1. kar loonga jama daulat o zar us ke baad kya..

कर लूँगा जम्अ दौलत-ओ-ज़र उस के बाद क्या
ले लूँगा शानदार सा घर उस के बाद क्या

मय की तलब जो होगी तो बन जाऊँगा मैं रिन्द
कर लूँगा मयकदों का सफ़र उस के बाद क्या

होगा जो शौक़ हुस्न से राज़-ओ-नियाज़ का
कर लूँगा गेसुओं में सहर उस के बाद क्या

शे'र-ओ-सुख़न की ख़ूब सजाऊँगा महफ़िलें
दुनिया में होगा नाम मगर उस के बाद क्या

मौज आएगी तो सारे जहाँ की करूँगा सैर
वापस वही पुराना नगर उस के बाद क्या

इक रोज़ मौत ज़ीस्त का दर खटखटाएगी
बुझ जाएगा चराग़-ए-क़मर उस के बाद क्या

उठी थी ख़ाक, ख़ाक से मिल जाएगी वहीं
फिर उस के बाद किस को ख़बर उस के बाद क्या

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kar loon ga jama daulat o zar, us ke baad kya ?
le loon ga shandaar sa ghar, , us ke baad kya ?

mai ki talab jo hogi to ban jaon ga main rind
kar loon ga maikadon ka safar, us ke baad kya ?

hoga jo shauq husn se raaz o niaz ka
kar loon ga gesuyon main sahar, us ke baad kya ?

sher o sukhan ki khoob sajaon ga mehfil-en
duniya main ho ga naam magar, us ke baad kya ?

mauj aye gi to saare jahan ki karoon ga sair
wapis wohi purana nagar, us ke baad kya ?

ik roz maut zeest ka dar khaTkhaTaye gi
bujh jaye ga charagh e qamar, us ke baad kya ?

uthi thi khaak, khaak se mil jaye gi wahin
phir us ke baad kis ko khabar, us ke baad kya ?

- Qamar Jalalabadi
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2. Main aur meri tanhai Aksar ye batein karte hain..

मै और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते है..
तुम होती तो कैसा होता
तुम ये केह्ती, तुम वो केह्ती
तुम इस बात पे हैरान होती, तुम उस बात पे कितनी हस्ती
तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता
मै और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते है

ये रात है या तेरी जुल्फ़े खुली हुई है
है चांदनी, या तुम्हारी नजरो से मेरी रातें धुली हुई है
ये चांद है या तुम्हारा कंगन, सितारे है या तुम्हारा आंचल
हवा का झोंका है, या तुम्हारे बदन कि खुशबू
ये पत्तियो कि है सरसराहट, कि तुमने चुपके से कुछ कहा है
ये सोचता हु मै कबसे गुमसुम,
जबकी मुझको भी ये खबर है कि तुम नही हो, कही नही हो
मगर ये दिल है कि केह रहा है तुम यही हो, यही कही हो

मजबूर ये हालत इधर भी है उधर भी
तनहाई कि एक रात इधर भी है उधर भी
केहने को बहोत कुछ है पार किससे कहे हम
कब तक युही खामोश रहे और सहे हम
दिल केहता है दुनिया कि हर एक रसम उठा दे
दीवार जो हम दोनो मै है आज गिरा दे
क्यू दिल मै सुलगते रहे, लोगो को बता दे,
हा हमको मोहाब्बत है, मोहाब्बत है, मोहाब्बत!
अब दिल मै यही बात इधर भी है उधर भी है..!

