कोई हालत नहीं ये हालत है.. byJaun Elia November 5, 2024 कोई हालत नहीं ये हालत हैये तो आशोब-नाक सूरत हैअंजुमन में ये मेरी ख़ामोशीबुर्दबारी नहीं है वहशत हैतुझ से ये गाह-गाह का शिकवाजब तलक है बसा ग़नीमत हैख़्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईंये अज़िय्यत बड़ी अज़िय्यत हैलोग मसरूफ़ जानते हैं मुझेयाँ मिरा ग़म ही मेरी फ़ुर्सत हैतंज़ पैराया-ए-तबस्सुम मेंइस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत हैहम ने देखा तो हम ने ये देखाजो नहीं है वो ख़ूबसूरत हैवार करने को जाँ-निसार आएँये तो ईसार है 'इनायत हैगर्म-जोशी और इस क़दर क्या बातक्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत हैअब निकल आओ अपने अंदर सेघर में सामान की ज़रूरत हैआज का दिन भी 'ऐश से गुज़रासर से पा तक बदन सलामत है Read more jaun elia pakistani poet 20th century poet
Kitne aish se rehte honge kitne itrate honge.. byJaun Elia August 15, 2023 कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैंमेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब थाआने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगायूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों कावो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगेया'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे ------------------------------------Kitne aish se rehte honge kitne itrate hongeJane kaise log wo honge jo us ko bhaate hongeUs ki yaad ki baad-e-saba mein aur to kya hota hogaYoon hi mere baal hain bikhre aur bikhar jaate hongeWo jo na aane wala hai na us se humko matlab thaAane walon se kya matlab aate hain aate hongeYaaron kuchh to haal sunao us ki qayamat baahon kaWo jo simat-te honge un mein wo to mar jate hongeBand rahe jin ka darwaaza aise gharon ki mat poochhoDeeware gir jaati hongi aangan reh jaate hongeMeri saans ukhadte hi sab bain karenge ro’engeYaani mere baad bhi yaani saans liye jaate honge Read more kitne aish se rehte honge jaun elia pakistani poet 20th century poet
chalo bad-e-bahari ja rahi hai.. byJaun Elia August 14, 2023 चलो बाद-ए-बहारी जा रही हैपिया-जी की सवारी जा रही हैशुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ से तमन्ना की अमारी जा रही है फ़ुग़ाँ ऐ दुश्मन-ए-दार-ए-दिल-ओ-जाँ मिरी हालत सुधारी जा रही है है पहलू में टके की इक हसीना तिरी फ़ुर्क़त गुज़ारी जा रही है जो इन रोज़ों मिरा ग़म है वो ये है कि ग़म से बुर्दबारी जा रही है है सीने में अजब इक हश्र बरपा कि दिल से बे-क़रारी जा रही है मैं पैहम हार कर ये सोचता हूँ वो क्या शय है जो हारी जा रही है दिल उस के रू-ब-रू है और गुम-सुम कोई अर्ज़ी गुज़ारी जा रही है वो सय्यद बच्चा हो और शैख़ के साथ मियाँ इज़्ज़त हमारी जा रही है है बरपा हर गली में शोर-ए-नग़्मा मिरी फ़रियाद मारी जा रही है वो याद अब हो रही है दिल से रुख़्सत मियाँ प्यारों की प्यारी जा रही है दरेग़ा तेरी नज़दीकी मियाँ-जान तिरी दूरी पे वारी जा रही है बहुत बद-हाल हैं बस्ती तिरे लोग तो फिर तू क्यूँ सँवारी जा रही है तिरी मरहम-निगाही ऐ मसीहा ख़राश-ए-दिल पे वारी जा रही है ख़राबे में अजब था शोर बरपा दिलों से इंतिज़ारी जा रही है ---------------------------------------chalo bad-e-bahari ja rahi haipiya-ji ki savari ja rahi hai shumal-e-javedan-e-sabz-e-jan se tamanna ki amari ja rahi hai fughan ai dushman-e-dar-e-dil-o-jan miri halat sudhari ja rahi hai hai pahlu men Take ki ik hasina tiri furqat guzari ja rahi hai jo in rozon mira gham hai vo ye hai ki gham se burdbari ja rahi hai hai siine men ajab ik hashr barpa ki dil se be-qarari ja rahi hai main paiham haar kar ye sochta huun vo