romantic-ghazals

tiri hi shakl ke but hain kai taraashe hue..

tiri hi shakl ke but hain kai taraashe hue
na pooch kaa'ba-e-dil mein bhi kya tamaashe hue

hamaari laash ko maidan-e-ishq mein pehchaan
bujhi hui si hain aankhen to dil kharaashe hue

b-waqt-e-wasl koi baat bhi na ki ham ne
zabaan thi sookhi hui hont irtia'ashe hue

vo kaise baat ko tolenge aur boleinge
jo pal mein tole hue aur pal mein maashe hue

mazaak chhod bata ye ki mujh se kya parda
tire nuqoosh hain saare mere talashe hue

main tere shehar se nikla tha ain us lamha
tire nikaah pe taqseem jab bataashe hue 
--------------------------------------
तिरी ही शक्ल के बुत हैं कई तराशे हुए
न पूछ का'बा-ए-दिल में भी क्या तमाशे हुए

हमारी लाश को मैदान-ए-इश्क़ में पहचान
बुझी हुई सी हैं आँखें तो दिल ख़राशे हुए

ब-वक़्त-ए-वस्ल कोई बात भी न की हम ने
ज़बाँ थी सूखी हुई होंट इर्तिआ'शे हुए

वो कैसे बात को तोलेंगे और बोलेंगे
जो पल में तोले हुए और पल में माशे हुए

मज़ाक़ छोड़ बता ये कि मुझ से क्या पर्दा
तिरे नुक़ूश हैं सारे मिरे तलाशे हुए

मैं तेरे शहर से निकला था ऐन उस लम्हा
तिरे निकाह पे तक़्सीम जब बताशे हुए
Read more

Ye jo mujh par nikhar hai sain..

ye jo mujh par nikhar hai sain
aap hi ki bahar hai sain

aap chahen to jaan bhi le len
aap ko iḳhtiyar hai sain

tum milate ho bichhde logon ko
ek mera bhi yaar hai sain

kisi khunTi se bandh diije use
dil baḌa be-mahar hai sain

'ishq men laghzishon pe kiije muāf
sain ye pahli baar hai sain

kul mila kar hai jo bhi kuchh mera
aap se musta'ar hai sain

ek kashti bana hi diije mujhe
koi dariya ke paar hai sain

roz aansu kama ke laata huun
gham mira rozgar hai sain

vusat-e-rizq ki dua diije
dard Ka karobar hai sain

ḳhar-zaron se ho ke aaya huun
pairahan tar-tar hai sain

kabhi aa kar to dekhiye ki ye dil
kaisa ujḌa dayar hai sain
--------------------------------
यह जो मुझ पर निखार है साईं
आप ही की बहार है साईं

आप चाहें तो जान भी ले लें
आप को इख़्तियार है साईं

तुम मिलाते हो बिछड़े लोगों को
एक मेरा भी यार है साईं

किसी खूंटी से बाँध दीजिए उसे
दिल बड़ा बे-महार है साईं

'इश्क़ में ल़ग्ज़िशों पे कीजिए माफ़
साईं ये पहली बार है साईं

कुल मिला कर है जो भी कुछ मेरा
आप से मुस्तआ'र है साईं

एक कश्ती बना ही दीजिए मुझे
कोई दरिया के पार है साईं

रोज़ आँसू कमा के लाता हूँ
ग़म मेरा रोज़गार है साईं

वुसअत-ए-रिज़्क़ की दुआ दीजिए
दर्द का कारोबार है साईं

खार-ज़ारों से हो के आया हूँ
पहनावा तार-तार है साईं

कभी आ कर तो देखिए कि ये दिल
कैसा उजड़ा दयार है साईं

Read more

ik lafz-e-mohabbat ka adna ye fasana hai..

ik lafz-e-mohabbat ka adna ye fasana hai
simTe to dil-e-ashiq phaile to zamana hai

ye kis ka tasavvur hai ye kis ka fasana hai
jo ashk hai ankhon men tasbih ka daana hai

dil sang-e-malamat ka har-chand nishana hai
dil phir bhi mira dil hai dil hi to zamana hai

ham ishq ke maron ka itna hi fasana hai
rone ko nahin koi hansne ko zamana hai

vo aur vafa-dushman manenge na maana hai
sab dil ki shararat hai ankhon ka bahana hai

shair huun main shair huun mera hi zamana hai
fitrat mira aina qudrat mira shana hai

jo un pe guzarti hai kis ne use jaana hai
apni hi musibat hai apna hi fasana hai

kya husn ne samjha hai kya ishq ne jaana hai
ham ḳhak-nashinon ki Thokar men zamana hai

aghaz-e-mohabbat hai aana hai na jaana hai
ashkon ki hukumat hai aahon ka zamana hai

ankhon men nami si hai chup chup se vo baiThe hain
nazuk si nigahon men nazuk sa fasana hai

ham dard-ba-dil nalan vo dast-ba-dil hairan
ai ishq to kya zalim tera hi zamana hai

ya vo the ḳhafa ham se ya ham hain ḳhafa un se
kal un ka zamana tha aaj apna zamana hai

ai ishq-e-junun-pesha haan ishq-e-junun-pesha
aaj ek sitamgar ko hans hans ke rulana hai

thoḌi si ijazat bhi ai bazm-gah-e-hasti
aa nikle hain dam-bhar ko rona hai rulana hai

ye ishq nahin asan itna hi samajh liije
ik aag ka dariya hai aur Duub ke jaana hai

ḳhud husn-o-shabab un ka kya kam hai raqib apna
jab dekhiye ab vo hain aina hai shana hai

tasvir ke do ruḳh hain jaan aur gham-e-janan
ik naqsh chhupana hai ik naqsh dikhana hai

ye husn-o-jamal un ka ye ishq-o-shabab apna
jiine ki tamanna hai marne ka zamana hai

mujh ko isi dhun men hai har lahza basar karna
ab aae vo ab aae lazim unhen aana hai

ḳhuddari-o-mahrumi mahrumi-o-ḳhuddari
ab dil ko ḳhuda rakkhe ab dil ka zamana hai

ashkon ke tabassum men aahon ke tarannum men
maasum mohabbat ka maasum fasana hai

aansu to bahut se hain ankhon men 'jigar' lekin
bandh jaae so moti hai rah jaae so daana hai
---------------------------------------------
इक शब्द-ए-मोहब्बत का अदना ये फसाना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है

ये किस का तसव्वुर है, ये किस का फसाना है
जो अश्क है आँखों में, तसबीह का दाना है

दिल संग-ए-मलामत का हरचंद निशाना है
दिल फिर भी मेरा दिल है, दिल ही तो ज़माना है

हम इश्क़ के मारे का इतना ही फसाना है
रोने को नहीं कोई, हंसने को ज़माना है

वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न मानना है
सब दिल की शरारत है, आँखों का बहाना है

शायर हूँ मैं, शायर हूँ, मेरा ही ज़माना है
फितरत मेरा आईना, क़ुदरत मेरा शाना है

जो उन पे गुज़रती है, किस ने उसे जाना है
अपनी ही मुसीबत है, अपना ही फसाना है

क्या हुस्न ने समझा है, क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है

आ़ग़ाज़-ए-मोहब्बत है, आना है न जाना है
आँखों की हुकूमत है, आहों का ज़माना है

आँखों में नमी सी है, चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में, नाज़ुक सा फसाना है

हम दर्द-बर-दिल नालाँ, वो दस्त-बर-दिल हैराँ
ए इश्क़ तो क्या ज़ालिम, तेरा ही ज़माना है

या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उनका ज़माना था, आज अपना ज़माना है

ए इश्क़-ए-जनून-पेशा, हाँ इश्क़-ए-जनून-पेशा
आज एक सितमगर को हंसी हंसी के रुलाना है

थोड़ी सी इजाज़त भी ए बज़्म-गाह-ए-हस्ती
आ निकले हैं दम भर को रोना है, रुलाना है

ये इश्क़ नहीं आसान, इतना ही समझ लीजिए
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है

ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उनका, क्या कम है रक़ीब अपना
जब देखिए अब वो हैं, आईना है शाना है

तस्वीर के दो रुख हैं, जान और ग़म-ए-जानाँ
एक नक़्श छुपाना है, एक नक़्श दिखाना है

ये हुस्न-ओ-जमाल उनका, ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है, मरने का ज़माना है

मुझ को इसी धुन में है, हर लम्हा बसर करना
अब आए वो, अब आए, लाज़िम उन्हें आना है

ख़ुद्दारी-ओ-मह्रूमी, मह्रूमी-ओ-ख़ुद्दारी
अब दिल को ख़ुदा रखे, अब दिल का ज़माना है

आँखों के तबस्सुम में, आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत का मासूम फसाना है

आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बाँध जाए सो मोती है, रह जाए सो दाना है
Read more

Tire ishq ki intiha chahta huun..

tire ishq ki intiha chahta huun
miri sadgi dekh kya chahta huun

sitam ho ki ho vada-e-be-hijabi
koi baat sabr-azma chahta huun

ye jannat mubarak rahe zahidon ko
ki main aap ka samna chahta huun

zara sa to dil huun magar shoḳh itna
vahi lan-tarani suna chahta huun

koi dam ka mehman huun ai ahl-e-mahfil
charagh-e-sahar huun bujha chahta huun

bhari bazm men raaz ki baat kah di
baḌa be-adab huun saza chahta huun
------------------------------------
तेरे इश्क की इंतिहा चाहता हूँ
मेरी साधगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

ज़रासा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना
वही लंत-तरानी सुना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमान हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी महफ़िल में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

Read more

Aap ka etibar kaun kare..

aap ka etibar kaun kare
roz ka intizar kaun kare

zikr-e-mehr-o-vafa to ham karte
par tumhen sharmsar kaun kare

ho jo us chashm-e-mast se be-ḳhud
phir use hoshiyar kaun kare

tum to ho jaan ik zamane ki
jaan tum par nisar kaun kare

afat-e-rozgar jab tum ho
shikva-e-rozgar kaun kare

apni tasbih rahne de Zahid
daana daana shumar kaun kare

hijr men zahr kha ke mar jaun
maut Ka intizar kaun kare

aankh hai turk zulf hai sayyad
dekhen dil ka shikar kaun kare

Vada karte nahin ye kahte hain
tujh ko ummīd-var kaun kare

'dagh ki shakl dekh kar bole
aisi surat ko pyaar kaun kare
-------------------------------
आप का एतिबार कौन करे
रोज़ का इंतज़ार कौन करे

ज़िक्र-ए-महरो-वफ़ा तो हम करते
पर तुम्हें शर्मसार कौन करे

हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद
फिर उसे होशियार कौन करे

तुम तो हो जान एक ज़माने की
जान तुम पर निसार कौन करे

आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो
शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे

अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद
दाना दाना शुमार कौन करे

हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊं
मौत का इंतज़ार कौन करे

आँख है तुर्क ज़ुल्फ है सैय्याद
देखें दिल का शिकार कौन करे

वादा करते नहीं ये कहते हैं
तुझ को उम्मीद-वार कौन करे

'दाग' की शक्ल देख कर बोले
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे

Read more

Jab se usne kheecha hai khidki ka parda ek taraf..

जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़
उसका कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़

मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बाँटा है
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़

एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता रफ़्ता एक तरफ़

यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन
तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़

उसकी आँखों ने मुझसे मेरी ख़ुद्दारी छीनी वरना
पाँव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़

मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने सहरा एक तरफ़ रक्खा और दरिया एक तरफ़
Read more

Barso purana dost Mila jaise gair ho..

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो
Read more

us ke nazdik gham-e-tark-e-wafa kuch bhi nahin..

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं
मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं

अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं

चार दिन रह गए मेले में मगर अब के भी
उस ने आने के लिए ख़त में लिखा कुछ भी नहीं

कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाँध
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं

मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बने
तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं

ऐ 'शुमार' आँखें इसी तरह बिछाए रखना
जाने किस वक़्त वो आ जाए पता कुछ भी नहीं

-----------------------------------

us ke nazdik gham-e-tark-e-vafa kuchh bhi nahin
mutma.in aisa hai vo jaise hua kuchh bhi nahin

ab to hathon se lakiren bhi miTi jaati hain
us ko kho kar to mire paas raha kuchh bhi nahin

chaar din rah ga.e mele men magar ab ke bhi
us ne aane ke liye ḳhat men likha kuchh bhi nahin

kal bichhaḌna hai to phir ahd-e-vafa soch ke bandh
abhi aghaz-e-mohabbat hai gaya kuchh bhi nahin

main to is vaste chup huun ki tamasha na bane
tu samajhta hai mujhe tujh se gila kuchh bhi nahin

ai ‘shumar’ ankhen isi tarah bichha.e rakhna
jaane kis vaqt vo aa jaa.e pata kuchh bhi nahin
Read more

tum apna ranj-o-ghum apni pareshaani mujhe de do..

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो

-------------------------------------

tum apanaa ra.nj-o-Gam, apani pareshaan mujhe de do 
tumhe.n gham kii qasam, is dil kI virAni mujhe de do

ye maanaa mai.n kisii qaabil nahii.n huu.N in nigaaho.n me.n
buraa kyaa hai agar, ye dukh ye hairaani mujhe de do

mai.n dekhuu.n to sahii, duniyaa tumhe.n kaise sataati hai 
koi din ke liye, apni nigahabaani mujhe de do

vo dil jo maine maa.ngaa thaa magar gairo.n ne paayaa
ba.Dk shai hai agar, usaki pashemaani mujhe de do
Read more

phone to dur waha khat bhi nahi pahuchenge..

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे

ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर
आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे

मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा
और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे

हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे

तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने
ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे

सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा
हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे
Read more


RELATED POSTS

Murshid please aaj mujhe waqt deejie..

murshid
murshid please aaj mujhe waqt deejie
murshid main aaj aap ko dukhde sunaaunga
murshid hamaare saath bada zulm ho gaya
murshid hamaare desh mein ik jang chhid gayi
murshid sabhi shareef sharaafat se mar gaye
murshid hamaare zehan girftaar ho gaye
murshid hamaari soch bhi baazaari ho gayi
murshid hamaari fauj kya ladti hareef se
murshid use to ham se hi furqat nahin mili
murshid bahut se maar ke ham khud bhi mar gaye
murshid hamein zirh nahin talwaar di gayi
murshid hamaari zaat pe bohtan chad gaye
murshid hamaari zaat palandon mein dab gayi
murshid hamaare vaaste bas ek shakhs tha
murshid vo ek shakhs bhi taqdeer le udri
murshid khuda ki zaat pe andha yaqeen tha
afsos ab yaqeen bhi andha nahin raha
murshid mohabbaton ke nataaij kahaan gaye
murshid meri to zindagi barbaad ho gayi
murshid hamaare gaav ke bacchon ne bhi kaha
murshid koon aakhi aa ke sada haal dekh wajan
murshid hamaara koi nahin ek aap hain
ye main bhi jaanta hoon ke achha nahin hua
murshid main jal raha hoon hawaaein na deejie
murshid azala keejiye duaaein na deejie
murshid khamosh rah ke pareshaan na keejiye
murshid main rona rote hue andha ho gaya
aur aap hain ke aap ko ehsaas tak nahin
hah sabr kijeye sabr ka fal meetha hota hai
murshid main bhonkdai haan jo kai she vi nahin bachi
murshid wahaan yazidiyat aage nikal gayi
aur paarsa namaaz ke peeche pade rahe
murshid kisi ke haath mein sab kuchh to hai magar
murshid kisi ke haath mein kuchh bhi nahin raha
murshid main lad nahin saka par cheekhta raha
khaamosh rah ke zulm ka haami nahin bana
murshid jo mere yaar bhala chhodein rahne den
achhe the jaise bhi the khuda un ko khush rakhen
murshid hamaari raunakein doori nigal gayi
murshid hamaari dosti subhaat kha gaye
murshid ai photo pichhle maheene chhikaya ham
hoon mekun dekh lagda ai jo ai photo meda ai
ye kis ne khel khel mein sab kuchh ult diya
murshid ye kya ke mar ke hamein zindagi mile
murshid hamaare virse mein kuchh bhi nahin so ham
bemausmi wafaat ka dukh chhod jaayenge
murshid kisi ki zaat se koi gila nahin
apna naseeb apni kharaabi se mar gaya
murshid vo jis ke haath mein har ek cheez hai
shaayad hamaare saath wahi haath kar gaya
murshid duaaein chhod tera pol khul gaya
tu bhi meri tarah hai tere bas mein kuchh nahin
insaan mera dard samajh sakte hi nahin
main apne saare zakhm khuda ko dikhaaunga
ai rabbe kaaynaat idhar dekh main fakeer
jo teri sarparasti mein barbaad ho gaya
parvardigaar bol kahaan jaayen tere log
tujh tak pahunchne ko bhi wasila zaroori hai
parvardigaar aave ka aawa bigad gaya
ye kisko tere deen ke theke diye gaye
har shakhs apne baap ke firke mein band hai
parvardigaar tere sahife nahin khule
kuchh aur bhej tere guzishta sahifon se
maqsad hi hal hue hain masaail nahin hue
jo ho gaya so ho gaya ab mukhtiyaari cheen
parvardigaar apne khaleefe ko rassi daal
jo tere paas waqt se pehle pahunch gaye
parvardigaar unke masaail ka hal nikaal
parvardigaar sirf bana dena kaafi nain
takhleeq karke de to phir dekhbhaal kar
ham log teri kun ka bharam rakhne aaye hain
parvardigaar yaar hamaara khayal kar
------------------------------------------
मुर्शिद
मुर्शिद प्लीज़ आज मुझे वक़्त दीजिये
मुर्शिद मैं आज आप को दुखड़े सुनाऊँगा
मुर्शिद हमारे साथ बड़ा ज़ुल्म हो गया
मुर्शिद हमारे देश में इक जंग छिड़ गयी
मुर्शिद सभी शरीफ़ शराफ़त से मर गए
मुर्शिद हमारे ज़ेहन गिरफ़्तार हो गए
मुर्शिद हमारी सोच भी बाज़ारी हो गयी
मुर्शिद हमारी फौज क्या लड़ती हरीफ़ से
मुर्शिद उसे तो हम से ही फ़ुर्सत नहीं मिली
मुर्शिद बहुत से मार के हम ख़ुद भी मर गए
मुर्शिद हमें ज़िरह नहीं तलवार दी गयी
मुर्शिद हमारी ज़ात पे बोहतान चढ़ गए
मुर्शिद हमारी ज़ात पलांदों में दब गयी
मुर्शिद हमारे वास्ते बस एक शख़्स था
मुर्शिद वो एक शख़्स भी तक़दीर ले उड़ी
मुर्शिद ख़ुदा की ज़ात पे अंधा यक़ीन था
अफ़्सोस अब यक़ीन भी अंधा नहीं रहा
मुर्शिद मुहब्बतों के नताइज कहाँ गए
मुर्शिद मेरी तो ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी
मुर्शिद हमारे गाँव के बच्चों ने भी कहा
मुर्शिद कूँ आखि आ के सदा हाल देख वजं
मुर्शिद हमारा कोई नहीं एक आप हैं
ये मैं भी जानता हूँ के अच्छा नहीं हुआ
मुर्शिद मैं जल रहा हूँ हवाएँ न दीजिये
मुर्शिद अज़ाला कीजिये दुआएँ न दीजिये
मुर्शिद ख़मोश रह के परेशाँ न कीजिये
मुर्शिद मैं रोना रोते हुए अंधा हो गया
और आप हैं के आप को एहसास तक नहीं
हह! सब्र कीजे सब्र का फ़ल मीठा होता है
मुर्शिद मैं भौंकदै हाँ जो कई शे वि नहीं बची
मुर्शिद वहां यज़ीदियत आगे निकल गयी
और पारसा नमाज़ के पीछे पड़े रहे
मुर्शिद किसी के हाथ में सब कुछ तो है मगर
मुर्शिद किसी के हाथ में कुछ भी नहीं रहा
मुर्शिद मैं लड़ नहीं सका पर चीख़ता रहा
ख़ामोश रह के ज़ुल्म का हामी नहीं बना
मुर्शिद जो मेरे यार भला छोड़ें रहने दें
अच्छे थे जैसे भी थे ख़ुदा उन को ख़ुश रखें
मुर्शिद हमारी रौनकें दूरी निगल गयी
मुर्शिद हमारी दोस्ती सुब्हात खा गए
मुर्शिद ऐ फोटो पिछले महीने छिकाया हम
हूँ मेकुं देख लगदा ऐ जो ऐ फोटो मेदा ऐ
ये किस ने खेल खेल में सब कुछ उलट दिया
मुर्शिद ये क्या के मर के हमें ज़िन्दगी मिले
मुर्शिद हमारे विरसे में कुछ भी नहीं सो हम
बेमौसमी वफ़ात का दुख छोड़ जाएंगे
मुर्शिद किसी की ज़ात से कोई गिला नहीं
अपना नसीब अपनी ख़राबी से मर गया
मुर्शिद वो जिस के हाथ में हर एक चीज़ है
शायद हमारे साथ वही हाथ कर गया
मुर्शिद दुआएँ छोड़ तेरा पोल खुल गया
तू भी मेरी तरह है तेरे बस में कुछ नहीं
इंसान मेरा दर्द समझ सकते ही नहीं
मैं अपने सारे ज़ख्म ख़ुदा को दिखाऊँगा
ऐ रब्बे कायनात! इधर देख मैं फ़कीर
जो तेरी सरपरस्ती में बर्बाद हो गया
परवरदिगार बोल कहाँ जाएँ तेरे लोग
तुझ तक पहुँचने को भी वसीला ज़रूरी है
परवरदिगार आवे का आवा बिगड़ गया
ये किसको तेरे दीन के ठेके दिए गये
हर शख़्स अपने बाप के फिरके में बंद है
परवरदिगार तेरे सहीफे नहीं खुले
कुछ और भेज तेरे गुज़िश्ता सहीफों से
मक़सद ही हल हुए हैं मसाइल नहीं हुए
जो हो गया सो हो गया, अब मुख़्तियारी छीन
परवरदिगार अपने ख़लीफे को रस्सी डाल
जो तेरे पास वक़्त से पहले पहुँच गये
परवरदिगार उनके मसाइल का हल निकाल
परवरदिगार सिर्फ़ बना देना काफ़ी नइँ
तख़्लीक करके दे तो फिर देखभाल कर
हम लोग तेरी कुन का भरम रखने आए हैं
परवरदिगार यार! हमारा ख़याल कर
Read more

Jo bhi izzat ke dar se dar jaaye..

jo bhi izzat ke dar se dar jaaye
mat kare ishq apne ghar jaaye

baat aa jaaye jab duao par
isse behtar hai banda mar jaaye

thodi si aur der saamne rah
meri aankhon ka pet bhar jaaye

al muhaimin ke ghar bhi khatre hai
jaaye bhi to koi kidhar jaaye

haan aqeeda agar na kaid rakhe
phir to insaan kuchh bhi kar jaaye

bebaasi ki ye aakhiri had hai
meri aulaad aap par jaaye

uske chehre par aaj udaasi thi
haay afkaar alvee mar jaaye
------------------------------
जो भी इज़्ज़त के डर से डर जाए
मत करे इश्क़ अपने घर जाए

बात आ जाये जब दुआओं पर
इससे बेहतर है बंदा मर जाए

थोड़ी सी और देर सामने रह
मेरी आँखों का पेट भर जाए

अल-मुहैमिन के घर भी खतरे हैं
जाए भी तो कोई किधर जाए

हाँ अकीदा अगर न क़ैद रखे
फिर तो इंसान कुछ भी कर जाए

बेबसी की ये आख़िरी हद है
मेरी औलाद आप पर जाए

उसके चेहरे पर आज उदासी थी
हाए 'अफ़्कार अल्वी' मर जाए
Read more

Chaarpaai pe aa utaari hai..

chaarpaai pe aa utaari hai
zindagi jinda laash bhari hai

aap dukh de rahe hai ro raha hun
aur ye filhaal jaari hai

rona likha gaya rote hai
zimmedaari to zimmedaari hai

meri marji jahaan bhi sarf karu
zindagi meri hai tumhaari hai

dushmani ke hazaaro darje hai
aakhiri darja rishtaadaari hai
----------------------------------
चारपाई पे आ उतारी है
जिंदगी जिंदा लाश भारी है

आप दुख दे रहे है रो रहा हुँ
और ये फिलहाल जारी है

रोना लिखा गया रोते है
जिम्मेदारी तो जिम्मेदारी है

मेरी मर्जी जहाँ भी सर्फ़ करु
जिंदगी मेरी है, तुम्हारी है

दुश्मनी के हजारो दर्जे है
आखिरी दर्जा रिशतादारी है
Read more

Is se pehle ki tujhe aur sahaara na mile..

is se pehle ki tujhe aur sahaara na mile
main tire saath hoon jab tak mere jaisa na mile

kam se kam badle me jannat use de di jaaye
jis mohabbat ke girftaar ko sehraa na mile

log kahte hai ke ham log bure aadmi hai
log bhi aise jinhone hame dekha na mile

bas yahi kah ke use maine khuda ko saunpa
ittefaakan kahi mil jaaye to rota na mile

baddua hai ke wahan aaye jahaan baithe the
aur afkaar wahan aapko baitha na mile 
----------------------------------------
इस से पहले कि तुझे और सहारा न मिले
मैं तिरे साथ हूँ जब तक मिरे जैसा न मिले

कम से कम बदले मे जन्नत उसे दे दी जाये
जिस मोहब्बत के गिरफ्तार को सेहरा ना मिले

लोग कहते है के हम लोग बुरे आदमी है
लोग भी ऐसे जिन्होने हमे देखा ना मिले

बस यही कह के उसे मैने खुदा को सौंपा
इत्तेफाकन कही मिल जाये तो रोता ना मिले

बद्दुआ है के वहाँ आये जहाँ बैठते थे
और ‘अफ्कार’ वहाँ आपको बैठा ना मिले

Read more

kaun kehta hai faqat khauf-e-azal deta hai..

kaun kehta hai faqat khauf-e-azal deta hai
zulm to zulm hai eimaan badal deta hai

bebaasi mazhabi insaan bana deti hai
maan lete hain khuda sabr ka fal deta hai

vo bakheel aaj bhi daata hai bhale waqt na de
main use yaad bhi kar luun to ghazal deta hai

uski koshish hai ki vo apni kashish baqi rakhe
mere jazbaat machalte hain to chal deta hai

khaali bartan hi khanakta hai tabhi aadmi bhi
ghaas mat daalo to auqaat ugal deta hai

ham ko mehnat pe hi milna hai agar khuld mein chain
ye to ghar baithe-bithaaye hamein thal deta hai

zehan mein aur koi dukh nahin rehta afkaar
jitne bal bande ko vo zulf ka bal deta hai 
---------------------------------------
कौन कहता है फ़क़त ख़ौफ़-ए-अज़ल देता है
ज़ुल्म तो ज़ुल्म है, ईमान बदल देता है

बेबसी मज़हबी इंसान बना देती है
मान लेते हैं ख़ुदा सब्र का फल देता है

वो बख़ील आज भी दाता है, भले वक़्त न दे
मैं उसे याद भी कर लूँ तो ग़ज़ल देता है

उसकी कोशिश है कि वो अपनी कशिश बाक़ी रखे
मेरे जज़्बात मचलते हैं तो चल देता है

खाली बर्तन ही खनकता है, तभी आदमी भी
घास मत डालो तो औक़ात उगल देता है

हम को मेहनत पे ही मिलना है अगर ख़ुल्द में चैन
ये तो घर बैठे-बिठाये हमें थल देता है

ज़ेहन में और कोई दुख नहीं रहता 'अफ़कार'
जितने बल बंदे को वो ज़ुल्फ़ का बल देता है
Read more

hijr mein khud ko tasalli di kaha kuchh bhi nahin..

hijr mein khud ko tasalli di kaha kuchh bhi nahin
dil magar hansne laga aaya bada kuchh bhi nahin

ham agar sabr mein rahte hain to kya kuchh bhi nahin
jaane waalo kabhi aa dekho bacha kuchh bhi nahin

be-dili yun hi ki rab koi maseeha bheje
ham maseeha se bhi kah denge o ja kuchh bhi nahin

dekhe bin ishq hua dekhe bina door huye
itna kuchh ho bhi gaya aur hua kuchh bhi nahin

saste aabid na banen lat ko ibadat na kahein
aashiqi lazzat-o-zillat ke siva kuchh bhi nahin

main tere baad musallii pe bahut rota raha
aur kaha yaar khuda khair bhala kuchh bhi nahin

ishq mardaana tabiyat nahin rakhta afkaar
varna ye husn-o-jamaal aur ada kuchh bhi nahin
-------------------------------------------
हिज्र में ख़ुद को तसल्ली दी, कहा कुछ भी नहीं
दिल मगर हँसने लगा, आया बड़ा कुछ भी नहीं

हम अगर सब्र में रहते हैं तो क्या कुछ भी नहीं
जाने वालो! कभी आ देखो, बचा कुछ भी नहीं

बे-दिली यूँ ही कि रब कोई मसीहा भेजे
हम मसीहा से भी कह देंगे, ओ जा! कुछ भी नहीं

देखे बिन इश्क़ हुआ, देखे बिना दूर हुये
इतना कुछ हो भी गया और हुआ कुछ भी नहीं

सस्ते आबिद न बनें, लत को इबादत न कहें
आशिक़ी लज़्ज़त-ओ-ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं

मैं तेरे बाद मुसल्ली पे बहुत रोता रहा
और कहा, यार ख़ुदा! ख़ैर भला कुछ भी नहीं

इश्क़ मरदाना तबियत नहीं रखता 'अफ़कार'!
वरना ये हुस्न-ओ-जमाल और अदा कुछ भी नहीं
Read more

subh hone lagi hai..

subh hone lagi hai
magar apne bistar men vo be-ḳhabar ab bhi be-sudh padi hai

use kya ḳhabar hai
ki do laakh salon se chalti hui

andromeda ke kuchh surajon ki shuaen
zamin par pahnch kar hamari shuaon men shamil hui hain

to is subh ka chehra raushan hua hai
ye do laakh salon Ka lamba safar

jis men ham sapiens
jangalon ke andheron men badhte hue

apne cousinon ki qismat ke rab ban gae
un se itna lade

un ki napaidgi ka sabab ban gae
itne salon men ham

ghaar se jhonpdi jhonpdi se qabilon ki surat bate
aur qabilon se shahron men Dhalne lage hain

ye do laakh salon se nikli hui raushni apne suraj men aa kar mili hai
to duniya Ki ain us jagah par jahan is ka ghar hai

vahan
subh banne lagi hai

zamin par kisi din ki pahli ghadi hai
zamin ghuum kar apne baaba ki janib mudi hai

magar apne bistar men vo be-ḳhabar ab bhi be-sudh padi hai
-------------------------------------------------------------
सुबह होने लगी है
मगर अपने बिस्तर में वो बे-खबर अब भी बे-सुध पड़ी है

उसे क्या ख़बर है
कि दो लाख सालों से चलती हुई

एंड्रोमेडा के कुछ सूरजों की शुआएं
ज़मीन पर पहुँच कर हमारी शुआओं में शामिल हुई हैं

तो इस सुबह का चेहरा रोशन हुआ है
ये दो लाख सालों का लंबा सफ़र

जिसमें हम सैपियंस
जंगलों के अंधेरों में बढ़ते हुए

अपने क़ुसीनों की क़िस्मत के रब बन गए
उनसे इतना लड़े

उनकी नापैदगी का सबब बन गए
इतने सालों में हम

घार से झोपड़ी, झोपड़ी से क़बीलों की सूरत बदलते
और क़बीलों से शहरों में ढलने लगे हैं

ये दो लाख सालों से निकली हुई रोशनी अपने सूरज में आ कर मिली है
तो दुनिया की आयन उस जगह पर जहाँ इसका घर है

वहाँ
सुबह बनने लगी है

ज़मीन पर किसी दिन की पहली घड़ी है
ज़मीन घूम कर अपने बाबाओं की तरफ़ मुड़ी है

मगर अपने बिस्तर में वो बे-खबर अब भी बे-सुध पड़ी है
Read more

raat jaagi to kahin sahn men sukhe patte..

raat jaagi to kahin sahn men sukhe patte
charmurae ki koi aaya koi aaya hai

aur ham shauq ke maare hue daude aae
go ki malum hai tu hai na tira saaya hai

ham ki dekhen kabhi dalan kabhi sukha chaman
us pe dhimi si tamanna ki pukare jaaen

phir se ik baar tiri ḳhvab si ankhen dekhen
phir tire hijr ke hathon hi bhale maare jaaen

ham tujhe apni sadaon men basane vaale
itna chiḳhen ki tire vahm lipat kar roen

par tire vahm bhi teri hi tarah qatil hain
so vahi dard hai janan kaho kaise soen

bas isi karb ke pahlu men guzare hain pahar
bas yunhi gham kabhi kaafi kabhi thode aae

phir achanak kisi lamhe men jo chatḳhe patte
ham vahi shauq ke maare hue daude aae
-------------------------------------------
रात जागी तो कहीं आँगन में सूखे पत्ते
चरमराहट की कोई आया, कोई आया है

और हम शौक़ के मारे हुए दौड़े आए
गो कि मालूम है तू है ना तेरा साया है

हम की देखें कभी डालान, कभी सूखा चमन
उस पे धीमी सी तमन्ना की पुकारे जाएं

फिर से एक बार तिरी ख़्वाब सी आँखें देखें
फिर तिरे हिज्र के हाथों ही भले मारे जाएं

हम तुझे अपनी सदाओं में बसाने वाले
इतना चीखें कि तेरा वहम लिपट कर रोएं

पर तिरे वहम भी तिरी ही तरह क़ातिल हैं
सो वही दर्द है, जानां कहो कैसे सोएं

बस इसी कर्ब के पहलू में गुज़ारे हैं पहर
बस यूँ ही ग़म कभी काफी, कभी थोड़े आए

फिर अचानक किसी लम्हे में जो चटकते पत्ते
हम वही शौक़ के मारे हुए दौड़े आए

Read more

main ik devta-e-ana..

main ik devta-e-ana
nargisiyyat ka maara hua

aur azal se takabbur men Duuba hua
kaafi ḳhud-sar huun

ziddi huun maghrur huun
mere charon taraf meri andhi ana Ki vo divar hai

jis men aane Ki aur mujh se milne ki ghulne ki koi ijazat kisi ko nahin hai
tumhen bhi nahin hai

use bhi nahin hai
mujhe bhi nahin hai

main apni ana ki divaron men tum se alag ho rahun
mujh pe sajta bhi hai ye

main shair huun jo ki faulun faulun se bahr-e-ramal tak
har ik naghmagi ka mukammal ḳhuda huun

main lafzon ka aaqa
taḳhayyul ka ḳhaliq

main saare zamane se yaksar juda huun
mujhe zeb deta hai main apni divar men is tarah se muqayyad rahun

yunhi sayyad rahun
mujh pe sajta hai ye

par jo kal shab tire shabnami se tabassum men lipti hui

ik nazar be-niyazi se mujh par padi
teri pahli nazar se miri jan-e-jan

meri divar men ik gadha par pad gaya
aur ye hī nahīñ mujh pe vo hī nazar

jab dobara dobara dobara padi
meri divar men zalzale aa gae

aur raḳhne shagafon men Dhalne lage
mere andar talatum vo atish-fishan

vo bagule vo tufan vo mahshar bapa tha
ki main vo ki jis ke tahammul ki hikmat ki

fahm-o-latafat ki tamsil shayad kahin bhi nahin thi
sulagne laga

apni hiddat se ḳhud hi pighalne laga
tujh se kahna tha ye ki miri jan-e-jan

har sitare ki apni kashish hogi lekin
ḳhalaon men murda sitaron Ki qismat

vo hawking ki theory ke kaale gadhe
vo vahi vo ki jin men hai itni kashish ki makan to makan

vo zaman ko bhi apne lapete men le len
vo hawking ki theory ke kaale gadhon ki gravity bhi

ter ankhon Ki gahri kashish ke muqabil men kuchh bhi nahin
aur ye to faqat ek divar thi

is ko girna hi tha
teri nazron se haari hai bikhri padi hai

ki divar ka reza-reza tiri ik nazar se miri jaan
ujda pada hai

main jo devta-e-ana nargisiyyat ka maara hua vo jo ḳhud-sar tha
ziddi tha maghrur tha

jo faulun faulun se bahr-e-ramal tak har ik naghmagi ka mukammal ḳhuda tha
tiri ik nazar se anaon ke arsh-e-muaalla se sidha tire paanv men aa ke

bikhra pada hai
----------------------------------------------------------------------
मैं एक देवता-ए-अना
नरगिसियत का मारा हुआ

और अज़ल से तकब्बुर में डूबा हुआ
काफी खुदसर हूँ

ज़िद्दी हूँ, मग़रूर हूँ
मेरे चारों तरफ़ मेरी अंधी अना की वो दीवार है

जिसमें आने की और मुझसे मिलने की, घुलने की कोई इजाज़त किसी को नहीं है
तुम्हें भी नहीं है

उससे भी नहीं है
मुझे भी नहीं है

मैं अपनी अना की दीवारों में तुमसे अलग हो रहा हूँ
मुझ पे सजता भी है ये

मैं शायर हूँ जो कि फूलों-फूलों से बहरे-रेमल तक
हर एक नगमगी का मुकम्मल ख़ुदा हूँ

मैं शब्दों का आका
तकललुल का ख़ालिक़

मैं सारे ज़माने से यकसर जुदा हूँ
मुझे ज़े़ब देता है मैं अपनी दीवार में इस तरह से मुक़य्यद रहूँ

यूँही सैयद रहूँ
मुझ पे सजता है ये

पर जो कल रात तिरे शबनमी से तबस्सुम में लिपटी हुई

एक नज़र बे-नियाज़ी से मुझ पर पड़ी
तेरी पहली नज़र से मेरी जान-ए-जाँ

मेरी दीवार में एक गढ़ा पर पड़ी
और ये ही नहीं है मुझ पे वो ही नज़र

जब दोबारा दोबारा दोबारा पड़ी
मेरी दीवार में ज़लज़ले आ गए

और रहने शगाफ़ों में ढलने लगे
मेरे अंदर हलचल वो आतिश-फिशां

वो बग़ूले, वो तूफ़ान, वो महशर बपा था
कि मैं वो था जिसके तहम्मुल की हिकमत की

फहम-ओ-लाताफ़त की तम्सील शायद कहीं भी नहीं थी
सुलगने लगा

अपनी हिद्दत से खुद ही पिघलने लगा
तुझसे कहना था ये कि मेरी जान-ए-जाँ

हर सितारे की अपनी खींच होगी लेकिन
ख़लाओं में मुरदा सितारों की क़िस्मत

वो हॉकिंग की थ्योरी के काले गढ़े
वो वही वो कि जिनमें है इतनी खींच कि मकाँ तो मकाँ

वो ज़माँ को भी अपने लपेटे में ले ले
वो हॉकिंग की थ्योरी के काले गढ़ों की ग्रैविटी भी

तेरी आँखों की गहरी खींच के मुक़ाबिल में कुछ भी नहीं
और ये तो फ़कत एक दीवार थी

इसको गिरना ही था
तेरी नज़रों से हारि है बिखरी पड़ी है

कि दीवार का रेजा-रेजा तिरी एक नज़र से मेरी जान
उजड़ा पड़ा है

मैं जो देवता-ए-अना, नरगिसियत का मारा हुआ, वो जो खुदसर था
ज़िद्दी था, मग़रूर था

जो फूलों-फूलों से बहरे-रेमल तक हर एक नगमगी का मुकम्मल ख़ुदा था
तिरी एक नज़र से अनाओं के अर्शे-मुअल्ला से सीधा तिरे पाँव में आ के

बिखरा पड़ा है

Read more

jahan men iztirab hai..

jahan men iztirab hai
nahin nahin
jahan hi iztirab hai

hazar-ha kavakib-o-nujum-ha-e-kahkashan se
atomon ki kokh tak

madar-dar-madar har vajud be-qarar hai
ye mehr-o-mah o mushtari se har electron tak

ye jhuum jhuum ghumne men jis tarah ka raqs hai
mujhe samajh men aa gaya

jahan tera aks hai
vo aks jo jagah jagah qadam qadam rythm pe hai

jahan ain sur men hai jahan ain sum pe hai
jahan tarannumon ki list men se intiḳhab hai

jo tujh hasin dimagh ke hasin la-shuur men bana ho
aisa ḳhvab hai

jahan iztirab hai
mujhe samajh men aa gaya hai ye jahan

ḳhala makan zaman ke chand taar se bana hua sitar hai
use kaho kisi tarah sitar chhedti rahe

use kaho ki thodi der aur bolti rahe
----------------------------------------
जहाँ में इज़्तिराब है
नहीं नहीं
जहाँ ही इज़्तिराब है

हज़ार-हां क़वाक़िब-ओ-नुजूम-हां-ए-कहकशां से
एटमों की कोख तक

मदार-दर-मदार हर वजूद बे-करार है
ये महर-ओ-मा-ओ-मुश्तरी से हर इलेक्ट्रॉन तक

ये झूम झूम घूमने में जिस तरह का रक़्स है
मुझे समझ में आ गया

जहाँ तेरा अक्स है
वो अक्स जो जगह जगह क़दम क़दम रिदम पे है

जहाँ आइं सुर में है जहाँ आइं सुम में है
जहाँ तरन्नुमों की लिस्ट में से इंतिख़ाब है

जो तुझ हसीं दिमाग़ के हसीं लाश-ऊर में बना हो
ऐसा ख़्वाब है

जहाँ इज़्तिराब है
मुझे समझ में आ गया है ये जहाँ

ख़ला मकान ज़माँ के चाँद तारों से बना हुआ सितार है
उसे कहो किसी तरह सितार छेड़ती रहे

उसे कहो कि थोड़ी देर और बोलती रहे

Read more

main musavvir huun..

main musavvir huun
par tujh se nadim huun main

ki tire tujh se ḳhake banane Ki main
ab talak ye ikkavanvin koshish bhi puuri nahin kar saka huun

ye meri mohabbat ka gahra taassub bhi ho sakta hai
par ye afaqiyat kaenati mohabbat ka radd-e-amal hai

ki ḳhakon men main teri ankhon pe salon se atka hua huun
ajab ek uljhan hai

ankhen banaun ya rahne hi duun
tere ḳhake men main tere chehre ke azlat ko khinch kar

vo tira ik tabassum banane ki koshish ko puura agar kar bhi luun
par jo tujh men zamanon ki tahzib ki ik kahani buni hai

tire la-shuuri ravayyon men arbon baras ke hasin irtiqa ka
vo jo ik fasana

D n a ki bases men tartib pa kar
tujhe to banata hai vo ik fasana

vo ḳhakon men aḳhir ko kaise sunaun
ai vajh-e-suḳhan

jan-o-rang-e-ghazal
kaenati mohabbat ka radd-e-amal

ai udasi ke hone men vahid ḳhalal
tujh se nadim huun main

mere vahm-o-guman men qalam men mire aur qirtas men
tera hona musalsal nahin ho raha

meri bavanvin koshish men bhi ab talak
tera ḳhaka mukammal nahin ho raha
----------------------------------------
मैं मुसव्विर हूँ
पर तुझ से नादिम हूँ मैं

कि तिरे तुझ से खाके बनाने की मैं
अब तक ये इकतालीसवीं कोशिश भी पूरी नहीं कर सका हूँ

ये मेरी मोहब्बत का गहरा तअस्सुब भी हो सकता है
पर ये आफ़ाकियत का इंतिहाई मोहब्बत का रद्द-ए-अमल है

कि खाकों में मैं तेरी आँखों पे सालों से अटका हुआ हूँ
अजब एक उलझन है

आँखें बनाऊँ या रहने ही दूँ
तेरे खाके में मैं तेरे चेहरे के अज़लात को खींच कर

वो तिरा इक तबस्सुम बनाने की कोशिश को पूरा अगर कर भी लूँ
पर जो तुझ में ज़माने की तहज़ीब की एक कहानी बनी है

तेरे लाश-ऊरी रिवायतों में अरबों बरस के हसीं इर्तिक़ा का
वो जो इक फ़साना

डी. एन. ए. की बेसिस में तरतीब पाकर
तुझे तो बनाता है वो इक फ़साना

वो खाकों में आखिर को कैसे सुनाऊँ
ऐ वजह-ए-सुख़न

जान-ओ-रंग-ए-ग़ज़ल
का.ए.नाती मोहब्बत का रद्द-ए-अमल

ऐ उदासी के होने में वाहीद ख़लल
तुझ से नादिम हूँ मैं

मेरे वहम-ओ-गुमान में क़लम में मेरे और क़िरतास में
तेरा होना मुसलसल नहीं हो रहा

मेरी बावनवीं कोशिश में भी अब तक
तेरा खाका मुकम्मल नहीं हो रहा

Read more

us ki ḳhvahish ka Izhar..

us ki ḳhvahish ka Izhar
maasum had tak rivayat ki bandish men uljha hua tha

ki main us ke hathon pe mehndi lagaun
magar shaeri ek devi hai jis ki jalan ko

kabhi likhne valon ke hathon pe itna taras hi nahin aa saka hai
ki baghi dimaghon men bhi aam raston ki taqlid bharti

ya hathon ki jumbish ḳhirad ke tasallut se azad karti
mire haath bhi zehn men ghumte kuchh savalon ke sanche banane lage

us ke hathon pe mehndi se atom ke model banane lage
aur model bhi aise jo matruk the

jis men zarra bahut duur se ghumta jhumta daera daera
rafta rafta kisi markaze ki taraf gamzan

bas tasalsul se badhti hui ik kashish ke asar men rahe
ik yaqini fana ke safar men rahe

sal-ha-sal chizen badalti gaiin
vaqt ne dard ke jo bhi lyrics likhe un ko gaana pada

jaane kaise magar
us ko jaana pada

main ne vaise to ye umr bhar sochna hi nahin tha
magar shaeri ek devi jalan

nostalgic zamanon ki tasvir logic ke kuchh masale
pūchhne lag ga.e haiñ

bhala aisa jahil kahan par milega
ki jo kimiya padh ke bhi

ik taalluq men pahle to zarra bane
aur nibhate hue

dynamics ke vo hi matruk model chune
aur tasalsul se badhti hui ik kashish ke asar men rahe

ik yaqini fana ke safar men rahe
------------------------------------------------------------
उस की ख़्वाहिश का इज़हार
मासूम हद तक रिवायत की बंदिश में उलझा हुआ था

कि मैं उसके हाथों पे मेहंदी लगाूँ
मगर शायरी एक देवी है जिसकी जलन को

कभी लिखने वालों के हाथों पे इतना तरस ही नहीं आ सका है
कि बागी दिमागों में भी आम रास्तों की तकीलीद भरती

या हाथों की हलचल, ख़िरद के तसल्सुल से आज़ाद करती
मेरे हाथ भी ज़हन में घूमते कुछ सवालों के साँचे बनाने लगे

उस के हाथों पे मेहंदी से एटम के मॉडल बनाने लगे
और मॉडल भी ऐसे जो मत्रूक थे

जिसमें ज़र्रा बहुत दूर से घूमता झूमता दायरा दायरा
रफ्ता रफ्ता किसी केंद्र की तरफ ग़मज़न

बस तसल्सुल से बढ़ती हुई एक ख़ीशिश के असर में रहे
एक यक़ीनी फ़ना के सफ़र में रहे

सालों साल चीजें बदलती गईं
वक़्त ने दर्द के जो भी लिरिक्स लिखे उन को गाना पड़ा

जाने कैसे मगर
उस को जाना पड़ा

मैंने वैसे तो ये उम्र भर सोचना ही नहीं था
मगर शायरी एक देवी जलन

नॉस्टाल्जिक ज़मानों की तस्वीरे, लॉजिक के कुछ मसले
पूछने लग गए हैं

भला ऐसा जाहिल कहाँ पर मिलेगा
कि जो कीमिया पढ़ के भी

एक तअल्लुक़ में पहले तो ज़र्रा बने
और निभाते हुए

डायनेमिक्स के वो ही मत्रूक मॉडल चुने
और तसल्सुल से बढ़ती हुई एक ख़ीशिश के असर में रहे

एक यक़ीनी फ़ना के सफ़र में रहे

Read more

Aisi shadeed roshni mein jal marunga main,..

