tum apna ranj-o-ghum apni pareshaani mujhe de do.. bySahir Ludhianvi August 12, 2023 तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों मेंबुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दोमैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती हैकोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया हैबड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो-------------------------------------tum apanaa ra.nj-o-Gam, apani pareshaan mujhe de do tumhe.n gham kii qasam, is dil kI virAni mujhe de doye maanaa mai.n kisii qaabil nahii.n huu.N in nigaaho.n me.nburaa kyaa hai agar, ye dukh ye hairaani mujhe de domai.n dekhuu.n to sahii, duniyaa tumhe.n kaise sataati hai koi din ke liye, apni nigahabaani mujhe de dovo dil jo maine maa.ngaa thaa magar gairo.n ne paayaaba.Dk shai hai agar, usaki pashemaani mujhe de do Read more apna paresani mujhe de do sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
Tajmahal - Sahir Ludhianavi.. bySahir Ludhianvi August 11, 2023 ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सहीमेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ सेबज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मअ'नीसब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँउस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअनीमेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ातू ने सतवत के निशानों को तो देखा होतामुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वालीअपने तारीक मकानों को तो देखा होताअन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की हैकौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन केलेकिन उन के लिए तश्हीर का सामान नहींक्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़्लिस थेये इमारात ओ मक़ाबिर ये फ़सीलें ये हिसारमुतलक़-उल-हुक्म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूँसीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूरजज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँमेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगीजिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमीलउन के प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नुमूदआज तक उन पे जलाई न किसी ने क़िंदीलये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महलये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले करहम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से Read more Tajmahal sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
raat sunsan thi bojhal thin faza ki sansen-Teri Awaaz.. bySahir Ludhianvi August 11, 2023 रात सुनसान थी बोझल थीं फ़ज़ा की साँसेंरूह पर छाए थे बे-नाम ग़मों के साएदिल को ये ज़िद थी कि तू आए तसल्ली देनेमेरी कोशिश थी कि कम्बख़्त को नींद आ जाएदेर तक आँखों में चुभती रही तारों की चमकदेर तक ज़ेहन सुलगता रहा तन्हाई मेंअपने ठुकराए हुए दोस्त की पुर्सिश के लिएतो न आई मगर उस रात की पहनाई मेंयूँ अचानक तिरी आवाज़ कहीं से आईजैसे पर्बत का जिगर चीर के झरना फूटेया ज़मीनों की मोहब्बत में तड़प कर नागाहआसमानों से कोई शोख़ सितारा टूटेशहद सा घुल गया तल्ख़ाबा-ए-तन्हाई मेंरंग सा फैल गया दिल के सियह-ख़ाने मेंदेर तक यूँ तिरी मस्ताना सदाएँ गूँजींजिस तरह फूल चटकने लगें वीराने मेंतू बहुत दूर किसी अंजुमन-ए-नाज़ में थीफिर भी महसूस किया मैं ने कि तू आई हैऔर नग़्मों में छुपा कर मिरे खोए हुए ख़्वाबमेरी रूठी हुई नींदों को मना लाई हैरात की सतह पर उभरे तिरे चेहरे के नुक़ूशवही चुप-चाप सी आँखें वही सादा सी नज़रवही ढलका हुआ आँचल वही रफ़्तार का ख़मवही