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Main aur meri tanhai
Aksar ye batein karte hain
Tum hoti to kaisa hota
tu yeh kahti tum woh kahti
Tum is baat pe hairan hoti
tum us baat pe kitni hasti
tum hoti to aisa hota tum hoti to waisa hota
Main aur meri tanhai aksar yeh baten karte hain

Yeh raat hai ya teri julfe khuli hui hain hai chandani
ya tumhari nazron se meri raatein dhooli hui hain
Yeh chand hai ya tumhara kangan
sitarain hain ya tumhara aanchal
Hawa ka jhoka hai ya tumhare badan ki khusboo
Yeh pattiyon ki hai sarsarahat ki tumne
chupke se kuch kaha hai
Yeh sochta hoon main kabse gumsum
jabki mujhko bhi yeh khabar hai
Ki tum nahi ho kahin nahi ho
Margar yeh dil hai ki kah raha hai
ki tum yahin ho yahin kahin ho

Majboor yeh haalat edhar bhi hai udhar bhi
Tanhai ki ek raat edhar bhi hai udhar bhi
Kahne ko bahut kuch hai magar kisse kahain hum
Kab tak yuhin khamosh rahein aur sahe hum
Dil kahta hai duniya ki har ek rasm utha dein
Deewar jo hum dono mein hai aaj gira dein
Kyun dil mein sulagte rahain, logo ko bata dein
HAN HUMKO MOHABBAT HAI, 
MOHABBAT HAI, MOHABBAT
Aub dil mein yahi baat edhar bhi hai udhar bhi.
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3. Jindagi se darte ho - Noon Meem Rashid..

ज़िंदगी से डरते हो!
ज़िंदगी तो तुम भी हो ज़िंदगी तो हम भी हैं!
ज़िंदगी से डरते हो?

आदमी से डरते हो
आदमी तो तुम भी हो आदमी तो हम भी हैं
आदमी ज़बाँ भी है आदमी बयाँ भी है
उस से तुम नहीं डरते!

हर्फ़ और मअनी के रिश्ता-हा-ए-आहन से आदमी है वाबस्ता
आदमी के दामन से ज़िंदगी है वाबस्ता
उस से तुम नहीं डरते

''अन-कही'' से डरते हो
जो अभी नहीं आई उस घड़ी से डरते हो
उस घड़ी की आमद की आगही से डरते हो

पहले भी तो गुज़रे हैं
दौर ना-रसाई के ''बे-रिया'' ख़ुदाई के
फिर भी ये समझते हो हेच आरज़ू-मंदी
ये शब-ए-ज़बाँ-बंदी है रह-ए-ख़ुदा-वंदी
तुम मगर ये क्या जानो
लब अगर नहीं हिलते हाथ जाग उठते हैं
हाथ जाग उठते हैं राह का निशाँ बन कर
नूर की ज़बाँ बन कर
हाथ बोल उठते हैं सुब्ह की अज़ाँ बन कर

रौशनी से डरते हो
रौशनी तो तुम भी हो रौशनी तो हम भी हैं
रौशनी से डरते हो
शहर की फ़सीलों पर
देव का जो साया था पाक हो गया आख़िर
रात का लिबादा भी
चाक हो गया आख़िर ख़ाक हो गया आख़िर
इज़्दिहाम-ए-इंसाँ से फ़र्द की नवा आई
ज़ात की सदा आई

राह-ए-शौक़ में जैसे राह-रौ का ख़ूँ लपके
इक नया जुनूँ लपके
आदमी छलक उट्ठे
आदमी हँसे देखो शहर फिर बसे देखो

तुम अभी से डरते हो?
हाँ अभी तो तुम भी हो
हाँ अभी तो हम भी हैं
तुम अभी से डरते हो
नून मीम राशिद
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4. mai thak gya hoo..

कोई नहीं है, किसे बताऊँ, मैं थक गया हूँ
मैं थक गया हूँ

बस अपनी ऑंखों से उसके चेहरे तलक गया हूँ !
मैं थक गया हूँ

ये मेरी पहली वफ़ा नहीं है, तुम्हारे मिलने से पेश्तर भी
कई हसीनों की झॉंझरों में छनक गया हूँ
मैं थक गया हूँ

मुझे तो ख़ुद भी ख़बर नहीं है, तुझे बताऊँ मैं क्या मेरी जॉं
मैं किसकी सूली पे किसकी ख़ातिर लटक गया हूँ...!!
मैं थक गया हूँ.
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5. Yaadein-साग़र ख़य्यामी..

