Jaun Elia Poetry

naya ek rishta paida kyun karen hum


naya ek rishta paida kyun karen hum
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम 
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम 

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी 
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम 

ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं 
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम 

वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत 
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम 

सुना दें इस्मत-ए-मरियम का क़िस्सा 
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम 

ज़ुलेख़ा-ए-अज़ीज़ाँ बात ये है 
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम 

हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम 
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम 

किया था अह्द जब लम्हों में हम ने 
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम 

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें 
फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम 

जो इक नस्ल-ए-फ़रोमाया को पहुँचे 
वो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम 

नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी 
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम 

बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्या 
भला अंधों से पर्दा क्यों करें हम 

हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी 
सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम 

चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचा 
तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम 

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें 
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम 

ये बस्ती है मुसलमानों की बस्ती 
यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम 

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naya ik rishta paida kyuun karen ham 
bichhadna hai to jhagda kyuun karen ham 

khamoshi se ada ho rasm-e-duri 
koi hangama barpa kyuun karen ham 

ye kaafi hai ki ham dushman nahin hain 
vafa-dari ka da.ava kyuun karen ham 

vafa ikhlas qurbani mohabbat 
ab in lafzon ka pichha kyuun karen ham 

suna den ismat-e-mariyam ka qissa 
par ab is baab ko va kyon karen ham 

zulekha-e-azizan baat ye hai 
bhala ghaTe ka sauda kyon karen ham 

hamari hi tamanna kyuun karo tum 
tumhari hi tamanna kyuun karen ham 

kiya tha ahd jab lamhon men ham ne 
to saari umr iifa kyuun karen ham 

uTha kar kyon na phenken saari chizen 
faqat kamron men Tahla kyon karen ham 

jo ik nasl-e-faromaya ko pahunche 
vo sarmaya ikaTTha kyon karen ham 

nahin duniya ko jab parva hamari 
to phir duniya ki parva kyuun karen ham 

barahna hain sar-e-bazar to kya 
bhala andhon se parda kyon karen ham 

hain bashinde usi basti ke ham bhi 
so khud par bhi bharosa kyon karen ham 

chaba len kyon na khud hi apna dhancha 
tumhen ratib muhayya kyon karen ham 

padi rahne do insanon ki lashen 
zamin ka bojh halka kyon karen ham 

ye basti hai musalmanon ki basti 
yahan kar-e-masiha kyuun karen ham..

Poet - Jaun Elia
Location: Amroha, Uttar Pradesh, India
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