Jahan bhar ki tamam aankhein nichod kar jitna nam banega .. byUmair Najmi August 13, 2023 जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगाये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगामैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ'राना मुबालग़ा हैमिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगाहमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगीये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगातो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से क़ब्लमिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगामुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसाशदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगासुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैंबना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगाकि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैंये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ' रक़्बा हरम बनेगामैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपनासदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगासफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा Read more Tamam aankhein umair najmi young poet pakistani poet