नज़्म 'यादें'

कमख़ाब से बदन वो वो रेशमी अदायें
सोज़े दुरुं से जालना दाग़ों का धायें धायें
उठते हैं और शोले फूकों से जो बुझायें
कैसा था वो ज़माना कैसे तुम्हें बतायें

परदे पड़े हुए है यादों की खिड़कियों पर
क़ुर्बान जानो दिल से उन भोली लड़कियों पर

मेंहदी के चोर जकड़े उन गोरी मुट्ठियों में
सोने का एक क़लम था चाँदी की उँगलियों में
लिक्खे थे ख़त जो उसने गर्मी की छुट्टियों में
रखते हैं गर्म दिल को शिद्दत की सर्दियों में

महका हुआ शगूफा जैसे किसी चमन का
क्या ज़ायक़ा बतायें उस बेसनी बदन का

साग़र किसे सुनायें वो इश्क़ का फ़साना
आहट ज़रा सी पाना कोठे पे दौड़ आना
उट्ठा कुछ इस तरह फ़िर दोनों का आबो दाना
अब ग़ैर का नशेमन उसका है आशियाना

कब ख़ैरियत से गुज़रे दिन अपनी आशिक़ी के
अम्मी हैं वो किसी की अब्बु हैं हम किसी के

पिंडली वो गोरी गोरी पायल वो सादी सादी
हम से मोहब्बतें कीं और की किसी से शादी
दोनों की क़िस्मतों में लिक्खी थी नामुरादी
रानी है वो किसी की इस दिल की शाहज़ादी

रस्ते मोहब्बतों के काटे हैं बिल्लियों ने
हम जैसे कितने अब्बु मारे हैं अम्मियों ने

अब भी है याद दिल को वो इश्क़ का ज़माना
वो चाँद सी हथेली वो पान का बनाना
चुना कभी लगाना कत्था कभी लगाना
चुटकी से फ़िर पकड़ कर मेरी तरफ बढ़ाना

उस पान का न उतरा सर से जूनून अब तक
खायी थी इक गिलौरी थूका है खून अब तक

झूटा हुआ है जब से ये इश्क़ का फसाना
मेहबूब भी सिड़ी है आशिक़ भी है दीवाना
दोनों बना रहे हैं पानी पे आशियाना
थम्स उप की बोतलों का आया है क्या ज़माना

देखो वफा की रस्में कैसे मिटा रहे हैं
एक दुसरे को बैठे ठेंगा दिखा रहे हैं

होटों पे मुस्कुराहट आँखें बुझी बुझी हैं
बिजली गिरी है दिल पर वो जब कहीं मिली हैं
हम कौन से हैं ज़िंदा वो भी तो मर चुकी हैं
हम भी हैं अब नमाज़ी और वो भी मुत्तक़ी हैं

पहलू में रख के तकिये बिरह की रात खुश हैं
हम दोनों अपने अपने बच्चों के साथ खुश हैं

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Kamkhaab se badan wo, wo reshami adayen
soze durun se jalna, daghon ka dhayen dhayen
uthte hain aur shole phukon se jo bujhayen
kaisa tha wo zamana kaise tumhain batayen
parde pade huye hain yadon ki khidkiyon par
qurban jano dil se un bholi ladkiyon par

mehndi ke chor jakde un gori muttiyon main
sone ka ek qalam tha chandi ki ungliyon main
likhe the khat jo usne garmi ki chuttiyon main
rakhte hain garm dil ko shiddat ki sardiyon main
mehka hua shagufa jaise kisi chaman ka
kya zayqa batayen us besani badan ka

