1. ai mere sare logo ab mire dusre baazu pe vo shamshir hai jo..

अब मिरे दूसरे बाज़ू पे वो शमशीर है जो
इस से पहले भी मिरा निस्फ़ बदन काट चुकी
उसी बंदूक़ की नाली है मिरी सम्त कि जो 
इस से पहले मिरी शह-रग का लहू चाट चुकी 

फिर वही आग दर आई है मिरी गलियों में 
फिर मिरे शहर में बारूद की बू फैली है 
फिर से ''तू कौन है मैं कौन हूँ'' आपस में सवाल 
फिर वही सोच मियान-ए-मन-ओ-तू फैली है 

मिरी बस्ती से परे भी मिरे दुश्मन होंगे 
पर यहाँ कब कोई अग़्यार का लश्कर उतरा 
आश्ना हाथ ही अक्सर मिरी जानिब लपके 
मेरे सीने में सदा अपना ही ख़ंजर उतरा 

फिर वही ख़ौफ़ की दीवार तज़ब्ज़ुब की फ़ज़ा 
फिर वही आम हुईं अहल-ए-रिया की बातें 
नारा-ए-हुब्ब-ए-वतन माल-ए-तिजारत की तरह 
जिंस-ए-अर्ज़ां की तरह दीन-ए-ख़ुदा की बातें 

इस से पहले भी तो ऐसी ही घड़ी आई थी 
सुब्ह-ए-वहशत की तरह शाम-ए-ग़रीबाँ की तरह 
इस से पहले भी तो पैमान-ए-वफ़ा टूटे थे 
शीशा-ए-दिल की तरह आईना-ए-जाँ की तरह 

फिर कहाँ अहमरीं होंटों पे दुआओं के दिए 
फिर कहाँ शबनमीं चेहरों पे रिफ़ाक़त की रिदा 
संदलीं पाँव से मस्ताना-रवी रूठ गई 
मरमरीं हाथों पे जल-बुझ गया अँगार-ए-हिना 

दिल-नशीं आँखों में फुर्क़त-ज़दा काजल रोया 
शाख़-ए-बाज़ू के लिए ज़ुल्फ़ का बादल रोया 
मिस्ल-ए-पैराहन-ए-गुल फिर से बदन चाक हुए 
जैसे अपनों की कमानों में हों अग़्यार के तीर 
इस से पहले भी हुआ चाँद मोहब्बत का दो-नीम 
नोक-ए-दशना से खिची थी मिरी धरती पे लकीर

आज ऐसा नहीं ऐसा नहीं होने देना 
ऐ मिरे सोख़्ता-जानो मिरे पियारे लोगो 
अब के गर ज़लज़ले आए तो क़यामत होगी 
मेरे दिल-गीर मिरे दर्द के मारे लोगो 
किसी ग़ासिब किसी ज़ालिम किसी क़ातिल के लिए 
ख़ुद को तक़्सीम न करना मिरे सारे लोगो

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ab mire dusre baazu pe vo shamshir hai jo
is se pahle bhi mira nisf badan kaaT chuki 
usi banduq ki naali hai miri samt ki jo 
is se pahle miri shah-rag ka lahu chaaT chuki 

phir vahi aag dar aa.i hai miri galiyon men 
phir mire shahr men barud ki bu phaili hai 
phir se ''tu kaun hai main kaun hun aapas men saval 
phir vahi soch miyan-e-man-o-tu phaili hai 

miri basti se pare bhi mire dushman honge 
par yahan kab koi aghyar ka lashkar utra 
ashna haath hi aksar miri janib lapke 
mere siine men sada apna hi khanjar utra 

phir vahi khauf ki divar tazabzub ki faza 
phir vahi aam huiin ahl-e-riya ki baten 
na.ara-e-hubb-e-vatan mal-e-tijarat ki tarah 
jins-e-arzan ki tarah din-e-khuda ki baten 

is se pahle bhi to aisi hi ghaDi aa.i thi 
sub.h-e-vahshat ki tarah sham-e-ghariban ki tarah 
is se pahle bhi to paiman-e-vafa TuuTe the 
shisha-e-dil ki tarah a.ina-e-jan ki tarah 

phir kahan ahmarin honTon pe duaon ke diye 
phir kahan shabnamin chehron pe rifaqat ki rida 
sandalin paanv se mastana-ravi ruuTh ga.i 
marmarin hathon pe jal-bujh gaya angar-e-hina 

