18th century poet

All time most famous ghazals of daagh dehlvi,..

1- Tumhare khat mein naya ek salaam kis ka tha
Na tha raqeeb to aakhir wo naam kis ka tha

Wo qatl kar ke mujhe har kisi se puchte hain
Ye kaam kis ne kiya hai ye kaam kis ka tha

Wafa karenge nibahenge baat maanenge
Tumhe bhi yaad hai kuch ye kalaam kis ka tha

Raha na dil mein wo bedard aur dard raha
Muqeem kaun hua hai maqam kis ka tha

Na poochh-ghachh thi kisi ki wahan na aav-bhagat
Tumhari bazm mein kal ehtimaam kis ka tha

Tamaam bazm jise sun ke reh gayi mushtaq
Kaho wo tazkira-e-na-tamaam kis ka tha

Hamare khat ke to purze kiye padha bhi nahi
Suna jo tune ba-dil wo payaam kis ka tha

Uthayi kyun na qayamat adoo ke kuche mein
Lihaaz aap ko waqt-e-khiraam kis ka tha

Guzar gaya wo zamana kahun to kis se kahun
Khayaal dil ko mere subh o shaam kis ka tha

Humein to hazrat-e-wa'iz ki zid ne pilwayi
Yahan iraada-e-sharb-e-mudaam kis ka tha

Agarche dekhne wale tire hazaron the
Tabah-haal bohot zer-e-baam kis ka tha

Wo kaun tha ke tumhe jis ne bewafa jaana
Khayaal-e-khaam ye sauda-e-khaam kis ka tha

Inhi sifaat se hota hai aadmi mashhoor
Jo lutf-e-aam wo karte ye naam kis ka tha

Har ek se kehte hain kya 'Daagh' bewafa nikla
Ye poochhe un se koi wo ghulaam kis ka tha


2- Aap ka aitbaar kaun kare
Roz ka intezaar kaun kare

Zikr-e-mehr-o-wafa to hum karte
Par tumhe sharmasaar kaun kare

Ho jo us chashm-e-mast se be-khud
Phir use hoshiyar kaun kare

Tum to ho jaan ek zamane ki
Jaan tum par nisaar kaun kare

Aafat-e-rozgaar jab tum ho
Shikwa-e-rozgaar kaun kare

Apni tasbeeh rehne de zahid
Daana daana shumaar kaun kare

Hijr mein zeher kha ke mar jaun
Maut ka intezaar kaun kare

Aankh hai turk zulfon hai sayyaad
Dekhein dil ka shikaar kaun kare

Wa'da karte nahi ye kehte hain
Tujh ko umeed-waar kaun kare

'Daagh' ki shakl dekh kar bole
Aisi surat ko pyaar kaun kare


3- Uzr aane mein bhi hai aur bulaate bhi nahi
Bais-e-tark-e-mulaqat bataate bhi nahi

Muntazir hain dam-e-ruqhsat ki ye mar jaye to jaayein
Phir ye ehsaan ki hum chhod ke jaate bhi nahi

Sar uthao to sahi aankh milaao to sahi
Nasha-e-may bhi nahi neend ke maate bhi nahi

Kya kaha phir to kaho hum nahi sunte teri
Nahi sunte to hum aison ko sunaate bhi nahi

Khoob parda hai ke chilman se lage baithe hain
Saaf chhupte bhi nahi saamne aate bhi nahi

Mujh se laagar teri aankhon mein khatakte to rahe
Tujh se naazuk meri nazron mein samaate bhi nahi

Dekhte hi mujhe mehfil mein ye irshaad hua
Kaun baitha hai use log uthaate bhi nahi

Ho chuka qat' ta'alluq to jafaaein kyun hon
Jin ko matlab nahi rehta wo sataate bhi nahi

Zist se tang ho ai 'Daagh' to jeete kyun ho
Jaan pyaari bhi nahi jaan se jaate bhi nahi


4- Ghazab kiya tire wa'de pe aitbaar kiya
Tamaam raat qayamat ka intezaar kiya

Kisi tarah jo na us but ne aitbaar kiya
Meri wafa ne mujhe khoob sharmasaar kiya

Hansa hansa ke shab-e-wasl ashk-baar kiya
Tasalliyan mujhe de de ke be-qaraar kiya

