1. Jahan bhar ki tamam aankhein nichod kar jitna nam banega ..

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा

मैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ'राना मुबालग़ा है
मिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगा

हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा

तो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से क़ब्ल
मिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगा

मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसा
शदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा

सुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैं
बना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगा

कि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं
ये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ' रक़्बा हरम बनेगा

मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा

सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
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2. Wo muh lgata hai jab koi kam hota hai..

वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है
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3. Barso purana dost Mila jaise gair ho..

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो
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4. Ek tarikh muqarrar pe to har mah mile..

एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले
जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले

रंग उखड़ जाए तो ज़ाहिर हो प्लस्तर की नमी
क़हक़हा खोद के देखो तो तुम्हें आह मिले

जम्अ' थे रात मिरे घर तिरे ठुकराए हुए
एक दरगाह पे सब रांदा-ए-दरगाह मिले

मैं तो इक आम सिपाही था हिफ़ाज़त के लिए
शाह-ज़ादी ये तिरा हक़ था तुझे शाह मिले

एक उदासी के जज़ीरे पे हूँ अश्कों में घिरा
मैं निकल जाऊँ अगर ख़ुश्क गुज़रगाह मिले

इक मुलाक़ात के टलने की ख़बर ऐसे लगी
जैसे मज़दूर को हड़ताल की अफ़्वाह मिले

घर पहुँचने की न जल्दी न तमन्ना है कोई
जिस ने मिलना हो मुझे आए सर-ए-राह मिले

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ek tarikh muqarrar pe to har maah mile
jaise daftar men kisi shakhs ko tankhvah mile

rang ukhaD jaa.e to zahir ho plastar ki nami
qahqaha khod ke dekho to tumhen aah mile 

jam.a the raat mire ghar tire Thukra.e hue
ek dargah pe sab randa-e-dargah mile 

main to ik aam sipahi tha hifazat ke liye
shah-zadi ye tira haq tha tujhe shaah mile 

ek udasi ke jazire pe huun ashkon men ghira
main nikal ja.un agar khushk guzargah mile 

ik mulaqat ke Talne ki khabar aise lagi
jaise mazdur ko haDtal ki afvah mile 

ghar pahunchne ki na jaldi na tamanna hai koi
jis ne milna ho mujhe aa.e sar-e-rah mile
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