dil-nashin ankhon men furqat-zada kajal roya 
shakh-e-bazu ke liye zulf ka badal roya 
misl-e-pairahan-e-gul phir se badan chaak hue 
jaise apnon ki kamanon men hon aghyar ke tiir 
is se pahle bhi hua chand mohabbat ka do-nim 
nok-e-dashna se khichi thi miri dharti pe lakir 

aaj aisa nahin aisa nahin hone dena 
ai mire sokhta-jano mire piyare logo 
ab ke gar zalzale aa.e to qayamat hogi 
mere dil-gir mire dard ke maare logo 
kisi ghasib kisi zalim kisi qatil ke liye 
khud ko taqsim na karna mire saare logo
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2. Mujh se pehle tumhain jis shakhs ne chaha us ne..

मुझ से पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा उस ने
शायद अब भी तिरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो
एक बे-नाम सी उम्मीद पे अब भी शायद
अपने ख़्वाबों के जज़ीरों को सजा रक्खा हो

मैं ने माना कि वो बेगाना-ए-पैमान-ए-वफ़ा 
खो चुका है जो किसी और की रानाई में
शायद अब लौट के आए न तिरी महफ़िल में 
और कोई दुख न रुलाये तुझे तन्हाई में 

मैं ने माना कि शब ओ रोज़ के हंगामों में 
वक़्त हर ग़म को भुला देता है रफ़्ता रफ़्ता 
चाहे उम्मीद की शमएँ हों कि यादों के चराग़ 
मुस्तक़िल बोद बुझा देता है रफ़्ता रफ़्ता 

फिर भी माज़ी का ख़याल आता है गाहे-गाहे 
मुद्दतें दर्द की लौ कम तो नहीं कर सकतीं 
ज़ख़्म भर जाएँ मगर दाग़ तो रह जाता है 
दूरियों से कभी यादें तो नहीं मर सकतीं 

ये भी मुमकिन है कि इक दिन वो पशीमाँ हो कर 
तेरे पास आए ज़माने से किनारा कर ले 
तू कि मासूम भी है ज़ूद-फ़रामोश भी है 
उस की पैमाँ-शिकनी को भी गवारा कर ले 

और मैं जिस ने तुझे अपना मसीहा समझा 
एक ज़ख़्म और भी पहले की तरह सह जाऊँ 
जिस पे पहले भी कई अहद-ए-वफ़ा टूटे हैं 
इसी दो-राहे पे चुप-चाप खड़ा रह जाऊँ 

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Mujh se pehle tumhain jis shakhs ne chaha us ne
Shayed ab bhi tera gham dil se laga rakha ho
Aik benaam se ummeed pea b bhi shayed
Apnay khwaboon ke jazeeroon ko saja rakha ho

Mein ne mana ke wo begana e paiman e wafa
Kho chukka hai jo kisi aur ki ra’nai mein
Shayed ab laut ke aye na teri mehfil mein
Aur koi gham na sataye tumhain tanhai mein

Mein ne mana ke shab o roz ke hungamoon mein
Waqt har zakhm ko bhar deta hai rafta rafta
Chahe ummeed ki sham’ain hoon ke yadoon ke charagh
Mustaqil bohd bhujha deta hai rafta rafta

Phir bhi mazi ka khayal ata hai gahe gahe
Mudatain dard ki lau kam to nahee kar sakteen
Zakhm bhar jaye magar daagh to reh jata hai
Dooryun se kabhi yadein to naheen mar sakti

Yeh bhi mumkin hai ke ik din wo pashemaan ho ke
Tere paas aye zamany se kinara kar le
Tuu ke masoom bhi hai zood faramosh bhi hai
Us ki pemaan shikni ko bhi gawara kar le

Aur mein ke jis ne tumhain apna maseeha samjha
Aik zakhm aur bhi pehle ki tarah seh jaoon
Jis pe pehle bhi kai ahd e wafa tootay hain
Phir usi maud pe chup chaap khada reh jaoon

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3. Bhale dinon ki baat hai-Ahmed Faraz..

