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यह पहनावा जो मेरी रूह का उतर न सका
तो नक़-ए-नक़ कहीं पैवस्त रेशे-ए-दिल था

मुझे माल-ए-सफ़र का मलाल क्यूँकर हो
कि जब सफ़र ही मेरा फ़ासलों का धोका था

मैं जब फ़िराक़ की रातों में उसके साथ रही
वो फिर विसाल के लम्हों में क्यूँ अकेला था

वो वास्ते की तिरा दरमियान भी क्यूँ आए
ख़ुदा के साथ मेरा जिस्म क्यूँ ना हो तन्हा

सराब हूँ मैं तेरी प्यास क्या बुझाऊँगी
इस इश्क़ से तिश्ना ज़बान क़रीब ना ला

सराब हूँ कि बदन की यही शाहदत है
हर एक अज़्व में बहता है रेत का दरिया

जो मेरे लब पे है शायद वही सच्चाई है
जो मेरे दिल में है उस हर्फ़-ए-राज़ीगां पे ना जा

जिसे मैं तोड़ चुकी हूँ वो रोशनी का तिलिस्म
शुआ-ए-नूर-ए-अज़ल के सिवा कुछ और ना था

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Bulati hai magar jaane ka nain..

bulati hai magar jaane ka nain
vo duniya hai udhar jaane ka nain

sitare noch kar le jaunga
main khali haath ghar jaane ka nain

mire bete kisi se ishq kar
magar had se guzar jaane ka nain

vo gardan napta hai naap le
magar zalim se Dar jaane ka nain

vaba phaili hui hai har taraf
abhi mahaul mar jaane ka nain
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बुलाती है मगर जाने का नहीं
वो दुनिया है उधर जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊँगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क कर
मगर हद से गुजर जाने का नहीं

वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर ज़ालिम से डर जाने का नहीं

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
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Arzuen hazar rakhte hain..

arzuen hazar rakhte hain
to bhi ham dil ko maar rakhte hain

barq kam-hausla hai ham bhi to
dilak-e-be-qarar rakhte hain

ghair hi maurid-e-inayat hai
ham bhi to tum se pyaar rakhte hain

na nigah ne payam ne vaada
naam ko ham bhi yaar rakhte hain

ham se ḳhush-zamzama kahan yuun to
lab o lahja hazar rakhte hain

choTTe dil ke hain butan mashhur
bas yahi e'tibar rakhte hain

phir bhi karte hain 'mir' sahab ishq
hain javan iḳhtiyar rakhte hain
-----------------------------------
आऱ्ज़ुएँ हज़ार रखते हैं
तो भी हम दिल को मार रखते हैं

बर्क कम-हौसला है हम भी तो
दिलक-ए-बे-करार रखते हैं

ग़ैर ही मुअरिद-ए-इनायत है
हम भी तो तुम से प्यार रखते हैं

ना निगाह ने पैगाम ने वादा
नाम को हम भी यार रखते हैं

हम से ख़ुश-ज़मज़मा कहाँ यूँ तो
लब ओ लहजा हज़ार रखते हैं

छोटे दिल के हैं बुतां मशहूर
बस यही एतिबार रखते हैं

फिर भी करते हैं 'मीर' साहब इश्क़
हैं जवां इख़्तियार रखते हैं


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Nahin ki tere ishare nahin samajhta huun..

nahin ki tere ishare nahin samajhta huun
samajh to leta huun saare nahin samajhta huun

tira chadha hua dariya samajh men aata hai
tire khamosh kinare nahin samajhta huun

kidhar se nikla hai ye chand kuchh nahin maalum
kahan ke hain ye sitare nahin samajhta huun

kahin kahin mujhe apni ḳhabar nahin milti
kahin kahin tire baare nahin samajhta huun

jo daaen baaen bhi hain aur aage pichhe bhi
unhen main ab bhi tumhare nahin samajhta huun

ḳhud apne dil se yahi iḳhtilaf hai mera
ki main ghamon ko ghubare nahin samajhta huun

kabhi to hota hai meri samajh se bahar hi
kabhi main sharm ke maare nahin samajhta huun

kahin to hain jo mire khvab dekhte hain 'zafar'
koi to hain jinhen pyare nahin samajhta huun
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नहीं कि तेरे इशारे नहीं समझता हूँ
समझ तो लेता हूँ, सारे नहीं समझता हूँ

तेरा चढ़ा हुआ दरिया समझ में आता है
तेरे खामोश किनारे नहीं समझता हूँ

किधर से निकला है ये चाँद कुछ नहीं मालूम
कहाँ के हैं ये सितारे नहीं समझता हूँ

कहीं कहीं मुझे अपनी खबर नहीं मिलती
कहीं कहीं तेरे बारे नहीं समझता हूँ

जो दाएँ बाएँ हैं और आगे पीछे भी
उन्हें मैं अब भी तुम्हारे नहीं समझता हूँ

खुद अपने दिल से यही इख्तिलाफ है मेरा
कि मैं ग़मों को घुबारे नहीं समझता हूँ

कभी तो होता है मेरी समझ से बाहर ही
कभी मैं शर्म के मारे नहीं समझता हूँ

कहीं तो हैं जो मेरे ख़्वाब देखते हैं 'ज़फ़र'
कोई तो हैं जिन्हें प्यारे नहीं समझता हूँ

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Main dil pe jabr karunga tujhe bhula dunga..

main dil pe jabr karunga tujhe bhula dunga
marunga Khud bhi tujhe bhi kadi saza dunga

ye tirgi mire ghar ka hi kyuun muqaddar ho
main tere shahr ke saare diye bujha dunga

hava ka haath baTaunga har tabahi men
hare shajar se parinde main khud uda dunga

vafa karunga kisi sogvar chehre se
purani qabr pe katba naya saja dunga

isi ḳhayal men guzri hai sham-e-dard aksar
ki dard had se badhega to muskura dunga

tu asman ki surat hai gar padega kabhi
zamin huun main bhi magar tujh ko aasra dunga

baḌha rahi hain mire dukh nishaniyan teri
main tere ḳhat tiri tasvir tak jala dunga

bahut dinon se mira dil udaas hai 'mohsin'
is aaine ko koi aks ab naya dunga
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मैं दिल पे जबर करूंगा तुझे भुला दूंगा
मरूंगा खुद भी तुझे भी कड़ी सज़ा दूंगा

ये तीरगी मेरे घर का ही क्यों मुक़द्दर हो
मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूंगा

हवा का हाथ बता आउंगा हर तबाही में
हरे शजर से परिंदे मैं खुद उड़ा दूंगा

वफ़ा करूंगा किसी सोगवार चेहरे से
पुरानी क़बर पे क़तबा नया सजा दूंगा

इसी ख़याल में गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूंगा

तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी
ज़मीन हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूंगा

बढ़ा रही हैं मेरे दुख निशानियाँ तेरी
मैं तेरे ख़त तेरी तस्वीर तक जला दूंगा

बहुत दिनों से मेरा दिल उदास है 'मोहनस'
इस आईने को कोई अक्स अब नया दूंगा

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Ik din zaban sukut ki puurī banaunga..

Ik din zaban sukut ki puurī banaunga
main guftugu ko ghair-zaruri banaunga

tasvir men banaunga donon ke haath aur
donon men ek haath ki duuri banaunga

muddat samet jumla zavabit hon tai-shuda
yaani taalluqat uburi banaunga

tujh ko khabar na hogi ki main as-pas huun
is baar haziri ko huzuri banaunga

rangon pe iḳhtiyar agar mil saka kabhi
teri siyah putliyan bhuri banaunga

jaari hai apni zaat pe tahqiq aj-kal
main bhi ḳhala pe ek theory banaunga

main chaah kar vo shakl mukammal na kar saka
us ko bhi lag raha tha adhuri banaunga
--------------------------------------
एक दिन ज़बान सुकूत की पूरी बनाऊँगा
मैं गुफ़्तुगू को गैर-ज़रूरी बनाऊँगा

तस्वीर में बनाऊँगा दोनों के हाथ और
दोनों में एक हाथ की दूरी बनाऊँगा

मु़द्दत समेट जुमला ज़वाबित हों तय-शुदा
यानी ताल्लुकात उबूरी बनाऊँगा

तुझ को खबर न होगी कि मैं आस-पास हूँ
इस बार हाज़िरी को हज़ूरी बनाऊँगा

रंगों पे इख़्तियार अगर मिल सका कभी
तेरी स्याह पुतलियाँ भूरी बनाऊँगा

जारी है अपनी जात पे तहरीक आज-कल
मैं भी ख़ला पे एक थ्योरी बनाऊँगा

मैं चाह कर वो शक्ल मुकम्मल न कर सका
उस को भी लग रहा था अधूरी बनाऊँगा
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meri mahfil tha miri ḳhalvat-e-jan tha kya tha..

meri mahfil tha miri ḳhalvat-e-jan tha kya tha
vo ajab shaḳhs tha ik raz-e-nihan tha kya tha

baal khole hue phirti thiin hasinaen kuchh
vasl tha ya ki judai ka saman tha kya tha

haae us shoḳh ke khul paae na asrar kabhi
jaane vo shaḳhs yaqin tha ki guman tha kya tha

tum jise markazi kirdar samajh baithe ho
vo fasane men agar tha to kahan tha kya tha

kyuun 'vasi'-shah pe pari-zadiyan jaan deti hain
mah-e-kanan tha shair tha javan tha kya tha
-------------------------------------------
मेरी महफ़िल था, मेरी ख़लवत-ए-जान था क्या था
वो अजब शख़्स था, एक राज़-ए-निहां था क्या था

बाल खुले हुए फिरती थीं हसीनाएँ कुछ
वस्ल था या कि जुदाई का समां था क्या था

हां, उस शोख़ के खुल न पाए न असरार कभी
जाने वो शख़्स यकीं था कि गुमां था क्या था

तुम जिसे केंद्रीय किरदार समझ बैठे हो
वो फ़साने में अगर था तो कहाँ था क्या था

क्यों 'वसी' शाह पे परी-ज़ादियाँ जान देती हैं
माह-ए-क़नान था, शायर था, जवान था क्या था

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Khayal jis ka tha mujhe ḳhayal men mila mujhe..

ḳhayal jis ka tha mujhe ḳhayal men mila mujhe
saval ka javab bhi saval men mila mujhe

gaya to is tarah gaya ki muddaton nahin mila
mila jo phir to yuun ki vo malal men mila mujhe

tamam ilm ziist Ka guzishtagan se hi hua
amal guzishta daur Ka misal men mila mujhe

nihal sabz rang men jamal jis ka hai 'munir'
Kisi qadim ḳhvab ke muhal men mila mujhe
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ख़याल जिसका था मुझे ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे

गया तो इस तरह गया कि सदियों नहीं मिला
मिला जो फिर तो यूँ की वो मलाल में मिला मुझे

तमाम इल्म ज़ीस्त का गुज़िश्तगां से ही हुआ
अमल गुज़िश्ता दौर का मिसाल में मिला मुझे

निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिसका है 'मुनीर'
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे

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dil dhaḌakne ka sabab yaad aaya..

dil dhaḌakne ka sabab yaad aaya
vo tiri yaad thi ab yaad aaya

aaj mushkil tha sambhalna ai dost
tū musibat men ajab yaad aaya

din guzara tha baḌi mushkil se
phir tira vaada-e-shab yaad aaya

tera bhula hua paiman-e-vafa
mar rahenge agar ab yaad aaya

phir kai log nazar se guzre
phir koi shahr-e-tarab yaad aaya

hāl-e-dil ham bhi sunate lekin
jab vo ruḳhsat hua tab yaad aaya

baiTh kar saya-e-gul men 'nasir'
ham bahut roe vo jab yaad aaya
-------------------------------
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया

आज मुश्किल था सम्हलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया

तेरा भूला हुआ पैमाना-ए-वफा
मर जाएंगे अगर अब याद आया

फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया

हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़सत हुआ तब याद आया

बैठ कर साया-ए-गुल में 'नासिर'
हम बहुत रोए वो जब याद आया



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Lab-e-ḳhamosh se ifsha hoga..

lab-e-ḳhamosh se ifsha hoga
raaz har rang men rusva hoga

dil ke sahra men chali sard hava
abr gulzar pe barsa hoga

tum nahin the to sar-e-bam-e-ḳhayal
yaad Ka koi sitara hoga

kis tavaqqo.a pe Kisi ko dekhen
koi tum se bhi hasin Kya hoga

zinat-e-halqa-e-aġhosh bano
duur baithoge to charcha hoga

jis bhi fankar Ka shahkar ho tum
us ne sadiyon tumhen socha hoga

aaj Ki raat bhi tanha hi kati
aaj ke din bhi andhera hoga

kis qadar karb se chaTki hai kali
shaḳh se gul koi TuuTa hoga

umr bhar roe faqat is dhun men
raat bhigi to ujala hoga

saari duniya hamen pahchanti hai
koi ham sa bhi na tanha hoga
-----------------------------
लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
राज़ हर रंग में रुस्वा होगा

दिल के सहरा में चली सर्द हवा
अब्र गुलज़ार पे बरसा होगा

तुम नहीं थे तो सर-ए-बाम-ए-ख़याल
याद का कोई सितारा होगा

किस तवक्को़ा पे किसी को देखें
कोई तुम से भी हसीं क्या होगा

ज़ीनत-ए-हलक़ा-ए-आग़ोश बनो
दूर बैठोगे तो चर्चा होगा

जिस भी फ़नकार का शाहकार हो तुम
उसने सदियों तुम्हें सोचा होगा

आज की रात भी तन्हा ही कटी
आज के दिन भी अंधेरा होगा

किस क़दर करब से चटकी है कली
शाख से गुल कोई टूटा होगा

उम्र भर रोए फ़क़त इस धुन में
रात भीगी तो उजाला होगा

सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा
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Meri tanhai badhate hain chale jaate hain..

meri tanhai baḌhate hain chale jaate hain
hans talab pe aate hain chale jaate hain

is liye ab main Kisi ko nahin jaane deta
jo mujhe chhoḌ ke jaate hain chale jaate hain

meri ankhon se baha karti hai un ki ḳhushbu
raftagan ḳhvab men aate hain chale jaate hain

shadi-e-marg ka mahaul bana rahta hai
aap aate hain rulate hain chale jaate hain

kab tumhen ishq pe majbur kiya hai ham ne
ham to bas yaad dilate hain chale jaate hain

aap ko kaun tamasha.īi samajhta hai yahan
aap to aag lagate hain chale jaate hain

haath patthar ko baḌhaun to sagan-e-duniya
hairati ban ke dikhate hain chale jaate hain
----------------------------------------------
मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं  
हँस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं  

इसलिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता  
जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं  

मेरी आँखों से बहा करती है उनकी ख़ुशबू  
रफ्तगान ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं  

शादी-ए-मर्ग का माहौल बना रहता है  
आप आते हैं रुलाते हैं चले जाते हैं  

कब तुम्हें इश्क़ पे मजबूर किया है हम ने  
हम तो बस याद दिलाते हैं चले जाते हैं  

आप को कौन तमाशाई समझता है यहाँ  
आप तो आग लगाते हैं चले जाते हैं  

हाथ पत्थर को बढ़ाऊँ तो सगान-ए-दुनिया  
हैरती बन के दिखाते हैं चले जाते हैं

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Pahle-pahal laḌenge tamasḳhur uḌaenge..

pahle-pahal laḌenge tamasḳhur uḌaenge
jab ishq dekh lenge to sar par biThaenge

tu to phir apni jaan hai tera to zikr kya
ham tere doston ke bhī naḳhre uThaenge

'ġhalib' ne ishq ko jo dimaġhi ḳhalal kaha
chhoḌen ye ramz aap nahin jaan paenge

parkhenge ek ek ko le kar tumhara naam
dushman hai kaun dost hai pahchan jaenge

qibla kabhi to taza-suḳhan bhi karen ata
ye char-panch ghazlen hi kab tak sunaenge

aage to aane dijiye rasta to chhoḌiye
ham kaun hain ye samne aa kar bataenge

ye ehtimam aur kisi ke liye nahin
taane tumhare naam ke ham par hi aenge
----------------------------------------
पहले-पहल लड़ेँगे तमसख़ुर उड़ाएँगे
जब इश्क़ देख लेंगे तो सर पर बैठाएँगे

तू तो फिर अपनी जान है तेरा तो ज़िक्र क्या
हम तेरे दोस्तों के भी नखरे उठाएँगे

'ग़ालिब' ने इश्क़ को जो दिमाग़ी ख़लाल कहा
छोड़ें ये रज़्म आप नहीं जान पाएँगे

परखेंगे एक-एक को ले कर तुम्हारा नाम
दुश्मन है कौन दोस्त है पहचान जाएँगे

क़िबला कभी तो ताज़ा-सुख़ान भी करें अता
ये चार-पाँच ग़ज़लें ही कब तक सुनाएँगे

आगे तो आने दीजिए रास्ता तो छोड़िए
हम कौन हैं ये सामने आ कर बताएँगे

ये एहतिमाम और किसी के लिए नहीं
ताने तुम्हारे नाम के हम पर ही आएँगे

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Zarur us Ki nazar mujh pe hi gadi hui hai..

Zarur us Ki nazar mujh pe hi gadi hui hai
main jym se aa raha huun astin chaḌhi hui hai

mujhe zara sa bura kah diya to is se kya
vo itni baat pe maan baap se laḌi hui hai

use zarurat-e-parda zara ziyada hai
ye vo bhi janti hai jab se vo baḌi hui hai

vo meri di hui nthuni pahan ke ghumti hai
tabhi vo in dinon kuchh aur nak-chaḌhi hui hai

muahidon men lachak bhi zaruri hoti hai
par is ki suui vahin ki vahin aḌi hui hai

vo tie bandhti hai aur khinch leti hai
ye kaise vaqt use pyaar ki paḌi hui hai

ḳhuda ke vaste likhte raho ki us ne 'amīr'
har ik ghazal tiri sau sau dafa paḌhi hui hai
------------------------------------------------
ज़रूर उसकी नज़र मुझ पे ही गड़ी हुई है
मैं जिम से आ रहा हूँ आस्तीन चढ़ी हुई है

मुझे ज़रा सा बुरा कह दिया तो इससे क्या
वो इतनी बात पे माँ-बाप से लड़ी हुई है

उसे ज़रूरत-ए-परदा ज़रा ज़्यादा है
ये वो भी जानती है जब से वो बड़ी हुई है

वो मेरी दी हुई घुंटी पहन के घूमती है
तभी वो इन दिनों कुछ और नख-चढ़ी हुई है

मुआहिदों में लचक भी ज़रूरी होती है
पर इसकी सूई वहीं की वहीं अड़ी हुई है

वो टाई बांधती है और खींच लेती है
ये कैसे वक्त उसे प्यार की पड़ी हुई है

ख़ुदा के वास्ते लिखते रहो कि उसने 'अमीर'
हर इक ग़ज़ल तिरी सौ सौ दफ़ा पढ़ी हुई है

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le chala jaan miri ruuTh ke jaana tera..

le chala jaan miri ruuTh ke jaana tera
aise aane se to behtar tha na aana tera

apne dil ko bhi bata.un na Thikana tera
sab ne jaana jo pata ek ne jaana tera

tu jo ai zulf pareshan raha karti hai
kis ke ujḌe hue dil men hai Thikana tera

aarzu hi na rahi subh-e-vatan ki mujh ko
sham-e-ġhurbat hai ajab vaqt suhana tera

ye samajh kar tujhe ai maut laga rakkha hai
kaam aata hai bure vaqt men aana tera

ai dil-e-shefta men aag lagane vaale
rang laaya hai ye lakhe ka jamana tera

tu ḳhuda to nahin ai naseh-e-nadan mera
kya ḳhata ki jo kaha main ne na maana tera

ranj kya vasl-e-adu ka jo taalluq hi nahin
mujh ko vallah hansata hai rulana tera

kaaba o dair men ya chashm-o-dil-e-ashiq men
inhin do-char gharon men hai Thikana tera

tark-e-adat se mujhe niind nahin aane ki
kahin nicha na ho ai gor sirhana tera

main jo kahta huun uThae hain bahut ranj-e-firaq
vo ye kahte hain baḌa dil hai tavana tera

bazm-e-dushman se tujhe kaun uTha sakta hai
ik qayamat Ka uThana hai uThana tera

apni ankhon men abhi kaund gai bijli si
ham na samjhe ki ye aanā hai ki jaanā tera

yuun to kya aaega tu fart-e-nazakat se yahan
saḳht dushvar hai dhoke men bhi aana tera

'daġh' ko yuun vo miTate hain ye farmate hain
tu badal Daal hua naam purana tera
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ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा

अपने दिल को भी बता.ऊँ न ठिकाना तेरा
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा

तू जो ऐ जुल्फ परेशान रहा करती है
किसके उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा

आर्ज़ू ही न रही सुबह-ए-वतन की मुझ को
शाम-ए-ग़ुरबत है अजब वक्त सुहाना तेरा

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रख्खा है
काम आता है बुरे वक्त में आना तेरा

ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले
रंग लाया है ये लाख़े का जमाना तेरा

तू खुदा तो नहीं ऐ नासेह-ए-नादान मेरा
क्या ख़ता की जो कहा मैंने न माना तेरा

रंज क्या वस्ल-ए-अदू का जो ताल्लुक ही नहीं
मुझ को वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा

काबा ओ देर में या आँखो-दिल-ए-आशिक में
इन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा

तर्क-ए-आदत से मुझे नींद नहीं आने की
कहीं नीचा ना हो ऐ गोर सिरहाना तेरा

मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फिराक
वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा

बज़्म-ए-दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है
एक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा

अपनी आँखों में अभी कौंध गई बिजली सी
हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा

यूँ तो क्या आएगा तू फरत-ए-नज़ाकत से यहाँ
सख्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा

'दाग़' को यूँ वो मिटाते हैं ये फरमाते हैं
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा

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dosti jab kisi se Ki jaae..

dosti jab kisi se Ki jaae
dushmanon Ki bhi raae li jaa.e

maut ka zahr hai fazaon men
ab kahan ja ke saans li jaae

bas isi soch men huun Duuba hua
ye nadi kaise paar ki jaa.e

agle vaqton ke zaḳhm bharne lage
aaj phir koi bhuul Ki jaa.e

lafz dharti pe sar paTakte hain
gumbadon men sada na di jaae

kah do is ahd ke buzurgon se
zindagi ki dua na di jaa.e

botalen khol ke to pi barson
aaj dil khol kar hī pi jaa.e
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दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राह ली जाए

मौत का ज़हर है फ़िजाओं में
अब कहाँ जा के सांस ली जाए

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए

अगले वक्तों के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए

लफ़्ज़ धरती पे सर पटकते हैं
गुम्बदों में सदा न दी जाए

कह दो इस अहद के बुज़ुर्गों से
ज़िंदगी की दुआ न दी जाए

बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल कर ही पी जाए

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Patta patta buuTa buuTa haal hamara jaane hai..

patta patta buuTa buuTa haal hamara jaane hai
jaane na jaane gul hi na jaane baaġh to saara jaane hai

lagne na de bas ho to us ke gauhar-e-gosh ko baale tak
us ko falak chashm-e-mah-o-ḳhur Ki putli Ka taara jaane hai

aage us mutakabbir ke ham ḳhuda ḳhuda kiya karte hain
kab maujud ḳhuda ko vo maġhrur-e-ḳhud-ara jaane hai

ashiq sa to saada koi aur na hoga duniya men
ji ke ziyan ko ishq men us ke apna vaara jaane hai

charagari bimari-e-dil Ki rasm-e-shahr-e-husn nahin
varna dilbar-e-nadan bhi is dard Ka chara jaane hai

kya hi shikar-farebi par maġhrur hai vo sayyad bacha
taa.ir uḌte hava men saare apne asara jaane hai

mehr o vafa o lutf-o-inayat ek se vaqif in men nahin
aur to sab kuchh tanz o kinaya ramz o ishara jaane hai

Kya Kya fitne sar par us ke laata hai mashuq apna
jis be-dil be-tab-o-tavan ko ishq Ka maara jaane hai

raḳhnon se divar-e-chaman ke munh ko le hai chhupa ya'nī
in suraḳhon ke Tuk rahne ko sau Ka nazara jaane hai

tishna-e-ḳhun hai apna kitna 'mir' bhi nadan talḳhi-kash
dam-dar ab-e-tegh ko us ke ab-e-gavara jaane hai
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पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है

लगने न दे बस हो तो उसके गौहर-ए-ग़ोश को बाले तक
उस को फ़लक आँख-ए-माहो-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है

आगे उस मतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा जाने है

आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है

चागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वरना दिलबर-ए-नादान भी इस दर्द का चारा जाने है

क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सैय्याद बचा
ताईर उड़ते हवा में सारे अपने असरां जाने है

महरो-वफ़ा-ओ-लुत्फ़ो-इन्सायत एक से वाकिफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तंजो-किनाया-रमज़ो-इशारा जाने है

क्या क्या फितने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बेदिल बे-ताबो-तवां को इश्क़ का मारा जाने है

रखनो से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा यानि
इन सूराखों के तुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है

तिश्ना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादान तल्ख़ी-कश
दमदार आब-ए-तग़ को उसके आब-ए-ग़वारा जाने है









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Thakna bhi lazmi tha kuchh kaam karte karte..

thakna bhi lazmi tha kuchh kaam karte karte
kuchh aur thak gaya huun aram karte karte

andar sab aa Gaya hai bahar Ka bhi andhera
ḳhud raat ho gaya huun main shaam karte karte

ye umr thihi aisi jaisi guzar di hai
badna hote hote badna karte karte

phañstā nahin arindahai bhi isi fza men
tang aa gaya hun dil ko yuun dam karte karte

kuchh be-ḳhabar nahin he jo jante hain mujh ko
main kuuch kar raha tha bisram krte karte

sar se guzar Gaya hai panni to zor karta
sab rok rukte rukte sab thaam karte karte

kis ke tawaf men the aur ye din aa gae hain
Kya ḳhaak thi ki jis ko ihram karte karte

jis moḌ se chale the pahunhe hain phir ahin par
ik rā.egāñ safar ko anjām karte karte

ahir 'zafar' hua hun manzar se ḳhud hi ġhaeb
uslub eḳhs apnā main aam karte karte
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थकना भी ज़रूरी था कुछ काम करते करते
कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते

अंदर सब आ गया है बाहर का भी अंधेरा
ख़ुद रात हो गया हूँ मैं शाम करते करते

ये उम्र थी ही ऐसी जैसी गुज़ार दी है
बदनाम होते होते बदनाम करते करते

फँसता नहीं परिंदा है भी इसी हवा में
तंग आ गया हूँ दिल को यूँ दाम करते करते

कुछ बे-ख़बर नहीं थे जो जानते हैं मुझ को
मैं कुछ कर रहा था विश्राम करते करते

सर से गुज़र गया है पानी तो ज़ोर करता
सब रोक रुकते रुकते सब थाम करते करते

किसके तवाफ़ में थे और ये दिन आ गए हैं
क्या ख़ाक थी कि जिस को इह्राम करते करते

जिस मोड़ से चले थे पहुंचे हैं फिर वहीं पर
एक रागाँ सफ़र को अंजाम करते करते

आख़िर 'ज़फर' हुआ हूँ मंज़र से ख़ुद ही ग़ायब
उसूल-ए-ख़ास अपना मैं आम करते करते

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Ujde hue logon se gurezan na hua kar..

ujde hue logon se gurezan na hua kar
halat ki qabron ke ye katbe bhi paḌha kar

Kya jnniye kyuun tez hava soch men gum hai
ḳhvabida parindon ko daraḳhton se uḌa kar

us shaḳhs ke tum se bhi marasim hain to honge
vo jhuuT na bolega mire samne aa kar

har vaqt Ka hansna tujhe barbad na kar de
tanhai ke lamhon men kabhi ro bhi liyā kar

vo aaj bhi sadiyon Ki masafat pe khaḌa hai
DhunDa tha jise vaqt Ki divar gira kar

ai dil tujhe dushman Ki bhi pahchan kahan hai
tu halqa-e-yaran men bhi mohtat raha kar

is shab ke muqaddar men sahar hi nahin 'mohsin'
dekha hai kai baar charaġhon ko bujha kar
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उजड़े हुए लोगों से ग़ज़ाँ न हुआ कर
हालात की क़ब्रों के ये क़तबे भी पढ़ा कर

क्या जानिए क्यों तेज़ हवा सोच में ग़म है
ख्वाबीदा परिंदों को दरख़्तों से उड़ा कर

उस शख़्स के तुम से भी मरासिम हैं तो होंगे
वो झूठ न बोलेगा मेरे सामने आ कर

हर वक़्त का हंसना तुझे बर्बाद न कर दे
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर

वो आज भी सदियों की मसाफत पे खड़ा है
ढूंढा था जिसे वक्त की दीवार गिरा कर

ऐ दिल तुझे दुश्मन की भी पहचान कहाँ है
तू हलक़ा-ए-यारां में भी मुहतात रहा कर

इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं 'मोहनसिन'
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर

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Ab bhala chhod ke ghar kya karte..

ab bhala chhod ke ghar kya karte
shaam ke vaqt safar kya karte

Teri masrufiyaten jante hain
apne aane ki ḳhabar kya karte

jab sitare hi nahin mil paae
le ke ham shams-o-qamar kya karte

vo musafir hi khuli dhuup Ka tha
saae phaila ke shajar kya karte

ḳhaak hi avval o aḳhir Thahri
kar ke zarre ko guhar kya karte

raae pahle se bana li tu ne
dil men ab ham tire ghar kya karte

ishq ne saare saliqe baḳhshe
husn se kasb-e-hunar kya karte
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अब भला छोड़ के घर क्या करते
शाम के वक़्त सफ़र क्या करते

तेरी मशरूफ़ियतें जानते हैं
अपने आने की ख़बर क्या करते

जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-क़मर क्या करते

वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते

ख़ाक ही अव्वल-ओ-आख़िर ठहरी
कर के ज़र्रे को गुहर क्या करते

राय पहले से बना ली तू ने
दिल में अब हम तेरे घर क्या करते

इश्क़ ने सारे सलीक़े बख़्शे
हुस्न से कस्ब-ए-हुनर क्या करते
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Hamare paas to aao bada andhera hai..

hamare paas to aao baḌa andhera hai
kahin na chhoḌ ke jaao Bada andhera hai

udaas kar gae be-saḳhta latife bhi
ab ansuon se rulao Bada andhera hai

koi sitara nahin pattharon Ki palkon par
koi charaġh jalao Bada andhera hai

haqiqaton men zamana bahut guzar chuke
koi kahani sunao Bada andhera hai

kitaben kaisi uTha laae mai-kade vaale
ġhazal ke jaam uThao Bada andhera hai

ġhazal men jis Ki hamesha charaġh jalte hain
use kahin se bulao Bada andhera hai

vo Chandni Ki basharat hai harf-e-aḳhir tak
'bashir-badr' ko laao Bada andhera hai
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हमारे पास तो आओ बड़ा अँधेरा है
कहीं न छोड़ के जाओ बड़ा अँधेरा है

उदास कर गए बे-साख़्ता लतीफ़े भी
अब आँसुओं से रुलाओ बड़ा अँधेरा है

कोई सितारा नहीं पत्थरों की पलकों पर
कोई चराग़ जलाओ बड़ा अँधेरा है

हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके
कोई कहानी सुनाओ बड़ा अँधेरा है

किताबें कैसी उठा लाए मैकदे वाले
ग़ज़ल के जाम उठाओ बड़ा अँधेरा है

ग़ज़ल में जिस की हमेशा चराग़ जलते हैं
उसे कहीं से बुलाओ बड़ा अँधेरा है

वो चाँदनी की बशारत है हर्फ़-ए-आख़िर तक
'बशीर-बद्र' को लाओ बड़ा अँधेरा है
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Apna dil pesh karun apni vafa pesh karun..

Apna dil pesh karun apni vafa pesh karun
kuchh samajh men nahin aata tujhe kya pesh karun

tere milne ki ḳhushi men koi naghma chheḌun
ya tire dard-e-judai Ka gila pesh karun

mere ḳhvabon men bhi tu mere ḳhayalon men bhi tu
kaun si chiiz tujhe tujh se juda pesh karun

jo tire dil ko lubhae vo ada mujh men nahin
kyuun na tujh ko koi Teri hi ada pesh karun
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अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ

तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़मा छेड़ूँ
या तेरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ

मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ

जो तेरे दिल को लुभाए वो अदा मुझ में नहीं
क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ

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Sham-e-gham ki sahar nahin hoti..

sham-e-gham ki sahar nahin hoti
ya hamin ko ḳhabar nahin hoti

ham ne sab dukh jahan ke dekhe hain
bekali is qadar nahin hoti

naala yuun na-rasa nahin rahta
aah yuun be-asar nahin hoti

chand hai kahkashan hai taare hain
koi shai nama-bar nahin hoti

ek jan-soz o na-murad ḳhalish
is taraf hai udhar nahin hoti

dosto ishq hai ḳhata lekin
kya ḳhata darguzar nahin hoti

raat aa kar guzar bhi jaati hai
ik hamari sahar nahin hoti

be-qarari sahi nahin jaati
zindagi muḳhtasar nahin hoti

ek din dekhne ko aa jaate
ye havas umr bhar nahin hoti

husn sab ko ḳhuda nahin deta
har kisi ki  nazar nahin hoti

dil piyala nahin gadai ka
ashiqi dar-ba-dar nahin hoti
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शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती
या हमीं को ख़बर नहीं होती

हम ने सब दुख जहान के देखे हैं
बेकली इस क़दर नहीं होती

नाला यूँ ना-रसा नहीं रहता
आह यूँ बे-असर नहीं होती

चाँद है, आकाश है, तारे हैं
कोई शै नामबर नहीं होती

एक जान-सोज़ और ना-मुराद ख़लिश
इस तरफ है, उधर नहीं होती

दोस्तो, इश्क़ है ख़ता लेकिन
क्या ख़ता दरगुज़र नहीं होती

रात आकर गुज़र भी जाती है
एक हमारी सहर नहीं होती

बे-करारी सही नहीं जाती
ज़िन्दगी मुट्ठी भर नहीं होती

एक दिन देखने को आ जाते
ये हवस उम्र भर नहीं होती

हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती

दिल प्याला नहीं, ग़दाई का
आशिकी दर-ब-दर नहीं होती
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Apne saae ko itna samjhane de..

apne saae ko itna samjhane de
mujh tak mere hisse ki dhuup aane de

ek nazar men kai zamane dekhe to
buḌhi ankhon kī tasvir banane de

baaba duniya jiit ke main dikhla dunga
apni nazar se duur to mujh ko jaane de

main bhi to is baagh ka ek parinda huun
meri hi avaz men mujh ko gaane de

phir to ye uncha hi hota jaega
bachpan ke hathon men chand aa jaane de

faslen pak jaaen to khet se bichhḌengi
roti aankh ko pyaar kahan samjhane de
-----------------------------------------
अपने साए को इतना समझाने दे
मुझ तक मेरे हिस्से की धूप आने दे

एक नज़र में कई ज़माने देखे तो
बूढ़ी आँखों की तस्वीर बनाने दे

बाबा दुनिया जीत के मैं दिखला दूँगा
अपनी नज़र से दूर तो मुझको जाने दे

मैं भी तो इस बाग़ का एक परिंदा हूँ
मेरी ही आवाज़ में मुझको गाने दे

फिर तो ये ऊँचा ही होता जाएगा
बच्चपन के हाथों में चाँद आ जाने दे

फासले पक जाएं तो खेत से बिछड़ेंगी
रोटी आँख को प्यार कहाँ समझाने दे


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Jigar aur dil ko bachana bhi hai..

jigar aur dil ko bachana bhi hai
nazar aap hi se milana bhi hai

mohabbat ka har bhed paana bhi hai
magar apna daman bachana bhi hai

jo dil tere ġham ka nishana bhi hai
qatil-e-jafa-e-zamana bhi hai

ye bijli chamakti hai kyuun dam-ba-dam
chaman men koi ashiyana bhi hai

ḳhirad ki itaat zaruri sahi
yahi to junun ka zamana bhi hai

na duniya na uqba kahan jaiye
kahin ahl-e-dil ka Thikana bhi hai

mujhe aaj sāhil pe rone bhi do
ki tufan men muskurana bhi hai

zamane se aage to badhiye 'majaz'
zamane ko aage badhana bhi hai
-----------------------------------
जिगर और दिल को बचाना भी है,
नज़र आप ही से मिलाना भी है।

मोहब्बत का हर भेद पाना भी है,
मगर अपना दामन बचाना भी है।

जो दिल तेरे ग़म का निशाना भी है,
क़ातिल-ए-जफ़ा-ए-जमाना भी है।

ये बिजली चमकती है क्यों दम-बह-दम,
चमन में कोई आशियाना भी है।

फिरद की इति'आत ज़रूरी सही,
यही तो जुनून का ज़माना भी है।

ना दुनिया ना उक़बा कहाँ जाइए,
कहीं अहल-ए-दिल का ठिकाना भी है।

मुझे आज साहिल पे रोने भी दो,
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है।

ज़माने से आगे तो बढ़िए 'मजाज़',
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है।

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kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta..

kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta
kahin zamin kahin asman nahin milta

tamam shahr men aisa nahin ḳhulus na ho
jahan umiid ho is ki vahan nahin milta

kahan charagh jalaen kahan gulab rakhen
chhaten to milti hain lekin makan nahin milta

ye kya azaab hai sab apne aap men gum hain
zaban mili hai magar ham-zaban nahin milta

charaġh jalte hi bina.i bujhne lagti hai
ḳhud apne ghar men hi ghar ka nishan nahīn milta
-----------------------------------------------
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन, कहीं आसमान नहीं मिलता।

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़लूस न हो,
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता।

कहाँ चराग़ जलाएँ, कहाँ गुलाब रखें,
छतें तो मिलती हैं, लेकिन मकाँ नहीं मिलता।

यह क्या अज़ाब है, सब अपने आप में गुम हैं,
ज़बान मिली है मगर हमज़बान नहीं मिलता।

चराग़ जलते ही बिना ही बुझने लगती है,
ख़ुद अपने घर में ही घर का निशान नहीं मिलता।

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duniya men huun duniya ka talabgar nahin huun..

duniya men huun duniya ka talabgar nahin huun
bazar se guzra huun ḳharidar nahin huun

zinda huun magar ziist ki lazzat nahin baaqi
har-chand ki huun hosh men hushyar nahin huun

is ḳhana-e-hasti se guzar ja.unga be-laus
saaya huun faqat naqsh-ba-divar nahin huun

afsurda huun ibrat se dava ki nahin hajat
ġham ka mujhe ye zoaf hai bimar nahin huun

vo gul huun ḳhizan ne jise barbad kiya hai
uljhun kisi daman se main vo ḳhaar nahin huun

ya rab mujhe mahfuz rakh us but ke sitam se
main us ki inayat ka talabgar nahin huun

go dava-e-taqva nahin dargah-e-ḳhuda men
but jis se hon ḳhush aisa gunahgar nahin huun

afsurdagi o zoaf ki kuchh had nahin 'akbar'
kafir ke muqabil men bhi din-dar nahin huun
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ

ज़िंदा हूँ मगर ज़िंदगी की लज़्जत नहीं बाक़ी
हरचंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्ती से गुज़र जाऊँगा बे-लौस
साया हूँ फ़कत नक़्श-ब-दीवार नहीं हूँ

अफ़सुरदा हूँ इबरत से दवा की नहीं हाज़त
ग़म का मुझे ये जोफ़ है बीमार नहीं हूँ

वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बरबाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ

या रब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उसकी इनायत का तलबगार नहीं हूँ

गो दावा-ए-तक़वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिस से हो ख़ुश ऐसा गुनाहगार नहीं हूँ

अफ़सुरदगी ओ जोफ़ की कुछ हद नहीं 'अकबर'
काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दीं-दार नहीं हूँ
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Thakan se duur har ik manzil-e-hayat rahe..

thakan se duur har ik manzil-e-hayat rahe
tira ḳhayal safar men jo saath saath rahe

miTa diya unhen ḳhud vaqt ke taqazon ne
jo log vaqt ke marhun-e-iltifat rahe

har ek hadsa-e-zist se guzar jaaen
hamare haath men jo zindagi ka haath rahe

jo apni zaat men dariya bhi the samundar bhi
lab-e-furat vahi tishna-e-furat rahe

vo ajnabi ki tarah aaj ham se milte hain
tamam umr jo 'ḳhusrav' hamare saath rahe
------------------------------------------
थकान से दूर हर एक मंज़िल-ए-हयात रहे
तिरा ख़याल सफ़र में जो साथ साथ रहे

मिटा दिया उन्हें ख़ुद वक़्त के तग़ाज़ों ने
जो लोग वक़्त के मरहून-ए-इल्ल्तिफ़ात रहे

हर एक हादसा-ए-ज़ीस्त से गुज़र जाएं
हमारे हाथ में जो ज़िन्दगी का हाथ रहे

जो अपनी ज़ात में दरिया भी थे समुंदर भी
लब-ए-फुरात वही तिश्ना-ए-फुरात रहे

वो अजनबी की तरह आज हमसे मिलते हैं
तमाम उम्र जो 'खुसरव' हमारे साथ रहे

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Ishq hai to ishq ka Izhar hona chahiye..

ishq hai to ishq ka Izhar hona chahiye
aap ko chehre se bhi bimar hona chahiye

aap dariya hain to phir is vaqt ham ḳhatre men hain
aap kashti hain to ham ko paar hona chahiye

aire-ġhaire log bhi paḌhne lage hain in dinon
aap ko aurat nahin aḳhbar hona chahiye

zindagi tu kab talak dar-dar phira.egi hamen
TuTa-phuTa hī sahi ghar-bar hona chahiye

apni yadon se kaho ik din ki chhuTTī de mujhe
ishq ke hisse men bhī itvar hona chahiye
-----------------------------------------
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए

आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए

ऐरे-ग़ैर लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए

ज़िंदगी तू कब तक दर-दर फिराएगी हमें
टूट-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए

अपनी यादों से कहो एक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए

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Yaad hai shadi men bhi hangama-e-ya-rab mujhe..

yaad hai shadi men bhi hangama-e-ya-rab mujhe
subha-e-zahid hua hai ḳhanda zer-e-lab mujhe

hai kushad-e-ḳhatir-e-va-basta dar rahn-e-suḳhan
thā tilism-e-qufl-e-abjad ḳhana-e-maktab mujhe

ya rab is ashuftagi kī daad kis se chahiye
rashk asa.ish pe hai zindaniyon kī ab mujhe

tab.a hai mushtaq-e-lazzat-ha-e-hasrat kya karun
aarzu se hai shikast-e-arzu matlab mujhe

dil laga kar aap bhī 'ġhalib' mujhī se ho ga.e
ishq se aate the maane mīrz sahab mujhe
----------------------------------------
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
सुबह-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेरे-लब मुझे

है खुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वाबस्ता दर-रहन-ए-सुख़न
था तिलस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अब्ज़द ख़ाना-ए-मकतब मुझे

या-रब इस आषुफ़तगी की दाद किस से चाहिए
रश्क-ए-आसाईश पे है ज़िंदानीयों की अब मुझे

तब़ा है मुस्तक़-ए-लज़्ज़त-हा-ए-हसरत क्या करूँ
आर्ज़ू से है शिकस्त-ए-आर्ज़ू मफ़हूम मुझे

