romantic-ghazals

Jab se usne kheecha hai khidki ka parda ek taraf..

जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़
उसका कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़

मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बाँटा है
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़

एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता रफ़्ता एक तरफ़

यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन
तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़

उसकी आँखों ने मुझसे मेरी ख़ुद्दारी छीनी वरना
पाँव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़

मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने सहरा एक तरफ़ रक्खा और दरिया एक तरफ़
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Barso purana dost Mila jaise gair ho..

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो
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us ke nazdik gham-e-tark-e-wafa kuch bhi nahin..

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं
मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं

अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं

चार दिन रह गए मेले में मगर अब के भी
उस ने आने के लिए ख़त में लिखा कुछ भी नहीं

कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाँध
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं

मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बने
तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं

ऐ 'शुमार' आँखें इसी तरह बिछाए रखना
जाने किस वक़्त वो आ जाए पता कुछ भी नहीं

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us ke nazdik gham-e-tark-e-vafa kuchh bhi nahin
mutma.in aisa hai vo jaise hua kuchh bhi nahin

ab to hathon se lakiren bhi miTi jaati hain
us ko kho kar to mire paas raha kuchh bhi nahin

chaar din rah ga.e mele men magar ab ke bhi
us ne aane ke liye ḳhat men likha kuchh bhi nahin

kal bichhaḌna hai to phir ahd-e-vafa soch ke bandh
abhi aghaz-e-mohabbat hai gaya kuchh bhi nahin

main to is vaste chup huun ki tamasha na bane
tu samajhta hai mujhe tujh se gila kuchh bhi nahin

ai ‘shumar’ ankhen isi tarah bichha.e rakhna
jaane kis vaqt vo aa jaa.e pata kuchh bhi nahin
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tum apna ranj-o-ghum apni pareshaani mujhe de do..

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो

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tum apanaa ra.nj-o-Gam, apani pareshaan mujhe de do 
tumhe.n gham kii qasam, is dil kI virAni mujhe de do

ye maanaa mai.n kisii qaabil nahii.n huu.N in nigaaho.n me.n
buraa kyaa hai agar, ye dukh ye hairaani mujhe de do

mai.n dekhuu.n to sahii, duniyaa tumhe.n kaise sataati hai 
koi din ke liye, apni nigahabaani mujhe de do

vo dil jo maine maa.ngaa thaa magar gairo.n ne paayaa
ba.Dk shai hai agar, usaki pashemaani mujhe de do
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phone to dur waha khat bhi nahi pahuchenge..

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे

ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर
आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे

मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा
और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे

हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे

तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने
ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे

सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा
हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे
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sitaron se aage jahan aur bhi hain..

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं

क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी आशियाँ और भी हैं

अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं

तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं

गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं

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sitaron se aage jahan aur bhi hain 
abhi ishq ke imtihan aur bhi hain 

tahi zindagi se nahin ye faza.en 
yahan saikDon karvan aur bhi hain 

qana.at na kar alam-e-rang-o-bu par 
chaman aur bhi ashiyan aur bhi hain 

agar kho gaya ik nasheman to kya gham 
maqamat-e-ah-o-fughan aur bhi hain 

tu shahin hai parvaz hai kaam tera 
tire samne asman aur bhi hain 

isi roz o shab men ulajh kar na rah ja 
ki tere zaman o makan aur bhi hain 

ga.e din ki tanha tha main anjuman men 
yahan ab mire raz-dan aur bhi hain
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Bulati hai magar jane ka nai..

बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं

वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं

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Bulati Hai Magar Jaane Ka Nai
Ye Duniya Hai Idhar Jaane Ka Nai

Mere Bete Kisi Se Ishq Kar
Magar Had Se Gujar Jaane Ka Nai

Sitare Noch Kar Le Jaaunga
Mein Khali Haath Ghar Jaane Waala Nai

Waba Faili Hui Hai Har Taraf
Abhi Maahaul Mar Jaane Ka Nai

Wo Gardan Naapta Hai, Naap Le
Magar Zaalim Se Dar Jaane Ka Nai
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hamesha der kar deta hoon main..

हमेशा देर कर देता हूं मैं 
ज़रूरी बात कहनी हो 
कोई वादा निभाना हो 
उसे आवाज़ देनी हो 
उसे वापस बुलाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं
 
मदद करनी हो उसकी 
यार का ढांढस बंधाना हो 
बहुत देरीना रास्तों पर 
किसी से मिलने जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

बदलते मौसमों की सैर में 
दिल को लगाना हो 
किसी को याद रखना हो 
किसी को भूल जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

किसी को मौत से पहले 
किसी ग़म से बचाना हो 
हक़ीक़त और थी कुछ 
उस को जा के ये बताना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

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Hamesha der kar deta hoon main
Jaruri baat kahni ho
Koi waada nibhana ho
Use awaaz deni ho
Use waapas bulana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main

Madat karni ho uski
Yaar ki dhadas bandhna ho
Bahot deri na rashto par
Kisi se milne jaana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main

Badalte maushmo ki sair mein
Dil ko lagana ho
Kisi ko yaad rakhna ho,
Kisi ko bhool jaana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main

Kisi ko maut se pahle
Kisi gham se bachana ho
Haqeeqat aur thi kuch
Usko jaake ye batana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main
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aur faraz chāhiyen kitni mohabbaten tujhe..

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया

आमद-ए-दोस्त की नवेद कू-ए-वफ़ा में आम थी
मैं ने भी इक चराग़ सा दिल सर-ए-शाम रख दिया

शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया

उस ने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे
मैं ने तो उस के पाँव में सारा कलाम रख दिया

देखो ये मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैं
मैं ने तो सब हिसाब-ए-जाँ बर-सर-ए-आम रख दिया

अब के बहार ने भी कीं ऐसी शरारतें कि बस
कब्क-ए-दरी की चाल में तेरा ख़िराम रख दिया

जो भी मिला उसी का दिल हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार था
उस ने तो सारे शहर को कर के ग़ुलाम रख दिया

और 'फ़राज़' चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया

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us ne sukut-e-shab men bhi apna payam rakh diya
hijr ki raat baam par mah-e-tamam rakh diya

amad-e-dost ki naved ku-e-vafa men aam thi
main ne bhi ik charaġh sa dil sar-e-sham rakh diya 

shiddat-e-tishnagi men bhi ġhairat-e-mai-kashi rahi
us ne jo pher li nazar main ne bhi jaam rakh diya 

us ne nazar nazar men hi aise bhale suḳhan kahe
main ne to us ke paanv men saara kalam rakh diya 

dekho ye mere ḳhvab the dekho ye mere zaḳhm hain
main ne to sab hisab-e-jan bar-sar-e-am rakh diya 

ab ke bahar ne bhi kiin aisi shararten ki bas
kabk-e-dari ki chaal men tera ḳhiram rakh diya 

jo bhi mila usi ka dil halqa-ba-gosh-e-yar tha
us ne to saare shahr ko kar ke ġhulam rakh diya 

aur 'faraz' chahiyen kitni mohabbaten tujhe
maaon ne tere naam par bachchon ka naam rakh diya 
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Bajae koi shahnai mujhe achchha nahin lagta..

बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता
मोहब्बत का तमाशाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो जब बिछड़े थे हम तो याद है गर्मी की छुट्टीयाँ थीं
तभी से माह जुलाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो शरमाती है इतना कि हमेशा उस की बातों का
क़रीबन एक चौथाई मुझे अच्छा नहीं लगता

न-जाने इतनी कड़वाहट कहाँ से आ गई मुझ में
करे जो मेरी अच्छाई मुझे अच्छा नहीं लगता

मिरे दुश्मन को इतनी फ़ौक़ियत तो है बहर-सूरत
कि तू है उस की हम-साई मुझे अच्छा नहीं लगता

न इतनी दाद दो जिस में मिरी आवाज़ दब जाए
करे जो यूँ पज़ीराई मुझे अच्छा नहीं लगता

तिरी ख़ातिर नज़र-अंदाज़ करता हूँ उसे वर्ना
वो जो है ना तिरा भाई मुझे अच्छा नहीं लगता

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baja.e koi shahna.i mujhe achchha nahin lagta
mohabbat ka tamasha.i mujhe achchha nahin lagta 

vo jab bichhDe the ham to yaad hai garmi ki chhuTTiyan thiin
tabhi se maah july mujhe achchha nahin lagta 

vo sharmati hai itna ki hamesha us ki baton ka
qariban ek chautha.i mujhe achchha nahin lagta 

na-jane itni kaDvahaT kahan se aa ga.i mujh men 
kare jo meri achchha.i mujhe achchha nahin lagta 

mire dushman ko itni fauqiyat to hai bahar-surat
ki tu hai us ki ham-sa.i mujhe achchha nahin lagta 

na itni daad do jis men miri avaz dab jaa.e
kare jo yuun pazira.i mujhe achchha nahin lagta 

tiri khatir nazar-andaz karta huun use varna
vo jo hai na tira bhaa.i mujhe achchha nahin lagta
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maine ye kab kaha ki wo mujhe kabhi akela nahi chhodta..

