young poet

shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho..

शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम हो
दिल-दश्त में इक प्यास तमाशा है कि तुम हो

इक लफ़्ज़ में भटका हुआ शाइ'र है कि मैं हूँ
इक ग़ैब से आया हुआ मिस्रा है कि तुम हो 

दरवाज़ा भी जैसे मिरी धड़कन से जुड़ा है 
दस्तक ही बताती है पराया है कि तुम हो 

इक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ 
इक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो 

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ 
तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो 

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shabnam hai ki dhoka hai ki jharna hai ki tum ho
dil-dasht men ik pyaas tamasha hai ki tum ho 

ik lafz men bhaTka hua sha.ir hai ki main huun
ik ghaib se aaya hua misra.a hai ki tum ho 

darvaza bhi jaise miri dhaDkan se juDa hai 
dastak hi batati hai paraya hai ki tum ho 

ik dhuup se uljha hua saaya hai ki main huun 
ik shaam ke hone ka bharosa hai ki tum ho 

main huun bhi to lagta hai ki jaise main nahin huun 
tum ho bhi nahin aur ye lagta hai ki tum ho

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baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin..

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं

तुम भी हो बीते वक़्त के मानिंद हू-ब-हू
तुम ने भी याद आना है आना तो है नहीं

अहद-ए-वफ़ा से किस लिए ख़ाइफ़ हो मेरी जान
कर लो कि तुम ने अहद निभाना तो है नहीं

वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं

दुनिया हम अहल-ए-इश्क़ पे क्यूँ फेंकती है जाल
हम ने तिरे फ़रेब में आना तो है नहीं

वो इश्क़ तो करेगा मगर देख भाल के
'फ़ारिस' वो तेरे जैसा दिवाना तो है नहीं


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baithe hain chain se kahin jaana to hai nahin
ham be-gharon ka koi Thikana to hai nahin 

tum bhi ho biite vaqt ke manind hū-ba-hū 
tum ne bhi yaad aana hai aana to hai nahin 

ahd-e-vafa se kis liye ḳha.if ho meri jaan 
kar lo ki tum ne ahd nibhana to hai nahin 

vo jo hamen aziiz hai kaisa hai kaun hai 
kyuun pūchhte ho ham ne batana to hai nahin 

duniya ham ahl-e-ishq pe kyuun phenkti hai jaal 
ham ne tire fareb men aana to hai nahin 

vo ishq to karega magar dekh bhaal ke 
'faris' vo tere jaisa divana to hai nahin 
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Jahan bhar ki tamam aankhein nichod kar jitna nam banega ..

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा

मैं दश्त हूँ ये मुग़ालता है न शाइ'राना मुबालग़ा है
मिरे बदन पर कहीं क़दम रख के देख नक़्श-ए-क़दम बनेगा

हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा

तो क्यूँ न हम पाँच सात दिन तक मज़ीद सोचें बनाने से क़ब्ल
मिरी छटी हिस बता रही है ये रिश्ता टूटेगा ग़म बनेगा

मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसा
शदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा

सुना हुआ है जहाँ में बे-कार कुछ नहीं है सो जी रहे हैं
बना हुआ है यक़ीं कि इस राएगानी से कुछ अहम बनेगा

कि शाहज़ादे की आदतें देख कर सभी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं
ये जूँ ही हाकिम बना महल का वसीअ' रक़्बा हरम बनेगा

मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा

सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
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Wo muh lgata hai jab koi kam hota hai..

वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है

किसी का हो के दुबारा न आना मेरी तरफ़
मोहब्बतों में हलाला हराम होता है

इसे भी गिनते हैं हम लोग अहल-ए-ख़ाना में
हमारे याँ तो शजर का भी नाम होता है

तुझ ऐसे शख़्स के होते हैं ख़ास दोस्त बहुत
तुझ ऐसा शख़्स बहुत जल्द आम होता है

कभी लगी है तुम्हें कोई शाम आख़िरी शाम
हमारे साथ ये हर एक शाम होता है
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nikal laya hun ek pinjre se ek parinda..

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है
बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है

ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे
बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है

नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक
मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है

ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है
मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है

ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ दे दूँ
जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है

मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार
मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है

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bade tahammul se rafta rafta nikalna hai
bacha hai jo tujh mein mera hissa nikalna hai

ye ruh barson se dafn hai tum madad karoge
badan ke malbe se is ko zinda nikalna hai

nazar mein rakhna kahin koi gham-shanas gahak
mujhe sukhan bechna hai kharcha nikalna hai

nikal laya hun ek pinjre se ek parinda
ab is parinde ke dil se pinjra nikalna hai

ye tis barson se kuchh baras pichhe chal rahi hai
mujhe ghadi ka kharab purza nikalna hai

khayal hai khandan ko ittilaa de dun
jo kat gaya us shajar ka shajara nikalna hai

main ek kirdar se bada tang hun qalamkar
mujhe kahani mein dal ghussa nikalna hai
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Barso purana dost Mila jaise gair ho..

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो
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phone to dur waha khat bhi nahi pahuchenge..

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे

ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर
आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे

मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा
और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे

हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे

तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने
ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे

सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा
हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे
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jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe..