दिल लगा कर आप भी 'ग़ालिब' मुझी से हो गए
इश्क़ से आते थे माने मीरज़ा साहब मुझे


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Dil hosh se begana begane ko kya kahiye..

dil hosh se begana begane ko kya kahiye
chup rahna hi behtar hai divane ko kya kahiye

kuchh bhi to nahin dekha aur kuuch ki tayyari
yuun aane se kya hasil yuun jaane ko kya kahiye

majbur hain sab apni uftad tabiat se
ho shama se kya shikva parvane ko kya kahiye

tujh se hi marasim hain tujh se hi gila hoga
begane se kya lena begane ko kya kahiye

maana ki 'vasī'-shah se tum ko hain bahut shikve
divana hai divana divane ko kya kahiye
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दिल होश से बेगाना बेगाने को क्या कहिए
चुप रहना ही बेहतर है दीवाने को क्या कहिए

कुछ भी तो नहीं देखा और कुछ की तैयारी
यूँ आने से क्या हासिल यूँ जाने को क्या कहिए

मजबूर हैं सब अपनी उफ़्ताद तबीयत से
हो शमा से क्या शिकवा परवाने को क्या कहिए

तुझ से ही मरासिम हैं तुझ से ही गिला होगा
बेगाने से क्या लेना बेगाने को क्या कहिए

मानां कि 'वसी'-शाह से तुम को है बहुत शिकवे
दीवाना है दीवाना दीवाने को क्या कहिए

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Patthar se visal mangti huun..

patthar se visal mangti huun
main adamiyon se kaT ga.i huun

shayad pa.un suraġh-e-ulfat
muTThi men ḳhak-bhar rahi huun

har lams hai jab tapish se aari
kisi aanch se yuun pighal rahi huun

vo ḳhvahish-e-bosa bhi nahin ab
hairat se honT kaTti huun

ik tiflak-e-justuju huun shayad
main apne badan se khelti huun

ab taba kisi pe kyuun ho raġhib
insanon ko barat chuki huun
-------------------------------
पत्थर से विसाल मांगती हूँ
मैं इंसानों से कट गई हूँ

शायद पा सकूँ सुराग़-ए-उल्फ़त
मुट्ठी में ख़ाक भर रही हूँ

हर लम्स है जब तपिश से आरी
किसी आँच से यूँ पिघल रही हूँ

वो ख़्वाहिश-ए-बोसा भी नहीं अब
हैरत से होंठ काटी हूँ

एक तिफलक-ए-जिस्तिजू हूँ शायद
मैं अपने बदन से खेलती हूँ

अब तबा किसी पे क्यों हो राग़िब
इंसानों को बरत चुकी हूँ

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Aa gai yaad shaam Dhalte hi..

aa gai yaad shaam Dhalte hi
bujh gaya dil charagh jalte hi

khul gae shahr-e-gham ke darvaze
ik zara si hava ke chalte hi

kaun tha tu ki phir na dekha tujhe
miT gaya ḳhvab aankh malte hī

ḳhauf aata hai apne hi ghar se
mah-e-shab-tab ke nikalte hi

tu bhi jaise badal sa jaata hai
aks-e-divar ke badalte hi

ḳhuun sa lag gaya hai hāthon men
chaḌh gaya zahr gul masalte hi
---------------------------------
आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
एक ज़रा सी हवा के चलते ही

कौन था तू कि फिर न देखा तुझसे
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही

ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही

तू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दिवार के बदलते ही

ख़ून सा लग गया है हाथों में
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही

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Bas ek baar kisi ne gale lagaya tha..

bas ek baar kisi ne gale lagaya tha
phir us ke baad na main tha na mera saaya tha

gali men log bhi the mere us ke dushman log
vo sab pe hansta hua mere dil men aaya tha

us ek dasht men sau shahr ho gae abad
jahan kisi ne kabhi karvan luTaya tha

vo mujh se apna pata puchhne ko aa nikle
ki jin se main ne ḳhud apna suraġh paaya tha

mire vajud se gulzar ho ke nikli hai
vo aag jis ne tira pairahan jalaya tha

mujhi ko tana-e-ġharat-gari na de pyare
ye naqsh main ne tire haath se miTaya tha

usi ne ruup badal kar jaga diya āḳhir
jo zahr mujh pe kabhi niind ban ke chhaya tha

'zafar' ki ḳhaak men hai kis ki hasrat-e-tamir
ḳhayal-o-ḳhvab men kis ne ye ghar banaya tha
-----------------------------------------------
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
फिर उसके बाद न मैं था न मेरा साया था

गली में लोग भी थे मेरे उसके दुश्मन लोग
वो सब पे हँसता हुआ मेरे दिल में आया था

उस एक दहशत में सौ शहर हो गए आबाद
जहाँ किसी ने कभी कारवाँ लूटा था

वो मुझ से अपना पता पूछने को आ निकले
कि जिन से मैं ने खुद अपना सुराग पाया था

मेरे वजूद से गुलजार हो के निकली है
वो आग जिस ने तेरा पैरहन जलाया था

मुझे को ताना-ए-ग़ारत-गरी ना दे प्यारे
ये नक्श मैंने तेरे हाथ से मिटाया था

उसी ने रूप बदल कर जगा दिया आखिर
जो ज़हर मुझ पे कभी नींद बन के छाया था

'ज़फ़र' की ख़ाक में है किस की हसरत-ए-तामीर
ख़याल-ओ-ख़्वाब में किस ने ये घर बनाया था

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kaali raat ke sahraon men nur-sipara likkha tha..

kaali raat ke sahraon men nur-sipara likkha tha
jis ne shahr ki divaron par pahla naara likkha tha

laash ke nanhe haath men basta aur ik khaTTi goli thi
ḳhuun men Duubi ik taḳhti par ghain-ghubara likkha tha

aḳhir ham hi mujrim Thahre jaane kin kin jurmon ke
fard-e-amal thi jaane kis ki naam hamara likkha tha

sab ne maana marne vaala dahshat-gard aur qatil tha
maan ne phir bhi qabr pe us ki raj-dulara likkha tha
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काली रात के सहराों में नूर-सिपारा लिखा था
जिस ने शहर की दीवारों पर पहला नारा लिखा था

लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और एक खट्टी गोली थी
खून में डूबी एक तख़्ती पर घैँ-घुबारा लिखा था

आख़िर हम ही मुजरिम ठहरे जाने किन किन जुर्मों के
फ़र्द-ए-अमल थी जाने किस की नाम हमारा लिखा था

सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज़-दुलारा लिखा था


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Yaad use bhi ek adhura afsana to hoga..

yaad use bhi ek adhura afsana to hoga
kal raste men us ne ham ko pahchana to hoga

Dar ham ko bhi lagta hai raste ke sannaTe se
lekin ek safar par ai dil ab jaana to hoga

kuchh baton ke matlab hain aur kuchh matlab ki baten
jo ye farq samajh lega vo divana to hoga

dil ki baten nahin hai to dilchasp hi kuchh baten hon
zinda rahna hai to dil ko bahlana to hoga

jiit ke bhi vo sharminda hai haar ke bhi ham nazan
kam se kam vo dil hi dil men ye maana to hoga
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याद उसे भी एक अधूरा अफ़साना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा

डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें
जो ये फ़र्क़ समझ लेगा वो दीवाना तो होगा

दिल की बातें नहीं हैं तो दिलचस्प ही कुछ बातें हों
ज़िंदा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा

जीत के भी वो शर्मिंदा है, हार के भी हम नाज़ाँ
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा



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uTh chale vo to is men hairat kya..

uTh chale vo to is men hairat kya
un ke aage vafa ki qimat kya

us ke kuche se ho ke aaya huun
is se achchhi hai koi jannat kya

shahr se vo nikalne vaale hain
sar pe TuTegi phir qayamat kya

tere bandon ki bandagi ki hai
ye ibadat nahin ibadat kya

koi puchhe ki ishq kya shai hai
kya bataen ki hai mohabbat kya

ansuon se likha hai ḳhat un ko
paḌh vo paenge ye ibarat kya

main kahin aur dil laga lunga
mat karo ishq is men hujjat kya

garm bazar hon jo nafrat ke
is zamane men dil ki qimat kya

kitne chehre lage hain chehron par
kya haqiqat hai aur siyasat kya
----------------------------------
उठ चले वो तो इस में हैरत क्या
उनके आगे वफ़ा की क़ीमत क्या

उसके कूचे से हो के आया हूँ
इस से अच्छी है कोई जन्नत क्या

शहर से वो निकलने वाले हैं
सर पे टूटेगी फिर क़यामत क्या

तेरे बंदों की बंदगी की है
ये इबादत नहीं इबादत क्या

कोई पूछे कि इश्क़ क्या शै है
क्या बताएँ कि है मोहब्बत क्या

आँसुओं से लिखा है ख़त उन को
पढ़ वो पाएँगे ये इबारत क्या

मैं कहीं और दिल लगा लूँगा
मत करो इश्क़ इस में हुज्जत क्या

गर्म बाज़ार हों जो नफ़रत के
इस ज़माने में दिल की क़ीमत क्या

कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर
क्या हक़ीक़त है और सियासत क्या


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hijr karte ya koi vasl guzara karte..

hijr karte ya koi vasl guzara karte
ham bahar-hāl basar ḳhvab tumhara karte

ek aisi bhi ghaḌi ishq men aai thi ki ham
ḳhaak ko haath lagate to sitara karte

ab to mil jaao hamen tum ki tumhari ḳhatir
itni duur aa gae duniya se kinara karte

mehv-e-ara.ish-e-ruḳh hai vo qayamat sar-e-bam
aankh agar aina hoti to nazara karte

ek chehre men to mumkin nahin itne chehre
kis se karte jo koi ishq dobara karte

jab hai ye ḳhana-e-dil aap ki ḳhalvat ke liye
phir koi aae yahan kaise gavara karte

kaun rakhta hai andhere men diya aankh men ḳhvab
teri janib hi tire log ishara karte

zarf-e-aina kahan aur tira husn kahan
ham tire chehre se a.ina sanvara karte
----------------------------------------
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते
हम बहर-हाल बसर ख़्वाब तुम्हारा करते

एक ऐसी भी घड़ी इश्क़ में आई थी कि हम
ख़ाक को हाथ लगाते तो सितारा करते

अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते

महव-ए-आरा.इश-ए-रुख़ है वो क़यामत सर-ए-बाम
आँख अगर आईना होती तो नज़ारा करते

एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते

जब है ये ख़ाना-ए-दिल आप की ख़ल्वत के लिए
फिर कोई आए यहाँ कैसे गवारा करते

कौन रखता है अंधेरे में दिया आँख में ख़्वाब
तेरी जानिब ही तेरे लोग इशारा करते

ज़र्फ़-ए-आईना कहाँ और तिरा हुस्न कहाँ
हम तिरे चेहरे से आईना संवारा करते

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Ham unhen vo hamen bhula baithe..

ham unhen vo hamen bhula baithe
do gunahgar zahr kha baithe

hal-e-gham kah ke gham baḌha baiThe
tiir maare the tiir kha baiThe

andhiyo jaao ab karo aram
ham khud apna diya bujha baiThe

ji to halka hua magar yaaro
ro ke ham lutf-e-gham ganva baiThe

be-saharon ka hausla hi kya
ghar men ghabrae dar pe aa baiThe

jab se bichhḌe vo muskurae na ham
sab ne chheḌa to lab hila baiThe

ham rahe mubtala-e-dair-o-haram
vo dabe paanv dil men aa baiThe

uTh ke ik bevafa ne de di jaan
rah gae saare ba-vafa baiThe

hashr ka din abhi hai duur 'ḳhumār'
aap kyuun zahidon men ja baiThe
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हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे

हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे

आंधियो जाओ अब करो आराम
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे

जी तो हल्का हुआ मगर यारो
रो के हम लुत्फ़-ए-ग़म गंवा बैठे

बे-सहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए दर पे आ बैठे

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे

हम रहे मुब्तला-ए-दैर-ओ-हरम
वो दबे पांव दिल में आ बैठे

उठ के एक बेवफ़ा ने दे दी जान
रह गए सारे बा-वफ़ा बैठे

हश्र का दिन अभी है दूर 'खुमार'
आप क्यों ज़ाहिदों में जा बैठे

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Zindagi ko na bana len vo saza mere baad..

zindagi ko na bana len vo saza mere baad
hausla dena unhen mere ḳhuda mere baad

kaun ghunghat ko uThaega sitamgar kah ke
aur phir kis se karenge vo haya mere baad

phir mohabbat ki zamane men na pursish hogi
roegi siskiyan le le ke vafa mere baad

haath uThte hue un ke na koi dekhega
kis ke aane ki karenge vo dua mere baad

kis qadar gham hai unhen mujh se bichhaḌ jaane ka
ho gae vo bhi zamane se juda mere baad

vo jo kahta tha ki 'nāsir' ke liye jiita huun
us ka kya janiye kya haal hua mere baad
------------------------------------------
ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद  
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद  

कौन घूँघट को उठाएगा सितमगर कह के  
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद  

फिर मोहब्बत की ज़माने में न पुरसिश होगी  
रोएगी सिसकियाँ ले ले के वफ़ा मेरे बाद  

हाथ उठते हुए उनके न कोई देखेगा  
किसके आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद  

किस क़दर ग़म है उन्हें मुझसे बिछड़ जाने का  
हो गए वो भी ज़माने से जुदा मेरे बाद  

वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूँ  
उसका क्या जानिए क्या हाल हुआ मेरे बाद  

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Ankhon men raha dil men utar kar nahin dekha..

ankhon men raha dil men utar kar nahin dekha
kashti ke musafir ne samundar nahin dekha

be-vaqt agar jaunga sab chauuk paḌenge
ik umr hui din men kabhi ghar nahin dekhā

jis din se chala huuu miri manzil pe nazar hai
ankhon ne kabhi miil ka patthar nahin dekha

ye phuul mujhe koi virasat men mile hain
tum ne mira kanTon bhara bistar nahin dekha

yaron ki mohabbat ka yaqin kar liya main ne
phulon men chhupaya hua ḳhanjar nahin dekha

mahbub ka ghar ho ki buzurgon ki zaminen
jo chhod diya phir use mud kar nahin dekha

ḳhat aisa likha hai ki nagine se jaḌe hain
vo haath ki jis ne koi zevar nahin dekha

patthar mujhe kahta hai mira chahne vaala
main mom huun us ne mujhe chhu kar nahin dekha
------------------------------------------------
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा

बेवक्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पे नजर है
आँखों ने कभी मिल का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा

यारों की मोहब्बत का यकीन कर लिया मैंने
फूलों में छुपाया हुआ खंजर नहीं देखा

महबूब का घर हो कि बुजुर्गों की ज़मीनें
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

खत ऐसा लिखा है कि नगीनों से जुड़े हैं
वो हाथ की जिसने कोई ज़ेवर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा
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Main ne roka bahut par gae sab ke sab..

main ne roka bahut par gae sab ke sab
jaane phir kya hua Dar gae sab ke sab

dost kya ab to dushman bhi mafqud hain
baat kya hai kahan mar gae sab ke sab

har-qadam par zamana muḳhalif raha
kaam apna magar kar gae sab ke sab

din men suraj ke the ham-safar din Dhale
le ke mayusiyan ghar gae sab ke sab

ped sukhe the qudrat bhi thi mehrban
aaj phal-phul se bhar gae sab ke sab

kya ḳhata thi kisi ne bataya nahin
mujh pe ilzam kyuun dhar gae sab ke sab

aap tanha bache hain miri bazm men
varna 'jāved'-aḳhtar gae sab ke sab
-------------------------------------
मैं ने रोका बहुत पर गए सब के सब
जाने फिर क्या हुआ डर गए सब के सब

दोस्त क्या अब तो दुश्मन भी मफ़क़ूद हैं
बात क्या है कहां मर गए सब के सब

हर क़दम पर ज़माना मुख़ालिफ़ रहा
काम अपना मगर कर गए सब के सब

दिन में सूरज के थे हम-सफ़र दिन ढले
ले के मायूसियाँ घर गए सब के सब

पेड़ सूखे थे, क़ुदरत भी थी मेहरबान
आज फल-फूल से भर गए सब के सब

क्या ख़ता थी किसी ने बताया नहीं
मुझ पे इल्ज़ाम क्यों धर गए सब के सब

आप तन्हा बचें हैं मेरी महफ़िल में
वरना 'जावेद'-अख़्तर गए सब के सब

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Aadmi aadmi se milta hai..

aadmi aadmi se milta hai
dil magar kam kisi se milta hai

bhuul jaata huun main sitam us ke
vo kuchh is sadgi se milta hai

aaj kya baat hai ki phulon ka
rang teri hansi se milta hai

silsila fitna-e-qayamat ka
teri ḳhush-qamati se milta hai

mil ke bhi jo kabhi nahin milta
TuuT kar dil usi se milta hai

karobar-e-jahan sanvarte hain
hosh jab be-ḳhudi se milta hai

ruuh ko bhi maza mohabbat ka
dil ki ham-saegi se milta hai
------------------------------
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है

आज क्या बात है कि फूलों का
रंग तेरी हँसी से मिलता है

सिलसिला फ़ितना-ए-क़यामत का
तेरी ख़ुश-क़ामती से मिलता है

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है

कारोबार-ए-जहान संवरते हैं
होश जब बे-खुदी से मिलता है

रूह को भी मज़ा मोहब्बत का
दिल की हम-साईगी से मिलता है

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Kuchh din to baso miri ankhon men..

Kuchh din to baso miri ankhon men
phir khvab agar ho jaao to kya

koi rang to do mire chehre ko
phir zakhm agar mahkao to kya

jab ham hi na mahke phir sahab
tum bad-e-saba kahlao to kya

ik aaina tha so TuuT gaya
ab khud se agar sharmao to kya

tum aas bandhane vaale the
ab tum bhi hamen Thukrao to kya

duniya bhi vahi aur tum bhi vahi
phir tum se aas lagāo to kyā

main tanha tha main tanha huun
tum aao to kya na aao to kya

jab dekhne vaala koi nahin
bujh jaao to kya gahnao to kya

ab vahm hai ye duniya is men
kuchh khoo to kya aur paao to kya

hai yuun bhi ziyan aur yuun bhi ziyan
ji jaao to kya mar jaao to kya
------------------------------------
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महकें फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

एक आईना था सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या

तुम आस बँधाने वाले थे
अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या

दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्या

मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्या

अब वहम है ये दुनिया इस में
कुछ खो तो क्या और पाओ तो क्या

है यूँ भी ज़ियाँ और यूँ भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या

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Shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho..

shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho
dil-dasht men ik pyaas tamasha hai ki tum ho

ik lafz men bhaTka hua shair hai ki main huun
ik ghaib se aaya hua misraa hai ki tum ho

darvaza bhi jaise miri dhaḌkan se juda hai
dastak hi batati hai paraya hai ki tum ho

ik dhuup se uljha hua saaya hai ki main huun
ik shaam ke hone kā bharosa hai ki tum ho

main huun bhi to lagta hai ki jaise main nahin huun
tum ho bhi nahin aur ye lagta hai ki tum ho
-------------------------------------------
शबनम है कि धोखा है कि झरना है कि तुम हो
दिल-दश्त में एक प्यास तमाशा है कि तुम हो

एक शब्द में भटकता हुआ शायर है कि मैं हूँ
एक घ़ैब से आया हुआ मिसरा है कि तुम हो

दरवाज़ा भी जैसे मेरी धड़कन से जुड़ा है
दरवाज़ा ही बताती है पराया है कि तुम हो

एक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ
एक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ
तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो

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Hasti apni habab ki si hai..

hasti apni habab ki si hai
ye numaish sarab ki si hai

nazuki us ke lab ki kya kahiye
pankhudi ik gulab ki si hai

chashm-e-dil khol is bhi aalam par
yaan ki auqat ḳhvab ki si hai

baar baar us ke dar pe jaata huun
halat ab iztirab ki si hai

nuqta-e-ḳhal se tir abru
bait ik intiḳhab ki si hai

maiñ jo bola kaha ki ye avaz
usi ḳhana-ḳharab ki si hai

atish-e-ġham men dil bhuna shayad
der se bu kabab ki si hai

dekhiye abr ki tarah ab ke
meri chashm-e-pur-ab ki si hai

'mīr' un nim-baz ankhon men
saari masti sharab ki si hai
------------------------------
हस्ती अपनी हबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है

नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम पर
यहाँ की औकात ख़्वाब की सी है

बार-बार उसके दर पे जाता हूँ
हालत अब इज़्तिराब की सी है

नुक्ता-ए-ख़ाल से तीर अब्रू
बैत इक इंतिख़ाब की सी है

मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है

आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद
देर से बू कबाब की सी है

देखिए अब्र की तरह अब के
मेरी चश्म-ए-पुर-आब की सी है

'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

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Bhadkaen miri pyaas ko aksar tiri ankhen..

bhadkaen miri pyaas ko aksar tiri ankhen
sahra mira chehra hai samundar tiri ankhen

phir kaun bhala dad-e-tabassum unhen dega
roengi bahut mujh se bichhad kar tiri ankhen

ḳhali jo hui sham-e-Gharīban ki hatheli
kya kya na luTati rahin gauhar teri ankhen

bojhal nazar aati hain ba-zahir mujhe lekin
khulti hain bahut dil men utar kar tiri ankhen

ab tak miri yadon se miTae nahin miTta
bhigi hui ik shaam ka manzar tiri ankhen

mumkin ho to ik taaza ġhazal aur bhī kah luun
phir oḌh na len ḳhvab ki chadar tiri ankhen

main sang-sifat ek hi raste men khaḌa huun
shayad mujhe dekhengi palaT kar tiri ankhen

yuuu dekhte rahna use achchha nahin 'mohsin'
vo kanch ka paikar hai to patthar tiri ankhen
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भड़काएँ मेरी प्यास को अक्सर तेरी आँखें
सहरा मेरा चेहरा है समुंदर तेरी आँखें।

फिर कौन भला दाद-ए-तबस्सुम उन्हें देगा
रोएँगी बहुत मुझ से बिछड़ कर तेरी आँखें।

ख़ाली जो हुई शाम-ए-ग़रीबां की हथेली
क्या क्या न लुटाती रहीं गौहर तेरी आँखें।

बोझल नज़र आती हैं ब-ज़ाहिर मुझे लेकिन
खुलती हैं बहुत दिल में उतर कर तेरी आँखें।

अब तक मेरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तेरी आँखें।

मुमकिन हो तो एक ताज़ा ग़ज़ल और भी कह लूँ
फिर ओढ़ न लें ख़्वाब की चादर तेरी आँखें।

मैं संग-सिफ़त एक ही रास्ते में खड़ा हूँ
शायद मुझे देखेंगी पलट कर तेरी आँखें।

यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहन'
वो काँच का पयकर है तो पत्थर तेरी आँखें।
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Tang aa chuke hain kashmakash-e-zindagi se ham..

