चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम
और कुछ देर सितम सह लें तड़प लें रो लें
अपने अज्दाद की मीरास है माज़ूर हैं हम
जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
लेकिन अब ज़ुल्म की मीआद के दिन थोड़े हैं
इक ज़रा सब्र कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं
अरसा-ए-दहर की झुलसी हुई वीरानी में
हम को रहना है पे यूँही तो नहीं रहना है
अजनबी हाथों का बे-नाम गिराँ-बार सितम
आज सहना है हमेशा तो नहीं सहना है
ये तिरे हुस्न से लिपटी हुई आलाम की गर्द
अपनी दो रोज़ा जवानी की शिकस्तों का शुमार
चाँदनी रातों का बेकार दहकता हुआ दर्द
दिल की बे-सूद तड़प जिस्म की मायूस पुकार
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़.
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chand roz aur miri jaan faqat chand hi roz
zulm ki chhanv men dam lene pe majbur hain ham
aur kuchh der sitam sah len taDap len ro len
apne ajdad ki miras hai mazur hain ham
jism par qaid hai jazbat pe zanjiren hain
fikr mahbus hai guftar pe taziren hain
apni himmat hai ki ham phir bhi jiye jaate hain
zindagi kya kisi muflis ki qaba hai jis men
har ghaDi dard ke paivand lage jaate hain
lekin ab zulm ki mi.ad ke din thoDe hain
ik zara sabr ki fariyad ke din thoDe hain
arsa-e-dahr ki jhulsi hui virani men
ham ko rahna hai pe yunhi to nahin rahna hai
ajnabi hathon ka be-nam giran-bar sitam
aaj sahna hai hamesha to nahin sahna hai
ye tire husn se lipTi hui alam ki gard
apni do roza javani ki shikaston ka shumar
chandni raton ka bekar dahakta hua dard
dil ki be-sud taDap jism ki mayus pukar
chand roz aur miri jaan faqat chand hi roz