भले दिनों की बात है
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि हुस्न-ए-ताम हो
न देखने में आम सी
न ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुज़र लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे

कोई भी रुत हो उस की छब
फ़ज़ा का रंग-रूप थी
वो गर्मियों की छांव थी
वो सर्दियों की धूप थी

न मुद्दतों जुदा रहे
न साथ सुब्ह-ओ-शाम हो
न रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
न ये कि इज़्न-ए-आम हो

न ऐसी ख़ुश-लिबासियां
कि सादगी गिला करे
न इतनी बे-तकल्लुफ़ी
कि आइना हया करे

न इख़्तिलात में वो रम
कि बद-मज़ा हों ख़्वाहिशें
न इस क़दर सुपुर्दगी
कि ज़च करें नवाज़िशें
न आशिक़ी जुनून की
कि ज़िंदगी अज़ाब हो
न इस क़दर कठोर-पन
कि दोस्ती ख़राब हो

कभी तो बात भी ख़फ़ी
कभी सुकूत भी सुख़न
कभी तो किश्त-ए-ज़ाफ़रां
कभी उदासियों का बन

सुना है एक उम्र है
मुआमलात-ए-दिल की भी
विसाल-ए-जां-फ़ज़ा तो क्या
फ़िराक़-ए-जां-गुसिल की भी

सो एक रोज़ क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क़ को अमर कहूं
वो मेरी ज़िद से चिड़ गई

मैं इश्क़ का असीर था
वो इश्क़ को क़फ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
वो बद-तर-अज़-हवस कहे

शजर हजर नहीं कि हम
हमेशा पा-ब-गिल रहें
न ढोर हैं कि रस्सियां
गले में मुस्तक़िल रहें

मोहब्बतों की वुसअतें
हमारे दस्त-ओ-पा में हैं
बस एक दर से निस्बतें
सगान-ए-बा-वफ़ा में हैं

मैं कोई पेंटिंग नहीं
कि इक फ़्रेम में रहूं
वही जो मन का मीत हो
उसी के प्रेम में रहूं

तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं उस मिज़ाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं

न उस को मुझ पे मान था
न मुझ को उस पे ज़ोम ही
जो अहद ही कोई न हो
तो क्या ग़म-ए-शिकस्तगी
सो अपना अपना रास्ता
हंसी-ख़ुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी

मैं अपनी राह चल दिया
भली सी एक शक्ल थी
भली सी उस की दोस्ती
अब उस की याद रात दिन
नहीं, मगर कभी कभी

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Bhale dinon ki baat hai
Bhali si ek shakl thi
Na ye ki husn-e-tam ho
Na dekhne men aam si

Na ye ki vo chale to 
Kahkashan si rahguzar lage
Magar vo saath ho to phir 
Bhala bhala safar lage

Koi bhi rut ho us ki chhab
Faza ka rang-rup thi
Vo garmiyon ki chhanv thi
Vo sardiyon ki dhuup thi

Na muddaton juda rahe
Na saath subh-o-sham ho
Na rishta-e-vafa pe zid
Na ye ki izn-e-am ho

Na aisi khush-libasiyan
Ki sadgi gila kare
Na itni be-takallufi
Ki aaina haya kare

Na ikhtilat men vo ram
Ki bad-maza hon khvahishen
Na is qadar supurdagi
Ki zach karen navazishen

Na ashiqi junun ki
Ki zindagi azaab ho
Na is qadar kathor-pan
Ki dosti kharab ho

Kabhi to baat bhi khafi
Kabhi sukut bhi sukhan
Kabhi to kisht-e-zaafaran
Kabhi udasiyon ka ban

Suna hai ek umr hai
Muamalat-e-dil ki bhi
Visal-e-jan-faza,n to kya
Firaq-e-jangusil ki bhi

So ek roz kya hua
Vafa pe bahs chhid gai
Main ishq ko amar kahun
Vo meri zid se chid gai

Main ishq ka asiir tha
Vo ishq ko qafas kahe
Ki umr bhar ke saath ko
Vo bad-tar-az-havas kahe

Shajar hajar nahin ki ham
Hamesha pa-ba-gil rahen
Na Dhor hain ki rassiyan
Gale men mustaqil rahen

Mohabbaton ki vasuatein
Hamare dast-o-pa men hain
Bas ek dar se nisbaten
Sagan-e-ba-vafa men hain

Main koi panting nahin
Ki ik frame men rahun
Wahi jo man ka miit ho
Usi ke prem men rahun

Tumhari soch jo bhi ho
Main us mizaj ki nahin
Mujhe vafa se bair hai
Ye baat aaj ki nahin

Na us ko mujh pe maan tha
Na mujh ko us pe zoam hi
Jo ahd hi koi na ho
To kya gham-e-shikastagi

So apna apna rasta
Hansi-khushi badal diya
Vo apni raah chal padi
Main apni raah chal diya

Bhali si ek shakl thi
Bhali si us ki dosti
Ab us ki yaad raat din
Nahin, magar kabhi kabhi
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4. ai ishq-e-junun-pesha..