Tang aa chuke hain kashmakash-e-zindagi se ham

Thukra na den jahan ko kahin be-dili se ham


mayusi-e-maal-e-mohabbat na puchhiye

apnon se pesh aae hain beganagi se ham


lo aaj ham ne tod diya rishta-e-umid

lo ab kabhi gila na karenge kisi se ham


ubhrenge ek baar abhi dil ke valvale

go dab gae hain bar-e-ġham-e-zindagi se ham


gar zindagi men mil gae phir ittifaq se

puchhenge apna haal tiri bebasi se ham


allah-re fareb-e-mashiyyat ki aaj tak

duniya ke zulm sahte rahe ḳhamushi se ham

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तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िंदगी से हम

ठुकरा न दें जहान को कहीं बे-दिली से हम।


मायूसी-ए-माल-ए-मोहब्बत न पूछिए

अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम।


लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद

लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम।


उभरेंगे एक बार अभी दिल के जोश से

गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम।


गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफाक से

पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम।


अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशियत की आज तक

दुनिया के जुल्म सहते रहे ख़ामोशी से हम।


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Aahan men Dhalti jaegi ikkisvin sadi..

aahan men Dhalti jaegi ikkisvin sadi
phir bhi ghazal sunaegi ikkisvin sadi

baġhdad dilli masco london ke darmiyan
barud bhi bichhaegi ikkisvin sadi

jal kar jo raakh ho gaiin dangon men is baras
un ghuggiyon men aaegi ikkisvin sadi

tahzib ke libas utar jaenge janab
dollar men yuun nachaegi ikkisvin sadi

le ja ke asman pe taron ke as-pas
america ko giraegi ikkisvin sadi

ik yatra zarur ho ninnanve ke paas
rath par savar aaegi ikkisvin sadi

phir se ḳhuda banega koi naya jahan
duniya ko yuuu miTaegi ikkīsvin sadi

compurteron se ġhazlen likhenge 'bashīr-badr'
'ġhālib' ko bhuul jaegi ikkīsvin sadi
----------------------------------------
आहान में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी
फिर भी ग़ज़ल सुनाएगी इक्कीसवीं सदी।

बग़दाद, दिल्ली, मास्को, लंदन के दरमियान
बारूद भी बिछाएगी इक्कीसवीं सदी।

जलकर जो राख हो गईं दंगों में इस बरस
उन घुग्गियों में आएगी इक्कीसवीं सदी।

तहज़ीब के लिबास उतर जाएंगे जनाब
डॉलर में यूं नचाएगी इक्कीसवीं सदी।

ले जाकर आसमान पे तारों के आस-पास
अमेरिका को गिराएगी इक्कीसवीं सदी।

एक यात्रा जरूर हो निन्यानवे के पास
रथ पर सवार आएगी इक्कीसवीं सदी।

फिर से ख़ुदा बनेगा कोई नया जहां
दुनिया को यूं मिटाएगी इक्कीसवीं सदी।

कंप्यूटरों से ग़ज़लें लिखेंगे 'बशीर-बदर'
'ग़ालिब' को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी।
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Itne ḳhamosh bhi raha na karo..

Itne ḳhamosh bhi raha na karo
Gham judai men yuun kiya na karo

ḳhvab hote hain dekhne ke liye
un men ja kar magar raha na karo

kuchh na hoga gila bhi karne se
zalimon se gila kiya na karo

un se niklen hikayaten shayad
harf likh kar miTā diyā na karo

apne rutbe ka kuchh lihaz 'munīr'
yaar sab ko bana liya na karo
-------------------------------
इतने ख़ामोश भी रहा न करो
ग़म जुदाई में यूँ किया न करो

ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जाकर मगर रहा न करो

कुछ न होगा गिला भी करने से
ज़ालिमों से गिला किया न करो

उन से निकलें हिकायतें शायद
हर्फ़ लिख कर मिटा दिया न करो

अपने रुतबे का कुछ लिहाज़ 'मुनीर'
यार सब को बना लिया न करो






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Gulshan gulshan phuul..

gulshan gulshan phuul

daman daman dhuul


marne par taazir

jiine par mahsul


har jazba maslub

har ḳhvahish maqtul


ishq pareshan-hal

naz-e-husn malul


naara-e-haq maatub

makr-o-riya maqbul


sanvra nahin jahan

aae kai rasul

---------------------

गुलशन गुलशन फूल

दामन दामन धूल


मरने पर ताज़ीर

जीने पर महसूल


हर जज़्बा मसलूब

हर ख़्वाहिश मक़तूल


इश्क़ परेशान-हाल

नाज़-ए-हुस्न मलूल


नारा-ए-हक़ मअतूब

मकर-ओ-रियā मक़बूल


संवरा नहीं जहाँ

आए कई रसूल


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Apni dhun men rahta huun..

Apni dhun men rahta huun
main bhi tere jaisa huun

o pichhli rut ke sathi
ab ke baras main tanha huun

teri gali men saara din
dukh ke kankar chunta huun

mujh se aankh milae kaun
main tera aina huun

mera diya jalae kaun
main tira ḳhali kamra huun

tere siva mujhe pahne kaun
main tire tan ka kapḌa huun

tu jivan ki bhari gali
main jangal ka rasta huun

aati rut mujhe roegi
jaati rut ka jhonka huun

apni lahr hai apna rog
dariya huun aur pyasa huun
----------------------------
अपनी धुन में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ

ओ पिछली रुत के साथी
अबके बरस मैं तन्हा हूँ

तेरी गली में सारा दिन
दुख के कंकर चुनता हूँ

मुझ से आँख मिलाए कौन
मैं तेरा आईना हूँ

मेरा दिया जलाए कौन
मैं तेरा खाली कमरा हूँ

तेरे सिवा मुझे पहने कौन
मैं तेरे तन का कपड़ा हूँ

तू जीवन की भरी गली
मैं जंगल का रस्ता हूँ

आती रुत मुझे रोएगी
जाती रुत का झोंका हूँ

अपनी लहर है अपना रोग
दरिया हूँ और प्यासा हूँ
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Chehre pe mire zulf ko phailao kisi din..

Chehre pe mire zulf ko phailao kisi din

kya roz garajte ho baras jaao kisi din


razon ki tarah utro mire dil men kisi shab

dastak pe mire haath ki khul jaao kisi din


peḌon ki tarah husn ki barish men naha luun

badal ki tarah jhuum ke ghar aao kisi din


ḳhushbu ki tarah guzro miri dil ki gali se

phulon ki tarah mujh pe bikhar jaao kisi din


guzren jo mere ghar se to ruk jaaen sitare

is tarah miri raat ko chamkao kisi din


main apni har ik saans usi raat ko de duun

sar rakh ke mire siine pe so jaao kisi din

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चेहरे पे मेरे ज़ुल्फ़ को फैला दो किसी दिन

क्या रोज़ गरजते हो, बरस जाओ किसी दिन


राज़ों की तरह उतरो मेरे दिल में किसी शब

दस्तक पे मेरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन


पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूँ

बादल की तरह झूम के घर आओ किसी दिन


ख़ुशबू की तरह गुज़रो मेरी दिल की गली से

फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन


गुज़रें जो मेरे घर से तो रुक जाएँ सितारे

इस तरह मेरी रात को चमका दो किसी दिन


मैं अपनी हर एक साँस उसी रात को दे दूँ

सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन

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Har lamha agar gurez-pa hai..

Har lamha agar gurez-pa hai
tu kyuun mire dil men bas gaya hai

chilman men gulab sambhal raha hai
ye tu hai ki shoḳhi-e-saba hai

jhukti nazren bata rahi hain
mere liye tu bhi sochta hai

main tere kahe se chup huun lekin
chup bhi tu bayan-e-muddaa hai

har des ki apni apni boli
sahra ka sukut bhi sada hai

ik umr ke baad muskura kar
tu ne to mujhe rula diya hai

us vaqt ka hisab kya duun
jo tere baġhair kaT gaya hai

maazi ki sunaun kya kahani
lamha lamha guzar gaya hai

mat maang duaen jab mohabbat
tera mera muamla hai

ab tujh se jo rabt hai to itna
tera hi ḳhuda mira ḳhuda hai

rone ko ab ashk bhi nahin hain
ya ishq ko sabr aa gaya hai

ab kis ki talash men hain jhonke
main ne to diya bujha diya hai

kuchh khel nahin hai ishq karna
ye zindagi bhar ka rat-jaga hai
-------------------------------------
हर लम्हा अगर गुरेज़पा है
तू क्यों मेरे दिल में बस गया है

चिलमन में गुलाब संभल रहा है
ये तू है कि शोखी-ए-सबा है

झुकती नज़रें बता रही हैं
मेरे लिए तू भी सोचता है

मैं तेरे कहे से चुप हूँ लेकिन
चुप भी तू बयान-ए-मुद्दा है

हर देश की अपनी-अपनी बोली
सहरा का सुकूत भी सदा है

एक उम्र के बाद मुस्कुरा कर
तू ने तो मुझे रुला दिया है

उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ
जो तेरे बग़ैर कट गया है

माजी की सुनाऊं क्या कहानी
लम्हा-लम्हा गुज़र गया है

मत मांग दुआएं जब मोहब्बत
तेरा मेरा मामला है

अब तुझ से जो राब्त है तो इतना
तेरा ही खुदा मेरा खुदा है

रोने को अब अश्क भी नहीं हैं
या इश्क़ को सब्र आ गया है

अब किस की तलाश में हैं झोंके
मैं ने तो दिया बुझा दिया है

कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
ये ज़िन्दगी भर का रात-गुज़ार है









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Shoala-e-gul gulab shoala kya..

shoala-e-gul gulab shoala kya
aag aur phuul ka ye rishta kya

tum miri zindagi ho ye sach hai
zindagi kā magar bharosa kya

kitni sadiyon Ki qismaton ka main
koi samjhe bisat-e-lamha kya

jo na adab-e-dushmani jaane
dosti ka use salīiqa kya

kaam ki puchhte ho gar sahab
ashiqi ke alava pesha kya

baat matlab ki sab samajhte hain
sahab-e-nashsha ġharq-e-bada kyā

dil-dukhon ko sabhi satate hain
sher kya giit kya fasana kya

sab hain kirdar ik kahani ke
varna shaitan kya farishta kya

din haqiqat ka ek jalva hai
raat bhi hai usi ka parda kya

tu ne mujh se koi saval kiya
kārvan-e-hayat-e-rafta kya

jaan kar ham 'bashir-badr' hue
is men taqdir ka navishta kya
-------------------------------
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या,
आग और फूल का ये रिश्ता क्या।

तुम मेरी जिंदगी हो ये सच है,
जिंदगी का मगर भरोसा क्या।

कितनी सदियों की किस्मतों का मैं,
कोई समझे बिसात-ए-लम्हा क्या।

जो न आदाब-ए-दुश्मनी जाने,
दोस्ती का उसे सलीका क्या।

काम की पूछते हो गर साहब,
आश्की के अलावा पेशा क्या।

बात मतलब की सब समझते हैं,
साहब-ए-नश्शा घर्क-ए-बादा क्या।

दिल-दुखों को सभी सताते हैं,
शेर क्या गीत क्या फसाना क्या।

सब हैं किरदार एक कहानी के,
वरना शैतान क्या फरिश्ता क्या।

दिन हक़ीकत का एक जलवा है,
रात भी है उसी का पर्दा क्या।

तू ने मुझसे कोई सवाल किया,
कारवां-ए-हयात-ए-रफ्ता क्या।

जान कर हम 'बशीर-बद्र' हुए,
इस में तक़दीर का नवीश्ता क्या।

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Jab tira hukm mila tark mohabbat kar di..

jab tira hukm mila tark mohabbat kar di
dil magar is pe vo dhaḌka ki Qayamat kar di

tujh se kis tarah main iz.har-e-tamanna karta
lafz sūjha to muani ne baghavat kar di

main to samjha tha ki lauT aate hain jaane vaale
tu ne ja kar to judai miri qismat kar di

tujh ko puuja hai ki asnam-parasti ki hai
main ne vahdat ke mafahim ki kasrat kar di

mujh ko dushman ke iradon pe bhi pyaar aata hai
tiri ulfat ne mohabbat miri aadat kar di

puchh baiTha huun main tujh se tire kuche ka pata
tere halat ne kaisi tiri surat kar di

kya tira jism tire husn ki hiddat men jala
raakh kis ne tiri sone Ki si rangat kar di
-------------------------------------------
जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी,
दिल मगर इस पे वो धड़का की क़यामत कर दी।

तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,
लफ्ज़ सूझा तो मानी ने बगावत कर दी।

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,
तू ने जा कर तो जुदाई मेरी क़िस्मत कर दी।

तुझ को पूछा है कि अस्नाम-परस्ती की है,
मैं ने वहदत के मफाहिम की कसरत कर दी।

मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है,
तिरी उल्फत ने मोहब्बत मेरी आदत कर दी।

पूछ बैठा हूँ मैं तुझ से तिरे कूचे का पता,
तेरे हालात ने कैसी तिरी सूरत कर दी।

क्या तिरा जिस्म तिरे हुस्न की हिद्दत में जला,
राख किस ने तिरी सोने की सी रंगत कर दी।

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Hansne nahin deta kabhi rone nahin deta..

hansne nahin deta kabhi rone nahin deta
ye dil to koi kaam bhi hone nahin deta

tum maang rahe ho mire dil se miri ḳhvahish
bachcha to kabhi apne khilaune nahin deta

main aap uThata huun shab-o-roz Ki zillat
ye bojh kisi aur ko Dhone nahin deta

vo kaun hai us se to main vaqif bhi nahin huun
jo mujh ko kisi aur ka hone nahin deta
-----------------------------------------
हँसने नहीं देता कभी, रोने नहीं देता,
ये दिल तो कोई काम भी होने नहीं देता।

तुम माँग रहे हो मेरे दिल से मेरी ख़्वाहिश,
बच्चा तो कभी अपने खिलौने नहीं देता।

मैं आप उठाता हूँ, शब-ओ-रोज़ की जिल्लत,
ये बोझ किसी और को धोने नहीं देता।

वो कौन है, उससे तो मैं वाकिफ़ भी नहीं हूँ,
जो मुझको किसी और का होने नहीं देता।

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Khuub hai shauq ka ye pahlu bhi..

ḳhuub hai shauq ka ye pahlu bhi
main bhi barbad ho gaya tu bhi

husn-e-maġhmum tamkanat men tiri
farq aaya na yak-sar-e-mu bhi

ye na socha tha zer-e-sāya-e-zulf
ki bichhaḌ jaegi ye ḳhush-bu bhi

husn kahta tha chhedne vaale
chhedna hī to bas nahin chhu bhi

haae vo us ka mauj-ḳhez badan
main to pyasa raha lab-e-ju bhi

yaad aate hain moajize apne
aur us ke badan ka jaadu bhi

yasmin us ki ḳhaas mahram-e-raz
yaad aaya karegi ab tu bhi

yaad se us ki hai mira parhez
ai saba ab na aaiyo tu bhi

hain yahi 'jaun-elia' jo kabhi
saḳht maġhrur bhi the bad-ḳhu bhi
-----------------------------------
ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी
मैं भी बर्बाद हो गया तू भी

हुस्न-ए-मग़मूम तम्कनत में तेरी
फ़र्क़ आया न यक-सरे-मूँ भी

ये न सोचा था ज़ेरे-साया-ए-ज़ुल्फ़
कि बिछड़ जाएगी ये ख़ुशबू भी

हुस्न कहता था छेड़ने वाले
छेड़ना ही तो बस नहीं, छू भी

हाय वो उसका मौज-खेज़ बदन
मैं तो प्यासा रहा लब-ए-जू भी

याद आते हैं मुअजिज़े अपने
और उसके बदन का जादू भी

यासमीन उसकी ख़ास महरम-ए-राज़
याद आया करेगी अब तू भी

याद से उसकी है मेरा परहेज़
ऐ सबा अब न आ इयो तू भी

हैं यही 'जौन एलिया' जो कभी
सख़्त मग़रूर भी थे बद-ख़ू भी

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Bichhad gae to ye dil 'umr bhar lagega nahin..

bichhad gae to ye dil 'umr bhar lagega nahin
lagega lagne laga hai magar lagega nahin

nahin lagega use dekh kar magar ḳhush hai
main ḳhush nahin huun magar dekh kar lagega nahin

hamare dil ko abhi mustaqil pata na bana
hamen pata hai tira dil udhar lagega nahin

junun ka hajm ziyada tumhara zarf hai kam
zara sa gamla hai is men shajar lagega nahin

ik aisa zaḳhm-numa dil qarib se guzra
dil us ko dekh ke chiḳha Thahar lagega nahin

junun se kund kiya hai so us ke husn ka kiil
mire siva kisi dīvar par lagega nahin

bahut tavajjoh taalluq bigad deti hai
ziyada Darne lagenge to Dar lagega nahin
-------------------------------------------
बिछड़ गए तो ये दिल 'उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं

नहीं लगेगा उसे देखकर मगर खुश है
मैं खुश नहीं हूँ मगर देखकर लगेगा नहीं

हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना
हमें पता है तेरा दिल उधर लगेगा नहीं

जुनूँ का हज्म ज़्यादा तुम्हारा ज़र्फ़ है कम
ज़रा सा गमला है इस में शजर लगेगा नहीं

एक ऐसा ज़ख़्म-नुमा दिल क़रीब से गुज़रा
दिल उसको देखकर चीख़ा ठहर लगेगा नहीं

जुनूँ से कुंद किया है सो उसके हुस्न का कील
मेरे सिवा किसी दीवार पर लगेगा नहीं

बहुत तवज्जोह तआल्लुक़ बिगाड़ देती है
ज़्यादा डरने लगेंगे तो डर लगेगा नहीं
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Main zindagi ka saath nibhata chala gaya..

main zindagi ka saath nibhata chala gaya
har fikr ko dhuen men udata chala gaya

barbadiyon ka sog manana fuzul tha
barbadiyon ka jashn manata chala gaya

jo mil gaya usi ko muqaddar samajh liya
jo kho gaya main us ko bhulata chala gaya

ġham aur ḳhushi men farq na mahsus ho jahan
main dil ko us maqam pe laata chala gaya
------------------------------------------
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया

जो मिल गया उसे मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भूलाता चला गया

ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया

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ḳhamushi achchhi nahin inkar hona chahiye..