Ye kis ne jalwa hamare sar-e-mazaar kiya
Ke dil se shor utha haaye be-qaraar kiya

Suna hai teg ko qaatil ne aab-daar kiya
Agar ye sach hai to be-shubah hum pe waar kiya

Na aaye raah pe wo izzat be-shumaar kiya
Shab-e-wisaal bhi main ne to intezaar kiya

Tujhe to wa'da-e-deedaar hum se karna tha
Ye kya kiya ki jahan ko umeed-waar kiya


5- Ajab apna haal hota jo wisaal-e-yaar hota
Kabhi jaan sadqe hoti kabhi dil nisaar hota

Koi fitna taa-qayamat na phir ashkaar hota
Tire dil pe kaash zaalim mujhe ikhtiyaar hota

Jo tumhari tarah tum se koi jhoote wa'de karta
Tumhi munsifi se keh do tumhe aitbaar hota

Gam-e-ishq mein maza tha jo use samajh ke khaate
Ye wo zeher hai ke aakhir may-e-khush-gawaar hota

Ye maza tha dil-lagi ka ke barabar aag lagti
Na tujhe qaraar hota na mujhe qaraar hota
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1- तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था

वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था

वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था

न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था

तमाम बज़्म जिसे सुन के रह गई मुश्ताक़
कहो वो तज़्किरा-ए-ना-तमाम किस का था

हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किए पढ़ा भी नहीं
सुना जो तू ने ब-दिल वो पयाम किस का था

उठाई क्यूँ न क़यामत अदू के कूचे में
लिहाज़ आप को वक़्त-ए-ख़िराम किस का था

गुज़र गया वो ज़माना कहूँ तो किस से कहूँ
ख़याल दिल को मिरे सुब्ह ओ शाम किस का था

हमें तो हज़रत-ए-वाइज़ की ज़िद ने पिलवाई
यहाँ इरादा-ए-शर्ब-ए-मुदाम किस का था

अगरचे देखने वाले तिरे हज़ारों थे
तबाह-हाल बहुत ज़ेर-ए-बाम किस का था

वो कौन था कि तुम्हें जिस ने बेवफ़ा जाना
ख़याल-ए-ख़ाम ये सौदा-ए-ख़ाम किस का था

इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आम वो करते ये नाम किस का था

हर इक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला
ये पूछे उन से कोई वो ग़ुलाम किस का था


2- आप का ए'तिबार कौन करे
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे

ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तो हम करते
पर तुम्हें शर्मसार कौन करे

हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद
फिर उसे होशियार कौन करे

तुम तो हो जान इक ज़माने की
जान तुम पर निसार कौन करे

आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो
शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे

अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद
दाना दाना शुमार कौन करे

हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊँ
मौत का इंतिज़ार कौन करे

आँख है तुर्क ज़ुल्फ़ है सय्याद
देखें दिल का शिकार कौन करे

वा'दा करते नहीं ये कहते हैं
तुझ को उम्मीद-वार कौन करे

'दाग़' की शक्ल देख कर बोले
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे


3- उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं

मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ
फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं

सर उठाओ तो सही आँख मिलाओ तो सही
नश्शा-ए-मय भी नहीं नींद के माते भी नहीं

क्या कहा फिर तो कहो हम नहीं सुनते तेरी
नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

मुझ से लाग़र तिरी आँखों में खटकते तो रहे
तुझ से नाज़ुक मिरी नज़रों में समाते भी नहीं

देखते ही मुझे महफ़िल में ये इरशाद हुआ
कौन बैठा है उसे लोग उठाते भी नहीं

हो चुका क़त्अ तअ'ल्लुक़ तो जफ़ाएँ क्यूँ हों
जिन को मतलब नहीं रहता वो सताते भी नहीं

ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं


4- ग़ज़ब किया तिरे वा'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया

किसी तरह जो न उस बुत ने ए'तिबार किया
मिरी वफ़ा ने मुझे ख़ूब शर्मसार किया

हँसा हँसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया
तसल्लियाँ मुझे दे दे के बे-क़रार किया