Aisi shadeed roshni mein jal marunga main,
Itne haseen shakhs ko kaise sahunga main?

Mujhse mera wajood to sabit nahi hua,
Tu aankh bhar ke dekh le, hone lagunga main.

Main maykade se door hoon par daayre mein hoon,
Zinda raha to tere gale aa lagunga main.

Main wo ajeeb shakhs hoon ki chand roz tak,
Paagal na kar saka to use maar dunga main.
-------------------------------------------
ऐसी शदीद रोशनी में जल मरूंगा मैं,
इतने हसीन शख्स को कैसे सहूंगा मैं?

मुझसे मेरा वजूद तो साबित नहीं हुआ,
तू आँख भर के देख ले, होने लगूंगा मैं।

मैं मयकदे से दूर हूँ पर दायरे में हूँ,
जिंदा रहा तो तेरे गले आ लगूंगा मैं।

मैं वो अजीब शख्स हूँ कि चंद रोज़ तक,
पागल न कर सका तो उसे मार दूंगा मैं।

Read more

ishq main ne likh daala qaumiyat ke khaane mein..

ishq main ne likh daala qaumiyat ke khaane mein
aur tera dil likha shehriyat ke khaane mein

mujh ko tajarbo ne hi baap ban ke paala hai
sochta hoon kya likhoon valdiyat ke khaane mein

mera saath deti hai mere saath rahti hai
main ne likha tanhaai zaujiyat ke khaane mein

doston se ja kar jab mashwara kiya to phir
main ne kuchh nahin likha haisiyat ke khaane mein

imtihaan mohabbat ka paas kar liya main ne
ab yahi main likhoonga ahliyat ke khaane mein

jab se aap mere hain fakhr se main likhta hoon
naam aap ka apni milkayat ke khaane mein 
---------------------------------------
इश्क़ मैं ने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में
और तेरा दिल लिखा शहरियत के ख़ाने में

मुझ को तजरबों ने ही बाप बन के पाला है
सोचता हूँ क्या लिखूँ वलदियत के ख़ाने में

मेरा साथ देती है मेरे साथ रहती है
मैं ने लिखा तन्हाई ज़ाैजियत के ख़ाने में

दोस्तों से जा कर जब मशवरा किया तो फिर
मैं ने कुछ नहीं लिखा हैसियत के ख़ाने में

इम्तिहाँ मोहब्बत का पास कर लिया मैं ने
अब यही मैं लिखूँगा अहलियत के ख़ाने में

जब से आप मेरे हैं फ़ख़्र से मैं लिखता हूँ
नाम आप का अपनी मिलकियत के ख़ाने में

Read more

bajaae koi shehnai mujhe achha nahin lagta..

bajaae koi shehnai mujhe achha nahin lagta
mohabbat ka tamaashaai mujhe achha nahin lagta

vo jab bichhde the ham to yaad hai garmi ki chhuttiyaan theen
tabhi se maah julaai mujhe achha nahin lagta

vo sharmaati hai itna ki hamesha us ki baaton ka
qareeban ek chauthaai mujhe achha nahin lagta

na-jaane itni kadvaahat kahaan se aa gai mujh mein
kare jo meri achchaai mujhe achha nahin lagta

mere dushman ko itni fauqiyat to hai bahr-soorat
ki tu hai us ki hum-saai mujhe achha nahin lagta

na itni daad do jis mein meri awaaz dab jaaye
kare jo yun paziraai mujhe achha nahin lagta

tiri khaatir nazar-andaaz karta hoon use warna
vo jo hai na tira bhaai mujhe achha nahin lagta 
---------------------------------------
बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता
मोहब्बत का तमाशाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो जब बिछड़े थे हम तो याद है गर्मी की छुट्टीयाँ थीं
तभी से माह जुलाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो शरमाती है इतना कि हमेशा उस की बातों का
क़रीबन एक चौथाई मुझे अच्छा नहीं लगता

न-जाने इतनी कड़वाहट कहाँ से आ गई मुझ में
करे जो मेरी अच्छाई मुझे अच्छा नहीं लगता

मिरे दुश्मन को इतनी फ़ौक़ियत तो है बहर-सूरत
कि तू है उस की हम-साई मुझे अच्छा नहीं लगता

न इतनी दाद दो जिस में मिरी आवाज़ दब जाए
करे जो यूँ पज़ीराई मुझे अच्छा नहीं लगता

तिरी ख़ातिर नज़र-अंदाज़ करता हूँ उसे वर्ना
वो जो है ना तिरा भाई मुझे अच्छा नहीं लगता
Read more

tujh ko apna ke bhi apna nahin hone dena..

tujh ko apna ke bhi apna nahin hone dena
zakhm-e-dil ko kabhi achha nahin hone dena

main to dushman ko bhi mushkil mein kumak bhejoonga
itni jaldi use paspa nahin hone dena

tu ne mera nahin hona hai to phir yaad rahe
main ne tujh ko bhi kisi ka nahin hone dena

tu ne kitnon ko nachaaya hai ishaaron pe magar
main ne ai ishq ye mujra nahin hone dena

us ne khaai hai qasam phir se mujhe bhoolne ki
main ne is baar bhi aisa nahin hone dena

zindagi mein to tujhe chhod hi deta lekin
phir ye socha tujhe bewa nahin hone dena

mazhab-e-ishq koi chhod mare to main ne
aise murtad ka janaaza nahin hone dena
----------------------------------------
तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना
ज़ख़्म-ए-दिल को कभी अच्छा नहीं होने देना

मैं तो दुश्मन को भी मुश्किल में कुमक भेजूँगा
इतनी जल्दी उसे पसपा नहीं होने देना

तू ने मेरा नहीं होना है तो फिर याद रहे
मैं ने तुझ को भी किसी का नहीं होने देना

तू ने कितनों को नचाया है इशारों पे मगर
मैं ने ऐ इश्क़! ये मुजरा नहीं होने देना

उस ने खाई है क़सम फिर से मुझे भूलने की
मैं ने इस बार भी ऐसा नहीं होने देना

ज़िंदगी में तो तुझे छोड़ ही देता लेकिन
फिर ये सोचा तुझे बेवा नहीं होने देना

मज़हब-ए-इश्क़ कोई छोड़ मरे तो मैं ने
ऐसे मुर्तद का जनाज़ा नहीं होने देना

Read more

agar ye kah do baghair mere nahin guzaara to main tumhaara..

agar ye kah do baghair mere nahin guzaara to main tumhaara
ya us pe mabni koi ta'assur koi ishaara to main tumhaara

ghuroor-parwar ana ka maalik kuchh is tarah ke hain naam mere
magar qasam se jo tum ne ik naam bhi pukaara to main tumhaara

tum apni sharton pe khel khelo main jaise chahe lagaaun baazi
agar main jeeta to tum ho mere agar main haara to main tumhaara

tumhaara aashiq tumhaara mukhlis tumhaara saathi tumhaara apna
raha na in mein se koi duniya mein jab tumhaara to main tumhaara

tumhaara hone ke faisley ko main apni qismat pe chhodta hoon
agar muqaddar ka koi toota kabhi sitaara to main tumhaara

ye kis pe ta'aweez kar rahe ho ye kis ko paane ke hain wazeefe
tamaam chhodo bas ek kar lo jo istikhara to main tumhaara 
-----------------------------------------------
अगर ये कह दो बग़ैर मेरे नहीं गुज़ारा तो मैं तुम्हारा
या उस पे मब्नी कोई तअस्सुर कोई इशारा तो मैं तुम्हारा

ग़ुरूर-परवर अना का मालिक कुछ इस तरह के हैं नाम मेरे
मगर क़सम से जो तुम ने इक नाम भी पुकारा तो मैं तुम्हारा

तुम अपनी शर्तों पे खेल खेलो मैं जैसे चाहे लगाऊँ बाज़ी
अगर मैं जीता तो तुम हो मेरे अगर मैं हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा आशिक़ तुम्हारा मुख़्लिस तुम्हारा साथी तुम्हारा अपना
रहा न इन में से कोई दुनिया में जब तुम्हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा होने के फ़ैसले को मैं अपनी क़िस्मत पे छोड़ता हूँ
अगर मुक़द्दर का कोई टूटा कभी सितारा तो मैं तुम्हारा

ये किस पे ता'वीज़ कर रहे हो ये किस को पाने के हैं वज़ीफ़े
तमाम छोड़ो बस एक कर लो जो इस्तिख़ारा तो मैं तुम्हारा
Read more

meri deewaangi khud saakhta nai..

meri deewaangi khud saakhta nai
main jaisa hoon main waisa chahta nai

sukoon chehre ka tere kah raha hai
ki ai dushman tu mujh ko jaanta nai

ye dil gustaakh hota ja raha hai
ki sunta hai meri par maanta nai

mujhe dar hai mohabbat mein agar vo
kahi kah de khuda-na-khaasta nai

agarche dil kahi par haar aaya
magar phir bhi main dil-bardashta nai

ameer is ishq ka mujh se na poocho
pata tum sab ko hai kis ko pata nai 
-------------------------------
मिरी दीवानगी ख़ुद साख़्ता नईं
मैं जैसा हूँ मैं वैसा चाहता नईं

सुकूँ चेहरे का तेरे कह रहा है
कि ऐ दुश्मन तू मुझ को जानता नईं

ये दिल गुस्ताख़ होता जा रहा है
कि सुनता है मिरी पर मानता नईं

मुझे डर है मोहब्बत में अगर वो
कहीं कह दे ख़ुदा-न-ख़ास्ता नईं

अगरचे दिल कहीं पर हार आया
मगर फिर भी मैं दिल-बर्दाश्ता नईं

'अमीर' इस इश्क़ का मुझ से न पूछो
पता तुम सब को है किस को पता नईं
Read more

na ghaur se dekh mere dil ka kabaad aise..

na ghaur se dekh mere dil ka kabaad aise
ki main kabhi bhi nahin raha tha ujaad aise

bura ho tera jo band rakhe the main ne ghar ke
to khol aaya baghair pooche kiwaad aise

jo meri rooh-o-badan ke taanke udhed dale
to meri nazaron pe apni nazaron ko gaar aise

samajh na paaya ki tod deta ya saath rakhta
ki is ta'alluq mein aa gai thi daraad aise

ai ishq rah jaaun farfarahaa ke yun kar de be-bas
so meri gardan mein apne daanton ko gaar aise

to meri aadat se meri fitrat hi ho chala hai
abhi bhi kehta hoon mujh ko tu na bigaad aise

ye mere baazu hi jang ka faisla karenge
pakad le talwaar aur mujh ko pachaad aise

tumhaare gham ka pahaad toota to phir ye jaana
pahaadon par hi to tootte hain pahaad aise

hazaar minnat hazaar minnat hazaar mehnat
tujhe manaane ko kar raha hoon jugaad aise
------------------------------------
न ग़ौर से देख मेरे दिल का कबाड़ ऐसे
कि मैं कभी भी नहीं रहा था उजाड़ ऐसे

बुरा हो तेरा जो बंद रखे थे मैं ने घर के
तो खोल आया बग़ैर पूछे किवाड़ ऐसे

जो मेरी रूह-ओ-बदन के टाँके उधेड़ डाले
तो मेरी नज़रों पे अपनी नज़रों को गाड़ ऐसे

समझ न पाया कि तोड़ देता या साथ रखता
कि इस तअ'ल्लुक़ में आ गई थी दराड़ ऐसे

ऐ इश्क़ रह जाऊँ फड़फड़ा के यूँ कर दे बे-बस
सो मेरी गर्दन में अपने दाँतों को गाड़ ऐसे

तो मेरी आदत से मेरी फ़ितरत ही हो चला है
अभी भी कहता हूँ मुझ को तू न बिगाड़ ऐसे

ये मेरे बाज़ू ही जंग का फ़ैसला करेंगे
पकड़ ले तलवार और मुझ को पछाड़ ऐसे

तुम्हारे ग़म का पहाड़ टूटा तो फिर ये जाना
पहाड़ों पर ही तो टूटते हैं पहाड़ ऐसे

हज़ार मिन्नत हज़ार मिन्नत हज़ार मेहनत
तुझे मनाने को कर रहा हूँ जुगाड़ ऐसे
Read more

tasveer teri yun hi rahe kaash jeb mein..

tasveer teri yun hi rahe kaash jeb mein
goya ki husn-e-vaadi-e-kailaash jeb mein

raaste mein mujh ko mil gaya yun hi gira-pada
main ne utha ke rakh liya aakaash jeb mein

pandrah minute se dhundh raha hai na jaane kya
dale hue hai haath ko qallaash jeb mein

aa ja ki yaar paan ke khokhe pe jam'a hain
cigarette chhupa ke haath mein aur taash jeb

sab tent aur kursiyon waale kama gaye
sha'ir ne thoons kar bhari shaabaash jeb mein

ab us gareeb chor ko bhejoge jail kyun
gurbat ki jis ne kaat li paadaash jeb mein

rakhta nahin hoon paas mein apni kabhi shanaakht
firta hai kaun le ke kabhi laash jeb mein 
--------------------------------------
तस्वीर तेरी यूँ ही रहे काश जेब में
गोया कि हुस्न-ए-वादी-ए-कैलाश जेब में

रस्ते में मुझ को मिल गया यूँ ही गिरा-पड़ा
मैं ने उठा के रख लिया आकाश जेब में

पंद्रह मिनट से ढूँड रहा है न जाने क्या
डाले हुए है हाथ को क़ल्लाश जेब में

आ जा कि यार पान के खोखे पे जम्अ' हैं
सिगरेट छुपा के हाथ में और ताश जेब

सब टेंट और कुर्सियों वाले कमा गए
शाइ'र ने ठूँस कर भरी शाबाश जेब में

अब उस ग़रीब चोर को भेजोगे जेल क्यूँ
ग़ुर्बत की जिस ने काट ली पादाश जेब में

रखता नहीं हूँ पास में अपनी कभी शनाख़्त
फिरता है कौन ले के कभी लाश जेब में
Read more

pyaar ki har ik rasm ki jo matrook thi main ne jaari ki..

pyaar ki har ik rasm ki jo matrook thi main ne jaari ki
ishq-labaada tan par pahna aur mohabbat taari ki

main ab shehr-e-ishq mein kuchh qaanoon banaane waala hoon
ab us us ki khair nahin hai jis jis ne gaddaari ki

pehle thodi bahut mohabbat ki ki kaisi hoti hai
par jab asli chehra dekha main ne to phir saari ki

jo bhi mud kar dekhega vo patthar ka ho jaayega
dekho dekho shehar mein aaye sannaata aur taarikee

ek janam mein main us ka tha ek janam mein vo mera
ham ne ki har baar mohabbat lekin baari baari ki

ham sa ho to saamne aaye aadil aur insaaf-pasand
dushman ko bhi khoon rulaaya yaaron se bhi yaari ki

aisa pyaar tha ham dono mein ki barson la-ilm rahe
us ne bhi kirdaar nibhaaya main ne bhi fankaari ki

baat to itni si hai waapas jaane ko main aaya tha
saans uthaai umr sameti chalne ki tayyaari ki 
------------------------------------------------
प्यार की हर इक रस्म कि जो मतरूक थी मैं ने जारी की
इश्क़-लबादा तन पर पहना और मोहब्बत तारी की

मैं अब शहर-ए-इश्क़ में कुछ क़ानून बनाने वाला हूँ
अब उस उस की ख़ैर नहीं है जिस जिस ने ग़द्दारी की

पहले थोड़ी बहुत मोहब्बत की कि कैसी होती है
पर जब असली चेहरा देखा मैं ने तो फिर सारी की

जो भी मुड़ कर देखेगा वो पत्थर का हो जाएगा
देखो देखो शहर में आए सन्नाटा और तारीकी

एक जन्म में मैं उस का था एक जन्म में वो मेरा
हम ने की हर बार मोहब्बत लेकिन बारी बारी की

हम सा हो तो सामने आए आदिल और इंसाफ़-पसंद
दुश्मन को भी ख़ून रुलाया यारों से भी यारी की

ऐसा प्यार था हम दोनों में कि बरसों ला-इल्म रहे
उस ने भी किरदार निभाया मैं ने भी फ़नकारी की

बात तो इतनी सी है वापस जाने को मैं आया था
साँस उठाई उम्र समेटी चलने की तय्यारी की
Read more

husn tera ghuroor mera tha..

husn tera ghuroor mera tha
sach to ye hai qusoor mera tha

raat yun tere khwaab se guzra
ki badan choor choor mera tha

aaine mein jamaal tha tera
tere chehre pe noor mera tha

aankh ki har zabaan par kal tak
bolne mein uboor mera tha

us ki baaton mein naam mera na tha
zikr bainssootoor mera tha

ek hi waqt mein junoon-o-khirad
la-shu'ur-o-shu'ur mera tha 
-----------------------------------
हुस्न तेरा ग़ुरूर मेरा था
सच तो ये है क़ुसूर मेरा था

रात यूँ तेरे ख़्वाब से गुज़रा
कि बदन चूर चूर मेरा था

आइने में जमाल था तेरा
तेरे चेहरे पे नूर मेरा था

आँख की हर ज़बान पर कल तक
बोलने में उबूर मेरा था

उस की बातों में नाम मेरा न था
ज़िक्र बैनस्सुतूर मेरा था

एक ही वक़्त में जुनून-ओ-ख़िरद
ला-शुऊ'र-ओ-शुऊ'र मेरा था

Read more

ye mera aks jo thehra tiri nigaah mein hai..

ye mera aks jo thehra tiri nigaah mein hai
nahin hai pyaar to phir kya tiri salaah mein hai

nahin hai waqt ki jurat ki choo sake us ko
ye tera husn ki jab tak meri panaah mein hai

nazar jo tujh pe ruke to zara nahin sunti
kahaan savaab mein hai ye kahaan gunaah mein hai

zabaan sanbhaal ke ab naam le raqeeb us ka
jo tera pyaar tha vo ab mere nikaah mein hai 
------------------------------------------
ये मेरा अक्स जो ठहरा तिरी निगाह में है
नहीं है प्यार तो फिर क्या तिरी सलाह में है

नहीं है वक़्त की जुरअत कि छू सके उस को
ये तेरा हुस्न कि जब तक मिरी पनाह में है

नज़र जो तुझ पे रुके तो ज़रा नहीं सुनती
कहाँ सवाब में है ये कहाँ गुनाह में है

ज़बाँ सँभाल के अब नाम ले रक़ीब उस का
जो तेरा प्यार था वो अब मिरे निकाह में है
Read more

zaroor us ki nazar mujh pe hi gadi hui hai..

zaroor us ki nazar mujh pe hi gadi hui hai
main jim se aa raha hoon aasteen chadhi hui hai

mujhe zara sa bura kah diya to is se kya
vo itni baat pe maa baap se ladi hui hai

use zaroorat-e-parda zara ziyaada hai
ye vo bhi jaanti hai jab se vo badi hui hai

vo meri di hui nathuni pahan ke ghoomti hai
tabhi vo in dinon kuchh aur nak-chadhi hui hai

muaahidon mein lachak bhi zaroori hoti hai
par is ki sooi wahin ki wahin adi hui hai

vo taai baandhti hai aur kheench leti hai
ye kaise waqt use pyaar ki padi hui hai

khuda ke vaaste likhte raho ki us ne ameer
har ik ghazal tiri sau sau dafa padhi hui hai 
-------------------------------------
ज़रूर उस की नज़र मुझ पे ही गड़ी हुई है
मैं जिम से आ रहा हूँ आस्तीं चढ़ी हुई है

मुझे ज़रा सा बुरा कह दिया तो इस से क्या
वो इतनी बात पे माँ बाप से लड़ी हुई है

उसे ज़रूरत-ए-पर्दा ज़रा ज़ियादा है
ये वो भी जानती है जब से वो बड़ी हुई है

वो मेरी दी हुई नथुनी पहन के घूमती है
तभी वो इन दिनों कुछ और नक-चढ़ी हुई है

मुआहिदों में लचक भी ज़रूरी होती है
पर इस की सूई वहीं की वहीं अड़ी हुई है

वो टाई बाँधती है और खींच लेती है
ये कैसे वक़्त उसे प्यार की पड़ी हुई है

ख़ुदा के वास्ते लिखते रहो कि उस ने 'अमीर'
हर इक ग़ज़ल तिरी सौ सौ दफ़ा पढ़ी हुई है
Read more

vo bhi ab yaad karein kis ko manaane nikle..

vo bhi ab yaad karein kis ko manaane nikle
ham bhi yoonhi to na maane the siyaane nikle

main ne mehsoos kiya jab bhi ki ghar se nikla
aur bhi log kai kar ke bahaane nikle

aaj ki baat pe main hansta raha hansta raha
chot taaza jo lagi dard purane nikle

ek shatranj-numa zindagi ke khaanon mein
aise ham shah jo pyaaron ke nishaane nikle

tu ne jis shakhs ko maara tha samajh kar kaafir
us ki mutthi se to tasbeeh ke daane nikle

kaash ho aaj kuchh aisa vo mera maalik-e-dil
mere dil se hi mere dil ko churaane nikle

aap ka dard in aankhon se chhalakta kaise
mere aansu to piyaazon ke bahaane nikle

main samajhta tha tujhe ek zamaane ka magar
tere andar to kai aur zamaane nikle

laapata aaj talak qafile saare hain ameer
jo tire pyaar mein kho kar tujhe paane nikle 
----------------------------------------
वो भी अब याद करें किस को मनाने निकले
हम भी यूँही तो न माने थे सियाने निकले

मैं ने महसूस किया जब भी कि घर से निकला
और भी लोग कई कर के बहाने निकले

आज की बात पे मैं हँसता रहा हँसता रहा
चोट ताज़ा जो लगी दर्द पुराने निकले

एक शतरंज-नुमा ज़िंदगी के ख़ानों में
ऐसे हम शाह जो प्यादों के निशाने निकले

तू ने जिस शख़्स को मारा था समझ कर काफ़िर
उस की मुट्ठी से तो तस्बीह के दाने निकले

काश हो आज कुछ ऐसा वो मिरा मालिक-ए-दिल
मेरे दिल से ही मिरे दिल को चुराने निकले

आप का दर्द इन आँखों से छलकता कैसे
मेरे आँसू तो पियाज़ों के बहाने निकले

मैं समझता था तुझे एक ज़माने का मगर
तेरे अंदर तो कई और ज़माने निकले

लापता आज तलक क़ाफ़िले सारे हैं 'अमीर'
जो तिरे प्यार में खो कर तुझे पाने निकले

Read more

vo roothi roothi ye kah rahi thi qareeb aao mujhe manao..

vo roothi roothi ye kah rahi thi qareeb aao mujhe manao
ho mard to aage badh ke mujh ko gale lagao mujhe manao

main kal se naaraz hoon qasam se aur ek kone mein ja padi hoon
haan main galat hoon dikhaao phir bhi tumhi jhukao mujhe manao

tumhaare nakhrin se apni an-ban to badhti jaayegi sun rahe ho
tum ek sorry se khatm kar sakte ho tanaav mujhe manao

tumhein pata bhi hai kis sakhi se tumhaara paala pada hua hai
mua'af kar doongi tum ko fauran hi aao aao mujhe manao

mujhe yun apne se door kar ke na khush rahoge ghuroor kar ke
so mujh se kuchh faasle pe rakho ye rakh-rakhaav mujhe manao

mujhe batao ki meri naarazgi se tum ko hai farq koi
main kha rahi hoon na-jaane kab se hi pech-taav mujhe manao

mujhe pata hai mujhe manaane ko tum bhi bechain ho rahe ho
to kya zaroori hai tum bhi itne bharam dikhaao mujhe manao

mera iraada to pehle hi se hai maan jaane ka sach bataaun
tum apne bhar bhi tamaam harbon ko aazmao mujhe manao

bahut bure ho meri dikhaave ki neend ko bhi tum asl samjhe
kahi se seekho piyaar karna mujhe jagao mujhe manao

tum apne andaaz mein ki jaise chadha ke rakhte ho aasteinen
to main tumhaara radif waali ghazal sunaao mujhe manao

khilaf-e-ma'amool mood achha hai aaj mera main kah rahi hoon
ki phir kabhi mujh se karte rahna ye bhaav-taav mujhe manao

main parle darje ka hat-dharam tha ki phir bhi us ko manaa na paaya
so ab bhi kaanon mein goonjtaa hai mujhe manao mujhe manao 
-------------------------------------------
वो रूठी रूठी ये कह रही थी क़रीब आओ मुझे मनाओ
हो मर्द तो आगे बढ़ के मुझ को गले लगाओ मुझे मनाओ

मैं कल से नाराज़ हूँ क़सम से और एक कोने में जा पड़ी हूँ
हाँ मैं ग़लत हूँ दिखाओ फिर भी तुम्ही झुकाओ मुझे मनाओ

तुम्हारे नख़रों से अपनी अन-बन तो बढ़ती जाएगी सुन रहे हो
तुम एक सॉरी से ख़त्म कर सकते हो तनाव मुझे मनाओ

तुम्हें पता भी है किस सखी से तुम्हारा पाला पड़ा हुआ है
मुआ'फ़ कर दूँगी तुम को फ़ौरन ही आओ आओ मुझे मनाओ

मुझे यूँ अपने से दूर कर के न ख़ुश रहोगे ग़ुरूर कर के
सो मुझ से कुछ फ़ासले पे रक्खो ये रख-रखाव मुझे मनाओ

मुझे बताओ कि मेरी नाराज़गी से तुम को है फ़र्क़ कोई
मैं खा रही हूँ न-जाने कब से ही पेच-ताव मुझे मनाओ

मुझे पता है मुझे मनाने को तुम भी बेचैन हो रहे हो
तो क्या ज़रूरी है तुम भी इतने भरम दिखाओ मुझे मनाओ

मिरा इरादा तो पहले ही से है मान जाने का सच बताऊँ
तुम अपने भर भी तमाम हर्बों को आज़माओ मुझे मनाओ

बहुत बुरे हो मिरी दिखावे की नींद को भी तुम अस्ल समझे
कहीं से सीखो पियार करना मुझे जगाओ मुझे मनाओ

तुम अपने अंदाज़ में कि जैसे चढ़ा के रखते हो आस्तीनें
तो मैं ''तुम्हारा'' रदीफ़ वाली ग़ज़ल सुनाओ मुझे मनाओ

ख़िलाफ़-ए-मा'मूल मूड अच्छा है आज मेरा मैं कह रही हूँ
कि फिर कभी मुझ से करते रहना ये भाव-ताव मुझे मनाओ

मैं परले दर्जे का हट-धरम था कि फिर भी उस को मना न पाया
सो अब भी कानों में गूँजता है मुझे मनाओ मुझे मनाओ

Read more

kya dukh hai samundar ko bata bhi nahin sakta..

kya dukh hai samundar ko bata bhi nahin sakta
aansu Ki tarah aankh tak aa bhi nahin sakta

tu chhoḌ rahā hai to ḳhata is men tiri kya
har shaḳhs mira saath nibha bhi nahin sakta

pyase rahe jaate hain zamane ke savalat
kis ke liye zinda huun bata bhi nahin sakta

ghar DhunD rahe hain mira raton ke pujari
main huun ki charaghon ko bujha bhi nahin sakta

vaise to ik aansu hi baha kar mujhe le jaae
aise koi tufan hila bhi nahin sakta
---------------------------------------
क्या दुख है समंदर को बता भी नहीं सकता
आंसू की तरह आंख तक आ भी नहीं सकता

तू छोड़ रहा है तो ख़ता इसमें तेरी क्या
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

प्यासी रह जाते हैं ज़माने के सवालात
किस के लिए ज़िंदा हूं बता भी नहीं सकता

घर ढूंढ़ रहे हैं मेरे रातों के पुजारी
मैं हूं कि चरागों को बुझा भी नहीं सकता

वैसे तो एक आंसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

Read more

dost ke naam khat..

dost ke naam khat
tumne haal poocha hai
haalat-e-mohabbat mein
haal ka bataana kya
dil sisak raha ho to
zakham ka chhupaana kya
tum jo pooch baithe ho
kuchh to ab bataana hai
baat ek bahaana hai
tumne haal poocha hai
ik diya jalata hoon
theek hai bataata hoon
roz uski yaadon mein
door tak chale jaana
jo bhi tha kaha usne
apne saath dohraana
saans jab ruke to phir
apni marti aankhon mein
uski shakl le aana
aur zindagi paana
roz aise hota hai
kuchh purane message hain
jinmein uski baatein hain
kuchh tabeel subhe hain
kuchh qadeem raatein hain
maine uski baaton mein
zindagi guzaari hai
zindagi mitaane ka
hausla nahin mujhmein
ek ek lafz uska
saans mein pirooya hai
rooh mein samoya hai
uske jitne message hai
roz khol leta hoon
usse kah nahin paata
khud se bol leta hoon
uske pej par ja kar
roz dekhta hoon main
aaj kitne logon ne
uski pairavi ki hai
aur sochta hoon main
ye naseeb waale hain
usko dekh sakte hain
usse baat karte hain
ye ijaazaton waale
mujhse kitne behtar hain
main to daagh tha koi
jo mita diya usne
gar mita diya usne
theek hi kiya usne
tumne haal poocha tha
lo bata diya maine
jo bhi kuchh bataaya hai
usko mat bata dena
padh ke ro paro to phir
in tamaam lafzon ko
bas gale laga lena
vo meri mohabbat hai
aur sada rahegi vo
jab nahin rahoonga to
ek din kahegi vo
tum ali faqat tum the
jisne mujhko chaaha tha
jisne mere maathe ko
choom kar bataaya tha
tum dua ka chehra ho
tum haya ka pahra ho
main to tab nahin hoonga
par meri sabhi nazmein
uski baat sun lenge
tum bhi muskuraa dena
phir bahut mohabbat se
usko sab bata dena
uske narm haathon mein
mera khat thama dena
lo ye khat tumhaara hai
aur uski jaanib se
vo jo bas tumhaara tha
aaj bhi tumhaara hai
-----------------------
"दोस्त के नाम ख़त"
तुमने हाल पूछा है
हालत-ए-मोहब्बत में
हाल का बताना क्या!
दिल सिसक रहा हो तो
ज़ख़्म का छुपाना क्या!
तुम जो पूछ बैठे हो
कुछ तो अब बताना है
बात एक बहाना है
तुमने हाल पूछा है
इक दिया जलाता हूँ
ठीक है बताता हूँ
रोज़ उसकी यादों में
दूर तक चले जाना
जो भी था कहा उसने
अपने साथ दोहराना
साँस जब रुके तो फिर
अपनी मरती आँखों में
उसकी शक्ल ले आना
और ज़िन्दगी पाना
रोज़ ऐसे होता है
कुछ पुराने मैसेज हैं
जिनमें उसकी बातें हैं
कुछ तबील सुबहे हैं
कुछ क़दीम रातें हैं
मैंने उसकी बातों में
ज़िन्दगी गुज़ारी है
ज़िन्दगी मिटाने का
हौसला नहीं मुझमें
एक एक लफ़्ज़ उसका
साँस में पिरोया है,
रूह में समोया है
उसके जितने मैसेज है
रोज़ खोल लेता हूँ
उससे कह नहीं पाता
ख़ुद से बोल लेता हूँ
उसके पेज पर जा कर
रोज़ देखता हूँ मैं
आज कितने लोगों ने
उसकी पैरवी की है
और सोचता हूँ मैं
ये नसीब वाले हैं
उसको देख सकते हैं
उससे बात करते हैं
ये इजाज़तों वाले
मुझसे कितने बेहतर हैं
मैं तो दाग़ था कोई
जो मिटा दिया उसने
गर मिटा दिया उसने
ठीक ही किया उसने,
तुमने हाल पूछा था
लो बता दिया मैंने
जो भी कुछ बताया है
उसको मत बता देना
पढ़ के रो पड़ो तो फिर
इन तमाम लफ़्ज़ों को
बस गले लगा लेना,
वो मेरी मोहब्बत है
और सदा रहेगी वो
जब नहीं रहूँगा तो
एक दिन कहेगी वो
तुम अली फ़क़त तुम थे
जिसने मुझको चाहा था
जिसने मेरे माथे को
चूम कर बताया था
तुम दुआ का चेहरा हो
तुम हया का पहरा हो
मैं तो तब नहीं हूँगा
पर मेरी सभी नज़्में
उसकी बात सुन लेंगी
तुम भी मुस्कुरा देना
फिर बहुत मोहब्बत से
उसको सब बता देना
उसके नर्म हाथों में
मेरा ख़त थमा देना
लो ये ख़त तुम्हारा है
और उसकी जानिब से
वो जो बस तुम्हारा था
आज भी तुम्हारा है
Read more

shaahsaazi mein riayaat bhi nahi karte ho..

shaahsaazi mein riayaat bhi nahi karte ho
saamne aake hukoomat bhi nahi karte ho

tumse kya baat kare kaun kahaan qatl hua
tum to is zulm pe hairat bhi nahi karte ho

ab mere haal pe kyun tumko pareshaani hai
ab to tum mujhse muhabbat bhi nahi karte ho

pyaar karne ki sanad kaise tumhe jaari karoon
tum abhi theek se nafrat bhi nahi karte ho

mashvare hans ke diya karte the deewaanon ko
kya hua ab to naseehat bhi nahi karte ho
------------------------------------
शाहसाज़ी में रियायत भी नही करते हो
सामने आके हुकूमत भी नही करते हो

तुमसे क्या बात करे कौन कहाँ क़त्ल हुआ
तुम तो इस ज़ुल्म पे हैरत भी नही करते हो

अब मेरे हाल पे क्यों तुमको परेशानी है
अब तो तुम मुझसे मुहब्बत भी नही करते हो

प्यार करने की सनद कैसे तुम्हे जारी करूँ
तुम अभी ठीक से नफ़रत भी नही करते हो

मश्वरे हँस के दिया करते थे दीवानों को
क्या हुआ अब तो नसीहत भी नही करते हो
Read more

tum jo kahte ho sunoonga jo pukaaroge mujhe..

tum jo kahte ho sunoonga jo pukaaroge mujhe
jaanta hoon ki tum hi gher ke maaroge mujhe

main bhi ik shakhs pe ik shart laga baitha tha
tum bhi ik roz isee khel mein haaroge mujhe

eed ke din ki tarah tumne mujhe zaaya kiya
main samajhta tha muhabbat se guzaaroge mujhe 
------------------------------------
तुम जो कहते हो सुनूँगा जो पुकारोगे मुझे
जानता हूँ कि तुम ही घेर के मारोगे मुझे

मैं भी इक शख़्स पे इक शर्त लगा बैठा था
तुम भी इक रोज़ इसी खेल में हारोगे मुझे

ईद के दिन की तरह तुमने मुझे ज़ाया किया
मैं समझता था मुहब्बत से गुज़ारोगे मुझे
Read more

jis tarah waqt guzarne ke liye hota hai..

jis tarah waqt guzarne ke liye hota hai
aadmi shakl pe marne ke liye hota hai

teri aankhon se mulaqaat hui tab ye khula
doobne waala ubharne ke liye hota hai

ishq kyun peeche hata baat nibhaane se miyaan
husn to khair mukarne ke liye hota hai

aankh hoti hai kisi raah ko takne ke liye
dil kisi paanv pe dharne ke liye hota hai

dil ki dilli ka chunaav hi alag hai sahab
jab bhi hota hai ye harne ke liye hota hai

koi basti ho ujhadne ke liye basti hai
koi mazma ho bikharna ke liye hota hai 
-------------------------------------
जिस तरह वक़्त गुज़रने के लिए होता है
आदमी शक्ल पे मरने के लिए होता है

तेरी आँखों से मुलाक़ात हुई तब ये खुला
डूबने वाला उभरने के लिए होता है

इश्क़ क्यूँ पीछे हटा बात निभाने से मियाँ
हुस्न तो ख़ैर मुकरने के लिए होता है

आँख होती है किसी राह को तकने के लिए
दिल किसी पाँव पे धरने के लिए होता है

दिल की दिल्ली का चुनाव ही अलग है साहब
जब भी होता है ये हरने के लिए होता है

कोई बस्ती हो उजड़ने के लिए बसती है
कोई मज़मा हो बिखरने के लिए होता है

Read more

paagal kaise ho jaate hain..

paagal kaise ho jaate hain
dekho aise ho jaate hain

khwaabon ka dhanda karti ho
kitne paise ho jaate hain

duniya sa hona mushkil hai
tere jaise ho jaate hain

mere kaam khuda karta hai
tere vaise ho jaate hain
-----------------------------
पागल कैसे हो जाते हैं
देखो ऐसे हो जाते हैं

ख़्वाबों का धंधा करती हो
कितने पैसे हो जाते हैं

दुनिया सा होना मुश्किल है
तेरे जैसे हो जाते हैं

मेरे काम ख़ुदा करता है
तेरे वैसे हो जाते हैं
Read more

Isee liye to mujhe sunke taish aaya hai..

isee liye to mujhe sunke taish aaya hai
tumhaara haal kisi aur ne bataaya hai

mujhe bata mera bhaai shaheed kaise hua
tu uske saath tha tu kaise bach ke aaya hai

abhi ye zakham kisi par nahin khula mera
abhi ye sher kisi ko nahin sunaaya hai 
-----------------------------
इसी लिए तो मुझे सुनके तैश आया है
तुम्हारा हाल किसी और ने बताया है

मुझे बता मेरा भाई शहीद कैसे हुआ
तू उसके साथ था तू कैसे बच के आया है

अभी ये ज़ख़्म किसी पर नहीं खुला मेरा
अभी ये शेर किसी को नहीं सुनाया है

Read more

Naya zaayqa hai maza mukhtalif hai..

naya zaayqa hai maza mukhtalif hai
ghazal chakh ke dekh is dafa mukhtalif hai

suno tumne duniya firee hai parindon
ye tanhaai kya har jagah mukhtalif hai

sada kaam kaise karegi wahan par
gali to wahi hai gala mukhtalif hai

hamaari tumhaari saza ik nahin kyun
hamaari tumhaari khata mukhtalif hai

tum abtak munaafiq dilon mein rahi ho
mere dil kii aab-o-hawa mukhtalif hai

vo rote hue hans pada aur bola
khuda aadmi se bada mukhtalif hai
------------------------------
नया ज़ायक़ा है मज़ा मुख़्तलिफ़ है
ग़ज़ल चख के देख इस दफ़ा मुख़्तलिफ़ है

सुनो तुमने दुनिया फिरी है परिंदों
ये तन्हाई क्या हर जगह मुख़्तलिफ़ है

सदा काम कैसे करेगी वहाँ पर
गली तो वही है गला मुख़्तलिफ़ है

हमारी तुम्हारी सज़ा इक नहीं क्यों
हमारी तुम्हारी ख़ता मुख़्तलिफ़ है

तुम अबतक मुनाफ़िक़ दिलों में रही हो
मिरे दिल की आब-ओ-हवा मुख़्तलिफ़ है

वो रोते हुए हँस पड़ा और बोला
ख़ुदा आदमी से बड़ा मुख़्तलिफ़ है

Read more

Barson puraana dost mila jaise gair ho..

barson puraana dost mila jaise gair ho
dekha ruka jhijhak ke kaha tum umair ho

milte hain mushkilon se yahan ham-khayaal log
tere tamaam chaahne waalon ki khair ho

kamre mein cigaretteon ka dhuaan aur teri mahak
jaise shadeed dhundh mein baagon ki sair ho

ham mutmain bahut hain agar khush nahin bhi hain
tum khush ho kya hua jo hamaare baghair ho

pairo'n mein uske sar ko dharen iltijaa karein
ik iltijaa ki jiska na sar ho na pair ho
-------------------------------------
बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो

Read more

tum is kharaabe mein chaar chhe din tahal gai ho..

