Unknown Poetry

kya kahega kabhi milne bhi agar ayega wo


kya kahega kabhi milne bhi agar ayega wo
क्या कहेगा कभी मिलने भी अगर आएगा वो
अब वफ़ादारी की क़समें तो नहीं खाएगा वो

हम समझते थे कि हम उसको भुला सकते हैं
वो समझता था हमें भूल नहीं पाएगा वो

कितना सोचा था पर इतना तो नहीं सोचा था
याद बन जाएगा वो ख़्वाब नज़र आएगा वो

सब के होते हुए इक रोज़ वो तन्हा होगा
फिर वो ढूँढेगा हमें और नहीं पाएगा वो

इत्तिफ़ाकन जो कभी सामने आया 'अजमल'
अब वो तन्हा तो न होगा जो ठहर जाएगा वो

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kya kahega kabhi milne bhi agar ayega wo
ab wafadari ki qasme to nhi khayega wo

hum samajhte the ki hum usko bhula sakte hain
wo samajhta tha hame bhool nahi paega wo

kitna socha tha par itna to nhi socha tha
yaad ban jayega wo khwab nazar ayega wo

sab ke hote hue ek roz wo tanha hoga
phir wo dhoodhega hume aur nhi payega yy wo

ittefaaqan jo kabhi samne aaya 'ajmal'
ab wo tanha toh na hoga jo thehar jayega wo

Poet - Unknown
Location: NA
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