kya shai hai jo haari ja rahi hai dil us ke ru-ba-ru hai aur gum-sum koi arzi guzari ja rahi hai vo sayyad bachcha ho aur shaikh ke saath miyan izzat hamari ja rahi hai hai barpa har gali men shor-e-naghma miri fariyad maari ja rahi hai vo yaad ab ho rahi hai dil se rukhsat miyan pyaron ki pyari ja rahi hai daregha teri nazdiki miyan-jantiri duuri pe vaari ja rahi hai bahut bad-hal hain basti tire logto phir tu kyuun sanvari ja rahi hai tiri marham-nigahi ai masihakharash-e-dil pe vaari ja rahi hai kharabe men ajab tha shor barpadilon se intizari ja rahi hai Read more jaun elia pakistani poet 20th century poet
Uske pahlu se lag ke chalte hain... byJaun Elia August 12, 2023 उस के पहलू से लग के चलते हैं हम कहीं टालने से टलते हैंबंद है मय-कदों के दरवाज़ेहम तो बस यूँही चल निकलते हैंमैं उसी तरह तो बहलता हूँऔर सब जिस तरह बहलते हैंवो है जान अब हर एक महफ़िल कीहम भी अब घर से कम निकलते हैंक्या तकल्लुफ़ करें ये कहने मेंजो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैंहै उसे दूर का सफ़र दर-पेशहम सँभाले नहीं सँभलते हैंशाम फ़ुर्क़त की लहलहा उठीवो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैंहै अजब फ़ैसले का सहरा भीचल न पड़िए तो पाँव जलते हैंहो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाददेखने वाले हाथ मलते हैंतुम बनो रंग तुम बनो ख़ुशबूहम तो अपने सुख़न में ढलते हैं------------------------------------------Us Ke Pehloo Se Lag Ke Chalte HainHum Kahin Taalney Se Talte Hain.Main Usi Tarah To Bahalta HoonAur Sab Jis Tarah Bahalte Hain.Woh Hai Jaan Ab Har Ek Mehfil KiHum Bhi Ab Ghar Se Kab Nikalte Hain.Kya Takkaluff Karen Ye Kehne MeinJo Bhi Khush Hai Hum Us Se Jalte Hain.Hai Usey Door Ka Safar Dar-PeshHum Sambhaaley Nahin Sambhalte Hain.Hai Azaab Faisle Ka Sehraa BhiChal Na Pariye To Paaon Jalte Hain.Ho Raha Hoon Main Kis Tarah BarbaadDekhne Waale Haath Malte Hain.Tum Bano Rang, Tum Bano KhushbooHum To Apne Sukhan Mein Dhalte Hain. Read more uske pehlu me jaun elia pakistani poet 20th century poet
tum jab aaogi to khoya hua paogi mujhe-RAMZ.. byJaun Elia August 11, 2023 तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझेमेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहींमेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हेंमेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहींइन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ परइन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहनमुज़्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम नहीं पा सकताज़िंदगी में कभी आराम नहीं पा सकता----------------------------------tum jab aaogi to khoya hua paogi mujhemeri tanha.i men khvabon ke siva kuchh bhi nahinmere kamre ko sajane ki tamanna hai tumhenmere kamre men kitabon ke siva kuchh bhi nahinin kitabon ne baDa zulm kiya hai mujh parin men ik ramz hai jis ramz ka maara hua zehnmuzhda-e-ishrat-e-anjam nahin pa saktazindagi men kabhi aram nahin pa sakta Read more jaun elia pakistani poet 20th century poet
