Rahat Indori Poetry

uski kathai aankho me hai jantar-mantar sab


uski kathai aankho me hai jantar-mantar sab

उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू-वाक़ू, छुरियां-वुरियां, ख़ंजर-वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं, मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब

जाने मैं किस दिन डूबूँगा, फिक्रें करते हैं
दरिया-वरीया, कश्ती-वस्ती, लंगर-वंगर सब

इश्क़-विश्क़ के सारे नुस्खे, मुझसे सीखते हैं
ताहिर-वाहिर, मंज़र-वंजर, जोहर-वोहर सब

तुलसी ने जो लिखा अब कुछ बदला बदला हैं
रावण-वावण, लंका-वंका, बन्दर-वंदर सब

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uski kathai aankho me hai jantar-mantar sab
chaaku-waaku,chhuri-wuri,khanjar-wanjar sab

jis din se tum ruthi,mujhse ruthe hain
chaadar-waadar,takiya-wakiya,bistar-wistar sab

mujhse bichhar ke wo kahaa pahle jaisi hai
dhile par gaye kapde-wapre,zewar-webar sab

jane mai kis din dooboonga,fikrein karte hain,
dariya-variya kashti-vashti,langar-vangar sab

ishq vishq ke sare nuskhe muhse sikhte hein,
sagar vagar manzar vanzar johar vohar sab.

tulsi ne jo likha ab kuch badla-badla hai,
ravan-vavan,lanka-vanka,bandar-vandar sab

Poet - Rahat Indori
Location: Indore, Madhya Pradesh
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