रह रह के लचकता हुआ नाज़ुक पैकरतू मिरे पास न थी फिर भी सहर होने तकतेरा हर साँस मिरे जिस्म को छू कर गुज़राक़तरा क़तरा तिरे दीदार की शबनम टपकीलम्हा लम्हा तिरी ख़ुश्बू से मोअत्तर गुज़राअब यही है तुझे मंज़ूर तो ऐ जान-ए-क़रारमैं तिरी राह न देखूँगा सियह रातों मेंढूँढ लेंगी मिरी तरसी हुई नज़रें तुझ कोनग़्मा ओ शेर की उमडी हुई बरसातों मेंअब तिरा प्यार सताएगा तो मेरी हस्तीतिरी मस्ती भरी आवाज़ में ढल जाएगीऔर ये रूह जो तेरे लिए बेचैन सी हैगीत बन कर तिरे होंटों पे मचल जाएगीतेरे नग़्मात तिरे हुस्न की ठंडक ले करमेरे तपते हुए माहौल में आ जाएँगेचंद घड़ियों के लिए हूँ कि हमेशा के लिएमिरी जागी हुई रातों को सुला जाएँगे-------------------------------raat sunsan thi bojhal thin faza ki sansenruh par chhae the be-nam ghamon ke saedil ko ye zid thi ki tu aae tasalli denemeri koshish thi ki kambakht ko nind aa jaeder tak aaankhon mein chubhti rahi taron ki chamakder tak zehn sulagta raha tanhai meinapne thukrae hue dost ki pursish ke liyeto na aai magar us raat ki pahnai meinyun achanak teri aawaz kahin se aaijaise parbat ka jigar chir ke jharna phuteya zaminon ki mohabbat mein tadap kar nagahaasmanon se koi shokh sitara tuteshahad sa ghul gaya talkhaba-e-tanhai meinrang sa phail gaya dil ke siyah-khane meinder tak yun teri mastana sadaen gaunjinjis tarah phul chatakne lagen virane meintu bahut dur kisi anjuman-e-naz mein thiphir bhi mahsus kiya main ne ki tu aai haiaur naghmon mein chhupa kar mere khoe hue khwabmeri ruthi hui nindon ko mana lai hairaat ki sath par ubhre tere chehre ke nuqushwahi chup-chap si aanhken wahi sada si nazarwahi dhalka hua aanchal wahi raftar ka khamwahi rah rah ke lachakta hua nazuk paikartu mere pas na thi phir bhi sahar hone taktera har sans mere jism ko chhu kar guzraqatra qatra tere didar ki shabnam tapkilamha lamha teri khushbu se moattar guzraab yahi hai tujhe manzur to ai jaan-e-qararmain teri rah na dekhunga siyah raaton meindhundh lengi meri tarsi hui nazren tujh konaghma o sher ki umdi hui barsaton meinab tera pyar sataega to meri hastiteri masti bhari aawaz mein dhal jaegiaur ye ruh jo tere liye bechain si haigit ban kar tere honton pe machal jaegitere naghmat tere husn ki thandak le karmere tapte hue mahaul mein aa jaengechand ghadiyon ke liye hun ki hamesha ke liyemeri jagi hui raaton ko sula jaenge Read more Teri Awaaz sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
ye mahalo ye takto ye tajo ki duniya.. bySahir Ludhianvi August 11, 2023 ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है हर एक जिस्म घायल हर एक रूह प्यासी निगाहों में उलझन दिलों में उदासी ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हैजहाँ एक खिलौना है इन्सां की हस्ती ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हैजवानी भटकती है बदकार बन कर जवाँ जिस्म सजते हैं बाज़ार बन कर जहाँ प्यार होता है व्यौपार बन कर ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हैये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है,वफ़ा कुछ नहीं दोस्ती कुछ नहीं है ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है,वफ़ा कुछ नहीं दोस्ती कुछ नहीं है जहाँ प्यार की क़द्र ही कुछ नहीं है ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हैजला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया जला दो जला दो जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्भालो ये दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है --------------------------------------------ye mahalo, ye takto, ye tajo ki duniyaye inasa ke dushman samajo ki duniyaye mahalo, ye takto, ye tajo ki duniyaye inasa ke dushman samaajo ki duniyaye daulat ke bhukhe rivaazo ki duniyaye duniya agar mil bhi jaaye to kya haiye duniya agar mil bhi jaaye to kya haihar ek jism ghaayal, har ek ruh pyaasinigaaho me ulajhan, dilo mein udaasiye duniya hai yaa aalam-e-badahavaasiye duniya agar mil bhi jaye to lya haijahaa ek khilaunaa hai inasaa ki hastiye basti hai murdaa-parasto ki bastijahaa aur jivan se hai maut sastiye duniya agar mil bhi jaye to kya haijawani bhatkati hai bejaar banakarjawa jism sajte hai bajar banakarjaha pyar hota hai vyapar banakarye duniya agar mil bhi jaye to lya haiye duniya jaha aadami kuch nahi haiwafa kuch nahi, dosti kuch nahi haiye duniya jaha aadami kuch nahi haiwafa kuch nahi, dosti kuch nahi haijaha pyar ki kadar hi kuch nahi haiye duniya agar mil bhi jaye to kya haijala do, jala do ise funk dalo ye duniyamere samne se hata lo ye duniyatumhari hai tum hi sambhalo ye duniyaye duniya agar mil bhi jaye to lya hai Read more sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
chalo ik baar phir se, ajanabii ban jaae.n ham dono.. bySahir Ludhianvi August 11, 2023 चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनोचलो इक बार फिर से न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी कीन तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों सेन मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों सेन ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों सेचलो इक बार फिर से तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी सेमुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराए हैंमेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माझी की - २तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैंचलो इक बार फिर से तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतरताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छावो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन - २उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छाचलो इक बार फिर से ----------------------------------chalo ik baar phir se, ajanabii ban jaae.n ham donochalo ik baar phir se na mai.n tumase koI ummiid rakhuu.N dilanavaazii kiina tum merii taraf dekho galat a.ndaaz nazaro.n sena mere dil kii dha.Dakan la.Dakha.Daaye merii baato.n sena zaahir ho tumhaarii kashm-kash kaa raaz nazaro.n sechalo ik baar phir se tumhe.n bhii koI ulajhan rokatii hai peshakadamii semujhe bhii log kahate hai.n ki ye jalave paraae hai.nmere hamaraah bhii rusavaaiyaa.n hai.n mere maajhii kii tumhaare saath bhii guzarii huii raato.n ke saaye hai.nchalo ik baar phir se taarruf rog ho jaaye to usako bhuulanaa behatartaalluk bojh ban jaaye to usako to.Danaa achchhaavo afasaanaa jise a.njaam tak laanaa naa ho mumakin use ek khuubasuurat mo.D dekar chho.Danaa achchhaachalo ik baar phir se Read more sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