ḳhamushi achchhi nahin inkar hona chahiye
ye tamasha ab sar-e-bazar hona chahiye

ḳhvab kī tabir par israr hai jin ko abhi
pahle un ko ḳhvab se bedar hona chahiye

Duub kar marna bhi uslub-e-mohabbat ho to ho
vo jo dariya hai to us ko paar hona chahiye

ab vahi karne lage didar se aage ki baat
jo kabhi kahte the bas didar hona chahiye

baat puuri hai adhuri chahiye ai jan-e-jan
kaam asan hai ise dushvar hona chahiye

dosti ke naam par kiije na kyunkar dushmani
kuchh na kuchh aḳhir tariq-e-kar hona chahiye

jhuuT bola hai to qaaem bhi raho us par 'zafar'
aadmi ko sahab-e-kirdar hona chahiye
-----------------------------------------

ख़ामोशी अच्छी नहीं, इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए

ख़्वाब की ताबीर पर इसरार है जिनको अभी
पहले उनको ख़्वाब से बेदार होना चाहिए

डूब कर मरना भी उस्लूब-ए-मोहब्बत हो तो हो
वो जो दरिया है, तो उसको पार होना चाहिए

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात
जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए

बात पूरी है अधूरी चाहिए ऐ जान-ए-जान
काम आसान है, इसे दुश्वार होना चाहिए

दोस्ती के नाम पर कीजिए ना क्यूंकर दुश्मनी
कुछ न कुछ आख़िर तरीक़-ए-कार होना चाहिए

झूठ बोला है तो कायम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
आदमी को साहिब-ए-करदार होना चाहिए
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Udaas raat hai koi to ḳhvab de jaao..

udaas raat hai koi to ḳhvab de jaao
mire gilas men thodi sharab de jaao

bahut se aur bhi ghar hain ḳhuda ki basti men
faqir kab se khada hai javab de jaao

main zard patton pe shabnam saja ke laaya huun
kisi ne mujh se kaha tha hisab de jaao

adab nahīn hai ye aḳhbar ke tarashe hain
gae zamanon ki koi kitab de jaao

phir us ke baad nazare nazar ko tarsenge
vo ja raha hai ḳhizan ke gulab de jaao

miri nazar men rahe Dubne ka manzar bhi
ġhurub hota hua aftab de jaao

hazar safhon ka dīvan kaun padhta hai
'bashīr-badr' ka koi intiḳhab de jaao
----------------------------------------
उदास रात है, कोई तो ख़्वाब दे जाओ
मेरे गिलास में थोड़ी शराब दे जाओ

बहुत से और भी घर हैं ख़ुदा की बस्ती में
फकीर कब से खड़ा है जवाब दे जाओ

मैं ज़र्द पत्तों पे शबनम सजा के लाया हूँ
किसी ने मुझसे कहा था हिसाब दे जाओ

अदब नहीं है ये अख़बार के तराशे हैं
गए ज़मानों की कोई किताब दे जाओ

फिर उसके बाद नज़ारे नज़र को तरसेंगे
वो जा रहा है ख़िज़ाँ के गुलाब दे जाओ

मेरी नज़र में रहे डूबने का मंज़र भी
ग़ुरूब होता हुआ आफ़ताब दे जाओ

हज़ार सफ़हों का दीवान कौन पढ़ता है
'बशीर-बदर' का कोई चुनाव दे जाओ

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Aankh men paani rakho honTon pe chingari rakho..

aankh men paani rakho honTon pe chingari rakho
zinda rahna hai to tarkiben bahut saari rakho

raah ke patthar se baḌh kar kuchh nahin hain manzilen
rāste āvāz dete haiñ safar jaarī rakho

ek hi naddi ke hain ye do kinare dosto
dostana zindagi se maut se yaari rakho

aate jaate pal ye kahte hain hamare kaan men
kuuch ka ailan hone ko hai tayyari rakho

ye zaruri hai ki ankhon Ka bharam qaaem rahe
niind rakho ya na rakho ḳhvab meyari rakho

ye havaen uḌ na jaaen le ke kaghaz ka badan
dosto mujh par koi patthar Zara bhari rakho

le to aae shairi bazar men 'rahat' miyan
Kya zaruri hai ki lahje ko bhi bazari rakho
---------------------------------------------
आँख में पानी रखो होंठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ़कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो

एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कुछ का ऐलान होने को है तैयारी रखो

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम कायम रहे
नींद रखो या न रखो ख्वाब मेयारी रखो

ये हवाएँ उड़ न जाएँ लेकर कागज़ का बदन
दोस्तों मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

ले तो आए शायरी बाजार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो

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faqirana aae sada kar chale..

faqirana aae sada kar chale
ki myaan ḳhush raho ham dua kar chale

jo tujh bin na jiine ko kahte the ham
so is ahd ko ab vafa kar chale

shifa apni taqdir hi men na thi
ki maqdur tak to dava kar chale

paḌe aise asbab payan-e-kar
ki na-char yuun ji jala kar chale

vo kya chiiz hai aah jis ke liye
har ik chiiz se dil uThā kar chale

koi na-umidana karte nigah
so tum ham se muñh bhī chhupā kar chale

bahut aarzu thi gali ki tiri
so yaan se lahu men naha kar chale

dikhai diye yuun ki be-ḳhud kiya
hamen aap se bhi juda kar chale

jabin sajda karte hi karte gai
haq-e-bandagī ham adā kar chale

parastish ki yaan tak ki ai but tujhe
nazar men sabhon ki ḳhuda kar chale

jhaḌe phuul jis rang gulbun se yuun
chaman meñ jahan ke ham aa kar chale

na dekha gham-e-dostan shukr hai
hamin daagh apna dikha kar chale

gai umr dar-band-e-fikr-e-ghazal
so is fan ko aisā baḌā kar chale

kahen kya jo puchhe koi ham se mir
jahan men tum aae the kya kar chale
-------------------------------------
फ़कीराना आए सदा कर चले
कि मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले

जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी
कि मक्सूर तक तो दवा कर चले

पढ़े ऐसे असबाब पायां-ए-कार
कि न-चार यूं जी जलाकर चले

वो क्या चीज़ है आह जिस के लिए
हर इक चीज़ से दिल उठाकर चले

कोई न-उमीदाना करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छुपाकर चले

बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिए यूं की बे-ख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

जबीन सजदा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

परस्तिश की याँ तक की ऐ बुत तुझे
नज़र में सबों की ख़ुदा कर चले

झड़े फूल जिस रंग गुलबन से यूं
चमन में जहाँ के हम आकर चले

न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है
हमीं दाग़ अपना दिखा कर चले

गई उम्र दर-बंद-ए-फिकर-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले

कहीं क्या जो पूछे कोई हम से 'मीर'
जहाँ में तुम आए थे क्या कर चले

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Itni muddat baad mile ho..

itni muddat baad mile ho
kin sochon meñ gum phirte ho

itne ḳha.if kyuuñ rahte ho
har aahaT se Dar jaate ho

tez havā ne mujh se puchha
ret pe kyā likhte rahte ho

kaash koi ham se bhi puchhe
raat ga.e tak kyuuñ jaage ho

men dariya se bhi Darta huun
tum dariyā se bhī gahre ho

kaun sī baat hai tum meñ aisī
itne achchhe kyuuñ lagte ho

pīchhe muḌ kar kyuuñ dekhā thā
patthar ban kar kyā takte ho

jaao jiit ka jashn manao
meñ jhūTā huuñ tum sachche ho

apne shahar ke sab logoñ se
merī ḳhātir kyuuñ uljhe ho

kahne ko rahte ho dil meñ
phir bhī kitne duur khaḌe ho

raat hameñ kuchh yaad nahīñ thā
raat bahut hī yaad aa.e ho

ham se na pūchho hijr ke qisse
apnī kaho ab tum kaise ho

'mohsin' tum badnām bahut ho
jaise ho phir bhī achchhe ho
------------------------------
इतनी मुदत बाद मिले हो
किन सोचों में ग़म फिरते हो

इतने ख़ाइफ क्यों रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझसे पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो

काश कोई हम से भी पूछे
रात गए तक क्यों जागे हो

मैं दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो

पीछे मुड़ कर क्यों देखा था
पत्थर बन कर क्या ताकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ
मैं झूठा हूँ तुम सच्चे हो

अपने शहर के सब लोगों से
मेरी ख़ातिर क्यों उलझे हो

कहने को रहते हो दिल में
फिर भी कितने दूर खड़े हो

रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आ गई हो

हम से ना पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो फिर भी अच्छे हो

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Jidhar jaate hain sab jaana udhar accha nahi lagta..

Jidhar jaate hain sab jaana udhar accha nahi lagta
Mujhe paamaal raaston ka safar accha nahi lagta

Ghalat baaton ko khaamoshi se sunna, haami bhar lena
Bahut hain faaide is mein magar accha nahi lagta

Mujhe dushman se bhi khuddari ki umeed rehti hai
Kisi ka bhi ho sar, qadmon mein sar accha nahi lagta

Bulandi par unhein mitti ki khushboo tak nahi aati
Yeh wo shaakhen hain jin ko ab shajar accha nahi lagta

Yeh kyun baaqi rahe aatish-zano, yeh bhi jala daalo
Ke sab be-ghar hon aur mera ho ghar accha nahi lagta
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जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
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Agar ye keh do baghair mere nahi guzara toh main tumhara..

Agar ye keh do baghair mere nahi guzara toh main tumhara
Ya us pe mabni koi tasur koi ishara toh main tumhara

Guroor-parwar ana ka malik kuch is tarah ke hain naam mere
Magar qasam se jo tum ne ik naam bhi pukara toh main tumhara

Tum apni sharton pe khel khelo main jaise chahe lagaoon baazi
Agar main jeeta toh tum ho mere agar main haara toh main tumhara

Tumhara aashiq tumhara mukhlis tumhara saathi tumhara apna
Raha na in mein se koi duniya mein jab tumhara toh main tumhara

Tumhara hone ke faisle ko main apni qismat pe chhodta hoon
Agar muqaddar ka koi toota kabhi sitara toh main tumhara

Ye kis pe taweez kar rahe ho ye kis ko paane ke hain wazeefe
Tamaam chhodo bas ek kar lo jo istikhara toh main tumhara
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अगर ये कह दो बग़ैर मेरे नहीं गुज़ारा तो मैं तुम्हारा
या उस पे मब्नी कोई त'अस्सुर कोई इशारा तो मैं तुम्हारा

ग़ुरूर-परवर अना का मालिक कुछ इस तरह के हैं नाम मेरे
मगर क़सम से जो तुम ने इक नाम भी पुकारा तो मैं तुम्हारा

तुम अपनी शर्तों पे खेल खेलो मैं जैसे चाहे लगाऊँ बाज़ी
अगर मैं जीता तो तुम हो मेरे अगर मैं हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा आशिक़ तुम्हारा मुख़्लिस तुम्हारा साथी तुम्हारा अपना
रहा न इन में से कोई दुनिया में जब तुम्हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा होने के फ़ैसले को मैं अपनी क़िस्मत पे छोड़ता हूँ
अगर मुक़द्दर का कोई टूटा कभी सितारा तो मैं तुम्हारा

ये किस पे ता'वीज़ कर रहे हो ये किस को पाने के हैं वज़ीफ़े
तमाम छोड़ो बस एक कर लो जो इस्तिख़ारा तो मैं तुम्हारा
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Mohabbatón mein dikhave ki dosti na mila..

Mohabbatón mein dikhave ki dosti na mila
Agar gale nahi milta toh haath bhi na mila

Gharon pe naam the, naamon ke saath ohde the
Bahut talaash kiya koi aadmi na mila

Tamam rishton ko main ghar pe chhod aaya tha
Phir us ke baad mujhe koi ajnabi na mila

Khuda ki itni badi kaayenaat mein main ne
Bas ek shakhs ko manga mujhe wahi na mila

Bahut ajeeb hai ye qurbaton ki doori bhi
Wo mere saath raha aur mujhe kabhi na mila
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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

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Apne har har lafz ka khud aaina ho jaunga..

अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा
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Apne har har lafz ka khud aaina ho jaunga
Usko chhota keh ke main kaise bada ho jaunga

Tum giraane mein lage the tumne socha hi nahi
Main gira toh masla ban kar khada ho jaunga

Mujhko chalne do akela hai abhi mera safar
Rasta roka gaya toh qafila ho jaunga

Saari duniya ki nazar mein hai mera ahad-e-wafa
Ek tere kehne se kya main bewafa ho jaunga
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Jab se tu ne mujhe deewana bana rakha hai..

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है

उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है

पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है

अब मिरी दीद की दुनिया भी तमाशाई है
तू ने क्या मुझ को मोहब्बत में बना रक्खा है

पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर 'नासिर'
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है
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Jab se tu ne mujhe deewana bana rakha hai
Sang har shakhs ne haathon mein utha rakha hai

Us ke dil par bhi kadi ishq mein guzri hogi
Naam jis ne bhi mohabbat ka sazaa rakha hai

Pattharo aaj mere sar pe baraste kyun ho
Main ne tum ko bhi kabhi apna Khuda rakha hai

Ab meri deed ki duniya bhi tamashai hai
Tu ne kya mujh ko mohabbat mein bana rakha hai

Pee ja ayyaam ki talkhi ko bhi hans kar 'Nasir'
Gham ko sehne mein bhi qudrat ne mazaa rakha hai
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Kabhi khud pe kabhi haalaat pe rona aaya..

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
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Kabhi khud pe kabhi haalaat pe rona aaya
Baat nikli toh har ik baat pe rona aaya

Hum toh samjhe the ke hum bhool gaye hain unko
Kya hua aaj ye kis baat pe rona aaya

Kis liye jeete hain hum kis ke liye jeete hain
Baaraaha aise sawaalaat pe rona aaya

Kaun rota hai kisi aur ki khaatir ai dost
Sab ko apni hi kisi baat pe rona aaya
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Wahi phir mujhe yaad aane lage hain..

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

वो हैं पास और याद आने लगे हैं
मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं

हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं

ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं

हवाएँ चलीं और न मौजें ही उट्ठीं
अब ऐसे भी तूफ़ान आने लगे हैं

क़यामत यक़ीनन क़रीब आ गई है
'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे हैं
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Wahi phir mujhe yaad aane lage hain
Jinhe bhoolne mein zamaane lage hain

Woh hain paas aur yaad aane lage hain
Mohabbat ke hosh ab thikane lage hain

Suna hai humein woh bhulaane lage hain
Toh kya hum unhe yaad aane lage hain

Hataaye the jo raah se doston ki
Woh patthar mere ghar mein aane lage hain

Yeh kehna tha unse mohabbat hai mujhko
Yeh kehne mein mujhko zamaane lage hain

Hawaayein chali aur na maujein hi uthin
Ab aise bhi toofaan aane lage hain

Qayamat yaqeenan qareeb aa gayi hai
'Khumar' ab toh masjid mein jaane lage hain
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Kuchh ishq tha kuchh majboori thi so main ne jeevan waar diya..

कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया
मैं कैसा ज़िंदा आदमी था इक शख़्स ने मुझ को मार दिया

इक सब्ज़ शाख़ गुलाब की था इक दुनिया अपने ख़्वाब की था
वो एक बहार जो आई नहीं उस के लिए सब कुछ हार दिया

ये सजा-सजाया घर साथी मिरी ज़ात नहीं मिरा हाल नहीं
ऐ काश कभी तुम जान सको जो इस सुख ने आज़ार दिया

मैं खुली हुई इक सच्चाई मुझे जानने वाले जानते हैं
मैं ने किन लोगों से नफ़रत की और किन लोगों को प्यार दिया

वो इश्क़ बहुत मुश्किल था मगर आसान न था यूँ जीना भी
उस इश्क़ ने ज़िंदा रहने का मुझे ज़र्फ़ दिया पिंदार दिया

मैं रोता हूँ और आसमान से तारे टूटते देखता हूँ
उन लोगों पर जिन लोगों ने मिरे लोगों को आज़ार दिया

वो यार हों या महबूब मिरे या कभी कभी मिलने वाले
इक लज़्ज़त सब के मिलने में वो ज़ख़्म दिया या प्यार दिया

मिरे बच्चों को अल्लाह रखे इन ताज़ा हवा के झोंकों ने
मैं ख़ुश्क पेड़ ख़िज़ाँ का था मुझे कैसा बर्ग-ओ-बार दिया

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Kuchh ishq tha kuchh majboori thi so main ne jeevan waar diya
Main kaisa zinda aadmi tha, ek shakhs ne mujh ko maar diya

Ek sabz shaakh gulaab ki tha, ek duniya apne khwaab ki thi
Woh ek bahaar jo aayi nahin us ke liye sab kuch haar diya

Yeh saja-sajaya ghar saathi, meri zaat nahin mera haal nahin
Aye kaash kabhi tum jaan sako jo is sukh ne aazaar diya

Main khuli hui ek sachchai, mujhe jaanne wale jaante hain
Maine kin logon se nafrat ki aur kin logon ko pyaar diya

Woh ishq bahut mushkil tha magar aasaan na tha yun jeena bhi
Us ishq ne zinda rehne ka mujhe zarf diya, pindaar diya

Main rota hoon aur aasman se taare toot-te dekh-ta hoon
Un logon par jin logon ne mere logon ko aazaar diya

Woh yaar hon ya mehboob mere ya kabhi kabhi milne waale
Ek lazzat sab ke milne mein woh zakhm diya ya pyaar diya

Mere bachhon ko Allah rakhe, in taaza hawa ke jhonkon ne
Main khushk pedh khizaan ka tha, mujhe kaisa barg-o-baar diya

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Yoonhi be-sabab na phira karo, koi shaam ghar mein raha karo..

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो

कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ मिरे साथ तुम भी चला करो

नहीं बे-हिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो

ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो

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Yoonhi be-sabab na phira karo, koi shaam ghar mein raha karo
Woh ghazal ki sacchi kitaab hai, use chupke chupke padhā karo

Koi haath bhi na milāega, jo gale miloge tapak se
Yeh naye mizaj ka shahar hai, zara faasle se mila karo

Abhi raah mein kai mod hain, koi aayega, koi jaayega
Tumhein jisne dil se bhula diya, use bhoolne ki dua karo

Mujhe ishtihaar si lagti hain yeh mohabbaton ki kahaniyaan
Jo kaha nahi, woh suna karo, jo suna nahi, woh kaha karo

Kabhi husn-e-parda-nasheen bhi ho, zara aashiqana libas mein
Jo main ban sanwar ke kahin chaloon, mere saath tum bhi chala karo

Nahin be-hijaab woh chaand sa ki nazar ka koi asar na ho
Use itni garmi-e-shauq se badi der tak na takaa karo

Yeh khizaan ki zard si shaawl mein jo udaas ped ke paas hai
Yeh tumhare ghar ki bahaar hai, use aansuon se hara karo
    

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Agar talaash karun koi mil hi jaayega..

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा

न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा

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Agar talaash karun koi mil hi jaayega
Magar tumhari tarah kaun mujh ko chahega

Tumhe zaroor koi chahaton se dekhega
Magar wo aankhein hamari kahaan se laayega

Na jaane kab tere dil par nayi si dastak ho
Makaan khaali hua hai to koi aayega

Main apni raah mein deewaar ban ke baitha hoon
Agar wo aaya to kis raaste se aayega

Tumhare saath ye mausam farishton jaisa hai
Tumhare baad ye mausam bohot sataayega

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Aankhon mein raha dil mein utar kar nahi dekha, ..

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा

बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा

यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैं ने
फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं
वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

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Aankhon mein raha dil mein utar kar nahi dekha,
Kashti ke musafir ne samundar nahi dekha.

Be-waqt agar jaoonga sab chonk padenge,
Ik umra hui din mein kabhi ghar nahi dekha.

Jis din se chala hoon meri manzil pe nazar hai,
Aankhon ne kabhi meel ka patthar nahi dekha.

Yeh phool mujhe koi virasat mein mile hain,
Tum ne mera kaanton bhara bistar nahi dekha.

Yaaron ki mohabbat ka yaqeen kar liya maine,
Phoolon mein chhupaya hua khanjar nahi dekha.

Mahboob ka ghar ho ya buzurgon ki zameenein,
Jo chhod diya phir usse mudh kar nahi dekha.

Khat aisa likha hai ke nageene se jude hain,
Woh haath, jis ne koi zevar nahi dekha.

Patthar mujhe kehta hai mera chaahne wala,
Main mom hoon, usne mujhe chhoo kar nahi dekha.

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Aziz itna hi rakho ke ji sambhal jaye..

Aziz itna hi rakho ke ji sambhal jaye
Ab is qadar bhi na chaho ke dam nikal jaye

Mile hain yun to bahut, aao ab milen yun bhi
Ke rooh garmi-e-anfaas se pighal jaye

Mohabbatoin mein ajab hai dilon ko dhadka sa
Ke jaane kaun kahan rasta badal jaye

Zahe wo dil jo tamanna-e-taaza-tar mein rahe
Khushha wo umr jo khwabon hi mein bahl jaye

Main wo charaag sar-e-rahguzar-e-duniya hoon
Jo apni zaat ki tanhaiyon mein jal jaye

Har ek lahza yehi arzu yehi hasrat
Jo aag dil mein hai wo sher mein bhi dhal jaye

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अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए

मिले हैं यूँ तो बहुत आओ अब मिलें यूँ भी
कि रूह गर्मी-ए-अनफ़ास से पिघल जाए

मोहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाए

ज़हे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
ख़ोशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए

मैं वो चराग़ सर-ए-रहगुज़ार-ए-दुनिया हूँ
जो अपनी ज़ात की तन्हाइयों में जल जाए

हर एक लहज़ा यही आरज़ू यही हसरत
जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए
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कोई हालत नहीं ये हालत है..

Koi haalat nahi ye haalat hai
Ye to aashob-naak soorat hai

Anjuman mein ye meri khaamoshi
Burdabari nahi hai, wahshat hai

Tujh se ye gaah-gaah ka shikwa
Jab tak hai basa, ghanimat hai

Khwahishen dil ka saath chhod gayi
Ye aziyat badi aziyat hai

Log masroof jaante hain mujhe
Yahan mera gham hi meri fursat hai

Tanz pehriya-e-tabasum mein
Is takalluf ki kya zarurat hai

Hum ne dekha to hum ne ye dekha
Jo nahi hai, wo khoobsurat hai

Waar karne ko jaan-nisar aayein
Ye to isaar hai 'inayat hai'

Garm-josh aur is qadar kya baat
Kya tumhein mujh se kuch shikayat hai?

Ab nikal aao apne andar se
Ghar mein samaan ki zarurat hai

Aaj ka din bhi 'aish se guzra

Sar se paa tak badan salaamat hai

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कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोब-नाक सूरत है

अंजुमन में ये मेरी ख़ामोशी
बुर्दबारी नहीं है वहशत है

तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा
जब तलक है बसा ग़नीमत है

ख़्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं
ये अज़िय्यत बड़ी अज़िय्यत है

लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
याँ मिरा ग़म ही मेरी फ़ुर्सत है

तंज़ पैराया-ए-तबस्सुम में
इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है

हम ने देखा तो हम ने ये देखा
जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है

वार करने को जाँ-निसार आएँ
ये तो ईसार है 'इनायत है

गर्म-जोशी और इस क़दर क्या बात
क्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत है

अब निकल आओ अपने अंदर से
घर में सामान की ज़रूरत है

आज का दिन भी 'ऐश से गुज़रा
सर से पा तक बदन सलामत है
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maine ye kab kaha ki wo mujhe kabhi akela nahi chhodta..

मैंने ये कब कहा की वो मुझे अकेला नही छोड़ता
छोड़ता है मगर एक दिन से ज्यादा नहीं छोड़ता

कौन शहराओ की प्यास है इन मकानो की बुनियाद मे
बारिश से बच भी जाये तो दरिया नहीं छोड़ता

मैं जिस से छुप कर तुमसे मिला हूँ अगर आज वो
देख लेता तो शायद वो दोनों को ज़िंदा नहीं छोड़ता

तय-शुदा वक़्त पर पहुँच जाता है वो प्यार करने वसूल
जिस तरह अपना कर्जा कोई बनिया नहीं छोडता

आज पहली दफा उसे मिलना है और एक खदशा भी है
वो जिसे छोड़ देता है उसे कही का नहीं छोड़ता


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maine ye kab kaha ki wo mujhe kabhi akela nahi chhodta
chhodta hai magar ek din se jyada nahi chhodta

kaun shehrao ki pyaas hai in makano ki buniyad me
barish se bach bhi jaye to dariya nahi chhodta

mai jis se chhup kar tumse mila hoo agar aaj wo
dekh leta to shayad wo dono ko jinda nahi chhodta

tay-shuda wqt pr pahunch jata hai wo pyaar krne wasool
jis tar aona karza koi baniya nahi chhodta

aaj pehli dafa use milna haui aur ek khadsa bhi hai
wo jise chhod deta hai use kahi ka nhi chhodta.
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Khaak hi khaak thi aur khaak bhi kya kuch nahin tha..

ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।

क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।

ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था।

अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था।

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Khaak hi khaak thi aur khaak bhi kya kuch nahin tha
Mai jab aaya to mere ghar ki jagah kuch nahin tha

Kya karoon tujhse khayanat nahin kar sakta main
Warna us aankh mein mere liye kya kuch nahin tha

Ye bhi sach hai mujhe kabhi usne kuch na kaha
Ye bhi sach hai ki us aurat se chhupa kuch nahin tha

Ab wo mere hi kisi dost ki mankooha hai
Main palat jaata magar peechhe bacha kuch nahin tha.
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Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge..

कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे 

शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे 

वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे 

उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे 

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे 

मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे 

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Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge
Jane kaise log wo honge jo us ko bhaate honge

Us ki yaad ki baad-e-saba mein aur to kya hota hoga
Yoon hi mere baal hain bikhre aur bikhar jaate honge

Wo jo na aane wala hai na us se humko matlab tha
Aane walon se kya matlab aate hain aate honge

Yaaron kuchh to haal sunao us ki qayamat baahon ka
Wo jo simat-te honge un mein wo to mar jate honge

Band rahe jin ka darwaaza aise gharon ki mat poochho
Deeware gir jaati hongi aangan reh jaate honge

Meri saans ukhadte hi sab bain karenge ro’enge
Yaani mere baad bhi yaani saans liye jaate honge
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ye jo nang the ye jo nam the mujhe kha gae..

ये जो नंग थे ये जो नाम थे मुझे खा गए
ये ख़याल-ए-पुख़्ता जो ख़ाम थे मुझे खा गए

कभी अपनी आँख से ज़िंदगी पे नज़र न की
वही ज़ाविए कि जो आम थे मुझे खा गए

मैं अमीक़ था कि पला हुआ था सुकूत में
ये जो लोग महव-ए-कलाम थे मुझे खा गए

वो जो मुझ में एक इकाई थी वो न जुड़ सकी
यही रेज़ा रेज़ा जो काम थे मुझे खा गए

ये अयाँ जो आब-ए-हयात है इसे क्या करूँ
कि निहाँ जो ज़हर के जाम थे मुझे खा गए

वो नगीं जो ख़ातिम-ए-ज़िंदगी से फिसल गया
तो वही जो मेरे ग़ुलाम थे मुझे खा गए

मैं वो शो'ला था जिसे दाम से तो ज़रर न था
प जो वसवसे तह-ए-दाम थे मुझे खा गए

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ye jo nang the ye jo nam the mujhe kha gae
ye KHayal-e-puKHta jo KHam the mujhe kha gae

kabhi apni aankh se zindagi pe nazar na ki
wahi zawiye ki jo aam the mujhe kha gae

main amiq tha ki pala hua tha sukut mein
ye jo log mahw-e-kalam the mujhe kha gae

wo jo mujh mein ek ikai thi wo na juD saki
yahi reza reza jo kaam the mujhe kha gae

ye ayan jo aab-e-hayat hai ise kya karun
ki nihan jo zahr ke jam the mujhe kha gae

wo nagin jo KHatim-e-zindagi se phisal gaya
to wahi jo mere ghulam the mujhe kha gae

main wo shoala tha jise dam se to zarar na tha
pa jo waswase tah-e-dam the mujhe kha gae

jo khuli khuli thin adawaten mujhe ras thin
ye jo zahr-e-KHanda-salam the mujhe kha gae
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ik pal men ik sadi ka maza ham se puchhiye..

इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए

हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए

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ik pal men ik sadi ka maza ham se puchhiye
do din ki zindagi ka maza ham se puchhiye

bhule hain rafta rafta unhen muddaton men ham
qiston men khud-kushi ka maza ham se puchhiye

aghaz-e-ashiqi ka maza aap janiye
anjam-e-ashiqi ka maza ham se puchhiye

jalte diyon men jalte gharon jaisi zau kahan
sarkar raushni ka maza ham se puchhiye

vo jaan hi gae ki hamen un se pyaar hai
ankhon ki mukhbiri ka maza ham se puchhiye

hansne ka shauq ham ko bhi tha aap ki tarah
hansiye magar hansi ka maza ham se puchhiye

ham tauba kar ke mar gae be-maut ai ‘khumar’
tauhin-e-mai-kashi ka maza ham se puchhiye
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Tumhe Jab Kabhi Mile Fursaten Mere Dil Say Boojh Utar Do..

तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो

मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो

किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो

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Tumhe Jab Kabhi Mile Fursaten, Mere Dil Say Boojh Utar Do
Main Bhut Dino Say Udaas Ho, Mujhe Koi Shaam Udhaar Do

Mujhe Apne Roop Ki Dhoop Do, Ke Chamak Sake Mere Khal-O-Khad
Mujhe Apne Rang Mein Rang Do, Mere Sare Zang Utar Do

Kesi Aur Ko Mere Haal Say Na Garz Hai Koi Na Wasta
Mian Bikhar Gya Ho Sameet Loo, Main Bigar Gya Ho Sanwar Do

Meri Wehshaton Ne Barha Dia Hai Judaiyo Ke Aazab Ne
Mere Dil Pa Hath Rakho Zara, Meri Dharkano Ko Qarar Do

Tumhe Subha Kesi Lagi?,Mere Khawahisho Ke Diyaar Ki
Jo Bhali Lagi Tw Yahi Raho, Esy Chahato Say Nikhaar Do

Wahan Ghar Mein Kon Hai Muntazir K Ho Fikar Deer Saweer Ki
Bari Mukhtasir Si Yeh Raat Hai, Esi Chandni Mein Guzaar Do

Koi Baat Karni Hai Chand Say Kesi Shaksaar Ki Uoot Mein
Muje Rasten Yehi Kahin Kesi Kunj-E-Gul Mein Utar Do
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faraz tujh ko na aayeen mohabbatein karni..

ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी
'फ़राज़' तुझ को न आईं मोहब्बतें करनी 

ये क़ुर्ब क्या है कि तू सामने है और हमें
शुमार अभी से जुदाई की साअ'तें करनी 

कोई ख़ुदा हो कि पत्थर जिसे भी हम चाहें
तमाम उम्र उसी की इबादतें करनी 

सब अपने अपने क़रीने से मुंतज़िर उस के
किसी को शुक्र किसी को शिकायतें करनी 

हम अपने दिल से ही मजबूर और लोगों को
ज़रा सी बात पे बरपा क़यामतें करनी 

मिलें जब उन से तो मुबहम सी गुफ़्तुगू करना
फिर अपने आप से सौ सौ वज़ाहतें करनी 

ये लोग कैसे मगर दुश्मनी निबाहते हैं
हमें तो रास न आईं मोहब्बतें करनी 

कभी 'फ़राज़' नए मौसमों में रो देना
कभी तलाश पुरानी रिफाक़तें करनी

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Yeh kya ke sab se bayaan dil kii haalatein karni
'faraz' tujh ko na aayeen mohabbatein karni

yeh qurb kya hai ke tu saamne hai aur hamein
shumaar abhi se Khudaai ke sa'atein karni

koi khuda ho ke patthar jise bhi ham
chaahein tamaam umr usi kii ibaadatein karni

sab apne apne qareene se muntazir us ke
kisi ko shukr kisi ko shikaayatein karni

ham apne dil se hi majboor aur logon ko
zaraa si baat pe barpaa qayaamatein karni

milen jab un se to mubham si guftagoo karna
phir apne aap se sau sau dafaa hmaqtein karni

yeh log kaise magar dushmani nibaahte hain
hamein to raas na aayen mohabbatein karni

kabhi "faraz" naye mausamon mein ro dena
kabhi talaash puraani rafaaqatein karni
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khamosh rah kar pukarti hai..

ख़मोश रह कर पुकारती है
वो आँख कितनी शरारती है 

है चाँदनी सा मिज़ाज उस का
समुंदरों को उभारती है 

मैं बादलों में घिरा जज़ीरा
वो मुझ में सावन गुज़ारती है 

कि जैसे मैं उस को चाहता हूँ
कुछ ऐसे ख़ुद को सँवारती है 

ख़फ़ा हो मुझ से तो अपने अंदर
वो बारिशों को उतारती है

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khamosh rah kar pukarti hai
vo aankh kitni shararti hai 

hai chandni sa mizaj us ka
samundaron ko ubharti hai 

main badalon men ghira jazira
vo mujh men savan guzarti hai 

ki jaise main us ko chahta huun
kuchh aise khud ko sanvarti hai 

khafa ho mujh se to apne andar
vo barishon ko utarti hai
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tujh ko kitnon ka lahu chahiye ai arz-e-watan..

तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
कितनी आहों से कलेजा तिरा ठंडा होगा
कितने आँसू तिरे सहराओं को गुलज़ार करें

तेरे ऐवानों में पुर्ज़े हुए पैमाँ कितने
कितने वादे जो न आसूदा-ए-इक़रार हुए
कितनी आँखों को नज़र खा गई बद-ख़्वाहों की
ख़्वाब कितने तिरी शह-राहों में संगसार हुए

बला-कशान-ए-मोहब्बत पे जो हुआ सो हुआ 
जो मुझ पे गुज़री मत उस से कहो, हुआ सो हुआ 
मबादा हो कोई ज़ालिम तिरा गरेबाँ-गीर 
लहू के दाग़ तू दामन से धो, हुआ सो हुआ

हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं मगर ऐ जान-ए-जहाँ 
अपने उश्शाक़ से ऐसे भी कोई करता है 
तेरी महफ़िल को ख़ुदा रक्खे अबद तक क़ाएम 
हम तो मेहमाँ हैं घड़ी भर के हमारा क्या है 

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tujh ko kitnon ka lahu chahiye ai arz-e-vatan
jo tire ariz-e-be-rang ko gulnar karen 
kitni aahon se kaleja tira ThanDa hoga 
kitne aansu tire sahraon ko gulzar karen 

tere aivanon men purze hue paiman kitne 
kitne va.ade jo na asuda-e-iqrar hue 
kitni ankhon ko nazar kha ga.i bad-khvahon ki 
khvab kitne tiri shah-rahon men sangsar hue 

bala-kashan-e-mohabbat pe jo hua so hua 
jo mujh pe guzri mat us se kaho, hua so hua 
mabada ho koi zalim tira gareban-gir 
lahu ke daagh tu daman se dho, hua so hua

ham to majbur-e-vafa hain magar ai jan-e-jahan 
apne ushshaq se aise bhi koi karta hai 
teri mahfil ko khuda rakkhe abad tak qaa.em 
ham to mehman hain ghaDi bhar ke hamara kya hai
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jab tera hukm mila tark mohabbat kar di..

जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
दिल मगर इस पे वो धड़का कि क़यामत कर दी

तुझ से किस तरह मैं इज़्हार-ए-तमन्ना करता 
लफ़्ज़ सूझा तो मुआ'नी ने बग़ावत कर दी 

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले 
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी 

तुझ को पूजा है कि असनाम-परस्ती की है 
मैं ने वहदत के मफ़ाहीम की कसरत कर दी 

मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है 
तिरी उल्फ़त ने मोहब्बत मिरी आदत कर दी 

पूछ बैठा हूँ मैं तुझ से तिरे कूचे का पता 
तेरे हालात ने कैसी तिरी सूरत कर दी 

क्या तिरा जिस्म तिरे हुस्न की हिद्दत में जला 
राख किस ने तिरी सोने की सी रंगत कर दी

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jab tira hukm mila tark mohabbat kar di
dil magar is pe vo dhaDka ki qayamat kar di 

tujh se kis tarah main iz.har-e-tamanna karta
lafz sujha to muani ne baghavat kar di 

main to samjha tha ki lauT aate hain jaane vaale
tu ne ja kar to juda.i miri qismat kar di 

tujh ko puuja hai ki asnam-parasti ki hai
main ne vahdat ke mafahim ki kasrat kar di 

mujh ko dushman ke iradon pe bhi pyaar aata hai
tiri ulfat ne mohabbat miri aadat kar di 

puchh baiTha huun main tujh se tire kuche ka pata
tere halat ne kaisi tiri surat kar di 

kya tira jism tire husn ki hiddat men jala
raakh kis ne tiri sone ki si rangat kar di
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chalo bad-e-bahari ja rahi hai..

चलो बाद-ए-बहारी जा रही है
पिया-जी की सवारी जा रही है

शुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ से 
तमन्ना की अमारी जा रही है 

फ़ुग़ाँ ऐ दुश्मन-ए-दार-ए-दिल-ओ-जाँ 
मिरी हालत सुधारी जा रही है 

है पहलू में टके की इक हसीना 
तिरी फ़ुर्क़त गुज़ारी जा रही है 

जो इन रोज़ों मिरा ग़म है वो ये है 
कि ग़म से बुर्दबारी जा रही है 

है सीने में अजब इक हश्र बरपा 
कि दिल से बे-क़रारी जा रही है 

मैं पैहम हार कर ये सोचता हूँ 
वो क्या शय है जो हारी जा रही है 

दिल उस के रू-ब-रू है और गुम-सुम 
कोई अर्ज़ी गुज़ारी जा रही है 

वो सय्यद बच्चा हो और शैख़ के साथ 
मियाँ इज़्ज़त हमारी जा रही है 

है बरपा हर गली में शोर-ए-नग़्मा 
मिरी फ़रियाद मारी जा रही है 

वो याद अब हो रही है दिल से रुख़्सत 
मियाँ प्यारों की प्यारी जा रही है 

दरेग़ा तेरी नज़दीकी मियाँ-जान 
तिरी दूरी पे वारी जा रही है 

बहुत बद-हाल हैं बस्ती तिरे लोग 
तो फिर तू क्यूँ सँवारी जा रही है 

तिरी मरहम-निगाही ऐ मसीहा 
ख़राश-ए-दिल पे वारी जा रही है 

ख़राबे में अजब था शोर बरपा 
दिलों से इंतिज़ारी जा रही है 

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chalo bad-e-bahari ja rahi hai
piya-ji ki savari ja rahi hai 

shumal-e-javedan-e-sabz-e-jan se 
tamanna ki amari ja rahi hai 

fughan ai dushman-e-dar-e-dil-o-jan 
miri halat sudhari ja rahi hai 

hai pahlu men Take ki ik hasina 
tiri furqat guzari ja rahi hai 

jo in rozon mira gham hai vo ye hai 
ki gham se burdbari ja rahi hai 

hai siine men ajab ik hashr barpa 
ki dil se be-qarari ja rahi hai 

main paiham haar kar ye sochta huun 
vo kya shai hai jo haari ja rahi hai 

dil us ke ru-ba-ru hai aur gum-sum 
koi arzi guzari ja rahi hai 

vo sayyad bachcha ho aur shaikh ke saath 
miyan izzat hamari ja rahi hai 

hai barpa har gali men shor-e-naghma 
miri fariyad maari ja rahi hai 

vo yaad ab ho rahi hai dil se rukhsat 
miyan pyaron ki pyari ja rahi hai 

daregha teri nazdiki miyan-jan
tiri duuri pe vaari ja rahi hai 

bahut bad-hal hain basti tire log
to phir tu kyuun sanvari ja rahi hai 

tiri marham-nigahi ai masiha
kharash-e-dil pe vaari ja rahi hai 

kharabe men ajab tha shor barpa
dilon se intizari ja rahi hai
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ye haadsaa to kisi din gujarne wala hi tha..

ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था

तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़
मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख़्म भरने वाला था

बुलंदियों का नशा टूट कर बिखरने लगा
मेरा जहाज़ ज़मीन पर उतरने वाला था

मेरा नसीब मेरे हाथ काट गए वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था

मेरे चिराग मेरी शब मेरी मुंडेरें हैं
मैं कब शरीर हवाओं से डरने वाला था
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shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho..

शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम हो
दिल-दश्त में इक प्यास तमाशा है कि तुम हो

इक लफ़्ज़ में भटका हुआ शाइ'र है कि मैं हूँ
इक ग़ैब से आया हुआ मिस्रा है कि तुम हो 

दरवाज़ा भी जैसे मिरी धड़कन से जुड़ा है 
दस्तक ही बताती है पराया है कि तुम हो 

इक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ 
इक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो 

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ 
तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो 

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shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho
dil-dasht men ik pyaas tamasha hai ki tum ho 

ik lafz men bhaTka hua sha.ir hai ki main huun
ik ghaib se aaya hua misra.a hai ki tum ho 

darvaza bhi jaise miri dhaDkan se juDa hai 
dastak hi batati hai paraya hai ki tum ho 

ik dhuup se uljha hua saaya hai ki main huun 
ik shaam ke hone ka bharosa hai ki tum ho 

main huun bhi to lagta hai ki jaise main nahin huun 
tum ho bhi nahin aur ye lagta hai ki tum ho

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jis samt bhi dekhun nazar aataa hai ki tum ho..

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो

ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है 
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो 

इस दीद की साअत में कई रंग हैं लर्ज़ां 
मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो 

देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी 
देखूँ ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो 

ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ 
हर साँस में मुझ को यही लगता है कि तुम हो 

हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का 
अब कौन है शीरीं है कि लैला है कि तुम हो 

इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ 
इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो 

वो वक़्त न आए कि दिल-ए-ज़ार भी सोचे 
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो

आबाद हम आशुफ़्ता-सरों से नहीं मक़्तल 
ये रस्म अभी शहर में ज़िंदा है कि तुम हो 

ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी 
हम को ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो 

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jis samt bhi dekhun nazar aataa hai ki tum ho
ai jaan e jahaan ye koi tum saa hai ki tum ho

ye Khvaab hai Khushbu hai ki jhonkaa hai ki pul hai
ye dhund hai baadal hai ki saayaa hai ki tum ho

is did ki saa.at men kai rang hain larzaan
main hun ki koi aur hai duniyaa hai ki tum ho

dekho ye kisi aur ki aankhen hain ki meri
dekhun ye kisi aur kaa chehra hai ki tum ho

ye umr e gurezaan kahin thahre to ye jaanun
har saans men mujh ko yahi lagtaa hai ki tum ho

har bazm men mauzu e suKhan dil zadgaan kaa
ab kaun hai shirin hai ki lailaa hai ki tum ho

ik dard kaa phailaa huaa sahraa hai ki main hun
ik mauj men aayaa huaa dariyaa hai ki tum ho

vo vaqt na aa.e ki dil e zaar bhi soche
is shahr men tanhaa koi ham saa hai ki tum ho

aabaad ham aashufta-saron se nahin maqtal
ye rasm abhi shahr men zinda hai ki tum ho

ai jaan e faraaz itni bhi taufiq kise thi
ham ko gham e hasti bhi gavaara hai ki tum ho
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Anokhi Waza Hai Sare Zamane Se Nirale Hain..

अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं

इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं

फला-फूला रहे या-रब चमन मेरी उमीदों का
जिगर का ख़ून दे दे कर ये बूटे मैं ने पाले हैं

रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं

न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं

नहीं बेगानगी अच्छी रफ़ीक़-ए-राह-ए-मंज़िल से
ठहर जा ऐ शरर हम भी तो आख़िर मिटने वाले हैं

उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइ'ज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-साधे भोले भाले हैं

मिरे अशआ'र ऐ 'इक़बाल' क्यूँ प्यारे न हों मुझ को
मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं 


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Anokhi Waza Hai Sare Zamane Se Nirale Hain,
Ye Aashiq Kon Si Basti K Ya Rab Rehne Wale Hain,

Ilaj-E-Dard Mein Bhi Dard Ki Lazat Pe Marta Hon,
Jo Thay Chhaalon Mein Kante Nok-E-Sozan Se Nikale Hain,

Phalaa Phoola Rahe Ya Rab Chaman Meri Umeedon Ka,
Jigar Ka Khoon De De Kar Ye Boote Hum Ne Paale Hain,

Rulati Hai Mujhe Raton Ko Khamoshi Sataron Ki,
Niraala Ishq Hai Mera Niraale Mere Naale Hain,,

Na Poocho Mujh Se Lazzat Khaanamaan Barbad Rehne Ki,
Nasheman Sainkaron Main Ne Bana Kar Phonk Daale Hain,,

Nahin Begaangi Achchi Rafiq-e-raah-e-manzil Se
Thahar Ja Aye Sharar Ham Bhi To Akhir Mitne Waale Hain

Umeed-E-Hoor Ne Sab Kuch Seekha Rakha Hai Waaiz Ko,
Ye Hazrat Dekhne Mein Seedhe Saadhe, Bhole Bhaale Hain,

Mere Ashaar Aye Iqbal Kion Pyare Na Hon Mujh Ko,
Mere Toote Howe DiL K Dard Angaiz Naale Hain.!
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Ab kis se kahen aur kon sune jo haal tumhare baad hua..

अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ
इस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ

ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की
वो नाम जो मेरे होंटों पर ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ

उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए
इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ

वो अपने गाँव की गलियाँ थीं दिल जिन में नाचता गाता था
अब इस से फ़र्क़ नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ

बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में
ऐसा तो कभी सोचा भी न था दिल अब जितना बेदाद हुआ

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Ab kis se kahen aur kon sune jo haal tumhare baad hua,
Is dil ki jheel si ankhon main ik khawb bohat barbaad hua,

Yeh hijr-hava bhi dushman hai is naam ke saare rangon ki,
Woh naam jo mere honton pr khushbuu ki tarah abaad raha,

Us sheher me kitne chehre they kuch yaad nahi sab bhool gaye,
Ik shakss kitabon jesa tha woh shakss zubaani yaad hua,

Woh apne gaaon ki galiyan thi dil jin main nachta gaata tha,
Ab iss se fark nahi parta nashaad hua ya shaad hua,

Benaam satayesh rehti thi in gehri saanvli aankhon main,
Aissa to kabhi socha bhi na tha dil ab jitna bedaad hua..
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baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin..