saghar kise sunayen wo ishq ka fasana
aahat zara si pana kothe pa dod aana
uttha kuch is tarah phir dono ko aabo dana
ab ghair ka nasheman uska hai aashiyana
kab khairiyat se ghuzre din apni aashiqi ke
ammi hain wo kisi ki abbu hain hum kise ke

pindli wo gori gori payal wo sadi sadi
hum se mohabbatain kin aur ki kisi se shadi
dono ki qismaton main likkhi thi namuradi
rani hai wo kisi ki is dil ki shahzadi
raste mohabbaton ke kate hain billion ne
hum jaise kitne abbu mare hain ammiyon ne

ab bhi hai yad dil ko wo ishq ka zamana
wo chand si hateli wo pan ka banana
chuna kabhi lagana kattha kabhi lagana
chutki se phir pakad kar meri taraf badhana
us pan ka na utra sar se junoon ab tak
khayi thi ek gilori thuka hai khoon ab tak

jhoota hua hai jab se ye ishq ka fasana
mehboob bhi sidi hai aashiq bhi hai diwana
donon bana rahe hain pani pa aashiana
thums up ki botlon ka aaya hai kaya zamana
dekho wafa ki rasme kaise mita rahe hain
ek dusre ko baithe thenga dikha rahe hain

hoton pa muskurahat aankhen bujhi bujhi hain
bijli giri hai dil par wo jab kahin mili hain
hum kaun se hain zinda wo bhi to mar chuki hain
hum bhi hain ab namazi aur wo bhi muttaqi hain
pehlu main le ke takiye birha ki rat khush hain
hum dono apne apne bachhon ke sath khus hain
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6. ai dil hum pehle bhi tanha the..

ऐ दिल पहले भी हम तन्हा थे
ऐ दिल हम तन्हा आज भी हैं

इन ज़ख़्मों से, इन दाग़ों से
अब अपनी बातें होती हैं

जो ज़ख़्म कि सुर्ख़ गुलाब हुए
जो दाग़ कि बद्र-ए-मुनीर हुए

इस तरह से कब तक जीना है
मैं हार गया इस जीने से

कोई अब्र उठे किसी क़ुल्ज़ुम से
रस बरसे मेरे वीराने पर

कोई जागता हो कोई कुढ़ता हो
मेरे देर से वापस आने पे

कोई साँस भरे मेरे पहलू में
और हाथ धरे मेरे शाने पर

और दबे दबे लहजे में कहे
तुम ने अब तक बड़े दर्द सहे

तुम तन्हा तन्हा चलते रहे
तुम तन्हा तन्हा जलते रहे

सुनो तन्हा चलना खेल नहीं
चलो आओ मेरे हमराह चलो

चलो नए सफ़र पर चलते हैं
चलो मुझ को बना के गवाह चलो

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ai dil pehle bhi hum tanha the
ai dil hum tanha aaj bhi hain

in zakhmon se, in daghon se
ab apni baaten hoti hain

jo zakhm ki surkh gulab hue
jo dagh ki badr-e-munir hue

is tarah se kab tak jina hai
main haar gaya is jine se

koi abr uthe kisi qulzum se
ras barse mere virane par

koi jagta ho koi kudhta ho
mere der se wapas aane pe

koi sans bhare mere pahlu mein
aur hath dhare mere shane par

aur dabe dabe lahje mein kahe
tum ne ab tak bade dard sahe

tum tanha tanha chalte rahe
tum tanha tanha jalte rahe

suno tanha chalna khel nahin
chalo aao mere hamrah chalo

chalo nae safar par chalte hain
chalo mujh ko bana ke gawah chalo
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7. kya kahega kabhi milne bhi agar ayega wo..

