Umair Najmi Poetry

Tujhe na aayegi mufflis ki muskhilat samajh


Tujhe na aayegi mufflis ki muskhilat samajh
तुझे ना आएंगी मुफ़लिस की मुश्किलात समझ
मैं छोटे लोगों के घर का बड़ा हूं बात समझ

मेरे इलावा हैं छे लोग मुनहसीर मुझ पर
मेरी हर एक मुसीबत को ज‌र्ब सात समझ

दिल ओ दिमाग ज़रूरी हैं जिंदगी के लिए
ये हाथ पाऊं इज़ाफ़ी सहूलियत समझ

फलक से कट के ज़मीन पर गिरी पतंगें देख
तू हिज्र काटने वालों की नफ़सियात समझ

किताब-ए-इश्क़ में हर आह एक आयत है
और आंसुओं को हुरूफ-ए-मुक़त्तेआत समझ

Poet - Umair Najmi
Location: Rahim Yar Khan, Punjab, Pakistan
Views: 191