yeh gham kya dil ki aadat hai nahin toh.. byJaun Elia August 11, 2023 ये ग़म क्या दिल की आदत है? नही तो,किसी से कुछ शिकायत है? नही तोहै वो एक ख्वाब-ए-बे-ताबीर,उसे भूला देने की नीयत है? नही तोकिसी के बिन , किसी की याद के बिन,जिये जाने की हिम्मत है? नही तोकिसी सूरत भी दिल लगता नही? हां,तो कुछ दिन से ये हालात है? नही तोतुझे जिसने कही का भी नही रखा,वो एक जाति सी वहशत है? नही तोतेरे इस हाल पर है सब को हैरत, तुझे भी इस पे हैरत है? नही तोहम-आहंगी नही दुनिया से तेरी,तुझे इस पर नदामत है? नही तोवो दरवेशी जो तज कर आ गया…..तूयह दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तोहुआ जो कुछ यही मक़सूम था क्या?यही सारी हिकायत है? नही तोअज़ीयत-नाक उम्मीदों से तुझको,अमन पाने की हसरत है? नही तोतू रहता है ख्याल-ओ-ख्वाब में गम,तो इस वजह से फुरसत है? नही तोवहां वालों से है इतनी मोहोब्बत,यहां वालों से नफरत है? नही तोसबब जो इस जुदाई का बना है,वो मुझसे खुबसूरत है? नही तो--------------------------------------------Yeh gham kya dil ki aadat hai? nahin to Kisi se kuch shikaayat hai? nahin toHai woh ek khwaab-e-be-taabeer iskoBhula dene ki neeyat hai? nahin toKisi ke bin, kisi ki yaad ke bin Jiye jaane ki himmat hai? nahin to Kisi soorat bhi dil lagta nahin? haanTo kuch din se yeh haalat hai? nahin to Tujhe jisne kahin ka bhi na rakhaWoh ek zaati si wehshat hai? nahin toTere is haal par hai sab ko hairat Tujhe bhi is pe hairat hai? nahin toHum-aahangi nahin duniya se teri Tujhe is par nadaamat hai? nahin toWo darweshi jo taz kar aa gya….tuYah daulat uski keemat hai? nahin toHua jo kuch yehi maqsoom tha kya? Yahi saari hikaayat hai? nahin toAzeeyat-naak ummeedon se tujhkoAman paane ki hasrat hai? nahin toTu rehta hai khayaal-o-khwaab mein gum To is wajah se fursat hai? nahin toWahan waalon se hai itni mohabbatYahaan waalon se nafrat hai? nahin to Sabab jo is judaai ka bana hai Wo mujh se khubsoorat hai? nahin to. Read more nahin toh jaun elia pakistani poet 20th century poet
Tum Haqeeqat Nahin Ho Hasrat Ho.. byJaun Elia August 10, 2023 तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत होजो मिले ख़्वाब में वो दौलत होतुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबूऔर इतने ही बेमुरव्वत होतुम हो पहलू में पर क़रार नहींयानी ऐसा है जैसे फुरक़त होहै मेरी आरज़ू के मेरे सिवातुम्हें सब शायरों से वहशत होकिस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँतुम मेरी ज़िन्दगी की आदत होकिसलिए देखते हो आईनातुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत होदास्ताँ ख़त्म होने वाली हैतुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो--------------------------------Tum Haqeeqat Nahin Ho Hasrat HoJo Mile Khwaab Mein woh Daulat HoMain Tumhaare Hi Dam Se Zinda HoonMar Hi Jaaun Jo Tum Se Fursat HoTum Ho Khushbu Ke Khwaab Ki KhushbuAur Utni Hi, Be-Murawwat HoTum Ho Pahlu Mein Par Qaraar NahinYani Aisa Hai Jaise Furqat HoTum Ho Angdaai Rang-O-Nikhat KiKaise Angdaai Se Shikaayat HoKis Tarah Chhor Doon Tumhein JaanaanTum Meri Zindagi Ki Aadat HoKis Liye Dekhti Ho AayeenaTum To Khud Se Bhi Khoobsoorat HoDaastaan Khatm Hone Waali HaiTum Meri Aakhri Muhabbat Ho Read more tum haqiqat ho jaun elia pakistani poet 20th century poet
umr guzregi imtihan mein kya.. byJaun Elia August 8, 2023 उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्यादाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या मेरी हर बात बे-असर ही रहीनुक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या मुझ को तो कोई टोकता भी नहींयही होता है ख़ानदान में क्या अपनी महरूमियाँ छुपाते हैंहम ग़रीबों की आन-बान में क्या ख़ुद को जाना जुदा ज़माने सेआ गया था मिरे गुमान में क्या शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंदनहीं नुक़सान तक दुकान में क्या ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़तू नहाती है अब भी बान में क्या बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ मेंआबले पड़ गए ज़बान में क्या ख़ामुशी कह रही है कान में क्याआ रहा है मिरे