क्या कहेगा कभी मिलने भी अगर आएगा वो
अब वफ़ादारी की क़समें तो नहीं खाएगा वो

हम समझते थे कि हम उसको भुला सकते हैं
वो समझता था हमें भूल नहीं पाएगा वो

कितना सोचा था पर इतना तो नहीं सोचा था
याद बन जाएगा वो ख़्वाब नज़र आएगा वो

सब के होते हुए इक रोज़ वो तन्हा होगा
फिर वो ढूँढेगा हमें और नहीं पाएगा वो

इत्तिफ़ाकन जो कभी सामने आया 'अजमल'
अब वो तन्हा तो न होगा जो ठहर जाएगा वो

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kya kahega kabhi milne bhi agar ayega wo
ab wafadari ki qasme to nhi khayega wo

hum samajhte the ki hum usko bhula sakte hain
wo samajhta tha hame bhool nahi paega wo

kitna socha tha par itna to nhi socha tha
yaad ban jayega wo khwab nazar ayega wo

sab ke hote hue ek roz wo tanha hoga
phir wo dhoodhega hume aur nhi payega yy wo

ittefaaqan jo kabhi samne aaya 'ajmal'
ab wo tanha toh na hoga jo thehar jayega wo
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8. Murshid - Afkar Alvi ..

मुर्शिद प्लीज़ आज मुझे वक़्त दीजिये
मुर्शिद मैं आज आप को दुखड़े सुनाऊँगा
मुर्शिद हमारे साथ बड़ा ज़ुल्म हो गया
मुर्शिद हमारे देश में इक जंग छिड़ गयी
मुर्शिद सभी शरीफ़ शराफ़त से मर गए
मुर्शिद हमारे ज़ेहन गिरफ़्तार हो गए
मुर्शिद हमारी सोच भी बाज़ारी हो गयी
मुर्शिद हमारी फौज क्या लड़ती हरीफ़ से
मुर्शिद उसे तो हम से ही फ़ुर्सत नहीं मिली
मुर्शिद बहुत से मार के हम ख़ुद भी मर गए
मुर्शिद हमें ज़िरह नहीं तलवार दी गयी
मुर्शिद हमारी ज़ात पे बोहतान चढ़ गए
मुर्शिद हमारी ज़ात पलांदों में दब गयी
मुर्शिद हमारे वास्ते बस एक शख़्स था
मुर्शिद वो एक शख़्स भी तक़दीर ले उड़ी
मुर्शिद ख़ुदा की ज़ात पे अंधा यक़ीन था
अफ़्सोस अब यक़ीन भी अंधा नहीं रहा
मुर्शिद मुहब्बतों के नताइज कहाँ गए
मुर्शिद मेरी तो ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी
मुर्शिद हमारे गाँव के बच्चों ने भी कहा
मुर्शिद कूँ आखि आ के सदा हाल देख वजं
मुर्शिद हमारा कोई नहीं एक आप हैं
ये मैं भी जानता हूँ के अच्छा नहीं हुआ
मुर्शिद मैं जल रहा हूँ हवाएँ न दीजिये
मुर्शिद अज़ाला कीजिये दुआएँ न दीजिये
मुर्शिद ख़मोश रह के परेशाँ न कीजिये
मुर्शिद मैं रोना रोते हुए अंधा हो गया
और आप हैं के आप को एहसास तक नहीं
हह! सब्र कीजे सब्र का फ़ल मीठा होता है
मुर्शिद मैं भौंकदै हाँ जो कई शे वि नहीं बची
मुर्शिद वहां यज़ीदियत आगे निकल गयी
और पारसा नमाज़ के पीछे पड़े रहे
मुर्शिद किसी के हाथ में सब कुछ तो है मगर
मुर्शिद किसी के हाथ में कुछ भी नहीं रहा
मुर्शिद मैं लड़ नहीं सका पर चीख़ता रहा
ख़ामोश रह के ज़ुल्म का हामी नहीं बना
मुर्शिद जो मेरे यार भला छोड़ें रहने दें
अच्छे थे जैसे भी थे ख़ुदा उन को ख़ुश रखें
मुर्शिद हमारी रौनकें दूरी निगल गयी
मुर्शिद हमारी दोस्ती सुब्हात खा गए
मुर्शिद ऐ फोटो पिछले महीने छिकाया हम
हूँ मेकुं देख लगदा ऐ जो ऐ फोटो मेदा ऐ
ये किस ने खेल खेल में सब कुछ उलट दिया
मुर्शिद ये क्या के मर के हमें ज़िन्दगी मिले
मुर्शिद हमारे विरसे में कुछ भी नहीं सो हम
बेमौसमी वफ़ात का दुख छोड़ जाएंगे
मुर्शिद किसी की ज़ात से कोई गिला नहीं
अपना नसीब अपनी ख़राबी से मर गया
मुर्शिद वो जिस के हाथ में हर एक चीज़ है
शायद हमारे साथ वही हाथ कर गया
मुर्शिद दुआएँ छोड़ तेरा पोल खुल गया
तू भी मेरी तरह है तेरे बस में कुछ नहीं
इंसान मेरा दर्द समझ सकते ही नहीं
मैं अपने सारे ज़ख्म ख़ुदा को दिखाऊँगा
ऐ रब्बे कायनात! इधर देख मैं फ़कीर
जो तेरी सरपरस्ती में बर्बाद हो गया
परवरदिगार बोल कहाँ जाएँ तेरे लोग
तुझ तक पहुँचने को भी वसीला ज़रूरी है
परवरदिगार आवे का आवा बिगड़ गया
ये किसको तेरे दीन के ठेके दिए गये
हर शख़्स अपने बाप के फिरके में बंद है
परवरदिगार तेरे सहीफे नहीं खुले
कुछ और भेज तेरे गुज़िश्ता सहीफों से
मक़सद ही हल हुए हैं मसाइल नहीं हुए
जो हो गया सो हो गया, अब मुख़्तियारी छीन
परवरदिगार अपने ख़लीफे को रस्सी डाल
जो तेरे पास वक़्त से पहले पहुँच गये
परवरदिगार उनके मसाइल का हल निकाल
परवरदिगार सिर्फ़ बना देना काफ़ी नइँ
तख़्लीक करके दे तो फिर देखभाल कर
हम लोग तेरी कुन का भरम रखने आए हैं
परवरदिगार यार! हमारा ख़याल कर
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9. main rojgaar k silsile mein - Gulzar..