tum is kharaabe mein chaar chhe din tahal gai ho
so ain-mumkin hai dil ki haalat badal gai ho

tamaam din is dua mein katata hai kuchh dinon se
main jaaun kamre mein to udaasi nikal gai ho

kisi ke aane pe aise halchal hui hai mujh mein
khamosh jungle mein jaise bandooq chal gai ho

ye na ho gar main hiloon to girne lage burada
dukhon ki deemak badan ki lakdi nigal gai ho

ye chhote chhote kai hawadis jo ho rahe hain
kisi ke sar se badi museebat na tal gai ho

hamaara malba hamaare qadmon mein aa gira hai
plate mein jaise mom-batti pighal gai ho 
--------------------------------------
तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो
सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो

तमाम दिन इस दुआ में कटता है कुछ दिनों से
मैं जाऊँ कमरे में तो उदासी निकल गई हो

किसी के आने पे ऐसे हलचल हुई है मुझ में
ख़मोश जंगल में जैसे बंदूक़ चल गई हो

ये न हो गर मैं हिलूँ तो गिरने लगे बुरादा
दुखों की दीमक बदन की लकड़ी निगल गई हो

ये छोटे छोटे कई हवादिस जो हो रहे हैं
किसी के सर से बड़ी मुसीबत न टल गई हो

हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है
प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई हो

Read more

mujhe pehle to lagta tha ki zaati mas'ala hai..

mujhe pehle to lagta tha ki zaati mas'ala hai
main phir samjha mohabbat kaayenaati mas'ala hai

parinde qaid hain tum chahchahaahat chahte ho
tumhein to achcha-khaasa nafsiyaati mas'ala hai

hamein thoda junoon darkaar hai thoda sukoon bhi
hamaari nasl mein ik jeeniyati mas'ala hai

badi mushkil hai bante silsiloon mein ye tavakkuf
hamaare raabton ki be-sabaati mas'ala hai

vo kahte hain ki jo hoga vo aage ja ke hoga
to ye duniya bhi koi tajrabaati mas'ala hai

hamaara vasl bhi tha ittifaqi mas'ala tha
hamaara hijr bhi hai haadsaati mas'ala hai 
--------------------------------------
मुझे पहले तो लगता था कि ज़ाती मसअला है
मैं फिर समझा मोहब्बत काएनाती मसअला है

परिंदे क़ैद हैं तुम चहचहाहट चाहते हो
तुम्हें तो अच्छा-ख़ासा नफ़सियाती मसअला है

हमें थोड़ा जुनूँ दरकार है थोड़ा सुकूँ भी
हमारी नस्ल में इक जीनियाती मसअला है

बड़ी मुश्किल है बनते सिलसिलों में ये तवक़्क़ुफ़
हमारे राब्तों की बे-सबाती मसअला है

वो कहते हैं कि जो होगा वो आगे जा के होगा
तो ये दुनिया भी कोई तजरबाती मसअला है

हमारा वस्ल भी था इत्तिफ़ाक़ी मसअला था
हमारा हिज्र भी है हादसाती मसअला है
Read more

ik din zabaan sukoot ki poori banaoonga..

ik din zabaan sukoot ki poori banaoonga
main guftugoo ko ghair-zaroori banaoonga

tasveer mein banaoonga dono ke haath aur
dono mein ek haath ki doori banaoonga

muddat samet jumla zawaabit hon tay-shuda
ya'ni ta'alluqaat uboori banaoonga

tujh ko khabar na hogi ki main aas-paas hoon
is baar haaziri ko huzoori banaoonga

rangon pe ikhtiyaar agar mil saka kabhi
teri siyaah putliyaan bhuri banaoonga

jaari hai apni zaat pe tahqeeq aaj-kal
main bhi khala pe ek theory banaoonga

main chaah kar vo shakl mukammal na kar saka
us ko bhi lag raha tha adhuri banaoonga
-----------------------------------
इक दिन ज़बाँ सुकूत की पूरी बनाऊँगा
मैं गुफ़्तुगू को ग़ैर-ज़रूरी बनाऊँगा

तस्वीर में बनाऊँगा दोनों के हाथ और
दोनों में एक हाथ की दूरी बनाऊँगा

मुद्दत समेत जुमला ज़वाबित हों तय-शुदा
या'नी तअ'ल्लुक़ात उबूरी बनाऊँगा

तुझ को ख़बर न होगी कि मैं आस-पास हूँ
इस बार हाज़िरी को हुज़ूरी बनाऊँगा

रंगों पे इख़्तियार अगर मिल सका कभी
तेरी सियाह पुतलियाँ भूरी बनाऊँगा

जारी है अपनी ज़ात पे तहक़ीक़ आज-कल
मैं भी ख़ला पे एक थ्योरी बनाऊँगा

मैं चाह कर वो शक्ल मुकम्मल न कर सका
उस को भी लग रहा था अधूरी बनाऊँगा

Read more

Meri bhanwon ke ain darmiyaan ban gaya..

meri bhanwon ke ain darmiyaan ban gaya
jabeen pe intizaar ka nishaan ban gaya

suna hua tha hijr mustaqil tanaav hai
wahi hua mera badan kamaan ban gaya

muheeb chup mein aahaton ka waahima hawa
main sar se paanv tak tamaam kaan ban gaya

hawa se raushni se raabta nahin raha
jidhar theen khidkiyaan udhar makaan ban gaya

shuruat din se ghar main sun raha tha is liye
sukoot meri maadri zabaan ban gaya

aur ek din khinchi hui lakeer mit gai
gumaan yaqeen bana yaqeen gumaan ban gaya

kai khafif gham mile malaal ban gaye
zara zara si katarno se thaan ban gaya

mere badon ne aadatan chuna tha ek dasht
vo bas gaya raheem yaar-khan ban gaya
---------------------------------
मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया
जबीं पे इंतिज़ार का निशान बन गया

सुना हुआ था हिज्र मुस्तक़िल तनाव है
वही हुआ मिरा बदन कमान बन गया

मुहीब चुप में आहटों का वाहिमा हवा
मैं सर से पाँव तक तमाम कान बन गया

हवा से रौशनी से राब्ता नहीं रहा
जिधर थीं खिड़कियाँ उधर मकान बन गया

शुरूअ' दिन से घर मैं सुन रहा था इस लिए
सुकूत मेरी मादरी ज़बान बन गया

और एक दिन खिंची हुई लकीर मिट गई
गुमाँ यक़ीं बना यक़ीं गुमान बन गया

कई ख़फ़ीफ़ ग़म मिले मलाल बन गए
ज़रा ज़रा सी कतरनों से थान बन गया

मिरे बड़ों ने आदतन चुना था एक दश्त
वो बस गया 'रहीम' यार-ख़ान बन गया

Read more

Kaha jo maine galat kar rahi ho chun ke mujhe..

kaha jo maine galat kar rahi ho chun ke mujhe
achaanak usne kaha chup ye baat sun ke mujhe

koi junoon hawa mein uda de mera vujood
koi asa ho jo rooi ki tarah dhunke mujhe

kisi ne kah ke jab ik haan basaaya dil ka jahaan
qasam khuda ki samajh aaye maani kun ke mujhe

udhed de gar iraada nahin pahanne ka
ye kya ki ek taraf rakh diya hai bun ke mujhe

shajar se kaat liya hai to apni mez bana
agar nahin to phir aane de kaam ghun ke mujhe

kal ek rail ki chik chik se rukn yaad aaye
mafailun failaatun mafailun ke mujhe

tumhaare lautne tak kuchh bura na ho gaya ho
na saath chhodna mujh jaise bad-shugun ke mujhe

faqeer log samajh aayein ya na aayein umair
koi samajhta nahin hai siwaye un ke mujhe
--------------------------------
कहा जो मैंने ग़लत कर रही हो चुन के मुझे
अचानक उसने कहा चुप ये बात सुन के मुझे

कोई जुनून हवा में उड़ा दे मेरा वजूद
कोई असा हो जो रूई की तरह धुनके मुझे

किसी ने कह के जब इक हाँ बसाया दिल का जहाँ
क़सम ख़ुदा की समझ आए मआनी कुन के मुझे

उधेड़ दे गर इरादा नहीं पहनने का
ये क्या कि एक तरफ रख दिया है बुन के मुझे

शजर से काट लिया है तो अपनी मेज़ बना
अगर नहीं तो फिर आने दे काम घुन के मुझे

कल एक रेल की छिक छिक से रुक्न याद आए
मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन के मुझे

तुम्हारे लौटने तक कुछ बुरा न हो गया हो
न साथ छोड़ना मुझ जैसे बद-शगुन के मुझे

फ़क़ीर लोग समझ आएँ या न आएँ 'उमैर'
कोई समझता नहीं है सिवाय उन के मुझे

Read more

Bas ik usi pe to poori tarah ayaan hoon main..

bas ik usi pe to poori tarah ayaan hoon main
vo kah raha hai mujhe raigaan to haan hoon main

jise dikhaai doon meri taraf ishaara kare
mujhe dikhaai nahin de raha kahaan hoon main

idhar-udhar se nami ka risaav rehta hai
sadak se neeche banaya gaya makaan hoon main

kisi ne poocha ki tum kaun ho to bhool gaya
abhi kisi ne bataaya to tha falan hoon main

main khud ko tujh se mitaaounga ehtiyaat ke saath
tu bas nishaan laga de jahaan jahaan hoon main

main kis se poochhun ye rasta durust hai ki galat
jahaan se koi guzarta nahin vahaan hoon main
-------------------------------------------
बस इक उसी पे तो पूरी तरह अयाँ हूँ मैं
वो कह रहा है मुझे राइगाँ, तो हाँ हूँ मैं।

जिसे दिखाऊँ, मेरी तरफ़ इशारा करे,
मुझे दिखाई नहीं दे रहा, कहाँ हूँ मैं।

इधर-उधर से नमी का रिसाव रहता है,
सड़क से नीचे बनाया गया मकान हूँ मैं।

किसी ने पूछा कि तुम कौन हो, तो भूल गया,
अभी किसी ने बताया तो था, फ़लाँ हूँ मैं।

मैं ख़ुद को तुझसे मिटाऊँगा एहतियात के साथ,
तू बस निशान लगा दे जहाँ-जहाँ हूँ मैं।

मैं किससे पूछूँ ये रास्ता दुरुस्त है कि ग़लत,
जहाँ से कोई गुज़रता नहीं, वहाँ हूँ मैं।

Read more

vo munh lagata hai jab koi kaam hota hai..

vo munh lagata hai jab koi kaam hota hai
jo uska hota hai samjho ghulaam hota hai

kisi ka ho ke dobaara na aana meri taraf
mohabbaton mein halaala haraam hota hai

ise bhi ginte hain ham log ahl-e-khaana mein
hamaare yaa to shajar ka bhi naam hota hai

tujh aise shakhs ke hote hain khaas dost bahut
tujh aisa shakhs bahut jald aam hota hai

kabhi lagi hai tumhein koi shaam aakhiri shaam
hamaare saath ye har ek shaam hota hai 
-------------------------------------
वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है

Read more

Yaad tab karte ho karne ko na ho jab kuchh bhi..

yaad tab karte ho karne ko na ho jab kuchh bhi
aur kahte ho tumhein ishq hai matlab kuchh bhi

ab jo aa aa ke bataate ho vo shakhs aisa tha
jab mere saath tha vo kyun na kaha tab kuchh bhi

waqfe-waqfe se mujhe dekhne aate rahna
hijr ki shab hai so ho saka hai is shab kuchh bhi
--------------------------------------
याद तब करते हो करने को न हो जब कुछ भी
और कहते हो तुम्हें इश्क़ है मतलब कुछ भी

अब जो आ आ के बताते हो वो शख़्स ऐसा था
जब मेरे साथ था वो क्यूँ न कहा तब कुछ भी

वक्फ़े-वक्फ़े से मुझे देखने आते रहना
हिज्र की शब है सो हो सकता है इस शब कुछ भी

Read more

ye saath aath padosi kahaan se aaye mere..

ye saath aath padosi kahaan se aaye mere
tumhaare dil mein to koi na tha sivaae mere

kisi ne paas bithaaya bas aage yaad nahin
mujhe to dost wahan se utha ke laaye mere

ye soch kar na kiye apne dard uske supurd
vo laalchi hai asaase na bech khaaye mere

idhar kidhar tu naya hai yahan ki paagal hai
kisi ne kya tujhe qisse nahin sunaaye mere

vo aazmaaye mere dost ko zaroor magar
use kaho ki tarike na aazmaaye mere
--------------------------------
ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे
तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मेरे

किसी ने पास बिठाया बस आगे याद नहीं
मुझे तो दोस्त वहाँ से उठा के लाए मेरे

ये सोच कर न किए अपने दर्द उसके सुपुर्द
वो लालची है असासे न बेच खाए मेरे

इधर किधर तू नया है यहाँ कि पागल है
किसी ने क्या तुझे क़िस्से नहीं सुनाए मेरे

वो आज़माए मेरे दोस्त को ज़रूर मगर
उसे कहो कि तरीके न आज़माए मेरे

Read more

mohabbat khud apne liye jism chuntee hai..

mohabbat khud apne liye jism chuntee hai
aur jaal bunati hai unke liye
jo ye aag apne seenon mein bharne ko taiyyaar hon
ghut ke jeene se bezaar hon
mohabbat kabhi ek se
ya kabhi ek sau ek logon se
hone ka ailaan ek saath karti hai
ismein kai umr jinki koi qadr nahin
mohabbat kisi bench par
ek mard aur aurat ne khaai hui ik adhuri qasam hai
mohabbat mein mar jaana marna nahin
mohabbat to khud devataaon ka punarjanam hai
mohabbat kisi rahebaan ki kalaaee se utri hui choodiyon ki khanak hai
mohabbat kisi ek murda sitaare ko khairaat mein milne waali chamak hai
mohabbat pe shak to khud apne hi hasti pe shak hai
mohabbat to mehboob ke qadd-o-kaamat se janmi hui vo alaamat hai
aur tez baarish mein sahme hue haathiyo par badi chhatriyon ki tarah hai
mohabbat sard mulkon mein waapas palatte hue apne zakhami paron se khalaon mein lahu ki lakeeren banaati hui
goonj hai moonj hai
aur dil ki zameenon ko sairaab karti hui
nahar hai qahar hai zehar hai
jo ragon mein utarkar badan ko udaasi ke us shehar mein maar-kar khair aabaad kahti hai
jo calvino ne bas zehan mein tasavvur kiya tha
jo masjid mein sipaaron ko seenon mein mahfooz karte hue
bacchiyon ko khuda se daraate hue maulvi ka makar hai mohabbat
kaleesaon mein roosi akhrot ki lakdiyon se bani kursiyon par buzurgon ki aankhon mein marne ka dar hai mohabbat
mohabbat zaheenon pe khulti hai isko kabhi kund zehnon se koi naaka nahin
mohabbat ko kya koi apna hai ya ghair hai
ismein aadmi sab kuchh lutaakar bhi kehta hai ki khair hai 
-----------------------------------------------
मोहब्बत ख़ुद अपने लिए जिस्म चुनती है
और जाल बुनती है उनके लिए
जो ये आग अपने सीनों में भरने को तय्यार हों
घुट के जीने से बेज़ार हों
मोहब्बत कभी एक से
या कभी एक सौ एक लोगों से
होने का ऐलान एक साथ करती है
इसमें कई उम्र जिनकी कोई क़द्र नहीं
मोहब्बत किसी बेंच पर
एक मर्द और औरत ने खाई हुई इक अधूरी क़सम है
मोहब्बत में मर जाना मरना नहीं
मोहब्बत तो ख़ुद देवताओं का पुनर्जनम है
मोहब्बत किसी राहेबाँ की कलाई से उतरी हुई चूड़ियों की खनक है
मोहब्बत किसी एक मुर्दा सितारे को ख़ैरात में मिलने वाली चमक है
मोहब्बत पे शक तो ख़ुद अपने ही हस्ती पे शक है
मोहब्बत तो महबूब के क़द्द-ओ-कामत से जन्मी हुई वो अलामत है
और तेज़ बारिश में सहमे हुए हाथियों पर बड़ी छतरियों की तरह है
मोहब्बत सर्द मुल्कों में वापस पलटते हुए अपने ज़ख़्मी परों से ख़लाओं में लहू की लकीरें बनाती हुई
गूँज है, मूँज है
और दिल की ज़मीनों को सैराब करती हुई
नहर है, क़हर है, ज़हर है
जो रगों में उतरकर बदन को उदासी के उस शहर में मारकर ख़ैर आबाद कहती है
जो कैलोविनो ने बस ज़ेहन में तसव्वुर किया था
जो मस्जिद में सिपारों को सीनों में महफ़ूज़ करते हुए
बच्चियों को ख़ुदा से डराते हुए मौलवी का मकर है मोहब्बत
कलीसाओं में रूसी अखरोट की लकड़ियों से बनी कुर्सियों पर बुज़ुर्गों की आँखों में मरने का डर है मोहब्बत
मोहब्बत ज़हीनों पे खुलती है इसको कभी कुंद ज़ेहनों से कोई नाका नहीं
मोहब्बत को क्या कोई अपना है या ग़ैर है
इसमें आदमी सब कुछ लुटाकर भी कहता है कि ख़ैर है

Read more

Tere saath guzre dino ki ..

नज़्म - बेबसी

तेरे साथ गुज़रे दिनों की
कोई एक धुँदली सी तस्वीर
जब भी कभी सामने आएगी
तो हमें एक दुआ थामने आएगी,
बुढ़ापे की गहराइयों में उतरते हुए
तेरी बे-लौस बाँहों के घेरे नहीं भूल पाएँगे हम
हमको तेरे तवस्सुत से हँसते हुए जो मिले थे
वो चेहरे नहीं भूल पाएँगे हम
तेरे पहलू में लेटे हुओं का अजब क़र्ब है
जो रात भर अपनी वीरान आँखों से तुझे तकते थे
और तेरे शादाब शानों पे सिर रख के
मरने की ख़्वाहिश में जीते रहे

पर तेरे लम्स का कोई इशारा मयस्सर नहीं था
मगर इस जहाँ का कोई एक हिस्सा
उन्हें तेरे बिस्तर से बेहतर नहीं था
पर मोहब्बत को इस सब से कोई इलाका नहीं था
एक दुख तो हम बहरहाल हम अपने सीनों में ले के मरेंगे
कि हमने मोहब्बत के दावे किए
तेरे माथे पर सिंदूर टाँका नहीं

इससे क्या फ़र्क पड़ता है दूर हैं तुझसे या पास हैं
हमको कोई आदमी तो नहीं, हम तो एहसास हैं
जो रहे तो हमेशा रहेंगे
और गए तो मुड़ कर वापिस नहीं आएँगे
-----------------------------
Nazm - Bebasi 

Tere saath guzre dino ki  
Koi ek dhundhli si tasveer,  
Jab bhi kabhi saamne aayegi,  
To humein ek dua thaamne aayegi.  

Budhape ki gehraiyon mein utarte hue,  
Teri be-laus baahon ke ghere nahi bhool payenge hum.  
Humko tere tawassut se hanste hue jo mile the,  
Woh chehre nahi bhool payenge hum.  

Tere pehlu mein lete huon ka ajab qarib hai,  
Jo raat bhar apni veeran aankhon se tujhe takte the,  
Aur tere shaadab shaano pe sir rakh ke,  
Marne ki khwahish mein jeete rahe.  

Par tere lams ka koi ishaara mayassar nahi tha,  
Magar is jahaan ka koi ek hissa,  
Unhe tere bistar se behtar nahi tha.  
Par mohabbat ko is sab se koi ilaaka nahi tha.  

Ek dukh to hum bahar-haal apne seenon mein leke marenge,  
Ki humne mohabbat ke daave kiye,  
Tere maathay par sindoor taanka nahi.  

Isse kya farq padta hai door hain tujhse ya paas hain,  
Hum koi aadmi to nahi, hum to ehsaas hain,  
Jo rahe to hamesha rahenge,  
Aur gaye to mud kar wapas nahi aayenge.  
Read more

Ashk zaaya ho rahe the dekh kar rota na tha..

ashk zaaya ho rahe the dekh kar rota na tha
jis jagah banta tha rona main udhar rota na tha

sirf teri chup ne mere gaal geelay kar diye
main to vo hoon jo kisi ki maut par rota na tha

mujhpe kitne saanihe guzre par un aankhon ko kya
mera dukh ye hain ki mera hamsafar rota na tha

maine uske vasl mein bhi hijr kaata hai kahi
vo mere kaandhe pe rakh leta tha sar rota na tha

pyaar to pehle bhi usse tha magar itna nahin
tab main usko choo to leta tha magar rota na tha

giryaa-o-zaari ko bhi ik khaas mausam chahiye
meri aankhen dekh lo main waqt par rota na tha
----------------------------------------
अश्क ज़ाया हो रहे थे देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था

सिर्फ़ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिए
मैं तो वो हूँ जो किसी की मौत पर रोता न था

मुझपे कितने सानिहे गुज़रे पर उन आँखों को क्या
मेरा दुख ये हैं कि मेरा हमसफ़र रोता न था

मैंने उसके वस्ल में भी हिज्र काटा है कहीं
वो मेरे काँधे पे रख लेता था सर रोता न था

प्यार तो पहले भी उससे था मगर इतना नहीं
तब मैं उसको छू तो लेता था मगर रोता न था

गिर्या-ओ-ज़ारी को भी इक ख़ास मौसम चाहिए
मेरी आँखें देख लो मैं वक़्त पर रोता न था
Read more

Ye soch kar mera sehra mein jee nahin lagta..

ye soch kar mera sehra mein jee nahin lagta
main shaamil-e-saf-e-aawargi nahin lagta

kabhi kabhi to vo khuda ban ke saath chalta hai
kabhi kabhi to vo insaan bhi nahin lagta

yaqeen kyun nahin aata tujhe mere dil par
ye fal kaha se tujhe mausami nahin lagta

main chahta hoon vo meri jabeen pe bosa de
magar jali hui roti ko ghee nahin lagta

main uske paas kisi kaam se nahin aata
use ye kaam koi kaam hi nahin lagta
------------------------------------------------
ये सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
मैं शामिल-ए-सफ़-ए-आवारगी नहीं लगता

कभी कभी तो वो ख़ुदा बन के साथ चलता है
कभी कभी तो वो इंसान भी नहीं लगता

यक़ीन क्यूँ नहीं आता तुझे मेरे दिल पर
ये फल कहा से तुझे मौसमी नहीं लगता

मैं चाहता हूँ वो मेरी जबीं पे बोसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नहीं लगता

मैं उसके पास किसी काम से नहीं आता
उसे ये काम कोई काम ही नहीं लगता
Read more

Gale to lagana hai usse kaho abhi lag jaaye..

gale to lagana hai usse kaho abhi lag jaaye
yahi na ho mera uske baghair jee lag jaaye

main aa raha hoon tere paas ye na ho ki kahi
tera mazaak ho aur meri zindagi lag jaaye

agar koi teri raftaar maapne nikle
dimaagh kya hai jahaanon ki raushni lag jaaye

tu haath utha nahin saka to mera haath pakad
tujhe dua nahin lagti to shayari lag jaaye

pata karunga andhere mein kis se milta hai
aur is amal mein mujhe chahe aag bhi lag jaaye

hamaare haath hi jalte rahenge cigarette se
kabhi tumhaare bhi kapdon pe istree lag jaaye

har ek baat ka matlab nikaalne waalon
tumhaare naam ke aage na matlabi lag jaaye

classroom ho ya hashr kaise mumkin hai
hamaare hote teri ghair-haaziri lag jaaye

main pichhle bees baras se teri girift mein hoon
ke itne der mein to koi aayi jee lag jaaye
-----------------------------
गले तो लगना है उससे कहो अभी लग जाए
यही न हो मेरा उसके बग़ैर जी लग जाए

मैं आ रहा हूँ तेरे पास ये न हो कि कहीं
तेरा मज़ाक़ हो और मेरी ज़िंदगी लग जाए

अगर कोई तेरी रफ़्तार मापने निकले
दिमाग़ क्या है जहानों की रौशनी लग जाए

तू हाथ उठा नहीं सकता तो मेरा हाथ पकड़
तुझे दुआ नहीं लगती तो शायरी लग जाए

पता करूँगा अँधेरे में किस से मिलता है
और इस अमल में मुझे चाहे आग भी लग जाए

हमारे हाथ ही जलते रहेंगे सिगरेट से?
कभी तुम्हारे भी कपड़ों पे इस्त्री लग जाए

हर एक बात का मतलब निकालने वालों
तुम्हारे नाम के आगे न मतलबी लग जाए

क्लासरूम हो या हश्र कैसे मुमकिन है
हमारे होते तेरी ग़ैर-हाज़िरी लग जाए

मैं पिछले बीस बरस से तेरी गिरफ़्त में हूँ
के इतने देर में तो कोई आई. जी. लग जाए
Read more

mausamon ke taghayyur ko bhaanpa nahin chhatriyaan khol deen..

mausamon ke taghayyur ko bhaanpa nahin chhatriyaan khol deen
zakham bharne se pehle kisi ne meri pattiyaan khol deen

ham machheron se poocho samundar nahin hai ye ifreet hai
tum ne kya soch kar sahilon se bandhi kashtiyaan khol deen

us ne va'don ke parbat se latke huoon ko sahaara diya
us ki awaaz par koh-paimaaon ne rassiyaan khol deen

dasht-e-ghurbat mein main aur mera yaar-e-shab-zaad baaham mile
yaar ke paas jo kuchh bhi tha yaar ne gathriyaan khol deen

kuchh baras to tiri yaad ki rail dil se guzarti rahi
aur phir main ne thak haar ke ek din patriyaan khol deen

us ne seharaaon ki sair karte hue ik shajar ke tale
apni aankhon se aink utaari ki do hiraniyaan khol deen

aaj ham kar chuke ahad-e-tark-e-sukhan par raqam dastkhat
aaj ham ne naye sha'iron ke liye bhartiyaan khol deen
--------------------------------------------------
मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं
ज़ख़्म भरने से पहले किसी ने मिरी पट्टियाँ खोल दीं

हम मछेरों से पूछो समुंदर नहीं है ये इफ़रीत है
तुम ने क्या सोच कर साहिलों से बँधी कश्तियाँ खोल दीं

उस ने वा'दों के पर्बत से लटके हुओं को सहारा दिया
उस की आवाज़ पर कोह-पैमाओं ने रस्सियाँ खोल दीं

दश्त-ए-ग़ुर्बत में मैं और मिरा यार-ए-शब-ज़ाद बाहम मिले
यार के पास जो कुछ भी था यार ने गठरियाँ खोल दीं

कुछ बरस तो तिरी याद की रेल दिल से गुज़रती रही
और फिर मैं ने थक हार के एक दिन पटरियाँ खोल दीं

उस ने सहराओं की सैर करते हुए इक शजर के तले
अपनी आँखों से ऐनक उतारी कि दो हिरनियाँ खोल दीं

आज हम कर चुके अहद-ए-तर्क-ए-सुख़न पर रक़म दस्तख़त
आज हम ने नए शाइ'रों के लिए भर्तियाँ खोल दीं
Read more

Bhula diya tha jisko ek shaam yaad aa gaya..

bhula diya tha jisko ek shaam yaad aa gaya
ghazaal dekhkar vo khush-khiraam yaad aa gaya

khuda ka shukr hai ki saans tootne se peshtar
vo shakl yaad aa gai vo naam yaad aa gaya

vo jiski zulf aanchalon ki chaanv ko taras gai
shab-e-visaal usko ehtiraam yaad aa gaya

main aaj taapsi ki ek film dekhkar hata
to mujhko ik puraana intiqaam yaad aa gaya 
------------------------------------
भुला दिया था जिसको एक शाम याद आ गया
ग़ज़ाल देखकर वो ख़ुश-ख़िराम याद आ गया

ख़ुदा का शुक्र है कि साँस टूटने से पेशतर
वो शक्ल याद आ गई वो नाम याद आ गया

वो जिसकी ज़ुल्फ़ आँचलों की छाँव को तरस गई
शब-ए-विसाल उसको एहतिराम याद आ गया

मैं आज तापसी की एक फ़िल्म देखकर हटा
तो मुझको इक पुराना इंतिक़ाम याद आ गया

Read more

Tujh se mil kar to ye lagta hai ki ai ajnabi dost..

tujh se mil kar to ye lagta hai ki ai ajnabi dost
tu meri pehli mohabbat thi meri aakhiri dost

log har baat ka afsaana bana dete hain
ye to duniya hai meri jaan kai dushman kai dost

tere qamat se bhi lipti hai amar-bel koi
meri chaahat ko bhi duniya ki nazar kha gai dost

yaad aayi hai to phir toot ke yaad aayi hai
koi guzri hui manzil koi bhooli hui dost

ab bhi aaye ho to ehsaan tumhaara lekin
vo qayamat jo guzarni thi guzar bhi gai dost

tere lehje ki thakan mein tira dil shaamil hai
aisa lagta hai judaai ki ghadi aa gai dost

baarish-e-sang ka mausam hai mere shehar mein to
tu ye sheeshe sa badan le ke kahaan aa gai dost

main use ahd-shikan kaise samajh luun jis ne
aakhiri khat mein ye likkha tha faqat aap ki dost
----------------------------------------
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त

लोग हर बात का अफ़्साना बना देते हैं
ये तो दुनिया है मिरी जाँ कई दुश्मन कई दोस्त

तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त

अब भी आए हो तो एहसान तुम्हारा लेकिन
वो क़यामत जो गुज़रनी थी गुज़र भी गई दोस्त

तेरे लहजे की थकन में तिरा दिल शामिल है
ऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त

बारिश-ए-संग का मौसम है मिरे शहर में तो
तू ये शीशे सा बदन ले के कहाँ आ गई दोस्त

मैं उसे अहद-शिकन कैसे समझ लूँ जिस ने
आख़िरी ख़त में ये लिक्खा था फ़क़त आप की दोस्त

Read more

Saaqiya ek nazar jaam se pehle pehle..

saaqiya ek nazar jaam se pehle pehle
ham ko jaana hai kahi shaam se pehle pehle

nau-giraftaar-e-wafa saee-e-rihaaee hai abas
ham bhi uljhe the bahut daam se pehle pehle

khush ho ai dil ki mohabbat to nibha di tu ne
log ujad jaate hain anjaam se pehle pehle

ab tire zikr pe ham baat badal dete hain
kitni raghbat thi tire naam se pehle pehle

saamne umr padi hai shab-e-tanhaai ki
vo mujhe chhod gaya shaam se pehle pehle

kitna achha tha ki ham bhi jiya karte the faraaz
ghair-maaruf se gumnaam se pehle pehle
---------------------------------------
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले

नौ-गिरफ़्तार-ए-वफ़ा सई-ए-रिहाई है अबस
हम भी उलझे थे बहुत दाम से पहले पहले

ख़ुश हो ऐ दिल कि मोहब्बत तो निभा दी तू ने
लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले

अब तिरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तिरे नाम से पहले पहले

सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले

कितना अच्छा था कि हम भी जिया करते थे 'फ़राज़'
ग़ैर-मारूफ़ से गुमनाम से पहले पहले
Read more

Juz tire koi bhi din raat na jaane mere..

juz tire koi bhi din raat na jaane mere
tu kahaan hai magar ai dost purane mere

tu bhi khushboo hai magar mera tajassus bekar
barg-e-aawara ki maanind thikaane mere

sham'a ki lau thi ki vo tu tha magar hijr ki raat
der tak rota raha koi sirhaane mere

khalk ki be-khabri hai ki meri ruswaai
log mujh ko hi sunaate hain fasaane mere

loot ke bhi khush hoon ki ashkon se bhara hai daaman
dekh ghaarat-gar-e-dil ye bhi khazaane mere

aaj ik aur baras beet gaya us ke baghair
jis ke hote hue hote the zamaane mere

kaash tu bhi meri awaaz kahi sunta ho
phir pukaara hai tujhe dil ki sada ne mere

kaash tu bhi kabhi aa jaaye masihaai ko
log aate hain bahut dil ko dukhaane mere

kaash auron ki tarah main bhi kabhi kah saka
baat sun li hai meri aaj khuda ne mere

tu hai kis haal mein ai zood-faramosh mere
mujh ko to cheen liya ahad-e-wafaa ne mere

chaaragar yun to bahut hain magar ai jaan-e-'faraz
juz tire aur koi zakham na jaane mere 
--------------------------------------
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे

तू भी ख़ुशबू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार
बर्ग-ए-आवारा की मानिंद ठिकाने मेरे

शम्अ की लौ थी कि वो तू था मगर हिज्र की रात
देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे

ख़ल्क़ की बे-ख़बरी है कि मिरी रुस्वाई
लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे

लुट के भी ख़ुश हूँ कि अश्कों से भरा है दामन
देख ग़ारत-गर-ए-दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे

आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे

काश तू भी मेरी आवाज़ कहीं सुनता हो
फिर पुकारा है तुझे दिल की सदा ने मेरे

काश तू भी कभी आ जाए मसीहाई को
लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे

काश औरों की तरह मैं भी कभी कह सकता
बात सुन ली है मिरी आज ख़ुदा ने मेरे

तू है किस हाल में ऐ ज़ूद-फ़रामोश मिरे
मुझ को तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे

चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-'फ़राज़'
जुज़ तिरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे
Read more

Khaamosh ho kyun daad-e-jafa kyun nahin dete..

khaamosh ho kyun daad-e-jafa kyun nahin dete
bismil ho to qaateel ko dua kyun nahin dete

vehshat ka sabab rauzan-e-zindaan to nahin hai
mehr o mah o anjum ko bujha kyun nahin dete

ik ye bhi to andaaz-e-ilaaj-e-gham-e-jaan hai
ai chaaragaro dard badha kyun nahin dete

munsif ho agar tum to kab insaaf karoge
mujrim hain agar ham to saza kyun nahin dete

rehzan ho to haazir hai mata-e-dil-o-jaan bhi
rahbar ho to manzil ka pata kyun nahin dete

kya beet gai ab ke faraaz ahl-e-chaman par
yaaraan-e-qafas mujh ko sada kyun nahin dete 
------------------------------------
ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते

वहशत का सबब रौज़न-ए-ज़िंदाँ तो नहीं है
मेहर ओ मह ओ अंजुम को बुझा क्यूँ नहीं देते

इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है
ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते

मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

रहज़न हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ भी
रहबर हो तो मंज़िल का पता क्यूँ नहीं देते

क्या बीत गई अब के 'फ़राज़' अहल-ए-चमन पर
यारान-ए-क़फ़स मुझ को सदा क्यूँ नहीं देते
Read more

Phir usi rahguzar par shaayad..

phir usi rahguzar par shaayad
ham kabhi mil saken magar shaayad

jin ke ham muntazir rahe un ko
mil gaye aur hum-safar shaayad

jaan-pahchaan se bhi kya hoga
phir bhi ai dost ghaur kar shaayad

ajnabbiyyat ki dhund chhat jaaye
chamak utthe tiri nazar shaayad

zindagi bhar lahu rulaayegi
yaad-e-yaaraan-e-be-khabar shaayad

jo bhi bichhde vo kab mile hain faraaz
phir bhi tu intizaar kar shaayad
----------------------------
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद

जिन के हम मुंतज़िर रहे उन को
मिल गए और हम-सफ़र शायद

जान-पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद

अज्नबिय्यत की धुँद छट जाए
चमक उठ्ठे तिरी नज़र शायद

ज़िंदगी भर लहू रुलाएगी
याद-ए-यारान-ए-बे-ख़बर शायद

जो भी बिछड़े वो कब मिले हैं 'फ़राज़'
फिर भी तू इंतिज़ार कर शायद
Read more

Aise chup hain ki ye manzil bhi kaddi ho jaise..

aise chup hain ki ye manzil bhi kaddi ho jaise
tera milna bhi judaai ki ghadi ho jaise

apne hi saaye se har gaam larz jaata hoon
raaste mein koi deewaar khadi ho jaise

kitne naadaan hain tire bhoolne waale ki tujhe
yaad karne ke liye umr padi ho jaise

tere maathe ki shikan pehle bhi dekhi thi magar
ye girah ab ke mere dil mein padi ho jaise

manzilen door bhi hain manzilen nazdeek bhi hain
apne hi paanv mein zanjeer padi ho jaise

aaj dil khol ke roye hain to yun khush hain faraaz
chand lamhon ki ye raahat bhi badi ho jaise
----------------------------------------
ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे

अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे

कितने नादाँ हैं तिरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे

तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर
ये गिरह अब के मिरे दिल में पड़ी हो जैसे

मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पाँव में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे

आज दिल खोल के रोए हैं तो यूँ ख़ुश हैं 'फ़राज़'
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे
Read more

barson ke baad dekha ik shakhs dilruba sa..

barson ke baad dekha ik shakhs dilruba sa
ab zehan mein nahin hai par naam tha bhala sa

abroo khinche khinche se aankhen jhuki jhuki si
baatein ruki ruki si lahja thaka thaka sa

alfaaz the ki jugnoo awaaz ke safar mein
ban jaaye junglon mein jis tarah raasta sa

khwaabon mein khwaab uske yaadon mein yaad uski
neendon mein khul gaya ho jaise ki ratjaga sa

pehle bhi log aaye kitne hi zindagi mein
woh har tarah se lekin auron se tha juda sa

kuchh ye ki muddaton se ham bhi nahin the roye
kuchh zahar mein khula tha ahbaab ka dilaasa

phir yun hua ki saawan aankhon mein aa base the
phir yun hua ki jaise dil bhi tha aablaa sa

ab sach kahein to yaaron hamko khabar nahin thi
ban jaayega qayamat ik waqia zara sa

tevar the be-rukhi ke andaaz dosti ke
woh ajnabi tha lekin lagta tha aashnaa sa

ham dasht the ki dariya ham zahar the ki amrit
na-haq tha zoom hamko jab vo nahin tha pyaasa

hamne bhi usko dekha kal shaam ittefaqan
apna bhi haal hai ab logon faraaz ka sa
-------------------------------------
बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़ेहन में नहीं है पर नाम था भला सा

अबरू खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा

अल्फ़ाज़ थे कि जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाए जंगलों में जिस तरह रास्ता सा

ख़्वाबों में ख़्वाब उसके यादों में याद उसकी
नींदों में खुल गया हो जैसे कि रतजगा सा

पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में
वह हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा

कुछ ये कि मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोए
कुछ ज़हर में खुला था अहबाब का दिलासा

फिर यूँ हुआ कि सावन आँखों में आ बसे थे
फिर यूँ हुआ कि जैसे दिल भी था आबला सा

अब सच कहें तो यारों हमको ख़बर नहीं थी
बन जाएगा क़यामत इक वाक़िआ ज़रा सा

तेवर थे बे-रुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के
वह अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा

हम दश्त थे कि दरिया हम ज़हर थे कि अमृत
ना-हक़ था ज़ोम हमको जब वो नहीं था प्यासा

हमने भी उसको देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न
अपना भी हाल है अब लोगों फ़राज़ का सा
Read more

kis taraf ko chalti hai ab hawa nahin maaloom..

kis taraf ko chalti hai ab hawa nahin maaloom
haath utha liye sabne aur dua nahin maaloom

mausamon ke chehron se zardiyaan nahin jaati
phool kyun nahin lagte khush-numa nahin maaloom

rahbaro'n ke tevar bhi rahzano se lagte hain
kab kahaan pe loot jaaye qaafila nahin maaloom

sarv to gai rut mein qaamaten ganwa baithe
qumariyaan hui kaise be-sada nahin maaloom

aaj sabko daava hai apni apni chaahat ka
kaun kis se hota hai kal juda nahin maaloom

manzaron kii tabdeeli bas nazar mein rahti hai
ham bhi hote jaate hain kya se kya nahin maaloom

ham faraaz sheron se dil ke zakhm bharte hain
kya karein maseeha ko jab dava nahin maaloom
----------------------------------------------
किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम
हाथ उठा लिए सबने और दुआ नहीं मालूम

मौसमों के चेहरों से ज़र्दियाँ नहीं जाती
फूल क्यूँ नहीं लगते ख़ुश-नुमा नहीं मालूम

रहबरों के तेवर भी रहज़नों से लगते हैं
कब कहाँ पे लुट जाए क़ाफ़िला नहीं मालूम

सर्व तो गई रुत में क़ामतें गँवा बैठे
क़ुमरियाँ हुईं कैसे बे-सदा नहीं मालूम

आज सबको दावा है अपनी अपनी चाहत का
कौन किस से होता है कल जुदा नहीं मालूम

मंज़रों की तब्दीली बस नज़र में रहती है
हम भी होते जाते हैं क्या से क्या नहीं मालूम

हम 'फ़राज़' शेरों से दिल के ज़ख़्म भरते हैं
क्या करें मसीहा को जब दवा नहीं मालूम
Read more

Darbaar mein ab satwat-e-shaahi ki alaamat..

darbaar mein ab satwat-e-shaahi ki alaamat
darbaan ka asa hai ki musannif ka qalam hai

aawaara hai phir koh-e-nida par jo basharat
tamheed-e-masarrat hai ki tool-e-shab-e-gham hai

jis dhajji ko galiyon mein liye firte hain tiflaan
ye mera garebaan hai ki lashkar ka alam hai

jis noor se hai shehar ki deewaar darkhshan
ye khun-e-shaheedaan hai ki zar-khaana-e-jam hai

halka kiye baithe raho ik sham'a ko yaaro
kuchh raushni baaki to hai har-chand ki kam hai
-------------------------------------
दरबार में अब सतवत-ए-शाही की अलामत
दरबाँ का असा है कि मुसन्निफ़ का क़लम है

आवारा है फिर कोह-ए-निदा पर जो बशारत
तम्हीद-ए-मसर्रत है कि तूल-ए-शब-ए-ग़म है

जिस धज्जी को गलियों में लिए फिरते हैं तिफ़्लाँ
ये मेरा गरेबाँ है कि लश्कर का अलम है

जिस नूर से है शहर की दीवार दरख़्शाँ
ये ख़ून-ए-शहीदाँ है कि ज़र-ख़ाना-ए-जम है

हल्क़ा किए बैठे रहो इक शम्अ को यारो
कुछ रौशनी बाक़ी तो है हर-चंद कि कम है
Read more

Go sab ko bahm saaghar o baada to nahin tha..

go sab ko bahm saaghar o baada to nahin tha
ye shehar udaas itna ziyaada to nahin tha

galiyon mein fira karte the do chaar deewane
har shakhs ka sad chaak labaada to nahin tha

manzil ko na pahchaane rah-e-ishq ka raahi
naadaan hi sahi aisa bhi saada to nahin tha

thak kar yoonhi pal bhar ke liye aankh lagi thi
so kar hi na utthen ye iraada to nahin tha

wa'iz se rah-o-rasm rahi rind se sohbat
farq in mein koi itna ziyaada to nahin tha
-----------------------------------
गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था
ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था

गलियों में फिरा करते थे दो चार दिवाने
हर शख़्स का सद चाक लबादा तो नहीं था

मंज़िल को न पहचाने रह-ए-इश्क़ का राही
नादाँ ही सही ऐसा भी सादा तो नहीं था

थक कर यूँही पल भर के लिए आँख लगी थी
सो कर ही न उट्ठें ये इरादा तो नहीं था

वाइ'ज़ से रह-ओ-रस्म रही रिंद से सोहबत
फ़र्क़ इन में कोई इतना ज़ियादा तो नहीं था
Read more

sabhi kuchh hai tera diya hua sabhi raahatein sabhi kulphatein..

sabhi kuchh hai tera diya hua sabhi raahatein sabhi kulphatein
kabhi sohbaten kabhi furqatein kabhi dooriyaan kabhi qurbaten

ye sukhun jo ham ne raqam kiye ye hain sab varq tiri yaad ke
koi lamha subh-e-visaal ka koi shaam-e-hijr ki muddatein

jo tumhaari maan len naaseha to rahega daaman-e-dil mein kya
na kisi adoo ki adaavaten na kisi sanam ki muravvatein

chalo aao tum ko dikhaayein ham jo bacha hai maqtal-e-shehr mein
ye mazaar ahl-e-safa ke hain ye hain ahl-e-sidq ki turbatein

meri jaan aaj ka gham na kar ki na jaane kaatib-e-waqt ne
kisi apne kal mein bhi bhool kar kahi likh rakhi hon masarratein 
-------------------------------------------------
सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें
कभी सोहबतें कभी फ़ुर्क़तें कभी दूरियाँ कभी क़ुर्बतें