ये किस ने जल्वा हमारे सर-ए-मज़ार किया
कि दिल से शोर उठा हाए बे-क़रार किया

सुना है तेग़ को क़ातिल ने आब-दार किया
अगर ये सच है तो बे-शुब्ह हम पे वार किया

न आए राह पे वो इज्ज़ बे-शुमार किया
शब-ए-विसाल भी मैं ने तो इंतिज़ार किया

तुझे तो वादा-ए-दीदार हम से करना था
ये क्या किया कि जहाँ को उमीद-वार किया

ये दिल को ताब कहाँ है कि हो मआल-अंदेश
उन्हों ने वा'दा किया इस ने ए'तिबार किया

कहाँ का सब्र कि दम पर है बन गई ज़ालिम
ब तंग आए तो हाल-ए-दिल आश्कार किया

तड़प फिर ऐ दिल-ए-नादाँ कि ग़ैर कहते हैं
अख़ीर कुछ न बनी सब्र इख़्तियार किया

मिले जो यार की शोख़ी से उस की बेचैनी
तमाम रात दिल-ए-मुज़्तरिब को प्यार किया

भुला भुला के जताया है उन को राज़-ए-निहाँ
छुपा छुपा के मोहब्बत को आश्कार किया

न उस के दिल से मिटाया कि साफ़ हो जाता
सबा ने ख़ाक परेशाँ मिरा ग़ुबार किया

हम ऐसे महव-ए-नज़ारा न थे जो होश आता
मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होश्यार किया

हमारे सीने में जो रह गई थी आतिश-ए-हिज्र
शब-ए-विसाल भी उस को न हम-कनार किया

रक़ीब ओ शेवा-ए-उल्फ़त ख़ुदा की क़ुदरत है
वो और इश्क़ भला तुम ने ए'तिबार किया

ज़बान-ए-ख़ार से निकली सदा-ए-बिस्मिल्लाह
जुनूँ को जब सर-ए-शोरीदा पर सवार किया

तिरी निगह के तसव्वुर में हम ने ऐ क़ातिल
लगा लगा के गले से छुरी को प्यार किया

ग़ज़ब थी कसरत-ए-महफ़िल कि मैं ने धोके में
हज़ार बार रक़ीबों को हम-कनार किया

हुआ है कोई मगर उस का चाहने वाला
कि आसमाँ ने तिरा शेवा इख़्तियार किया

न पूछ दिल की हक़ीक़त मगर ये कहते हैं
वो बे-क़रार रहे जिस ने बे-क़रार किया

जब उन को तर्ज़-ए-सितम आ गए तो होश आया
बुरा हो दिल का बुरे वक़्त होश्यार किया

फ़साना-ए-शब-ए-ग़म उन को इक कहानी थी
कुछ ए'तिबार किया कुछ न ए'तिबार किया

असीरी दिल-ए-आशुफ़्ता रंग ला के रही
तमाम तुर्रा-ए-तर्रार तार तार किया

कुछ आ गई दावर-ए-महशर से है उम्मीद मुझे
कुछ आप ने मिरे कहने का ए'तिबार किया

किसी के इश्क़-ए-निहाँ में ये बद-गुमानी थी
कि डरते डरते ख़ुदा पर भी आश्कार किया

फ़लक से तौर क़यामत के बन न पड़ते थे
अख़ीर अब तुझे आशोब-ए-रोज़गार किया

वो बात कर जो कभी आसमाँ से हो न सके
सितम किया तो बड़ा तू ने इफ़्तिख़ार किया

बनेगा मेहर-ए-क़यामत भी एक ख़ाल-ए-सियाह
जो चेहरा 'दाग़'-ए-सियह-रू ने आश्कार किया


5- अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता

कोई फ़ित्ना ता-क़यामत न फिर आश्कार होता
तिरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता

जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता
तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता

ग़म-ए-इश्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खाते
ये वो ज़हर है कि आख़िर मय-ए-ख़ुश-गवार होता

ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता

न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता

तिरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ए'तिबार होता

ये वो दर्द-ए-दिल नहीं है कि हो चारासाज़ कोई
अगर एक बार मिटता तो हज़ार बार होता

गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी
मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता

मुझे मानते सब ऐसा कि अदू भी सज्दे करते
दर-ए-यार काबा बनता जो मिरा मज़ार होता

तुम्हें नाज़ हो न क्यूँकर कि लिया है 'दाग़' का दिल
ये रक़म न हाथ लगती न ये इफ़्तिख़ार होता

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All time most famous ghazals of Mir Taqi Mir..

1- Kya haqeeqat kahoon ke kya hai ishq
Haq-shanaason ke haan Khuda hai ishq

Dil laga ho to jee jahaan se utha
Maut ka naam pyaar ka hai ishq

Aur tadbeer ko nahi kuch dakh'l
Ishq ke dard ki dawa hai ishq

Kya dubaya moheet mein gham ke
Hum ne jaana tha aashna hai ishq

Ishq se jaa nahi koi khaali
Dil se le arsh tak bhara hai ishq

Kohkan kya pahaad kaatega
Parde mein zor-aazma hai ishq

Ishq hai ishq karne waalon ko
Kaisa kaisa wahm kiya hai ishq

Kaun maqsad ko ishq bin pahucha
Aarzoo ishq, mudda hai ishq

'Mīr' marna pade hai khuban par
Ishq mat kar ke bad bala hai ishq


2- Aavegi meri qabr se awaaz mere baad
Ubherenge ishq-e-dil se tere raaz mere baad

Jeena mera to tujh ko ghaneemat hai na-samajh
Kheenchega kaun phir ye tere naaz mere baad

Sham-e-mazaar aur ye soz-e-jigar mera
Har shab karenge zindagi na-saaz mere baad

Karta hoon main jo naale sar-anzaam bagh mein
Munh dekho phir karenge hum awaaz mere baad

Bin gul mua hi main to p tu ja ke lautiyo
Sehan-e-chaman mein ai par-e-parwaaz mere baad

Baitha hoon 'Mir' marne ko apne mein mustaid
Paida na honge mujh se bhi jaanbaaz mere baad


3- Ulti ho gayi sab tadbeeren kuch na dawa ne kaam kiya
Dekha is bimaari-e-dil ne aakhir kaam tamaam kiya

Ahd-e-jawani ro ro kaata, peeri mein leen aankhen moond
Ya’ni raat bahut the jaage, subah hui aaraam kiya

Harf nahi jaan-bakhshi mein uski khoobi apni kismat ki
Hum se jo pehle keh bheja, so marne ka paighaam kiya

Nahaq hum majbooron par ye tohmat hai mukhtaari ki
Chaahte hain so aap karein hain, hum ko abas badnaam kiya

Saare rind aubaash jahan ke tujh se sujood mein rehte hain
Baanke tedhe tirchhe teekhe sab ka tujh ko imaam kiya

Sarzad hum se be-adabi toh vahshat mein bhi kam hi hui
Koso uski ore gaye, par sajda har har gaam kiya

Kis ka Kaaba, kaisa Qibla, kaun Haram hai, kya ehram
Kuche ke uske baashindon ne sab ko yahin se salaam kiya

Shaikh jo hai masjid mein nanga, raat ko tha may-khaane mein
Jubba khirqah kurta topi, masti mein inaam kiya

Kaash ab burqa munh se utha de, warna phir kya haasil hai
Aankh munde par un ne go deedaar ko apne aam kiya

Yaan ke sapeed o siyah mein hum ko dakh’l jo hai so itna hai
Raat ko ro ro subah kiya ya din ko joon toon shaam kiya

Subah chaman mein usko kahin takleef-e-hawa le aayi thi
Rukh se gul ko mol liya, qamat se sarv ghulaam kiya

Sa’ad-e-seemeen dono uske haath mein la kar chhod diye
Bhoole uske qaul-o-qasam par, haaye khayaal-e-khaam kiya

