Tehzeeb Hafi Poetry

Is ek dar se Khwab dekhta nhi mai


Is ek dar se Khwab dekhta nhi mai
इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं

किसी मुंडेर पर कोई दिया जला
फिर इस के बाद क्या हुआ पता नहीं

अभी से हाथ काँपने लगे मिरे
अभी तो मैं ने वो बदन छुआ नहीं

मैं आ रहा था रास्ते में फुल थे
मैं जा रहा हूँ कोई रोकता नहीं

तिरी तरफ़ चले तो उम्र कट गई
ये और बात रास्ता कटा नहीं

मैं राह से भटक गया तो क्या हुआ
चराग़ मेरे हाथ में तो था नहीं

मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर
मैं बुझ चुका हूँ और मुझे पता नहीं

इस अज़दहे की आँख पूछती रहीं
किसी को ख़ौफ़ आ रहा है या नहीं

ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से
मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं

ख़ुदा करे वो पेड़ ख़ैरियत से हो
कई दिनों से उस का राब्ता नहीं

Poet - Tehzeeb Hafi
Location: etra, Tehsil Taunsa Sharif (Dera Ghazi Khan District), Pakistan
Views: 122