उम्रों की मसाफ़त से
थक-हार गए आख़िर
सब अह्द अज़िय्यत के
बेकार गए आख़िर
अग़्यार की बाँहों में
दिलदार गए आख़िर
रो कर तिरी क़िस्मत को
ग़म-ख़्वार गए आख़िर

यूँ ज़िंदगी गुज़रेगी
ता चंद वफ़ा-केशा
वो वादी-ए-उल्फ़त थी
या कोह-ए-अलम जो था
सब मद्द-ए-मुक़ाबिल थे
ख़ुसरव था कि जम जो था

हर राह में टपका है
ख़ूनाबा बहम जो था
रस्तों में लुटाया है
वो बेश कि कम जो था
नै रंज-ए-शिकस्त-ए-दिल
नै जान का अंदेशा

कुछ अहल-ए-रिया भी तो 
हमराह हमारे थे 
रहरव थे कि रहज़न थे 
जो रूप भी धारे थे कुछ सहल-तलब भी थे 
वो भी हमें प्यारे थे 
अपने थे कि बेगाने 
हम ख़ुश थे कि सारे थे 

सौ ज़ख़्म थे नस नस में 
घायल थे रग-ओ-रेशा

जो जिस्म का ईंधन था 
गुलनार किया हम ने 
वो ज़ह्र कि अमृत था 
जी भर के पिया हम ने 
सौ ज़ख़्म उभर आए 
जब दिल को सिया हम ने 
क्या क्या न मोहब्बत की 
क्या क्या न जिया हम ने
लो कूच किया घर से 
लो जोग लिया हम ने 
जो कुछ था दिया हम ने 
और दिल से कहा हम ने 
रुकना नहीं दरवेशा 

यूँ है कि सफ़र अपना 
था ख़्वाब न अफ़्साना 
आँखों में अभी तक है 
फ़र्दा का परी-ख़ाना 
सद-शुक्र सलामत है 
पिंदार-ए-फ़क़ीराना 
इस शहर-ए-ख़मोशी में 
फिर नारा-ए-मस्ताना 
ऐ हिम्मत-ए-मर्दाना 
सद-ख़ारा-ओ-यक-तेशा 
ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा 
ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा 

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umron ki masafat se
thak-har ga.e akhir 
sab ahd aziyyat ke 
bekar ga.e akhir 
aghyar ki banhon men 
dildar ga.e akhir 
ro kar tiri qismat ko 
gham-khvar ga.e akhir

yuun zindagi guzregi 
ta chand vafa-kesha 
vo vadi-e-ulfat thi 
ya koh-e-alam jo tha 
sab madd-e-muqabil the 
khusrav tha ki jam jo tha 

har raah men Tapka hai 
khunaba baham jo tha 
raston men luTaya hai 
vo besh ki kam jo tha 
nai ranj-e-shikast-e-dil 
nai jaan ka andesha 

kuchh ahl-e-riya bhi to 
hamrah hamare the 
rahrav the ki rahzan the 
jo ruup bhi dhare the kuchh sahl-talab bhi the 
vo bhi hamen pyare the 
apne the ki begane 
ham khush the ki saare the 

sau zakhm the nas nas men 
ghayal the rag-o-resha 

jo jism ka indhan tha 
gulnar kiya ham ne 
vo zahr ki amrit tha 
ji bhar ke piya ham ne 
sau zakhm ubhar aa.e 
jab dil ko siya ham ne 
kya kya na mohabbat ki 
kya kya na jiya ham ne 
lo kuuch kiya ghar se 
lo jog liya ham ne 
jo kuchh tha diya ham ne 
aur dil se kaha ham ne 
rukna nahin darvesha

yuun hai ki safar apna 
tha khvab na afsana 
ankhon men abhi tak hai 
farda ka pari-khana 
sad-shukr salamat hai 
pindar-e-faqirana 
is shahr-e-khamoshi men 
phir nara-e-mastana 
ai himmat-e-mardana 
sad-khara-o-yak-tesha 
ai ishq-e-junun-pesha 
ai ishq-e-junun-pesha
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5. Khwabon ke byopari..