Khud-kushi se pahle - Sahir Ludhianvi.. bySahir Ludhianvi August 10, 2023 उफ़ ये बेदर्द सियाही ये हवा के झोंकेकिस को मालूम है इस शब की सहर हो कि न होइक नज़र तेरे दरीचे की तरफ़ देख तो लूँडूबती आँखों में फिर ताब-ए-नज़र हो कि न होअभी रौशन हैं तिरे गर्म शबिस्ताँ के दिए नील-गूँ पर्दों से छनती हैं शुआएँ अब तकअजनबी बाँहों के हल्क़े में लचकती होंगी तेरे महके हुए बालों की रिदाएँ अब तक सर्द होती हुई बत्ती के धुएँ के हमराह हाथ फैलाए बढ़े आते हैं ओझल साए कौन पोंछे मिरी आँखों के सुलगते आँसू कौन उलझे हुए बालों की गिरह सुलझाए आह ये ग़ार-ए-हलाकत ये दिए का महबस उम्र अपनी इन्ही तारीक मकानों में कटी ज़िंदगी फ़ितरत-ए-बे-हिस की पुरानी तक़्सीर इक हक़ीक़त थी मगर चंद फ़सानों में कटी कितनी आसाइशें हँसती रहीं ऐवानों में कितने दर मेरी जवानी पे सदा बंद रहे कितने हाथों ने बुना अतलस-ओ-कमख़्वाब मगर मेरे मल्बूस की तक़दीर में पैवंद रहे ज़ुल्म सहते हुए इंसानों के इस मक़्तल में कोई फ़र्दा के तसव्वुर से कहाँ तक बहले उम्र भर रेंगते रहने की सज़ा है जीना एक दो दिन की अज़िय्यत हो तो कोई सह ले वही ज़ुल्मत है फ़ज़ाओं पे अभी तक तारी जाने कब ख़त्म हो इंसाँ के लहू की तक़्तीर जाने कब निखरे सियह-पोश फ़ज़ा का जौबन जाने कब जागे सितम-ख़ुर्दा बशर की तक़दीर अभी रौशन हैं तिरे गर्म शबिस्ताँ के दिए आज मैं मौत के ग़ारों में उतर जाऊँगा और दम तोड़ती बत्ती के धुएँ के हमराह सरहद-ए-मर्ग-ए-मुसलसल से गुज़र जाऊँगा Uff Ye Be-Dard Siyaahi, Ye Havaa Ke JhonkeKis Ko Ma’loom Hai Is Shab Ki Sahar Ho Ke Na HoIk Nazar Tere Dareeche Ki Taraf Dekh To LoonDoobti Aankhon Mein Phir Taab-E-Nazar Ho Ke Na HoAbhi Raushan Hain Tere Garm Shabistaan Ke DiyeNeelgoon Pardon Se Chhanti Hain Shuaaein Ab TakAjnabi Baahon Ke Halqe Mein Lachakti HongiTere Mahke Hue Baalon Ki Ruaayein Ab TakSard Hoti Hui Batti Ke Dhuein Ke HamraahHaath Phailaaye Badhe Aate Hain Bojhal SaayeKaun Ponchhe Meri Aankhon Ke Sulagte AansooKaun Uljhe Hue Baalon Ki Girah SuljhaayeAah Ye Ghaar Halaakat, Ye Diye Ka MahbasUmr Apni Inhin Taareek Makaanon Mein KatiZindagi Fitrat-E-Behis Ki Puraani TaqseerIk Haqeeqat Thi Magar Chand Fasaanon Si KatiKitni Aasaaishein Hansti Rahin Aivaanon MeinKitne Dar Meri Javaani Pe Sadaa Band RaheKitne Haathon Ne Bunaa Atlas -O-Kamkhwaab MagarMere Malboos Ki Taqdeer Mein Paiwand RaheZulm Sahte Hue Insaanon Ke Is Maqtal MeinKoi Fardaa Ke Tasavvur Se Kahaan Tak BahleUmr Bhar Rengte Rahne Ki Sazaa Hai JeenaaEk Do Din Ki Azeeyat Ho To Koi Sah LeVahi Zulmat Hai Fazaaon Pe Abhi Tak TaariJaane Kab Khatm Ho Insaan Ke Lahoo Ki TaqteerJaane Kab Bikhre Siya-Posh Fazaa Kaa JobanJaane Kab Jaage Sitam-Khurdah Bashar Ki TaqdeerAbhi Raushan Hain Tere Garm Shabistaan Ke DiyeAaj Main Maut Ke Ghaaron Mein Utar Jaaoon GaAur Dam Todti Batti Ke Dhuein Ke HamraahSarhad-E-Marg-E-Musalsal Se Guzar Jaaoon Ga Read more khud-kushi se pehle sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
Wo subah kabhi to aaegi.. bySahir Ludhianvi August 9, 2023 1वो सुब्ह कभी तो आएगीइन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगाजब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगाजब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगीवो सुब्ह कभी तो आएगीजिस सुब्ह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर कर जीते हैंजिस सुब्ह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैंइन भूकी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगीवो सुब्ह कभी तो आएगीमाना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहींमिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इंसानों की क़ीमत कुछ भी नहींइंसानों की इज़्ज़त जब झूटे सिक्कों में न तौली जाएगीवो सुब्ह कभी तो आएगीदौलत के लिए जब औरत की इस्मत को न बेचा जाएगाचाहत को न कुचला जाएगा ग़ैरत को न बेचा जाएगाअपने काले करतूतों पर जब ये दुनिया शरमाएगीवो सुब्ह कभी तो आएगीबीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी केटूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी केजब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगीवो सुब्ह कभी तो आएगीमजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फाँकेगामासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीक न माँगेगाहक़ माँगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगीवो सुब्ह कभी तो आएगीफ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगेसीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगेये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बनाई जाएगीवो सुब्ह कभी तो आएगी 2 वो सुब्ह हमीं से आएगी जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे उस सुब्ह को हम ही लाएँगे वो सुब्ह हमीं से आएगी वो सुब्ह हमीं से आएगी मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जाएगी वो सुब्ह हमीं से आएगी संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगेबे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगेदुनिया अम्न और ख़ुश-हाली के फूलों से सजाई जाएगीवो सुब्ह हमीं से आएगी|-----------------------------------1vo sub.h kabhi to aa.egiin kaali sadiyon ke sar se jab raat ka anchal Dhalkegajab dukh ke badal pighlenge jab sukh ka sagar chhalkegajab ambar jhuum ke nachega jab dharti naghme ga.egivo sub.h kabhi to aa.egijis sub.h ki khatir jug jug se ham sab mar mar kar jiite hainjis sub.h ke amrit ki dhun men ham zahr ke pyale piite hain in bhuki pyasi ruhon par ik din to karam farma.egi vo sub.h kabhi to aa.egimaana ki abhi tere mere armanon ki qimat kuchh bhi nahin miTTi ka bhi hai kuchh mol magar insanon ki qimat kuchh bhi nahin insanon ki izzat jab jhuTe sikkon men na tauli ja.egivo sub.h kabhi to aa.egidaulat ke liye jab aurat ki ismat ko na becha ja.egachahat ko na kuchla ja.ega ghairat ko na becha ja.egaapne kaale kartuton par jab ye duniya sharma.egivo sub.h kabhi to aa.egibitenge kabhi to din akhir ye bhuuk ke aur bekari keTuTenge kabhi to but akhir daulat ki ijara-dari kejab ek anokhi duniya ki buniyad uTha.i ja.egivo sub.h kabhi to aa.egimajbur buDhapa jab suuni rahon ki dhuul na phankegama.asum laDakpan jab gandi galiyon men bhiik na mangegahaq mangne valon ko jis din suuli na dikha.i ja.egivo sub.h kabhi to aa.egifaqon ki chitaon par jis din insan na jala.e ja.engesinon ke dahakte dozakh men arman na jala.e ja.engeye narak se bhi gandi duniya jab sovarg bana.i ja.egivo sub.h kabhi to aa.egi2vo sub.h hamin se aa.egijab dharti karvaT badlegi jab qaid se qaidi chhuTengejab paap gharaunde phuTenge jab zulm ke bandhan TuTengeus sub.h ko ham hi la.enge vo sub.h hamin se aa.egivo sub.h hamin se aa.egimanhus samaji Dhanchon men jab zulm na paale ja.engejab haath na kaaTe ja.enge jab sar na uchhale ja.engejailon ke bina jab duniya ki sarkar chala.i ja.egivo sub.h hamin se aa.egisansar ke saare mehnat-kash kheton se milon se niklengebe-ghar be-dar be-bas insan tarik bilon se niklengeduniya amn aur khush-hali ke phulon se saja.i ja.egivo sub.h hamin se aa.egi.. Read more wo subah kabhi to ayegi sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