मैंने ये कब कहा की वो मुझे अकेला नही छोड़ता
छोड़ता है मगर एक दिन से ज्यादा नहीं छोड़ता

कौन शहराओ की प्यास है इन मकानो की बुनियाद मे
बारिश से बच भी जाये तो दरिया नहीं छोड़ता

मैं जिस से छुप कर तुमसे मिला हूँ अगर आज वो
देख लेता तो शायद वो दोनों को ज़िंदा नहीं छोड़ता

तय-शुदा वक़्त पर पहुँच जाता है वो प्यार करने वसूल
जिस तरह अपना कर्जा कोई बनिया नहीं छोडता

आज पहली दफा उसे मिलना है और एक खदशा भी है
वो जिसे छोड़ देता है उसे कही का नहीं छोड़ता


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maine ye kab kaha ki wo mujhe kabhi akela nahi chhodta
chhodta hai magar ek din se jyada nahi chhodta

kaun shehrao ki pyaas hai in makano ki buniyad me
barish se bach bhi jaye to dariya nahi chhodta

mai jis se chhup kar tumse mila hoo agar aaj wo
dekh leta to shayad wo dono ko jinda nahi chhodta

tay-shuda wqt pr pahunch jata hai wo pyaar krne wasool
jis tar aona karza koi baniya nahi chhodta

aaj pehli dafa use milna haui aur ek khadsa bhi hai
wo jise chhod deta hai use kahi ka nhi chhodta.
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Khaak hi khaak thi aur khaak bhi kya kuch nahin tha..

ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।

क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।

ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था।

अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था।

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Khaak hi khaak thi aur khaak bhi kya kuch nahin tha
Mai jab aaya to mere ghar ki jagah kuch nahin tha

Kya karoon tujhse khayanat nahin kar sakta main
Warna us aankh mein mere liye kya kuch nahin tha

Ye bhi sach hai mujhe kabhi usne kuch na kaha
Ye bhi sach hai ki us aurat se chhupa kuch nahin tha

Ab wo mere hi kisi dost ki mankooha hai
Main palat jaata magar peechhe bacha kuch nahin tha.
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Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge..

कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे 

शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे 

वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे 

उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे 

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे 

मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे 

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Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge
Jane kaise log wo honge jo us ko bhaate honge

Us ki yaad ki baad-e-saba mein aur to kya hota hoga
Yoon hi mere baal hain bikhre aur bikhar jaate honge

Wo jo na aane wala hai na us se humko matlab tha
Aane walon se kya matlab aate hain aate honge

Yaaron kuchh to haal sunao us ki qayamat baahon ka
Wo jo simat-te honge un mein wo to mar jate honge

Band rahe jin ka darwaaza aise gharon ki mat poochho
Deeware gir jaati hongi aangan reh jaate honge

Meri saans ukhadte hi sab bain karenge ro’enge
Yaani mere baad bhi yaani saans liye jaate honge
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ye jo nang the ye jo nam the mujhe kha gae..

ये जो नंग थे ये जो नाम थे मुझे खा गए
ये ख़याल-ए-पुख़्ता जो ख़ाम थे मुझे खा गए

कभी अपनी आँख से ज़िंदगी पे नज़र न की
वही ज़ाविए कि जो आम थे मुझे खा गए

मैं अमीक़ था कि पला हुआ था सुकूत में
ये जो लोग महव-ए-कलाम थे मुझे खा गए

वो जो मुझ में एक इकाई थी वो न जुड़ सकी
यही रेज़ा रेज़ा जो काम थे मुझे खा गए

ये अयाँ जो आब-ए-हयात है इसे क्या करूँ
कि निहाँ जो ज़हर के जाम थे मुझे खा गए

वो नगीं जो ख़ातिम-ए-ज़िंदगी से फिसल गया
तो वही जो मेरे ग़ुलाम थे मुझे खा गए

मैं वो शो'ला था जिसे दाम से तो ज़रर न था
प जो वसवसे तह-ए-दाम थे मुझे खा गए

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ye jo nang the ye jo nam the mujhe kha gae
ye KHayal-e-puKHta jo KHam the mujhe kha gae

kabhi apni aankh se zindagi pe nazar na ki
wahi zawiye ki jo aam the mujhe kha gae

main amiq tha ki pala hua tha sukut mein
ye jo log mahw-e-kalam the mujhe kha gae

wo jo mujh mein ek ikai thi wo na juD saki
yahi reza reza jo kaam the mujhe kha gae

ye ayan jo aab-e-hayat hai ise kya karun
ki nihan jo zahr ke jam the mujhe kha gae

wo nagin jo KHatim-e-zindagi se phisal gaya
to wahi jo mere ghulam the mujhe kha gae

main wo shoala tha jise dam se to zarar na tha
pa jo waswase tah-e-dam the mujhe kha gae

jo khuli khuli thin adawaten mujhe ras thin
ye jo zahr-e-KHanda-salam the mujhe kha gae
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ik pal men ik sadi ka maza ham se puchhiye..

इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए

हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए

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ik pal men ik sadi ka maza ham se puchhiye
do din ki zindagi ka maza ham se puchhiye

bhule hain rafta rafta unhen muddaton men ham
qiston men khud-kushi ka maza ham se puchhiye

aghaz-e-ashiqi ka maza aap janiye
anjam-e-ashiqi ka maza ham se puchhiye

jalte diyon men jalte gharon jaisi zau kahan
sarkar raushni ka maza ham se puchhiye

vo jaan hi gae ki hamen un se pyaar hai
ankhon ki mukhbiri ka maza ham se puchhiye

hansne ka shauq ham ko bhi tha aap ki tarah
hansiye magar hansi ka maza ham se puchhiye

ham tauba kar ke mar gae be-maut ai ‘khumar’
tauhin-e-mai-kashi ka maza ham se puchhiye
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Tumhe Jab Kabhi Mile Fursaten Mere Dil Say Boojh Utar Do..

तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो

मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो

किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो

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Tumhe Jab Kabhi Mile Fursaten, Mere Dil Say Boojh Utar Do
Main Bhut Dino Say Udaas Ho, Mujhe Koi Shaam Udhaar Do

Mujhe Apne Roop Ki Dhoop Do, Ke Chamak Sake Mere Khal-O-Khad
Mujhe Apne Rang Mein Rang Do, Mere Sare Zang Utar Do

Kesi Aur Ko Mere Haal Say Na Garz Hai Koi Na Wasta
Mian Bikhar Gya Ho Sameet Loo, Main Bigar Gya Ho Sanwar Do

Meri Wehshaton Ne Barha Dia Hai Judaiyo Ke Aazab Ne
Mere Dil Pa Hath Rakho Zara, Meri Dharkano Ko Qarar Do

Tumhe Subha Kesi Lagi?,Mere Khawahisho Ke Diyaar Ki
Jo Bhali Lagi Tw Yahi Raho, Esy Chahato Say Nikhaar Do

Wahan Ghar Mein Kon Hai Muntazir K Ho Fikar Deer Saweer Ki
Bari Mukhtasir Si Yeh Raat Hai, Esi Chandni Mein Guzaar Do

Koi Baat Karni Hai Chand Say Kesi Shaksaar Ki Uoot Mein
Muje Rasten Yehi Kahin Kesi Kunj-E-Gul Mein Utar Do
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faraz tujh ko na aayeen mohabbatein karni..

ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी
'फ़राज़' तुझ को न आईं मोहब्बतें करनी 

ये क़ुर्ब क्या है कि तू सामने है और हमें
शुमार अभी से जुदाई की साअ'तें करनी 

कोई ख़ुदा हो कि पत्थर जिसे भी हम चाहें
तमाम उम्र उसी की इबादतें करनी 

सब अपने अपने क़रीने से मुंतज़िर उस के
किसी को शुक्र किसी को शिकायतें करनी 

हम अपने दिल से ही मजबूर और लोगों को
ज़रा सी बात पे बरपा क़यामतें करनी 

मिलें जब उन से तो मुबहम सी गुफ़्तुगू करना
फिर अपने आप से सौ सौ वज़ाहतें करनी 

ये लोग कैसे मगर दुश्मनी निबाहते हैं
हमें तो रास न आईं मोहब्बतें करनी 

कभी 'फ़राज़' नए मौसमों में रो देना
कभी तलाश पुरानी रिफाक़तें करनी

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Yeh kya ke sab se bayaan dil kii haalatein karni
'faraz' tujh ko na aayeen mohabbatein karni

yeh qurb kya hai ke tu saamne hai aur hamein
shumaar abhi se Khudaai ke sa'atein karni

koi khuda ho ke patthar jise bhi ham
chaahein tamaam umr usi kii ibaadatein karni

sab apne apne qareene se muntazir us ke
kisi ko shukr kisi ko shikaayatein karni

ham apne dil se hi majboor aur logon ko
zaraa si baat pe barpaa qayaamatein karni

milen jab un se to mubham si guftagoo karna
phir apne aap se sau sau dafaa hmaqtein karni

yeh log kaise magar dushmani nibaahte hain
hamein to raas na aayen mohabbatein karni

kabhi "faraz" naye mausamon mein ro dena
kabhi talaash puraani rafaaqatein karni
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khamosh rah kar pukarti hai..

ख़मोश रह कर पुकारती है
वो आँख कितनी शरारती है 

है चाँदनी सा मिज़ाज उस का
समुंदरों को उभारती है 

मैं बादलों में घिरा जज़ीरा
वो मुझ में सावन गुज़ारती है 

कि जैसे मैं उस को चाहता हूँ
कुछ ऐसे ख़ुद को सँवारती है 

ख़फ़ा हो मुझ से तो अपने अंदर
वो बारिशों को उतारती है

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khamosh rah kar pukarti hai
vo aankh kitni shararti hai 

hai chandni sa mizaj us ka
samundaron ko ubharti hai 

main badalon men ghira jazira
vo mujh men savan guzarti hai 

ki jaise main us ko chahta huun
kuchh aise khud ko sanvarti hai 

khafa ho mujh se to apne andar
vo barishon ko utarti hai
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tujh ko kitnon ka lahu chahiye ai arz-e-watan..

तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
कितनी आहों से कलेजा तिरा ठंडा होगा
कितने आँसू तिरे सहराओं को गुलज़ार करें

तेरे ऐवानों में पुर्ज़े हुए पैमाँ कितने
कितने वादे जो न आसूदा-ए-इक़रार हुए
कितनी आँखों को नज़र खा गई बद-ख़्वाहों की
ख़्वाब कितने तिरी शह-राहों में संगसार हुए

बला-कशान-ए-मोहब्बत पे जो हुआ सो हुआ 
जो मुझ पे गुज़री मत उस से कहो, हुआ सो हुआ 
मबादा हो कोई ज़ालिम तिरा गरेबाँ-गीर 
लहू के दाग़ तू दामन से धो, हुआ सो हुआ

हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं मगर ऐ जान-ए-जहाँ 
अपने उश्शाक़ से ऐसे भी कोई करता है 
तेरी महफ़िल को ख़ुदा रक्खे अबद तक क़ाएम 
हम तो मेहमाँ हैं घड़ी भर के हमारा क्या है 

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tujh ko kitnon ka lahu chahiye ai arz-e-vatan
jo tire ariz-e-be-rang ko gulnar karen 
kitni aahon se kaleja tira ThanDa hoga 
kitne aansu tire sahraon ko gulzar karen 

tere aivanon men purze hue paiman kitne 
kitne va.ade jo na asuda-e-iqrar hue 
kitni ankhon ko nazar kha ga.i bad-khvahon ki 
khvab kitne tiri shah-rahon men sangsar hue 

bala-kashan-e-mohabbat pe jo hua so hua 
jo mujh pe guzri mat us se kaho, hua so hua 
mabada ho koi zalim tira gareban-gir 
lahu ke daagh tu daman se dho, hua so hua

ham to majbur-e-vafa hain magar ai jan-e-jahan 
apne ushshaq se aise bhi koi karta hai 
teri mahfil ko khuda rakkhe abad tak qaa.em 
ham to mehman hain ghaDi bhar ke hamara kya hai
Read more

jab tera hukm mila tark mohabbat kar di..

जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
दिल मगर इस पे वो धड़का कि क़यामत कर दी

तुझ से किस तरह मैं इज़्हार-ए-तमन्ना करता 
लफ़्ज़ सूझा तो मुआ'नी ने बग़ावत कर दी 

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले 
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी 

तुझ को पूजा है कि असनाम-परस्ती की है 
मैं ने वहदत के मफ़ाहीम की कसरत कर दी 

मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है 
तिरी उल्फ़त ने मोहब्बत मिरी आदत कर दी 

पूछ बैठा हूँ मैं तुझ से तिरे कूचे का पता 
तेरे हालात ने कैसी तिरी सूरत कर दी 

क्या तिरा जिस्म तिरे हुस्न की हिद्दत में जला 
राख किस ने तिरी सोने की सी रंगत कर दी

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jab tira hukm mila tark mohabbat kar di
dil magar is pe vo dhaDka ki qayamat kar di 

tujh se kis tarah main iz.har-e-tamanna karta
lafz sujha to muani ne baghavat kar di 

main to samjha tha ki lauT aate hain jaane vaale
tu ne ja kar to juda.i miri qismat kar di 

tujh ko puuja hai ki asnam-parasti ki hai
main ne vahdat ke mafahim ki kasrat kar di 

mujh ko dushman ke iradon pe bhi pyaar aata hai
tiri ulfat ne mohabbat miri aadat kar di 

puchh baiTha huun main tujh se tire kuche ka pata
tere halat ne kaisi tiri surat kar di 

kya tira jism tire husn ki hiddat men jala
raakh kis ne tiri sone ki si rangat kar di
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chalo bad-e-bahari ja rahi hai..

चलो बाद-ए-बहारी जा रही है
पिया-जी की सवारी जा रही है

शुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ से 
तमन्ना की अमारी जा रही है 

फ़ुग़ाँ ऐ दुश्मन-ए-दार-ए-दिल-ओ-जाँ 
मिरी हालत सुधारी जा रही है 

है पहलू में टके की इक हसीना 
तिरी फ़ुर्क़त गुज़ारी जा रही है 

जो इन रोज़ों मिरा ग़म है वो ये है 
कि ग़म से बुर्दबारी जा रही है 

है सीने में अजब इक हश्र बरपा 
कि दिल से बे-क़रारी जा रही है 

मैं पैहम हार कर ये सोचता हूँ 
वो क्या शय है जो हारी जा रही है 

दिल उस के रू-ब-रू है और गुम-सुम 
कोई अर्ज़ी गुज़ारी जा रही है 

वो सय्यद बच्चा हो और शैख़ के साथ 
मियाँ इज़्ज़त हमारी जा रही है 

है बरपा हर गली में शोर-ए-नग़्मा 
मिरी फ़रियाद मारी जा रही है 

वो याद अब हो रही है दिल से रुख़्सत 
मियाँ प्यारों की प्यारी जा रही है 

दरेग़ा तेरी नज़दीकी मियाँ-जान 
तिरी दूरी पे वारी जा रही है 

बहुत बद-हाल हैं बस्ती तिरे लोग 
तो फिर तू क्यूँ सँवारी जा रही है 

तिरी मरहम-निगाही ऐ मसीहा 
ख़राश-ए-दिल पे वारी जा रही है 

ख़राबे में अजब था शोर बरपा 
दिलों से इंतिज़ारी जा रही है 

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chalo bad-e-bahari ja rahi hai
piya-ji ki savari ja rahi hai 

shumal-e-javedan-e-sabz-e-jan se 
tamanna ki amari ja rahi hai 

fughan ai dushman-e-dar-e-dil-o-jan 
miri halat sudhari ja rahi hai 

hai pahlu men Take ki ik hasina 
tiri furqat guzari ja rahi hai 

jo in rozon mira gham hai vo ye hai 
ki gham se burdbari ja rahi hai 

hai siine men ajab ik hashr barpa 
ki dil se be-qarari ja rahi hai 

main paiham haar kar ye sochta huun 
vo kya shai hai jo haari ja rahi hai 

dil us ke ru-ba-ru hai aur gum-sum 
koi arzi guzari ja rahi hai 

vo sayyad bachcha ho aur shaikh ke saath 
miyan izzat hamari ja rahi hai 

hai barpa har gali men shor-e-naghma 
miri fariyad maari ja rahi hai 

vo yaad ab ho rahi hai dil se rukhsat 
miyan pyaron ki pyari ja rahi hai 

daregha teri nazdiki miyan-jan
tiri duuri pe vaari ja rahi hai 

bahut bad-hal hain basti tire log
to phir tu kyuun sanvari ja rahi hai 

tiri marham-nigahi ai masiha
kharash-e-dil pe vaari ja rahi hai 

kharabe men ajab tha shor barpa
dilon se intizari ja rahi hai
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ye haadsaa to kisi din gujarne wala hi tha..

ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था

तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़
मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख़्म भरने वाला था

बुलंदियों का नशा टूट कर बिखरने लगा
मेरा जहाज़ ज़मीन पर उतरने वाला था

मेरा नसीब मेरे हाथ काट गए वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था

मेरे चिराग मेरी शब मेरी मुंडेरें हैं
मैं कब शरीर हवाओं से डरने वाला था
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shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho..

शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम हो
दिल-दश्त में इक प्यास तमाशा है कि तुम हो

इक लफ़्ज़ में भटका हुआ शाइ'र है कि मैं हूँ
इक ग़ैब से आया हुआ मिस्रा है कि तुम हो 

दरवाज़ा भी जैसे मिरी धड़कन से जुड़ा है 
दस्तक ही बताती है पराया है कि तुम हो 

इक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ 
इक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो 

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ 
तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो 

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shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho
dil-dasht men ik pyaas tamasha hai ki tum ho 

ik lafz men bhaTka hua sha.ir hai ki main huun
ik ghaib se aaya hua misra.a hai ki tum ho 

darvaza bhi jaise miri dhaDkan se juDa hai 
dastak hi batati hai paraya hai ki tum ho 

ik dhuup se uljha hua saaya hai ki main huun 
ik shaam ke hone ka bharosa hai ki tum ho 

main huun bhi to lagta hai ki jaise main nahin huun 
tum ho bhi nahin aur ye lagta hai ki tum ho

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jis samt bhi dekhun nazar aataa hai ki tum ho..

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो

ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है 
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो 

इस दीद की साअत में कई रंग हैं लर्ज़ां 
मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो 

देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी 
देखूँ ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो 

ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ 
हर साँस में मुझ को यही लगता है कि तुम हो 

हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का 
अब कौन है शीरीं है कि लैला है कि तुम हो 

इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ 
इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो 

वो वक़्त न आए कि दिल-ए-ज़ार भी सोचे 
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो

आबाद हम आशुफ़्ता-सरों से नहीं मक़्तल 
ये रस्म अभी शहर में ज़िंदा है कि तुम हो 

ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी 
हम को ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो 

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jis samt bhi dekhun nazar aataa hai ki tum ho
ai jaan e jahaan ye koi tum saa hai ki tum ho

ye Khvaab hai Khushbu hai ki jhonkaa hai ki pul hai
ye dhund hai baadal hai ki saayaa hai ki tum ho

is did ki saa.at men kai rang hain larzaan
main hun ki koi aur hai duniyaa hai ki tum ho

dekho ye kisi aur ki aankhen hain ki meri
dekhun ye kisi aur kaa chehra hai ki tum ho

ye umr e gurezaan kahin thahre to ye jaanun
har saans men mujh ko yahi lagtaa hai ki tum ho

har bazm men mauzu e suKhan dil zadgaan kaa
ab kaun hai shirin hai ki lailaa hai ki tum ho

ik dard kaa phailaa huaa sahraa hai ki main hun
ik mauj men aayaa huaa dariyaa hai ki tum ho

vo vaqt na aa.e ki dil e zaar bhi soche
is shahr men tanhaa koi ham saa hai ki tum ho

aabaad ham aashufta-saron se nahin maqtal
ye rasm abhi shahr men zinda hai ki tum ho

ai jaan e faraaz itni bhi taufiq kise thi
ham ko gham e hasti bhi gavaara hai ki tum ho
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Anokhi Waza Hai Sare Zamane Se Nirale Hain..

अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं

इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं

फला-फूला रहे या-रब चमन मेरी उमीदों का
जिगर का ख़ून दे दे कर ये बूटे मैं ने पाले हैं

रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं

न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं

नहीं बेगानगी अच्छी रफ़ीक़-ए-राह-ए-मंज़िल से
ठहर जा ऐ शरर हम भी तो आख़िर मिटने वाले हैं

उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइ'ज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-साधे भोले भाले हैं

मिरे अशआ'र ऐ 'इक़बाल' क्यूँ प्यारे न हों मुझ को
मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं 


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Anokhi Waza Hai Sare Zamane Se Nirale Hain,
Ye Aashiq Kon Si Basti K Ya Rab Rehne Wale Hain,

Ilaj-E-Dard Mein Bhi Dard Ki Lazat Pe Marta Hon,
Jo Thay Chhaalon Mein Kante Nok-E-Sozan Se Nikale Hain,

Phalaa Phoola Rahe Ya Rab Chaman Meri Umeedon Ka,
Jigar Ka Khoon De De Kar Ye Boote Hum Ne Paale Hain,

Rulati Hai Mujhe Raton Ko Khamoshi Sataron Ki,
Niraala Ishq Hai Mera Niraale Mere Naale Hain,,

Na Poocho Mujh Se Lazzat Khaanamaan Barbad Rehne Ki,
Nasheman Sainkaron Main Ne Bana Kar Phonk Daale Hain,,

Nahin Begaangi Achchi Rafiq-e-raah-e-manzil Se
Thahar Ja Aye Sharar Ham Bhi To Akhir Mitne Waale Hain

Umeed-E-Hoor Ne Sab Kuch Seekha Rakha Hai Waaiz Ko,
Ye Hazrat Dekhne Mein Seedhe Saadhe, Bhole Bhaale Hain,

Mere Ashaar Aye Iqbal Kion Pyare Na Hon Mujh Ko,
Mere Toote Howe DiL K Dard Angaiz Naale Hain.!
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Ab kis se kahen aur kon sune jo haal tumhare baad hua..

अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ
इस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ

ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की
वो नाम जो मेरे होंटों पर ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ

उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए
इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ

वो अपने गाँव की गलियाँ थीं दिल जिन में नाचता गाता था
अब इस से फ़र्क़ नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ

बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में
ऐसा तो कभी सोचा भी न था दिल अब जितना बेदाद हुआ

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Ab kis se kahen aur kon sune jo haal tumhare baad hua,
Is dil ki jheel si ankhon main ik khawb bohat barbaad hua,

Yeh hijr-hava bhi dushman hai is naam ke saare rangon ki,
Woh naam jo mere honton pr khushbuu ki tarah abaad raha,

Us sheher me kitne chehre they kuch yaad nahi sab bhool gaye,
Ik shakss kitabon jesa tha woh shakss zubaani yaad hua,

Woh apne gaaon ki galiyan thi dil jin main nachta gaata tha,
Ab iss se fark nahi parta nashaad hua ya shaad hua,

Benaam satayesh rehti thi in gehri saanvli aankhon main,
Aissa to kabhi socha bhi na tha dil ab jitna bedaad hua..
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baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin..

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं

तुम भी हो बीते वक़्त के मानिंद हू-ब-हू
तुम ने भी याद आना है आना तो है नहीं

अहद-ए-वफ़ा से किस लिए ख़ाइफ़ हो मेरी जान
कर लो कि तुम ने अहद निभाना तो है नहीं

वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं

दुनिया हम अहल-ए-इश्क़ पे क्यूँ फेंकती है जाल
हम ने तिरे फ़रेब में आना तो है नहीं

वो इश्क़ तो करेगा मगर देख भाल के
'फ़ारिस' वो तेरे जैसा दिवाना तो है नहीं


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baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin
ham be-gharon ka koi Thikana to hai nahin 

tum bhi ho biite vaqt ke manind hū-ba-hū 
tum ne bhi yaad aana hai aana to hai nahin 

ahd-e-vafa se kis liye ḳha.if ho meri jaan 
kar lo ki tum ne ahd nibhana to hai nahin 

vo jo hamen aziiz hai kaisa hai kaun hai 
kyuun pūchhte ho ham ne batana to hai nahin 

duniya ham ahl-e-ishq pe kyuun phenkti hai jaal 
ham ne tire fareb men aana to hai nahin 

vo ishq to karega magar dekh bhaal ke 
'faris' vo tere jaisa divana to hai nahin 
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Thoda likha aur jyada chhod diya..

थोड़ा लिक्खा और ज़ियादा छोड़ दिया
आने वालों के लिए रस्ता छोड़ दिया

तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया

लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं
फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया

रोज़ इक पत्ता मुझ में आ गिरता है
जब से मैंने जंगल जाना छोड़ दिया

बस कानों पर हाथ रखे थे थोड़ी देर
और फिर उस आवाज़ ने पीछा छोड़ दिए
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Tera chup rehna mere zehan me kya baith gaya..

तेरा चुप रहना मेरे ज़हन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस को भी जाने का कहा, बैठ गया

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया

बात दरियाओं की, सूरज की, न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
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Tarikhio ko aag Lage aur diya jale..

तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले

उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब
वो रौशनी की बात करे और दिया जले

तुम चाहते हो तुम से बिछड़ के भी ख़ुश रहूँ
या’नी हवा भी चलती रहे और दिया जले

क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले

सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मैं चाहता हूँ शाम ढले और दिया जले

तुम लौटने में देर न करना कि ये न हो
दिल तीरगी में घेर चुके और दिया जले
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Parai aag par roti nhi banaunga..

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा

अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया
अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा

फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा

गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ
नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा

मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ
तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा

तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुख
मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा

मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने ‘सरवत’ पर
और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा
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Kya khabar us raushani me aur kya raushan hua..

क्या खबर उस रौशनी में और क्या क्या रोशन हुआ
जब वो इन हाथों से पहली बार रोशन रोशन हुआ

वो मेरे सीने से लग कर जिसको रोइ वो कौन था
किसके बुझने पर आज मै उसकी जगह रोशन हुआ

तेरे अपने तेरी किरणो को तरसते हैं यहाँ
तू ये किन गलियों में किन लोगो में जा रोशन हुआ

अब उस ज़ालिम से इस कसरत से तौफे आ रहे हैं
की हम घर में नई अलमारियां बनवा रहे हैं

हमे मिलना तो इन आवादियों से दूर मिलना
उसे कहना गए वक्तों में हम दरिया रहे हैं

बिछड़ जाने का सोचा तो नहीं था हमने लेकिन
तुझे खुश रखने की कोसिस में दुःख पंहुचा रहे हैं

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Kise Khabar hai Umar bas ispe gaur karne me Katt rhi hai ..

किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है
कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है

अजीब दुख है हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैं
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है

मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है

मुझ ऐसे पेड़ों के सूखने और सब्ज़ होने से क्या किसी को
ये बेल शायद किसी मुसीबत में है जो मुझ से लिपट रही है

ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है

सो इस तअ'ल्लुक़ में जो ग़लत-फ़हमियाँ थीं अब दूर हो रही हैं
रुकी हुई गाड़ियों के चलने का वक़्त है धुंध छट रही है
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Kadam rakhta hai yaar jab Ahishta Ahishta..

क़दम रखता है जब रस्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छट जाता है सब गर्द-ओ-ग़ुबार आहिस्ता आहिस्ता

भरी आँखों से हो के दिल में जाना सहल थोड़ी है
चढ़े दरियाओं को करते हैं पार आहिस्ता आहिस्ता

नज़र आता है तो यूँ देखता जाता हूँ मैं उस को
कि चल पड़ता है जैसे कारोबार आहिस्ता आहिस्ता

उधर कुछ औरतें दरवाज़ों पर दौड़ी हुई आईं
इधर घोड़ों से उतरे शहसवार आहिस्ता आहिस्ता

किसी दिन कारख़ाना-ए-ग़ज़ल में काम निकलेगा
पलट आएँगे सब बे-रोज़गार आहिस्ता आहिस्ता

तिरा पैकर ख़ुदा ने भी तो फ़ुर्सत में बनाया था
बनाएगा तिरे ज़ेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता

मिरी गोशा-नशीनी एक दिन बाज़ार देखेगी
ज़रूरत कर रही है बे-क़रार आहिस्ता आहिस्ता

वो कहता है हमारे पास आओ पर सलीके से
के जैसे आगे बढ़ती है कतार आहिस्ता आहिस्ता
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Is ek dar se Khwab dekhta nhi mai..

इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं

किसी मुंडेर पर कोई दिया जला
फिर इस के बाद क्या हुआ पता नहीं

अभी से हाथ काँपने लगे मिरे
अभी तो मैं ने वो बदन छुआ नहीं

मैं आ रहा था रास्ते में फुल थे
मैं जा रहा हूँ कोई रोकता नहीं

तिरी तरफ़ चले तो उम्र कट गई
ये और बात रास्ता कटा नहीं

मैं राह से भटक गया तो क्या हुआ
चराग़ मेरे हाथ में तो था नहीं

मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर
मैं बुझ चुका हूँ और मुझे पता नहीं

इस अज़दहे की आँख पूछती रहीं
किसी को ख़ौफ़ आ रहा है या नहीं

ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से
मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं

ख़ुदा करे वो पेड़ ख़ैरियत से हो
कई दिनों से उस का राब्ता नहीं
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Ab us janib se is kasarat se taufe aa rhe hain..

अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे हैं
के घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं।

हमे मिलना तो इन आबादियों से दूर मिलना
उससे कहना गए वक्तू में हम दरिया रहे हैं।

तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें
हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं।

हजारों लोग उसको चाहते होंगे हमें क्या
के हम उस गीत में से अपना हिस्सा गा रहे हैं।

बुरे मौसम की कोई हद नहीं तहजीब हाफी
फिजा आई है और पिंजरों में पर मुरझा रहे हैं।
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Jahan bhar ki tamam aankhein nichod kar jitna nam banega ..

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा

मैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ'राना मुबालग़ा है
मिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगा

हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा

तो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से क़ब्ल
मिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगा

मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसा
शदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा

सुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैं
बना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगा

कि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं
ये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ' रक़्बा हरम बनेगा

मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा

सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
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Wo muh lgata hai jab koi kam hota hai..

वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है
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fasle aise bhi honge ye kabhi socha na tha..

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था

वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर पिछली सी आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था

मैं तिरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा
सारी दुनिया में मगर कोई तिरे जैसा न था

आज मिलने की ख़ुशी में सिर्फ़ मैं जागा नहीं
तेरी आँखों से भी लगता है कि तू सोया न था

ये सभी वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं
आँख धुँदलाई हुई थी शहर धुँदलाया न था

सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब
एक पत्थर था ख़मोशी का कि जो हटता न था

याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था

मस्लहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम'
वर्ना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था

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fasle aise bhi honge ye kabhi socha na tha
samne baitha tha mere aur vo mera na tha

vo ki khushbu ki tarah phaila tha mere char-su
main use mahsus kar sakta tha chhu sakta na tha

raat bhar pichhli si aahat kaan men aati rahi
jhank kar dekha gali men koi bhi aaya na tha

main tiri surat liye saare zamane men phira
saari duniya men magar koi tire jaisa na tha

aaj milne ki khushi men sirf main jaaga nahin
teri ankhon se bhi lagta hai ki tu soya na tha

ye sabhi viraniyan us ke juda hone se thiin
aankh dhundlai hui thi shahr dhundlaya na tha

sainkadon tufan lafzon men dabe the zer-e-lab
ek patthar tha khamoshi ka ki jo hatta na tha

yaad kar ke aur bhi taklif hoti thi ‘adim’
bhuul jaane ke siva ab koi bhi chara na tha

maslahat ne ajnabi ham ko banaya tha ‘adim’
varna kab ik dusre ko ham ne pahchana na tha
Read more

Uske pahlu se lag ke chalte hain...

उस के पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

बंद है मय-कदों के दरवाज़े
हम तो बस यूँही चल निकलते हैं

मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं

है उसे दूर का सफ़र दर-पेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं

शाम फ़ुर्क़त की लहलहा उठी
वो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैं

है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

तुम बनो रंग तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं

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Us Ke Pehloo Se Lag Ke Chalte Hain
Hum Kahin Taalney Se Talte Hain.

Main Usi Tarah To Bahalta Hoon
Aur Sab Jis Tarah Bahalte Hain.

Woh Hai Jaan Ab Har Ek Mehfil Ki
Hum Bhi Ab Ghar Se Kab Nikalte Hain.

Kya Takkaluff Karen Ye Kehne Mein
Jo Bhi Khush Hai Hum Us Se Jalte Hain.

Hai Usey Door Ka Safar Dar-Pesh
Hum Sambhaaley Nahin Sambhalte Hain.

Hai Azaab Faisle Ka Sehraa Bhi
Chal Na Pariye To Paaon Jalte Hain.

Ho Raha Hoon Main Kis Tarah Barbaad
Dekhne Waale Haath Malte Hain.

Tum Bano Rang, Tum Bano Khushboo
Hum To Apne Sukhan Mein Dhalte Hain.
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jab pyar nahin hai to bhula kyun nahin dete..

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूं नहीं देते
ख़त किस लिए रक्खे हैं जला क्यूं नहीं देते

किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूंतो मिटा क्यूं नहीं देते

लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यूं नहीं देते

रह रह के न तड़पाओ ऐ बे-दर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यूं नहीं देते

जब उस की वफ़ाओं पे यक़ीं तुम को नहीं है
'हसरत' को निगाहों से गिरा क्यूं नहीं देते

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jab pyar nahin hai to bhula kyun nahin dete
KHat kis liye rakkhe hain jala kyun nahin dete

kis waste likkha hai hatheli pe mera nam
main harf-e-ghalat hun to miTa kyun nahin dete

lillah shab-o-roz ki uljhan se nikalo
tum mere nahin ho to bata kyun nahin dete

rah rah ke na taDpao ai be-dard masiha
hathon se mujhe zahr pila kyun nahin dete

jab us ki wafaon pe yaqin tum ko nahin hai
'hasrat' ko nigahon se gira kyun nahin dete

- Hasarat Jaipuri
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Iss Se Pehle K Bewafa Ho Jaye..

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

तू कि यकता था बे-शुमार हुआ
हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ

हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ

हम अगर मंज़िलें न बन पाए
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ

देर से सोच में हैं परवाने
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ

इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ

अब के गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

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Iss Se Pehle K Bewafa Ho Jaye
Q Na A Dost Hum Juda Ho Jaye

Tu B Heere Se Ban Gaya Patthar
Hum B Kal Jane Kia Se Kia Hojaye

Tu K Yakta Ta Beshumar Hua
Hum B Toote To Jabaja Ho Jaye

Hum B Majburiyo Ka Uzr Kare
Pir Kahe Aur Mubtila Ho Jaye

Hum Agar Manzile Na Ban Paye
Manzilo Takk Ka Rasta Hojaye

Dair Se Soch Mai Hai Parwane
Raak Ho Jaye Ya Hawa Hojaye

Ishq B Khel Hai Naseebo Ka
Khak Hojaye Keemya Hojaye

Ab K Gar Tu Mile To Hum Tujh Se
Aise Lipte Teri Qaba Hojaye

Bandagi Hum Ne Chorh Di Hai 'Faraz'
Kia Kare Log Jab Khuda Hojaye
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Dost ban kar bhi nahi sath nibhane wala..

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

अब उसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मिरा
सख़्त नादिम है मुझे दाम में लाने वाला

सुब्ह-दम छोड़ गया निकहत-ए-गुल की सूरत
रात को ग़ुंचा-ए-दिल में सिमट आने वाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला

मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला

क्या ख़बर थी जो मिरी जाँ में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

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Dost ban kar bhi nahi sath nibhane wala
Wohi andaz hay zalim ka zamane wala

Ab usay log samjhte hain giraftar mera
Sakht naadim hay mujhe daam main lane wala

Subah dam choRR geya nikhat-e-gull ki surat
Raat ko guncha-e-dil may simatt aane wala

Kya kahen kitne marasim they hamare us se
Wo jo ik shakhss hai muh phair kay jaane wala

Tere hote huye aa jati thi sari dunia
Ajj tanha hoon to koi nahi aane wala

Muntazir kiss ka hoon tooti hoi dehleez pe main
Kon aye ga yahan, kon hai aane wala

Kya khabar thi jo meri jaan may ghulla hay itna
Hay wohi mujh ko sar-e-daar bhi laane wala

Main ne dekha hay baharon may chaman ko jalte
Hai koi khawb ki tabeer batane wala

Tum takaluf ko bhi ikhlaas samjhte ho Faraz
Dost hota nahi har hath milane wala
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Chalne Ka Hausla Nahin Rukna Muhaal Kar Diya..

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया

ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की
अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया

अब के हवा के साथ है दामन-ए-यार मुंतज़िर
बानू-ए-शब के हाथ में रखना सँभाल कर दिया

मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया

चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया

मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया

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Chalne Ka Hausla Nahin Rukna Muhaal Kar Diya
Ishq Ke Is Safar Ne To Mujh Ko NiDhaal Kar Diya

Ai Meri Gul-Zamiin Tujhe Chaah Thi Ik Kitaab Ki
Ahl-E-Kitaab Ne Magar Kya Tera Haal Kar Diya

Milte Hue Dilon Ke Biich Aur Tha Faisla Koi
Us Ne Magar BichhaḌte Vaqt Aur Savaal Kar Diya

Ab Ke Havaa Ke Saath Hai Daaman-E-Yaar Muntazir
Baanu-E-Shab Ke Haath Mein Rakhna Sambhaal Kar Diya

Mumkina Faislon Mein Ek Hijr Ka Faisla Bhi Tha
Ham Ne To Ek Baat Ki Us Ne Kamaal Kar Diya

Mere Labon Pe Mohr Thi Par Mere Shisha-Ru Ne To
Shahr Ke Shahr Ko Mera Vaaqif-E-Haal Kar Diya

Chehra O Naam Ek Saath Aaj Na Yaad Aa Sake
Vaqt Ne Kis Shabih Ko Ḳhvaab O Ḳhayaal Kar Diya

Muddaton Baad Us Ne Aaj Mujh Se Koi Gila Kiya
Mansab-E-Dilbari Pe Kya Mujh Ko Bahaal Kar Diya
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use kyun hum ne diya dil jo hai be-mehri..