मैं रोजगार क सिलसिले में,
कभी कभी उसके शहर जाता हूँ,
तो गुज़रता हूँ उस गली से,
वो नीम तरीक सी गली।
और उसी के नुक्कड़ पे,
ऊंघता सा पुराना खम्बा,
उसी के नीचे तमाम सब, इंतज़ार कर के,
मैं छोड़ आया था, शहर उसका।

बहुत ही खस्ता सी रौशनी की छड़ी को टेके,
वो खम्बा अब भी वही खड़ा है फितूर है ये, मगर,
मैं खम्बे क पास जा कर नज़र बचा के मोहल्ले वालों की,
पूछ लेता हूँ, आज भी ये वह मेरे जाने के बाद भी
आई तो नहीं थी,
वो आई थी क्या।

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main rojgaar k silsile mein,
kabhi kabhi uske shahar jaata hun,
to guzarta hun us gali se,
wo neem tareek si gali.
aur usi ke nukkad pe,
oonghata sa purana khamba,
usi k neeche tamaam sab, intezaar kar ke,
main chod aaya tha, shaher uska.

bahut hi khasta si roshni ki chadi ko teke,
wo khamba ab bhi wahi khada hai fituur hai ye, magar,
main khambe ke pass ja kar nazar bacha ke mohalle walon ki,
puch leta hun aaj bhi ye wo mere jaane k baad bhi, 
aayi to nahi thi,
wo aayi thi kya...
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