Parchhaiyan.. bySahir Ludhianvi August 8, 2023 जवान रात के सीने पे दूधिया आँचलमचल रहा है किसी ख़ाब-ए-मर्मरीं की तरहहसीन फूल हसीं पतियाँ हसीं शाख़ेंलचक रही हैं किसी जिस्म-ए-नाज़नीं की तरह फ़ज़ा में घुल से गए हैं उफ़ुक़ के नर्म ख़ुतूतज़मीं हसीन है ख़्वाबों की सरज़मीं की तरह तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैंकभी गुमान की सूरत कभी यक़ीं की तरह वो पेड़ जिन के तले हम पनाह लेते थेखड़े हैं आज भी साकित किसी अमीं की तरह उन्ही के साए में फिर आज दो धड़कते दिलख़मोश होंटों से कुछ कहने सुनने आए हैं न जाने कितनी कशाकश से कितनी काविश सेये सोते जागते लम्हे चुरा के लाए हैं यही फ़ज़ा थी यही रुत यही ज़माना थायहीं से हम ने मोहब्बत की इब्तिदा की थी धड़कते दिल से लरज़ती हुई निगाहों सेहुज़ूर-ए-ग़ैब में नन्ही सी इल्तिजा की थीकि आरज़ू के कँवल खिल के फूल हो जाएँदिल-ओ-नज़र की दुआएँ क़ुबूल हो जाएँ तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैंतुम आ रही हो ज़माने की आँख से बच कर नज़र झुकाए हुए और बदन चुराए हुएख़ुद अपने क़दमों की आहट से झेंपती डरती ख़ुद अपने साए की जुम्बिश से ख़ौफ़ खाए हुएतसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं रवाँ है छोटी सी कश्ती हवाओं के रुख़ परनदी के साज़ पे मल्लाह गीत गाता है तुम्हारा जिस्म हर इक लहर के झकोले सेमिरी खुली हुई बाहोँ में झूल जाता है तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैंमैं फूल टाँक रहा हूँ तुम्हारे जोड़े में तुम्हारी आँख मसर्रत से झुकती जाती हैन जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ ज़बान ख़ुश्क है आवाज़ रुकती जाती हैतसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं मिरे गले में तुम्हारी गुदाज़ बाहें हैंतुम्हारे होंटों पे मेरे लबों के साए हैं मुझे यक़ीं है कि हम अब कभी न बिछड़ेंगेतुम्हें गुमान कि हम मिल के भी पराए हैं तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं मिरे पलंग पे बिखरी हुई किताबों कोअदा-ए-इज्ज़-ओ-करम से उठा रही हो तुम सुहाग-रात जो ढोलक पे गाए जाते हैंदबे सुरों में वही गीत गा रही हो तुम तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं वो लम्हे कितने दिलकश थे वो घड़ियाँ कितनी प्यारी थींवो सेहरे कितने नाज़ुक थे वो लड़ियाँ कितनी प्यारी थीं बस्ती की हर इक शादाब गली ख़्वाबों का जज़ीरा थी गोयाहर मौज-ए-नफ़स हर मौज-ए-सबा नग़्मों का ज़ख़ीरा थी गोया नागाह लहकते खेतों से टापों की सदाएँ आने लगींबारूद की बोझल बू ले कर पच्छिम से हवाएँ आने लगीं ता'मीर के रौशन चेहरे पर तख़रीब का बादल फैल गयाहर गाँव में वहशत नाच उठी हर शहर में जंगल फैल गया मग़रिब के मोहज़्ज़ब मुल्कों से कुछ ख़ाकी-वर्दी-पोश आएइठलाते हुए मग़रूर आए लहराते हुए मदहोश आए ख़ामोश ज़मीं के सीने में ख़ेमों की तनाबें गड़ने लगींमक्खन सी मुलाएम राहों पर बूटों की ख़राशें पड़ने लगींफ़ौजों के भयानक बैंड तले चर्खों की सदाएँ डूब गईं जीपों की सुलगती धूल तले फूलों की क़बाएँ डूब गईंइंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगेचौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे बस्ती के सजीले शोख़ जवाँ बन बन के सिपाही जाने लगेजिस राह से कम ही लौट सके उस राह पे राही जाने लगेउन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई बरनाई भीमाओं के जवाँ बेटे भी गए बहनों के चहेते भाई भी बस्ती पे उदासी छाने लगी मेलों की बहारें ख़त्म हुईंआमों की लचकती शाख़ों से झूलों की क़तारें ख़त्म हुईं धूल उड़ने लगी बाज़ारों में भूक उगने लगी खलियानों मेंहर चीज़ दुकानों से उठ कर रू-पोश हुई तह-ख़ानों में बद-हाल घरों की बद-हाली बढ़ते बढ़ते जंजाल बनीमहँगाई बढ़ कर काल बनी सारी बस्ती कंगाल बनी चरवाहियाँ रस्ता भूल गईं पनहारियाँ पनघट छोड़ गईंकितनी ही कुँवारी अबलाएँ माँ बाप की चौखट छोड़ गईं अफ़्लास-ज़दा दहक़ानों के हल बैल बिके खलियान बिकेजीने की तमन्ना के हाथों जीने के सब सामान बिके कुछ भी न रहा जब बिकने को जिस्मों की तिजारत होने लगीख़ल्वत में भी जो ममनूअ' थी वो जल्वत में जसारत होने लगी तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं तुम आ रही हो सर-ए-शाम बाल बिखराएहज़ार-गूना मलामत का बार उठाए