Kaam hue hain saare zaa’e’ har saa’at ki samaajat se
Istighna ki chauguni un ne joon joon main ibraam kiya

Aise aahu-e-ram-khurdah ki vahshat khoni mushkil thi
Sehr kiya ejaz kiya jin logon ne tujh ko raam kiya

'Mir' ke deen-o-mazhab ko ab poochhte kya ho un ne to
Qashqa kheencha dair mein baitha kab ka tark-e-Islam kiya


4- Kya kahoon tum se main ke kya hai ishq
Jaan ka rog hai bala hai ishq

Ishq hi ishq hai jahan dekho
Saare aalam mein bhar raha hai ishq

Ishq hai tarz o taur ishq ke tain
Kahin banda kahin Khuda hai ishq

Ishq ma’ashooq, ishq aashiq hai
Ya’ni apna hi mubtala hai ishq

Gar parastish Khuda ki saabit ki
Kisu surat mein ho bhala hai ishq

Dilkash aisa kahan hai dushman-e-jaan
Muddai hai p mudda hai ishq

Hai humare bhi taur ka aashiq
Jis kisi ko kahin hua hai ishq

Koi khwahan nahi mohabbat ka
Tu kahe jins-e-na-rava hai ishq

'Mir'-ji zard hote jaate ho
Kya kahin tum ne bhi kiya hai ishq


5- Dekho to dil ki jaan se uthta hai
Ye dhuaan sa kahaan se uthta hai

Gaur kis diljale ki hai ye falak
Shola ek subah yahan se uthta hai

Khana-e-dil se zeenhaar na ja
Koi aise makaan se uthta hai

Naala sar kheenchta hai jab mera
Shor ek aasman se uthta hai

Ladti hai uski chashm-e-shokh jahan
Ek aashob wahan se uthta hai

Sudh le ghar ki bhi shola-e-aawaaz
Dood kuch aashiyan se uthta hai

Baithne kaun de hai phir usko
Jo tere aastaan se uthta hai

Yoon uthe aah us gali se hum
Jaise koi jahan se uthta hai

Ishq ek 'Mir' bhaari patthar hai
Kab ye tujh na-tawan se uthta hai
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1- क्या हक़ीक़त कहूं कि क्या है इश्क़
हक़-शनासों के हां ख़ुदा है इश्क़

दिल लगा हो तो जी जहाँ से उठा
मौत का नाम प्यार का है इश्क़

और तदबीर को नहीं कुछ दख़्ल
इश्क़ के दर्द की दवा है इश्क़

क्या डुबाया मुहीत में ग़म के
हम ने जाना था आश्ना है इश्क़

इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़

कोहकन क्या पहाड़ काटेगा
पर्दे में ज़ोर-आज़मा है इश्क़

इश्क़ है इश्क़ करने वालों को
कैसा कैसा बहम किया है इश्क़

कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुंचा
आरज़ू इश्क़ मुद्दआ है इश्क़

'मीर' मरना पड़े है ख़ूबां पर
इश्क़ मत कर कि बद बला है इश्क़


2- आवेगी मेरी क़ब्र से आवाज़ मेरे बा'द
उभरेंगे इश्क़-ए-दिल से तिरे राज़ मेरे बाद

जीना मिरा तो तुझ को ग़नीमत है ना-समझ
खींचेगा कौन फिर ये तिरे नाज़ मेरे बाद

शम-ए-मज़ार और ये सोज़-ए-जिगर मिरा
हर शब करेंगे ज़िंदगी ना-साज़ मेरे बाद

करता हूँ मैं जो नाले सर-अंजाम बाग़ में
मुँह देखो फिर करेंगे हम आवाज़ मेरे बाद

बिन गुल मुआ ही मैं तो प तू जा के लौटियो
सेहन-ए-चमन में ऐ पर-ए-पर्वाज़ मेरे बाद

बैठा हूँ 'मीर' मरने को अपने में मुस्तइद
पैदा न होंगे मुझ से भी जाँबाज़ मेरे बाद


3- उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया

हर्फ़ नहीं जाँ-बख़्शी में उस की ख़ूबी अपनी क़िस्मत की
हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया

नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया

सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया

सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया

किस का काबा कैसा क़िबला कौन हरम है क्या एहराम
कूचे के उस के बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया

शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया

काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल है
आँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया

याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना है
रात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया

सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी
रुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया

साअद-ए-सीमीं दोनों उस के हाथ में ला कर छोड़ दिए
भूले उस के क़ौल-ओ-क़सम पर हाए ख़याल-ए-ख़ाम किया

काम हुए हैं सारे ज़ाएअ' हर साअ'त की समाजत से
इस्तिग़्ना की चौगुनी उन ने जूँ जूँ मैं इबराम किया

ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया

'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया


4- क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़

इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो
सारे आलम में भर रहा है इश्क़

इश्क़ है तर्ज़ ओ तौर इश्क़ के तईं
कहीं बंदा कहीं ख़ुदा है इश्क़

इश्क़ मा'शूक़ इश्क़ आशिक़ है
या'नी अपना ही मुब्तला है इश्क़

गर परस्तिश ख़ुदा की साबित की
किसू सूरत में हो भला है इश्क़

दिलकश ऐसा कहाँ है दुश्मन-ए-जाँ
मुद्दई है प मुद्दआ है इश्क़

है हमारे भी तौर का आशिक़
जिस किसी को कहीं हुआ है इश्क़

कोई ख़्वाहाँ नहीं मोहब्बत का
तू कहे जिंस-ए-ना-रवा है इश्क़

'मीर'-जी ज़र्द होते जाते हो
क्या कहीं तुम ने भी किया है इश्क़


5- देख तो दिल कि जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है

गोर किस दिलजले की है ये फ़लक
शोला इक सुब्ह याँ से उठता है

ख़ाना-ए-दिल से ज़ीनहार न जा
कोई ऐसे मकाँ से उठता है

नाला सर खींचता है जब मेरा
शोर इक आसमाँ से उठता है

लड़ती है उस की चश्म-ए-शोख़ जहाँ
एक आशोब वाँ से उठता है

सुध ले घर की भी शोला-ए-आवाज़
दूद कुछ आशियाँ से उठता है

बैठने कौन दे है फिर उस को
जो तिरे आस्ताँ से उठता है

यूँ उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है

इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है

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Top 20 most famous Shayari of daagh dehlvi..

1- Khuda rakhay mohabbat ne kiye aabaad dono ghar,
Main unke dil mein rehta hoon, woh mere dil mein rehte hain.

2- Na jaana ki duniya se jaata hai koi,
Bohat der ki mehrbaan aate aate.

3- Sab log jidhur woh hain udhar dekh rahe hain,
Hum dekhne walon ki nazar dekh rahe hain.

4- Hum bhi kya zindagi guzar gaye,
Dil ki baazi laga ke haar gaye.

5- Yeh toh kahiye is khata ki kya saza,
Main jo keh doon aap par marta hoon main.

6- Tumhare khat mein naya ik salaam kiska tha,
Na tha raqeeb toh aakhir woh naam kiska tha.

7- Jali hain dhoop mein shaklein jo mahtab ki thin,
Khinchi hain kaanton pe jo pattiyan gulab ki thin.

8- Sau chaand bhi chamkenge toh kya baat banegi,
Tum aaye toh is raat ki aukat banegi.

9- Aap ka aitibar kaun kare,
Roz ka intezaar kaun kare.

10- Ghazab kiya tire waade pe aitibar kiya,
Tamaam raat qayamat ka intezaar kiya.

11- Zid har ik baat par nahi achi,
Dost ki dost maan lete hain.

12- Kehne deti nahi kuch muhn se mohabbat meri,
Lab pe reh jaati hai aa aa ke shikayat meri.

13- Khatir se ya lihaaz se, main maan toh gaya,
Jhoothi qasam se, aapka imaan toh gaya.

14- Is nahi ka koi ilaaj nahi,
Roz kehte hain aap aaj nahi.

15- Jab aankhon mein lagaata hoon toh chupke-chupke hans-hanskar,
Teri tasveer bhi kehati hai, soorat aisi hoti hai.