हम ख़्वाबों के ब्योपारी थे
पर इस में हुआ नुक़सान बड़ा 
कुछ बख़्त में ढेरों कालक थी 
कुछ अब के ग़ज़ब का काल पड़ा 
हम राख लिए हैं झोली में 
और सर पे है साहूकार खड़ा 
याँ बूँद नहीं है डेवे में 
वो बाज-ब्याज की बात करे 
हम बाँझ ज़मीन को तकते हैं 
वो ढोर अनाज की बात करे 
हम कुछ दिन की मोहलत माँगें 
वो आज ही आज की बात करे 

जब धरती सहरा सहरा थी 
हम दरिया दरिया रोए थे 
जब हाथ की रेखाएँ चुप थीं 
और सुर संगीत में सोए थे
तब हम ने जीवन-खेती में 
कुछ ख़्वाब अनोखे बोए थे 

कुछ ख़्वाब सजल मुस्कानों के 
कुछ बोल कबत दीवानों के 
कुछ लफ़्ज़ जिन्हें मअनी न मिले 
कुछ गीत शिकस्ता-जानों के 
कुछ नीर वफ़ा की शम्ओं के 
कुछ पर पागल परवानों के 

पर अपनी घायल आँखों से 
ख़ुश हो के लहू छिड़काया था 
माटी में मास की खाद भरी 
और नस नस को ज़ख़माया था 
और भूल गए पिछली रुत में 
क्या खोया था क्या पाया था 

हर बार गगन ने वहम दिया 
अब के बरखा जब आएगी 
हर बीज से कोंपल फूटेगी 
और हर कोंपल फल लाएगी
सर पर छाया छतरी होगी
और धूप घटा बन जाएगी

जब फ़स्ल कटी तो क्या देखा
कुछ दर्द के टूटे गजरे थे
कुछ ज़ख़्मी ख़्वाब थे काँटों पर
कुछ ख़ाकिस्तर से कजरे थे
और दूर उफ़ुक़ के सागर में
कुछ डोलते डूबते बजरे थे

अब पाँव खड़ाऊँ धूल-भरी
और जिस्म पे जोग का चोला है
सब संगी साथी भेद-भरे
कोई मासा है कोई तोला है
इस ताक में ये इस घात में वो
हर ओर ठगों का टोला है

अब घाट न घर दहलीज़ न दर
अब पास रहा है क्या बाबा
बस तन की गठरी बाक़ी है
जा ये भी तू ले जा बाबा
हम बस्ती छोड़े जाते हैं
तू अपना क़र्ज़ चुका बाबा

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ham khvabon ke byopari the
par is men hua nuqsan baDa
kuchh bakht men Dheron kalak thi
kuchh ab ke ghazab ka kaal paDa
ham raakh liye hain jholi men
aur sar pe hai sahukar khaDa
yaan buund nahin hai Deve men
vo baj-byaj ki baat kare
ham banjh zamin ko takte hain
vo Dhor anaaj ki baat kare
ham kuchh din ki mohlat mangen
vo aaj hi aaj ki baat kare

jab dharti sahra sahra thi
ham dariya dariya ro.e the
jab haath ki rekha.en chup thiin
aur sur sangit men so.e the
tab ham ne jivan-kheti men

kuchh khvab anokhe bo.e the
kuchh khvab sajal muskanon ke
kuchh bol kabat divanon ke
kuchh lafz jinhen ma.ani na mile
kuchh giit shikasta-janon ke
kuchh niir vafa ki sham.on ke
kuchh par pagal parvanon ke

par apni ghayal ankhon se
khush ho ke lahu chhiDkaya tha
maaTi men maas ki khaad bhari
aur nas nas ko zakhamaya tha 
aur bhuul ga.e pichhli rut men 
kya khoya tha kya paaya tha 

har baar gagan ne vahm diya 
ab ke barkha jab aa.egi 
har biij se konpal phuTegi 
aur har konpal phal la.egi 
sar par chhaya chhatri hogi 
aur dhuup ghaTa ban ja.egi 

jab fasl kaTi to kya dekha 
kuchh dard ke TuuTe gajre the 
kuchh zakhmi khvab the kanTon par 
kuchh khakistar se kajre the 
aur duur ufuq ke sagar men 
kuchh Dolte Dubte bajre the 

ab paanv khaDa.un dhul-bhari 
aur jism pe jog ka chola hai 
sab sangi sathi bhed-bhare 
koi maasa hai koi tola hai 
is taak men ye is ghaat men vo 
har or Thagon ka Tola hai

ab ghaaT na ghar dahliz na dar 
ab paas raha hai kya baaba 
bas tan ki gaThri baaqi hai 
ja ye bhi tu le ja baaba 
ham basti chhoDe jaate hain 
tu apna qarz chuka baaba
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