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं

तुम भी हो बीते वक़्त के मानिंद हू-ब-हू
तुम ने भी याद आना है आना तो है नहीं

अहद-ए-वफ़ा से किस लिए ख़ाइफ़ हो मेरी जान
कर लो कि तुम ने अहद निभाना तो है नहीं

वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं

दुनिया हम अहल-ए-इश्क़ पे क्यूँ फेंकती है जाल
हम ने तिरे फ़रेब में आना तो है नहीं

वो इश्क़ तो करेगा मगर देख भाल के
'फ़ारिस' वो तेरे जैसा दिवाना तो है नहीं


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baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin
ham be-gharon ka koi Thikana to hai nahin 

tum bhi ho biite vaqt ke manind hū-ba-hū 
tum ne bhi yaad aana hai aana to hai nahin 

ahd-e-vafa se kis liye ḳha.if ho meri jaan 
kar lo ki tum ne ahd nibhana to hai nahin 

vo jo hamen aziiz hai kaisa hai kaun hai 
kyuun pūchhte ho ham ne batana to hai nahin 

duniya ham ahl-e-ishq pe kyuun phenkti hai jaal 
ham ne tire fareb men aana to hai nahin 

vo ishq to karega magar dekh bhaal ke 
'faris' vo tere jaisa divana to hai nahin 
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Thoda likha aur jyada chhod diya..

थोड़ा लिक्खा और ज़ियादा छोड़ दिया
आने वालों के लिए रस्ता छोड़ दिया

तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया

लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं
फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया

रोज़ इक पत्ता मुझ में आ गिरता है
जब से मैंने जंगल जाना छोड़ दिया

बस कानों पर हाथ रखे थे थोड़ी देर
और फिर उस आवाज़ ने पीछा छोड़ दिए
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Tera chup rehna mere zehan me kya baith gaya..

तेरा चुप रहना मेरे ज़हन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस को भी जाने का कहा, बैठ गया

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया

बात दरियाओं की, सूरज की, न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
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Tarikhio ko aag Lage aur diya jale..

तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले

उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब
वो रौशनी की बात करे और दिया जले

तुम चाहते हो तुम से बिछड़ के भी ख़ुश रहूँ
या’नी हवा भी चलती रहे और दिया जले

क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले

सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मैं चाहता हूँ शाम ढले और दिया जले

तुम लौटने में देर न करना कि ये न हो
दिल तीरगी में घेर चुके और दिया जले
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Parai aag par roti nhi banaunga..

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा

अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया
अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा

फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा

गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ
नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा

मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ
तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा

तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुख
मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा

मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने ‘सरवत’ पर
और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा
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Kya khabar us raushani me aur kya raushan hua..

क्या खबर उस रौशनी में और क्या क्या रोशन हुआ
जब वो इन हाथों से पहली बार रोशन रोशन हुआ

वो मेरे सीने से लग कर जिसको रोइ वो कौन था
किसके बुझने पर आज मै उसकी जगह रोशन हुआ

तेरे अपने तेरी किरणो को तरसते हैं यहाँ
तू ये किन गलियों में किन लोगो में जा रोशन हुआ

अब उस ज़ालिम से इस कसरत से तौफे आ रहे हैं
की हम घर में नई अलमारियां बनवा रहे हैं

हमे मिलना तो इन आवादियों से दूर मिलना
उसे कहना गए वक्तों में हम दरिया रहे हैं

बिछड़ जाने का सोचा तो नहीं था हमने लेकिन
तुझे खुश रखने की कोसिस में दुःख पंहुचा रहे हैं

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Kise Khabar hai Umar bas ispe gaur karne me Katt rhi hai ..

किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है
कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है

अजीब दुख है हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैं
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है

मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है

मुझ ऐसे पेड़ों के सूखने और सब्ज़ होने से क्या किसी को
ये बेल शायद किसी मुसीबत में है जो मुझ से लिपट रही है

ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है

सो इस तअ'ल्लुक़ में जो ग़लत-फ़हमियाँ थीं अब दूर हो रही हैं
रुकी हुई गाड़ियों के चलने का वक़्त है धुंध छट रही है
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Kadam rakhta hai yaar jab Ahishta Ahishta..

क़दम रखता है जब रस्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छट जाता है सब गर्द-ओ-ग़ुबार आहिस्ता आहिस्ता

भरी आँखों से हो के दिल में जाना सहल थोड़ी है
चढ़े दरियाओं को करते हैं पार आहिस्ता आहिस्ता

नज़र आता है तो यूँ देखता जाता हूँ मैं उस को
कि चल पड़ता है जैसे कारोबार आहिस्ता आहिस्ता

उधर कुछ औरतें दरवाज़ों पर दौड़ी हुई आईं
इधर घोड़ों से उतरे शहसवार आहिस्ता आहिस्ता

किसी दिन कारख़ाना-ए-ग़ज़ल में काम निकलेगा
पलट आएँगे सब बे-रोज़गार आहिस्ता आहिस्ता

तिरा पैकर ख़ुदा ने भी तो फ़ुर्सत में बनाया था
बनाएगा तिरे ज़ेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता

मिरी गोशा-नशीनी एक दिन बाज़ार देखेगी
ज़रूरत कर रही है बे-क़रार आहिस्ता आहिस्ता

वो कहता है हमारे पास आओ पर सलीके से
के जैसे आगे बढ़ती है कतार आहिस्ता आहिस्ता
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Is ek dar se Khwab dekhta nhi mai..

इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं

किसी मुंडेर पर कोई दिया जला
फिर इस के बाद क्या हुआ पता नहीं

अभी से हाथ काँपने लगे मिरे
अभी तो मैं ने वो बदन छुआ नहीं

मैं आ रहा था रास्ते में फुल थे
मैं जा रहा हूँ कोई रोकता नहीं

तिरी तरफ़ चले तो उम्र कट गई
ये और बात रास्ता कटा नहीं

मैं राह से भटक गया तो क्या हुआ
चराग़ मेरे हाथ में तो था नहीं

मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर
मैं बुझ चुका हूँ और मुझे पता नहीं

इस अज़दहे की आँख पूछती रहीं
किसी को ख़ौफ़ आ रहा है या नहीं

ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से
मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं

ख़ुदा करे वो पेड़ ख़ैरियत से हो
कई दिनों से उस का राब्ता नहीं
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Ab us janib se is kasarat se taufe aa rhe hain..

अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे हैं
के घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं।

हमे मिलना तो इन आबादियों से दूर मिलना
उससे कहना गए वक्तू में हम दरिया रहे हैं।

तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें
हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं।

हजारों लोग उसको चाहते होंगे हमें क्या
के हम उस गीत में से अपना हिस्सा गा रहे हैं।

बुरे मौसम की कोई हद नहीं तहजीब हाफी
फिजा आई है और पिंजरों में पर मुरझा रहे हैं।
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Jahan bhar ki tamam aankhein nichod kar jitna nam banega ..

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा

मैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ'राना मुबालग़ा है
मिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगा

हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा

तो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से क़ब्ल
मिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगा

मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसा
शदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा

सुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैं
बना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगा

कि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं
ये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ' रक़्बा हरम बनेगा

मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा

सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
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Wo muh lgata hai jab koi kam hota hai..

वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है
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fasle aise bhi honge ye kabhi socha na tha..

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था

वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर पिछली सी आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था

मैं तिरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा
सारी दुनिया में मगर कोई तिरे जैसा न था

आज मिलने की ख़ुशी में सिर्फ़ मैं जागा नहीं
तेरी आँखों से भी लगता है कि तू सोया न था

ये सभी वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं
आँख धुँदलाई हुई थी शहर धुँदलाया न था

सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब
एक पत्थर था ख़मोशी का कि जो हटता न था

याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था

मस्लहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम'
वर्ना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था

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fasle aise bhi honge ye kabhi socha na tha
samne baitha tha mere aur vo mera na tha

vo ki khushbu ki tarah phaila tha mere char-su
main use mahsus kar sakta tha chhu sakta na tha

raat bhar pichhli si aahat kaan men aati rahi
jhank kar dekha gali men koi bhi aaya na tha

main tiri surat liye saare zamane men phira
saari duniya men magar koi tire jaisa na tha

aaj milne ki khushi men sirf main jaaga nahin
teri ankhon se bhi lagta hai ki tu soya na tha

ye sabhi viraniyan us ke juda hone se thiin
aankh dhundlai hui thi shahr dhundlaya na tha

sainkadon tufan lafzon men dabe the zer-e-lab
ek patthar tha khamoshi ka ki jo hatta na tha

yaad kar ke aur bhi taklif hoti thi ‘adim’
bhuul jaane ke siva ab koi bhi chara na tha

maslahat ne ajnabi ham ko banaya tha ‘adim’
varna kab ik dusre ko ham ne pahchana na tha
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Uske pahlu se lag ke chalte hain...

उस के पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

बंद है मय-कदों के दरवाज़े
हम तो बस यूँही चल निकलते हैं

मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं

है उसे दूर का सफ़र दर-पेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं

शाम फ़ुर्क़त की लहलहा उठी
वो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैं

है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

तुम बनो रंग तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं

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Us Ke Pehloo Se Lag Ke Chalte Hain
Hum Kahin Taalney Se Talte Hain.

Main Usi Tarah To Bahalta Hoon
Aur Sab Jis Tarah Bahalte Hain.

Woh Hai Jaan Ab Har Ek Mehfil Ki
Hum Bhi Ab Ghar Se Kab Nikalte Hain.

Kya Takkaluff Karen Ye Kehne Mein
Jo Bhi Khush Hai Hum Us Se Jalte Hain.

Hai Usey Door Ka Safar Dar-Pesh
Hum Sambhaaley Nahin Sambhalte Hain.

Hai Azaab Faisle Ka Sehraa Bhi
Chal Na Pariye To Paaon Jalte Hain.

Ho Raha Hoon Main Kis Tarah Barbaad
Dekhne Waale Haath Malte Hain.

Tum Bano Rang, Tum Bano Khushboo
Hum To Apne Sukhan Mein Dhalte Hain.
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jab pyar nahin hai to bhula kyun nahin dete..

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूं नहीं देते
ख़त किस लिए रक्खे हैं जला क्यूं नहीं देते

किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूंतो मिटा क्यूं नहीं देते

लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यूं नहीं देते

रह रह के न तड़पाओ ऐ बे-दर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यूं नहीं देते

जब उस की वफ़ाओं पे यक़ीं तुम को नहीं है
'हसरत' को निगाहों से गिरा क्यूं नहीं देते

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jab pyar nahin hai to bhula kyun nahin dete
KHat kis liye rakkhe hain jala kyun nahin dete

kis waste likkha hai hatheli pe mera nam
main harf-e-ghalat hun to miTa kyun nahin dete

lillah shab-o-roz ki uljhan se nikalo
tum mere nahin ho to bata kyun nahin dete

rah rah ke na taDpao ai be-dard masiha
hathon se mujhe zahr pila kyun nahin dete

jab us ki wafaon pe yaqin tum ko nahin hai
'hasrat' ko nigahon se gira kyun nahin dete

- Hasarat Jaipuri
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Iss Se Pehle K Bewafa Ho Jaye..

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

तू कि यकता था बे-शुमार हुआ
हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ

हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ

हम अगर मंज़िलें न बन पाए
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ

देर से सोच में हैं परवाने
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ

इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ

अब के गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

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Iss Se Pehle K Bewafa Ho Jaye
Q Na A Dost Hum Juda Ho Jaye

Tu B Heere Se Ban Gaya Patthar
Hum B Kal Jane Kia Se Kia Hojaye

Tu K Yakta Ta Beshumar Hua
Hum B Toote To Jabaja Ho Jaye

Hum B Majburiyo Ka Uzr Kare
Pir Kahe Aur Mubtila Ho Jaye

Hum Agar Manzile Na Ban Paye
Manzilo Takk Ka Rasta Hojaye

Dair Se Soch Mai Hai Parwane
Raak Ho Jaye Ya Hawa Hojaye

Ishq B Khel Hai Naseebo Ka
Khak Hojaye Keemya Hojaye

Ab K Gar Tu Mile To Hum Tujh Se
Aise Lipte Teri Qaba Hojaye

Bandagi Hum Ne Chorh Di Hai 'Faraz'
Kia Kare Log Jab Khuda Hojaye
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Dost ban kar bhi nahi sath nibhane wala..

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

अब उसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मिरा
सख़्त नादिम है मुझे दाम में लाने वाला

सुब्ह-दम छोड़ गया निकहत-ए-गुल की सूरत
रात को ग़ुंचा-ए-दिल में सिमट आने वाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला

मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला

क्या ख़बर थी जो मिरी जाँ में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

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Dost ban kar bhi nahi sath nibhane wala
Wohi andaz hay zalim ka zamane wala

Ab usay log samjhte hain giraftar mera
Sakht naadim hay mujhe daam main lane wala

Subah dam choRR geya nikhat-e-gull ki surat
Raat ko guncha-e-dil may simatt aane wala

Kya kahen kitne marasim they hamare us se
Wo jo ik shakhss hai muh phair kay jaane wala

Tere hote huye aa jati thi sari dunia
Ajj tanha hoon to koi nahi aane wala

Muntazir kiss ka hoon tooti hoi dehleez pe main
Kon aye ga yahan, kon hai aane wala

Kya khabar thi jo meri jaan may ghulla hay itna
Hay wohi mujh ko sar-e-daar bhi laane wala

Main ne dekha hay baharon may chaman ko jalte
Hai koi khawb ki tabeer batane wala

Tum takaluf ko bhi ikhlaas samjhte ho Faraz
Dost hota nahi har hath milane wala
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Chalne Ka Hausla Nahin Rukna Muhaal Kar Diya..

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया

ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की
अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया

अब के हवा के साथ है दामन-ए-यार मुंतज़िर
बानू-ए-शब के हाथ में रखना सँभाल कर दिया

मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया

चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया

मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया

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Chalne Ka Hausla Nahin Rukna Muhaal Kar Diya
Ishq Ke Is Safar Ne To Mujh Ko NiDhaal Kar Diya

Ai Meri Gul-Zamiin Tujhe Chaah Thi Ik Kitaab Ki
Ahl-E-Kitaab Ne Magar Kya Tera Haal Kar Diya

Milte Hue Dilon Ke Biich Aur Tha Faisla Koi
Us Ne Magar BichhaḌte Vaqt Aur Savaal Kar Diya

Ab Ke Havaa Ke Saath Hai Daaman-E-Yaar Muntazir
Baanu-E-Shab Ke Haath Mein Rakhna Sambhaal Kar Diya

Mumkina Faislon Mein Ek Hijr Ka Faisla Bhi Tha
Ham Ne To Ek Baat Ki Us Ne Kamaal Kar Diya

Mere Labon Pe Mohr Thi Par Mere Shisha-Ru Ne To
Shahr Ke Shahr Ko Mera Vaaqif-E-Haal Kar Diya

Chehra O Naam Ek Saath Aaj Na Yaad Aa Sake
Vaqt Ne Kis Shabih Ko Ḳhvaab O Ḳhayaal Kar Diya

Muddaton Baad Us Ne Aaj Mujh Se Koi Gila Kiya
Mansab-E-Dilbari Pe Kya Mujh Ko Bahaal Kar Diya
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use kyun hum ne diya dil jo hai be-mehri..

उसे क्यूँ हम ने दिया दिल जो है बे-मेहरी में कामिल जिसे आदत है जफ़ा की 
जिसे चिढ़ मेहर-ओ-वफ़ा की जिसे आता नहीं आना ग़म-ओ-हसरत का मिटाना जो सितम में है यगाना 
जिसे कहता है ज़माना बुत-ए-बे-महर-ओ-दग़ा-बाज़ जफ़ा-पेशा फ़ुसूँ-साज़ सितम-ख़ाना-बर-अन्दाज़ 
ग़ज़ब जिस का हर इक नाज़ नज़र फ़ित्ना मिज़ा तीर बला ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर ग़म-ओ-रंज का बानी क़लक़-ओ-दर्द 
का मूजिब सितम-ओ-जौर का उस्ताद जफ़ा-कारी में माहिर जो सितम-केश-ओ-सितमगर जो सितम-पेशा है 
दिलबर जिसे आती नहीं उल्फ़त जो समझता नहीं चाहत जो तसल्ली को न समझे जो तशफ़्फ़ी को न 
जाने जो करे क़ौल न पूरा करे हर काम अधूरा यही दिन-रात तसव्वुर है कि नाहक़ 
उसे चाहा जो न आए न बुलाए न कभी पास बिठाए न रुख़-ए-साफ़ दिखाए न कोई 
बात सुनाए न लगी दिल की बुझाए न कली दिल की खिलाए न ग़म-ओ-रंज घटाए न रह-ओ-रस्म 
बढ़ाए जो कहो कुछ तो ख़फ़ा हो कहे शिकवे की ज़रूरत जो यही है तो न चाहो जो न 
चाहोगे तो क्या है न निबाहोगे तो क्या है बहुत इतराओ न दिल दे के ये किस काम का दिल 
है ग़म-ओ-अंदोह का मारा अभी चाहूँ तो मैं रख दूँ इसे तलवों से मसल कर अभी मुँह 
देखते रह जाओ कि हैं उन को हुआ क्या कि इन्हों ने मिरा दिल ले के मिरे हाथ से खोया

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use kyun hum ne diya dil jo hai be-mehri mein kaamil jise aadat hai jafa ki
jise chidh mehr-o-wafa ki jise aata nahin aana gham-o-hasrat ka mitana jo sitam mein hai yagana

jise kahta hai zamana but-e-be-mahr-o-dagha-baz jafa-pesha fusun-saz sitam-khana-bar-andaz
ghazab jis ka har ek naz nazar fitna mizha tir bala zulf-e-girah-gir gham-o-ranj ka bani qalaq-o-dard

ka mujib sitam-o-jaur ka ustad jafa-kari mein mahir jo sitam-kesh-o-sitam-gar jo sitam-pesha hai
dilbar jise aati nahin ulfat jo samajhta nahin chahat jo tasalli ko na samjhe jo tashaffi ko na

jaane jo kare qaul na pura kare har kaam adhura yahi din-raat tasawwur hai ki nahaq
use chaha jo na aae na bulae na kabhi pas bithae na rukh-e-saf dikhae na koi

baat sunae na lagi dil ki bujhae na kali dil ki khilae na gham-o-ranj ghatae na rah-o-rasm
badhae jo kaho kuchh to khafa ho kahe shikwe ki zarurat jo yahi hai to na chaho jo na

chahoge to kya hai na nibahoge to kya hai bahut itrao na dil de ke ye kis kaam ka dil
hai gham-o-andoh ka mara abhi chahun to main rakh dun ise talwon se masal kar abhi munh

dekhte rah jao ki hain un ko hua kya ki inhon ne mera dil le ke mere hath se khoya
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Maqrooz Ke Bigray Huye Halaat Ki Maanind..

मक़रूज़ के बिगड़े हुए ख़यालात की मानिंद
मज़बूर के होठों के सवालात की मानिंद

दिल का तेरी चाहत में अजब हाल हुआ है
सैलाब से बर्बाद मकानात की मानिंद

मैं उस में भटकते हुए जुगनू की तरह हूँ
उस शख्स की आँख हैं किसी रात की मानिंद

दिल रोज़ सजाता हूँ मैं दुल्हन की तरह से
ग़म रोज़ चले आते हैं बारात की मानिंद

अब ये भी नहीं याद के क्या नाम था उसका
जिस शख्स को माँगा था मुनाजात की मानिंद

किस दर्जा मुकद्दस है तेरे क़ुर्ब की ख्वाहिश
मासूम से बच्चे के ख़यालात की मानिंद

उस शख्स से मेरा मिलना मुमकिन ही नहीं था
मैं प्यास का सेहरा हूँ वो बरसात की मानिंद

समझाओ 'मोहसिन' उसको के अब तो रहम करे
ग़म बाँटता फिरता है वो सौगात की मानिंद

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Maqrooz Ke Bigray Huye Halaat Ki Maanind
Majboor Ke Honton Pe Sawaalaat Ki Maanind

Dil Ka Teri Chaahat Mein Ajab Haal Hua Hai
Sailaab Se Barbaad Makaanaat Ki Maanind

Mein Un Mein Bhatkay Howay Jugnu Ki Tarah Hun
Usss Shakhs Ki Aankhain Hain Kisi Raat Ki Maanind

Dil Roz Sajaata Hun Mein Dulhan Ki Tarah
Gham Roz Chalay Aatay Hain Baaraat Ki Maanind

Ab Ye Bhi Nahi Yaad Ke Kya Naam Tha Os Ka
Jis Shakhs Ko Maanga Tha Manaajaat Ki Maanind

Kis Darja Muqaddas Hai Tere Qurb Ki Khwaahish
Maasoom Se Bachay Ke Khayaalaat Ki Maanind

Uss Shakhs Se Mera Milna Mumkin Hi Nahi
Mein Pyaas Ka Sehra Hun Wo Barsaat Ki Maanind

Samjhao Mohsin Us Ko Ke Ab Reham Kare
Dukh Baant’ta Phirta Hai Woh Soghaat Ki Maanind
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zindagii se yahii gilaa hai mujhe..

