pakistani poet

Jahan bhar ki tamam aankhein nichod kar jitna nam banega ..

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा

मैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ'राना मुबालग़ा है
मिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगा

हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा

तो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से क़ब्ल
मिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगा

मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसा
शदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा

सुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैं
बना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगा

कि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं
ये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ' रक़्बा हरम बनेगा

मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा

सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
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Wo muh lgata hai jab koi kam hota hai..

वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है
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nikal laya hun ek pinjre se ek parinda..

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है
बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है

ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे
बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है

नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक
मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है

ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है
मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है

ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ दे दूँ
जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है

मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार
मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है

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bade tahammul se rafta rafta nikalna hai
bacha hai jo tujh mein mera hissa nikalna hai

ye ruh barson se dafn hai tum madad karoge
badan ke malbe se is ko zinda nikalna hai

nazar mein rakhna kahin koi gham-shanas gahak
mujhe sukhan bechna hai kharcha nikalna hai

nikal laya hun ek pinjre se ek parinda
ab is parinde ke dil se pinjra nikalna hai

ye tis barson se kuchh baras pichhe chal rahi hai
mujhe ghadi ka kharab purza nikalna hai

khayal hai khandan ko ittilaa de dun
jo kat gaya us shajar ka shajara nikalna hai

main ek kirdar se bada tang hun qalamkar
mujhe kahani mein dal ghussa nikalna hai
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Barso purana dost Mila jaise gair ho..

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो
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hamesha der kar deta hoon main..

हमेशा देर कर देता हूं मैं 
ज़रूरी बात कहनी हो 
कोई वादा निभाना हो 
उसे आवाज़ देनी हो 
उसे वापस बुलाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं
 
मदद करनी हो उसकी 
यार का ढांढस बंधाना हो 
बहुत देरीना रास्तों पर 
किसी से मिलने जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

बदलते मौसमों की सैर में 
दिल को लगाना हो 
किसी को याद रखना हो 
किसी को भूल जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

किसी को मौत से पहले 
किसी ग़म से बचाना हो 
हक़ीक़त और थी कुछ 
उस को जा के ये बताना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

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Hamesha der kar deta hoon main
Jaruri baat kahni ho
Koi waada nibhana ho
Use awaaz deni ho
Use waapas bulana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main

Madat karni ho uski
Yaar ki dhadas bandhna ho
Bahot deri na rashto par
Kisi se milne jaana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main

Badalte maushmo ki sair mein
Dil ko lagana ho
Kisi ko yaad rakhna ho,
Kisi ko bhool jaana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main

Kisi ko maut se pahle
Kisi gham se bachana ho
Haqeeqat aur thi kuch
Usko jaake ye batana ho
Hamesha der kar deta hoon main
Hamesha der kar deta hoon main
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Ye saat aath padosi kahan se aaye mere..

ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे
तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मेरे

किसी ने पास बिठाया बस आगे याद नहीं
मुझे तो दोस्त वहाँ से उठा के लाए मेरे

ये सोच कर न किए अपने दर्द उसके सुपुर्द
वो लालची है असासे न बेच खाए मेरे

इधर किधर तू नया है यहाँ कि पागल है
किसी ने क्या तुझे क़िस्से नहीं सुनाए मेरे

वो आज़माए मेरे दोस्त को ज़रूर मगर
उसे कहो कि तरीके न आज़माए मेरे
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Ek tarikh muqarrar pe to har mah mile..

एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले
जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले

रंग उखड़ जाए तो ज़ाहिर हो प्लस्तर की नमी
क़हक़हा खोद के देखो तो तुम्हें आह मिले

जम्अ' थे रात मिरे घर तिरे ठुकराए हुए
एक दरगाह पे सब रांदा-ए-दरगाह मिले

मैं तो इक आम सिपाही था हिफ़ाज़त के लिए
शाह-ज़ादी ये तिरा हक़ था तुझे शाह मिले

एक उदासी के जज़ीरे पे हूँ अश्कों में घिरा
मैं निकल जाऊँ अगर ख़ुश्क गुज़रगाह मिले

इक मुलाक़ात के टलने की ख़बर ऐसे लगी
जैसे मज़दूर को हड़ताल की अफ़्वाह मिले

घर पहुँचने की न जल्दी न तमन्ना है कोई
जिस ने मिलना हो मुझे आए सर-ए-राह मिले

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ek tarikh muqarrar pe to har maah mile
jaise daftar men kisi shakhs ko tankhvah mile

rang ukhaD jaa.e to zahir ho plastar ki nami
qahqaha khod ke dekho to tumhen aah mile 

jam.a the raat mire ghar tire Thukra.e hue
ek dargah pe sab randa-e-dargah mile 

main to ik aam sipahi tha hifazat ke liye
shah-zadi ye tira haq tha tujhe shaah mile 

ek udasi ke jazire pe huun ashkon men ghira
main nikal ja.un agar khushk guzargah mile 

ik mulaqat ke Talne ki khabar aise lagi
jaise mazdur ko haDtal ki afvah mile 

ghar pahunchne ki na jaldi na tamanna hai koi
jis ne milna ho mujhe aa.e sar-e-rah mile
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Tujhe na aayegi mufflis ki muskhilat samajh..

तुझे ना आएंगी मुफ़लिस की मुश्किलात समझ
मैं छोटे लोगों के घर का बड़ा हूं बात समझ

मेरे इलावा हैं छे लोग मुनहसीर मुझ पर
मेरी हर एक मुसीबत को ज‌र्ब सात समझ

दिल ओ दिमाग ज़रूरी हैं जिंदगी के लिए
ये हाथ पाऊं इज़ाफ़ी सहूलियत समझ

फलक से कट के ज़मीन पर गिरी पतंगें देख
तू हिज्र काटने वालों की नफ़सियात समझ

किताब-ए-इश्क़ में हर आह एक आयत है
और आंसुओं को हुरूफ-ए-मुक़त्तेआत समझ
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Ghair Hazir..

 Ghair Hazir

Haazri lagnay wali hai
Khamosh hon or tawajja karain
'Aik?'
'Ji Sir!'
Udhar daayen deewar ki khirkion se paray ped hain
Kuch haray ped hain
Jin k pattay lagatar jhartay chalay ja rahay hain
Parinday bhi hain pedo par
Un k par..
'Paanch?'
'Hazir janab!'
Un k par..
Surmai rang se milta julta koi rang hai
'Saat?'
'Ji!'
Ghonsla aik hai..
Yani saray parinday idhar k nahin, kuch chalay jayenge
Or ye teesray ped par kya likha hai?
naya hai
nikal kar padhunga main
'Dus?'
'Ji main hoon'
Bilkul aisay kisi ne kaha tha mujhay dus baras qabl
Tairah May, do hazaar aath, Mangal tha or sham char ya sawa char
Meray ghar ki chat
Main ne deewar ki is taraf se kaha tha, 'koi hai?'
Tabhi bilkul aisay kisi ne kaha tha k 'Ji haan, main hoon'
'Pandrah?'
'Yes Sir! Present'
Ji haan.. Present..
Haa Ab wo awaz janay kahan ja chuki
Dus baras ho gaye, puchtay puchtay, 'Koi hai? Koi hai?'
Or agay se bas khamoshi
'Ji main hoon' wali awaz to ja chuki hai
'Athara?'
Kahan hogi ab?
'Roll number Athara?'
Aray ye to main..
'Sorry Sir!'
'Tum kahan khoye rehtay ho? Pagal ho kya?'
'Sir wo awaz to ja chuki'
'Kya kaha?'
'Ja chuki'
'Chup'
'Nahin Sir, sunain
Jab se wo ja chuki
Main jahan bhi hoon, ho kar bhi hota nahin
Jaisay ab bhi yahan to nahin hoon, bazahir hoon Sir
Aap samjhay?'
'nahin'
'Or kuch bhi btanay se qasir hoon Sir
Aap likh dijye
Ghair hazir hoon Sir!
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