ये सुख़न जो हम ने रक़म किए ये हैं सब वरक़ तिरी याद के
कोई लम्हा सुब्ह-ए-विसाल का कोई शाम-ए-हिज्र की मुद्दतें

जो तुम्हारी मान लें नासेहा तो रहेगा दामन-ए-दिल में क्या
न किसी अदू की अदावतें न किसी सनम की मुरव्वतें

चलो आओ तुम को दिखाएँ हम जो बचा है मक़्तल-ए-शहर में
ये मज़ार अहल-ए-सफ़ा के हैं ये हैं अहल-ए-सिद्क़ की तुर्बतें

मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने
किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें
Read more

aap kii yaad aati rahi raat bhar..

aap kii yaad aati rahi raat bhar
chaandni dil dukhaati rahi raat bhar

gaah jaltee hui gaah bujhti hui
sham-e-gham jhilmilaati rahi raat bhar

koii khushboo badalti rahi pairhan
koii tasveer gaati rahi raat bhar

phir saba saaya-e-shaakh-e-gul ke tale
koii qissa sunaati rahi raat bhar

jo na aaya use koii zanjeer-e-dar
har sada par bulaati rahi raat bhar

ek ummeed se dil bahalta raha
ik tamannaa sataati rahi raat bhar
----------------------------------
आप की याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर

कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर

फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर

जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात भर

एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर
Read more

Ham jee rahe hain koi bahaana kiye baghair..

ham jee rahe hain koi bahaana kiye baghair
us ke baghair us ki tamannaa kiye baghair

ambaar us ka parda-e-hurmat bana miyaan
deewaar tak nahin giri parda kiye baghair

yaaraan vo jo hai mera maseeha-e-jaan-o-dil
be-had aziz hai mujhe achha kiye baghair

main bistar-e-khayaal pe leta hoon us ke paas
subh-e-azl se koi taqaza kiye baghair

us ka hai jo bhi kuchh hai mera aur main magar
vo mujh ko chahiye koi sauda kiye baghair

ye zindagi jo hai use maana bhi chahiye
wa'da hamein qubool hai ifa kiye baghair

ai qaatilon ke shehar bas itni hi arz hai
main hoon na qatl koi tamasha kiye baghair

murshid ke jhooth ki to saza be-hisaab hai
tum chhodio na shehar ko sehra kiye baghair

un aangaanon mein kitna sukoon o suroor tha
aaraish-e-nazar tiri parwa kiye baghair

yaaraan khusa ye roz o shab-e-dil ki ab hamein
sab kuchh hai khush-gawaar gawara kiye baghair

giryaa-kunaan ki fard mein apna nahin hai naam
ham giryaa-kun azal ke hain giryaa kiye baghair

aakhir hain kaun log jo bakshe hi jaayenge
taarikh ke haraam se tauba kiye baghair

vo sunni baccha kaun tha jis ki jafaa ne jaun
shiaa bana diya hamein shiaa kiye baghair

ab tum kabhi na aaoge ya'ni kabhi kabhi
ruksat karo mujhe koi wa'da kiye baghair
----------------------------------
हम जी रहे हैं कोई बहाना किए बग़ैर
उस के बग़ैर उस की तमन्ना किए बग़ैर

अम्बार उस का पर्दा-ए-हुरमत बना मियाँ
दीवार तक नहीं गिरी पर्दा किए बग़ैर

याराँ वो जो है मेरा मसीहा-ए-जान-ओ-दिल
बे-हद अज़ीज़ है मुझे अच्छा किए बग़ैर

मैं बिस्तर-ए-ख़याल पे लेटा हूँ उस के पास
सुब्ह-ए-अज़ल से कोई तक़ाज़ा किए बग़ैर

उस का है जो भी कुछ है मिरा और मैं मगर
वो मुझ को चाहिए कोई सौदा किए बग़ैर

ये ज़िंदगी जो है उसे मअना भी चाहिए
वा'दा हमें क़ुबूल है ईफ़ा किए बग़ैर

ऐ क़ातिलों के शहर बस इतनी ही अर्ज़ है
मैं हूँ न क़त्ल कोई तमाशा किए बग़ैर

मुर्शिद के झूट की तो सज़ा बे-हिसाब है
तुम छोड़ियो न शहर को सहरा किए बग़ैर

उन आँगनों में कितना सुकून ओ सुरूर था
आराइश-ए-नज़र तिरी पर्वा किए बग़ैर

याराँ ख़ुशा ये रोज़ ओ शब-ए-दिल कि अब हमें
सब कुछ है ख़ुश-गवार गवारा किए बग़ैर

गिर्या-कुनाँ की फ़र्द में अपना नहीं है नाम
हम गिर्या-कुन अज़ल के हैं गिर्या किए बग़ैर

आख़िर हैं कौन लोग जो बख़्शे ही जाएँगे
तारीख़ के हराम से तौबा किए बग़ैर

वो सुन्नी बच्चा कौन था जिस की जफ़ा ने 'जौन'
शीआ' बना दिया हमें शीआ' किए बग़ैर

अब तुम कभी न आओगे या'नी कभी कभी
रुख़्सत करो मुझे कोई वा'दा किए बग़ैर
Read more

Be-dili kya yoonhi din guzar jaayenge..

be-dili kya yoonhi din guzar jaayenge
sirf zinda rahe ham to mar jaayenge

raqs hai rang par rang ham-raks hain
sab bichhad jaayenge sab bikhar jaayenge

ye kharabatiyaan-e-khird-baakhta
subah hote hi sab kaam par jaayenge

kitni dilkash ho tum kitna dil-joo hoon main
kya sitam hai ki ham log mar jaayenge

hai ghaneemat ki asraar-e-hasti se ham
be-khabar aaye hain be-khabar jaayenge 
-----------------------------------
बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे

रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं
सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे

ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे

है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम
बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे
Read more

Koii haalat nahin ye haalat hai..

koii haalat nahin ye haalat hai
ye to aashob-naak soorat hai

anjuman mein ye meri khaamoshi
burdabaari nahin hai vehshat hai

tujh se ye gaah-gaah ka shikwa
jab talak hai basaa ghaneemat hai

khwaahishein dil ka saath chhod gaeein
ye aziyyat badi aziyyat hai

log masroof jaante hain mujhe
yaa mera gham hi meri fursat hai

tanj pairaaya-e-tabasum mein
is takalluf kii kya zaroorat hai

ham ne dekha to ham ne ye dekha
jo nahin hai vo khoobsurat hai

vaar karne ko jaan-nisaar aayein
ye to eesaar hai inaayat hai

garm-joshi aur is qadar kya baat
kya tumhein mujh se kuchh shikaayat hai

ab nikal aao apne andar se
ghar mein samaan kii zaroorat hai

aaj ka din bhi aish se guzra
sar se pa tak badan salaamat hai
------------------------------------
 कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोब-नाक सूरत है

अंजुमन में ये मेरी ख़ामोशी
बुर्दबारी नहीं है वहशत है

तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा
जब तलक है बसा ग़नीमत है

ख़्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं
ये अज़िय्यत बड़ी अज़िय्यत है

लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
याँ मिरा ग़म ही मेरी फ़ुर्सत है

तंज़ पैराया-ए-तबस्सुम में
इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है

हम ने देखा तो हम ने ये देखा
जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है

वार करने को जाँ-निसार आएँ
ये तो ईसार है 'इनायत है

गर्म-जोशी और इस क़दर क्या बात
क्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत है

अब निकल आओ अपने अंदर से
घर में सामान की ज़रूरत है

आज का दिन भी 'ऐश से गुज़रा
सर से पा तक बदन सलामत है
Read more

Iza-dahi ki daad jo paata raha hoon main..

Iza-dahi ki daad jo paata raha hoon main
Har naaz-aafreen ko sataata raha hoon main

Ae khush-khiraam paanv ke chaale to gin zara
Tujh ko kahan kahan na phiraata raha hoon main

Ek husn-e-be-misaal ki tamseel ke liye
Parchhaiyon pe rang giraata raha hoon main

Kya mil gaya zameer-e-hunar bech kar mujhe
Itna ki sirf kaam chalaata raha hoon main

Ruhon ke parda-posh gunaahon se be-khabar
Jismon ki nekiyaan hi ginata raha hoon main

Tujh ko khabar nahin ki tera karb dekh kar
Aksar tera mazaaq udaata raha hoon main

Shayad mujhe kisi se mohabbat nahin hui
Lekin yaqeen sab ko dilaata raha hoon main

Ek satr bhi kabhi na likhi main ne tere naam
Paagal tujhi ko yaad bhi aata raha hoon main

Jis din se e'timaad mein aaya tera shabaab
Us din se tujh pe zulm hi dhaata raha hoon main

Apna misaaliya mujhe ab tak na mil saka
Zarron ko aaftaab banaata raha hoon main

Bedaar kar ke tere badan ki khud-aagahi
Tere badan ki umr ghataata raha hoon main

Kal dopahar ajeeb si ek be-dili rahi
Bas teeliyan jala ke bujhaata raha hoon main
--------------------------------------------------------------
ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं
हर नाज़-आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं

ऐ ख़ुश-ख़िराम पाँव के छाले तो गिन ज़रा
तुझ को कहाँ कहाँ न फिराता रहा हूँ मैं

इक हुस्न-ए-बे-मिसाल की तमसील के लिए
परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं

क्या मिल गया ज़मीर-ए-हुनर बेच कर मुझे
इतना कि सिर्फ़ काम चलाता रहा हूँ मैं

रूहों के पर्दा-पोश गुनाहों से बे-ख़बर
जिस्मों की नेकियाँ ही गिनाता रहा हूँ मैं

तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख कर
अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं

शायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हुई
लेकिन यक़ीन सब को दिलाता रहा हूँ मैं

इक सत्र भी कभी न लिखी मैं ने तेरे नाम
पागल तुझी को याद भी आता रहा हूँ मैं

जिस दिन से ए'तिमाद में आया तिरा शबाब
उस दिन से तुझ पे ज़ुल्म ही ढाता रहा हूँ मैं

अपना मिसालिया मुझे अब तक न मिल सका
ज़र्रों को आफ़्ताब बनाता रहा हूँ मैं

बेदार कर के तेरे बदन की ख़ुद-आगही
तेरे बदन की उम्र घटाता रहा हूँ मैं

कल दोपहर अजीब सी इक बे-दिली रही
बस तीलियाँ जला के बुझाता रहा हूँ मैं
Read more

har ik hazar men bas panch saat hain ham log..

har ik hazar men bas panch saat hain ham log
nisab-e-ishq pe vājib zakat hain ham log

dabao men bhi jamaat kabhi nahin badli
shurua din se mohabbat ke saath hain ham log

jo sikhni ho zaban-e-sukut bismillah
ḳhamoshiyon kī mukammal luġhat hain ham log

kahaniyon ke vo kirdar jo likhe na gae
ḳhabar se hazf-shuda vaqiat hain ham log

ye intizar hamen dekh kar banaya gaya
zuhur-e-hijr se pahle ki baat hain ham log

kisi ko rasta de den kisi ko paani na den
kahin pe niil kahin par furat hain ham log

hamen jala ke koi shab guzar sakta hai
saḌak pe bikhre hue kaġhzat hain ham log
------------------------------------------
हर एक हज़ार में बस पाँच-सात हैं हम लोग,
निसाब-ए-इश्क़ पे वाजिब ज़कात हैं हम लोग।

दबाव में भी जमात कभी नहीं बदली,
शुरुआत दिन से मोहब्बत के साथ हैं हम लोग।

जो सीखनी हो ज़बान-ए-सुकूत, बिस्मिल्लाह,
खामोशियों की मुकम्मल लुग़ात हैं हम लोग।

कहानियों के वो किरदार जो लिखे न गए,
ख़बर से हज़्फ़-शुदा वाक़ियात हैं हम लोग।

ये इंतज़ार हमें देखकर बनाया गया,
ज़ुहूर-ए-हिज्र से पहले की बात हैं हम लोग।

किसी को रास्ता दे दें, किसी को पानी न दें,
कहीं पे नील, कहीं पर फरात हैं हम लोग।

हमें जलाकर कोई रात गुज़ार सकता है,
सड़क पे बिखरे हुए काग़ज़ात हैं हम लोग।
Read more

Kuchh safine hain jo gharqab ikaTThe honge..

kuchh safine hain jo gharqab ikaTThe honge
aankh men ḳhvab tah-e-ab ikaTThe honge

jin ke dil joḌte ye umr bita di main ne
jab marunga to ye ahbab ikaTThe honge

muntashir kar ke zamanon ko khangala jaae
tab kahin ja ke mire ḳhvab ikaTThe honge

ek hi ishq men donon ka junūn zam hoga
pyaas yaksan hai to sairab ikaTThe honge

mujh ko raftar chamak tujh ko ghaTani hogi
varna kaise zar-o-simab ikaTThe honge

us ki tah se kabhi daryaft kiya jaunga main
jis samundar men ye sailāb ikaTThe honge
--------------------------------------
कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे,
आँख में ख़्वाब तह-ए-आब इकट्ठे होंगे।

जिनके दिल जोड़ते ये उम्र बिता दी मैंने,
जब मरूँगा तो ये अहबाब इकट्ठे होंगे।

मुन्तशिर करके ज़मानों को खंगाला जाए,
तब कहीं जा के मेरे ख़्वाब इकट्ठे होंगे।

एक ही इश्क़ में दोनों का जुनून ज़म होगा,
प्यास यकसां है तो सैराब इकट्ठे होंगे।

मुझको रफ़्तार, चमक तुझको घटानी होगी,
वरना कैसे ज़र-ओ-सिम्माब इकट्ठे होंगे।

उसकी तह से कभी दरयाफ़्त किया जाऊँगा मैं,
जिस समंदर में ये सैलाब इकट्ठे होंगे।
Read more

Main ne jo raah li dushvar ziyada nikli..

main ne jo raah li dushvar ziyada nikli
mere andaze se har baar ziyada nikli

koi rauzan na jharoka na koi darvaza
meri taamir men divar ziyada nikli

ye miri maut ke asbāb men likkha hua hai
ḳhuun men ishq ki miqdar ziyada nikli

kitni jaldi diya ghar valon ko phal aur saaya
mujh se to peḌ ki raftar ziyada nikli
-------------------------------------
मैंने जो राह ली, दुश्वार ज़्यादा निकली,
मेरे अंदाज़े से हर बार ज़्यादा निकली।

कोई रोशनदान, न झरोखा, न कोई दरवाज़ा,
मेरी तामीर में दीवार ज़्यादा निकली।

ये मेरी मौत के असबाब में लिखा हुआ है,
ख़ून में इश्क़ की मात्रा ज़्यादा निकली।

कितनी जल्दी दिया घरवालों को फल और साया,
मुझसे तो पेड़ की रफ़्तार ज़्यादा निकली।

Read more

Phone to duur vahan khat bhi nahin pahunchenge..

phone to duur vahan khat bhi nahin pahunchenge
ab ke ye log tumhen aisi jagah bhejenge

zindagi dekh chuke tujh ko bade parde par
aaj ke baad koi film nahin dekhenge

masala ye hai main dushman ke qarin pahunchunga
aur kabutar miri talvar pe aa baiThenge

ham ko ik baar kinaron se nikal jaane do
phir to sailab ke paani kī tarah phailenge

tu vo dariya hai agar jaldi nahin ki tu ne
khud samundar tujhe milne ke liye aenge

seġha-e-raz men rakkhenge nahin ishq tira
ham tire naam se ḳhushb ki dukan kholenge
-----------------------------------------
फ़ोन तो दूर, वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे,
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे।

ज़िंदगी देख चुके तुझको बड़े पर्दे पर,
आज के बाद कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे।

मसला ये है, मैं दुश्मन के करीब पहुँचूंगा,
और कबूतर मेरी तलवार पे आ बैठेंगे।

हमको एक बार किनारों से निकल जाने दो,
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे।

तू वो दरिया है, अगर जल्दी नहीं की तूने,
ख़ुद समंदर तुझे मिलने के लिए आएंगे।

सिग़हा-ए-राज़ में रखेंगे नहीं इश्क़ तेरा,
हम तेरे नाम से ख़ुशबू की दुकान खोलेंगे।
Read more

Mere kamre men ik aisi khiḌki hai..

mere kamre men ik aisi khiḌki hai
jo in ankhon ke khulne par khulti hai

aise tevar dushman hi ke hote hain
pata karo ye laḌki kis ki beTi hai

raat ko is jangal men rukna Thiik nahin
is se aage tum logon ki marzi hai

main is shahar ka chand huun aur ye janta huun
kaun si laḌki kis khiḌki men baiThi hai

jab tu shaam ko ghar jaae to paḌh lena
tere bistar par ik chiTThi chhoḌi hai

us ki ḳhatir ghar se bahar Thahra huun
varna ilm hai chabi gate pe rakkhi hai
-----------------------------------------
मेरे कमरे में एक ऐसी खिड़की है
जो इन आँखों के खुलने पर खुलती है।

ऐसे तेवर दुश्मन ही के होते हैं,
पता करो यह लड़की किस की बेटी है।

रात को इस जंगल में रुकना ठीक नहीं,
इससे आगे तुम लोगों की मर्ज़ी है।

मैं इस शहर का चाँद हूँ और यह जानता हूँ,
कौन सी लड़की किस खिड़की में बैठी है।

जब तू शाम को घर जाए तो पढ़ लेना,
तेरे बिस्तर पर एक चिट्ठी छोड़ी है।

उसकी ख़ातिर घर से बाहर ठहरा हूँ,
वरना इल्म है चाबी गेट पे रखी है।



Read more

Aise us haath se gire ham log..

aise us haath se gire ham log
TuTte TuTte bache ham log

apna qissa suna raha hai koi
aur divar ke bane ham log

vasl ke bhed kholti miTTi
chadaren jhaḌte hue ham log

us kabutar ne apni marzi ki
siTiyan marte rahe ham log

puchhne par koi nahin bola
kaise darvaza kholte ham log

hafize ke liye dava khaai
aur bhi bhulne lage ham log

ain mumkin tha lauT aata vo
us ke pichhe nahin gae ham log
---------------------------------
ऐसे उस हाथ से गिरे हम लोग
टूटे टूटे बचे हम लोग

अपना क़िस्सा सुना रहा है कोई
और दीवार के बने हम लोग

वस्ल के भेद खोलती मिट्टी
चादरें झाड़ते हुए हम लोग

उस कबूतर ने अपनी मरज़ी की
सीटियां मारते रहे हम लोग

पूछने पर कोई नहीं बोला
कैसे दरवाज़ा खोलते हम लोग

हाफिज़े के लिए दवा खाई
और भी भूलने लगे हम लोग

ऐन मुमकिन था लौट आता वो
उस के पीछे नहीं गए हम लोग

Read more

Vaqt hi kam tha faisle ke liye..

vaqt hi kam tha faisle ke liye
varna main aata mashvare ke liye

tum ko achchhe lage to tum rakh lo
phuul toḌe the bechne ke liye

ghanTon ḳhamosh rahna paḌta hai
aap ke saath bolne ke liye

saikaḌon kunDiyan laga raha huun
chand batnon ko kholne ke liye

ek divar baaġh se pahle
ik dupaTTa khule gale ke liye

tark apni falah kar di hai
aur kya ho muashare ke liye

log ayat paḌh ke sote hain
aap ke ḳhvab dekhne ke liye

ab main raste men leT jaun kya
jaane valon ko rokne ke liye
--------------------------------
वक्त ही कम था फैसले के लिए
वरना मैं आता मशवरे के लिए

तुम को अच्छे लगे तो तुम रख लो
फूल तोड़े थे बेचने के लिए

घंटों खामोश रहना पड़ता है
आप के साथ बोलने के लिए

सैकड़ों कुंडियाँ लगा रहा हूँ
चंद बातों को खोलने के लिए

एक दीवार बाग़ से पहले
एक दुपट्टा खुले गले के लिए

तर्क अपनी फला कर दी है
और क्या हो मुशहरे के लिए

लोग आयत पढ़ के सोते हैं
आप के ख़्वाब देखने के लिए

अब मैं रास्ते में लेट जाऊँ क्या
जाने वालों को रोकने के लिए
Read more

tum ne bhi un se hi milna hota hai..

tum ne bhi un se hi milna hota hai
jin logon se mera jhagḌa hota hai

us ke gaanv Ki ek nishani ye bhi hai
har nalke ka paani miTha hota hai

main us shaḳhs se thoḌa aage chalta huun
jis ka main ne pichha karna hota hai

tum meri duniya men bilkul aise ho
taash men jaise hukum ka ikka hota hai

kitne sukhe peḌ bacha sakte hain ham
har jangal men lakkaḌhara hota hai
---------------------------------------
तुम ने भी उन से ही मिलना होता है
जिन लोगों से मेरा झगड़ा होता है

उस के गाँव की एक निशानी ये भी है
हर नलके का पानी मीठा होता है

मैं उस शख्स से थोड़ा आगे चलता हूँ
जिस का मैंने पीछा करना होता है

तुम मेरी दुनिया में बिलकुल ऐसे हो
ताश में जैसे हुक़्म का इक्का होता है

कितने सूखे पेड़ बचा सकते हैं हम
हर जंगल में लकड़हारा होता है

Read more

Bol padte hain ham jo aage se..

Bol padte hain ham jo aage se
pyaar baḌhta hai is ravayye se

main vahi huun yaqin karo mera
main jo lagta nahin huun chehre se

ham ko niche utaar lenge log
ishq laTka rahega pankhe se

saara kuchh lag raha hai be-tartib
ek shai aage pichhe hone se

vaise bhi kaun si zaminen thiin
main bahut ḳhush huun aq-name se

ye mohabbat vo ghaaT hai jis par
daaġh lagte hain kapḌe dhone se
---------------------------------
बोल पढ़ते हैं हम जो आगे से
प्यार बढ़ता है इस रवये से

मैं वही हूँ, यकीन करो मेरा
मैं जो लगता नहीं हूँ चेहरे से

हम को नीचे उतार लेंगे लोग
इश्क लटका रहेगा पंखे से

सारा कुछ लग रहा है बे-तरीब
एक शै आगे-पीछे होने से

वैसे भी कौन सी ज़मीनें थीं
मैं बहुत खुश हूँ आख़नामे से

ये मोहब्बत वो घाट है जिस पर
दाग लगते हैं कपड़े धोने से

Read more

Miri bhanvon ke ain darmiyan ban gaya..

Miri bhanvon ke ain darmiyan ban gaya
jabin pe intizar ka nishan ban gaya

suna hua tha hijr mustaqil tanav hai
vahi hua mira badan kaman ban gaya

muhib chup men ahaTon ka vahima hava
main sar se paanv tak tamam kaan ban gaya

hava se raushni se rabta nahin raha
jidhar thiin khiḌkiyan udhar makan ban gaya

shurua din se ghar main sun raha tha is liye
sukut meri madari zaban ban gaya

aur ek din khinchi hui lakir miT gai
guman yaqin bana yaqin guman ban gaya

kai ḳhafif gham mile malal ban gae
zara zara si katranon se thaan ban gaya

mire baḌon ne adatan chuna tha ek dasht
vo bas gaya 'rahim' yar-ḳhan ban gaya
-----------------------------------------
मेरी भंवों के बीच दरमियान बन गया
जबीन पे इंतजार का निशान बन गया

सुना हुआ था हिज्र मुस्तक़िल तनाव है
वही हुआ मेरा बदन कमान बन गया

मुहीब चुप में आहटों का वहिमा हवा
मैं सर से पांव तक तमाम कान बन गया

हवा से रौशनी से राब्ता नहीं रहा
जिधर थीं खिड़कियां उधर मकान बन गया

शुरूआत दिन से घर में सुन रहा था इस लिए
सुकूत मेरी मादरी ज़बान बन गया

और एक दिन खींची हुई लकीर मिट गई
गुमान यकीन बना यकीन गुमान बन गया

कई हल्के ग़म मिले मलाल बन गए
जरा जरा सी क़तरे से थान बन गया

मेरे बड़े ने आदतन चुना था एक दष्ट
वो बस गया 'रहीम' यार-ख़ान बन गया

Read more

Mujhe pahle to lagta tha ki zaati masala hai..

mujhe pahle to lagta tha ki zaati masala hai
main phir samjha mohabbat ka.enati masala hai

parinde qaid hain tum chahchahahaT chahte ho
tumhen to achchha-ḳhasa nafsiyati masala hai

hamen thoḌa junun darkar hai thoḌa sukun bhi
hamari nasl men ik jiniyati masala hai

baḌi mushkil hai bante silsilon men ye tavaqquf
hamare rabton ki be-sabati mas.ala hai

vo kahte hain ki jo hoga vo aage ja ke hoga
to ye duniya bhi koi tajrabati mas.ala hai

hamara vasl bhi tha ittifaqi mas.ala tha
hamara hijr bhi hai hadsati mas.ala hai
----------------------------------------
मैंने पहले तो लगता था कि ज़ाती मसला है
मैं फिर समझा मोहब्बत का एंती मसला है

परिंदे क़ैद हैं तुम चहचहाहट चाहते हो
तुम्हें तो अच्छा-ख़ासा नफ्सियाती मसला है

हमें थोड़ा जुनून दरकार है थोड़ा सुकून भी
हमारी नस्ल में एक जिनियाती मसला है

बड़ी मुश्किल है बनते सिलसिलों में ये तवक्कुफ़
हमारे रिश्तों की बे-सबाती मसला है

वो कहते हैं कि जो होगा वो आगे जा के होगा
तो ये दुनिया भी कोई तज्रबाती मसला है

हमारा वस्ल भी था इत्तिफ़ाक़ी मसला था
हमारा हिज्र भी है हास्ताती मसला है

Read more

Main barash chhoḌ chuka aḳhiri tasvir ke baad..

main barash chhoḌ chuka aḳhiri tasvir ke baad
mujh se kuchh ban nahin paaya tiri tasvir ke baad

mushtarak dost bhi chhuTe hain tujhe chhoḌne par
ya.ani divar haTani paḌi tasvir ke ba.ad

yaar tasvir men tanha huun magar log mile
ka.i tasvir se pahle ka.i tasvir ke ba.ad

dusra ishq mayassar hai magar karta nahin
kaun dekhega purani nai tasvir ke baad

bhej deta huun magar pahle bata duun tujh ko
mujh se milta nahin koi miri tasvir ke ba.ad

ḳhushk divar men silan ka sabab kya hoga
ek adad zang lagi kiil thi tasvir ke baad
------------------------------------------
मैं बरस छोड़ चुका आख़िरी तस्वीर के बाद
मुझ से कुछ बन नहीं पाया तेरी तस्वीर के बाद

मुश्तरक दोस्त भी छूटे हैं तुझे छोड़ने पर
यानी दीवार हटानी पड़ी तस्वीर के बाद

यार तस्वीर में तन्हा हूँ मगर लोग मिले
कई तस्वीर से पहले कई तस्वीर के बाद

दूसरा इश्क़ मयस्सर है मगर करता नहीं
कौन देखेगा पुरानी नई तस्वीर के बाद

भेज देता हूँ मगर पहले बता दूं तुझ को
मुझ से मिलता नहीं कोई मेरी तस्वीर के बाद

ख़ुश्क दीवार में सीलन का सबब क्या होगा
एक अदद ज़ंग लगी कील थी तस्वीर के बाद

Read more

Daaen baazu men gaḌa tiir nahin khinch saka..

Daaen baazu men gaḌa tiir nahin khinch saka
is liye ḳhol se shamshir nahin khinch saka

shor itna tha ki avaz bhi Dabbe men rahi
bhiiḌ itni thi ki zanjir nahin khinch saka

har nazar se nazar-andaz-shuda manzar huun
vo madari huun jo rahgir nahin khinch saka

main ne mehnat se hatheli pe lakiren khinchin
vo jinhen katib-e-taqdir nahin khinch saka

main ne tasvir-kashi kar ke javan Ki aulad
un ke bachpan ki tasavir nahin khinch saka

mujh pe ik hijr musallat hai hamesha ke liye
aisa jin hai ki koi piir nahin khinch saka

tum pe Kya ḳhaak asar hoga mire sheron Ka
tum ko to mir-taqi-'mir' nahin khinch saka
--------------------------------------------
दाएं बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका
इसलिए खोल से शमशीर नहीं खींच सका

शोर इतना था कि आवाज़ भी दबे में रही
भीड़ इतनी थी कि ज़ंजीर नहीं खींच सका

हर नज़र से नज़र-अंदाज़-शुदा मंज़र हूँ
वो मदारी हूँ जो राहगीर नहीं खींच सका

मैंने मेहनत से हथेली पे लकीरें खींचीं
वो जिन्हें कातिब-ए-तक़दीर नहीं खींच सका

मैंने तस्वीर-कशी कर के जवां की औलाद
उनके बचपन की तस्वीर नहीं खींच सका

मुझ पे इक हिज्र मुसल्लत है हमेशा के लिए
ऐसा जिन है कि कोई पीर नहीं खींच सका

तुम पे क्या ख़ाक असर होगा मेरे शेरों का
तुम को तो मीर-तकी-'मीर' नहीं खींच सका
Read more

Ik tira hijr daimi hai mujhe..

Ik tira hijr daimi hai mujhe
varna har chiiz aarzi hai mujhe

ek saaya mire taaqub men
ek avaz DhunDti hai mujhe

meri ankhon pe do muqaddas haath
ye andhera bhi raushni hai mujhe

main suḳhan men huun us jagah ki jahan
saañs lena bhi sha.iri hai mujhe

in parindon se bolna sikha
peḌ se ḳhamushi mili hai mujhe

main use kab ka bhul-bhal chuka
zindagi hai ki ro rahi hai mujhe

main ki kaghaz ki ek kashti huun
pahli barish hi aḳhiri hai mujhe
---------------------------------
इक तेरा हिज्र दायमी है मुझे,
वरना हर चीज़ आरज़ी है मुझे।

एक साया मेरे तआक़ुब में,
एक आवाज़ ढूंढती है मुझे।

मेरी आँखों पे दो मुक़द्दस हाथ,
ये अँधेरा भी रौशनी है मुझे।

मैं सुख़न में हूँ उस जगह की जहाँ,
साँस लेना भी शायरी है मुझे।

इन परिंदों से बोलना सीखा,
पेड़ से ख़ामोशी मिली है मुझे।

मैं उसे कब का भूल-भाल चुका,
ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे।

मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ,
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे।

Read more

Jab us ki tasvir banaya karta tha..

jab us ki tasvir banaya karta tha
kamra rangon se bhar jaaya karta tha

ped mujhe hasrat se dekha karte the
main jangal men paani laaya karta tha

thak jaata tha badal saaya karte karte
aur phir main badal pe saaya karta tha

baiTha rahta tha sahil pe saara din
dariya mujh se jaan chhuḌaya karta thā

bint-e-sahra ruTha karti thi mujh se
main sahra se ret churaya karta tha
---------------------------------------
जब उसकी तस्वीर बनाया करता था,
कमरा रंगों से भर जाया करता था।

पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे,
मैं जंगल में पानी लाया करता था।

थक जाता था बादल साया करते-करते,
और फिर मैं बादल पर साया करता था।

बैठा रहता था साहिल पे सारा दिन,
दरिया मुझसे जान छुड़ाया करता था।

बिन्त-ए-सहरा रूठा करती थी मुझसे,
मैं सहरा से रेत चुराया करता था।

Read more

Ik haveli huun us ka dar bhi huun..

ik haveli huun us ka dar bhi huun
ḳhud hi angan ḳhud hi shajar bhi huun

apni masti men bahta dariya huun
main kinara bhi huun bhanvar bhi huun

asman aur zamin ki vusat dekh
main idhar bhi huun aur udhar bhi huun

ḳhud hi main ḳhud ko likh raha huun ḳhat
aur main apna nama-bar bhi huun

dastan huun main ik tavil magar
tu jo sun le to muḳhtasar bhi huun

ek phaldar ped huun lekin
vaqt aane pe be-samar bhi huun
-----------------------------------
एक हवेली हूँ, उसका दर भी हूँ,
खुद ही आँगन, खुद ही शजर भी हूँ।

अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ,
मैं किनारा भी हूँ, भँवर भी हूँ।

आसमां और जमीन की वुसअत देख,
मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ।

खुद ही मैं खुद को लिख रहा हूँ ख़त,
और मैं अपना नामबर भी हूँ।

दास्तां हूँ मैं एक तवील मगर,
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ।

एक फलदार पेड़ हूँ लेकिन,
वक्त आने पर बेसमर भी हूँ।

Read more

Ham ko mita sake ye zamane men dam nahin..

ham ko miTa sake ye zamane men dam nahin
ham se zamana ḳhud hai zamane se ham nahin

be-fa.eda alam nahin be-kar Gham nahin
taufiq de ḳhuda to ye nemat bhi kam nahin

meri zaban pe shikva-e-ahl-e-sitam nahin
mujh ko jaga diya yahi ehsan kam nahin

ya rab hujūm-e-dard ko de aur vusaten
daman to kya abhi miri ankhen bhi nam nahin

shikva to ek chhed hai lekin haqiqatan
tera sitam bhi teri inayat se kam nahin

ab ishq us maqam pe hai justuju-navard
saaya nahin jahan koi naqsh-e-qadam nahin

milta hai kyuun maza sitam-e-rozgar men
terā karam bhi ḳhud jo sharik-e-sitam nahin

marg-e-'jigar' pe kyuun tiri ankhen hain ashk-rez
ik saneha sahi magar itna aham nahin
----------------------------------------
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं 
हम से ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं

बे-फायदा आलम नहीं, बे-कार ग़म नहीं 
तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये नेमत भी कम नहीं

मेरी ज़बान पे शिकवा-ए-अहल-ए-सितम नहीं 
मुझ को जगा दिया यही एहसान कम नहीं

या रब हुजूम-ए-दर्द को दे और वुसअतें 
दामन तो क्या, अभी मेरी आँखें भी नम नहीं

शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन 
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं

अब इश्क़ उस मुकाम पे है, तलाश-नवर्द
 साया नहीं जहाँ कोई नक्श-ए-क़दम नहीं

मिलता है क्यों मज़ा सितम-ए-रोज़गार में
 तेरा करम भी ख़ुद जो शरीक-ए-सितम नहीं

मौत-ए-'जिगर' पे क्यों तेरी आँखें हैं अश्क-रेज़ 
एक साना है सही, मगर इतना अहम नहीं
Read more

Majnun ne shahr chhoda to sahra bhi chhod de..

majnun ne shahr chhoda to sahra bhi chhod de
nazzare ki havas ho to laila bhi chhod de

vaaiz kamal-e-tark se milti hai yaan murad
duniya jo chhod di hai to uqba bhi chhod de

taqlid Ki ravish se to behtar hai ḳhud-kushi
rasta bhi DhunD ḳhizr ka sauda bhi chhod de

manind-e-ḳhama teri zaban par hai harf-e-ghair
begana shai pe nazish-e-beja bhi chhod de

lutf-e-kalam kya jo na ho dil men dard-e-ishq
bismil nahin hai tu to taḌapna bhi chhod de

shabnam ki tarah phulon pe ro aur chaman se chal
is baagh men qayam ka sauda bhi chhod de

hai ashiqi men rasm alag sab se baiThna
but-ḳhana bhi haram bhi kalisa bhi chhod de

sauda-gari nahin ye ibadat ḳhuda ki hai
ai be-ḳhabar jaza ki tamanna bhi chhoḌ de

achchha hai dil ke saath rahe pasban-e-aql
lekin kabhi kabhi ise tanha bhi chhod de

jiina vo kya jo ho nafas-e-ghair par madar
shohrat ki zindagi ka bharosa bhi chhod de

shoḳhi si hai saval-e-mukarrar men ai kalim
shart-e-raza ye hai ki taqaza bhi chhod de

vaaiz subut laae jo mai ke javaz men
'iqbal' ko ye zid hai ki piina bhi chhod de
----------------------------------------------
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे

वाजिज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है यहाँ मुहब्बत
दुनिया जो छोड़ दी है तो ऊब़ा भी छोड़ दे

तकलीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुदकुशी
रास्ता भी ढूँढ ख़िज़र का सौदा भी छोड़ दे

मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बां पर है हरफ़-ए-ग़ैर
बेगाना शै पे नाज़िश-ए-बेज़ा भी छोड़ दे

लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़
बिज़मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे

शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे

है आशिकी में रस्म अलग सब से बैठना
बुत-ख़ाना भी हरम भी चर्चा भी छोड़ दे

सौदागरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर सज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

जीना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार
शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे

शौक़ी सी है सवाल-ए-मुकर्रर में ऐ कलीम
शर्त-ए-रज़ा ये है कि तक़ाज़ा भी छोड़ दे

वाजिज़ सुबूत ला ऐ जो मय के जवाद में
'इक़बाल' को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे

Read more

Bevafai karke niklun ya vafa kar jaunga..

bevafai karke niklun ya vafa kar jaunga
shahr ko har zaiqe se ashna kar jaunga

tu bhi DhunDega mujhe shauq-e-saza men ek din
main bhi koi ḳhub-surat si ḳhata kar jaunga

mujh se achchhai bhi na kar meri marzi ke ḳhilaf
varna mai bhi haath koi dusra kar jaunga

mujh men hain gahri udasi ke jarasim is qadar
main tujhe bhi is maraz men mubtala kar jaunga

shor hai is ghar ke angan men 'zafar' kuchh roz aur
gumbad-e-dil ko kisi din be-sada kar jaunga
----------------------------------------------
बेवफ़ाई करके निकलूँ या वफ़ा कर जाऊँगा
शहर को हर ज़ायके से आश्ना कर जाऊँगा

तू भी ढूँढेगा मुझे शौक़-ए-सज़ा में एक दिन
मैं भी कोई ख़ूबसूरत सी ख़ता कर जाऊँगा

मुझसे अच्छाई भी न कर मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वरना मैं भी हाथ कोई दूसरा कर जाऊँगा

मुझमें हैं गहरी उदासी के जर्सीम इस कदर
मैं तुझे भी इस मर्ज़ में मुब्तला कर जाऊँगा

शोर है इस घर के आँगन में 'ज़फ़र' कुछ रोज़ और
गुम्बद-ए-दिल को किसी दिन बे-सदा कर जाऊँगा

Read more

Yaad use bhī ek adhūrā afsāna to hogā..

yaad use bhī ek adhūrā afsāna to hogā
kal raste meñ us ne ham ko pahchānā to hogā

Dar ham ko bhī lagtā hai raste ke sannāTe se
lekin ek safar par ai dil ab jaanā to hogā

kuchh bātoñ ke matlab haiñ aur kuchh matlab kī bāteñ
jo ye farq samajh legā vo dīvāna to hogā

dil kī bāteñ nahīñ hai to dilchasp hī kuchh bāteñ hoñ
zinda rahnā hai to dil ko bahlānā to hogā

jiit ke bhī vo sharminda hai haar ke bhī ham nāzāñ
kam se kam vo dil hī dil meñ ye maanā to hogā
---------------------------------------------------
याद उसे भी एक अधूरा अफ़साना तो होगा
कल रास्ते में उसने हम को पहचाना तो होगा

डर हम को भी लगता है रास्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफर पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें
जो ये फ़र्क समझ लेगा वो दीवाना तो होगा

दिल की बातें नहीं हैं तो दिलचस्प ही कुछ बातें हों
जिंदा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा

जीत के भी वो शर्मिंदा है, हार के भी हम नाज़ां
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा
Read more

Jo dikh raha usi ke andar jo an-dikha hai vo shairi hai..

jo dikh raha usi ke andar jo an-dikha hai vo shairi hai
jo kah saka tha vo kah chuka huun jo rah gaya hai vo shairi hai

ye shahr saara to raushni men khila paḌa hai so kya likhun main
vo duur jangal ki jhonpaḌi men jo ik diya hai vo shairi hai

dilon ke mabain guftugu men tamam baten izafaten hain
tumhari baton ka har tavaqquf jo bolta hai vo shairi hai

tamam dariya jo ek samundar men gir rahe hain to kya ajab hai
vo ek dariya jo raste men hi rah gaya hai vo shairi hai
-------------------------------------------------------------
जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शायरी है
जो कह सका था वो कह चुका हूँ, जो रह गया है वो शायरी है

यह शहर सारा तो रौशनी में खिला पड़ा है, सो क्या लिखूँ मैं
वो दूर जंगल की झोंपड़ी में जो एक दिया है वो शायरी है

दिलों के माबैन गुफ़्तगू में तमाम बातें इज़ाफ़तें हैं
तुम्हारी बातों का हर ठहराव जो बोलता है वो शायरी है

तमाम दरिया जो एक समुंदर में गिर रहे हैं तो क्या अजब है
वो एक दरिया जो रास्ते में ही रह गया है वो शायरी है

Read more

Jaan jaane ko hai aur raqs men parvana hai..