16- Humein didaar se marhoom rakhkar hai nazar dil par,
Paraya maal taako aur daulat apni rehne do.

17- Maysar humein khwaab-o-raahat kahaan,
Zara aankh jhapki sahar ho gayi.

18- Ae "Daag", bura maan na tu uske kahe ka,
Mashook ki gaali se toh izzat nahi jaati.

19- Hum toh us aankh ke hain dekhne waale, dekho,
Jismein shokhi hai bohot aur haya thodi si.

20- Mere fasane ko sun sun ke neend udti hai,
Duaen mujhko tere paasban dete hain.
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1- ख़ुदा रक्खे मोहब्बत ने किए आबाद दोनों घर
मैं उन के दिल में रहता हूँ वो मेरे दिल में रहते हैं

2- न जाना कि दुनिया से जाता है कोई
बहुत देर की मेहरबाँ आते आते

3- सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं

4- हम भी क्या ज़िंदगी गुज़ार गए
दिल की बाज़ी लगा के हार गए

5- ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा
मैं जो कह दूँ आप पर मरता हूँ मैं

6- तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किसका था

7- जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं
खिंची हैं काँटों पे जो पत्तियाँ गुलाब की थीं

8- सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी

9- आप का ए'तिबार कौन करे
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे

10- ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया

11- ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
दोस्त की दोस्त मान लेते हैं

12- कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी

13- ख़ातिर से या लिहाज़ से, मैं मान तो गया
झूठी क़सम से, आपका ईमान तो गया

14- इस नहीं का कोई इलाज नहीं
रोज़ कहते हैं आप आज नहीं

15- जब आँखों में लगाता हूँ तो चुपके-चुपके हंस-हंसकर
तेरी तस्वीर भी कहती है, सूरत ऐसी होती है

16- हमें दीदार से मरहूम रखकर है नज़र दिल पर
पराया माल ताको और दौलत अपनी रहने दो

17- मयस्सर हमें ख़्वाब-ओ-राहत कहाँ
ज़रा आँख झपकी सहर हो गई

18- ऐ "दाग़" बुरा मान ना तू उसके कहे का
माशूक की गाली से तो इज़्ज़त नहीं जाती

19- हम तो उस आंख के हैं देखने वाले, देखो
जिसमें शोख़ी है बहुत और हया थोड़ी सी

20- मेरे फसाने को सुन सुन के नींद उड़ती है
दुआएँ मुझको तेरे पासबान देते हैं

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Top 20 most famous Shayari of meer taqi meer..

1- Iqraar mein kahaan hai inkaar ki si khoobi,
Hota hai shauq ‘Ghalib’ uski nahi nahi par.

2- Naahaq hum majbooron par yeh tohmat hai mukhtari ki,
Chahte hain so aap karein hain hum ko abas badnaam kiya.

3- Wasl mein rang ud gaya mera,
Kya judaai ko mooh dikhauunga.

4- Na rakho kaan nazm-e-shaa’iraan-e-haal par itne,
Chalo tuk 'Meer' ko sunne ki moti se pirota hai.

5- ‘Meer’ sahib, zamaana naazuk hai,
Dono haathon se thaamiye dastaar.

6- Ohde se niklein kis tarah aashiq,
Ek ada uski hai hazaar-fareb.

7- Dil-kharaashi-o-jigar-chaaki-o-khoon-afshaani,
Hoon toh naakaam par rahte hain mujhe kaam bahut.

8- Laga aag paani ko, daude hai tu,
Yeh garmi teri is sharaarat ke baad.

9- Goondh ke goya patti gul ki woh tarteeb banayi hai,
Rang badan ka tab dekho jab choli bheege paseene mein.

10- Kya kahoon tum se main ki kya hai ishq,
Jaan ka rog hai, bala hai ishq.

11- Ishq mein jee ko sabr-o-taab kahaan,
Usse aankhein ladi toh khwaab kahaan.

12- Dilli mein aaj bheek bhi milti nahi unhein,
Tha kal talak dimaag jinhein taaj-o-takht ka.

13- Be-khudi le gayi kahaan hum ko,
Der se intezaar hai apna.