उसे क्यूँ हम ने दिया दिल जो है बे-मेहरी में कामिल जिसे आदत है जफ़ा की 
जिसे चिढ़ मेहर-ओ-वफ़ा की जिसे आता नहीं आना ग़म-ओ-हसरत का मिटाना जो सितम में है यगाना 
जिसे कहता है ज़माना बुत-ए-बे-महर-ओ-दग़ा-बाज़ जफ़ा-पेशा फ़ुसूँ-साज़ सितम-ख़ाना-बर-अन्दाज़ 
ग़ज़ब जिस का हर इक नाज़ नज़र फ़ित्ना मिज़ा तीर बला ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर ग़म-ओ-रंज का बानी क़लक़-ओ-दर्द 
का मूजिब सितम-ओ-जौर का उस्ताद जफ़ा-कारी में माहिर जो सितम-केश-ओ-सितमगर जो सितम-पेशा है 
दिलबर जिसे आती नहीं उल्फ़त जो समझता नहीं चाहत जो तसल्ली को न समझे जो तशफ़्फ़ी को न 
जाने जो करे क़ौल न पूरा करे हर काम अधूरा यही दिन-रात तसव्वुर है कि नाहक़ 
उसे चाहा जो न आए न बुलाए न कभी पास बिठाए न रुख़-ए-साफ़ दिखाए न कोई 
बात सुनाए न लगी दिल की बुझाए न कली दिल की खिलाए न ग़म-ओ-रंज घटाए न रह-ओ-रस्म 
बढ़ाए जो कहो कुछ तो ख़फ़ा हो कहे शिकवे की ज़रूरत जो यही है तो न चाहो जो न 
चाहोगे तो क्या है न निबाहोगे तो क्या है बहुत इतराओ न दिल दे के ये किस काम का दिल 
है ग़म-ओ-अंदोह का मारा अभी चाहूँ तो मैं रख दूँ इसे तलवों से मसल कर अभी मुँह 
देखते रह जाओ कि हैं उन को हुआ क्या कि इन्हों ने मिरा दिल ले के मिरे हाथ से खोया

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use kyun hum ne diya dil jo hai be-mehri mein kaamil jise aadat hai jafa ki
jise chidh mehr-o-wafa ki jise aata nahin aana gham-o-hasrat ka mitana jo sitam mein hai yagana

jise kahta hai zamana but-e-be-mahr-o-dagha-baz jafa-pesha fusun-saz sitam-khana-bar-andaz
ghazab jis ka har ek naz nazar fitna mizha tir bala zulf-e-girah-gir gham-o-ranj ka bani qalaq-o-dard

ka mujib sitam-o-jaur ka ustad jafa-kari mein mahir jo sitam-kesh-o-sitam-gar jo sitam-pesha hai
dilbar jise aati nahin ulfat jo samajhta nahin chahat jo tasalli ko na samjhe jo tashaffi ko na

jaane jo kare qaul na pura kare har kaam adhura yahi din-raat tasawwur hai ki nahaq
use chaha jo na aae na bulae na kabhi pas bithae na rukh-e-saf dikhae na koi

baat sunae na lagi dil ki bujhae na kali dil ki khilae na gham-o-ranj ghatae na rah-o-rasm
badhae jo kaho kuchh to khafa ho kahe shikwe ki zarurat jo yahi hai to na chaho jo na

chahoge to kya hai na nibahoge to kya hai bahut itrao na dil de ke ye kis kaam ka dil
hai gham-o-andoh ka mara abhi chahun to main rakh dun ise talwon se masal kar abhi munh

dekhte rah jao ki hain un ko hua kya ki inhon ne mera dil le ke mere hath se khoya
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Maqrooz Ke Bigray Huye Halaat Ki Maanind..

मक़रूज़ के बिगड़े हुए ख़यालात की मानिंद
मज़बूर के होठों के सवालात की मानिंद

दिल का तेरी चाहत में अजब हाल हुआ है
सैलाब से बर्बाद मकानात की मानिंद

मैं उस में भटकते हुए जुगनू की तरह हूँ
उस शख्स की आँख हैं किसी रात की मानिंद

दिल रोज़ सजाता हूँ मैं दुल्हन की तरह से
ग़म रोज़ चले आते हैं बारात की मानिंद

अब ये भी नहीं याद के क्या नाम था उसका
जिस शख्स को माँगा था मुनाजात की मानिंद

किस दर्जा मुकद्दस है तेरे क़ुर्ब की ख्वाहिश
मासूम से बच्चे के ख़यालात की मानिंद

उस शख्स से मेरा मिलना मुमकिन ही नहीं था
मैं प्यास का सेहरा हूँ वो बरसात की मानिंद

समझाओ 'मोहसिन' उसको के अब तो रहम करे
ग़म बाँटता फिरता है वो सौगात की मानिंद

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Maqrooz Ke Bigray Huye Halaat Ki Maanind
Majboor Ke Honton Pe Sawaalaat Ki Maanind

Dil Ka Teri Chaahat Mein Ajab Haal Hua Hai
Sailaab Se Barbaad Makaanaat Ki Maanind

Mein Un Mein Bhatkay Howay Jugnu Ki Tarah Hun
Usss Shakhs Ki Aankhain Hain Kisi Raat Ki Maanind

Dil Roz Sajaata Hun Mein Dulhan Ki Tarah
Gham Roz Chalay Aatay Hain Baaraat Ki Maanind

Ab Ye Bhi Nahi Yaad Ke Kya Naam Tha Os Ka
Jis Shakhs Ko Maanga Tha Manaajaat Ki Maanind

Kis Darja Muqaddas Hai Tere Qurb Ki Khwaahish
Maasoom Se Bachay Ke Khayaalaat Ki Maanind

Uss Shakhs Se Mera Milna Mumkin Hi Nahi
Mein Pyaas Ka Sehra Hun Wo Barsaat Ki Maanind

Samjhao Mohsin Us Ko Ke Ab Reham Kare
Dukh Baant’ta Phirta Hai Woh Soghaat Ki Maanind
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zindagii se yahii gilaa hai mujhe..

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

दिल धड़कता नहीं टपकता है
कल जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे

हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे

कोहकन हो कि क़ैस हो कि 'फ़राज़'
सब में इक शख़्स ही मिला है मुझे

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Zindagii se yahii gilaa hai mujhe
Tu bahut der se milaa hai mujhe

Hamasafr chaahiye hujoom nahiin
Ek musaafir bhii kaafilaa hai mujhe

Tu mohabbat se koii chaal to chal
Haar jaane kaa hausalaa hai mujhe

Lab kushaan hoon to is yakiin ke saath
Katl hone kaa hausalaa hai mujhe

Dil dhaDakataa nahiin sulagataa hai
Vo jo khvaahish thii, aabalaa hai mujhe

Kaun jaane ki chaahato men fraaj
Kyaa ganvaayaa hai kyaa milaa hai mujhe
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jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe..

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे
जब अपनी अपनी मोहब्बतों के अज़ाब झेले तो लोग समझे

वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया था
उन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल न उतरे तो लोग समझे

उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़ल्सफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे

वो ख़्वाब थे ही चम्बेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बैअत
फिर इक चम्बेली की ओट में से जो साँप निकले तो लोग समझे

वो गाँव का इक ज़ईफ़ दहक़ाँ सड़क के बनने पे क्यूँ ख़फ़ा था
जब उन के बच्चे जो शहर जाकर कभी न लौटे तो लोग समझे

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jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe
jab apni apni mohabbaton ke azaab jhele to log samjhe

vo jin darakhton ki chhanv men se musafiron ko utha diya tha
unhin darakhton pe agle mausam jo phal na utre to log samjhe

us ek kachchi si umr vaali ke falsafe ko koi na samjha
jab us ke kamre se laash nikli khutut nikle to log samjhe

vo khvab the hi chambeliyon se so sab ne hakim ki kar li baiat
phir ik chambeli ki ot men se jo saanp nikle to log samjhe

vo gaanv ka ik zaiif dahqan sadak ke banne pe kyuun khafa tha
jab un ke bachche jo shahr jakar kabhi na laute to log samjhe
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samne us ke kabhi us ki sataish nahin ki..

सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की
दिल ने चाहा भी अगर होंटों ने जुम्बिश नहीं की

अहल-ए-महफ़िल पे कब अहवाल खुला है अपना
मैं भी ख़ामोश रहा उस ने भी पुर्सिश नहीं की

जिस क़दर उस से तअल्लुक़ था चला जाता है
उस का क्या रंज हो जिस की कभी ख़्वाहिश नहीं की

ये भी क्या कम है कि दोनों का भरम क़ाएम है
उस ने बख़्शिश नहीं की हम ने गुज़ारिश नहीं की

इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा
उस पे महफ़िल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की

हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की

ऐ मिरे अब्र-ए-करम देख ये वीराना-ए-जाँ
क्या किसी दश्त पे तू ने कभी बारिश नहीं की

कट मरे अपने क़बीले की हिफ़ाज़त के लिए
मक़्तल-ए-शहर में ठहरे रहे जुम्बिश नहीं की

वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है 'फ़राज़'
हम ने भी मेल-मुलाक़ात की कोशिश नहीं की

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samne us ke kabhi us ki sataish nahin ki
dil ne chaha bhi agar honTon ne jumbish nahin ki

ahl-e-mahfil pe kab ahwal khula hai apna
main bhi KHamosh raha us ne bhi pursish nahin ki

jis qadar us se talluq tha chala jata hai
us ka kya ranj ho jis ki kabhi KHwahish nahin ki

ye bhi kya kam hai ki donon ka bharam qaem hai
us ne baKHshish nahin ki hum ne guzarish nahin ki

ek to hum ko adab aadab ne pyasa rakkha
us pe mahfil mein surahi ne bhi gardish nahin ki

hum ki dukh oDh ke KHalwat mein paDe rahte hain
hum ne bazar mein zaKHmon ki numaish nahin ki

ai mere abr-e-karam dekh ye virana-e-jaan
kya kisi dasht pe tu ne kabhi barish nahin ki

kaT mare apne qabile ki hifazat ke liye
maqtal-e-shahr mein Thahre rahe jumbish nahin ki

wo hamein bhul gaya ho to ajab kya hai 'faraaz'
hum ne bhi mel-mulaqat ki koshish nahin ki
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safar me dhoop to hogi..

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
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ab ke tajdid-e-wafa ka nahin imkan jaanan..

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ
याद क्या तुझ को दिलाएँ तिरा पैमाँ जानाँ

यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ

ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तिरा एहसाँ जानाँ

दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ

अव्वल अव्वल की मोहब्बत के नशे याद तो कर
बे-पिए भी तिरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ

आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं
रग-ए-मीना सुलग उट्ठी कि रग-ए-जाँ जानाँ

मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उमीद
दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ

हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रक्खा था
ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ

अब के कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ
सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गरेबाँ जानाँ

हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है
हर कोई अपने ही साए से हिरासाँ जानाँ

जिस को देखो वही ज़ंजीर-ब-पा लगता है
शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िंदाँ जानाँ

अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए
और से और हुए दर्द के उनवाँ जानाँ

हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे
हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ

होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा रेज़ा
जैसे उड़ते हुए औराक़-ए-परेशाँ जानाँ

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ab ke tajdid-e-wafa ka nahin imkan jaanan
yaad kya tujh ko dilaen tera paiman jaanan

yunhi mausam ki ada dekh ke yaad aaya hai
kis qadar jald badal jate hain insan jaanan

zindagi teri ata thi so tere nam ki hai
hum ne jaise bhi basar ki tera ehsan jaanan

dil ye kahta hai ki shayad hai fasurda tu bhi
dil ki kya baat karen dil to hai nadan jaanan

awwal awwal ki mohabbat ke nashe yaad to kar
be-piye bhi tera chehra tha gulistan jaanan

aaKHir aaKHir to ye aalam hai ki ab hosh nahin
rag-e-mina sulag utthi ki rag-e-jaan jaanan

muddaton se yahi aalam na tawaqqo na umid
dil pukare hi chala jata hai jaanan jaanan

hum bhi kya sada the hum ne bhi samajh rakkha tha
gham-e-dauran se juda hai gham-e-jaanan jaanan

ab ke kuchh aisi saji mahfil-e-yaran jaanan
sar-ba-zanu hai koi sar-ba-gareban jaanan

har koi apni hi aawaz se kanp uThta hai
har koi apne hi sae se hirasan jaanan

jis ko dekho wahi zanjir-ba-pa lagta hai
shahr ka shahr hua dakhil-e-zindan jaanan

ab tera zikr bhi shayad hi ghazal mein aae
aur se aur hue dard ke unwan jaanan

hum ki ruthi hui rut ko bhi mana lete the
hum ne dekha hi na tha mausam-e-hijran jaanan

hosh aaya to sabhi KHwab the reza reza
jaise uDte hue auraq-e-pareshan jaanan

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khizan ki rut men gulab lahja bana ke rakhna kamal ye hai..

ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है 

ज़रा सी लग़्ज़िश पे तोड़ देते हैं सब तअ'ल्लुक़ ज़माने वाले
सो ऐसे वैसों से भी तअ'ल्लुक़ बना के रखना कमाल ये है 

किसी को देना ये मशवरा कि वो दुख बिछड़ने का भूल जाए
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू छुपा के रखना कमाल ये है 

ख़याल अपना मिज़ाज अपना पसंद अपनी कमाल क्या है
जो यार चाहे वो हाल अपना बना के रखना कमाल ये है 

किसी की रह से ख़ुदा की ख़ातिर उठा के काँटे हटा के पत्थर
फिर उस के आगे निगाह अपनी झुका के रखना कमाल ये है 

वो जिस को देखे तो दुख का लश्कर भी लड़खड़ाए शिकस्त खाए
लबों पे अपने वो मुस्कुराहट सजा के रखना कमाल ये है 

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khizan ki rut men gulab lahja bana ke rakhna kamal ye hai
hava ki zad pe diya jalana jala ke rakhna kamal ye hai 

zara si laghzish pe tod dete hain sab ta.alluq zamane vaale
so aise vaison se bhi ta.alluq bana ke rakhna kamal ye hai 

kisi ko dena ye mashvara ki vo dukh bichhadne ka bhuul jaa.e
aur aise lamhe men apne aansu chhupa ke rakhna kamal ye hai 

khayal apna mizaj apna pasand apni kamal kya hai
jo yaar chahe vo haal apna bana ke rakhna kamal ye hai 

kisi ki rah se khuda ki khatir uTha ke kanTe haTa ke patthar
phir us ke aage nigah apni jhuka ke rakhna kamal ye hai 

vo jis ko dekhe to dukh ka lashkar bhi ladkhada.e shikast khaa.e
labon pe apne vo muskurahaT saja ke rakhna kamal ye hai
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isi nadamat se uss ke kandhe jhuke huye hain..

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं
कि हम छड़ी का सहारा लेकर खड़े हुए हैं

यहाँ से जाने की जल्दी किस को है तुम बताओ
कि सूटकेसों में कपड़े किस ने रखे हुए हैं

करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं

वो ख़ुद परिंदों का दाना लेने गया हुआ है
और उस के बेटे शिकार करने गए हुए हैं

तुम्हारे दिल में खुली दुकानों से लग रहा है
ये घर यहाँ पर बहुत पुराने बने हुए हैं

मैं कैसे बावर कराऊँ जाकर ये रौशनी को
कि इन चराग़ों पे मेरे पैसे लगे हुए हैं

तुम्हारी दुनिया में कितना मुश्किल है बच के चलना
क़दम क़दम पर तो आस्ताने बने हुए हैं

तुम इन को चाहो तो छोड़ सकते हो रास्ते में
ये लोग वैसे भी ज़िंदगी से कटे हुए हैं

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isi nadamat se us ke kandhe jhuke hue hain
ki ham chhaDi ka sahara le kar khaDe hue hain 

yahan se jaane ki jaldi kis ko hai tum batao
ki suitcason men kapDe kis ne rakhe hue hain 

kara to lunga ilaqa khali main laD-jhagaD kar
magar jo us ne dilon pe qabze kiye hue hain 

vo khud parindon ka daana lene gaya hua hai
aur us ke beTe shikar karne ga.e hue hain 

tumhare dil men khuli dukanon se lag raha hai
ye ghar yahan par bahut purane bane hue hain 

main kaise bavar kara.un ja kar ye raushni ko
ki in charaghon pe mere paise lage hue hain 

tumhari duniya men kitna mushkil hai bach ke chalna
qadam qadam par to astane bane hue hain 

tum in ko chaho to chhoD sakte ho raste men
ye log vaise bhi zindagi se kaTe hue hain
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Us ke dushman hai bahut acha aadmi hoga..

उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा

प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा

मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की
उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

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us ke dushman hain bahut aadmi achchha hoga
vo bhi meri hi tarah shahr men tanha hoga 

itna sach bol ki honTon ka tabassum na bujhe
raushni khatm na kar aage andhera hoga 

pyaas jis nahr se Takra.i vo banjar nikli
jis ko pichhe kahin chhoD aa.e vo dariya hoga 

mire baare men koi raa.e to hogi us ki
us ne mujh ko bhi kabhi toD ke dekha hoga 

ek mahfil men ka.i mahfilen hoti hain sharik
jis ko bhi paas se dekhoge akela hoga
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so rahenge ki jagte rahenge..

सो रहेंगे के जागते रहेंगे
हम तेरे ख्वाब देखते रहेंगे

तू कही और ही ढूंढता रहेंगा
हम कही और ही खिले रहेंगे

राहगीरों ने राह बदलनी है
पेड़ अपनी जगह खड़े रहेंगे

सभी मौसम है दस्तरस में तेरी
तूने चाहा तो हम हरे रहेंगे

लौटना कब है तूने पर तुझको
आदतन ही पुकारते रहेंगे

तुझको पाने में मसअला ये है
तुझको खोने के वस्वसे रहेंगे

तू इधर देख मुझसे बाते कर
यार चश्मे तो फूटते रहेंगे

एक मुद्दत हुई है तुझसे मिले
तू तो कहता था राब्ते रहेंगे

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so rahenge ki jagte rahenge
ham tire khvab dekhte rahenge 

tu kahin aur DhunDhta rahega
ham kahin aur hi khile rahenge 

rahgiron ne rah badalni hai
peD apni jagah khaDe rahe hain 

barf pighlegi aur pahaDon men 
salha-sal raste rahenge 

sabhi mausam hain dastaras men tiri 
tu ne chaha to ham hare rahenge 

lauTna kab hai tu ne par tujh ko 
adatan hi pukarte rahenge 

tujh ko paane men mas.ala ye hai 
tujh ko khone ke vasvase rahenge 

tu idhar dekh mujh se baten kar 
yaar chashme to phuTte rahenge
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yeh gham kya dil ki aadat hai nahin toh..