Jaan jaane ko hai aur raqs men parvana hai
kitna rangin mohabbat tira afsana hai

ye to dekha ki mire haath men paimana hai
ye na dekha ki gham-e-ishq ko samjhana hai

itna nazdik hue tark-e-taalluq ki qasam
jo kahānī hai miri aap ka afssna hai

ham nahin vo ki bhula den tire ehsan-o-karam
ik inayat tira ḳhvabon men chala aana hai

ek mahshar se nahin kam tira aana lekin
ik qayamat tira pahlu se chala jaana hai

ḳhum o miina mai o masti ye gulabi ankhen
kitna pur-kaif mire hijr ka afsana hai
----------------------------------------
जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
कितना रंगीन मोहब्बत तिरा अफ़साना है

यह तो देखा कि मेरे हाथ में पैमाना है
यह न देखा कि ग़म-ए-इश्क़ को समझाना है

इतना क़रीब हुए तर्क-ए-तअल्लुक़ की क़सम
जो कहानी है मेरी, आप का अफ़साना है

हम नहीं वो कि भुला दें तेरे एहसान-ओ-करम
एक इनायत तिरा ख़्वाबों में चला आना है

एक महशर से नहीं कम तिरा आना लेकिन
एक क़यामत तिरा पहलू से चला जाना है

ख़ुम ओ मीना, मय ओ मस्ती, ये गुलाबी आँखें
कितना पुरकैफ़ मेरे हिज्र का अफ़साना है

Read more

hal-e-gham un ko sunate jaiye..

hal-e-gham un ko sunate jaiye
shart ye hai muskurate jaiye

aap ko jaate na dekha jaega
shama ko pahle bujhate jaiye

shukriya lutf-e-musalsal ka magar
gaahe gaahe dil dukhate jaiye

dushmanon se pyaar hota jaega
doston ko azmate jaiye

raushni mahdud ho jin ki 'ḳhumar'
un charaġhon ko bujhate jaiye
------------------------------
हाल-ए-ग़म उनको सुनाते जाइए
शर्त यह है मुस्कुराते जाइए

आप को जाते न देखा जाएगा
शमा को पहले बुझाते जाइए

शुक्रिया लुत्फ़-ए-मुसलसल का मगर
गाहे-गाहे दिल दुखाते जाइए

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए

रोशनी महदूद हो जिनकी 'ख़ुमार'
उन चराग़ों को बुझाते जाइए

Read more

Ye pairahan jo miri ruuh ka utar na saka..

ye pairahan jo miri ruuh ka utar na saka
to nakh-ba-nakh kahin paivast resha-e-dil tha

mujhe maal-e-safar ka malal kyun-kar ho
ki jab safar hi mira faslon ka dhoka tha

main jab firaq kī raton men us ke saath rahi
vo phir visal ke lamhon men kyuun akela tha

vo vaste ki tira darmiyan bhi kyuun aae
Khuda ke saath mira jism kyuun na ho tanha

sarab huun main tiri pyaas kya bujhaungi
is ishtiyaq se tishna zaban qarib na la

sarab huun ki badan ki yahi shahadat hai
har ek uzv men bahta hai ret ka dariya

jo mere lab pe hai shayad vahi sadaqat hai
jo mere dil men hai us harf-e-raegan pe na ja

jise main toḌ chuki huun vo raushni ka tilism
shua-e-nur-e-azal ke siva kuchh aur na tha
--------------------------------------------
यह पहनावा जो मेरी रूह का उतर न सका
तो नक़-ए-नक़ कहीं पैवस्त रेशे-ए-दिल था

मुझे माल-ए-सफ़र का मलाल क्यूँकर हो
कि जब सफ़र ही मेरा फ़ासलों का धोका था

मैं जब फ़िराक़ की रातों में उसके साथ रही
वो फिर विसाल के लम्हों में क्यूँ अकेला था

वो वास्ते की तिरा दरमियान भी क्यूँ आए
ख़ुदा के साथ मेरा जिस्म क्यूँ ना हो तन्हा

सराब हूँ मैं तेरी प्यास क्या बुझाऊँगी
इस इश्क़ से तिश्ना ज़बान क़रीब ना ला

सराब हूँ कि बदन की यही शाहदत है
हर एक अज़्व में बहता है रेत का दरिया

जो मेरे लब पे है शायद वही सच्चाई है
जो मेरे दिल में है उस हर्फ़-ए-राज़ीगां पे ना जा

जिसे मैं तोड़ चुकी हूँ वो रोशनी का तिलिस्म
शुआ-ए-नूर-ए-अज़ल के सिवा कुछ और ना था

Read more

Bulati hai magar jaane ka nain..

bulati hai magar jaane ka nain
vo duniya hai udhar jaane ka nain

sitare noch kar le jaunga
main khali haath ghar jaane ka nain

mire bete kisi se ishq kar
magar had se guzar jaane ka nain

vo gardan napta hai naap le
magar zalim se Dar jaane ka nain

vaba phaili hui hai har taraf
abhi mahaul mar jaane ka nain
---------------------------------
बुलाती है मगर जाने का नहीं
वो दुनिया है उधर जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊँगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क कर
मगर हद से गुजर जाने का नहीं

वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर ज़ालिम से डर जाने का नहीं

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
Read more

Arzuen hazar rakhte hain..

arzuen hazar rakhte hain
to bhi ham dil ko maar rakhte hain

barq kam-hausla hai ham bhi to
dilak-e-be-qarar rakhte hain

ghair hi maurid-e-inayat hai
ham bhi to tum se pyaar rakhte hain

na nigah ne payam ne vaada
naam ko ham bhi yaar rakhte hain

ham se ḳhush-zamzama kahan yuun to
lab o lahja hazar rakhte hain

choTTe dil ke hain butan mashhur
bas yahi e'tibar rakhte hain

phir bhi karte hain 'mir' sahab ishq
hain javan iḳhtiyar rakhte hain
-----------------------------------
आऱ्ज़ुएँ हज़ार रखते हैं
तो भी हम दिल को मार रखते हैं

बर्क कम-हौसला है हम भी तो
दिलक-ए-बे-करार रखते हैं

ग़ैर ही मुअरिद-ए-इनायत है
हम भी तो तुम से प्यार रखते हैं

ना निगाह ने पैगाम ने वादा
नाम को हम भी यार रखते हैं

हम से ख़ुश-ज़मज़मा कहाँ यूँ तो
लब ओ लहजा हज़ार रखते हैं

छोटे दिल के हैं बुतां मशहूर
बस यही एतिबार रखते हैं

फिर भी करते हैं 'मीर' साहब इश्क़
हैं जवां इख़्तियार रखते हैं


Read more

Nahin ki tere ishare nahin samajhta huun..

nahin ki tere ishare nahin samajhta huun
samajh to leta huun saare nahin samajhta huun

tira chadha hua dariya samajh men aata hai
tire khamosh kinare nahin samajhta huun

kidhar se nikla hai ye chand kuchh nahin maalum
kahan ke hain ye sitare nahin samajhta huun

kahin kahin mujhe apni ḳhabar nahin milti
kahin kahin tire baare nahin samajhta huun

jo daaen baaen bhi hain aur aage pichhe bhi
unhen main ab bhi tumhare nahin samajhta huun

ḳhud apne dil se yahi iḳhtilaf hai mera
ki main ghamon ko ghubare nahin samajhta huun

kabhi to hota hai meri samajh se bahar hi
kabhi main sharm ke maare nahin samajhta huun

kahin to hain jo mire khvab dekhte hain 'zafar'
koi to hain jinhen pyare nahin samajhta huun
-----------------------------------------------
नहीं कि तेरे इशारे नहीं समझता हूँ
समझ तो लेता हूँ, सारे नहीं समझता हूँ

तेरा चढ़ा हुआ दरिया समझ में आता है
तेरे खामोश किनारे नहीं समझता हूँ

किधर से निकला है ये चाँद कुछ नहीं मालूम
कहाँ के हैं ये सितारे नहीं समझता हूँ

कहीं कहीं मुझे अपनी खबर नहीं मिलती
कहीं कहीं तेरे बारे नहीं समझता हूँ

जो दाएँ बाएँ हैं और आगे पीछे भी
उन्हें मैं अब भी तुम्हारे नहीं समझता हूँ

खुद अपने दिल से यही इख्तिलाफ है मेरा
कि मैं ग़मों को घुबारे नहीं समझता हूँ

कभी तो होता है मेरी समझ से बाहर ही
कभी मैं शर्म के मारे नहीं समझता हूँ

कहीं तो हैं जो मेरे ख़्वाब देखते हैं 'ज़फ़र'
कोई तो हैं जिन्हें प्यारे नहीं समझता हूँ

Read more

Main dil pe jabr karunga tujhe bhula dunga..

main dil pe jabr karunga tujhe bhula dunga
marunga Khud bhi tujhe bhi kadi saza dunga

ye tirgi mire ghar ka hi kyuun muqaddar ho
main tere shahr ke saare diye bujha dunga

hava ka haath baTaunga har tabahi men
hare shajar se parinde main khud uda dunga

vafa karunga kisi sogvar chehre se
purani qabr pe katba naya saja dunga

isi ḳhayal men guzri hai sham-e-dard aksar
ki dard had se badhega to muskura dunga

tu asman ki surat hai gar padega kabhi
zamin huun main bhi magar tujh ko aasra dunga

baḌha rahi hain mire dukh nishaniyan teri
main tere ḳhat tiri tasvir tak jala dunga

bahut dinon se mira dil udaas hai 'mohsin'
is aaine ko koi aks ab naya dunga
--------------------------------------

मैं दिल पे जबर करूंगा तुझे भुला दूंगा
मरूंगा खुद भी तुझे भी कड़ी सज़ा दूंगा

ये तीरगी मेरे घर का ही क्यों मुक़द्दर हो
मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूंगा

हवा का हाथ बता आउंगा हर तबाही में
हरे शजर से परिंदे मैं खुद उड़ा दूंगा

वफ़ा करूंगा किसी सोगवार चेहरे से
पुरानी क़बर पे क़तबा नया सजा दूंगा

इसी ख़याल में गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूंगा

तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी
ज़मीन हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूंगा

बढ़ा रही हैं मेरे दुख निशानियाँ तेरी
मैं तेरे ख़त तेरी तस्वीर तक जला दूंगा

बहुत दिनों से मेरा दिल उदास है 'मोहनस'
इस आईने को कोई अक्स अब नया दूंगा

Read more

Ik din zaban sukut ki puurī banaunga..

Ik din zaban sukut ki puurī banaunga
main guftugu ko ghair-zaruri banaunga

tasvir men banaunga donon ke haath aur
donon men ek haath ki duuri banaunga

muddat samet jumla zavabit hon tai-shuda
yaani taalluqat uburi banaunga

tujh ko khabar na hogi ki main as-pas huun
is baar haziri ko huzuri banaunga

rangon pe iḳhtiyar agar mil saka kabhi
teri siyah putliyan bhuri banaunga

jaari hai apni zaat pe tahqiq aj-kal
main bhi ḳhala pe ek theory banaunga

main chaah kar vo shakl mukammal na kar saka
us ko bhi lag raha tha adhuri banaunga
--------------------------------------
एक दिन ज़बान सुकूत की पूरी बनाऊँगा
मैं गुफ़्तुगू को गैर-ज़रूरी बनाऊँगा

तस्वीर में बनाऊँगा दोनों के हाथ और
दोनों में एक हाथ की दूरी बनाऊँगा

मु़द्दत समेट जुमला ज़वाबित हों तय-शुदा
यानी ताल्लुकात उबूरी बनाऊँगा

तुझ को खबर न होगी कि मैं आस-पास हूँ
इस बार हाज़िरी को हज़ूरी बनाऊँगा

रंगों पे इख़्तियार अगर मिल सका कभी
तेरी स्याह पुतलियाँ भूरी बनाऊँगा

जारी है अपनी जात पे तहरीक आज-कल
मैं भी ख़ला पे एक थ्योरी बनाऊँगा

मैं चाह कर वो शक्ल मुकम्मल न कर सका
उस को भी लग रहा था अधूरी बनाऊँगा
Read more

meri mahfil tha miri ḳhalvat-e-jan tha kya tha..

meri mahfil tha miri ḳhalvat-e-jan tha kya tha
vo ajab shaḳhs tha ik raz-e-nihan tha kya tha

baal khole hue phirti thiin hasinaen kuchh
vasl tha ya ki judai ka saman tha kya tha

haae us shoḳh ke khul paae na asrar kabhi
jaane vo shaḳhs yaqin tha ki guman tha kya tha

tum jise markazi kirdar samajh baithe ho
vo fasane men agar tha to kahan tha kya tha

kyuun 'vasi'-shah pe pari-zadiyan jaan deti hain
mah-e-kanan tha shair tha javan tha kya tha
-------------------------------------------
मेरी महफ़िल था, मेरी ख़लवत-ए-जान था क्या था
वो अजब शख़्स था, एक राज़-ए-निहां था क्या था

बाल खुले हुए फिरती थीं हसीनाएँ कुछ
वस्ल था या कि जुदाई का समां था क्या था

हां, उस शोख़ के खुल न पाए न असरार कभी
जाने वो शख़्स यकीं था कि गुमां था क्या था

तुम जिसे केंद्रीय किरदार समझ बैठे हो
वो फ़साने में अगर था तो कहाँ था क्या था

क्यों 'वसी' शाह पे परी-ज़ादियाँ जान देती हैं
माह-ए-क़नान था, शायर था, जवान था क्या था

Read more

Khayal jis ka tha mujhe ḳhayal men mila mujhe..

ḳhayal jis ka tha mujhe ḳhayal men mila mujhe
saval ka javab bhi saval men mila mujhe

gaya to is tarah gaya ki muddaton nahin mila
mila jo phir to yuun ki vo malal men mila mujhe

tamam ilm ziist Ka guzishtagan se hi hua
amal guzishta daur Ka misal men mila mujhe

nihal sabz rang men jamal jis ka hai 'munir'
Kisi qadim ḳhvab ke muhal men mila mujhe
------------------------------------------
ख़याल जिसका था मुझे ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे

गया तो इस तरह गया कि सदियों नहीं मिला
मिला जो फिर तो यूँ की वो मलाल में मिला मुझे

तमाम इल्म ज़ीस्त का गुज़िश्तगां से ही हुआ
अमल गुज़िश्ता दौर का मिसाल में मिला मुझे

निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिसका है 'मुनीर'
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे

Read more

dil dhaḌakne ka sabab yaad aaya..

dil dhaḌakne ka sabab yaad aaya
vo tiri yaad thi ab yaad aaya

aaj mushkil tha sambhalna ai dost
tū musibat men ajab yaad aaya

din guzara tha baḌi mushkil se
phir tira vaada-e-shab yaad aaya

tera bhula hua paiman-e-vafa
mar rahenge agar ab yaad aaya

phir kai log nazar se guzre
phir koi shahr-e-tarab yaad aaya

hāl-e-dil ham bhi sunate lekin
jab vo ruḳhsat hua tab yaad aaya

baiTh kar saya-e-gul men 'nasir'
ham bahut roe vo jab yaad aaya
-------------------------------
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया

आज मुश्किल था सम्हलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया

तेरा भूला हुआ पैमाना-ए-वफा
मर जाएंगे अगर अब याद आया

फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया

हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़सत हुआ तब याद आया

बैठ कर साया-ए-गुल में 'नासिर'
हम बहुत रोए वो जब याद आया



Read more

Lab-e-ḳhamosh se ifsha hoga..

lab-e-ḳhamosh se ifsha hoga
raaz har rang men rusva hoga

dil ke sahra men chali sard hava
abr gulzar pe barsa hoga

tum nahin the to sar-e-bam-e-ḳhayal
yaad Ka koi sitara hoga

kis tavaqqo.a pe Kisi ko dekhen
koi tum se bhi hasin Kya hoga

zinat-e-halqa-e-aġhosh bano
duur baithoge to charcha hoga

jis bhi fankar Ka shahkar ho tum
us ne sadiyon tumhen socha hoga

aaj Ki raat bhi tanha hi kati
aaj ke din bhi andhera hoga

kis qadar karb se chaTki hai kali
shaḳh se gul koi TuuTa hoga

umr bhar roe faqat is dhun men
raat bhigi to ujala hoga

saari duniya hamen pahchanti hai
koi ham sa bhi na tanha hoga
-----------------------------
लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
राज़ हर रंग में रुस्वा होगा

दिल के सहरा में चली सर्द हवा
अब्र गुलज़ार पे बरसा होगा

तुम नहीं थे तो सर-ए-बाम-ए-ख़याल
याद का कोई सितारा होगा

किस तवक्को़ा पे किसी को देखें
कोई तुम से भी हसीं क्या होगा

ज़ीनत-ए-हलक़ा-ए-आग़ोश बनो
दूर बैठोगे तो चर्चा होगा

जिस भी फ़नकार का शाहकार हो तुम
उसने सदियों तुम्हें सोचा होगा

आज की रात भी तन्हा ही कटी
आज के दिन भी अंधेरा होगा

किस क़दर करब से चटकी है कली
शाख से गुल कोई टूटा होगा

उम्र भर रोए फ़क़त इस धुन में
रात भीगी तो उजाला होगा

सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा
Read more

Meri tanhai badhate hain chale jaate hain..

meri tanhai baḌhate hain chale jaate hain
hans talab pe aate hain chale jaate hain

is liye ab main Kisi ko nahin jaane deta
jo mujhe chhoḌ ke jaate hain chale jaate hain

meri ankhon se baha karti hai un ki ḳhushbu
raftagan ḳhvab men aate hain chale jaate hain

shadi-e-marg ka mahaul bana rahta hai
aap aate hain rulate hain chale jaate hain

kab tumhen ishq pe majbur kiya hai ham ne
ham to bas yaad dilate hain chale jaate hain

aap ko kaun tamasha.īi samajhta hai yahan
aap to aag lagate hain chale jaate hain

haath patthar ko baḌhaun to sagan-e-duniya
hairati ban ke dikhate hain chale jaate hain
----------------------------------------------
मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं  
हँस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं  

इसलिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता  
जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं  

मेरी आँखों से बहा करती है उनकी ख़ुशबू  
रफ्तगान ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं  

शादी-ए-मर्ग का माहौल बना रहता है  
आप आते हैं रुलाते हैं चले जाते हैं  

कब तुम्हें इश्क़ पे मजबूर किया है हम ने  
हम तो बस याद दिलाते हैं चले जाते हैं  

आप को कौन तमाशाई समझता है यहाँ  
आप तो आग लगाते हैं चले जाते हैं  

हाथ पत्थर को बढ़ाऊँ तो सगान-ए-दुनिया  
हैरती बन के दिखाते हैं चले जाते हैं

Read more

Pahle-pahal laḌenge tamasḳhur uḌaenge..

pahle-pahal laḌenge tamasḳhur uḌaenge
jab ishq dekh lenge to sar par biThaenge

tu to phir apni jaan hai tera to zikr kya
ham tere doston ke bhī naḳhre uThaenge

'ġhalib' ne ishq ko jo dimaġhi ḳhalal kaha
chhoḌen ye ramz aap nahin jaan paenge

parkhenge ek ek ko le kar tumhara naam
dushman hai kaun dost hai pahchan jaenge

qibla kabhi to taza-suḳhan bhi karen ata
ye char-panch ghazlen hi kab tak sunaenge

aage to aane dijiye rasta to chhoḌiye
ham kaun hain ye samne aa kar bataenge

ye ehtimam aur kisi ke liye nahin
taane tumhare naam ke ham par hi aenge
----------------------------------------
पहले-पहल लड़ेँगे तमसख़ुर उड़ाएँगे
जब इश्क़ देख लेंगे तो सर पर बैठाएँगे

तू तो फिर अपनी जान है तेरा तो ज़िक्र क्या
हम तेरे दोस्तों के भी नखरे उठाएँगे

'ग़ालिब' ने इश्क़ को जो दिमाग़ी ख़लाल कहा
छोड़ें ये रज़्म आप नहीं जान पाएँगे

परखेंगे एक-एक को ले कर तुम्हारा नाम
दुश्मन है कौन दोस्त है पहचान जाएँगे

क़िबला कभी तो ताज़ा-सुख़ान भी करें अता
ये चार-पाँच ग़ज़लें ही कब तक सुनाएँगे

आगे तो आने दीजिए रास्ता तो छोड़िए
हम कौन हैं ये सामने आ कर बताएँगे

ये एहतिमाम और किसी के लिए नहीं
ताने तुम्हारे नाम के हम पर ही आएँगे

Read more

Zarur us Ki nazar mujh pe hi gadi hui hai..

Zarur us Ki nazar mujh pe hi gadi hui hai
main jym se aa raha huun astin chaḌhi hui hai

mujhe zara sa bura kah diya to is se kya
vo itni baat pe maan baap se laḌi hui hai

use zarurat-e-parda zara ziyada hai
ye vo bhi janti hai jab se vo baḌi hui hai

vo meri di hui nthuni pahan ke ghumti hai
tabhi vo in dinon kuchh aur nak-chaḌhi hui hai

muahidon men lachak bhi zaruri hoti hai
par is ki suui vahin ki vahin aḌi hui hai

vo tie bandhti hai aur khinch leti hai
ye kaise vaqt use pyaar ki paḌi hui hai

ḳhuda ke vaste likhte raho ki us ne 'amīr'
har ik ghazal tiri sau sau dafa paḌhi hui hai
------------------------------------------------
ज़रूर उसकी नज़र मुझ पे ही गड़ी हुई है
मैं जिम से आ रहा हूँ आस्तीन चढ़ी हुई है

मुझे ज़रा सा बुरा कह दिया तो इससे क्या
वो इतनी बात पे माँ-बाप से लड़ी हुई है

उसे ज़रूरत-ए-परदा ज़रा ज़्यादा है
ये वो भी जानती है जब से वो बड़ी हुई है

वो मेरी दी हुई घुंटी पहन के घूमती है
तभी वो इन दिनों कुछ और नख-चढ़ी हुई है

मुआहिदों में लचक भी ज़रूरी होती है
पर इसकी सूई वहीं की वहीं अड़ी हुई है

वो टाई बांधती है और खींच लेती है
ये कैसे वक्त उसे प्यार की पड़ी हुई है

ख़ुदा के वास्ते लिखते रहो कि उसने 'अमीर'
हर इक ग़ज़ल तिरी सौ सौ दफ़ा पढ़ी हुई है

Read more

le chala jaan miri ruuTh ke jaana tera..

le chala jaan miri ruuTh ke jaana tera
aise aane se to behtar tha na aana tera

apne dil ko bhi bata.un na Thikana tera
sab ne jaana jo pata ek ne jaana tera

tu jo ai zulf pareshan raha karti hai
kis ke ujḌe hue dil men hai Thikana tera

aarzu hi na rahi subh-e-vatan ki mujh ko
sham-e-ġhurbat hai ajab vaqt suhana tera

ye samajh kar tujhe ai maut laga rakkha hai
kaam aata hai bure vaqt men aana tera

ai dil-e-shefta men aag lagane vaale
rang laaya hai ye lakhe ka jamana tera

tu ḳhuda to nahin ai naseh-e-nadan mera
kya ḳhata ki jo kaha main ne na maana tera

ranj kya vasl-e-adu ka jo taalluq hi nahin
mujh ko vallah hansata hai rulana tera

kaaba o dair men ya chashm-o-dil-e-ashiq men
inhin do-char gharon men hai Thikana tera

tark-e-adat se mujhe niind nahin aane ki
kahin nicha na ho ai gor sirhana tera

main jo kahta huun uThae hain bahut ranj-e-firaq
vo ye kahte hain baḌa dil hai tavana tera

bazm-e-dushman se tujhe kaun uTha sakta hai
ik qayamat Ka uThana hai uThana tera

apni ankhon men abhi kaund gai bijli si
ham na samjhe ki ye aanā hai ki jaanā tera

yuun to kya aaega tu fart-e-nazakat se yahan
saḳht dushvar hai dhoke men bhi aana tera

'daġh' ko yuun vo miTate hain ye farmate hain
tu badal Daal hua naam purana tera
--------------------------
ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा

अपने दिल को भी बता.ऊँ न ठिकाना तेरा
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा

तू जो ऐ जुल्फ परेशान रहा करती है
किसके उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा

आर्ज़ू ही न रही सुबह-ए-वतन की मुझ को
शाम-ए-ग़ुरबत है अजब वक्त सुहाना तेरा

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रख्खा है
काम आता है बुरे वक्त में आना तेरा

ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले
रंग लाया है ये लाख़े का जमाना तेरा

तू खुदा तो नहीं ऐ नासेह-ए-नादान मेरा
क्या ख़ता की जो कहा मैंने न माना तेरा

रंज क्या वस्ल-ए-अदू का जो ताल्लुक ही नहीं
मुझ को वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा

काबा ओ देर में या आँखो-दिल-ए-आशिक में
इन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा

तर्क-ए-आदत से मुझे नींद नहीं आने की
कहीं नीचा ना हो ऐ गोर सिरहाना तेरा

मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फिराक
वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा

बज़्म-ए-दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है
एक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा

अपनी आँखों में अभी कौंध गई बिजली सी
हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा

यूँ तो क्या आएगा तू फरत-ए-नज़ाकत से यहाँ
सख्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा

'दाग़' को यूँ वो मिटाते हैं ये फरमाते हैं
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा

Read more

dosti jab kisi se Ki jaae..

dosti jab kisi se Ki jaae
dushmanon Ki bhi raae li jaa.e

maut ka zahr hai fazaon men
ab kahan ja ke saans li jaae

bas isi soch men huun Duuba hua
ye nadi kaise paar ki jaa.e

agle vaqton ke zaḳhm bharne lage
aaj phir koi bhuul Ki jaa.e

lafz dharti pe sar paTakte hain
gumbadon men sada na di jaae

kah do is ahd ke buzurgon se
zindagi ki dua na di jaa.e

botalen khol ke to pi barson
aaj dil khol kar hī pi jaa.e
----------------------------
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राह ली जाए

मौत का ज़हर है फ़िजाओं में
अब कहाँ जा के सांस ली जाए

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए

अगले वक्तों के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए

लफ़्ज़ धरती पे सर पटकते हैं
गुम्बदों में सदा न दी जाए

कह दो इस अहद के बुज़ुर्गों से
ज़िंदगी की दुआ न दी जाए

बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल कर ही पी जाए

Read more

Patta patta buuTa buuTa haal hamara jaane hai..

patta patta buuTa buuTa haal hamara jaane hai
jaane na jaane gul hi na jaane baaġh to saara jaane hai

lagne na de bas ho to us ke gauhar-e-gosh ko baale tak
us ko falak chashm-e-mah-o-ḳhur Ki putli Ka taara jaane hai

aage us mutakabbir ke ham ḳhuda ḳhuda kiya karte hain
kab maujud ḳhuda ko vo maġhrur-e-ḳhud-ara jaane hai

ashiq sa to saada koi aur na hoga duniya men
ji ke ziyan ko ishq men us ke apna vaara jaane hai

charagari bimari-e-dil Ki rasm-e-shahr-e-husn nahin
varna dilbar-e-nadan bhi is dard Ka chara jaane hai

kya hi shikar-farebi par maġhrur hai vo sayyad bacha
taa.ir uḌte hava men saare apne asara jaane hai

mehr o vafa o lutf-o-inayat ek se vaqif in men nahin
aur to sab kuchh tanz o kinaya ramz o ishara jaane hai

Kya Kya fitne sar par us ke laata hai mashuq apna
jis be-dil be-tab-o-tavan ko ishq Ka maara jaane hai

raḳhnon se divar-e-chaman ke munh ko le hai chhupa ya'nī
in suraḳhon ke Tuk rahne ko sau Ka nazara jaane hai

tishna-e-ḳhun hai apna kitna 'mir' bhi nadan talḳhi-kash
dam-dar ab-e-tegh ko us ke ab-e-gavara jaane hai
----------------------------------------------------
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है

लगने न दे बस हो तो उसके गौहर-ए-ग़ोश को बाले तक
उस को फ़लक आँख-ए-माहो-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है

आगे उस मतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा जाने है

आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है

चागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वरना दिलबर-ए-नादान भी इस दर्द का चारा जाने है

क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सैय्याद बचा
ताईर उड़ते हवा में सारे अपने असरां जाने है

महरो-वफ़ा-ओ-लुत्फ़ो-इन्सायत एक से वाकिफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तंजो-किनाया-रमज़ो-इशारा जाने है

क्या क्या फितने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बेदिल बे-ताबो-तवां को इश्क़ का मारा जाने है

रखनो से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा यानि
इन सूराखों के तुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है

तिश्ना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादान तल्ख़ी-कश
दमदार आब-ए-तग़ को उसके आब-ए-ग़वारा जाने है









Read more

Thakna bhi lazmi tha kuchh kaam karte karte..

thakna bhi lazmi tha kuchh kaam karte karte
kuchh aur thak gaya huun aram karte karte

andar sab aa Gaya hai bahar Ka bhi andhera
ḳhud raat ho gaya huun main shaam karte karte

ye umr thihi aisi jaisi guzar di hai
badna hote hote badna karte karte

phañstā nahin arindahai bhi isi fza men
tang aa gaya hun dil ko yuun dam karte karte

kuchh be-ḳhabar nahin he jo jante hain mujh ko
main kuuch kar raha tha bisram krte karte

sar se guzar Gaya hai panni to zor karta
sab rok rukte rukte sab thaam karte karte

kis ke tawaf men the aur ye din aa gae hain
Kya ḳhaak thi ki jis ko ihram karte karte

jis moḌ se chale the pahunhe hain phir ahin par
ik rā.egāñ safar ko anjām karte karte

ahir 'zafar' hua hun manzar se ḳhud hi ġhaeb
uslub eḳhs apnā main aam karte karte
--------------------------------------------
थकना भी ज़रूरी था कुछ काम करते करते
कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते

अंदर सब आ गया है बाहर का भी अंधेरा
ख़ुद रात हो गया हूँ मैं शाम करते करते

ये उम्र थी ही ऐसी जैसी गुज़ार दी है
बदनाम होते होते बदनाम करते करते

फँसता नहीं परिंदा है भी इसी हवा में
तंग आ गया हूँ दिल को यूँ दाम करते करते

कुछ बे-ख़बर नहीं थे जो जानते हैं मुझ को
मैं कुछ कर रहा था विश्राम करते करते

सर से गुज़र गया है पानी तो ज़ोर करता
सब रोक रुकते रुकते सब थाम करते करते

किसके तवाफ़ में थे और ये दिन आ गए हैं
क्या ख़ाक थी कि जिस को इह्राम करते करते

जिस मोड़ से चले थे पहुंचे हैं फिर वहीं पर
एक रागाँ सफ़र को अंजाम करते करते

आख़िर 'ज़फर' हुआ हूँ मंज़र से ख़ुद ही ग़ायब
उसूल-ए-ख़ास अपना मैं आम करते करते

Read more

Ujde hue logon se gurezan na hua kar..

ujde hue logon se gurezan na hua kar
halat ki qabron ke ye katbe bhi paḌha kar

Kya jnniye kyuun tez hava soch men gum hai
ḳhvabida parindon ko daraḳhton se uḌa kar

us shaḳhs ke tum se bhi marasim hain to honge
vo jhuuT na bolega mire samne aa kar

har vaqt Ka hansna tujhe barbad na kar de
tanhai ke lamhon men kabhi ro bhi liyā kar

vo aaj bhi sadiyon Ki masafat pe khaḌa hai
DhunDa tha jise vaqt Ki divar gira kar

ai dil tujhe dushman Ki bhi pahchan kahan hai
tu halqa-e-yaran men bhi mohtat raha kar

is shab ke muqaddar men sahar hi nahin 'mohsin'
dekha hai kai baar charaġhon ko bujha kar
-------------------------------------------
उजड़े हुए लोगों से ग़ज़ाँ न हुआ कर
हालात की क़ब्रों के ये क़तबे भी पढ़ा कर

क्या जानिए क्यों तेज़ हवा सोच में ग़म है
ख्वाबीदा परिंदों को दरख़्तों से उड़ा कर

उस शख़्स के तुम से भी मरासिम हैं तो होंगे
वो झूठ न बोलेगा मेरे सामने आ कर

हर वक़्त का हंसना तुझे बर्बाद न कर दे
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर

वो आज भी सदियों की मसाफत पे खड़ा है
ढूंढा था जिसे वक्त की दीवार गिरा कर

ऐ दिल तुझे दुश्मन की भी पहचान कहाँ है
तू हलक़ा-ए-यारां में भी मुहतात रहा कर

इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं 'मोहनसिन'
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर

Read more

Ab bhala chhod ke ghar kya karte..

ab bhala chhod ke ghar kya karte
shaam ke vaqt safar kya karte

Teri masrufiyaten jante hain
apne aane ki ḳhabar kya karte

jab sitare hi nahin mil paae
le ke ham shams-o-qamar kya karte

vo musafir hi khuli dhuup Ka tha
saae phaila ke shajar kya karte

ḳhaak hi avval o aḳhir Thahri
kar ke zarre ko guhar kya karte

raae pahle se bana li tu ne
dil men ab ham tire ghar kya karte

ishq ne saare saliqe baḳhshe
husn se kasb-e-hunar kya karte
--------------------------------
अब भला छोड़ के घर क्या करते
शाम के वक़्त सफ़र क्या करते

तेरी मशरूफ़ियतें जानते हैं
अपने आने की ख़बर क्या करते

जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-क़मर क्या करते

वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते

ख़ाक ही अव्वल-ओ-आख़िर ठहरी
कर के ज़र्रे को गुहर क्या करते

राय पहले से बना ली तू ने
दिल में अब हम तेरे घर क्या करते

इश्क़ ने सारे सलीक़े बख़्शे
हुस्न से कस्ब-ए-हुनर क्या करते
Read more

Hamare paas to aao bada andhera hai..

hamare paas to aao baḌa andhera hai
kahin na chhoḌ ke jaao Bada andhera hai

udaas kar gae be-saḳhta latife bhi
ab ansuon se rulao Bada andhera hai

koi sitara nahin pattharon Ki palkon par
koi charaġh jalao Bada andhera hai

haqiqaton men zamana bahut guzar chuke
koi kahani sunao Bada andhera hai

kitaben kaisi uTha laae mai-kade vaale
ġhazal ke jaam uThao Bada andhera hai

ġhazal men jis Ki hamesha charaġh jalte hain
use kahin se bulao Bada andhera hai

vo Chandni Ki basharat hai harf-e-aḳhir tak
'bashir-badr' ko laao Bada andhera hai
-----------------------------------------
हमारे पास तो आओ बड़ा अँधेरा है
कहीं न छोड़ के जाओ बड़ा अँधेरा है

उदास कर गए बे-साख़्ता लतीफ़े भी
अब आँसुओं से रुलाओ बड़ा अँधेरा है

कोई सितारा नहीं पत्थरों की पलकों पर
कोई चराग़ जलाओ बड़ा अँधेरा है

हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके
कोई कहानी सुनाओ बड़ा अँधेरा है

किताबें कैसी उठा लाए मैकदे वाले
ग़ज़ल के जाम उठाओ बड़ा अँधेरा है

ग़ज़ल में जिस की हमेशा चराग़ जलते हैं
उसे कहीं से बुलाओ बड़ा अँधेरा है

वो चाँदनी की बशारत है हर्फ़-ए-आख़िर तक
'बशीर-बद्र' को लाओ बड़ा अँधेरा है
Read more

Apna dil pesh karun apni vafa pesh karun..

Apna dil pesh karun apni vafa pesh karun
kuchh samajh men nahin aata tujhe kya pesh karun

tere milne ki ḳhushi men koi naghma chheḌun
ya tire dard-e-judai Ka gila pesh karun

mere ḳhvabon men bhi tu mere ḳhayalon men bhi tu
kaun si chiiz tujhe tujh se juda pesh karun

jo tire dil ko lubhae vo ada mujh men nahin
kyuun na tujh ko koi Teri hi ada pesh karun
------------------------------------
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ

तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़मा छेड़ूँ
या तेरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ

मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ

जो तेरे दिल को लुभाए वो अदा मुझ में नहीं
क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ

Read more

Sham-e-gham ki sahar nahin hoti..

sham-e-gham ki sahar nahin hoti
ya hamin ko ḳhabar nahin hoti

ham ne sab dukh jahan ke dekhe hain
bekali is qadar nahin hoti

naala yuun na-rasa nahin rahta
aah yuun be-asar nahin hoti

chand hai kahkashan hai taare hain
koi shai nama-bar nahin hoti

ek jan-soz o na-murad ḳhalish
is taraf hai udhar nahin hoti

dosto ishq hai ḳhata lekin
kya ḳhata darguzar nahin hoti

raat aa kar guzar bhi jaati hai
ik hamari sahar nahin hoti

be-qarari sahi nahin jaati
zindagi muḳhtasar nahin hoti

ek din dekhne ko aa jaate
ye havas umr bhar nahin hoti

husn sab ko ḳhuda nahin deta
har kisi ki  nazar nahin hoti

dil piyala nahin gadai ka
ashiqi dar-ba-dar nahin hoti
-------------------------------
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती
या हमीं को ख़बर नहीं होती

हम ने सब दुख जहान के देखे हैं
बेकली इस क़दर नहीं होती

नाला यूँ ना-रसा नहीं रहता
आह यूँ बे-असर नहीं होती

चाँद है, आकाश है, तारे हैं
कोई शै नामबर नहीं होती

एक जान-सोज़ और ना-मुराद ख़लिश
इस तरफ है, उधर नहीं होती

दोस्तो, इश्क़ है ख़ता लेकिन
क्या ख़ता दरगुज़र नहीं होती

रात आकर गुज़र भी जाती है
एक हमारी सहर नहीं होती

बे-करारी सही नहीं जाती
ज़िन्दगी मुट्ठी भर नहीं होती

एक दिन देखने को आ जाते
ये हवस उम्र भर नहीं होती

हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती

दिल प्याला नहीं, ग़दाई का
आशिकी दर-ब-दर नहीं होती
Read more

Apne saae ko itna samjhane de..

apne saae ko itna samjhane de
mujh tak mere hisse ki dhuup aane de

ek nazar men kai zamane dekhe to
buḌhi ankhon kī tasvir banane de

baaba duniya jiit ke main dikhla dunga
apni nazar se duur to mujh ko jaane de

main bhi to is baagh ka ek parinda huun
meri hi avaz men mujh ko gaane de

phir to ye uncha hi hota jaega
bachpan ke hathon men chand aa jaane de

faslen pak jaaen to khet se bichhḌengi
roti aankh ko pyaar kahan samjhane de
-----------------------------------------
अपने साए को इतना समझाने दे
मुझ तक मेरे हिस्से की धूप आने दे

एक नज़र में कई ज़माने देखे तो
बूढ़ी आँखों की तस्वीर बनाने दे

बाबा दुनिया जीत के मैं दिखला दूँगा
अपनी नज़र से दूर तो मुझको जाने दे

मैं भी तो इस बाग़ का एक परिंदा हूँ
मेरी ही आवाज़ में मुझको गाने दे

फिर तो ये ऊँचा ही होता जाएगा
बच्चपन के हाथों में चाँद आ जाने दे

फासले पक जाएं तो खेत से बिछड़ेंगी
रोटी आँख को प्यार कहाँ समझाने दे


Read more

Jigar aur dil ko bachana bhi hai..

jigar aur dil ko bachana bhi hai
nazar aap hi se milana bhi hai

mohabbat ka har bhed paana bhi hai
magar apna daman bachana bhi hai

jo dil tere ġham ka nishana bhi hai
qatil-e-jafa-e-zamana bhi hai

ye bijli chamakti hai kyuun dam-ba-dam
chaman men koi ashiyana bhi hai

ḳhirad ki itaat zaruri sahi
yahi to junun ka zamana bhi hai

na duniya na uqba kahan jaiye
kahin ahl-e-dil ka Thikana bhi hai

mujhe aaj sāhil pe rone bhi do
ki tufan men muskurana bhi hai

zamane se aage to badhiye 'majaz'
zamane ko aage badhana bhi hai
-----------------------------------
जिगर और दिल को बचाना भी है,
नज़र आप ही से मिलाना भी है।

मोहब्बत का हर भेद पाना भी है,
मगर अपना दामन बचाना भी है।

जो दिल तेरे ग़म का निशाना भी है,
क़ातिल-ए-जफ़ा-ए-जमाना भी है।

ये बिजली चमकती है क्यों दम-बह-दम,
चमन में कोई आशियाना भी है।

फिरद की इति'आत ज़रूरी सही,
यही तो जुनून का ज़माना भी है।

ना दुनिया ना उक़बा कहाँ जाइए,
कहीं अहल-ए-दिल का ठिकाना भी है।

मुझे आज साहिल पे रोने भी दो,
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है।

ज़माने से आगे तो बढ़िए 'मजाज़',
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है।

Read more

kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta..

kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta
kahin zamin kahin asman nahin milta

tamam shahr men aisa nahin ḳhulus na ho
jahan umiid ho is ki vahan nahin milta

kahan charagh jalaen kahan gulab rakhen
chhaten to milti hain lekin makan nahin milta

ye kya azaab hai sab apne aap men gum hain
zaban mili hai magar ham-zaban nahin milta

charaġh jalte hi bina.i bujhne lagti hai
ḳhud apne ghar men hi ghar ka nishan nahīn milta
-----------------------------------------------
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन, कहीं आसमान नहीं मिलता।

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़लूस न हो,
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता।

कहाँ चराग़ जलाएँ, कहाँ गुलाब रखें,
छतें तो मिलती हैं, लेकिन मकाँ नहीं मिलता।

यह क्या अज़ाब है, सब अपने आप में गुम हैं,
ज़बान मिली है मगर हमज़बान नहीं मिलता।

चराग़ जलते ही बिना ही बुझने लगती है,
ख़ुद अपने घर में ही घर का निशान नहीं मिलता।

Read more

duniya men huun duniya ka talabgar nahin huun..

duniya men huun duniya ka talabgar nahin huun
bazar se guzra huun ḳharidar nahin huun

zinda huun magar ziist ki lazzat nahin baaqi
har-chand ki huun hosh men hushyar nahin huun

is ḳhana-e-hasti se guzar ja.unga be-laus
saaya huun faqat naqsh-ba-divar nahin huun

afsurda huun ibrat se dava ki nahin hajat
ġham ka mujhe ye zoaf hai bimar nahin huun

vo gul huun ḳhizan ne jise barbad kiya hai
uljhun kisi daman se main vo ḳhaar nahin huun

ya rab mujhe mahfuz rakh us but ke sitam se
main us ki inayat ka talabgar nahin huun

go dava-e-taqva nahin dargah-e-ḳhuda men
but jis se hon ḳhush aisa gunahgar nahin huun

afsurdagi o zoaf ki kuchh had nahin 'akbar'
kafir ke muqabil men bhi din-dar nahin huun
-----------------------------------------
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ

ज़िंदा हूँ मगर ज़िंदगी की लज़्जत नहीं बाक़ी
हरचंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्ती से गुज़र जाऊँगा बे-लौस
साया हूँ फ़कत नक़्श-ब-दीवार नहीं हूँ

अफ़सुरदा हूँ इबरत से दवा की नहीं हाज़त
ग़म का मुझे ये जोफ़ है बीमार नहीं हूँ

वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बरबाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ

या रब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उसकी इनायत का तलबगार नहीं हूँ

गो दावा-ए-तक़वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिस से हो ख़ुश ऐसा गुनाहगार नहीं हूँ

अफ़सुरदगी ओ जोफ़ की कुछ हद नहीं 'अकबर'
काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दीं-दार नहीं हूँ
Read more

Thakan se duur har ik manzil-e-hayat rahe..

thakan se duur har ik manzil-e-hayat rahe
tira ḳhayal safar men jo saath saath rahe

miTa diya unhen ḳhud vaqt ke taqazon ne
jo log vaqt ke marhun-e-iltifat rahe

har ek hadsa-e-zist se guzar jaaen
hamare haath men jo zindagi ka haath rahe

jo apni zaat men dariya bhi the samundar bhi
lab-e-furat vahi tishna-e-furat rahe

vo ajnabi ki tarah aaj ham se milte hain
tamam umr jo 'ḳhusrav' hamare saath rahe
------------------------------------------
थकान से दूर हर एक मंज़िल-ए-हयात रहे
तिरा ख़याल सफ़र में जो साथ साथ रहे

मिटा दिया उन्हें ख़ुद वक़्त के तग़ाज़ों ने
जो लोग वक़्त के मरहून-ए-इल्ल्तिफ़ात रहे

हर एक हादसा-ए-ज़ीस्त से गुज़र जाएं
हमारे हाथ में जो ज़िन्दगी का हाथ रहे

जो अपनी ज़ात में दरिया भी थे समुंदर भी
लब-ए-फुरात वही तिश्ना-ए-फुरात रहे

वो अजनबी की तरह आज हमसे मिलते हैं
तमाम उम्र जो 'खुसरव' हमारे साथ रहे

Read more

Ishq hai to ishq ka Izhar hona chahiye..

ishq hai to ishq ka Izhar hona chahiye
aap ko chehre se bhi bimar hona chahiye

aap dariya hain to phir is vaqt ham ḳhatre men hain
aap kashti hain to ham ko paar hona chahiye

aire-ġhaire log bhi paḌhne lage hain in dinon
aap ko aurat nahin aḳhbar hona chahiye

zindagi tu kab talak dar-dar phira.egi hamen
TuTa-phuTa hī sahi ghar-bar hona chahiye

apni yadon se kaho ik din ki chhuTTī de mujhe
ishq ke hisse men bhī itvar hona chahiye
-----------------------------------------
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए

आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए

ऐरे-ग़ैर लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए

ज़िंदगी तू कब तक दर-दर फिराएगी हमें
टूट-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए

अपनी यादों से कहो एक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए

Read more

Yaad hai shadi men bhi hangama-e-ya-rab mujhe..

yaad hai shadi men bhi hangama-e-ya-rab mujhe
subha-e-zahid hua hai ḳhanda zer-e-lab mujhe

hai kushad-e-ḳhatir-e-va-basta dar rahn-e-suḳhan
thā tilism-e-qufl-e-abjad ḳhana-e-maktab mujhe

ya rab is ashuftagi kī daad kis se chahiye
rashk asa.ish pe hai zindaniyon kī ab mujhe

tab.a hai mushtaq-e-lazzat-ha-e-hasrat kya karun
aarzu se hai shikast-e-arzu matlab mujhe

dil laga kar aap bhī 'ġhalib' mujhī se ho ga.e
ishq se aate the maane mīrz sahab mujhe
----------------------------------------
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
सुबह-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेरे-लब मुझे

है खुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वाबस्ता दर-रहन-ए-सुख़न
था तिलस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अब्ज़द ख़ाना-ए-मकतब मुझे

या-रब इस आषुफ़तगी की दाद किस से चाहिए
रश्क-ए-आसाईश पे है ज़िंदानीयों की अब मुझे

तब़ा है मुस्तक़-ए-लज़्ज़त-हा-ए-हसरत क्या करूँ
आर्ज़ू से है शिकस्त-ए-आर्ज़ू मफ़हूम मुझे

दिल लगा कर आप भी 'ग़ालिब' मुझी से हो गए
इश्क़ से आते थे माने मीरज़ा साहब मुझे


Read more

Dil hosh se begana begane ko kya kahiye..