14- Patta patta, boota boota, haal humara jaane hai,
Jaane na jaane, gul hi na jaane, baagh toh saara jaane hai.

15- Ulti ho gayi sab tadbeerein, kuch na dawa ne kaam kiya,
Dekha is beemari-e-dil ne aakhir kaam tamaam kiya.

16- Yeh fann-e-ishq hai, aaye usse teenat mein jiski ho,
Tu zaahid peer-e-nabaaligh hai, be-teh tujhko kya aaye.

17- Rote phirte hain saari saari raat,
Ab yahi rozgaar hai apna.

18- Koi tum sa bhi kaash tum ko mile,
Mudda’aa humko inteqaam se hai.

19- Mere sang-e-mazaar par Farhad,
Rakh ke teshah kahe hai, “ya ustaad!”

20- Yaar ne hum se be-adayi ki,
Wasl ki raat mein ladaai ki.
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1- इक़रार में कहाँ है इंकार की सी ख़ूबी
होता है शौक़ ग़ालिब उस की नहीं नहीं पर

2- नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया

3- वस्ल में रंग उड़ गया मेरा
क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा

4- न रक्खो कान नज़्म-ए-शाइ'रान-ए-हाल पर इतने
चलो टुक 'मीर' को सुनने कि मोती से पिरोता है

5- 'मीर' साहिब ज़माना नाज़ुक है
दोनों हाथों से थामिए दस्तार

6- ओहदे से निकलें किस तरह आशिक़
एक अदा उसकी है हज़ार-फ़रेब

7- दिल-ख़राशी-ओ-जिगर-चाकी-ओ-ख़ूँ-अफ़्शानी
हूँ तो नाकाम प रहते हैं मुझे काम बहुत

8- लगा आग पानी को दौड़े है तू
ये गर्मी तेरी इस शरारत के बाद

9- गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई है
रंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में

10- क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़

11- इश्क़ में जी को सब्र ओ ताब कहाँ
उस से आँखें लड़ीं तो ख़्वाब कहाँ

12- दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हें
था कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का

13- बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतिज़ार है अपना

14- पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है

15- उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

16- ये फ़न्न-ए-इश्क़ है आवे उसे तीनत में जिस की हो
तू ज़ाहिद पीर-ए-नाबालिग़ है बे-तह तुझ को क्या आवे

17- रोते फिरते हैं सारी सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना

18- कोई तुम सा भी काश तुम को मिले
मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है

19- मेरे संग-ए-मज़ार पर फ़रहाद
रख के तेशा कहे है या उस्ताद

20- यार ने हम से बे-अदाई की
वस्ल की रात में लड़ाई की
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Arzuen hazar rakhte hain..

arzuen hazar rakhte hain
to bhi ham dil ko maar rakhte hain

barq kam-hausla hai ham bhi to
dilak-e-be-qarar rakhte hain

ghair hi maurid-e-inayat hai
ham bhi to tum se pyaar rakhte hain

na nigah ne payam ne vaada
naam ko ham bhi yaar rakhte hain

ham se ḳhush-zamzama kahan yuun to
lab o lahja hazar rakhte hain

choTTe dil ke hain butan mashhur
bas yahi e'tibar rakhte hain

phir bhi karte hain 'mir' sahab ishq
hain javan iḳhtiyar rakhte hain
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आऱ्ज़ुएँ हज़ार रखते हैं
तो भी हम दिल को मार रखते हैं

बर्क कम-हौसला है हम भी तो
दिलक-ए-बे-करार रखते हैं

ग़ैर ही मुअरिद-ए-इनायत है
हम भी तो तुम से प्यार रखते हैं

ना निगाह ने पैगाम ने वादा
नाम को हम भी यार रखते हैं

हम से ख़ुश-ज़मज़मा कहाँ यूँ तो
लब ओ लहजा हज़ार रखते हैं

छोटे दिल के हैं बुतां मशहूर
बस यही एतिबार रखते हैं

फिर भी करते हैं 'मीर' साहब इश्क़
हैं जवां इख़्तियार रखते हैं


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