गुमान में क्या दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुतख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या वो मिले तो ये पूछना है मुझेअब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या यूँ जो तकता है आसमान को तूकोई रहता है आसमान में क्या है नसीम-ए-बहार गर्द-आलूदख़ाक उड़ती है उस मकान में क्या ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ताएक ही शख़्स था जहान में क्या -------------------------------umr guzregi imtihan men kyadaagh hi denge mujh ko daan men kya meri har baat be-asar hi rahinuqs hai kuchh mire bayan men kya mujh ko to koi Tokta bhi nahinyahi hota hai khandan men kya apni mahrumiyan chhupate hainham gharibon ki an-ban men kya khud ko jaana juda zamane seaa gaya tha mire guman men kya shaam hi se dukan-e-did hai bandnahin nuqsan tak dukan men kya ai mire sub.h-o-sham-e-dil ki shafaqtu nahati hai ab bhi baan men kya bolte kyuun nahin mire haq menaable paD ga.e zaban men kya khamushi kah rahi hai kaan men kyaaa raha hai mire guman men kya dil ki aate hain jis ko dhyan bahutkhud bhi aata hai apne dhyan men kya vo mile to ye puchhna hai mujheab bhi huun main tiri amaan men kya yuun jo takta hai asman ko tukoi rahta hai asman men kya hai nasim-e-bahar gard-aludkhaak uDti hai us makan men kya ye mujhe chain kyuun nahin paDtaek hi shakhs tha jahan men kya Read more jaun elia pakistani poet 20th century poet
naya ek rishta paida kyun karen hum.. byJaun Elia August 3, 2023 नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम सुना दें इस्मत-ए-मरियम का क़िस्सा पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम ज़ुलेख़ा-ए-अज़ीज़ाँ बात ये है भला घाटे का सौदा क्यों करें हम हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम किया था अह्द जब लम्हों में हम ने तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम जो इक नस्ल-ए-फ़रोमाया को पहुँचे वो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्या भला अंधों से पर्दा क्यों करें हम हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचा तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम ये बस्ती है मुसलमानों की बस्ती यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम -------------------------------------naya ik rishta paida kyuun karen ham bichhadna hai to jhagda kyuun karen ham khamoshi se ada ho rasm-e-duri koi hangama barpa kyuun karen ham ye kaafi hai ki ham dushman nahin hain vafa-dari ka da.ava kyuun karen ham vafa ikhlas qurbani mohabbat ab in lafzon ka pichha kyuun karen ham suna den ismat-e-mariyam ka qissa par ab is baab ko va kyon karen ham zulekha-e-azizan baat ye hai bhala ghaTe ka sauda kyon karen ham hamari hi tamanna kyuun karo tum tumhari hi tamanna kyuun karen ham kiya tha ahd jab lamhon men ham ne to saari umr iifa kyuun karen ham uTha kar kyon na phenken saari chizen faqat kamron men Tahla kyon karen ham jo ik nasl-e-faromaya ko pahunche vo sarmaya ikaTTha kyon karen ham nahin duniya ko jab parva hamari to phir duniya ki parva kyuun karen ham barahna hain sar-e-bazar to kya bhala andhon se parda kyon karen ham hain bashinde usi basti ke ham bhi so khud par bhi bharosa kyon karen ham chaba len kyon na khud hi apna dhancha tumhen ratib muhayya kyon karen ham padi rahne do insanon ki lashen zamin ka bojh halka kyon karen ham ye basti hai musalmanon ki basti yahan kar-e-masiha kyuun karen ham.. Read more naya rista jaun elia pakistani poet 20th century poet