Amir Ameer Poetry

Agar ye keh do baghair mere nahi guzara toh main tumhara


Agar ye keh do baghair mere nahi guzara toh main tumhara

Agar ye keh do baghair mere nahi guzara toh main tumhara
Ya us pe mabni koi tasur koi ishara toh main tumhara

Guroor-parwar ana ka malik kuch is tarah ke hain naam mere
Magar qasam se jo tum ne ik naam bhi pukara toh main tumhara

Tum apni sharton pe khel khelo main jaise chahe lagaoon baazi
Agar main jeeta toh tum ho mere agar main haara toh main tumhara

Tumhara aashiq tumhara mukhlis tumhara saathi tumhara apna
Raha na in mein se koi duniya mein jab tumhara toh main tumhara

Tumhara hone ke faisle ko main apni qismat pe chhodta hoon
Agar muqaddar ka koi toota kabhi sitara toh main tumhara

Ye kis pe taweez kar rahe ho ye kis ko paane ke hain wazeefe
Tamaam chhodo bas ek kar lo jo istikhara toh main tumhara
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अगर ये कह दो बग़ैर मेरे नहीं गुज़ारा तो मैं तुम्हारा
या उस पे मब्नी कोई त'अस्सुर कोई इशारा तो मैं तुम्हारा

ग़ुरूर-परवर अना का मालिक कुछ इस तरह के हैं नाम मेरे
मगर क़सम से जो तुम ने इक नाम भी पुकारा तो मैं तुम्हारा

तुम अपनी शर्तों पे खेल खेलो मैं जैसे चाहे लगाऊँ बाज़ी
अगर मैं जीता तो तुम हो मेरे अगर मैं हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा आशिक़ तुम्हारा मुख़्लिस तुम्हारा साथी तुम्हारा अपना
रहा न इन में से कोई दुनिया में जब तुम्हारा तो मैं तुम्हारा

तुम्हारा होने के फ़ैसले को मैं अपनी क़िस्मत पे छोड़ता हूँ
अगर मुक़द्दर का कोई टूटा कभी सितारा तो मैं तुम्हारा

ये किस पे ता'वीज़ कर रहे हो ये किस को पाने के हैं वज़ीफ़े
तमाम छोड़ो बस एक कर लो जो इस्तिख़ारा तो मैं तुम्हारा

Poet - Amir Ameer
Location: Rahim Yar Khan, Punjab
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