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

दिल धड़कता नहीं टपकता है
कल जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे

हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे

कोहकन हो कि क़ैस हो कि 'फ़राज़'
सब में इक शख़्स ही मिला है मुझे

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Zindagii se yahii gilaa hai mujhe
Tu bahut der se milaa hai mujhe

Hamasafr chaahiye hujoom nahiin
Ek musaafir bhii kaafilaa hai mujhe

Tu mohabbat se koii chaal to chal
Haar jaane kaa hausalaa hai mujhe

Lab kushaan hoon to is yakiin ke saath
Katl hone kaa hausalaa hai mujhe

Dil dhaDakataa nahiin sulagataa hai
Vo jo khvaahish thii, aabalaa hai mujhe

Kaun jaane ki chaahato men fraaj
Kyaa ganvaayaa hai kyaa milaa hai mujhe
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jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe..

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे
जब अपनी अपनी मोहब्बतों के अज़ाब झेले तो लोग समझे

वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया था
उन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल न उतरे तो लोग समझे

उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़ल्सफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे

वो ख़्वाब थे ही चम्बेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बैअत
फिर इक चम्बेली की ओट में से जो साँप निकले तो लोग समझे

वो गाँव का इक ज़ईफ़ दहक़ाँ सड़क के बनने पे क्यूँ ख़फ़ा था
जब उन के बच्चे जो शहर जाकर कभी न लौटे तो लोग समझे

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jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe
jab apni apni mohabbaton ke azaab jhele to log samjhe

vo jin darakhton ki chhanv men se musafiron ko utha diya tha
unhin darakhton pe agle mausam jo phal na utre to log samjhe

us ek kachchi si umr vaali ke falsafe ko koi na samjha
jab us ke kamre se laash nikli khutut nikle to log samjhe

vo khvab the hi chambeliyon se so sab ne hakim ki kar li baiat
phir ik chambeli ki ot men se jo saanp nikle to log samjhe

vo gaanv ka ik zaiif dahqan sadak ke banne pe kyuun khafa tha
jab un ke bachche jo shahr jakar kabhi na laute to log samjhe
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samne us ke kabhi us ki sataish nahin ki..

सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की
दिल ने चाहा भी अगर होंटों ने जुम्बिश नहीं की

अहल-ए-महफ़िल पे कब अहवाल खुला है अपना
मैं भी ख़ामोश रहा उस ने भी पुर्सिश नहीं की

जिस क़दर उस से तअल्लुक़ था चला जाता है
उस का क्या रंज हो जिस की कभी ख़्वाहिश नहीं की

ये भी क्या कम है कि दोनों का भरम क़ाएम है
उस ने बख़्शिश नहीं की हम ने गुज़ारिश नहीं की

इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा
उस पे महफ़िल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की

हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की

ऐ मिरे अब्र-ए-करम देख ये वीराना-ए-जाँ
क्या किसी दश्त पे तू ने कभी बारिश नहीं की

कट मरे अपने क़बीले की हिफ़ाज़त के लिए
मक़्तल-ए-शहर में ठहरे रहे जुम्बिश नहीं की

वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है 'फ़राज़'
हम ने भी मेल-मुलाक़ात की कोशिश नहीं की

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samne us ke kabhi us ki sataish nahin ki
dil ne chaha bhi agar honTon ne jumbish nahin ki

ahl-e-mahfil pe kab ahwal khula hai apna
main bhi KHamosh raha us ne bhi pursish nahin ki

jis qadar us se talluq tha chala jata hai
us ka kya ranj ho jis ki kabhi KHwahish nahin ki

ye bhi kya kam hai ki donon ka bharam qaem hai
us ne baKHshish nahin ki hum ne guzarish nahin ki

ek to hum ko adab aadab ne pyasa rakkha
us pe mahfil mein surahi ne bhi gardish nahin ki

hum ki dukh oDh ke KHalwat mein paDe rahte hain
hum ne bazar mein zaKHmon ki numaish nahin ki

ai mere abr-e-karam dekh ye virana-e-jaan
kya kisi dasht pe tu ne kabhi barish nahin ki

kaT mare apne qabile ki hifazat ke liye
maqtal-e-shahr mein Thahre rahe jumbish nahin ki

wo hamein bhul gaya ho to ajab kya hai 'faraaz'
hum ne bhi mel-mulaqat ki koshish nahin ki
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safar me dhoop to hogi..

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
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ab ke tajdid-e-wafa ka nahin imkan jaanan..

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ
याद क्या तुझ को दिलाएँ तिरा पैमाँ जानाँ

यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ

ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तिरा एहसाँ जानाँ

दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ

अव्वल अव्वल की मोहब्बत के नशे याद तो कर
बे-पिए भी तिरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ

आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं
रग-ए-मीना सुलग उट्ठी कि रग-ए-जाँ जानाँ

मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उमीद
दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ

हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रक्खा था
ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ

अब के कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ
सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गरेबाँ जानाँ

हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है
हर कोई अपने ही साए से हिरासाँ जानाँ

जिस को देखो वही ज़ंजीर-ब-पा लगता है
शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िंदाँ जानाँ

अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए
और से और हुए दर्द के उनवाँ जानाँ

हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे
हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ

होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा रेज़ा
जैसे उड़ते हुए औराक़-ए-परेशाँ जानाँ

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ab ke tajdid-e-wafa ka nahin imkan jaanan
yaad kya tujh ko dilaen tera paiman jaanan

yunhi mausam ki ada dekh ke yaad aaya hai
kis qadar jald badal jate hain insan jaanan

zindagi teri ata thi so tere nam ki hai
hum ne jaise bhi basar ki tera ehsan jaanan

dil ye kahta hai ki shayad hai fasurda tu bhi
dil ki kya baat karen dil to hai nadan jaanan

awwal awwal ki mohabbat ke nashe yaad to kar
be-piye bhi tera chehra tha gulistan jaanan

aaKHir aaKHir to ye aalam hai ki ab hosh nahin
rag-e-mina sulag utthi ki rag-e-jaan jaanan

muddaton se yahi aalam na tawaqqo na umid
dil pukare hi chala jata hai jaanan jaanan

hum bhi kya sada the hum ne bhi samajh rakkha tha
gham-e-dauran se juda hai gham-e-jaanan jaanan

ab ke kuchh aisi saji mahfil-e-yaran jaanan
sar-ba-zanu hai koi sar-ba-gareban jaanan

har koi apni hi aawaz se kanp uThta hai
har koi apne hi sae se hirasan jaanan

jis ko dekho wahi zanjir-ba-pa lagta hai
shahr ka shahr hua dakhil-e-zindan jaanan

ab tera zikr bhi shayad hi ghazal mein aae
aur se aur hue dard ke unwan jaanan

hum ki ruthi hui rut ko bhi mana lete the
hum ne dekha hi na tha mausam-e-hijran jaanan

hosh aaya to sabhi KHwab the reza reza
jaise uDte hue auraq-e-pareshan jaanan

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khizan ki rut men gulab lahja bana ke rakhna kamal ye hai..

ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है 

ज़रा सी लग़्ज़िश पे तोड़ देते हैं सब तअ'ल्लुक़ ज़माने वाले
सो ऐसे वैसों से भी तअ'ल्लुक़ बना के रखना कमाल ये है 

किसी को देना ये मशवरा कि वो दुख बिछड़ने का भूल जाए
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू छुपा के रखना कमाल ये है 

ख़याल अपना मिज़ाज अपना पसंद अपनी कमाल क्या है
जो यार चाहे वो हाल अपना बना के रखना कमाल ये है 

किसी की रह से ख़ुदा की ख़ातिर उठा के काँटे हटा के पत्थर
फिर उस के आगे निगाह अपनी झुका के रखना कमाल ये है 

वो जिस को देखे तो दुख का लश्कर भी लड़खड़ाए शिकस्त खाए
लबों पे अपने वो मुस्कुराहट सजा के रखना कमाल ये है 

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khizan ki rut men gulab lahja bana ke rakhna kamal ye hai
hava ki zad pe diya jalana jala ke rakhna kamal ye hai 

zara si laghzish pe tod dete hain sab ta.alluq zamane vaale
so aise vaison se bhi ta.alluq bana ke rakhna kamal ye hai 

kisi ko dena ye mashvara ki vo dukh bichhadne ka bhuul jaa.e
aur aise lamhe men apne aansu chhupa ke rakhna kamal ye hai 

khayal apna mizaj apna pasand apni kamal kya hai
jo yaar chahe vo haal apna bana ke rakhna kamal ye hai 

kisi ki rah se khuda ki khatir uTha ke kanTe haTa ke patthar
phir us ke aage nigah apni jhuka ke rakhna kamal ye hai 

vo jis ko dekhe to dukh ka lashkar bhi ladkhada.e shikast khaa.e
labon pe apne vo muskurahaT saja ke rakhna kamal ye hai
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isi nadamat se uss ke kandhe jhuke huye hain..

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं
कि हम छड़ी का सहारा लेकर खड़े हुए हैं

यहाँ से जाने की जल्दी किस को है तुम बताओ
कि सूटकेसों में कपड़े किस ने रखे हुए हैं

करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं

वो ख़ुद परिंदों का दाना लेने गया हुआ है
और उस के बेटे शिकार करने गए हुए हैं

तुम्हारे दिल में खुली दुकानों से लग रहा है
ये घर यहाँ पर बहुत पुराने बने हुए हैं

मैं कैसे बावर कराऊँ जाकर ये रौशनी को
कि इन चराग़ों पे मेरे पैसे लगे हुए हैं

तुम्हारी दुनिया में कितना मुश्किल है बच के चलना
क़दम क़दम पर तो आस्ताने बने हुए हैं

तुम इन को चाहो तो छोड़ सकते हो रास्ते में
ये लोग वैसे भी ज़िंदगी से कटे हुए हैं

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isi nadamat se us ke kandhe jhuke hue hain
ki ham chhaDi ka sahara le kar khaDe hue hain 

yahan se jaane ki jaldi kis ko hai tum batao
ki suitcason men kapDe kis ne rakhe hue hain 

kara to lunga ilaqa khali main laD-jhagaD kar
magar jo us ne dilon pe qabze kiye hue hain 

vo khud parindon ka daana lene gaya hua hai
aur us ke beTe shikar karne ga.e hue hain 

tumhare dil men khuli dukanon se lag raha hai
ye ghar yahan par bahut purane bane hue hain 

main kaise bavar kara.un ja kar ye raushni ko
ki in charaghon pe mere paise lage hue hain 

tumhari duniya men kitna mushkil hai bach ke chalna
qadam qadam par to astane bane hue hain 

tum in ko chaho to chhoD sakte ho raste men
ye log vaise bhi zindagi se kaTe hue hain
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Us ke dushman hai bahut acha aadmi hoga..

उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा

प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा

मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की
उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

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us ke dushman hain bahut aadmi achchha hoga
vo bhi meri hi tarah shahr men tanha hoga 

itna sach bol ki honTon ka tabassum na bujhe
raushni khatm na kar aage andhera hoga 

pyaas jis nahr se Takra.i vo banjar nikli
jis ko pichhe kahin chhoD aa.e vo dariya hoga 

mire baare men koi raa.e to hogi us ki
us ne mujh ko bhi kabhi toD ke dekha hoga 

ek mahfil men ka.i mahfilen hoti hain sharik
jis ko bhi paas se dekhoge akela hoga
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so rahenge ki jagte rahenge..

सो रहेंगे के जागते रहेंगे
हम तेरे ख्वाब देखते रहेंगे

तू कही और ही ढूंढता रहेंगा
हम कही और ही खिले रहेंगे

राहगीरों ने राह बदलनी है
पेड़ अपनी जगह खड़े रहेंगे

सभी मौसम है दस्तरस में तेरी
तूने चाहा तो हम हरे रहेंगे

लौटना कब है तूने पर तुझको
आदतन ही पुकारते रहेंगे

तुझको पाने में मसअला ये है
तुझको खोने के वस्वसे रहेंगे

तू इधर देख मुझसे बाते कर
यार चश्मे तो फूटते रहेंगे

एक मुद्दत हुई है तुझसे मिले
तू तो कहता था राब्ते रहेंगे

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so rahenge ki jagte rahenge
ham tire khvab dekhte rahenge 

tu kahin aur DhunDhta rahega
ham kahin aur hi khile rahenge 

rahgiron ne rah badalni hai
peD apni jagah khaDe rahe hain 

barf pighlegi aur pahaDon men 
salha-sal raste rahenge 

sabhi mausam hain dastaras men tiri 
tu ne chaha to ham hare rahenge 

lauTna kab hai tu ne par tujh ko 
adatan hi pukarte rahenge 

tujh ko paane men mas.ala ye hai 
tujh ko khone ke vasvase rahenge 

tu idhar dekh mujh se baten kar 
yaar chashme to phuTte rahenge
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yeh gham kya dil ki aadat hai nahin toh..

ये ग़म क्या दिल की आदत है? नही तो,
किसी से कुछ शिकायत है? नही तो
है वो एक ख्वाब-ए-बे-ताबीर,
उसे भूला देने की नीयत है? नही तो
किसी के बिन , किसी की याद के बिन,
जिये जाने की हिम्मत है? नही तो
किसी सूरत भी दिल लगता नही? हां,
तो कुछ दिन से ये हालात है? नही तो
तुझे जिसने कही का भी नही रखा,
वो एक जाति सी वहशत है? नही तो
तेरे इस हाल पर है सब को हैरत,      
तुझे भी इस पे हैरत है? नही तो
हम-आहंगी नही दुनिया से तेरी,
तुझे इस पर नदामत है? नही तो
वो दरवेशी जो तज कर आ गया…..तू
यह दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो
हुआ जो कुछ यही मक़सूम था क्या?
यही सारी हिकायत है? नही तो
अज़ीयत-नाक उम्मीदों से तुझको,
अमन पाने की हसरत है? नही तो
तू रहता है ख्याल-ओ-ख्वाब में गम,
तो इस वजह से फुरसत है? नही तो
वहां वालों से है इतनी मोहोब्बत,
यहां वालों से नफरत है? नही तो
सबब जो इस जुदाई का बना है,
वो मुझसे खुबसूरत है? नही तो

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Yeh gham kya dil ki aadat hai? nahin to 
Kisi se kuch shikaayat hai? nahin to
Hai woh ek khwaab-e-be-taabeer isko
Bhula dene ki neeyat hai? nahin to
Kisi ke bin, kisi ki yaad ke bin 
Jiye jaane ki himmat hai? nahin to 
Kisi soorat bhi dil lagta nahin? haan
To kuch din se yeh haalat hai? nahin to 
Tujhe jisne kahin ka bhi na rakha
Woh ek zaati si wehshat hai? nahin to
Tere is haal par hai sab ko hairat Tujhe bhi is pe hairat hai? nahin to
Hum-aahangi nahin duniya se teri 
Tujhe is par nadaamat hai? nahin to
Wo darweshi jo taz kar aa gya….tu
Yah daulat uski keemat hai? nahin to
Hua jo kuch yehi maqsoom tha kya?  Yahi saari hikaayat hai? nahin to
Azeeyat-naak ummeedon se tujhko
Aman paane ki hasrat hai? nahin to
Tu rehta hai khayaal-o-khwaab mein gum 
To is wajah se fursat hai? nahin to
Wahan waalon se hai itni mohabbat
Yahaan waalon se nafrat hai? nahin to 
Sabab jo is judaai ka bana hai 
Wo mujh se khubsoorat hai? nahin to.
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Na hareef-e-jaan na shareek-e-gam shab-e-intizaar koi to ho..

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो
किसे बज़्म-ए-शौक़ में लाएँ हम दिल-ए-बे-क़रार कोई तो हो

किसे ज़िंदगी है अज़ीज़ अब किसे आरज़ू-ए-शब-ए-तरब
मगर ऐ निगार-ए-वफ़ा तलब तिरा ए'तिबार कोई तो हो

कहीं तार-ए-दामन-ए-गुल मिले तो ये मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ल-ए-बहार का सर-ए-शाख़-सार कोई तो हो

ये उदास उदास से बाम ओ दर ये उजाड़ उजाड़ सी रह-गुज़र
चलो हम नहीं न सही मगर सर-ए-कू-ए-यार कोई तो हो

ये सुकून-ए-जाँ की घड़ी ढले तो चराग़-ए-दिल ही न बुझ चले
वो बला से हो ग़म-ए-इश्क़ या ग़म-ए-रोज़गार कोई तो हो

सर-ए-मक़्तल-ए-शब-ए-आरज़ू रहे कुछ तो इश्क़ की आबरू
जो नहीं अदू तो 'फ़राज़' तू कि नसीब-ए-दार कोई तो हो

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na harif-e-jan na sharik-e-gham shab-e-intizar koi to ho
kise bazm-e-shauq men laa.en ham dil-e-be-qarar koi to ho 

kise zindagi hai aziiz ab kise arzu-e-shab-e-tarab
magar ai nigar-e-vafa talab tira e'tibar koi to ho 

kahin tar-e-daman-e-gul mile to ye maan len ki chaman khile
ki nishan fasl-e-bahar ka sar-e-shakh-sar koi to ho 

ye udaas udaas se baam o dar ye ujaaD ujaaD si rah-guzar
chalo ham nahin na sahi magar sar-e-ku-e-yar koi to ho 

ye sukun-e-jan ki ghaDi Dhale to charagh-e-dil hi na bujh chale
vo bala se ho gham-e-ishq ya gham-e-rozgar koi to ho 

sar-e-maqtal-e-shab-e-arzu rahe kuchh to ishq ki aabru
jo nahin adu to 'faraz' tu ki nasib-e-dar koi to ho
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ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa..

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जां मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

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ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa
aa phir se mujhe chhod ke jaane ke liye aa

Pahale se maraasim na sahii phir bhi kabhi tou
rasm-o-rahe duniya hi nibhane ke liye aa

Kis kis ko batayenge judaai ka sabab ham
tu mujhse khafaa hai tou zamaane ke liye aa

kuch tou mere pindaar-e-mohabbat ka bharam rakh
tu bhi to kabhi mujh ko manaane ke liye aa

ek umr se hoon lazzat-e-giriyaa se bhi maharuum
aye raahat-e-jaan mujh ko rulaane ke liye aa

ab tak dil-e-khushfeham ko tujh se hain ummiden
ye aakharii shammen bhi bujhaane ke liye aa
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hai ajib shahr ki zindagi..

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है 

यूँही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख-रखाव की गुफ़्तुगू
ये शराफ़तें नहीं बे-ग़रज़ इसे आप से कोई काम है

कहाँ अब दुआओं की बरकतें वो नसीहतें वो हिदायतें 
ये मुतालबों का ख़ुलूस है ये ज़रूरतों का सलाम है 

वो दिलों में आग लगाएगा मैं दिलों की आग बुझाऊंगा 
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है

न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर 
कई साल बा'द मिले हैं हम तिरे नाम आज की शाम है 

कोई नग़्मा धूप के गाँव सा कोई नग़्मा शाम की छाँव सा 
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है.

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hai ajib shahr ki zindagi na safar raha na qayam hai
kahin karobar si dopahr kahin bad-mizaj si sham hai

yunhi roz milne ki aarzu baDi rakh-rakhaw ki guftugu
ye sharafaten nahin be-gharaz ise aap se koi kaam hai

kahan ab duaon ki barkaten wo nasihaten wo hidayaten
ye mutalbon ka KHulus hai ye zaruraton ka salam hai

wo dilon mein aag lagaega main dilon ki aag bujhaunga
use apne kaam se kaam hai mujhe apne kaam se kaam hai

na udas ho na malal kar kisi baat ka na KHayal kar
kai sal baad mile hain hum tere nam aaj ki sham hai

koi naghma dhup ke ganw sa koi naghma sham ki chhanw sa
zara in parindon se puchhna ye kalam kis ka kalam hai
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naya ek rishta paida kyun karen hum..

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम 
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम 

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी 
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम 

ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं 
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम 

वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत 
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम 

सुना दें इस्मत-ए-मरियम का क़िस्सा 
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम 

ज़ुलेख़ा-ए-अज़ीज़ाँ बात ये है 
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम 

हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम 
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम 

किया था अह्द जब लम्हों में हम ने 
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम 

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें 
फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम 

जो इक नस्ल-ए-फ़रोमाया को पहुँचे 
वो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम 

नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी 
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम 

बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्या 
भला अंधों से पर्दा क्यों करें हम 

हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी 
सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम 

चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचा 
तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम 

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें 
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम 

ये बस्ती है मुसलमानों की बस्ती 
यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम 

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naya ik rishta paida kyuun karen ham 
bichhadna hai to jhagda kyuun karen ham 

khamoshi se ada ho rasm-e-duri 
koi hangama barpa kyuun karen ham 

ye kaafi hai ki ham dushman nahin hain 
vafa-dari ka da.ava kyuun karen ham 

vafa ikhlas qurbani mohabbat 
ab in lafzon ka pichha kyuun karen ham 

suna den ismat-e-mariyam ka qissa 
par ab is baab ko va kyon karen ham 

zulekha-e-azizan baat ye hai 
bhala ghaTe ka sauda kyon karen ham 

hamari hi tamanna kyuun karo tum 
tumhari hi tamanna kyuun karen ham 

kiya tha ahd jab lamhon men ham ne 
to saari umr iifa kyuun karen ham 

uTha kar kyon na phenken saari chizen 
faqat kamron men Tahla kyon karen ham 

jo ik nasl-e-faromaya ko pahunche 
vo sarmaya ikaTTha kyon karen ham 

nahin duniya ko jab parva hamari 
to phir duniya ki parva kyuun karen ham 

barahna hain sar-e-bazar to kya 
bhala andhon se parda kyon karen ham 

hain bashinde usi basti ke ham bhi 
so khud par bhi bharosa kyon karen ham 

chaba len kyon na khud hi apna dhancha 
tumhen ratib muhayya kyon karen ham 

padi rahne do insanon ki lashen 
zamin ka bojh halka kyon karen ham 

ye basti hai musalmanon ki basti 
yahan kar-e-masiha kyuun karen ham..
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