main dil pe jabr karunga tujhe bhula dunga
marunga Khud bhi tujhe bhi kadi saza dunga
ye tirgi mire ghar ka hi kyuun muqaddar ho
main tere shahr ke saare diye bujha dunga
hava ka haath baTaunga har tabahi men
hare shajar se parinde main khud uda dunga
vafa karunga kisi sogvar chehre se
purani qabr pe katba naya saja dunga
isi ḳhayal men guzri hai sham-e-dard aksar
ki dard had se badhega to muskura dunga
tu asman ki surat hai gar padega kabhi
zamin huun main bhi magar tujh ko aasra dunga
baḌha rahi hain mire dukh nishaniyan teri
main tere ḳhat tiri tasvir tak jala dunga
bahut dinon se mira dil udaas hai 'mohsin'
is aaine ko koi aks ab naya dunga
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मैं दिल पे जबर करूंगा तुझे भुला दूंगा
मरूंगा खुद भी तुझे भी कड़ी सज़ा दूंगा
ये तीरगी मेरे घर का ही क्यों मुक़द्दर हो
मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूंगा
हवा का हाथ बता आउंगा हर तबाही में
हरे शजर से परिंदे मैं खुद उड़ा दूंगा
वफ़ा करूंगा किसी सोगवार चेहरे से
पुरानी क़बर पे क़तबा नया सजा दूंगा
इसी ख़याल में गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूंगा
तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी
ज़मीन हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूंगा
बढ़ा रही हैं मेरे दुख निशानियाँ तेरी
मैं तेरे ख़त तेरी तस्वीर तक जला दूंगा
बहुत दिनों से मेरा दिल उदास है 'मोहनस'
इस आईने को कोई अक्स अब नया दूंगा