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे
जब अपनी अपनी मोहब्बतों के अज़ाब झेले तो लोग समझे

वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया था
उन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल न उतरे तो लोग समझे

उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़ल्सफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे

वो ख़्वाब थे ही चम्बेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बैअत
फिर इक चम्बेली की ओट में से जो साँप निकले तो लोग समझे

वो गाँव का इक ज़ईफ़ दहक़ाँ सड़क के बनने पे क्यूँ ख़फ़ा था
जब उन के बच्चे जो शहर जाकर कभी न लौटे तो लोग समझे

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jo ham pe guzre the ranj saare jo khud pe guzre to log samjhe
jab apni apni mohabbaton ke azaab jhele to log samjhe

vo jin darakhton ki chhanv men se musafiron ko utha diya tha
unhin darakhton pe agle mausam jo phal na utre to log samjhe

us ek kachchi si umr vaali ke falsafe ko koi na samjha
jab us ke kamre se laash nikli khutut nikle to log samjhe

vo khvab the hi chambeliyon se so sab ne hakim ki kar li baiat
phir ik chambeli ki ot men se jo saanp nikle to log samjhe

vo gaanv ka ik zaiif dahqan sadak ke banne pe kyuun khafa tha
jab un ke bachche jo shahr jakar kabhi na laute to log samjhe
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isi nadamat se uss ke kandhe jhuke huye hain..

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं
कि हम छड़ी का सहारा लेकर खड़े हुए हैं

यहाँ से जाने की जल्दी किस को है तुम बताओ
कि सूटकेसों में कपड़े किस ने रखे हुए हैं

करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं

वो ख़ुद परिंदों का दाना लेने गया हुआ है
और उस के बेटे शिकार करने गए हुए हैं

तुम्हारे दिल में खुली दुकानों से लग रहा है
ये घर यहाँ पर बहुत पुराने बने हुए हैं

मैं कैसे बावर कराऊँ जाकर ये रौशनी को
कि इन चराग़ों पे मेरे पैसे लगे हुए हैं

तुम्हारी दुनिया में कितना मुश्किल है बच के चलना
क़दम क़दम पर तो आस्ताने बने हुए हैं

तुम इन को चाहो तो छोड़ सकते हो रास्ते में
ये लोग वैसे भी ज़िंदगी से कटे हुए हैं

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isi nadamat se us ke kandhe jhuke hue hain
ki ham chhaDi ka sahara le kar khaDe hue hain 

yahan se jaane ki jaldi kis ko hai tum batao
ki suitcason men kapDe kis ne rakhe hue hain 

kara to lunga ilaqa khali main laD-jhagaD kar
magar jo us ne dilon pe qabze kiye hue hain 

vo khud parindon ka daana lene gaya hua hai
aur us ke beTe shikar karne ga.e hue hain 

tumhare dil men khuli dukanon se lag raha hai
ye ghar yahan par bahut purane bane hue hain 

main kaise bavar kara.un ja kar ye raushni ko
ki in charaghon pe mere paise lage hue hain 

tumhari duniya men kitna mushkil hai bach ke chalna
qadam qadam par to astane bane hue hain 

tum in ko chaho to chhoD sakte ho raste men
ye log vaise bhi zindagi se kaTe hue hain
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Bajae koi shahnai mujhe achchha nahin lagta..

बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता
मोहब्बत का तमाशाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो जब बिछड़े थे हम तो याद है गर्मी की छुट्टीयाँ थीं
तभी से माह जुलाई मुझे अच्छा नहीं लगता

वो शरमाती है इतना कि हमेशा उस की बातों का
क़रीबन एक चौथाई मुझे अच्छा नहीं लगता

न-जाने इतनी कड़वाहट कहाँ से आ गई मुझ में
करे जो मेरी अच्छाई मुझे अच्छा नहीं लगता

मिरे दुश्मन को इतनी फ़ौक़ियत तो है बहर-सूरत
कि तू है उस की हम-साई मुझे अच्छा नहीं लगता

न इतनी दाद दो जिस में मिरी आवाज़ दब जाए
करे जो यूँ पज़ीराई मुझे अच्छा नहीं लगता

तिरी ख़ातिर नज़र-अंदाज़ करता हूँ उसे वर्ना
वो जो है ना तिरा भाई मुझे अच्छा नहीं लगता

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baja.e koi shahna.i mujhe achchha nahin lagta
mohabbat ka tamasha.i mujhe achchha nahin lagta 

vo jab bichhDe the ham to yaad hai garmi ki chhuTTiyan thiin
tabhi se maah july mujhe achchha nahin lagta 

vo sharmati hai itna ki hamesha us ki baton ka
qariban ek chautha.i mujhe achchha nahin lagta 

na-jane itni kaDvahaT kahan se aa ga.i mujh men 
kare jo meri achchha.i mujhe achchha nahin lagta 

mire dushman ko itni fauqiyat to hai bahar-surat
ki tu hai us ki ham-sa.i mujhe achchha nahin lagta 

na itni daad do jis men miri avaz dab jaa.e
kare jo yuun pazira.i mujhe achchha nahin lagta 

tiri khatir nazar-andaz karta huun use varna
vo jo hai na tira bhaa.i mujhe achchha nahin lagta
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