हुए हवस-परस्त निगाहों की चीरा-दस्ती सेबदन की झेंपती उर्यानियाँ छुपाए हुए तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं मैं शहर जा के हर इक दर पे झाँक आया हूँ किसी जगह मिरी मेहनत का मोल मिल न सका सितमगरों के सियासी क़िमार-ख़ाने में अलम-नसीब फ़रासत का मोल मिल न सका तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं तुम्हारे घर में क़यामत का शोर बरपा है महाज़-ए-जंग से हरकारा तार लाया है कि जिस का ज़िक्र तुम्हें ज़िंदगी से प्यारा था वो भाई नर्ग़ा-ए-दुश्मन में काम आया है तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं हर एक गाम पे बद-नामियों का जमघट है हर एक मोड़ पे रुस्वाइयों के मेले हैं न दोस्ती न तकल्लुफ़ न दिलबरी न ख़ुलूस किसी का कोई नहीं आज सब अकेले हैं तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं वो रहगुज़र जो मिरे दिल की तरह सूनी है न जाने तुम को कहाँ ले के जाने वाली है तुम्हें ख़रीद रहे हैं ज़मीर के क़ातिल उफ़ुक़ पे ख़ून-ए-तमन्ना-ए-दिल की लाली है तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वो शाम है अब तक याद मुझे चाहत के सुनहरे ख़्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे उस शाम मुझे मालूम हुआ खेतों की तरह इस दुनिया में सहमी हुई दो-शीज़ाओं की मुस्कान भी बेची जाती है उस शाम मुझे मालूम हुआ इस कार-गह-ए-ज़र्दारी में दो भोली-भाली रूहों की पहचान भी बेची जाती है उस शाम मुझे मालूम हुआ जब बाप की खेती छिन जाए ममता के सुनहरे ख़्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है उस शाम मुझे मालूम हुआ जब भाई जंग में काम आएँ सरमाए के क़हबा-ख़ाने में बहनों की जवानी बिकती है सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वो शाम है अब तक याद मुझे चाहत के सुनहरे ख़्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझेतुम आज हज़ारों मील यहाँ से दूर कहीं तन्हाई में या बज़्म-ए-तरब-आराई में मेरे सपने बुनती होंगी बैठी आग़ोश पराई में और मैं सीने में ग़म ले कर दिन-रात मशक़्क़त करता हूँ जीने की ख़ातिर मरता हूँ अपने फ़न को रुस्वा कर के अग़्यार का दामन भरता हूँ मजबूर हूँ मैं मजबूर हो तुम मजबूर ये दुनिया सारी है तन का दुख मन पर भारी है इस दौर में जीने की क़ीमत या दार-ओ-रसन या ख़्वारी है मैं दार-ओ-रसन तक जा न सका तुम जेहद की हद तक आ न सकीं चाहा तो मगर अपना न सकीं हम तो दो ऐसी रूहें हैं जो मंज़िल-ए-तस्कीं पा न सकें जीने को जिए जाते हैं मगर साँसों में चिताएँ जलती हैं ख़ामोश वफ़ाएँ जलती हैं संगीन हक़ाइक़-ज़ारों में ख़्वाबों की रिदाएँ जलती हैं और आज जब इन पेड़ों के तले फिर दो साए लहराए हैं फिर दो दिल मिलने आए हैं फिर मौत की आँधी उट्ठी है फिर जंग के बादल छाए हैं मैं सोच रहा हूँ इन का भी अपनी ही तरह अंजाम न हो इन का भी जुनूँ नाकाम न हो इन के भी मुक़द्दर में लिखी इक ख़ून में लिथड़ी शाम न हो सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वो शाम है अब तक याद मुझे चाहत के सुनहरे ख़्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे हमारा प्यार हवादिस की ताब ला न सका मगर उन्हें तो मुरादों की रात मिल जाए हमें तो कश्मकश-ए-मर्ग-ए-बे-अमाँ ही मिली उन्हें तो झूमती गाती हयात मिल जाए बहुत दिनों से है ये मश्ग़ला सियासत का कि जब जवान हों बच्चे तो क़त्ल हो जाएँ बहुत दिनों से ये है ख़ब्त हुक्मरानों का कि दूर दूर के मुल्कों में क़हत बो जाएँ बहुत दिनों से जवानी के ख़्वाब वीराँ हैं बहुत दिनों से सितम-दीदा शाह-राहों में निगार-ए-ज़ीस्त की इस्मत पनाह ढूँढती है चलो कि आज सभी पाएमाल रूहों से कहें कि अपने हर इक ज़ख़्म को ज़बाँ कर लें हमारा राज़ हमारा नहीं सभी का है चलो कि सारे ज़माने को राज़-दाँ कर लें चलो कि चल के सियासी मुक़ामिरों से कहें कि हम को जंग-ओ-जदल के चलन से नफ़रत है जिसे लहू के सिवा कोई रंग रास न