dil hosh se begana begane ko kya kahiye
chup rahna hi behtar hai divane ko kya kahiye

kuchh bhi to nahin dekha aur kuuch ki tayyari
yuun aane se kya hasil yuun jaane ko kya kahiye

majbur hain sab apni uftad tabiat se
ho shama se kya shikva parvane ko kya kahiye

tujh se hi marasim hain tujh se hi gila hoga
begane se kya lena begane ko kya kahiye

maana ki 'vasī'-shah se tum ko hain bahut shikve
divana hai divana divane ko kya kahiye
----------------------------------------------
दिल होश से बेगाना बेगाने को क्या कहिए
चुप रहना ही बेहतर है दीवाने को क्या कहिए

कुछ भी तो नहीं देखा और कुछ की तैयारी
यूँ आने से क्या हासिल यूँ जाने को क्या कहिए

मजबूर हैं सब अपनी उफ़्ताद तबीयत से
हो शमा से क्या शिकवा परवाने को क्या कहिए

तुझ से ही मरासिम हैं तुझ से ही गिला होगा
बेगाने से क्या लेना बेगाने को क्या कहिए

मानां कि 'वसी'-शाह से तुम को है बहुत शिकवे
दीवाना है दीवाना दीवाने को क्या कहिए

Read more

Patthar se visal mangti huun..

patthar se visal mangti huun
main adamiyon se kaT ga.i huun

shayad pa.un suraġh-e-ulfat
muTThi men ḳhak-bhar rahi huun

har lams hai jab tapish se aari
kisi aanch se yuun pighal rahi huun

vo ḳhvahish-e-bosa bhi nahin ab
hairat se honT kaTti huun

ik tiflak-e-justuju huun shayad
main apne badan se khelti huun

ab taba kisi pe kyuun ho raġhib
insanon ko barat chuki huun
-------------------------------
पत्थर से विसाल मांगती हूँ
मैं इंसानों से कट गई हूँ

शायद पा सकूँ सुराग़-ए-उल्फ़त
मुट्ठी में ख़ाक भर रही हूँ

हर लम्स है जब तपिश से आरी
किसी आँच से यूँ पिघल रही हूँ

वो ख़्वाहिश-ए-बोसा भी नहीं अब
हैरत से होंठ काटी हूँ

एक तिफलक-ए-जिस्तिजू हूँ शायद
मैं अपने बदन से खेलती हूँ

अब तबा किसी पे क्यों हो राग़िब
इंसानों को बरत चुकी हूँ

Read more

Aa gai yaad shaam Dhalte hi..

aa gai yaad shaam Dhalte hi
bujh gaya dil charagh jalte hi

khul gae shahr-e-gham ke darvaze
ik zara si hava ke chalte hi

kaun tha tu ki phir na dekha tujhe
miT gaya ḳhvab aankh malte hī

ḳhauf aata hai apne hi ghar se
mah-e-shab-tab ke nikalte hi

tu bhi jaise badal sa jaata hai
aks-e-divar ke badalte hi

ḳhuun sa lag gaya hai hāthon men
chaḌh gaya zahr gul masalte hi
---------------------------------
आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
एक ज़रा सी हवा के चलते ही

कौन था तू कि फिर न देखा तुझसे
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही

ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही

तू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दिवार के बदलते ही

ख़ून सा लग गया है हाथों में
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही

Read more

Bas ek baar kisi ne gale lagaya tha..

bas ek baar kisi ne gale lagaya tha
phir us ke baad na main tha na mera saaya tha

gali men log bhi the mere us ke dushman log
vo sab pe hansta hua mere dil men aaya tha

us ek dasht men sau shahr ho gae abad
jahan kisi ne kabhi karvan luTaya tha

vo mujh se apna pata puchhne ko aa nikle
ki jin se main ne ḳhud apna suraġh paaya tha

mire vajud se gulzar ho ke nikli hai
vo aag jis ne tira pairahan jalaya tha

mujhi ko tana-e-ġharat-gari na de pyare
ye naqsh main ne tire haath se miTaya tha

usi ne ruup badal kar jaga diya āḳhir
jo zahr mujh pe kabhi niind ban ke chhaya tha

'zafar' ki ḳhaak men hai kis ki hasrat-e-tamir
ḳhayal-o-ḳhvab men kis ne ye ghar banaya tha
-----------------------------------------------
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
फिर उसके बाद न मैं था न मेरा साया था

गली में लोग भी थे मेरे उसके दुश्मन लोग
वो सब पे हँसता हुआ मेरे दिल में आया था

उस एक दहशत में सौ शहर हो गए आबाद
जहाँ किसी ने कभी कारवाँ लूटा था

वो मुझ से अपना पता पूछने को आ निकले
कि जिन से मैं ने खुद अपना सुराग पाया था

मेरे वजूद से गुलजार हो के निकली है
वो आग जिस ने तेरा पैरहन जलाया था

मुझे को ताना-ए-ग़ारत-गरी ना दे प्यारे
ये नक्श मैंने तेरे हाथ से मिटाया था

उसी ने रूप बदल कर जगा दिया आखिर
जो ज़हर मुझ पे कभी नींद बन के छाया था

'ज़फ़र' की ख़ाक में है किस की हसरत-ए-तामीर
ख़याल-ओ-ख़्वाब में किस ने ये घर बनाया था

Read more

kaali raat ke sahraon men nur-sipara likkha tha..

kaali raat ke sahraon men nur-sipara likkha tha
jis ne shahr ki divaron par pahla naara likkha tha

laash ke nanhe haath men basta aur ik khaTTi goli thi
ḳhuun men Duubi ik taḳhti par ghain-ghubara likkha tha

aḳhir ham hi mujrim Thahre jaane kin kin jurmon ke
fard-e-amal thi jaane kis ki naam hamara likkha tha

sab ne maana marne vaala dahshat-gard aur qatil tha
maan ne phir bhi qabr pe us ki raj-dulara likkha tha
-------------------------------------------------------
काली रात के सहराों में नूर-सिपारा लिखा था
जिस ने शहर की दीवारों पर पहला नारा लिखा था

लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और एक खट्टी गोली थी
खून में डूबी एक तख़्ती पर घैँ-घुबारा लिखा था

आख़िर हम ही मुजरिम ठहरे जाने किन किन जुर्मों के
फ़र्द-ए-अमल थी जाने किस की नाम हमारा लिखा था

सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज़-दुलारा लिखा था


Read more

Yaad use bhi ek adhura afsana to hoga..

yaad use bhi ek adhura afsana to hoga
kal raste men us ne ham ko pahchana to hoga

Dar ham ko bhi lagta hai raste ke sannaTe se
lekin ek safar par ai dil ab jaana to hoga

kuchh baton ke matlab hain aur kuchh matlab ki baten
jo ye farq samajh lega vo divana to hoga

dil ki baten nahin hai to dilchasp hi kuchh baten hon
zinda rahna hai to dil ko bahlana to hoga

jiit ke bhi vo sharminda hai haar ke bhi ham nazan
kam se kam vo dil hi dil men ye maana to hoga
------------------------------------------------
याद उसे भी एक अधूरा अफ़साना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा

डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें
जो ये फ़र्क़ समझ लेगा वो दीवाना तो होगा

दिल की बातें नहीं हैं तो दिलचस्प ही कुछ बातें हों
ज़िंदा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा

जीत के भी वो शर्मिंदा है, हार के भी हम नाज़ाँ
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा



Read more

uTh chale vo to is men hairat kya..

uTh chale vo to is men hairat kya
un ke aage vafa ki qimat kya

us ke kuche se ho ke aaya huun
is se achchhi hai koi jannat kya

shahr se vo nikalne vaale hain
sar pe TuTegi phir qayamat kya

tere bandon ki bandagi ki hai
ye ibadat nahin ibadat kya

koi puchhe ki ishq kya shai hai
kya bataen ki hai mohabbat kya

ansuon se likha hai ḳhat un ko
paḌh vo paenge ye ibarat kya

main kahin aur dil laga lunga
mat karo ishq is men hujjat kya

garm bazar hon jo nafrat ke
is zamane men dil ki qimat kya

kitne chehre lage hain chehron par
kya haqiqat hai aur siyasat kya
----------------------------------
उठ चले वो तो इस में हैरत क्या
उनके आगे वफ़ा की क़ीमत क्या

उसके कूचे से हो के आया हूँ
इस से अच्छी है कोई जन्नत क्या

शहर से वो निकलने वाले हैं
सर पे टूटेगी फिर क़यामत क्या

तेरे बंदों की बंदगी की है
ये इबादत नहीं इबादत क्या

कोई पूछे कि इश्क़ क्या शै है
क्या बताएँ कि है मोहब्बत क्या

आँसुओं से लिखा है ख़त उन को
पढ़ वो पाएँगे ये इबारत क्या

मैं कहीं और दिल लगा लूँगा
मत करो इश्क़ इस में हुज्जत क्या

गर्म बाज़ार हों जो नफ़रत के
इस ज़माने में दिल की क़ीमत क्या

कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर
क्या हक़ीक़त है और सियासत क्या


Read more

hijr karte ya koi vasl guzara karte..

hijr karte ya koi vasl guzara karte
ham bahar-hāl basar ḳhvab tumhara karte

ek aisi bhi ghaḌi ishq men aai thi ki ham
ḳhaak ko haath lagate to sitara karte

ab to mil jaao hamen tum ki tumhari ḳhatir
itni duur aa gae duniya se kinara karte

mehv-e-ara.ish-e-ruḳh hai vo qayamat sar-e-bam
aankh agar aina hoti to nazara karte

ek chehre men to mumkin nahin itne chehre
kis se karte jo koi ishq dobara karte

jab hai ye ḳhana-e-dil aap ki ḳhalvat ke liye
phir koi aae yahan kaise gavara karte

kaun rakhta hai andhere men diya aankh men ḳhvab
teri janib hi tire log ishara karte

zarf-e-aina kahan aur tira husn kahan
ham tire chehre se a.ina sanvara karte
----------------------------------------
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते
हम बहर-हाल बसर ख़्वाब तुम्हारा करते

एक ऐसी भी घड़ी इश्क़ में आई थी कि हम
ख़ाक को हाथ लगाते तो सितारा करते

अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते

महव-ए-आरा.इश-ए-रुख़ है वो क़यामत सर-ए-बाम
आँख अगर आईना होती तो नज़ारा करते

एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते

जब है ये ख़ाना-ए-दिल आप की ख़ल्वत के लिए
फिर कोई आए यहाँ कैसे गवारा करते

कौन रखता है अंधेरे में दिया आँख में ख़्वाब
तेरी जानिब ही तेरे लोग इशारा करते

ज़र्फ़-ए-आईना कहाँ और तिरा हुस्न कहाँ
हम तिरे चेहरे से आईना संवारा करते

Read more

Ham unhen vo hamen bhula baithe..

ham unhen vo hamen bhula baithe
do gunahgar zahr kha baithe

hal-e-gham kah ke gham baḌha baiThe
tiir maare the tiir kha baiThe

andhiyo jaao ab karo aram
ham khud apna diya bujha baiThe

ji to halka hua magar yaaro
ro ke ham lutf-e-gham ganva baiThe

be-saharon ka hausla hi kya
ghar men ghabrae dar pe aa baiThe

jab se bichhḌe vo muskurae na ham
sab ne chheḌa to lab hila baiThe

ham rahe mubtala-e-dair-o-haram
vo dabe paanv dil men aa baiThe

uTh ke ik bevafa ne de di jaan
rah gae saare ba-vafa baiThe

hashr ka din abhi hai duur 'ḳhumār'
aap kyuun zahidon men ja baiThe
-------------------------------------
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे

हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे

आंधियो जाओ अब करो आराम
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे

जी तो हल्का हुआ मगर यारो
रो के हम लुत्फ़-ए-ग़म गंवा बैठे

बे-सहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए दर पे आ बैठे

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे

हम रहे मुब्तला-ए-दैर-ओ-हरम
वो दबे पांव दिल में आ बैठे

उठ के एक बेवफ़ा ने दे दी जान
रह गए सारे बा-वफ़ा बैठे

हश्र का दिन अभी है दूर 'खुमार'
आप क्यों ज़ाहिदों में जा बैठे

Read more

Zindagi ko na bana len vo saza mere baad..

zindagi ko na bana len vo saza mere baad
hausla dena unhen mere ḳhuda mere baad

kaun ghunghat ko uThaega sitamgar kah ke
aur phir kis se karenge vo haya mere baad

phir mohabbat ki zamane men na pursish hogi
roegi siskiyan le le ke vafa mere baad

haath uThte hue un ke na koi dekhega
kis ke aane ki karenge vo dua mere baad

kis qadar gham hai unhen mujh se bichhaḌ jaane ka
ho gae vo bhi zamane se juda mere baad

vo jo kahta tha ki 'nāsir' ke liye jiita huun
us ka kya janiye kya haal hua mere baad
------------------------------------------
ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद  
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद  

कौन घूँघट को उठाएगा सितमगर कह के  
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद  

फिर मोहब्बत की ज़माने में न पुरसिश होगी  
रोएगी सिसकियाँ ले ले के वफ़ा मेरे बाद  

हाथ उठते हुए उनके न कोई देखेगा  
किसके आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद  

किस क़दर ग़म है उन्हें मुझसे बिछड़ जाने का  
हो गए वो भी ज़माने से जुदा मेरे बाद  

वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूँ  
उसका क्या जानिए क्या हाल हुआ मेरे बाद  

Read more

Ankhon men raha dil men utar kar nahin dekha..

ankhon men raha dil men utar kar nahin dekha
kashti ke musafir ne samundar nahin dekha

be-vaqt agar jaunga sab chauuk paḌenge
ik umr hui din men kabhi ghar nahin dekhā

jis din se chala huuu miri manzil pe nazar hai
ankhon ne kabhi miil ka patthar nahin dekha

ye phuul mujhe koi virasat men mile hain
tum ne mira kanTon bhara bistar nahin dekha

yaron ki mohabbat ka yaqin kar liya main ne
phulon men chhupaya hua ḳhanjar nahin dekha

mahbub ka ghar ho ki buzurgon ki zaminen
jo chhod diya phir use mud kar nahin dekha

ḳhat aisa likha hai ki nagine se jaḌe hain
vo haath ki jis ne koi zevar nahin dekha

patthar mujhe kahta hai mira chahne vaala
main mom huun us ne mujhe chhu kar nahin dekha
------------------------------------------------
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा

बेवक्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पे नजर है
आँखों ने कभी मिल का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा

यारों की मोहब्बत का यकीन कर लिया मैंने
फूलों में छुपाया हुआ खंजर नहीं देखा

महबूब का घर हो कि बुजुर्गों की ज़मीनें
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

खत ऐसा लिखा है कि नगीनों से जुड़े हैं
वो हाथ की जिसने कोई ज़ेवर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा
Read more

Main ne roka bahut par gae sab ke sab..

main ne roka bahut par gae sab ke sab
jaane phir kya hua Dar gae sab ke sab

dost kya ab to dushman bhi mafqud hain
baat kya hai kahan mar gae sab ke sab

har-qadam par zamana muḳhalif raha
kaam apna magar kar gae sab ke sab

din men suraj ke the ham-safar din Dhale
le ke mayusiyan ghar gae sab ke sab

ped sukhe the qudrat bhi thi mehrban
aaj phal-phul se bhar gae sab ke sab

kya ḳhata thi kisi ne bataya nahin
mujh pe ilzam kyuun dhar gae sab ke sab

aap tanha bache hain miri bazm men
varna 'jāved'-aḳhtar gae sab ke sab
-------------------------------------
मैं ने रोका बहुत पर गए सब के सब
जाने फिर क्या हुआ डर गए सब के सब

दोस्त क्या अब तो दुश्मन भी मफ़क़ूद हैं
बात क्या है कहां मर गए सब के सब

हर क़दम पर ज़माना मुख़ालिफ़ रहा
काम अपना मगर कर गए सब के सब

दिन में सूरज के थे हम-सफ़र दिन ढले
ले के मायूसियाँ घर गए सब के सब

पेड़ सूखे थे, क़ुदरत भी थी मेहरबान
आज फल-फूल से भर गए सब के सब

क्या ख़ता थी किसी ने बताया नहीं
मुझ पे इल्ज़ाम क्यों धर गए सब के सब

आप तन्हा बचें हैं मेरी महफ़िल में
वरना 'जावेद'-अख़्तर गए सब के सब

Read more

Aadmi aadmi se milta hai..

aadmi aadmi se milta hai
dil magar kam kisi se milta hai

bhuul jaata huun main sitam us ke
vo kuchh is sadgi se milta hai

aaj kya baat hai ki phulon ka
rang teri hansi se milta hai

silsila fitna-e-qayamat ka
teri ḳhush-qamati se milta hai

mil ke bhi jo kabhi nahin milta
TuuT kar dil usi se milta hai

karobar-e-jahan sanvarte hain
hosh jab be-ḳhudi se milta hai

ruuh ko bhi maza mohabbat ka
dil ki ham-saegi se milta hai
------------------------------
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है

आज क्या बात है कि फूलों का
रंग तेरी हँसी से मिलता है

सिलसिला फ़ितना-ए-क़यामत का
तेरी ख़ुश-क़ामती से मिलता है

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है

कारोबार-ए-जहान संवरते हैं
होश जब बे-खुदी से मिलता है

रूह को भी मज़ा मोहब्बत का
दिल की हम-साईगी से मिलता है

Read more

Kuchh din to baso miri ankhon men..

Kuchh din to baso miri ankhon men
phir khvab agar ho jaao to kya

koi rang to do mire chehre ko
phir zakhm agar mahkao to kya

jab ham hi na mahke phir sahab
tum bad-e-saba kahlao to kya

ik aaina tha so TuuT gaya
ab khud se agar sharmao to kya

tum aas bandhane vaale the
ab tum bhi hamen Thukrao to kya

duniya bhi vahi aur tum bhi vahi
phir tum se aas lagāo to kyā

main tanha tha main tanha huun
tum aao to kya na aao to kya

jab dekhne vaala koi nahin
bujh jaao to kya gahnao to kya

ab vahm hai ye duniya is men
kuchh khoo to kya aur paao to kya

hai yuun bhi ziyan aur yuun bhi ziyan
ji jaao to kya mar jaao to kya
------------------------------------
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महकें फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

एक आईना था सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या

तुम आस बँधाने वाले थे
अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या

दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्या

मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्या

अब वहम है ये दुनिया इस में
कुछ खो तो क्या और पाओ तो क्या

है यूँ भी ज़ियाँ और यूँ भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या

Read more

Shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho..

shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho
dil-dasht men ik pyaas tamasha hai ki tum ho

ik lafz men bhaTka hua shair hai ki main huun
ik ghaib se aaya hua misraa hai ki tum ho

darvaza bhi jaise miri dhaḌkan se juda hai
dastak hi batati hai paraya hai ki tum ho

ik dhuup se uljha hua saaya hai ki main huun
ik shaam ke hone kā bharosa hai ki tum ho

main huun bhi to lagta hai ki jaise main nahin huun
tum ho bhi nahin aur ye lagta hai ki tum ho
-------------------------------------------
शबनम है कि धोखा है कि झरना है कि तुम हो
दिल-दश्त में एक प्यास तमाशा है कि तुम हो

एक शब्द में भटकता हुआ शायर है कि मैं हूँ
एक घ़ैब से आया हुआ मिसरा है कि तुम हो

दरवाज़ा भी जैसे मेरी धड़कन से जुड़ा है
दरवाज़ा ही बताती है पराया है कि तुम हो

एक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ
एक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ
तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो

Read more

Hasti apni habab ki si hai..

hasti apni habab ki si hai
ye numaish sarab ki si hai

nazuki us ke lab ki kya kahiye
pankhudi ik gulab ki si hai

chashm-e-dil khol is bhi aalam par
yaan ki auqat ḳhvab ki si hai

baar baar us ke dar pe jaata huun
halat ab iztirab ki si hai

nuqta-e-ḳhal se tir abru
bait ik intiḳhab ki si hai

maiñ jo bola kaha ki ye avaz
usi ḳhana-ḳharab ki si hai

atish-e-ġham men dil bhuna shayad
der se bu kabab ki si hai

dekhiye abr ki tarah ab ke
meri chashm-e-pur-ab ki si hai

'mīr' un nim-baz ankhon men
saari masti sharab ki si hai
------------------------------
हस्ती अपनी हबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है

नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम पर
यहाँ की औकात ख़्वाब की सी है

बार-बार उसके दर पे जाता हूँ
हालत अब इज़्तिराब की सी है

नुक्ता-ए-ख़ाल से तीर अब्रू
बैत इक इंतिख़ाब की सी है

मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है

आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद
देर से बू कबाब की सी है

देखिए अब्र की तरह अब के
मेरी चश्म-ए-पुर-आब की सी है

'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

Read more

Bhadkaen miri pyaas ko aksar tiri ankhen..

bhadkaen miri pyaas ko aksar tiri ankhen
sahra mira chehra hai samundar tiri ankhen

phir kaun bhala dad-e-tabassum unhen dega
roengi bahut mujh se bichhad kar tiri ankhen

ḳhali jo hui sham-e-Gharīban ki hatheli
kya kya na luTati rahin gauhar teri ankhen

bojhal nazar aati hain ba-zahir mujhe lekin
khulti hain bahut dil men utar kar tiri ankhen

ab tak miri yadon se miTae nahin miTta
bhigi hui ik shaam ka manzar tiri ankhen

mumkin ho to ik taaza ġhazal aur bhī kah luun
phir oḌh na len ḳhvab ki chadar tiri ankhen

main sang-sifat ek hi raste men khaḌa huun
shayad mujhe dekhengi palaT kar tiri ankhen

yuuu dekhte rahna use achchha nahin 'mohsin'
vo kanch ka paikar hai to patthar tiri ankhen
------------------------------------------------
भड़काएँ मेरी प्यास को अक्सर तेरी आँखें
सहरा मेरा चेहरा है समुंदर तेरी आँखें।

फिर कौन भला दाद-ए-तबस्सुम उन्हें देगा
रोएँगी बहुत मुझ से बिछड़ कर तेरी आँखें।

ख़ाली जो हुई शाम-ए-ग़रीबां की हथेली
क्या क्या न लुटाती रहीं गौहर तेरी आँखें।

बोझल नज़र आती हैं ब-ज़ाहिर मुझे लेकिन
खुलती हैं बहुत दिल में उतर कर तेरी आँखें।

अब तक मेरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तेरी आँखें।

मुमकिन हो तो एक ताज़ा ग़ज़ल और भी कह लूँ
फिर ओढ़ न लें ख़्वाब की चादर तेरी आँखें।

मैं संग-सिफ़त एक ही रास्ते में खड़ा हूँ
शायद मुझे देखेंगी पलट कर तेरी आँखें।

यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहन'
वो काँच का पयकर है तो पत्थर तेरी आँखें।
Read more

Tang aa chuke hain kashmakash-e-zindagi se ham..

Tang aa chuke hain kashmakash-e-zindagi se ham

Thukra na den jahan ko kahin be-dili se ham


mayusi-e-maal-e-mohabbat na puchhiye

apnon se pesh aae hain beganagi se ham


lo aaj ham ne tod diya rishta-e-umid

lo ab kabhi gila na karenge kisi se ham


ubhrenge ek baar abhi dil ke valvale

go dab gae hain bar-e-ġham-e-zindagi se ham


gar zindagi men mil gae phir ittifaq se

puchhenge apna haal tiri bebasi se ham


allah-re fareb-e-mashiyyat ki aaj tak

duniya ke zulm sahte rahe ḳhamushi se ham

-------------------------------------------

तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िंदगी से हम

ठुकरा न दें जहान को कहीं बे-दिली से हम।


मायूसी-ए-माल-ए-मोहब्बत न पूछिए

अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम।


लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद

लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम।


उभरेंगे एक बार अभी दिल के जोश से

गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम।


गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफाक से

पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम।


अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशियत की आज तक

दुनिया के जुल्म सहते रहे ख़ामोशी से हम।


Read more

Aahan men Dhalti jaegi ikkisvin sadi..

aahan men Dhalti jaegi ikkisvin sadi
phir bhi ghazal sunaegi ikkisvin sadi

baġhdad dilli masco london ke darmiyan
barud bhi bichhaegi ikkisvin sadi

jal kar jo raakh ho gaiin dangon men is baras
un ghuggiyon men aaegi ikkisvin sadi

tahzib ke libas utar jaenge janab
dollar men yuun nachaegi ikkisvin sadi

le ja ke asman pe taron ke as-pas
america ko giraegi ikkisvin sadi

ik yatra zarur ho ninnanve ke paas
rath par savar aaegi ikkisvin sadi

phir se ḳhuda banega koi naya jahan
duniya ko yuuu miTaegi ikkīsvin sadi

compurteron se ġhazlen likhenge 'bashīr-badr'
'ġhālib' ko bhuul jaegi ikkīsvin sadi
----------------------------------------
आहान में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी
फिर भी ग़ज़ल सुनाएगी इक्कीसवीं सदी।

बग़दाद, दिल्ली, मास्को, लंदन के दरमियान
बारूद भी बिछाएगी इक्कीसवीं सदी।

जलकर जो राख हो गईं दंगों में इस बरस
उन घुग्गियों में आएगी इक्कीसवीं सदी।

तहज़ीब के लिबास उतर जाएंगे जनाब
डॉलर में यूं नचाएगी इक्कीसवीं सदी।

ले जाकर आसमान पे तारों के आस-पास
अमेरिका को गिराएगी इक्कीसवीं सदी।

एक यात्रा जरूर हो निन्यानवे के पास
रथ पर सवार आएगी इक्कीसवीं सदी।

फिर से ख़ुदा बनेगा कोई नया जहां
दुनिया को यूं मिटाएगी इक्कीसवीं सदी।

कंप्यूटरों से ग़ज़लें लिखेंगे 'बशीर-बदर'
'ग़ालिब' को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी।
Read more

Itne ḳhamosh bhi raha na karo..

Itne ḳhamosh bhi raha na karo
Gham judai men yuun kiya na karo

ḳhvab hote hain dekhne ke liye
un men ja kar magar raha na karo

kuchh na hoga gila bhi karne se
zalimon se gila kiya na karo

un se niklen hikayaten shayad
harf likh kar miTā diyā na karo

apne rutbe ka kuchh lihaz 'munīr'
yaar sab ko bana liya na karo
-------------------------------
इतने ख़ामोश भी रहा न करो
ग़म जुदाई में यूँ किया न करो

ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जाकर मगर रहा न करो

कुछ न होगा गिला भी करने से
ज़ालिमों से गिला किया न करो

उन से निकलें हिकायतें शायद
हर्फ़ लिख कर मिटा दिया न करो

अपने रुतबे का कुछ लिहाज़ 'मुनीर'
यार सब को बना लिया न करो






Read more

Gulshan gulshan phuul..

gulshan gulshan phuul

daman daman dhuul


marne par taazir

jiine par mahsul


har jazba maslub

har ḳhvahish maqtul


ishq pareshan-hal

naz-e-husn malul


naara-e-haq maatub

makr-o-riya maqbul


sanvra nahin jahan

aae kai rasul

---------------------

गुलशन गुलशन फूल

दामन दामन धूल


मरने पर ताज़ीर

जीने पर महसूल


हर जज़्बा मसलूब

हर ख़्वाहिश मक़तूल


इश्क़ परेशान-हाल

नाज़-ए-हुस्न मलूल


नारा-ए-हक़ मअतूब

मकर-ओ-रियā मक़बूल


संवरा नहीं जहाँ

आए कई रसूल


Read more

Apni dhun men rahta huun..

Apni dhun men rahta huun
main bhi tere jaisa huun

o pichhli rut ke sathi
ab ke baras main tanha huun

teri gali men saara din
dukh ke kankar chunta huun

mujh se aankh milae kaun
main tera aina huun

mera diya jalae kaun
main tira ḳhali kamra huun

tere siva mujhe pahne kaun
main tire tan ka kapḌa huun

tu jivan ki bhari gali
main jangal ka rasta huun

aati rut mujhe roegi
jaati rut ka jhonka huun

apni lahr hai apna rog
dariya huun aur pyasa huun
----------------------------
अपनी धुन में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ

ओ पिछली रुत के साथी
अबके बरस मैं तन्हा हूँ

तेरी गली में सारा दिन
दुख के कंकर चुनता हूँ

मुझ से आँख मिलाए कौन
मैं तेरा आईना हूँ

मेरा दिया जलाए कौन
मैं तेरा खाली कमरा हूँ

तेरे सिवा मुझे पहने कौन
मैं तेरे तन का कपड़ा हूँ

तू जीवन की भरी गली
मैं जंगल का रस्ता हूँ

आती रुत मुझे रोएगी
जाती रुत का झोंका हूँ

अपनी लहर है अपना रोग
दरिया हूँ और प्यासा हूँ
Read more

Chehre pe mire zulf ko phailao kisi din..

Chehre pe mire zulf ko phailao kisi din

kya roz garajte ho baras jaao kisi din


razon ki tarah utro mire dil men kisi shab

dastak pe mire haath ki khul jaao kisi din


peḌon ki tarah husn ki barish men naha luun

badal ki tarah jhuum ke ghar aao kisi din


ḳhushbu ki tarah guzro miri dil ki gali se

phulon ki tarah mujh pe bikhar jaao kisi din


guzren jo mere ghar se to ruk jaaen sitare

is tarah miri raat ko chamkao kisi din


main apni har ik saans usi raat ko de duun

sar rakh ke mire siine pe so jaao kisi din

--------------------------------------------

चेहरे पे मेरे ज़ुल्फ़ को फैला दो किसी दिन

क्या रोज़ गरजते हो, बरस जाओ किसी दिन


राज़ों की तरह उतरो मेरे दिल में किसी शब

दस्तक पे मेरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन


पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूँ

बादल की तरह झूम के घर आओ किसी दिन


ख़ुशबू की तरह गुज़रो मेरी दिल की गली से

फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन


गुज़रें जो मेरे घर से तो रुक जाएँ सितारे

इस तरह मेरी रात को चमका दो किसी दिन


मैं अपनी हर एक साँस उसी रात को दे दूँ

सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन

Read more

Har lamha agar gurez-pa hai..

Har lamha agar gurez-pa hai
tu kyuun mire dil men bas gaya hai

chilman men gulab sambhal raha hai
ye tu hai ki shoḳhi-e-saba hai

jhukti nazren bata rahi hain
mere liye tu bhi sochta hai

main tere kahe se chup huun lekin
chup bhi tu bayan-e-muddaa hai

har des ki apni apni boli
sahra ka sukut bhi sada hai

ik umr ke baad muskura kar
tu ne to mujhe rula diya hai

us vaqt ka hisab kya duun
jo tere baġhair kaT gaya hai

maazi ki sunaun kya kahani
lamha lamha guzar gaya hai

mat maang duaen jab mohabbat
tera mera muamla hai

ab tujh se jo rabt hai to itna
tera hi ḳhuda mira ḳhuda hai

rone ko ab ashk bhi nahin hain
ya ishq ko sabr aa gaya hai

ab kis ki talash men hain jhonke
main ne to diya bujha diya hai

kuchh khel nahin hai ishq karna
ye zindagi bhar ka rat-jaga hai
-------------------------------------
हर लम्हा अगर गुरेज़पा है
तू क्यों मेरे दिल में बस गया है

चिलमन में गुलाब संभल रहा है
ये तू है कि शोखी-ए-सबा है

झुकती नज़रें बता रही हैं
मेरे लिए तू भी सोचता है

मैं तेरे कहे से चुप हूँ लेकिन
चुप भी तू बयान-ए-मुद्दा है

हर देश की अपनी-अपनी बोली
सहरा का सुकूत भी सदा है

एक उम्र के बाद मुस्कुरा कर
तू ने तो मुझे रुला दिया है

उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ
जो तेरे बग़ैर कट गया है

माजी की सुनाऊं क्या कहानी
लम्हा-लम्हा गुज़र गया है

मत मांग दुआएं जब मोहब्बत
तेरा मेरा मामला है

अब तुझ से जो राब्त है तो इतना
तेरा ही खुदा मेरा खुदा है

रोने को अब अश्क भी नहीं हैं
या इश्क़ को सब्र आ गया है

अब किस की तलाश में हैं झोंके
मैं ने तो दिया बुझा दिया है

कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
ये ज़िन्दगी भर का रात-गुज़ार है









Read more

Shoala-e-gul gulab shoala kya..

shoala-e-gul gulab shoala kya
aag aur phuul ka ye rishta kya

tum miri zindagi ho ye sach hai
zindagi kā magar bharosa kya

kitni sadiyon Ki qismaton ka main
koi samjhe bisat-e-lamha kya

jo na adab-e-dushmani jaane
dosti ka use salīiqa kya

kaam ki puchhte ho gar sahab
ashiqi ke alava pesha kya

baat matlab ki sab samajhte hain
sahab-e-nashsha ġharq-e-bada kyā

dil-dukhon ko sabhi satate hain
sher kya giit kya fasana kya

sab hain kirdar ik kahani ke
varna shaitan kya farishta kya

din haqiqat ka ek jalva hai
raat bhi hai usi ka parda kya

tu ne mujh se koi saval kiya
kārvan-e-hayat-e-rafta kya

jaan kar ham 'bashir-badr' hue
is men taqdir ka navishta kya
-------------------------------
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या,
आग और फूल का ये रिश्ता क्या।

तुम मेरी जिंदगी हो ये सच है,
जिंदगी का मगर भरोसा क्या।

कितनी सदियों की किस्मतों का मैं,
कोई समझे बिसात-ए-लम्हा क्या।

जो न आदाब-ए-दुश्मनी जाने,
दोस्ती का उसे सलीका क्या।

काम की पूछते हो गर साहब,
आश्की के अलावा पेशा क्या।

बात मतलब की सब समझते हैं,
साहब-ए-नश्शा घर्क-ए-बादा क्या।

दिल-दुखों को सभी सताते हैं,
शेर क्या गीत क्या फसाना क्या।

सब हैं किरदार एक कहानी के,
वरना शैतान क्या फरिश्ता क्या।

दिन हक़ीकत का एक जलवा है,
रात भी है उसी का पर्दा क्या।

तू ने मुझसे कोई सवाल किया,
कारवां-ए-हयात-ए-रफ्ता क्या।

जान कर हम 'बशीर-बद्र' हुए,
इस में तक़दीर का नवीश्ता क्या।

Read more

Jab tira hukm mila tark mohabbat kar di..

jab tira hukm mila tark mohabbat kar di
dil magar is pe vo dhaḌka ki Qayamat kar di

tujh se kis tarah main iz.har-e-tamanna karta
lafz sūjha to muani ne baghavat kar di

main to samjha tha ki lauT aate hain jaane vaale
tu ne ja kar to judai miri qismat kar di

tujh ko puuja hai ki asnam-parasti ki hai
main ne vahdat ke mafahim ki kasrat kar di

mujh ko dushman ke iradon pe bhi pyaar aata hai
tiri ulfat ne mohabbat miri aadat kar di

puchh baiTha huun main tujh se tire kuche ka pata
tere halat ne kaisi tiri surat kar di

kya tira jism tire husn ki hiddat men jala
raakh kis ne tiri sone Ki si rangat kar di
-------------------------------------------
जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी,
दिल मगर इस पे वो धड़का की क़यामत कर दी।

तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,
लफ्ज़ सूझा तो मानी ने बगावत कर दी।

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,
तू ने जा कर तो जुदाई मेरी क़िस्मत कर दी।

तुझ को पूछा है कि अस्नाम-परस्ती की है,
मैं ने वहदत के मफाहिम की कसरत कर दी।

मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है,
तिरी उल्फत ने मोहब्बत मेरी आदत कर दी।

पूछ बैठा हूँ मैं तुझ से तिरे कूचे का पता,
तेरे हालात ने कैसी तिरी सूरत कर दी।

क्या तिरा जिस्म तिरे हुस्न की हिद्दत में जला,
राख किस ने तिरी सोने की सी रंगत कर दी।

Read more

Hansne nahin deta kabhi rone nahin deta..

hansne nahin deta kabhi rone nahin deta
ye dil to koi kaam bhi hone nahin deta

tum maang rahe ho mire dil se miri ḳhvahish
bachcha to kabhi apne khilaune nahin deta

main aap uThata huun shab-o-roz Ki zillat
ye bojh kisi aur ko Dhone nahin deta

vo kaun hai us se to main vaqif bhi nahin huun
jo mujh ko kisi aur ka hone nahin deta
-----------------------------------------
हँसने नहीं देता कभी, रोने नहीं देता,
ये दिल तो कोई काम भी होने नहीं देता।

तुम माँग रहे हो मेरे दिल से मेरी ख़्वाहिश,
बच्चा तो कभी अपने खिलौने नहीं देता।

मैं आप उठाता हूँ, शब-ओ-रोज़ की जिल्लत,
ये बोझ किसी और को धोने नहीं देता।

वो कौन है, उससे तो मैं वाकिफ़ भी नहीं हूँ,
जो मुझको किसी और का होने नहीं देता।

Read more

Khuub hai shauq ka ye pahlu bhi..

ḳhuub hai shauq ka ye pahlu bhi
main bhi barbad ho gaya tu bhi

husn-e-maġhmum tamkanat men tiri
farq aaya na yak-sar-e-mu bhi

ye na socha tha zer-e-sāya-e-zulf
ki bichhaḌ jaegi ye ḳhush-bu bhi

husn kahta tha chhedne vaale
chhedna hī to bas nahin chhu bhi

haae vo us ka mauj-ḳhez badan
main to pyasa raha lab-e-ju bhi

yaad aate hain moajize apne
aur us ke badan ka jaadu bhi

yasmin us ki ḳhaas mahram-e-raz
yaad aaya karegi ab tu bhi

yaad se us ki hai mira parhez
ai saba ab na aaiyo tu bhi

hain yahi 'jaun-elia' jo kabhi
saḳht maġhrur bhi the bad-ḳhu bhi
-----------------------------------
ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी
मैं भी बर्बाद हो गया तू भी

हुस्न-ए-मग़मूम तम्कनत में तेरी
फ़र्क़ आया न यक-सरे-मूँ भी

ये न सोचा था ज़ेरे-साया-ए-ज़ुल्फ़
कि बिछड़ जाएगी ये ख़ुशबू भी

हुस्न कहता था छेड़ने वाले
छेड़ना ही तो बस नहीं, छू भी

हाय वो उसका मौज-खेज़ बदन
मैं तो प्यासा रहा लब-ए-जू भी

याद आते हैं मुअजिज़े अपने
और उसके बदन का जादू भी

यासमीन उसकी ख़ास महरम-ए-राज़
याद आया करेगी अब तू भी

याद से उसकी है मेरा परहेज़
ऐ सबा अब न आ इयो तू भी

हैं यही 'जौन एलिया' जो कभी
सख़्त मग़रूर भी थे बद-ख़ू भी

Read more

Bichhad gae to ye dil 'umr bhar lagega nahin..

bichhad gae to ye dil 'umr bhar lagega nahin
lagega lagne laga hai magar lagega nahin

nahin lagega use dekh kar magar ḳhush hai
main ḳhush nahin huun magar dekh kar lagega nahin

hamare dil ko abhi mustaqil pata na bana
hamen pata hai tira dil udhar lagega nahin

junun ka hajm ziyada tumhara zarf hai kam
zara sa gamla hai is men shajar lagega nahin

ik aisa zaḳhm-numa dil qarib se guzra
dil us ko dekh ke chiḳha Thahar lagega nahin

junun se kund kiya hai so us ke husn ka kiil
mire siva kisi dīvar par lagega nahin

bahut tavajjoh taalluq bigad deti hai
ziyada Darne lagenge to Dar lagega nahin
-------------------------------------------
बिछड़ गए तो ये दिल 'उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं

नहीं लगेगा उसे देखकर मगर खुश है
मैं खुश नहीं हूँ मगर देखकर लगेगा नहीं

हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना
हमें पता है तेरा दिल उधर लगेगा नहीं

जुनूँ का हज्म ज़्यादा तुम्हारा ज़र्फ़ है कम
ज़रा सा गमला है इस में शजर लगेगा नहीं

एक ऐसा ज़ख़्म-नुमा दिल क़रीब से गुज़रा
दिल उसको देखकर चीख़ा ठहर लगेगा नहीं

जुनूँ से कुंद किया है सो उसके हुस्न का कील
मेरे सिवा किसी दीवार पर लगेगा नहीं

बहुत तवज्जोह तआल्लुक़ बिगाड़ देती है
ज़्यादा डरने लगेंगे तो डर लगेगा नहीं
Read more

Main zindagi ka saath nibhata chala gaya..

main zindagi ka saath nibhata chala gaya
har fikr ko dhuen men udata chala gaya

barbadiyon ka sog manana fuzul tha
barbadiyon ka jashn manata chala gaya

jo mil gaya usi ko muqaddar samajh liya
jo kho gaya main us ko bhulata chala gaya

ġham aur ḳhushi men farq na mahsus ho jahan
main dil ko us maqam pe laata chala gaya
------------------------------------------
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया

जो मिल गया उसे मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भूलाता चला गया

ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया

Read more

ḳhamushi achchhi nahin inkar hona chahiye..