ये ग़म क्या दिल की आदत है? नही तो,
किसी से कुछ शिकायत है? नही तो
है वो एक ख्वाब-ए-बे-ताबीर,
उसे भूला देने की नीयत है? नही तो
किसी के बिन , किसी की याद के बिन,
जिये जाने की हिम्मत है? नही तो
किसी सूरत भी दिल लगता नही? हां,
तो कुछ दिन से ये हालात है? नही तो
तुझे जिसने कही का भी नही रखा,
वो एक जाति सी वहशत है? नही तो
तेरे इस हाल पर है सब को हैरत,      
तुझे भी इस पे हैरत है? नही तो
हम-आहंगी नही दुनिया से तेरी,
तुझे इस पर नदामत है? नही तो
वो दरवेशी जो तज कर आ गया…..तू
यह दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो
हुआ जो कुछ यही मक़सूम था क्या?
यही सारी हिकायत है? नही तो
अज़ीयत-नाक उम्मीदों से तुझको,
अमन पाने की हसरत है? नही तो
तू रहता है ख्याल-ओ-ख्वाब में गम,
तो इस वजह से फुरसत है? नही तो
वहां वालों से है इतनी मोहोब्बत,
यहां वालों से नफरत है? नही तो
सबब जो इस जुदाई का बना है,
वो मुझसे खुबसूरत है? नही तो

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Yeh gham kya dil ki aadat hai? nahin to 
Kisi se kuch shikaayat hai? nahin to
Hai woh ek khwaab-e-be-taabeer isko
Bhula dene ki neeyat hai? nahin to
Kisi ke bin, kisi ki yaad ke bin 
Jiye jaane ki himmat hai? nahin to 
Kisi soorat bhi dil lagta nahin? haan
To kuch din se yeh haalat hai? nahin to 
Tujhe jisne kahin ka bhi na rakha
Woh ek zaati si wehshat hai? nahin to
Tere is haal par hai sab ko hairat Tujhe bhi is pe hairat hai? nahin to
Hum-aahangi nahin duniya se teri 
Tujhe is par nadaamat hai? nahin to
Wo darweshi jo taz kar aa gya….tu
Yah daulat uski keemat hai? nahin to
Hua jo kuch yehi maqsoom tha kya?  Yahi saari hikaayat hai? nahin to
Azeeyat-naak ummeedon se tujhko
Aman paane ki hasrat hai? nahin to
Tu rehta hai khayaal-o-khwaab mein gum 
To is wajah se fursat hai? nahin to
Wahan waalon se hai itni mohabbat
Yahaan waalon se nafrat hai? nahin to 
Sabab jo is judaai ka bana hai 
Wo mujh se khubsoorat hai? nahin to.
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Na hareef-e-jaan na shareek-e-gam shab-e-intizaar koi to ho..

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो
किसे बज़्म-ए-शौक़ में लाएँ हम दिल-ए-बे-क़रार कोई तो हो

किसे ज़िंदगी है अज़ीज़ अब किसे आरज़ू-ए-शब-ए-तरब
मगर ऐ निगार-ए-वफ़ा तलब तिरा ए'तिबार कोई तो हो

कहीं तार-ए-दामन-ए-गुल मिले तो ये मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ल-ए-बहार का सर-ए-शाख़-सार कोई तो हो

ये उदास उदास से बाम ओ दर ये उजाड़ उजाड़ सी रह-गुज़र
चलो हम नहीं न सही मगर सर-ए-कू-ए-यार कोई तो हो

ये सुकून-ए-जाँ की घड़ी ढले तो चराग़-ए-दिल ही न बुझ चले
वो बला से हो ग़म-ए-इश्क़ या ग़म-ए-रोज़गार कोई तो हो

सर-ए-मक़्तल-ए-शब-ए-आरज़ू रहे कुछ तो इश्क़ की आबरू
जो नहीं अदू तो 'फ़राज़' तू कि नसीब-ए-दार कोई तो हो

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na harif-e-jan na sharik-e-gham shab-e-intizar koi to ho
kise bazm-e-shauq men laa.en ham dil-e-be-qarar koi to ho 

kise zindagi hai aziiz ab kise arzu-e-shab-e-tarab
magar ai nigar-e-vafa talab tira e'tibar koi to ho 

kahin tar-e-daman-e-gul mile to ye maan len ki chaman khile
ki nishan fasl-e-bahar ka sar-e-shakh-sar koi to ho 

ye udaas udaas se baam o dar ye ujaaD ujaaD si rah-guzar
chalo ham nahin na sahi magar sar-e-ku-e-yar koi to ho 

ye sukun-e-jan ki ghaDi Dhale to charagh-e-dil hi na bujh chale
vo bala se ho gham-e-ishq ya gham-e-rozgar koi to ho 

sar-e-maqtal-e-shab-e-arzu rahe kuchh to ishq ki aabru
jo nahin adu to 'faraz' tu ki nasib-e-dar koi to ho
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ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa..

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जां मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

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ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa
aa phir se mujhe chhod ke jaane ke liye aa

Pahale se maraasim na sahii phir bhi kabhi tou
rasm-o-rahe duniya hi nibhane ke liye aa

Kis kis ko batayenge judaai ka sabab ham
tu mujhse khafaa hai tou zamaane ke liye aa

kuch tou mere pindaar-e-mohabbat ka bharam rakh
tu bhi to kabhi mujh ko manaane ke liye aa

ek umr se hoon lazzat-e-giriyaa se bhi maharuum
aye raahat-e-jaan mujh ko rulaane ke liye aa

ab tak dil-e-khushfeham ko tujh se hain ummiden
ye aakharii shammen bhi bujhaane ke liye aa
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hai ajib shahr ki zindagi..

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है 

यूँही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख-रखाव की गुफ़्तुगू
ये शराफ़तें नहीं बे-ग़रज़ इसे आप से कोई काम है

कहाँ अब दुआओं की बरकतें वो नसीहतें वो हिदायतें 
ये मुतालबों का ख़ुलूस है ये ज़रूरतों का सलाम है 

वो दिलों में आग लगाएगा मैं दिलों की आग बुझाऊंगा 
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है

न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर 
कई साल बा'द मिले हैं हम तिरे नाम आज की शाम है 

कोई नग़्मा धूप के गाँव सा कोई नग़्मा शाम की छाँव सा 
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है.

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hai ajib shahr ki zindagi na safar raha na qayam hai
kahin karobar si dopahr kahin bad-mizaj si sham hai

yunhi roz milne ki aarzu baDi rakh-rakhaw ki guftugu
ye sharafaten nahin be-gharaz ise aap se koi kaam hai

kahan ab duaon ki barkaten wo nasihaten wo hidayaten
ye mutalbon ka KHulus hai ye zaruraton ka salam hai

wo dilon mein aag lagaega main dilon ki aag bujhaunga
use apne kaam se kaam hai mujhe apne kaam se kaam hai

na udas ho na malal kar kisi baat ka na KHayal kar
kai sal baad mile hain hum tere nam aaj ki sham hai

koi naghma dhup ke ganw sa koi naghma sham ki chhanw sa
zara in parindon se puchhna ye kalam kis ka kalam hai
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naya ek rishta paida kyun karen hum..

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम 
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम 

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी 
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम 

ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं 
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम 

वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत 
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम 

सुना दें इस्मत-ए-मरियम का क़िस्सा 
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम 

ज़ुलेख़ा-ए-अज़ीज़ाँ बात ये है 
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम 

हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम 
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम 

किया था अह्द जब लम्हों में हम ने 
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम 

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें 
फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम 

जो इक नस्ल-ए-फ़रोमाया को पहुँचे 
वो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम 

नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी 
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम 

बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्या 
भला अंधों से पर्दा क्यों करें हम 

हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी 
सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम 

चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचा 
तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम 

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें 
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम 

ये बस्ती है मुसलमानों की बस्ती 
यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम 

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naya ik rishta paida kyuun karen ham 
bichhadna hai to jhagda kyuun karen ham 

khamoshi se ada ho rasm-e-duri 
koi hangama barpa kyuun karen ham 

ye kaafi hai ki ham dushman nahin hain 
vafa-dari ka da.ava kyuun karen ham 

vafa ikhlas qurbani mohabbat 
ab in lafzon ka pichha kyuun karen ham 

suna den ismat-e-mariyam ka qissa 
par ab is baab ko va kyon karen ham 

zulekha-e-azizan baat ye hai 
bhala ghaTe ka sauda kyon karen ham 

hamari hi tamanna kyuun karo tum 
tumhari hi tamanna kyuun karen ham 

kiya tha ahd jab lamhon men ham ne 
to saari umr iifa kyuun karen ham 

uTha kar kyon na phenken saari chizen 
faqat kamron men Tahla kyon karen ham 

jo ik nasl-e-faromaya ko pahunche 
vo sarmaya ikaTTha kyon karen ham 

nahin duniya ko jab parva hamari 
to phir duniya ki parva kyuun karen ham 

barahna hain sar-e-bazar to kya 
bhala andhon se parda kyon karen ham 

hain bashinde usi basti ke ham bhi 
so khud par bhi bharosa kyon karen ham 

chaba len kyon na khud hi apna dhancha 
tumhen ratib muhayya kyon karen ham 

padi rahne do insanon ki lashen 
zamin ka bojh halka kyon karen ham 

ye basti hai musalmanon ki basti 
yahan kar-e-masiha kyuun karen ham..
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