आए हमें हयात के उस पैरहन से नफ़रत है कहो कि अब कोई क़ातिल अगर इधर आया तो हर क़दम पे ज़मीं तंग होती जाएगी हर एक मौज-ए-हवा रुख़ बदल के झपटेगी हर एक शाख़ रग-ए-संग होती जाएगी उठो कि आज हर इक जंग-जू से ये कह दें कि हम को काम की ख़ातिर कलों की हाजत है हमें किसी की ज़मीं छीनने का शौक़ नहीं हमें तो अपनी ज़मीं पर हलों की हाजत है कहो कि अब कोई ताजिर इधर का रुख़ न करे अब इस जगह कोई कुँवारी न बेची जाएगी ये खेत जाग पड़े उठ खड़ी हुईं फ़स्लें अब इस जगह कोई क्यारी न बेची जाएगी ये सर-ज़मीन है गौतम की और नानक की इस अर्ज़-ए-पाक पे वहशी न चल सकेंगे कभी हमारा ख़ून अमानत है नस्ल-ए-नौ के लिए हमारे ख़ून पे लश्कर न पल सकेंगे कभी कहो कि आज भी हम सब अगर ख़मोश रहे तो इस दमकते हुए ख़ाक-दाँ की ख़ैर नहीं जुनूँ की ढाली हुई एटमी बलाओं से ज़मीं की ख़ैर नहीं आसमाँ की ख़ैर नहीं गुज़िश्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार अजब नहीं कि ये तन्हाइयाँ भी जल जाएँ गुज़िश्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार अजब नहीं कि ये परछाइयाँ भी जल जाएँ तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं Read more parchhaiyan sahir lukhianvi bollyword poet amrita pritam talkhiyaan
Faraar.... bySahir Ludhianvi August 2, 2023 apne maazi ke tasavvur se hiraasaan houn mainapne guzre hue ayyaam se nafrat hai mujheapni bekar tamannaaon pe sharminda hounapni besood umeedon pe nadaamat hai mujhemere maazi ko andhere mein dabaa rahne domera maazi meri zillat ke sivaa kuchh bhi nahinmeri umeedon kaa haasil, meri kaavish ka silaaek benaam azeeyat ke sivaa kuchh bhi nahinkitni bekaar umeedon ka sahaaraa lekarmaine aivaan sajaaye the kisi ki Khaatirkitni berabt tamannaaon ke mubham Khaakeapne Khwaabon mein basaaye the kisi ki Khaatirmujhse ab meri muhabbat ke fasaane na kahomujhko kahne do k main ne unhein chaahaa hi nahinaur vo mast nigaahein jo mujhe bhool gayinmain ne un mast nigaahon ko saraahaa hi nahinmujhko kahne do k main aaj bhi jee saktaa hounishaq nakaam sahi, zindagi nakaam nahinunhein apnaane ki khwaaish, unhein paane ki talabshauq-e-bekaar sahi, sa’i-e-Gham-anjaam nahinvahi gesoo, vahi nazrein, vahi aariz, vahi jismmain jo chaahoun to mujhe aur bhi mil sakte hainvo kanval jinko kabhi unke liye khilna thaaunki nazron se bahut door bhi khil sakte hain------------------------------------------------------------------------------अपने माज़ी के तसव्वुर से हिरासाँ हूँ मैं अपने गुज़रे हुए अय्याम से नफ़रत है मुझे अपनी बे-कार तमन्नाओं पे शर्मिंदा हूँ अपनी बे-सूद उमीदों पे नदामत है मुझे मेरे माज़ी को अंधेरे में दबा रहने दो मेरा माज़ी मिरी ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं मेरी उम्मीदों का हासिल मिरी काविश का सिला एक बे-नाम अज़िय्यत के सिवा कुछ भी नहीं कितनी बे-कार उमीदों का सहारा ले कर मैं ने ऐवान सजाए थे किसी की ख़ातिर कितनी बे-रब्त तमन्नाओं के मुबहम ख़ाके अपने ख़्वाबों में बसाए थे किसी की ख़ातिर मुझ से अब मेरी मोहब्बत के फ़साने न कहो मुझ को कहने दो कि मैं ने उन्हें चाहा ही नहीं और वो मस्त निगाहें जो मुझे भूल गईं मैं ने उन मस्त निगाहों को सराहा ही नहीं मुझ को कहने दो कि मैं आज भी जी सकता हूँ इश्क़ नाकाम सही ज़िंदगी नाकाम नहीं इन को अपनाने की ख़्वाहिश उन्हें पाने की तलब शौक़-ए-बेकार सही सई-ए-ग़म-ए-अंजाम नहीं वही गेसू वही नज़रें वही आरिज़ वही जिस्म मैं जो चाहूँ तो मुझे और भी मिल सकते हैं वो कँवल जिन को कभी उन के लिए खिलना था उन की नज़रों से बहुत दूर भी खिल सकते हैं Read more sahir lukhianvi faraar bollyword poet amrita pritam talkhiyaan