ḳhamushi achchhi nahin inkar hona chahiye
ye tamasha ab sar-e-bazar hona chahiye

ḳhvab kī tabir par israr hai jin ko abhi
pahle un ko ḳhvab se bedar hona chahiye

Duub kar marna bhi uslub-e-mohabbat ho to ho
vo jo dariya hai to us ko paar hona chahiye

ab vahi karne lage didar se aage ki baat
jo kabhi kahte the bas didar hona chahiye

baat puuri hai adhuri chahiye ai jan-e-jan
kaam asan hai ise dushvar hona chahiye

dosti ke naam par kiije na kyunkar dushmani
kuchh na kuchh aḳhir tariq-e-kar hona chahiye

jhuuT bola hai to qaaem bhi raho us par 'zafar'
aadmi ko sahab-e-kirdar hona chahiye
-----------------------------------------

ख़ामोशी अच्छी नहीं, इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए

ख़्वाब की ताबीर पर इसरार है जिनको अभी
पहले उनको ख़्वाब से बेदार होना चाहिए

डूब कर मरना भी उस्लूब-ए-मोहब्बत हो तो हो
वो जो दरिया है, तो उसको पार होना चाहिए

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात
जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए

बात पूरी है अधूरी चाहिए ऐ जान-ए-जान
काम आसान है, इसे दुश्वार होना चाहिए

दोस्ती के नाम पर कीजिए ना क्यूंकर दुश्मनी
कुछ न कुछ आख़िर तरीक़-ए-कार होना चाहिए

झूठ बोला है तो कायम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
आदमी को साहिब-ए-करदार होना चाहिए
Read more

Udaas raat hai koi to ḳhvab de jaao..

udaas raat hai koi to ḳhvab de jaao
mire gilas men thodi sharab de jaao

bahut se aur bhi ghar hain ḳhuda ki basti men
faqir kab se khada hai javab de jaao

main zard patton pe shabnam saja ke laaya huun
kisi ne mujh se kaha tha hisab de jaao

adab nahīn hai ye aḳhbar ke tarashe hain
gae zamanon ki koi kitab de jaao

phir us ke baad nazare nazar ko tarsenge
vo ja raha hai ḳhizan ke gulab de jaao

miri nazar men rahe Dubne ka manzar bhi
ġhurub hota hua aftab de jaao

hazar safhon ka dīvan kaun padhta hai
'bashīr-badr' ka koi intiḳhab de jaao
----------------------------------------
उदास रात है, कोई तो ख़्वाब दे जाओ
मेरे गिलास में थोड़ी शराब दे जाओ

बहुत से और भी घर हैं ख़ुदा की बस्ती में
फकीर कब से खड़ा है जवाब दे जाओ

मैं ज़र्द पत्तों पे शबनम सजा के लाया हूँ
किसी ने मुझसे कहा था हिसाब दे जाओ

अदब नहीं है ये अख़बार के तराशे हैं
गए ज़मानों की कोई किताब दे जाओ

फिर उसके बाद नज़ारे नज़र को तरसेंगे
वो जा रहा है ख़िज़ाँ के गुलाब दे जाओ

मेरी नज़र में रहे डूबने का मंज़र भी
ग़ुरूब होता हुआ आफ़ताब दे जाओ

हज़ार सफ़हों का दीवान कौन पढ़ता है
'बशीर-बदर' का कोई चुनाव दे जाओ

Read more

Aankh men paani rakho honTon pe chingari rakho..

aankh men paani rakho honTon pe chingari rakho
zinda rahna hai to tarkiben bahut saari rakho

raah ke patthar se baḌh kar kuchh nahin hain manzilen
rāste āvāz dete haiñ safar jaarī rakho

ek hi naddi ke hain ye do kinare dosto
dostana zindagi se maut se yaari rakho

aate jaate pal ye kahte hain hamare kaan men
kuuch ka ailan hone ko hai tayyari rakho

ye zaruri hai ki ankhon Ka bharam qaaem rahe
niind rakho ya na rakho ḳhvab meyari rakho

ye havaen uḌ na jaaen le ke kaghaz ka badan
dosto mujh par koi patthar Zara bhari rakho

le to aae shairi bazar men 'rahat' miyan
Kya zaruri hai ki lahje ko bhi bazari rakho
---------------------------------------------
आँख में पानी रखो होंठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ़कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो

एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कुछ का ऐलान होने को है तैयारी रखो

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम कायम रहे
नींद रखो या न रखो ख्वाब मेयारी रखो

ये हवाएँ उड़ न जाएँ लेकर कागज़ का बदन
दोस्तों मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

ले तो आए शायरी बाजार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो

Read more

faqirana aae sada kar chale..

faqirana aae sada kar chale
ki myaan ḳhush raho ham dua kar chale

jo tujh bin na jiine ko kahte the ham
so is ahd ko ab vafa kar chale

shifa apni taqdir hi men na thi
ki maqdur tak to dava kar chale

paḌe aise asbab payan-e-kar
ki na-char yuun ji jala kar chale

vo kya chiiz hai aah jis ke liye
har ik chiiz se dil uThā kar chale

koi na-umidana karte nigah
so tum ham se muñh bhī chhupā kar chale

bahut aarzu thi gali ki tiri
so yaan se lahu men naha kar chale

dikhai diye yuun ki be-ḳhud kiya
hamen aap se bhi juda kar chale

jabin sajda karte hi karte gai
haq-e-bandagī ham adā kar chale

parastish ki yaan tak ki ai but tujhe
nazar men sabhon ki ḳhuda kar chale

jhaḌe phuul jis rang gulbun se yuun
chaman meñ jahan ke ham aa kar chale

na dekha gham-e-dostan shukr hai
hamin daagh apna dikha kar chale

gai umr dar-band-e-fikr-e-ghazal
so is fan ko aisā baḌā kar chale

kahen kya jo puchhe koi ham se mir
jahan men tum aae the kya kar chale
-------------------------------------
फ़कीराना आए सदा कर चले
कि मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले

जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी
कि मक्सूर तक तो दवा कर चले

पढ़े ऐसे असबाब पायां-ए-कार
कि न-चार यूं जी जलाकर चले

वो क्या चीज़ है आह जिस के लिए
हर इक चीज़ से दिल उठाकर चले

कोई न-उमीदाना करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छुपाकर चले

बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिए यूं की बे-ख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

जबीन सजदा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

परस्तिश की याँ तक की ऐ बुत तुझे
नज़र में सबों की ख़ुदा कर चले

झड़े फूल जिस रंग गुलबन से यूं
चमन में जहाँ के हम आकर चले

न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है
हमीं दाग़ अपना दिखा कर चले

गई उम्र दर-बंद-ए-फिकर-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले

कहीं क्या जो पूछे कोई हम से 'मीर'
जहाँ में तुम आए थे क्या कर चले

Read more

Itni muddat baad mile ho..

itni muddat baad mile ho
kin sochon meñ gum phirte ho

itne ḳha.if kyuuñ rahte ho
har aahaT se Dar jaate ho

tez havā ne mujh se puchha
ret pe kyā likhte rahte ho

kaash koi ham se bhi puchhe
raat ga.e tak kyuuñ jaage ho

men dariya se bhi Darta huun
tum dariyā se bhī gahre ho

kaun sī baat hai tum meñ aisī
itne achchhe kyuuñ lagte ho

pīchhe muḌ kar kyuuñ dekhā thā
patthar ban kar kyā takte ho

jaao jiit ka jashn manao
meñ jhūTā huuñ tum sachche ho

apne shahar ke sab logoñ se
merī ḳhātir kyuuñ uljhe ho

kahne ko rahte ho dil meñ
phir bhī kitne duur khaḌe ho

raat hameñ kuchh yaad nahīñ thā
raat bahut hī yaad aa.e ho

ham se na pūchho hijr ke qisse
apnī kaho ab tum kaise ho

'mohsin' tum badnām bahut ho
jaise ho phir bhī achchhe ho
------------------------------
इतनी मुदत बाद मिले हो
किन सोचों में ग़म फिरते हो

इतने ख़ाइफ क्यों रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझसे पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो

काश कोई हम से भी पूछे
रात गए तक क्यों जागे हो

मैं दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो

पीछे मुड़ कर क्यों देखा था
पत्थर बन कर क्या ताकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ
मैं झूठा हूँ तुम सच्चे हो

अपने शहर के सब लोगों से
मेरी ख़ातिर क्यों उलझे हो

कहने को रहते हो दिल में
फिर भी कितने दूर खड़े हो

रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आ गई हो

हम से ना पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो फिर भी अच्छे हो

Read more

Jidhar jaate hain sab jaana udhar accha nahi lagta..

Jidhar jaate hain sab jaana udhar accha nahi lagta
Mujhe paamaal raaston ka safar accha nahi lagta

Ghalat baaton ko khaamoshi se sunna, haami bhar lena
Bahut hain faaide is mein magar accha nahi lagta

Mujhe dushman se bhi khuddari ki umeed rehti hai
Kisi ka bhi ho sar, qadmon mein sar accha nahi lagta

Bulandi par unhein mitti ki khushboo tak nahi aati
Yeh wo shaakhen hain jin ko ab shajar accha nahi lagta

Yeh kyun baaqi rahe aatish-zano, yeh bhi jala daalo
Ke sab be-ghar hon aur mera ho ghar accha nahi lagta
---------------------------------------------------------------------------
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
Read more

Agar ye keh do baghair mere nahi guzara toh main tumhara..

Agar ye keh do baghair mere nahi guzara toh main tumhara
Ya us pe mabni koi tasur koi ishara toh main tumhara

Guroor-parwar ana ka malik kuch is tarah ke hain naam mere
Magar qasam se jo tum ne ik naam bhi pukara toh main tumhara

Tum apni sharton pe khel khelo main jaise chahe lagaoon baazi
Agar main jeeta toh tum ho mere agar main haara toh main tumhara

Tumhara aashiq tumhara mukhlis tumhara saathi tumhara apna
Raha na in mein se koi duniya mein jab tumhara toh main tumhara

Tumhara hone ke faisle ko main apni qismat pe chhodta hoon
Agar muqaddar ka koi toota kabhi sitara toh main tumhara

Ye kis pe taweez kar rahe ho ye kis ko paane ke hain wazeefe
Tamaam chhodo bas ek kar lo jo istikhara toh main tumhara
---------------------------------------------------------------------------------
अगर ये कह दो बग़ैर मेरे नहीं गुज़ारा तो मैं तुम्हारा
या उस पे मब्नी कोई त'अस्सुर कोई इशारा तो मैं तुम्हारा

ग़ुरूर-परवर अना का मालिक कुछ इस तरह के हैं नाम मेरे
मगर क़सम से जो तुम ने इक नाम भी पुकारा तो मैं तुम्हारा

तुम अपनी शर्तों पे खेल खेलो मैं जैसे चाहे लगाऊँ बाज़ी
अगर मैं जीता तो तुम हो मेरे अगर मैं हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा आशिक़ तुम्हारा मुख़्लिस तुम्हारा साथी तुम्हारा अपना
रहा न इन में से कोई दुनिया में जब तुम्हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा होने के फ़ैसले को मैं अपनी क़िस्मत पे छोड़ता हूँ
अगर मुक़द्दर का कोई टूटा कभी सितारा तो मैं तुम्हारा

ये किस पे ता'वीज़ कर रहे हो ये किस को पाने के हैं वज़ीफ़े
तमाम छोड़ो बस एक कर लो जो इस्तिख़ारा तो मैं तुम्हारा
Read more

Mohabbatón mein dikhave ki dosti na mila..

Mohabbatón mein dikhave ki dosti na mila
Agar gale nahi milta toh haath bhi na mila

Gharon pe naam the, naamon ke saath ohde the
Bahut talaash kiya koi aadmi na mila

Tamam rishton ko main ghar pe chhod aaya tha
Phir us ke baad mujhe koi ajnabi na mila

Khuda ki itni badi kaayenaat mein main ne
Bas ek shakhs ko manga mujhe wahi na mila

Bahut ajeeb hai ye qurbaton ki doori bhi
Wo mere saath raha aur mujhe kabhi na mila
----------------------------------------------------------------
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

Read more

Apne har har lafz ka khud aaina ho jaunga..

अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा
--------------------------------------------------
Apne har har lafz ka khud aaina ho jaunga
Usko chhota keh ke main kaise bada ho jaunga

Tum giraane mein lage the tumne socha hi nahi
Main gira toh masla ban kar khada ho jaunga

Mujhko chalne do akela hai abhi mera safar
Rasta roka gaya toh qafila ho jaunga

Saari duniya ki nazar mein hai mera ahad-e-wafa
Ek tere kehne se kya main bewafa ho jaunga
Read more

Jab se tu ne mujhe deewana bana rakha hai..

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है

उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है

पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है

अब मिरी दीद की दुनिया भी तमाशाई है
तू ने क्या मुझ को मोहब्बत में बना रक्खा है

पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर 'नासिर'
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है
------------------------------------------
Jab se tu ne mujhe deewana bana rakha hai
Sang har shakhs ne haathon mein utha rakha hai

Us ke dil par bhi kadi ishq mein guzri hogi
Naam jis ne bhi mohabbat ka sazaa rakha hai

Pattharo aaj mere sar pe baraste kyun ho
Main ne tum ko bhi kabhi apna Khuda rakha hai

Ab meri deed ki duniya bhi tamashai hai
Tu ne kya mujh ko mohabbat mein bana rakha hai

Pee ja ayyaam ki talkhi ko bhi hans kar 'Nasir'
Gham ko sehne mein bhi qudrat ne mazaa rakha hai
Read more

Kabhi khud pe kabhi haalaat pe rona aaya..

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
----------------------------------
Kabhi khud pe kabhi haalaat pe rona aaya
Baat nikli toh har ik baat pe rona aaya

Hum toh samjhe the ke hum bhool gaye hain unko
Kya hua aaj ye kis baat pe rona aaya

Kis liye jeete hain hum kis ke liye jeete hain
Baaraaha aise sawaalaat pe rona aaya

Kaun rota hai kisi aur ki khaatir ai dost
Sab ko apni hi kisi baat pe rona aaya
Read more

Wahi phir mujhe yaad aane lage hain..

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

वो हैं पास और याद आने लगे हैं
मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं

हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं

ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं

हवाएँ चलीं और न मौजें ही उट्ठीं
अब ऐसे भी तूफ़ान आने लगे हैं

क़यामत यक़ीनन क़रीब आ गई है
'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे हैं
---------------------------------------------
Wahi phir mujhe yaad aane lage hain
Jinhe bhoolne mein zamaane lage hain

Woh hain paas aur yaad aane lage hain
Mohabbat ke hosh ab thikane lage hain

Suna hai humein woh bhulaane lage hain
Toh kya hum unhe yaad aane lage hain

Hataaye the jo raah se doston ki
Woh patthar mere ghar mein aane lage hain

Yeh kehna tha unse mohabbat hai mujhko
Yeh kehne mein mujhko zamaane lage hain

Hawaayein chali aur na maujein hi uthin
Ab aise bhi toofaan aane lage hain

Qayamat yaqeenan qareeb aa gayi hai
'Khumar' ab toh masjid mein jaane lage hain
Read more

Kuchh ishq tha kuchh majboori thi so main ne jeevan waar diya..

कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया
मैं कैसा ज़िंदा आदमी था इक शख़्स ने मुझ को मार दिया

इक सब्ज़ शाख़ गुलाब की था इक दुनिया अपने ख़्वाब की था
वो एक बहार जो आई नहीं उस के लिए सब कुछ हार दिया

ये सजा-सजाया घर साथी मिरी ज़ात नहीं मिरा हाल नहीं
ऐ काश कभी तुम जान सको जो इस सुख ने आज़ार दिया

मैं खुली हुई इक सच्चाई मुझे जानने वाले जानते हैं
मैं ने किन लोगों से नफ़रत की और किन लोगों को प्यार दिया

वो इश्क़ बहुत मुश्किल था मगर आसान न था यूँ जीना भी
उस इश्क़ ने ज़िंदा रहने का मुझे ज़र्फ़ दिया पिंदार दिया

मैं रोता हूँ और आसमान से तारे टूटते देखता हूँ
उन लोगों पर जिन लोगों ने मिरे लोगों को आज़ार दिया

वो यार हों या महबूब मिरे या कभी कभी मिलने वाले
इक लज़्ज़त सब के मिलने में वो ज़ख़्म दिया या प्यार दिया

मिरे बच्चों को अल्लाह रखे इन ताज़ा हवा के झोंकों ने
मैं ख़ुश्क पेड़ ख़िज़ाँ का था मुझे कैसा बर्ग-ओ-बार दिया

-------------------------------------------------------------------

Kuchh ishq tha kuchh majboori thi so main ne jeevan waar diya
Main kaisa zinda aadmi tha, ek shakhs ne mujh ko maar diya

Ek sabz shaakh gulaab ki tha, ek duniya apne khwaab ki thi
Woh ek bahaar jo aayi nahin us ke liye sab kuch haar diya

Yeh saja-sajaya ghar saathi, meri zaat nahin mera haal nahin
Aye kaash kabhi tum jaan sako jo is sukh ne aazaar diya

Main khuli hui ek sachchai, mujhe jaanne wale jaante hain
Maine kin logon se nafrat ki aur kin logon ko pyaar diya

Woh ishq bahut mushkil tha magar aasaan na tha yun jeena bhi
Us ishq ne zinda rehne ka mujhe zarf diya, pindaar diya

Main rota hoon aur aasman se taare toot-te dekh-ta hoon
Un logon par jin logon ne mere logon ko aazaar diya

Woh yaar hon ya mehboob mere ya kabhi kabhi milne waale
Ek lazzat sab ke milne mein woh zakhm diya ya pyaar diya

Mere bachhon ko Allah rakhe, in taaza hawa ke jhonkon ne
Main khushk pedh khizaan ka tha, mujhe kaisa barg-o-baar diya

Read more

Yoonhi be-sabab na phira karo, koi shaam ghar mein raha karo..

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो

कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ मिरे साथ तुम भी चला करो

नहीं बे-हिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो

ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो

---------------------------------------------------------------------

Yoonhi be-sabab na phira karo, koi shaam ghar mein raha karo
Woh ghazal ki sacchi kitaab hai, use chupke chupke padhā karo

Koi haath bhi na milāega, jo gale miloge tapak se
Yeh naye mizaj ka shahar hai, zara faasle se mila karo

Abhi raah mein kai mod hain, koi aayega, koi jaayega
Tumhein jisne dil se bhula diya, use bhoolne ki dua karo

Mujhe ishtihaar si lagti hain yeh mohabbaton ki kahaniyaan
Jo kaha nahi, woh suna karo, jo suna nahi, woh kaha karo

Kabhi husn-e-parda-nasheen bhi ho, zara aashiqana libas mein
Jo main ban sanwar ke kahin chaloon, mere saath tum bhi chala karo

Nahin be-hijaab woh chaand sa ki nazar ka koi asar na ho
Use itni garmi-e-shauq se badi der tak na takaa karo

Yeh khizaan ki zard si shaawl mein jo udaas ped ke paas hai
Yeh tumhare ghar ki bahaar hai, use aansuon se hara karo
    

Read more

Agar talaash karun koi mil hi jaayega..

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा

न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा

--------------------------------------------------------

Agar talaash karun koi mil hi jaayega
Magar tumhari tarah kaun mujh ko chahega

Tumhe zaroor koi chahaton se dekhega
Magar wo aankhein hamari kahaan se laayega

Na jaane kab tere dil par nayi si dastak ho
Makaan khaali hua hai to koi aayega

Main apni raah mein deewaar ban ke baitha hoon
Agar wo aaya to kis raaste se aayega

Tumhare saath ye mausam farishton jaisa hai
Tumhare baad ye mausam bohot sataayega

Read more

Aankhon mein raha dil mein utar kar nahi dekha, ..

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा

बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा

यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैं ने
फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं
वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

--------------------------------

Aankhon mein raha dil mein utar kar nahi dekha,
Kashti ke musafir ne samundar nahi dekha.

Be-waqt agar jaoonga sab chonk padenge,
Ik umra hui din mein kabhi ghar nahi dekha.

Jis din se chala hoon meri manzil pe nazar hai,
Aankhon ne kabhi meel ka patthar nahi dekha.

Yeh phool mujhe koi virasat mein mile hain,
Tum ne mera kaanton bhara bistar nahi dekha.

Yaaron ki mohabbat ka yaqeen kar liya maine,
Phoolon mein chhupaya hua khanjar nahi dekha.

Mahboob ka ghar ho ya buzurgon ki zameenein,
Jo chhod diya phir usse mudh kar nahi dekha.

Khat aisa likha hai ke nageene se jude hain,
Woh haath, jis ne koi zevar nahi dekha.

Patthar mujhe kehta hai mera chaahne wala,
Main mom hoon, usne mujhe chhoo kar nahi dekha.

Read more

Aziz itna hi rakho ke ji sambhal jaye..

Aziz itna hi rakho ke ji sambhal jaye
Ab is qadar bhi na chaho ke dam nikal jaye

Mile hain yun to bahut, aao ab milen yun bhi
Ke rooh garmi-e-anfaas se pighal jaye

Mohabbatoin mein ajab hai dilon ko dhadka sa
Ke jaane kaun kahan rasta badal jaye

Zahe wo dil jo tamanna-e-taaza-tar mein rahe
Khushha wo umr jo khwabon hi mein bahl jaye

Main wo charaag sar-e-rahguzar-e-duniya hoon
Jo apni zaat ki tanhaiyon mein jal jaye

Har ek lahza yehi arzu yehi hasrat
Jo aag dil mein hai wo sher mein bhi dhal jaye

------------------------------------------

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए

मिले हैं यूँ तो बहुत आओ अब मिलें यूँ भी
कि रूह गर्मी-ए-अनफ़ास से पिघल जाए

मोहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाए

ज़हे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
ख़ोशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए

मैं वो चराग़ सर-ए-रहगुज़ार-ए-दुनिया हूँ
जो अपनी ज़ात की तन्हाइयों में जल जाए

हर एक लहज़ा यही आरज़ू यही हसरत
जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए
Read more

कोई हालत नहीं ये हालत है..

Koi haalat nahi ye haalat hai
Ye to aashob-naak soorat hai

Anjuman mein ye meri khaamoshi
Burdabari nahi hai, wahshat hai

Tujh se ye gaah-gaah ka shikwa
Jab tak hai basa, ghanimat hai

Khwahishen dil ka saath chhod gayi
Ye aziyat badi aziyat hai

Log masroof jaante hain mujhe
Yahan mera gham hi meri fursat hai

Tanz pehriya-e-tabasum mein
Is takalluf ki kya zarurat hai

Hum ne dekha to hum ne ye dekha
Jo nahi hai, wo khoobsurat hai

Waar karne ko jaan-nisar aayein
Ye to isaar hai 'inayat hai'

Garm-josh aur is qadar kya baat
Kya tumhein mujh se kuch shikayat hai?

Ab nikal aao apne andar se
Ghar mein samaan ki zarurat hai

Aaj ka din bhi 'aish se guzra

Sar se paa tak badan salaamat hai

----------------------------------------------

कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोब-नाक सूरत है

अंजुमन में ये मेरी ख़ामोशी
बुर्दबारी नहीं है वहशत है

तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा
जब तलक है बसा ग़नीमत है

ख़्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं
ये अज़िय्यत बड़ी अज़िय्यत है

लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
याँ मिरा ग़म ही मेरी फ़ुर्सत है

तंज़ पैराया-ए-तबस्सुम में
इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है

हम ने देखा तो हम ने ये देखा
जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है

वार करने को जाँ-निसार आएँ
ये तो ईसार है 'इनायत है

गर्म-जोशी और इस क़दर क्या बात
क्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत है

अब निकल आओ अपने अंदर से
घर में सामान की ज़रूरत है

आज का दिन भी 'ऐश से गुज़रा
सर से पा तक बदन सलामत है
Read more

maine ye kab kaha ki wo mujhe kabhi akela nahi chhodta..

मैंने ये कब कहा की वो मुझे अकेला नही छोड़ता
छोड़ता है मगर एक दिन से ज्यादा नहीं छोड़ता

कौन शहराओ की प्यास है इन मकानो की बुनियाद मे
बारिश से बच भी जाये तो दरिया नहीं छोड़ता

मैं जिस से छुप कर तुमसे मिला हूँ अगर आज वो
देख लेता तो शायद वो दोनों को ज़िंदा नहीं छोड़ता

तय-शुदा वक़्त पर पहुँच जाता है वो प्यार करने वसूल
जिस तरह अपना कर्जा कोई बनिया नहीं छोडता

आज पहली दफा उसे मिलना है और एक खदशा भी है
वो जिसे छोड़ देता है उसे कही का नहीं छोड़ता


----------------------------------------------------

maine ye kab kaha ki wo mujhe kabhi akela nahi chhodta
chhodta hai magar ek din se jyada nahi chhodta

kaun shehrao ki pyaas hai in makano ki buniyad me
barish se bach bhi jaye to dariya nahi chhodta

mai jis se chhup kar tumse mila hoo agar aaj wo
dekh leta to shayad wo dono ko jinda nahi chhodta

tay-shuda wqt pr pahunch jata hai wo pyaar krne wasool
jis tar aona karza koi baniya nahi chhodta

aaj pehli dafa use milna haui aur ek khadsa bhi hai
wo jise chhod deta hai use kahi ka nhi chhodta.
Read more

Khaak hi khaak thi aur khaak bhi kya kuch nahin tha..

ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।

क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।

ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था।

अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था।

--------------------------------------

Khaak hi khaak thi aur khaak bhi kya kuch nahin tha
Mai jab aaya to mere ghar ki jagah kuch nahin tha

Kya karoon tujhse khayanat nahin kar sakta main
Warna us aankh mein mere liye kya kuch nahin tha

Ye bhi sach hai mujhe kabhi usne kuch na kaha
Ye bhi sach hai ki us aurat se chhupa kuch nahin tha

Ab wo mere hi kisi dost ki mankooha hai
Main palat jaata magar peechhe bacha kuch nahin tha.
Read more

Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge..

कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे 

शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे 

वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे 

उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे 

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे 

मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे 

------------------------------------

Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge
Jane kaise log wo honge jo us ko bhaate honge

Us ki yaad ki baad-e-saba mein aur to kya hota hoga
Yoon hi mere baal hain bikhre aur bikhar jaate honge

Wo jo na aane wala hai na us se humko matlab tha
Aane walon se kya matlab aate hain aate honge

Yaaron kuchh to haal sunao us ki qayamat baahon ka
Wo jo simat-te honge un mein wo to mar jate honge

Band rahe jin ka darwaaza aise gharon ki mat poochho
Deeware gir jaati hongi aangan reh jaate honge

Meri saans ukhadte hi sab bain karenge ro’enge
Yaani mere baad bhi yaani saans liye jaate honge
Read more

ye jo nang the ye jo nam the mujhe kha gae..

ये जो नंग थे ये जो नाम थे मुझे खा गए
ये ख़याल-ए-पुख़्ता जो ख़ाम थे मुझे खा गए

कभी अपनी आँख से ज़िंदगी पे नज़र न की
वही ज़ाविए कि जो आम थे मुझे खा गए

मैं अमीक़ था कि पला हुआ था सुकूत में
ये जो लोग महव-ए-कलाम थे मुझे खा गए

वो जो मुझ में एक इकाई थी वो न जुड़ सकी
यही रेज़ा रेज़ा जो काम थे मुझे खा गए

ये अयाँ जो आब-ए-हयात है इसे क्या करूँ
कि निहाँ जो ज़हर के जाम थे मुझे खा गए

वो नगीं जो ख़ातिम-ए-ज़िंदगी से फिसल गया
तो वही जो मेरे ग़ुलाम थे मुझे खा गए

मैं वो शो'ला था जिसे दाम से तो ज़रर न था
प जो वसवसे तह-ए-दाम थे मुझे खा गए

----------------------------------------

ye jo nang the ye jo nam the mujhe kha gae
ye KHayal-e-puKHta jo KHam the mujhe kha gae

kabhi apni aankh se zindagi pe nazar na ki
wahi zawiye ki jo aam the mujhe kha gae

main amiq tha ki pala hua tha sukut mein
ye jo log mahw-e-kalam the mujhe kha gae

wo jo mujh mein ek ikai thi wo na juD saki
yahi reza reza jo kaam the mujhe kha gae

ye ayan jo aab-e-hayat hai ise kya karun
ki nihan jo zahr ke jam the mujhe kha gae

wo nagin jo KHatim-e-zindagi se phisal gaya
to wahi jo mere ghulam the mujhe kha gae

main wo shoala tha jise dam se to zarar na tha
pa jo waswase tah-e-dam the mujhe kha gae

jo khuli khuli thin adawaten mujhe ras thin
ye jo zahr-e-KHanda-salam the mujhe kha gae
Read more

ik pal men ik sadi ka maza ham se puchhiye..

इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए

हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए

------------------------------------

ik pal men ik sadi ka maza ham se puchhiye
do din ki zindagi ka maza ham se puchhiye

bhule hain rafta rafta unhen muddaton men ham
qiston men khud-kushi ka maza ham se puchhiye

aghaz-e-ashiqi ka maza aap janiye
anjam-e-ashiqi ka maza ham se puchhiye

jalte diyon men jalte gharon jaisi zau kahan
sarkar raushni ka maza ham se puchhiye

vo jaan hi gae ki hamen un se pyaar hai
ankhon ki mukhbiri ka maza ham se puchhiye

hansne ka shauq ham ko bhi tha aap ki tarah
hansiye magar hansi ka maza ham se puchhiye

ham tauba kar ke mar gae be-maut ai ‘khumar’
tauhin-e-mai-kashi ka maza ham se puchhiye
Read more

Tumhe Jab Kabhi Mile Fursaten Mere Dil Say Boojh Utar Do..

तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो

मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो

किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो

---------------------------------------

Tumhe Jab Kabhi Mile Fursaten, Mere Dil Say Boojh Utar Do
Main Bhut Dino Say Udaas Ho, Mujhe Koi Shaam Udhaar Do

Mujhe Apne Roop Ki Dhoop Do, Ke Chamak Sake Mere Khal-O-Khad
Mujhe Apne Rang Mein Rang Do, Mere Sare Zang Utar Do

Kesi Aur Ko Mere Haal Say Na Garz Hai Koi Na Wasta
Mian Bikhar Gya Ho Sameet Loo, Main Bigar Gya Ho Sanwar Do

Meri Wehshaton Ne Barha Dia Hai Judaiyo Ke Aazab Ne
Mere Dil Pa Hath Rakho Zara, Meri Dharkano Ko Qarar Do

Tumhe Subha Kesi Lagi?,Mere Khawahisho Ke Diyaar Ki
Jo Bhali Lagi Tw Yahi Raho, Esy Chahato Say Nikhaar Do

Wahan Ghar Mein Kon Hai Muntazir K Ho Fikar Deer Saweer Ki
Bari Mukhtasir Si Yeh Raat Hai, Esi Chandni Mein Guzaar Do

Koi Baat Karni Hai Chand Say Kesi Shaksaar Ki Uoot Mein
Muje Rasten Yehi Kahin Kesi Kunj-E-Gul Mein Utar Do
Read more

faraz tujh ko na aayeen mohabbatein karni..

ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी
'फ़राज़' तुझ को न आईं मोहब्बतें करनी 

ये क़ुर्ब क्या है कि तू सामने है और हमें
शुमार अभी से जुदाई की साअ'तें करनी 

कोई ख़ुदा हो कि पत्थर जिसे भी हम चाहें
तमाम उम्र उसी की इबादतें करनी 

सब अपने अपने क़रीने से मुंतज़िर उस के
किसी को शुक्र किसी को शिकायतें करनी 

हम अपने दिल से ही मजबूर और लोगों को
ज़रा सी बात पे बरपा क़यामतें करनी 

मिलें जब उन से तो मुबहम सी गुफ़्तुगू करना
फिर अपने आप से सौ सौ वज़ाहतें करनी 

ये लोग कैसे मगर दुश्मनी निबाहते हैं
हमें तो रास न आईं मोहब्बतें करनी 

कभी 'फ़राज़' नए मौसमों में रो देना
कभी तलाश पुरानी रिफाक़तें करनी

---------------------------------

Yeh kya ke sab se bayaan dil kii haalatein karni
'faraz' tujh ko na aayeen mohabbatein karni

yeh qurb kya hai ke tu saamne hai aur hamein
shumaar abhi se Khudaai ke sa'atein karni

koi khuda ho ke patthar jise bhi ham
chaahein tamaam umr usi kii ibaadatein karni

sab apne apne qareene se muntazir us ke
kisi ko shukr kisi ko shikaayatein karni

ham apne dil se hi majboor aur logon ko
zaraa si baat pe barpaa qayaamatein karni

milen jab un se to mubham si guftagoo karna
phir apne aap se sau sau dafaa hmaqtein karni

yeh log kaise magar dushmani nibaahte hain
hamein to raas na aayen mohabbatein karni

kabhi "faraz" naye mausamon mein ro dena
kabhi talaash puraani rafaaqatein karni
Read more

khamosh rah kar pukarti hai..

ख़मोश रह कर पुकारती है
वो आँख कितनी शरारती है 

है चाँदनी सा मिज़ाज उस का
समुंदरों को उभारती है 

मैं बादलों में घिरा जज़ीरा
वो मुझ में सावन गुज़ारती है 

कि जैसे मैं उस को चाहता हूँ
कुछ ऐसे ख़ुद को सँवारती है 

ख़फ़ा हो मुझ से तो अपने अंदर
वो बारिशों को उतारती है

----------------------------

khamosh rah kar pukarti hai
vo aankh kitni shararti hai 

hai chandni sa mizaj us ka
samundaron ko ubharti hai 

main badalon men ghira jazira
vo mujh men savan guzarti hai 

ki jaise main us ko chahta huun
kuchh aise khud ko sanvarti hai 

khafa ho mujh se to apne andar
vo barishon ko utarti hai
Read more

tujh ko kitnon ka lahu chahiye ai arz-e-watan..

तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
कितनी आहों से कलेजा तिरा ठंडा होगा
कितने आँसू तिरे सहराओं को गुलज़ार करें

तेरे ऐवानों में पुर्ज़े हुए पैमाँ कितने
कितने वादे जो न आसूदा-ए-इक़रार हुए
कितनी आँखों को नज़र खा गई बद-ख़्वाहों की
ख़्वाब कितने तिरी शह-राहों में संगसार हुए

बला-कशान-ए-मोहब्बत पे जो हुआ सो हुआ 
जो मुझ पे गुज़री मत उस से कहो, हुआ सो हुआ 
मबादा हो कोई ज़ालिम तिरा गरेबाँ-गीर 
लहू के दाग़ तू दामन से धो, हुआ सो हुआ

हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं मगर ऐ जान-ए-जहाँ 
अपने उश्शाक़ से ऐसे भी कोई करता है 
तेरी महफ़िल को ख़ुदा रक्खे अबद तक क़ाएम 
हम तो मेहमाँ हैं घड़ी भर के हमारा क्या है 

--------------------------------------------

tujh ko kitnon ka lahu chahiye ai arz-e-vatan
jo tire ariz-e-be-rang ko gulnar karen 
kitni aahon se kaleja tira ThanDa hoga 
kitne aansu tire sahraon ko gulzar karen 

tere aivanon men purze hue paiman kitne 
kitne va.ade jo na asuda-e-iqrar hue 
kitni ankhon ko nazar kha ga.i bad-khvahon ki 
khvab kitne tiri shah-rahon men sangsar hue 

bala-kashan-e-mohabbat pe jo hua so hua 
jo mujh pe guzri mat us se kaho, hua so hua 
mabada ho koi zalim tira gareban-gir 
lahu ke daagh tu daman se dho, hua so hua

ham to majbur-e-vafa hain magar ai jan-e-jahan 
apne ushshaq se aise bhi koi karta hai 
teri mahfil ko khuda rakkhe abad tak qaa.em 
ham to mehman hain ghaDi bhar ke hamara kya hai
Read more

jab tera hukm mila tark mohabbat kar di..

जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
दिल मगर इस पे वो धड़का कि क़यामत कर दी

तुझ से किस तरह मैं इज़्हार-ए-तमन्ना करता 
लफ़्ज़ सूझा तो मुआ'नी ने बग़ावत कर दी 

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले 
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी 

तुझ को पूजा है कि असनाम-परस्ती की है 
मैं ने वहदत के मफ़ाहीम की कसरत कर दी 

मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है 
तिरी उल्फ़त ने मोहब्बत मिरी आदत कर दी 

पूछ बैठा हूँ मैं तुझ से तिरे कूचे का पता 
तेरे हालात ने कैसी तिरी सूरत कर दी 

क्या तिरा जिस्म तिरे हुस्न की हिद्दत में जला 
राख किस ने तिरी सोने की सी रंगत कर दी

----------------------------------------

jab tira hukm mila tark mohabbat kar di
dil magar is pe vo dhaDka ki qayamat kar di 

tujh se kis tarah main iz.har-e-tamanna karta
lafz sujha to muani ne baghavat kar di 

main to samjha tha ki lauT aate hain jaane vaale
tu ne ja kar to juda.i miri qismat kar di 

tujh ko puuja hai ki asnam-parasti ki hai
main ne vahdat ke mafahim ki kasrat kar di 

mujh ko dushman ke iradon pe bhi pyaar aata hai
tiri ulfat ne mohabbat miri aadat kar di 

puchh baiTha huun main tujh se tire kuche ka pata
tere halat ne kaisi tiri surat kar di 

kya tira jism tire husn ki hiddat men jala
raakh kis ne tiri sone ki si rangat kar di
Read more

chalo bad-e-bahari ja rahi hai..

चलो बाद-ए-बहारी जा रही है
पिया-जी की सवारी जा रही है

शुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ से 
तमन्ना की अमारी जा रही है 

फ़ुग़ाँ ऐ दुश्मन-ए-दार-ए-दिल-ओ-जाँ 
मिरी हालत सुधारी जा रही है 

है पहलू में टके की इक हसीना 
तिरी फ़ुर्क़त गुज़ारी जा रही है 

जो इन रोज़ों मिरा ग़म है वो ये है 
कि ग़म से बुर्दबारी जा रही है 

है सीने में अजब इक हश्र बरपा 
कि दिल से बे-क़रारी जा रही है 

मैं पैहम हार कर ये सोचता हूँ 
वो क्या शय है जो हारी जा रही है 

दिल उस के रू-ब-रू है और गुम-सुम 
कोई अर्ज़ी गुज़ारी जा रही है 

वो सय्यद बच्चा हो और शैख़ के साथ 
मियाँ इज़्ज़त हमारी जा रही है 

है बरपा हर गली में शोर-ए-नग़्मा 
मिरी फ़रियाद मारी जा रही है 

वो याद अब हो रही है दिल से रुख़्सत 
मियाँ प्यारों की प्यारी जा रही है 

दरेग़ा तेरी नज़दीकी मियाँ-जान 
तिरी दूरी पे वारी जा रही है 

बहुत बद-हाल हैं बस्ती तिरे लोग 
तो फिर तू क्यूँ सँवारी जा रही है 

तिरी मरहम-निगाही ऐ मसीहा 
ख़राश-ए-दिल पे वारी जा रही है 

ख़राबे में अजब था शोर बरपा 
दिलों से इंतिज़ारी जा रही है 

---------------------------------------

chalo bad-e-bahari ja rahi hai
piya-ji ki savari ja rahi hai 

shumal-e-javedan-e-sabz-e-jan se 
tamanna ki amari ja rahi hai 

fughan ai dushman-e-dar-e-dil-o-jan 
miri halat sudhari ja rahi hai 

hai pahlu men Take ki ik hasina 
tiri furqat guzari ja rahi hai 

jo in rozon mira gham hai vo ye hai 
ki gham se burdbari ja rahi hai 

hai siine men ajab ik hashr barpa 
ki dil se be-qarari ja rahi hai 

main paiham haar kar ye sochta huun 
vo kya shai hai jo haari ja rahi hai 

dil us ke ru-ba-ru hai aur gum-sum 
koi arzi guzari ja rahi hai 

vo sayyad bachcha ho aur shaikh ke saath 
miyan izzat hamari ja rahi hai 

hai barpa har gali men shor-e-naghma 
miri fariyad maari ja rahi hai 

vo yaad ab ho rahi hai dil se rukhsat 
miyan pyaron ki pyari ja rahi hai 

daregha teri nazdiki miyan-jan
tiri duuri pe vaari ja rahi hai 

bahut bad-hal hain basti tire log
to phir tu kyuun sanvari ja rahi hai 

tiri marham-nigahi ai masiha
kharash-e-dil pe vaari ja rahi hai 

kharabe men ajab tha shor barpa
dilon se intizari ja rahi hai
Read more

ye haadsaa to kisi din gujarne wala hi tha..

ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था

तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़
मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख़्म भरने वाला था

बुलंदियों का नशा टूट कर बिखरने लगा
मेरा जहाज़ ज़मीन पर उतरने वाला था

मेरा नसीब मेरे हाथ काट गए वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था

मेरे चिराग मेरी शब मेरी मुंडेरें हैं
मैं कब शरीर हवाओं से डरने वाला था
Read more

shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho..

शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम हो
दिल-दश्त में इक प्यास तमाशा है कि तुम हो

इक लफ़्ज़ में भटका हुआ शाइ'र है कि मैं हूँ
इक ग़ैब से आया हुआ मिस्रा है कि तुम हो 

दरवाज़ा भी जैसे मिरी धड़कन से जुड़ा है 
दस्तक ही बताती है पराया है कि तुम हो 

इक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ 
इक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो 

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ 
तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो 

---------------------------------------

shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho
dil-dasht men ik pyaas tamasha hai ki tum ho 

ik lafz men bhaTka hua sha.ir hai ki main huun
ik ghaib se aaya hua misra.a hai ki tum ho 

darvaza bhi jaise miri dhaDkan se juDa hai 
dastak hi batati hai paraya hai ki tum ho 

ik dhuup se uljha hua saaya hai ki main huun 
ik shaam ke hone ka bharosa hai ki tum ho 

main huun bhi to lagta hai ki jaise main nahin huun 
tum ho bhi nahin aur ye lagta hai ki tum ho

Read more

jis samt bhi dekhun nazar aataa hai ki tum ho..

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो

ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है 
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो 

इस दीद की साअत में कई रंग हैं लर्ज़ां 
मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो 

देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी 
देखूँ ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो 

ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ 
हर साँस में मुझ को यही लगता है कि तुम हो 

हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का 
अब कौन है शीरीं है कि लैला है कि तुम हो 

इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ 
इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो 

वो वक़्त न आए कि दिल-ए-ज़ार भी सोचे 
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो

आबाद हम आशुफ़्ता-सरों से नहीं मक़्तल 
ये रस्म अभी शहर में ज़िंदा है कि तुम हो 

ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी 
हम को ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो 

---------------------------------------------

jis samt bhi dekhun nazar aataa hai ki tum ho
ai jaan e jahaan ye koi tum saa hai ki tum ho

ye Khvaab hai Khushbu hai ki jhonkaa hai ki pul hai
ye dhund hai baadal hai ki saayaa hai ki tum ho

is did ki saa.at men kai rang hain larzaan
main hun ki koi aur hai duniyaa hai ki tum ho

dekho ye kisi aur ki aankhen hain ki meri
dekhun ye kisi aur kaa chehra hai ki tum ho

ye umr e gurezaan kahin thahre to ye jaanun
har saans men mujh ko yahi lagtaa hai ki tum ho

har bazm men mauzu e suKhan dil zadgaan kaa
ab kaun hai shirin hai ki lailaa hai ki tum ho

ik dard kaa phailaa huaa sahraa hai ki main hun
ik mauj men aayaa huaa dariyaa hai ki tum ho

vo vaqt na aa.e ki dil e zaar bhi soche
is shahr men tanhaa koi ham saa hai ki tum ho

aabaad ham aashufta-saron se nahin maqtal
ye rasm abhi shahr men zinda hai ki tum ho

ai jaan e faraaz itni bhi taufiq kise thi
ham ko gham e hasti bhi gavaara hai ki tum ho
Read more

Anokhi Waza Hai Sare Zamane Se Nirale Hain..

अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं

इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं

फला-फूला रहे या-रब चमन मेरी उमीदों का
जिगर का ख़ून दे दे कर ये बूटे मैं ने पाले हैं

रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं

न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं

नहीं बेगानगी अच्छी रफ़ीक़-ए-राह-ए-मंज़िल से
ठहर जा ऐ शरर हम भी तो आख़िर मिटने वाले हैं

उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइ'ज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-साधे भोले भाले हैं

मिरे अशआ'र ऐ 'इक़बाल' क्यूँ प्यारे न हों मुझ को
मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं 


-----------------------------------------------

Anokhi Waza Hai Sare Zamane Se Nirale Hain,
Ye Aashiq Kon Si Basti K Ya Rab Rehne Wale Hain,

Ilaj-E-Dard Mein Bhi Dard Ki Lazat Pe Marta Hon,
Jo Thay Chhaalon Mein Kante Nok-E-Sozan Se Nikale Hain,

Phalaa Phoola Rahe Ya Rab Chaman Meri Umeedon Ka,
Jigar Ka Khoon De De Kar Ye Boote Hum Ne Paale Hain,

Rulati Hai Mujhe Raton Ko Khamoshi Sataron Ki,
Niraala Ishq Hai Mera Niraale Mere Naale Hain,,

Na Poocho Mujh Se Lazzat Khaanamaan Barbad Rehne Ki,
Nasheman Sainkaron Main Ne Bana Kar Phonk Daale Hain,,

Nahin Begaangi Achchi Rafiq-e-raah-e-manzil Se
Thahar Ja Aye Sharar Ham Bhi To Akhir Mitne Waale Hain

Umeed-E-Hoor Ne Sab Kuch Seekha Rakha Hai Waaiz Ko,
Ye Hazrat Dekhne Mein Seedhe Saadhe, Bhole Bhaale Hain,

Mere Ashaar Aye Iqbal Kion Pyare Na Hon Mujh Ko,
Mere Toote Howe DiL K Dard Angaiz Naale Hain.!
Read more

Ab kis se kahen aur kon sune jo haal tumhare baad hua..

अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ
इस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ

ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की
वो नाम जो मेरे होंटों पर ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ

उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए
इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ

वो अपने गाँव की गलियाँ थीं दिल जिन में नाचता गाता था
अब इस से फ़र्क़ नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ

बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में
ऐसा तो कभी सोचा भी न था दिल अब जितना बेदाद हुआ

---------------------------------------------------------------

Ab kis se kahen aur kon sune jo haal tumhare baad hua,
Is dil ki jheel si ankhon main ik khawb bohat barbaad hua,

Yeh hijr-hava bhi dushman hai is naam ke saare rangon ki,
Woh naam jo mere honton pr khushbuu ki tarah abaad raha,

Us sheher me kitne chehre they kuch yaad nahi sab bhool gaye,
Ik shakss kitabon jesa tha woh shakss zubaani yaad hua,

Woh apne gaaon ki galiyan thi dil jin main nachta gaata tha,
Ab iss se fark nahi parta nashaad hua ya shaad hua,

Benaam satayesh rehti thi in gehri saanvli aankhon main,
Aissa to kabhi socha bhi na tha dil ab jitna bedaad hua..
Read more

baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin..

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं

तुम भी हो बीते वक़्त के मानिंद हू-ब-हू
तुम ने भी याद आना है आना तो है नहीं

अहद-ए-वफ़ा से किस लिए ख़ाइफ़ हो मेरी जान
कर लो कि तुम ने अहद निभाना तो है नहीं

वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं

दुनिया हम अहल-ए-इश्क़ पे क्यूँ फेंकती है जाल
हम ने तिरे फ़रेब में आना तो है नहीं

वो इश्क़ तो करेगा मगर देख भाल के
'फ़ारिस' वो तेरे जैसा दिवाना तो है नहीं


---------------------------------------------------

baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin
ham be-gharon ka koi Thikana to hai nahin 

tum bhi ho biite vaqt ke manind hū-ba-hū 
tum ne bhi yaad aana hai aana to hai nahin 

ahd-e-vafa se kis liye ḳha.if ho meri jaan 
kar lo ki tum ne ahd nibhana to hai nahin 

vo jo hamen aziiz hai kaisa hai kaun hai 
kyuun pūchhte ho ham ne batana to hai nahin 

duniya ham ahl-e-ishq pe kyuun phenkti hai jaal 
ham ne tire fareb men aana to hai nahin 

vo ishq to karega magar dekh bhaal ke 
'faris' vo tere jaisa divana to hai nahin 
Read more

Thoda likha aur jyada chhod diya..

थोड़ा लिक्खा और ज़ियादा छोड़ दिया
आने वालों के लिए रस्ता छोड़ दिया

तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया

लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं
फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया

रोज़ इक पत्ता मुझ में आ गिरता है
जब से मैंने जंगल जाना छोड़ दिया

बस कानों पर हाथ रखे थे थोड़ी देर
और फिर उस आवाज़ ने पीछा छोड़ दिए
Read more

Tera chup rehna mere zehan me kya baith gaya..

तेरा चुप रहना मेरे ज़हन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस को भी जाने का कहा, बैठ गया

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया

बात दरियाओं की, सूरज की, न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
Read more

Tarikhio ko aag Lage aur diya jale..

तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले

उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब
वो रौशनी की बात करे और दिया जले

तुम चाहते हो तुम से बिछड़ के भी ख़ुश रहूँ
या’नी हवा भी चलती रहे और दिया जले

क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले

सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मैं चाहता हूँ शाम ढले और दिया जले

तुम लौटने में देर न करना कि ये न हो
दिल तीरगी में घेर चुके और दिया जले
Read more

Parai aag par roti nhi banaunga..

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा

अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया
अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा

फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा

गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ
नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा

मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ
तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा

तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुख
मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा

मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने ‘सरवत’ पर
और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा
Read more

Kya khabar us raushani me aur kya raushan hua..

क्या खबर उस रौशनी में और क्या क्या रोशन हुआ
जब वो इन हाथों से पहली बार रोशन रोशन हुआ

वो मेरे सीने से लग कर जिसको रोइ वो कौन था
किसके बुझने पर आज मै उसकी जगह रोशन हुआ

तेरे अपने तेरी किरणो को तरसते हैं यहाँ
तू ये किन गलियों में किन लोगो में जा रोशन हुआ

अब उस ज़ालिम से इस कसरत से तौफे आ रहे हैं
की हम घर में नई अलमारियां बनवा रहे हैं

हमे मिलना तो इन आवादियों से दूर मिलना
उसे कहना गए वक्तों में हम दरिया रहे हैं

बिछड़ जाने का सोचा तो नहीं था हमने लेकिन
तुझे खुश रखने की कोसिस में दुःख पंहुचा रहे हैं

Read more

Kise Khabar hai Umar bas ispe gaur karne me Katt rhi hai ..

किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है
कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है

अजीब दुख है हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैं
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है

मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है

मुझ ऐसे पेड़ों के सूखने और सब्ज़ होने से क्या किसी को
ये बेल शायद किसी मुसीबत में है जो मुझ से लिपट रही है

ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है

सो इस तअ'ल्लुक़ में जो ग़लत-फ़हमियाँ थीं अब दूर हो रही हैं
रुकी हुई गाड़ियों के चलने का वक़्त है धुंध छट रही है
Read more

Kadam rakhta hai yaar jab Ahishta Ahishta..

क़दम रखता है जब रस्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छट जाता है सब गर्द-ओ-ग़ुबार आहिस्ता आहिस्ता

भरी आँखों से हो के दिल में जाना सहल थोड़ी है
चढ़े दरियाओं को करते हैं पार आहिस्ता आहिस्ता

नज़र आता है तो यूँ देखता जाता हूँ मैं उस को
कि चल पड़ता है जैसे कारोबार आहिस्ता आहिस्ता

उधर कुछ औरतें दरवाज़ों पर दौड़ी हुई आईं
इधर घोड़ों से उतरे शहसवार आहिस्ता आहिस्ता

किसी दिन कारख़ाना-ए-ग़ज़ल में काम निकलेगा
पलट आएँगे सब बे-रोज़गार आहिस्ता आहिस्ता

तिरा पैकर ख़ुदा ने भी तो फ़ुर्सत में बनाया था
बनाएगा तिरे ज़ेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता

मिरी गोशा-नशीनी एक दिन बाज़ार देखेगी
ज़रूरत कर रही है बे-क़रार आहिस्ता आहिस्ता

वो कहता है हमारे पास आओ पर सलीके से
के जैसे आगे बढ़ती है कतार आहिस्ता आहिस्ता
Read more

Is ek dar se Khwab dekhta nhi mai..

इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं

किसी मुंडेर पर कोई दिया जला
फिर इस के बाद क्या हुआ पता नहीं

अभी से हाथ काँपने लगे मिरे
अभी तो मैं ने वो बदन छुआ नहीं

मैं आ रहा था रास्ते में फुल थे
मैं जा रहा हूँ कोई रोकता नहीं

तिरी तरफ़ चले तो उम्र कट गई
ये और बात रास्ता कटा नहीं

मैं राह से भटक गया तो क्या हुआ
चराग़ मेरे हाथ में तो था नहीं

मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर
मैं बुझ चुका हूँ और मुझे पता नहीं

इस अज़दहे की आँख पूछती रहीं
किसी को ख़ौफ़ आ रहा है या नहीं

ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से
मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं

ख़ुदा करे वो पेड़ ख़ैरियत से हो
कई दिनों से उस का राब्ता नहीं
Read more

Ab us janib se is kasarat se taufe aa rhe hain..

अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे हैं
के घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं।

हमे मिलना तो इन आबादियों से दूर मिलना
उससे कहना गए वक्तू में हम दरिया रहे हैं।

तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें
हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं।

हजारों लोग उसको चाहते होंगे हमें क्या
के हम उस गीत में से अपना हिस्सा गा रहे हैं।

बुरे मौसम की कोई हद नहीं तहजीब हाफी
फिजा आई है और पिंजरों में पर मुरझा रहे हैं।
Read more

Jahan bhar ki tamam aankhein nichod kar jitna nam banega ..

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा

मैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ'राना मुबालग़ा है
मिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगा

हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा

तो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से क़ब्ल
मिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगा

मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसा
शदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा

सुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैं
बना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगा

कि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं
ये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ' रक़्बा हरम बनेगा

मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा

सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
Read more

Wo muh lgata hai jab koi kam hota hai..

वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है
Read more

fasle aise bhi honge ye kabhi socha na tha..

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था

वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर पिछली सी आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था

मैं तिरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा
सारी दुनिया में मगर कोई तिरे जैसा न था

आज मिलने की ख़ुशी में सिर्फ़ मैं जागा नहीं
तेरी आँखों से भी लगता है कि तू सोया न था

ये सभी वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं
आँख धुँदलाई हुई थी शहर धुँदलाया न था

सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब
एक पत्थर था ख़मोशी का कि जो हटता न था

याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था

मस्लहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम'
वर्ना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था

-------------------------------------------

fasle aise bhi honge ye kabhi socha na tha
samne baitha tha mere aur vo mera na tha

vo ki khushbu ki tarah phaila tha mere char-su
main use mahsus kar sakta tha chhu sakta na tha

raat bhar pichhli si aahat kaan men aati rahi
jhank kar dekha gali men koi bhi aaya na tha

main tiri surat liye saare zamane men phira
saari duniya men magar koi tire jaisa na tha

aaj milne ki khushi men sirf main jaaga nahin
teri ankhon se bhi lagta hai ki tu soya na tha

ye sabhi viraniyan us ke juda hone se thiin
aankh dhundlai hui thi shahr dhundlaya na tha

sainkadon tufan lafzon men dabe the zer-e-lab
ek patthar tha khamoshi ka ki jo hatta na tha

yaad kar ke aur bhi taklif hoti thi ‘adim’
bhuul jaane ke siva ab koi bhi chara na tha

maslahat ne ajnabi ham ko banaya tha ‘adim’
varna kab ik dusre ko ham ne pahchana na tha
Read more

Uske pahlu se lag ke chalte hain...

उस के पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

बंद है मय-कदों के दरवाज़े
हम तो बस यूँही चल निकलते हैं

मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं

है उसे दूर का सफ़र दर-पेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं

शाम फ़ुर्क़त की लहलहा उठी
वो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैं

है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

तुम बनो रंग तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं

------------------------------------------

Us Ke Pehloo Se Lag Ke Chalte Hain
Hum Kahin Taalney Se Talte Hain.

Main Usi Tarah To Bahalta Hoon
Aur Sab Jis Tarah Bahalte Hain.

Woh Hai Jaan Ab Har Ek Mehfil Ki
Hum Bhi Ab Ghar Se Kab Nikalte Hain.

Kya Takkaluff Karen Ye Kehne Mein
Jo Bhi Khush Hai Hum Us Se Jalte Hain.

Hai Usey Door Ka Safar Dar-Pesh
Hum Sambhaaley Nahin Sambhalte Hain.

Hai Azaab Faisle Ka Sehraa Bhi
Chal Na Pariye To Paaon Jalte Hain.

Ho Raha Hoon Main Kis Tarah Barbaad
Dekhne Waale Haath Malte Hain.

Tum Bano Rang, Tum Bano Khushboo
Hum To Apne Sukhan Mein Dhalte Hain.
Read more

jab pyar nahin hai to bhula kyun nahin dete..

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूं नहीं देते
ख़त किस लिए रक्खे हैं जला क्यूं नहीं देते

किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूंतो मिटा क्यूं नहीं देते

लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यूं नहीं देते

रह रह के न तड़पाओ ऐ बे-दर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यूं नहीं देते

जब उस की वफ़ाओं पे यक़ीं तुम को नहीं है
'हसरत' को निगाहों से गिरा क्यूं नहीं देते

--------------------------------------

jab pyar nahin hai to bhula kyun nahin dete
KHat kis liye rakkhe hain jala kyun nahin dete

kis waste likkha hai hatheli pe mera nam
main harf-e-ghalat hun to miTa kyun nahin dete

lillah shab-o-roz ki uljhan se nikalo
tum mere nahin ho to bata kyun nahin dete

rah rah ke na taDpao ai be-dard masiha
hathon se mujhe zahr pila kyun nahin dete

jab us ki wafaon pe yaqin tum ko nahin hai
'hasrat' ko nigahon se gira kyun nahin dete

- Hasarat Jaipuri
Read more

Iss Se Pehle K Bewafa Ho Jaye..

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

तू कि यकता था बे-शुमार हुआ
हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ

हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ

हम अगर मंज़िलें न बन पाए
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ

देर से सोच में हैं परवाने
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ

इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ

अब के गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

-----------------------------------

Iss Se Pehle K Bewafa Ho Jaye
Q Na A Dost Hum Juda Ho Jaye

Tu B Heere Se Ban Gaya Patthar
Hum B Kal Jane Kia Se Kia Hojaye

Tu K Yakta Ta Beshumar Hua
Hum B Toote To Jabaja Ho Jaye

Hum B Majburiyo Ka Uzr Kare
Pir Kahe Aur Mubtila Ho Jaye

Hum Agar Manzile Na Ban Paye
Manzilo Takk Ka Rasta Hojaye

Dair Se Soch Mai Hai Parwane
Raak Ho Jaye Ya Hawa Hojaye

Ishq B Khel Hai Naseebo Ka
Khak Hojaye Keemya Hojaye

Ab K Gar Tu Mile To Hum Tujh Se
Aise Lipte Teri Qaba Hojaye

Bandagi Hum Ne Chorh Di Hai 'Faraz'
Kia Kare Log Jab Khuda Hojaye
Read more

Dost ban kar bhi nahi sath nibhane wala..

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

अब उसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मिरा
सख़्त नादिम है मुझे दाम में लाने वाला

सुब्ह-दम छोड़ गया निकहत-ए-गुल की सूरत
रात को ग़ुंचा-ए-दिल में सिमट आने वाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला

मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला

क्या ख़बर थी जो मिरी जाँ में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

-------------------------------------

Dost ban kar bhi nahi sath nibhane wala
Wohi andaz hay zalim ka zamane wala

Ab usay log samjhte hain giraftar mera
Sakht naadim hay mujhe daam main lane wala

Subah dam choRR geya nikhat-e-gull ki surat
Raat ko guncha-e-dil may simatt aane wala

Kya kahen kitne marasim they hamare us se
Wo jo ik shakhss hai muh phair kay jaane wala

Tere hote huye aa jati thi sari dunia
Ajj tanha hoon to koi nahi aane wala

Muntazir kiss ka hoon tooti hoi dehleez pe main
Kon aye ga yahan, kon hai aane wala

Kya khabar thi jo meri jaan may ghulla hay itna
Hay wohi mujh ko sar-e-daar bhi laane wala

Main ne dekha hay baharon may chaman ko jalte
Hai koi khawb ki tabeer batane wala

Tum takaluf ko bhi ikhlaas samjhte ho Faraz
Dost hota nahi har hath milane wala
Read more

Chalne Ka Hausla Nahin Rukna Muhaal Kar Diya..

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया

ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की
अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया

अब के हवा के साथ है दामन-ए-यार मुंतज़िर
बानू-ए-शब के हाथ में रखना सँभाल कर दिया

मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया

चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया

मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया

--------------------------------------

Chalne Ka Hausla Nahin Rukna Muhaal Kar Diya
Ishq Ke Is Safar Ne To Mujh Ko NiDhaal Kar Diya

Ai Meri Gul-Zamiin Tujhe Chaah Thi Ik Kitaab Ki
Ahl-E-Kitaab Ne Magar Kya Tera Haal Kar Diya

Milte Hue Dilon Ke Biich Aur Tha Faisla Koi
Us Ne Magar BichhaḌte Vaqt Aur Savaal Kar Diya

Ab Ke Havaa Ke Saath Hai Daaman-E-Yaar Muntazir
Baanu-E-Shab Ke Haath Mein Rakhna Sambhaal Kar Diya

Mumkina Faislon Mein Ek Hijr Ka Faisla Bhi Tha
Ham Ne To Ek Baat Ki Us Ne Kamaal Kar Diya

Mere Labon Pe Mohr Thi Par Mere Shisha-Ru Ne To
Shahr Ke Shahr Ko Mera Vaaqif-E-Haal Kar Diya

Chehra O Naam Ek Saath Aaj Na Yaad Aa Sake
Vaqt Ne Kis Shabih Ko Ḳhvaab O Ḳhayaal Kar Diya

Muddaton Baad Us Ne Aaj Mujh Se Koi Gila Kiya
Mansab-E-Dilbari Pe Kya Mujh Ko Bahaal Kar Diya
Read more

use kyun hum ne diya dil jo hai be-mehri..

उसे क्यूँ हम ने दिया दिल जो है बे-मेहरी में कामिल जिसे आदत है जफ़ा की 
जिसे चिढ़ मेहर-ओ-वफ़ा की जिसे आता नहीं आना ग़म-ओ-हसरत का मिटाना जो सितम में है यगाना 
जिसे कहता है ज़माना बुत-ए-बे-महर-ओ-दग़ा-बाज़ जफ़ा-पेशा फ़ुसूँ-साज़ सितम-ख़ाना-बर-अन्दाज़ 
ग़ज़ब जिस का हर इक नाज़ नज़र फ़ित्ना मिज़ा तीर बला ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर ग़म-ओ-रंज का बानी क़लक़-ओ-दर्द 
का मूजिब सितम-ओ-जौर का उस्ताद जफ़ा-कारी में माहिर जो सितम-केश-ओ-सितमगर जो सितम-पेशा है 
दिलबर जिसे आती नहीं उल्फ़त जो समझता नहीं चाहत जो तसल्ली को न समझे जो तशफ़्फ़ी को न 
जाने जो करे क़ौल न पूरा करे हर काम अधूरा यही दिन-रात तसव्वुर है कि नाहक़ 
उसे चाहा जो न आए न बुलाए न कभी पास बिठाए न रुख़-ए-साफ़ दिखाए न कोई 
बात सुनाए न लगी दिल की बुझाए न कली दिल की खिलाए न ग़म-ओ-रंज घटाए न रह-ओ-रस्म 
बढ़ाए जो कहो कुछ तो ख़फ़ा हो कहे शिकवे की ज़रूरत जो यही है तो न चाहो जो न 
चाहोगे तो क्या है न निबाहोगे तो क्या है बहुत इतराओ न दिल दे के ये किस काम का दिल 
है ग़म-ओ-अंदोह का मारा अभी चाहूँ तो मैं रख दूँ इसे तलवों से मसल कर अभी मुँह 
देखते रह जाओ कि हैं उन को हुआ क्या कि इन्हों ने मिरा दिल ले के मिरे हाथ से खोया

--------------------------------------

use kyun hum ne diya dil jo hai be-mehri mein kaamil jise aadat hai jafa ki
jise chidh mehr-o-wafa ki jise aata nahin aana gham-o-hasrat ka mitana jo sitam mein hai yagana

jise kahta hai zamana but-e-be-mahr-o-dagha-baz jafa-pesha fusun-saz sitam-khana-bar-andaz
ghazab jis ka har ek naz nazar fitna mizha tir bala zulf-e-girah-gir gham-o-ranj ka bani qalaq-o-dard

ka mujib sitam-o-jaur ka ustad jafa-kari mein mahir jo sitam-kesh-o-sitam-gar jo sitam-pesha hai
dilbar jise aati nahin ulfat jo samajhta nahin chahat jo tasalli ko na samjhe jo tashaffi ko na

jaane jo kare qaul na pura kare har kaam adhura yahi din-raat tasawwur hai ki nahaq
use chaha jo na aae na bulae na kabhi pas bithae na rukh-e-saf dikhae na koi

baat sunae na lagi dil ki bujhae na kali dil ki khilae na gham-o-ranj ghatae na rah-o-rasm
badhae jo kaho kuchh to khafa ho kahe shikwe ki zarurat jo yahi hai to na chaho jo na

chahoge to kya hai na nibahoge to kya hai bahut itrao na dil de ke ye kis kaam ka dil
hai gham-o-andoh ka mara abhi chahun to main rakh dun ise talwon se masal kar abhi munh

dekhte rah jao ki hain un ko hua kya ki inhon ne mera dil le ke mere hath se khoya
Read more

Maqrooz Ke Bigray Huye Halaat Ki Maanind..

मक़रूज़ के बिगड़े हुए ख़यालात की मानिंद
मज़बूर के होठों के सवालात की मानिंद

दिल का तेरी चाहत में अजब हाल हुआ है
सैलाब से बर्बाद मकानात की मानिंद

मैं उस में भटकते हुए जुगनू की तरह हूँ
उस शख्स की आँख हैं किसी रात की मानिंद

दिल रोज़ सजाता हूँ मैं दुल्हन की तरह से
ग़म रोज़ चले आते हैं बारात की मानिंद

अब ये भी नहीं याद के क्या नाम था उसका
जिस शख्स को माँगा था मुनाजात की मानिंद

किस दर्जा मुकद्दस है तेरे क़ुर्ब की ख्वाहिश
मासूम से बच्चे के ख़यालात की मानिंद

उस शख्स से मेरा मिलना मुमकिन ही नहीं था
मैं प्यास का सेहरा हूँ वो बरसात की मानिंद

समझाओ 'मोहसिन' उसको के अब तो रहम करे
ग़म बाँटता फिरता है वो सौगात की मानिंद

------------------------------------

Maqrooz Ke Bigray Huye Halaat Ki Maanind
Majboor Ke Honton Pe Sawaalaat Ki Maanind

Dil Ka Teri Chaahat Mein Ajab Haal Hua Hai
Sailaab Se Barbaad Makaanaat Ki Maanind

Mein Un Mein Bhatkay Howay Jugnu Ki Tarah Hun
Usss Shakhs Ki Aankhain Hain Kisi Raat Ki Maanind

Dil Roz Sajaata Hun Mein Dulhan Ki Tarah
Gham Roz Chalay Aatay Hain Baaraat Ki Maanind

Ab Ye Bhi Nahi Yaad Ke Kya Naam Tha Os Ka
Jis Shakhs Ko Maanga Tha Manaajaat Ki Maanind

Kis Darja Muqaddas Hai Tere Qurb Ki Khwaahish
Maasoom Se Bachay Ke Khayaalaat Ki Maanind

Uss Shakhs Se Mera Milna Mumkin Hi Nahi
Mein Pyaas Ka Sehra Hun Wo Barsaat Ki Maanind

Samjhao Mohsin Us Ko Ke Ab Reham Kare
Dukh Baant’ta Phirta Hai Woh Soghaat Ki Maanind
Read more

zindagii se yahii gilaa hai mujhe..

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

दिल धड़कता नहीं टपकता है
कल जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे

हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे

कोहकन हो कि क़ैस हो कि 'फ़राज़'
सब में इक शख़्स ही मिला है मुझे

---------------------------

Zindagii se yahii gilaa hai mujhe
Tu bahut der se milaa hai mujhe

Hamasafr chaahiye hujoom nahiin
Ek musaafir bhii kaafilaa hai mujhe

Tu mohabbat se koii chaal to chal
Haar jaane kaa hausalaa hai mujhe

Lab kushaan hoon to is yakiin ke saath
Katl hone kaa hausalaa hai mujhe

Dil dhaDakataa nahiin sulagataa hai
Vo jo khvaahish thii, aabalaa hai mujhe

Kaun jaane ki chaahato men fraaj
Kyaa ganvaayaa hai kyaa milaa hai mujhe
Read more

jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe..

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे
जब अपनी अपनी मोहब्बतों के अज़ाब झेले तो लोग समझे

वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया था
उन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल न उतरे तो लोग समझे

उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़ल्सफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे

वो ख़्वाब थे ही चम्बेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बैअत
फिर इक चम्बेली की ओट में से जो साँप निकले तो लोग समझे

वो गाँव का इक ज़ईफ़ दहक़ाँ सड़क के बनने पे क्यूँ ख़फ़ा था
जब उन के बच्चे जो शहर जाकर कभी न लौटे तो लोग समझे

---------------------------------------

jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe
jab apni apni mohabbaton ke azaab jhele to log samjhe

vo jin darakhton ki chhanv men se musafiron ko utha diya tha
unhin darakhton pe agle mausam jo phal na utre to log samjhe

us ek kachchi si umr vaali ke falsafe ko koi na samjha
jab us ke kamre se laash nikli khutut nikle to log samjhe

vo khvab the hi chambeliyon se so sab ne hakim ki kar li baiat
phir ik chambeli ki ot men se jo saanp nikle to log samjhe

vo gaanv ka ik zaiif dahqan sadak ke banne pe kyuun khafa tha
jab un ke bachche jo shahr jakar kabhi na laute to log samjhe
Read more

samne us ke kabhi us ki sataish nahin ki..

सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की
दिल ने चाहा भी अगर होंटों ने जुम्बिश नहीं की

अहल-ए-महफ़िल पे कब अहवाल खुला है अपना
मैं भी ख़ामोश रहा उस ने भी पुर्सिश नहीं की

जिस क़दर उस से तअल्लुक़ था चला जाता है
उस का क्या रंज हो जिस की कभी ख़्वाहिश नहीं की

ये भी क्या कम है कि दोनों का भरम क़ाएम है
उस ने बख़्शिश नहीं की हम ने गुज़ारिश नहीं की

इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा
उस पे महफ़िल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की

हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की

ऐ मिरे अब्र-ए-करम देख ये वीराना-ए-जाँ
क्या किसी दश्त पे तू ने कभी बारिश नहीं की

कट मरे अपने क़बीले की हिफ़ाज़त के लिए
मक़्तल-ए-शहर में ठहरे रहे जुम्बिश नहीं की

वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है 'फ़राज़'
हम ने भी मेल-मुलाक़ात की कोशिश नहीं की

--------------------------------

samne us ke kabhi us ki sataish nahin ki
dil ne chaha bhi agar honTon ne jumbish nahin ki

ahl-e-mahfil pe kab ahwal khula hai apna
main bhi KHamosh raha us ne bhi pursish nahin ki

jis qadar us se talluq tha chala jata hai
us ka kya ranj ho jis ki kabhi KHwahish nahin ki

ye bhi kya kam hai ki donon ka bharam qaem hai
us ne baKHshish nahin ki hum ne guzarish nahin ki

ek to hum ko adab aadab ne pyasa rakkha
us pe mahfil mein surahi ne bhi gardish nahin ki

hum ki dukh oDh ke KHalwat mein paDe rahte hain
hum ne bazar mein zaKHmon ki numaish nahin ki

ai mere abr-e-karam dekh ye virana-e-jaan
kya kisi dasht pe tu ne kabhi barish nahin ki

kaT mare apne qabile ki hifazat ke liye
maqtal-e-shahr mein Thahre rahe jumbish nahin ki

wo hamein bhul gaya ho to ajab kya hai 'faraaz'
hum ne bhi mel-mulaqat ki koshish nahin ki
Read more

safar me dhoop to hogi..

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
Read more

ab ke tajdid-e-wafa ka nahin imkan jaanan..

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ
याद क्या तुझ को दिलाएँ तिरा पैमाँ जानाँ

यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ

ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तिरा एहसाँ जानाँ

दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ

अव्वल अव्वल की मोहब्बत के नशे याद तो कर
बे-पिए भी तिरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ

आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं
रग-ए-मीना सुलग उट्ठी कि रग-ए-जाँ जानाँ

मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उमीद
दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ

हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रक्खा था
ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ

अब के कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ
सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गरेबाँ जानाँ

हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है
हर कोई अपने ही साए से हिरासाँ जानाँ

जिस को देखो वही ज़ंजीर-ब-पा लगता है
शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िंदाँ जानाँ

अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए
और से और हुए दर्द के उनवाँ जानाँ

हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे
हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ

होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा रेज़ा
जैसे उड़ते हुए औराक़-ए-परेशाँ जानाँ

----------------------------------

ab ke tajdid-e-wafa ka nahin imkan jaanan
yaad kya tujh ko dilaen tera paiman jaanan

yunhi mausam ki ada dekh ke yaad aaya hai
kis qadar jald badal jate hain insan jaanan

zindagi teri ata thi so tere nam ki hai
hum ne jaise bhi basar ki tera ehsan jaanan

dil ye kahta hai ki shayad hai fasurda tu bhi
dil ki kya baat karen dil to hai nadan jaanan

awwal awwal ki mohabbat ke nashe yaad to kar
be-piye bhi tera chehra tha gulistan jaanan

aaKHir aaKHir to ye aalam hai ki ab hosh nahin
rag-e-mina sulag utthi ki rag-e-jaan jaanan

muddaton se yahi aalam na tawaqqo na umid
dil pukare hi chala jata hai jaanan jaanan

hum bhi kya sada the hum ne bhi samajh rakkha tha
gham-e-dauran se juda hai gham-e-jaanan jaanan

ab ke kuchh aisi saji mahfil-e-yaran jaanan
sar-ba-zanu hai koi sar-ba-gareban jaanan

har koi apni hi aawaz se kanp uThta hai
har koi apne hi sae se hirasan jaanan

jis ko dekho wahi zanjir-ba-pa lagta hai
shahr ka shahr hua dakhil-e-zindan jaanan

ab tera zikr bhi shayad hi ghazal mein aae
aur se aur hue dard ke unwan jaanan

hum ki ruthi hui rut ko bhi mana lete the
hum ne dekha hi na tha mausam-e-hijran jaanan

hosh aaya to sabhi KHwab the reza reza
jaise uDte hue auraq-e-pareshan jaanan

Read more

khizan ki rut men gulab lahja bana ke rakhna kamal ye hai..

ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है 

ज़रा सी लग़्ज़िश पे तोड़ देते हैं सब तअ'ल्लुक़ ज़माने वाले
सो ऐसे वैसों से भी तअ'ल्लुक़ बना के रखना कमाल ये है 

किसी को देना ये मशवरा कि वो दुख बिछड़ने का भूल जाए
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू छुपा के रखना कमाल ये है 

ख़याल अपना मिज़ाज अपना पसंद अपनी कमाल क्या है
जो यार चाहे वो हाल अपना बना के रखना कमाल ये है 

किसी की रह से ख़ुदा की ख़ातिर उठा के काँटे हटा के पत्थर
फिर उस के आगे निगाह अपनी झुका के रखना कमाल ये है 

वो जिस को देखे तो दुख का लश्कर भी लड़खड़ाए शिकस्त खाए
लबों पे अपने वो मुस्कुराहट सजा के रखना कमाल ये है 

---------------------------------------------------

khizan ki rut men gulab lahja bana ke rakhna kamal ye hai
hava ki zad pe diya jalana jala ke rakhna kamal ye hai 

zara si laghzish pe tod dete hain sab ta.alluq zamane vaale
so aise vaison se bhi ta.alluq bana ke rakhna kamal ye hai 

kisi ko dena ye mashvara ki vo dukh bichhadne ka bhuul jaa.e
aur aise lamhe men apne aansu chhupa ke rakhna kamal ye hai 

khayal apna mizaj apna pasand apni kamal kya hai
jo yaar chahe vo haal apna bana ke rakhna kamal ye hai 

kisi ki rah se khuda ki khatir uTha ke kanTe haTa ke patthar
phir us ke aage nigah apni jhuka ke rakhna kamal ye hai 

vo jis ko dekhe to dukh ka lashkar bhi ladkhada.e shikast khaa.e
labon pe apne vo muskurahaT saja ke rakhna kamal ye hai
Read more

isi nadamat se uss ke kandhe jhuke huye hain..

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं
कि हम छड़ी का सहारा लेकर खड़े हुए हैं

यहाँ से जाने की जल्दी किस को है तुम बताओ
कि सूटकेसों में कपड़े किस ने रखे हुए हैं

करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं

वो ख़ुद परिंदों का दाना लेने गया हुआ है
और उस के बेटे शिकार करने गए हुए हैं

तुम्हारे दिल में खुली दुकानों से लग रहा है
ये घर यहाँ पर बहुत पुराने बने हुए हैं

मैं कैसे बावर कराऊँ जाकर ये रौशनी को
कि इन चराग़ों पे मेरे पैसे लगे हुए हैं

तुम्हारी दुनिया में कितना मुश्किल है बच के चलना
क़दम क़दम पर तो आस्ताने बने हुए हैं

तुम इन को चाहो तो छोड़ सकते हो रास्ते में
ये लोग वैसे भी ज़िंदगी से कटे हुए हैं

-------------------------------

isi nadamat se us ke kandhe jhuke hue hain
ki ham chhaDi ka sahara le kar khaDe hue hain 

yahan se jaane ki jaldi kis ko hai tum batao
ki suitcason men kapDe kis ne rakhe hue hain 

kara to lunga ilaqa khali main laD-jhagaD kar
magar jo us ne dilon pe qabze kiye hue hain 

vo khud parindon ka daana lene gaya hua hai
aur us ke beTe shikar karne ga.e hue hain 

tumhare dil men khuli dukanon se lag raha hai
ye ghar yahan par bahut purane bane hue hain 

main kaise bavar kara.un ja kar ye raushni ko
ki in charaghon pe mere paise lage hue hain 

tumhari duniya men kitna mushkil hai bach ke chalna
qadam qadam par to astane bane hue hain 

tum in ko chaho to chhoD sakte ho raste men
ye log vaise bhi zindagi se kaTe hue hain
Read more

Us ke dushman hai bahut acha aadmi hoga..

उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा

प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा

मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की
उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

------------------------

us ke dushman hain bahut aadmi achchha hoga
vo bhi meri hi tarah shahr men tanha hoga 

itna sach bol ki honTon ka tabassum na bujhe
raushni khatm na kar aage andhera hoga 

pyaas jis nahr se Takra.i vo banjar nikli
jis ko pichhe kahin chhoD aa.e vo dariya hoga 

mire baare men koi raa.e to hogi us ki
us ne mujh ko bhi kabhi toD ke dekha hoga 

ek mahfil men ka.i mahfilen hoti hain sharik
jis ko bhi paas se dekhoge akela hoga
Read more

so rahenge ki jagte rahenge..

सो रहेंगे के जागते रहेंगे
हम तेरे ख्वाब देखते रहेंगे

तू कही और ही ढूंढता रहेंगा
हम कही और ही खिले रहेंगे

राहगीरों ने राह बदलनी है
पेड़ अपनी जगह खड़े रहेंगे

सभी मौसम है दस्तरस में तेरी
तूने चाहा तो हम हरे रहेंगे

लौटना कब है तूने पर तुझको
आदतन ही पुकारते रहेंगे

तुझको पाने में मसअला ये है
तुझको खोने के वस्वसे रहेंगे

तू इधर देख मुझसे बाते कर
यार चश्मे तो फूटते रहेंगे

एक मुद्दत हुई है तुझसे मिले
तू तो कहता था राब्ते रहेंगे

---------------------------

so rahenge ki jagte rahenge
ham tire khvab dekhte rahenge 

tu kahin aur DhunDhta rahega
ham kahin aur hi khile rahenge 

rahgiron ne rah badalni hai
peD apni jagah khaDe rahe hain 

barf pighlegi aur pahaDon men 
salha-sal raste rahenge 

sabhi mausam hain dastaras men tiri 
tu ne chaha to ham hare rahenge 

lauTna kab hai tu ne par tujh ko 
adatan hi pukarte rahenge 

tujh ko paane men mas.ala ye hai 
tujh ko khone ke vasvase rahenge 

tu idhar dekh mujh se baten kar 
yaar chashme to phuTte rahenge
Read more

yeh gham kya dil ki aadat hai nahin toh..

ये ग़म क्या दिल की आदत है? नही तो,
किसी से कुछ शिकायत है? नही तो
है वो एक ख्वाब-ए-बे-ताबीर,
उसे भूला देने की नीयत है? नही तो
किसी के बिन , किसी की याद के बिन,
जिये जाने की हिम्मत है? नही तो
किसी सूरत भी दिल लगता नही? हां,
तो कुछ दिन से ये हालात है? नही तो
तुझे जिसने कही का भी नही रखा,
वो एक जाति सी वहशत है? नही तो
तेरे इस हाल पर है सब को हैरत,      
तुझे भी इस पे हैरत है? नही तो
हम-आहंगी नही दुनिया से तेरी,
तुझे इस पर नदामत है? नही तो
वो दरवेशी जो तज कर आ गया…..तू
यह दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो
हुआ जो कुछ यही मक़सूम था क्या?
यही सारी हिकायत है? नही तो
अज़ीयत-नाक उम्मीदों से तुझको,
अमन पाने की हसरत है? नही तो
तू रहता है ख्याल-ओ-ख्वाब में गम,
तो इस वजह से फुरसत है? नही तो
वहां वालों से है इतनी मोहोब्बत,
यहां वालों से नफरत है? नही तो
सबब जो इस जुदाई का बना है,
वो मुझसे खुबसूरत है? नही तो

--------------------------------------------

Yeh gham kya dil ki aadat hai? nahin to 
Kisi se kuch shikaayat hai? nahin to
Hai woh ek khwaab-e-be-taabeer isko
Bhula dene ki neeyat hai? nahin to
Kisi ke bin, kisi ki yaad ke bin 
Jiye jaane ki himmat hai? nahin to 
Kisi soorat bhi dil lagta nahin? haan
To kuch din se yeh haalat hai? nahin to 
Tujhe jisne kahin ka bhi na rakha
Woh ek zaati si wehshat hai? nahin to
Tere is haal par hai sab ko hairat Tujhe bhi is pe hairat hai? nahin to
Hum-aahangi nahin duniya se teri 
Tujhe is par nadaamat hai? nahin to
Wo darweshi jo taz kar aa gya….tu
Yah daulat uski keemat hai? nahin to
Hua jo kuch yehi maqsoom tha kya?  Yahi saari hikaayat hai? nahin to
Azeeyat-naak ummeedon se tujhko
Aman paane ki hasrat hai? nahin to
Tu rehta hai khayaal-o-khwaab mein gum 
To is wajah se fursat hai? nahin to
Wahan waalon se hai itni mohabbat
Yahaan waalon se nafrat hai? nahin to 
Sabab jo is judaai ka bana hai 
Wo mujh se khubsoorat hai? nahin to.
Read more

Na hareef-e-jaan na shareek-e-gam shab-e-intizaar koi to ho..

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो
किसे बज़्म-ए-शौक़ में लाएँ हम दिल-ए-बे-क़रार कोई तो हो

किसे ज़िंदगी है अज़ीज़ अब किसे आरज़ू-ए-शब-ए-तरब
मगर ऐ निगार-ए-वफ़ा तलब तिरा ए'तिबार कोई तो हो

कहीं तार-ए-दामन-ए-गुल मिले तो ये मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ल-ए-बहार का सर-ए-शाख़-सार कोई तो हो

ये उदास उदास से बाम ओ दर ये उजाड़ उजाड़ सी रह-गुज़र
चलो हम नहीं न सही मगर सर-ए-कू-ए-यार कोई तो हो

ये सुकून-ए-जाँ की घड़ी ढले तो चराग़-ए-दिल ही न बुझ चले
वो बला से हो ग़म-ए-इश्क़ या ग़म-ए-रोज़गार कोई तो हो

सर-ए-मक़्तल-ए-शब-ए-आरज़ू रहे कुछ तो इश्क़ की आबरू
जो नहीं अदू तो 'फ़राज़' तू कि नसीब-ए-दार कोई तो हो

---------------------------------------------------------


na harif-e-jan na sharik-e-gham shab-e-intizar koi to ho
kise bazm-e-shauq men laa.en ham dil-e-be-qarar koi to ho 

kise zindagi hai aziiz ab kise arzu-e-shab-e-tarab
magar ai nigar-e-vafa talab tira e'tibar koi to ho 

kahin tar-e-daman-e-gul mile to ye maan len ki chaman khile
ki nishan fasl-e-bahar ka sar-e-shakh-sar koi to ho 

ye udaas udaas se baam o dar ye ujaaD ujaaD si rah-guzar
chalo ham nahin na sahi magar sar-e-ku-e-yar koi to ho 

ye sukun-e-jan ki ghaDi Dhale to charagh-e-dil hi na bujh chale
vo bala se ho gham-e-ishq ya gham-e-rozgar koi to ho 

sar-e-maqtal-e-shab-e-arzu rahe kuchh to ishq ki aabru
jo nahin adu to 'faraz' tu ki nasib-e-dar koi to ho
Read more

ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa..

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जां मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

------------------------------------

ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa
aa phir se mujhe chhod ke jaane ke liye aa

Pahale se maraasim na sahii phir bhi kabhi tou
rasm-o-rahe duniya hi nibhane ke liye aa

Kis kis ko batayenge judaai ka sabab ham
tu mujhse khafaa hai tou zamaane ke liye aa

kuch tou mere pindaar-e-mohabbat ka bharam rakh
tu bhi to kabhi mujh ko manaane ke liye aa

ek umr se hoon lazzat-e-giriyaa se bhi maharuum
aye raahat-e-jaan mujh ko rulaane ke liye aa

ab tak dil-e-khushfeham ko tujh se hain ummiden
ye aakharii shammen bhi bujhaane ke liye aa
Read more

hai ajib shahr ki zindagi..

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है 

यूँही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख-रखाव की गुफ़्तुगू
ये शराफ़तें नहीं बे-ग़रज़ इसे आप से कोई काम है

कहाँ अब दुआओं की बरकतें वो नसीहतें वो हिदायतें 
ये मुतालबों का ख़ुलूस है ये ज़रूरतों का सलाम है 

वो दिलों में आग लगाएगा मैं दिलों की आग बुझाऊंगा 
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है

न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर 
कई साल बा'द मिले हैं हम तिरे नाम आज की शाम है 

कोई नग़्मा धूप के गाँव सा कोई नग़्मा शाम की छाँव सा 
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है.

---------------------------------------------------------------

hai ajib shahr ki zindagi na safar raha na qayam hai
kahin karobar si dopahr kahin bad-mizaj si sham hai

yunhi roz milne ki aarzu baDi rakh-rakhaw ki guftugu
ye sharafaten nahin be-gharaz ise aap se koi kaam hai

kahan ab duaon ki barkaten wo nasihaten wo hidayaten
ye mutalbon ka KHulus hai ye zaruraton ka salam hai

wo dilon mein aag lagaega main dilon ki aag bujhaunga
use apne kaam se kaam hai mujhe apne kaam se kaam hai

na udas ho na malal kar kisi baat ka na KHayal kar
kai sal baad mile hain hum tere nam aaj ki sham hai

koi naghma dhup ke ganw sa koi naghma sham ki chhanw sa
zara in parindon se puchhna ye kalam kis ka kalam hai
Read more

naya ek rishta paida kyun karen hum..

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम 
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम 

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी 
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम 

ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं 
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम 

वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत 
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम 

सुना दें इस्मत-ए-मरियम का क़िस्सा 
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम 

ज़ुलेख़ा-ए-अज़ीज़ाँ बात ये है 
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम 

हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम 
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम 

किया था अह्द जब लम्हों में हम ने 
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम 

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें 
फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम 

जो इक नस्ल-ए-फ़रोमाया को पहुँचे 
वो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम 

नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी 
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम 

बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्या 
भला अंधों से पर्दा क्यों करें हम 

हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी 
सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम 

चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचा 
तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम 

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें 
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम 

ये बस्ती है मुसलमानों की बस्ती 
यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम 

-------------------------------------

naya ik rishta paida kyuun karen ham 
bichhadna hai to jhagda kyuun karen ham 

khamoshi se ada ho rasm-e-duri 
koi hangama barpa kyuun karen ham 

ye kaafi hai ki ham dushman nahin hain 
vafa-dari ka da.ava kyuun karen ham 

vafa ikhlas qurbani mohabbat 
ab in lafzon ka pichha kyuun karen ham 

suna den ismat-e-mariyam ka qissa 
par ab is baab ko va kyon karen ham 

zulekha-e-azizan baat ye hai 
bhala ghaTe ka sauda kyon karen ham 

hamari hi tamanna kyuun karo tum 
tumhari hi tamanna kyuun karen ham 

kiya tha ahd jab lamhon men ham ne 
to saari umr iifa kyuun karen ham 

uTha kar kyon na phenken saari chizen 
faqat kamron men Tahla kyon karen ham 

jo ik nasl-e-faromaya ko pahunche 
vo sarmaya ikaTTha kyon karen ham 

nahin duniya ko jab parva hamari 
to phir duniya ki parva kyuun karen ham 

barahna hain sar-e-bazar to kya 
bhala andhon se parda kyon karen ham 

hain bashinde usi basti ke ham bhi 
so khud par bhi bharosa kyon karen ham 

chaba len kyon na khud hi apna dhancha 
tumhen ratib muhayya kyon karen ham 

padi rahne do insanon ki lashen 
zamin ka bojh halka kyon karen ham 

ye basti hai musalmanon ki basti 
yahan kar-e-masiha kyuun karen ham..
Read more